सिंह लग्न में मंगल का फलादेश
सिंह लग्न में मंगल सुखेश एवं भाग्येश होने के कारण पूर्ण योगकारक है। यहां मंगल केन्द्र एवं त्रिकोण दोनों का स्वामी है।
सिंह लग्न में मंगल का फलादेश प्रथम स्थान में
लग्नस्थ मंगल सिंह (मित्र) राशि में होगा। ऐसा जातक रौबीले व्यक्तित्व वाला, हठी, कामी एवं क्रोधी होता है। इनमें प्रायः धैर्य की कमी रहती है। जातक को क्रोध जितनी तेजी से आता है, उतनी शीघ्रता से चला जाता है। ये लोग हृदय से शुद्ध, सच्चे व सत्यवादी होते हैं तथा कड़वी बात मुंह पर करने में संकोच नहीं करते। मंगल की यह स्थिति कुण्डली को ‘मांगलिक’ बनाती है।
दृष्टि – लग्नस्थ मंगल की दृष्टि चतुर्थ भाव (वृश्चिक राशि), सप्तम भाव (कुंभ राशि) एवं अष्टम भाव (मीन राशि) पर होगी। फलतः जातक को भूमि लाभ होगा। जातक की आयु में वृद्धि होगी तथा उसे गृहस्थ सुख विलम्ब से मिलेगा। जीवन साथी एवं भागीदार से नोक-झोंक होती रहेगी।
निशानी – ऐसे जातक प्रायः फौज, पुलिस प्रशासनिक कार्य तकनीकी कार्य, इंजीनियरिंग, ठेकेदारी इत्यादि कार्यों में सफल होते हैं।
दशा – मंगल की दशा अंतर्दशा में जातक की सर्वांगीण उन्नति होगी। जातक को भूमि लाभ होगा, वाहन सुख एवं भौतिक उपलब्धियों की प्राप्ति होगी।
मंगल का अन्य ग्रहों से सम्बन्ध
1. मंगल + सूर्य – ‘ रविकृत योग’ के कारण ऐसा जातक अत्यधिक धनी होगा।
2. मंगल + चंद्र – यहां प्रथम स्थान सिंह राशि में दोनों ग्रह स्थित होकर चतुर्थ स्थान (वृश्चिक राशि) सप्तम स्थान (कुम्भ राशि) एवं अष्टम स्थान (मीन राशि) को पूर्ण दृष्टि से देखेंगे
फलतः जातक ऋण रोग व शत्रुओं का नाश करने में सक्षम होगा। अपने घर वृश्चिक राशि को देखने के कारण जातक को घर का मकान वाहन सुख इत्यादि की प्राप्ति होगी पर जातक की उन्नति विवाह के पश्चात् होगी।
3. मंगल + बुध – ऐसा जातक अत्यधिक धनी एवं पराक्रमी होगा।
4. मंगल + गुरु – अष्टमेश गुरु लग्न में यदि मंगल के साथ होगा तो जातक को गृहस्थी व संतान का पूर्ण सुख मिलेगा।
5. मंगल + शुक्र – तृतीयेश-दशमेश शुक्र लग्न में मंगल के साथ हो तो जातक को राजनीति में ऊंचा पद दिलायेगा।
6. मंगल + शनि – षष्टेश शनि लग्न में मंगल के साथ होने से जातक को जिद्द के कारण अपकीर्ति दिलायेगा।
7. मंगल + राहु – लग्न में राहु मंगल के साथ होने से जातक को निरंकुश नेता बनायेगा।
8. मंगल + केतु – मंगल के साथ केतु लग्न में जातक को यशस्वी बनायेगा पर जातक लड़ाकू स्वभाव का स्वामी होगा।
सिंह लग्न में मंगल का फलादेश द्वितीय स्थान में
यहां द्वितीयस्थ मंगल कन्या (शत्रु) राशि में होगा। द्वितीय भाव में मंगल प्रायः विद्या और संतान सुख में बाधक होता है फिर भी जातक को स्थाई सम्पत्ति जमीन-जायदाद, कुटुम्ब, स्त्री एवं संतान का पूर्ण सुख मिलेगा।
दृष्टि – द्वितीयस्थ मंगल की दृष्टि पंचम भाव (धनु राशि), अष्टम भाव (मीन राशि) एवं अपने ही घर मेष राशि (नवम भाव ) पर होगी। फलत: जातक को पुत्र संतति होगी। जातक शत्रुओं का नाश करने में समर्थ होगा। जातक प्रबल भाग्यशाली होगा। जातक का भाग्योदय 28 वर्ष की आयु के बाद होगा।
दशा – मंगल की दशा अंतर्दशा में जातक का भाग्योदय होगा। उसे भौतिक उपलब्धियों की प्राप्ति होगी।
मंगल का अन्य ग्रहों से सम्बन्ध
1. मंगल + सूर्य – लग्नेश सूर्य धन स्थान में मंगल के साथ होने से जातक धनी तथा पराक्रमी होगा।
2. मंगल + चंद्र – यहां द्वितीय स्थान में कन्या राशि में चंद्रमा शत्रुक्षेत्री होगा। यहां बैठकर दोनों ग्रह पंचम भाव (धनु राशि) अष्टम भाव (मीन राशि) एवं भाग्य भवन अपने घर मेष राशि को पूर्ण दृष्टि से देखेंगे।
फलतः ‘लक्ष्मी यांग’ पूर्ण रूप से फलीभूत होगा। ऐसा जातक धनवान, सौभाग्यशाली एवं दीर्घजीवी होगा। प्रथम पुत्र के जन्म के बाद जातक धनी होगा पर धन के स्थाई संग्रह हेतु संघर्ष की स्थिति बनी रहेगी।
3. मंगल + बुध – मंगल-बुध की युति जातक को महाधनी बनायेगी। जातक करोड़पति होगा।
4. मंगल + गुरु – अष्टमेश गुरु के द्वितीय भाव में मंगल के साथ होने से धन हानि होगी पर जातक वैभव सम्पन्न होगा।
5. मंगल + शुक्र – तृतीयेश दशमेश शुक्र द्वितीय भाव में मंगल के साथ होने से जातक धनवान होगा।
6. मंगल + शनि – मंगल के साथ यहां शनि दाम्पत्य जीवन को नष्ट कर देगा।
7. मंगल + राहु – द्वितीय स्थान में मंगल के साथ राहु धन का नाश करेगा। जातक की वाणी घमण्ड युक्त एवं कड़वी होगी।
8. मंगल + केतु – द्वितीय स्थान में मंगल के साथ केतु जातक को धनशाली व पराक्रमी बनायेगा।
सिंह लग्न में मंगल का फलादेश तृतीय स्थान में
यहां तृतीयस्थ मंगल तुला (सम) राशि में होगा। मंगल की यह स्थिति जातक का पराक्रम बढ़ायेगी। जातक को जमीन-जायदाद का सुख प्राप्त होगा। जातक आप अकेला भाई नहीं होगा। जातक अपने कुटुम्ब परिवार के साथ रहना पसंद करेगा। जातक के अनेक मित्र होंगे।
दृष्टि – तृतीयस्थ मंगल की दृष्टि षष्ठम् भाव (मकर राशि) भाग्य भवन (मेष राशि) एवं दशम भाव (वृष राशि) पर होगी। फलत: जातक शत्रुओं का नाश करने में सक्षम होगा। जातक भाग्यशाली होगा तथा राज- सरकार में उसका दबदबा रहेगा।
निशानी – जातक को छोटे भाई का सुख कम मिलेगा।
दशा – मंगल की दशा अंतर्दशा में जातक का भाग्योदय होगा। नौकरी लगेगी व पराक्रम बढ़ेगा।
मंगल का अन्य ग्रहों से सम्बन्ध
1. मंगल + सूर्य – लग्नेश सूर्य तीसरे स्थान में मंगल के साथ होने से जातक के अनेक भाई होंगे पर छोटे भाई की मृत्यु होगी।
2. मंगल + चंद्र – यहां तृतीय स्थान में तुला राशिगत दोनों ग्रह की दृष्टि छठे भाव (मकर राशि) भाग्य भाव जो मंगल का स्वयं का घर है (मेष राशि) एवं दशम भाव (वृष राशि) पर होंगी। फलत: जातक धनवान, पराक्रमी एवं सौभाग्यशाली होगा। जातक की पहुंच राजनीति में भी होगी। जातक ऋण रोग व शत्रु का नाश करने में सक्षम होगा।
3. मंगल + बुध – धनेश, लाभेश बुध तीसरे स्थान में मंगल के साथ होने से जातक के कुटम्बीजन धनी होंगे।
4. मंगल + गुरु – अष्टमेश गुरु तीसरे स्थान में मंगल के साथ होने से जातक को बड़े भाई का सुख प्राप्त होगा।
5. मंगल + शुक्र – दशमेश शुक्र तृतीय स्थान में स्वगृही होकर मंगल के साथ होने से जातक को परिवार, भाई-बहनों का पूर्ण सुख प्राप्त होगा।
6. मंगल + शनि – षष्टेश शनि तृतीय स्थान में मंगल के साथ होने से जातक के मित्र लड़ाकू होंगे। जातक की मित्रों से कम बनेगी।
7. मंगल + राहु – तृतीय स्थान में मंगल के साथ राहु भाईयों से विरोध व मुकदमा करायेगा।
8. मंगल + केतु – तृतीय स्थान में मंगल के साथ केतु जातक को कीर्तिवान बनायेगा।
सिंह लग्न में मंगल का फलादेश चतुर्थ स्थान में
यहां चतुर्थ स्थान में मंगल वृश्चिक राशि में स्वगृही है। मंगल की यह स्थिति रूचक योग’ बना रही है। ऐसा जातक राजा या राजा से किसी भी प्रकार से कम नहीं होता। मंगल की यह स्थिति कुण्डली का मांगलिक बनाती है। ऐसा जातक स्वतंत्र विचारों का कलहकारी एवं हठी स्वभाव का किन्तु प्रबल पुरुषार्थी व्यक्ति होगा तथा अपनी बात के लिए मर मिटेगा ।
दृष्टि – चतुर्थस्थ मंगल की दृष्टि सप्तम भाव (कुम्भ राशि) दशम भाव (वृष राशि) एवं एकादश भाव (मिथुन राशि) पर होगी। फलतः ऐसे जातक के गृहस्थ जीवन में कुछ कलह, प्रशासनिक नौकरी एवं उद्योग व्यापार के लिए स्थिति लाभप्रद है।
निशानी – जातक बड़ी भू-सम्पत्ति का स्वामी या गांव का मुखिया होगा। कृषि भूमि से भी उसे लाभ प्राप्त होगा।
दशा – मंगल की दशा-अंतर्दशा में जातक का सर्वांगीण विकास होगा। जातक का भाग्योदय होगा। उसकी नौकरी लगेगी व घर का मकान बनेगा।
मंगल का अन्य ग्रहों से सम्बन्ध
1. मंगल + सूर्य – लग्नेश सूर्य चतुर्थ स्थान में मंगल के साथ होने से जातक तेजस्वी व्यक्तित्व का धनी होगा।
2. मंगल + चंद्र – यहां चतुर्थ स्थान में वृश्चिक राशिगत मंगल स्वगृही एवं चंद्रमा नीच का होने से ‘नीचभंग राजयोग’, ‘रूचक योग’ एवं ‘यामिनीनाथ योग’ की सृष्टि हुई है। मंगल यहां दिक्बली भी है। फलतः ‘महालक्ष्मी योग’ मुखरित हुआ है। यहां बैठकर दोनों ग्रहों की दृष्टि सप्तम भाव (कुंभ राशि) दशम भाव (वृष राशि) एवं एकादश भाव (मिथुन राशि) पर होगी।
फलतः ऐसा जातक बड़ी भू-सम्पत्ति का स्वामी तथा महाधनी होगा। राज्य सरकार (राजनीति) में जातक का प्रभाव होगा तथा जातक व्यापार व्यवसाय से भी धन अर्जित करेगा।
3. मंगल + बुध – धनेश, लाभेश बुध चतुर्थ स्थान में मंगल के साथ होने से जातक महाधनी होगा। उसके पास अनेक भवन व अनेक वाहन होंगे।
4. मंगल + गुरु – अष्टमेश गुरु मंगल के साथ चतुर्थ स्थान में होने से जातक को पिता की सम्पत्ति मिलेगी।
5. मंगल + शुक्र – तृतीयेश दशमेश शुक्र चतुर्थ स्थान में मंगल के साथ होने से जातक को माता की सम्पत्ति मिलेगी। जातक का ननिहाल शक्तिशाली होगा।
6. मंगल + शनि – पष्टेश शनि चतुर्थ स्थान में मंगल के साथ होने से जातक की माता का स्वास्थ्य खराब रहेगा। जातक की पत्नी चिड़चिड़े स्वभाव को होगी।
7. मंगल + राहु – चतुर्थ स्थान में मंगल के साथ राहु माता के लिए कष्टप्रद होता है। भूमि पक्ष में विवाद होगा।
8. मंगल + केतु – चतुर्थ स्थान में मंगल के साथ केतु जातक को बड़ी भू-सम्पत्ति एवं बड़े वाहन का स्वामी बनायेगा।
सिंह लग्न में मंगल का फलादेश पंचम स्थान में
सिंह लग्न में मंगल सुखेश एवं भाग्येश होने के कारण पूर्ण योगकारक है। यहां मंगल केन्द्र एवं त्रिकोण दोनों स्थान का स्वामी है। यहां पंचम स्थान में मंगल अपनी मित्र धनु राशि में होगा। मंगल यहां ज्यादा प्रसन्न रहेगा। क्योंकि धनु राशि अग्नि तत्त्व प्रधान है। मंगल भी अग्नि तत्त्व वाला है।
मंगल अपनी राशि (मेष) में नवम अर्थात् नवम से नवम स्थान पर है। फलतः जातक परम भाग्यशाली होगा। उसे संतति एवं श्रेष्ठ विद्या सुख प्राप्त होगा। उसे जीवन में सभी भौतिक सुख मिलते हैं।
दृष्टि – यहां मंगल की दृष्टि अष्टम भाव (मीन राशि) लाभ स्थान (मिथुन राशि) एवं व्यय भाव (कर्क राशि) पर होगी। जातक अपने शत्रुओं का नाश करने में सफल होगा। जातक खर्चीले स्वभाव का होगा। यात्राएं करता रहेगा और उसे यात्राओं से लाभ की प्राप्ति होती रहेगी।
निशानी – जातक का सही भाग्योदय प्रथम पुत्र संतति के बाद शुरू होगा। जातक प्रखर बुद्धिशाली एवं कूटनीतिज्ञ होगा।
दशा – मंगल की दशा अंतर्दशा में जातक की विलक्षण उन्नति होगी।
मंगल का अन्य ग्रहों से सम्बन्ध
1. मंगल + सूर्य – लग्नेश सूर्य पंचम स्थान में मंगल के साथ होने से जातक बहुत पुत्रों वाला होगा।
2. मंगल + चंद्र – यहां पंचम स्थान में धनु राशि में बैठकर दोनों ग्रह अष्टम भाव (मीन राशि) लाभ स्थान (मिथुन राशि) एवं व्यय भाव (कर्क राशि) को पूर्ण दृष्टि से देखेंगे। फलतः इस लक्ष्मी योग के कारण जातक व्यापार-व्यवसाय में यथेष्ट धन अर्जित करेगा। जातक दीर्घजीवी होगा तथा ऋण रोग व शत्रुओं का नाश करने में सक्षम होगा।
3. मंगल + बुध – धनेश, लाभेश बुध पंचम स्थान में होने से जातक विद्यावान, प्रजावान होगा। जातक को पुत्र पुत्री दोनों का लाभ होगा।
4. मंगल + गुरु – अष्टमेश गुरु पंचम स्थान में मंगल के साथ होने से जातक को पांच पुत्र देगा। जातक धर्म प्रधान शिक्षा का मर्मज्ञ होगा।
5. मंगल + शुक्र – तृतीयेश दशमेश शुक्र पंचम स्थान में मंगल के साथ होने से जातक कलाशास्त्र का जानकार होगा। जातक को पुत्र-पुत्री सभी का सुख मिलेगा।
6. मंगल + शनि – षष्टेश शनि पंचम स्थान में मंगल के साथ होने से एकाध संतति की अकाल मृत्यु का जिम्मेदार होगा। जातक विदेशी भाषा पढ़ेगा।
7. मंगल + राहु – मंगल के साथ राहु की पंचम स्थान में उपस्थिति संतान सुख में बाधक है।
8. मंगल + केतु – मंगल के साथ केतु पंचम स्थान में गर्भपात, गर्भस्राव एवं शल्य चिकित्सा का योग बनाता है।
सिंह लग्न में मंगल का फलादेश षष्टम स्थान में
यहां छठे स्थान में मंगल मकर राशि में उच्च का होगा। मंगल मकर राशि के 28 अंशों में परमोच्च का होगा। मंगल की यह स्थिति विपरीत राजयोग कारक है जातक धनी होगा तथा ऋण रोग व शत्रुओं का नाश करने में पूर्णतः सक्षम होगा। ऐसा जातक रौबीले व्यक्तित्व का धनी होगा। जातक बड़ी भू-सम्पत्ति का स्वामी होगा।
दृष्टि – मकर राशिगत मंगल की दृष्टि भाग्य भवन (मेष राशि) द्वादश भाव (कर्क राशि) एवं लग्न भाव (सिंह राशि) पर होगी। मंगल की यह स्थिति जातक के सौभाग्य में वृद्धि करेगी। जातक को पुरुषार्थ का लाभ मिलेगा। जातक महत्त्वाकांक्षी एवं खर्चीले स्वभाव का होगा।
निशानी – जातक की सम्पत्ति विवादास्पद रहेगी। सुखभंग योग एवं भाग्यभंग योग के कारण जातक को प्रथम प्रयास में सफलता नहीं मिलेगी। जातक को कार्य की सफलता हेतु निरन्तर परिश्रम एवं बार-बार प्रयास करने होंगे।
दशा – मंगल की दशा अंतर्दशा में भाग्य खिलेगा, पराक्रम बढ़ेगा एवं जातक को परिश्रम का फल मिलेगा।
मंगल का अन्य ग्रहों से सम्बन्ध
1. मंगल + सूर्य – लग्नेश सूर्य छठे स्थान में होने से जातक को परिश्रम का लाभ नहीं होने देगा। यहां विपरीत राजयोग बनेगा। फलत: जातक धनी होगा।
2. मंगल + चंद्र – यहां छठे स्थान में मकर राशिगत मंगल उच्च का होगा। मंगल की यह स्थिति ‘सुखभंग योग’ एवं ‘भाग्यभंग योग’ की सृष्टि करती है पर व्ययेश चंद्रमा के छठे जाने से सरल नामक विपरीत राजयोग की सृष्टि हुई है। अतः लक्ष्मी योग बना। ऐसा जातक संघर्ष के बाद धनी होगा।
यहां बैठकर दोनों ग्रहों की दृष्टि भाग्य स्थान (मेष राशि) व्यय भाव (कर्क राशि) एवं लग्न भाव (सिंह राशि) पर होगी। जातक निश्चय ही भाग्यशाली धनी एवं व्ययशील (खर्चीली) प्रवृत्ति का स्वामी होगा।
3. मंगल + बुध – धनेश, लाभेश बुध मंगल के साथ छठे हो तो जातक को आर्थिक विषमताओं का सामना करना पड़ेगा।
4. मंगल + गुरु – अष्टमेश गुरु छठे होने से विपरीत राजयोग एवं नीचभंग राजयोग बनेगा। जातक राजा या राजा से कम वैभवशाली नहीं हांगा।
5. मंगल + शुक्र – तृतीयेश दशमेश शुक्र छठे होने से जातक का पराक्रम भंग होगा।
6. मंगल + शनि – षष्टेश व सप्तमेश शनि छठे स्थान में मंगल के साथ ‘किम्बहुना योग’ बनायेगा। ऐसा जातक राजा के तुल्य धनी एवं पराक्रमी होगा।
7. मंगल + राहु – यहां छठे स्थान में राहु योग कारक है। जातक के गुप्त शत्रु होंगे उनसे सावधान रहना होगा।
8. मंगल + केतु – छठे स्थान में मंगल के साथ केतु रोग में वृद्धिकारक है।

सिंह लग्न में मंगल का फलादेश सप्तम स्थान में
सप्तमस्थ मंगल यहां कुंभ (शत्रु) राशि में होगा। मंगल की यह स्थिति कुण्डली को ‘मांगलिक’ बनाती है। फलतः जातक हठी व क्रोधी होगा। उसका दाम्पत्य जीवन कलहकारी रहेगा। जातक ऊर्जावान रतिक्रिया में स्त्री को हराने वाला कर्मठ व तेजस्वी पुरुष होगा।
दृष्टि – सप्तम भावगत मंगल की दृष्टि दशम भाव (वृष राशि) लग्न स्थान (सिंह राशि) एवं धन भाव (कन्या राशि) पर होगी। ऐसे जातक को राजपक्ष में लाभ, राजा से सम्मान, परिश्रम का लाभ मिलेगा। जातक अपने पुरुषार्थ से धन कमायेगा।
निशानी – ऐसा जातक उत्तम प्रशासक-प्रबंधक के रूप में ज्यादा यश प्राप्त करता हैं।
दशा – मंगल की दशा-अंतर्दशा में जातक उन्नति मार्ग की ओर आगे बढ़ेगा। उसे यथेष्ट धन, नौकरी-व्यवसाय की प्राप्ति होगी।
मंगल का अन्य ग्रहों से सम्बन्ध
I. मंगल + सूर्य – लग्नेश सूर्य सातवें स्थान में मंगल के साथ शुभ फलदायक है। जातक परिश्रमी एवं ऊर्जावान होगा।
2. मंगल + चंद्र – यहां सप्तम स्थान में कुम्भ राशिगत दोनों ग्रहों की दृष्टि दशम भाव (वृष राशि), लग्न भाव (सिंह राशि) एवं धन भाव (कन्या राशि) पर होगी। फलत: ‘लक्ष्मी योग’ पूर्ण रूप से मुखरित हुआ। ऐसे जातक को हाथ में लिए गए प्रत्येक कार्य में सफलता मिलेगी। जातक धनवान एवं साधन-सम्पन्न होगा । जातक राजनीति में प्रभाव रखने वाला महत्वपूर्ण व्यक्ति होगा।
3. मंगल + बुध – धनेश, लाभेश बुध सातवें मंगल के साथ होने से जातक को पत्नी पक्ष (ससुराल) से धन की प्राप्ति होगी।
4. मंगल + गुरु – अष्टमेश गुरु मंगल के साथ सातवें स्थान में होने पर जातक को गृहस्थ सुख में बाधा पहुंच सकती है।
5. मंगल + शुक्र – तृतीयेश दशमेश शुक्र सातवें स्थान में मंगल के साथ होने से जातक महान पराक्रमी व राजनीतिज्ञ होगा।
6. मंगल + शनि – मंगल के साथ शनि ‘द्विभार्या योग’ कराता है।
7. मंगल + राहु – सप्तम स्थान में मंगल के साथ राहु दो विवाह कराता है।
8. मंगल + केतु – सप्तम स्थान में मंगल के साथ केतु पत्नी से वैचारिक मतभेद उत्पन्न करता है।
सिंह लग्न में मंगल की स्थिति अष्टम स्थान में
यहां अष्टम स्थान में मंगल मीन (मित्र) राशि में होगा। मंगल की इस स्थिति से सुखभंग योग एवं भाग्यभंग योग की सृष्टि होती है। मंगल की यह स्थिति संघर्ष की द्योतक है।
जातक को भौतिक सुखों उपलब्धियों की प्राप्ति आसानी से नहीं होगी। जातक का प्रत्येक सफलता की प्राप्ति हेतु निरन्तर संघर्ष करना पड़ेगा। ऐसी कुण्डली ‘मांगलिक’ भी होगी। ऐसा मंगल गृहस्थ सुख में विवाद उत्पन्न करता है।
दृष्टि – अष्टमस्थ मंगल की दृष्टि एकादश स्थान (मिथुन राशि) धन भाव (कन्या राशि) एवं पराक्रम स्थान (तुला राशि) पर होगी। ऐसे जातक को धन लाभ होता है। जातक को व्यापार से लाभ होता है। जातक पराक्रमी होता है।
निशानी – इस भाव में मंगल पित्त रोग, रक्त विकार, फोड़े फुन्सी, घाव, चीरफाड़ बवासीर मस्सा ऑपरेशन इत्यादि को बताता है।
दशा – मंगल की दशा अंतर्दशा मिश्रित फल देगी।
मंगल का अन्य ग्रहों से सम्बन्ध
1. मंगल + सूर्य – लग्नेश सूर्य आठवें मंगल के साथ होने से दो विवाह कराता है।
2. मंगल + चंद्र – यहां दोनों ग्रह अष्टम स्थान मीन राशि में होंगे। मंगल की यह स्थिति ‘सुखभंग योग’ एवं ‘राजभंग योग’ की सृष्टि करेगी। परन्तु व्ययंश चंद्रमा के अष्टम में जाने से ‘सरल’ नाम विपरीत राजयोग की सृष्टि होने से ‘लक्ष्मी योग’ मुखरित हुआ है। यहां बैठकर दोनों ग्रह लाभ स्थान (मिथुन राशि) धन भाव (कन्या राशि) एवं पराक्रम भाव (तुला राशि) को देखेंगे। फलत: जातक व्यापार व्यवसाय में धन अर्जित करेगा एवं महान पराक्रमी होगा।
3. मंगल + बुध – धनेश, लाभेश बुध आठवें स्थान में होने से जातक को धनहीन कर देता है।
4. मंगल + गुरु – अष्टमेश गुरु अष्टम स्थान में स्वगृही होकर मंगल के साथ होन से विपरीत राजयोग बना पर गृहस्थ सुख में परेशानी होगी।
5. मंगल + शुक्र – तृतीयंश. दशमेश शुक्र अष्टम स्थान में मंगल के साथ होने से जातक को गुप्त रोग देगा।
6. मंगल + शनि – षष्टेश शनि अष्टम स्थान में मंगल के साथ ‘विपरीत राजयोग’ बनायेगा। परन्तु जातक के पत्नी से विचार नहीं मिलेंगे। वैधव्य योग संभव है।
7. मंगल + राहु – अष्टम स्थान में मंगल के साथ राहु होने से दो पत्नी का योग बनता है।
8. मंगल + केतु – अष्टम स्थान में मंगल के साथ केतु वैवाहिक सुख में कलह कराता है।
सिंह लग्न में मंगल का फलादेश नवम स्थान में
यहां नवमस्थ मंगल मेष राशि में स्वगृही होगा। ऐसा जातक महान भाग्यशाली होगा। जातक को उत्तम शिक्षा, सम्पत्ति, स्त्री, संतान, घर वाहन, नौकर चाकर का पूर्ण सुख मिलता है। जातक ऐश्वर्यशाली एवं वैभवपूर्ण जीवन जीता है।
दृष्टि – स्वगृही मंगल की दृष्टि व्यय भाव (कर्क राशि) पराक्रम स्थान (तुला राशि) एवं सुख भाव (वृश्चिक राशि) अपने ही घर पर होगी। फलतः जातक खर्चीले स्वभाव का व्यक्ति होगा। जातक पराक्रमी होगा तथा बड़ी जमीन-जायदाद का स्वामी होगा।
दशा – मंगल की दशा अंतर्दशा में जातक का भाग्योदय होगा। उसे जमीन जायदाद की प्राप्ति होगी।
मंगल का अन्य ग्रहों से सम्बन्ध
1. मंगल + सूर्य – भोजसहिता के अनुसार लग्नेश सूर्य मंगल के साथ नवम भाव में हो तो ‘किम्बहुना योग’ बनता है। जातक राजा के तुल्य पराक्रमी एवं धनी होगा।
2. मंगल + चंद्र – यहां मेष राशिगत मंगल स्वगृही एवं चंद्रमा उच्चाभिलाषी होगा। यहां बैठकर दोनों ग्रह व्यय भाव (कर्क राशि) पराक्रम भाव (तुला राशि) एवं चतुर्थ भाव जो कि स्वयं मंगल का मुखरित हुआ।
ऐसा जातक अति सौभाग्यशाली एवं धनवान होगा। जातक बड़ी भू-सम्पत्ति का स्वामी होगा तथा गांव के मुखिया या अन्य प्रतिष्ठित पद को प्राप्त करेगा। ऐसा जातक व्ययशील (उदार) प्रवृत्ति वाला होगा।
3. मंगल + बुध – धनेश, लाभेश बुध नवम स्थान में मंगल के साथ होने से जातक व्यापार के द्वारा खूब धन कमायेगा। उसे पिता की सम्पत्ति मिलेगी।
4. मंगल + गुरु – अष्टमेश गुरु नवम स्थान में मंगल के साथ हो तो जातक की गृहस्थ सुख, स्त्री संतान का सुख पूर्ण प्राप्त होता है।
5. मंगल + शुक्र – तृतीयेश दशमेश शुक्र नवम स्थान में मंगल के साथ हो तो जातक को राज सरकार में ऊंचा पद प्राप्त होता है।
6. मंगल + शनि – षष्टेश शनि के नवम भाव में मंगल के साथ होने से ‘नीचभंग राजयोग’ बनेगा। जातक राजा होगा तथा किसी भी प्रकार से राजा से कम नहीं होगा।
7. मंगल + राहु – भाग्य स्थान में मंगल के साथ राहु का यह योग भाग्योदय में बाधा डालता है फिर भी जातक भाग्यशाली होता है।
8. मंगल + केतु – भाग्य स्थान में मंगल के साथ केतु भाग्योदय हेतु प्रारम्भिक संघर्ष का द्योतक है।
सिंह लग्न में मंगल का फलादेश दशम स्थान में
यहां दशम स्थान में मंगल वृष (सम) राशि में होगा। मंगल यहां दिक्वली होगा। जिसके कारण ‘कुलदीपक योग’ भी बनेगा। जातक भाग्यशाली होगा। ऐसे जातक को उत्तम संतति, उत्तम भवन, उत्तम वाहन, नौकर-चाकर इत्यादि का पूर्ण सुख मिलता है। जातक कुल परिवार व कुटुम्ब का नाम रोशन करेगा।
दृष्टि – दशमस्थ मंगल लग्न स्थान (सिंह राशि) सुख भाव (वृश्चिक राशि) एवं पंचम भाव (धनु राशि) को देखेगा। फलत: जातक को स्वस्थ देह, दृढ़ इच्छा शक्ति, उत्तम संतति एवं भौतिक उपलब्धियों की प्राप्ति होगी।
निशानी – जातक के दो या तीन पुत्र जरूर होंगे। जातक IAS, IPS, RJS इत्यादि प्रशासनिक कार्यों में उत्तम सफलता प्राप्त करेगा।
दशा – मंगल की दशा अंतर्दशा में जातक का भाग्योदय होगा। जातक को जमीन-जायदाद, संतति एवं भौतिक उपलब्धियों की प्राप्ति होगी।
मंगल का अन्य ग्रहों से सम्बन्ध
1. मंगल + सूर्य – लग्नेश सूर्य दशम स्थान में मंगल के साथ हो तो जातक को उच्च राजपुरुष (I.A.S. या P.C. S.) बनाता है।
2. मंगल + चंद्र – यहां वृष राशिगत केन्द्रवर्ती चंद्रमा उच्च का होगा। यामिनीनाथ योग’ बनेगा। मंगल यहां दिक्बली होगा तथा ‘कुलदीपक योग’ बनायेगा। फलतः यहा ‘महालक्ष्मी योग की सृष्टि हुई है। ऐसा जातक महाधनी होगा। यहां बैठकर दोनों ग्रहों की दृष्टि लग्न स्थान (सिंह राशि) चतुर्थ भाव जो मंगल का स्वयं का घर है (वृश्चिक राशि) एवं पंचम भाव (धनु राशि) पर होगी।
ऐसे जातक को जीवन के प्रत्येक कार्य में सफलता मिलेगी। जातक बड़ी भू-सम्पत्ति तथा उत्तम वाहन का स्वामी होगा। जातक का सही अर्थों में भाग्योदय प्रथम संतति के बाद होगा।
3. मंगल + बुध – धनेश, लाभेश बुध दशम स्थान में मंगल के साथ हो तो जातक को भूमि, भवन से धन दिलाता है।
4. मंगल + गुरु – अष्टमेश गुरु के साथ मंगल दशम स्थान में होने से जातक शत्रुओं का नाश करता है। जातक विद्यावान व गुणी होगा।
5. मंगल + शुक्र – तृतीयेश, दशमेश शुक्र मंगल के साथ दशम स्थान में ‘मालव्य योग’ बनाता है। जातक राजा या बड़ा राजपुरुष होगा।
6. मंगल + शनि – षष्टेश शनि का दशम स्थान में मंगल के साथ होना जातक को सरकार में नौकरी दिलायेगा। जातक प्रबन्धन कार्य में श्रेष्ठ होगा।
7. मंगल + राहु – दशम स्थान में मंगल के साथ वृष का राहु जातक को हठी व दम्भी राजा बनायेगा।
8. मंगल + केतु – दशम स्थान में मंगल के साथ केतु जातक को तेजस्वी व्यक्तित्व का धनी बनायेगा।
सिंह लग्न में मंगल का फलादेश एकादश स्थान में
सिंहलग्न में मंगल सुखेश एवं भाग्येश होने के कारण पूर्ण योगकारक है। यहां मंगल केन्द्र एवं म. त्रिकोण दोनों स्थान का स्वामी है। एकादश स्थान में मंगल मिथुन (शत्रु) राशि में होगा। यह मंगल जातक के जीवन में भौतिक उपलब्धियों में वृद्धि करायेगा। जातक को बुद्धि, तेज एवं प्रखर निर्णय शक्ति देगा।
दृष्टि – एकादश भावगत मंगल की दृष्टि धन भाव (कन्या राशि) पंचम भाव (धनु राशि) एवं छठे भाव (मकर राशि) पर होगी। जातक धनी होगा। जातक को संतति सुख मिलेगा। जातक अपने शत्रुओं का नाश करने में सक्षम होगा।
निशानी – जातक पुत्रवान होगा। जातक के दो पुत्र अवश्य होंगे।
दशा – मंगल की दशा अंतर्दशा में जातक का भाग्योदय होगा व व्यापार चमकेगा।
मंगल का अन्य ग्रहों से सम्बन्ध
1. मंगल + सूर्य – लग्नेश सूर्य एकादश स्थान में मंगल के साथ होने से जातक उद्योगपति होगा।
2. मंगल + चंद्र – यहां एकादश स्थान में मिथुन राशि में चंद्रमा शत्रुक्षेत्री होगा। यहां बैठकर दोनों ग्रह धन भाव (कन्या राशि) पंचम भाव (धनु राशि) एवं छठे भाव (मकर राशि) को देखेंगे। इस ‘लक्ष्मी योग’ के कारण जातक धनवान होगा। जातक अपने शत्रुओं का नाश करने में सक्षम होगा। जातक की आर्थिक स्थिति प्रथम संतति के बाद सुदृढ़ होगी।
3. मंगल + बुध – धनेश बुध एकादश स्थान में स्वगृही होकर मंगल के साथ होने से व्यापार व्यवसाय से जातक को धनी बनायेगा।
4. मंगल + गुरु – अष्टमेश गुरु एकादश स्थान में मंगल के साथ होने से जातक को धनी व धार्मिक नेता या राजगुरु का समान होगा।
5. मंगल + शुक्र – तृतीयेश, दशमेश शुक्र एकादश स्थान में मंगल के साथ होने से जातक को महान पराक्रमी बनायेगा।
6. मंगल + शनि – षष्टमेश शनि एकादश स्थान में मंगल के साथ जातक के ससुराल को समाज में प्रतिष्ठित पद देगा।
7. मंगल + राहु – एकादश स्थान में मंगल के साथ राहु शुद्ध लाभांश में कटौती करेगा।
8. मंगल + केतु – एकादश स्थान में मंगल के साथ केतु धन (लाभांश) का नाश करेगा।
सिंह लग्न में मंगल का फलादेश द्वादश स्थान में
सिंह लग्न में मंगल सुखेश एवं भाग्येश होने के कारण पूर्ण योगकारक है। यहां मंगल केन्द्र एवं त्रिकोण दोनों स्थान का स्वामी है। द्वादश भाव में कर्क राशिगत मंगल यहां नीच का होगा। कर्क राशि के 28 अंशों में मंगल परम नीच का होगा।
मंगल की यह स्थिति कुण्डली को ‘डबल मांगलिक’ बनाती है। यह स्थिति जातक के दाम्पत्य सुख के लिए बाधक है तथा विलम्ब विवाह का योग बनाती है। मंगल के कारण ‘सुखभंग योग’ एवं ‘भाग्यभंग योग’ बना। फलत: सुखों की प्राप्ति हेतु जातक को अनेक प्रकार के कष्टों एवं असफलताओं का सामना करना पड़ता है।
दृष्टि – द्वादश भावगत मंगल की दृष्टि पराक्रम स्थान (तुला राशि) छठे भाव (मकर राशि) एवं सप्तम भाव (कुम्भ राशि) पर होगी। फलतः सहोदर सुखों की हानि, गुप्त शत्रुओं को प्रकोप जीवन साथी से वैचारिक भिन्नता जातक को परेशान करते रहेगे।
निशानी – इस भाव में मंगल नेत्र पीड़ा, रक्त विकार, पुलिस या अदालत के कारण जातक के जीवन में परेशानी उत्पन्न करता है।
दशा – मंगल की दशा अंतर्दशा में जातक को मिले-जुले परिणाम प्राप्त होंगे। कठोर परिश्रम एवं प्रारंभिक संघर्ष के बाद ही सफलता हाथ लगेगी।
मंगल का अन्य ग्रहों से सम्बन्ध
1. मंगल + सूर्य – लग्नेश सूर्य द्वादश स्थान में मंगल के साथ होने से नेत्र पीड़ा एवं राजदण्ड देगा।
2. मंगल + चंद्र – यहां द्वादश स्थान में कर्क राशि में चंद्रमा स्वगृही एवं मंगल नीच का होने से ‘नीचभंग राजयोग’ की सृष्टि होगी। यद्यपि मंगल के कारण ‘सुखभंग योग’ तथा ‘ भाग्यभंग योग’ बना था। तथापि व्यय भाव में व्ययेश स्वगृही होने से सरल नामक विपरीत राजयोग के कारण मंगल के अशुभ फल नष्ट हो जायेंगे। यहां ‘महालक्ष्मी योग मुखरित हुआ है।
यहां बैठकर दोनों ग्रह पराक्रम भाव (तुला राशि), षष्टम भाव (मकर राशि) एवं सप्तम भाव (कुम्भ) राशि) को देखेंगे। फलत: जातक महान पराक्रमी होगा एवं शत्रुओं का दमन करने में कामयाब होगा, परन्तु जातक सही अर्थों में धनी विवाह के बाद होगा।
3. मंगल + बुध – धनेश, लाभेश बुध द्वादश स्थान में मंगल के साथ होने से जातक को भूमिहीन व दिवालिया कर देगा।
4. मंगल + गुरु – अष्टमेश गुरु द्वादश स्थान में मंगल के साथ ‘नीचभंग राजयोग’ बनायेगा। जातक धनी होगा पर संतान पक्ष से चिंतित रहेगा।
5. मंगल + शुक्र – तृतीयेश दशमेश शुक्र द्वादश स्थान में मंगल के साथ होने से पराक्रम भंग करेगा। जातक को जेल हो सकती है।
6. मंगल + शनि – षष्टेश शनि के द्वादश के स्थान में मंगल के साथ होने से जातक को राजदण्ड के कारण जेल हो सकती है।
7. मंगल + राहु – द्वादश स्थान में मंगल के साथ राहु जातक को भूमिहीन कर देगा। जातक चार बार मकान बदलता रहेगा।
8. मंगल + केतु – द्वादश स्थान में मंगल के साथ केतु जातक को भूमि से कष्ट देगा। भाईयों में विद्वेष होगा।
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