सिंह लग्न में गुरु का फलादेश
सिंह लग्न में गुरु पंचमेश एवं अष्टमेश होगा। गुरु यहां त्रिकोण का अधिपति होने से तथा लग्नेश सूर्य का नैसर्गिक मित्र होने से शुभ फल ही देगा।
सिंह लग्न में गुरु का फलादेश प्रथम स्थान में
यहां प्रथम स्थान स्थान में गुरु सिंह (मित्र) राशि में होगा। यहां बैठकर गुरु ‘कुलदीपक यांग’ एवं ‘केसरी योग’ बना रहा है। ऐसा जातक न्यायप्रिय, सिद्धान्त प्रिय व सत्यवक्ता होगा। जातक को उच्च शैक्षणिक उपाधि (Higher Educational Degree) मिलेगी। जातक को भारतीय प्राच्च विद्याओं ज्योतिष, तंत्र-मंत्र, वेद-वेदान्त, दर्शन में रुचि बढ़ेगी। जातक ईश्वर में विश्वास रखने वाला आस्तिक व धार्मिक होगा।
दृष्टि – लग्नस्थ गुरु की दृष्टि पंचम भाव (धनु राशि) सप्तम भाव (कुंभ राशि) एवं भाग्य भाव (मेष राशि) होगी। फलत: जातक को विद्या, बुद्धि, उत्तम संतति की प्राप्ति होगी। जातक को सुन्दर पत्नी मिलेगी। जातक को पैतृक सम्पत्ति मिलेगी।
दशा – गुरु की दशा-अंतर्दशा में जातक का भाग्योदय होगा तथा उसे उत्तम शिक्षा मिलेगी एवं गृहस्थ सुख मिलेगा।
गुरु का अन्य ग्रहों से सम्बन्ध
1. गुरु + सूर्य – लग्नेश सूर्य के साथ गुरु व्यक्ति को प्रखर ज्ञानवान, पुण्यशील, परोपकारी एवं धर्मात्मा बनाता है।
2. गुरु + चंद्र – सिंह लग्न के प्रथम भाव में गुरु-चंद्र की युति व्ययेश चंद्रमा की पंचमेश, अष्टमेश गुरु के साथ युति है। लग्न में बैठकर दोनों शुभ ग्रह पंचम, सप्तम एवं भाग्य भवन को प्रभावित करेंगे।
फलतः संतान पक्ष, पत्नी पक्ष एवं भाग्य पक्ष अपेक्षाकृत मजबूत रहेंगे। जो भी आप कमायेंगे खर्च होता चला जायेगा। फिर भी जीवन में धन की कमी से कोई काम रुका नहीं रहेगा।
2. गुरु + मंगल – भाग्येश, सुखेश मंगल यदि गुरु के साथ लग्न स्थान में हो तो जातक परम भाग्यशाली होगा। रचनात्मक कार्यों में रुचि रखने वाला आस्तिक बुद्धि का स्वामी होगा।
3. गुरु + बुध – धनेश बुध की युति योगकारक गुरु के साथ लग्न स्थान में होने से जातक आध्यात्मिक विद्या का जानकार व दार्शनिक होगा। जातक कम्प्यूटर लाईन का भी जानकार होगा।
4. गुरु + शुक्र – पराक्रमेश, दशमेश, शुक्र लग्न में यदि गुरु के साथ हो तो जातक महान पराक्रमी व यशस्वी होगा।
5. गुरु + शनि – षष्टेश, सप्तमेश शनि यदि लग्न में गुरु के साथ हो तो जातक डिप्लोमेट, कूट राजनीतिज्ञ होगा।
6. गुरु + राहु – यहां सिंह लग्न में अष्टमेश गुरु के साथ प्रथम स्थान में राहु होने से जातक का मन-मस्तिष्क उद्विग्न रहेगा। ‘चाण्डाल योग’ के कारण जातक देव-ब्राह्मणों एवं देहसुख से हीन होता है।
7. गुरु + केतु – गुरु के साथ केतु जातक को कीर्तिवान् बनायेगा।
सिंह लग्न में गुरु का फलादेश द्वितीय स्थान में
यहां द्वितीय स्थान में गुरु कन्या (शत्रु) राशि में होगा। जातक को धन संग्रह में बाधाओं का सामना करना पड़ेगा। कुटुम्ब सुख में परेशानियां आयेंगी।
दृष्टि – द्वितीय भावगत गुरु की दृष्ठि छठे स्थान (मकर राशि) अष्टम भाव (मीन राशि) एवं दशम भाव (वृष राशि) पर होगी। फलत: जातक की आयु में वृद्धि हांगी जातक के शत्रुओं का नाश होगा। जातक का राजनैतिक वर्चस्व रहेगा।
निशानी – जातक की वाणी सत्य से प्रभावित होगी।
दशा – गुरु की दशा अंतर्दशा में मिश्रित फल मिलेंगे। जातक की तरक्की होगी पर धीमी गति से होगी।
गुरु का अन्य ग्रहों से सम्बन्ध
1. गुरु + सूर्य – अष्टमेश-पंचमेश गुरु के धन स्थान सूर्य के साथ होने से जातक बुद्धिबल, विद्याबल से धनार्जन करेगा।
2. गुरु + चंद्र – सिंह लग्न के द्वितीय भाव में गुरु-चंद्र की युति व्ययेश चंद्रमा की पंचमेश, अष्टमेश गुरु के साथ युति है। धन स्थान में चंद्रमा शत्रुक्षेत्री होगा। यहां बैठकर दोनों ग्रह षष्टम भाव, अष्टम भाव एवं दशम भाव को पूर्ण दृष्टि से देखेंगे। फलत: जातक को पैतृक सम्पत्ति मिलेगी। जातक की आयु पूर्ण होगी। ऐसा जातक रोग व शत्रु का मुकाबला करने में पूर्ण सक्षम होगा।
3. गुरु + मंगल – भाग्यंश, सुखेश मंगल धन स्थान में गुरु के साथ होने से जातक का भाग्योदय पुत्र संतति के जन्म के पश्चात होगा।
4. गुरु + बुध – बलवान धनेश के साथ पंचमेश होने से पुत्रमूल धनयोग एवं शत्रुकूल धनयोग बनेगा। जातक का भाग्योदय संतान द्वारा होगा। जातक को शत्रुओं से भी धन मिलेगा।
5. गुरु + शुक्र – दशमेश तृतीयेश शुक्र धन स्थान में हो तो जातक का धन निम्न कार्यों में खर्च होगा।
6. गुरु + शनि – षष्टेश, सप्तमेश शनि यदि धन स्थान में गुरु के साथ हो तो बीमारी में धन खर्च होगा।
7. गुरु + राहु – सिंहलग्न के द्वितीय स्थान में पंचमेश गुरु के साथ राहु होने से ‘चाण्डाल योग’ बना। जिसके कारण जातक भुजबल से हीन होता है तथा जो कुछ उसका चोरी हो जाता है या जो धन उधार चला जाता है वो वापस नहीं मिलता।
8. गुरु + केतु – गुरु के साथ केतु हो तो कुटुम्ब में कम बनेगी।
सिंह लग्न में गुरु का फलादेश तृतीय स्थान में
यहां गुरु तृतीय स्थान में तुला (शत्रु) राशि में होगा। ऐसा जातक धनी प्रतिष्ठित एवं आकर्षक व्यक्तित्व का स्वामी होगा। जातक को सहोदर भ्राता का सुख, पिता का सुख मिलेगा।
दृष्टि – गुरु की दृष्टि सप्तम भाव (कुम्भ राशि) भाग्य भाव (मेष राशि) एवं एकादश भाव (मिथुन राशि) पर होगी। जातक को गृहस्थ सुख
पूर्ण मिलेगा। व्यापार में लाभ होगा। जातक भाग्यशाली होगा एवं सन्मार्ग (न्यायमार्ग) पर चलेगा।
दशा – गुरु की दशा अंतर्दशा में जातक व्यापार द्वारा धन अर्जित करेगा।
गुरु का अन्य ग्रहों से सम्बन्ध
1. गुरु + सूर्य – अष्टमेश गुरु के साथ लग्नेश सूर्य की युति जातक को धार्मिक नेता एवं पराक्रमी बनायेगी।
2. गुरु + चंद्र – सिंह लग्न के तृतीय भाव में गुरु चंद्र की युति व्ययेश चंद्रमा की पंचमेश, अष्टमेश गुरु के साथ युति है। तृतीय स्थान में बैठकर ये दोनों शुभ ग्रह सप्तम भाव नवम भाव एवं एकादश भाव को पूर्ण दृष्टि से देखेंगे। फलत: जातक को पिता का धन मिलेगा। पत्नी व ससुराल से लाभ होगा। व्यापार से भी लाभ होगा।
3. गुरु + मंगल – सुखेश, भाग्येश मंगल तृतीय स्थान में गुरु के साथ होने से जातक पराक्रमी होगा। जातक के तीन से अधिक भाई होंगे।
4. गुरु + बुध – धनेश, लाभेश बुध तृतीय स्थान में गुरु के साथ होने से जातक को पराक्रमी बनायेगा। धनी बनायेगा।
5. गुरु + शुक्र – दशमेश शुक्र तृतीय स्थान में गुरु के साथ होने से जातक स्वगृही होगा। ऐसा जातक महान पराक्रमी एवं धार्मिक होगा।
6. गुरु + शनि – षष्टेश, सप्तमेश शनि तृतीय स्थान में उच्च का होकर गुरु के साथ होने से जातक महान पराक्रमी एवं मित्र समुदाय का चहेता होगा।
7. गुरु + राहु – यहां सिंहलग्न में अष्टमेश गुरु तृतीय स्थान में राहु के साथ होने से ‘चाण्डाल योग’ बना। ऐसा जातक सहोदर भाइयों के सुखों से हीन होकर मित्रों से धोखा खाता हैं।
8. गुरु + केतु – तृतीय स्थान में गुरु के साथ केतु जातक को मित्रों में यश दिलायेगा।
सिंह लग्न में गुरु का फलादेश चतुर्थ स्थान में
यहां चतुर्थ भावगत गुरु वृश्चिक (मित्र) राशि में होगा। यहां गुरु स्वगृहाभिलाषी होते हुए केसरी योग एवं कुलदीपक योग बनायेंगा। फलत: जातक धर्मनिष्ठ होते हुए महत्वाकांक्षी होगा। जातक की संतति व पत्नी धार्मिक व स्वामीभक्त होंगे।
दृष्टि – चतुर्थ भावगत गुरु की दृष्टि अष्टम भाव (मीन राशि) दशम भाव (वृष राशि) एवं व्यय भाव (कर्क राशि) पर होगी। ऐसा जातक शत्रुओं का नाश करने में सक्षम राज सरकार (राजनीति) में ऊंचे पद को प्राप्त करने वाला धार्मिक एवं परोपकार के कार्य में धन खर्च करने में विश्वास रखता है।
दशा – गुरु की दशा अंतर्दशा में जातक आगे बढ़ेगा एवं उत्तम फल प्राप्त करेगा।
गुरु का अन्य ग्रहों से सम्बन्ध
1. गुरु + सूर्य – लग्नेश सूर्य चतुर्थ स्थान में गुरु के साथ होने से जातक धन-वैभव से परिपूर्ण जीवन जीयेगा।
2. गुरु + चंद्र – सिंह लग्न के चतुर्थ भाव में गुरु चंद्र की युति व्ययेश चंद्रमा की पंचमेश, अष्टमेश गुरु के साथ युति है। चतुर्थ स्थान में चंद्रमा नीच का होगा। यहां बैठकर दोनों ग्रह अष्टम स्थान, दशम भाव एवं व्यय भाव को देखेंगे। फलतः ऐसे जातक की आयु पूर्ण होगी। जातक को राजनीति में ऊंचा पद मिलेगा। जातक खर्चीले स्वभाव का होगा। खर्चीला स्वभाव जातक की कमजोरी होगी।
3. गुरु + मंगल – सुखेश भाग्येश मंगल गुरु के साथ चतुर्थ स्थान में ‘रुचक योग’ बनायेगा। जातक का बड़ा मकान, खेती भूमि, धार्मिक संस्थान होगा।
4. गुरु + बुध – धनेश, लाभेश बुध गुरु के साथ होने से चतुर्थ भाव में जातक के एकाधिक वाहन योग बनाता है।
5. गुरु + शुक्र – तृतीयेश दशमेश शुक्र गुरु के साथ चतुर्थ स्थान में होने से जातक को राजनैतिक पद-प्रतिष्ठा दिलायेगा।
6. गुरु + शनि – षष्टेश, सप्तमेश शनि चतुर्थ भाव गुरु के साथ में होने से वाहन दुर्घटना का योग करायेगा पर जातक को कुछ नहीं होगा।
7. गुरु + राहु – यहां सिंहलग्न में अष्टमेश गुरु चतुर्थ स्थान में राहु के साथ होने से ‘चाण्डाल योग’ बना। जातक मातृसुख से हीन होता है घर, जमीन से रहित होकर जातक मित्रों का द्रोही होता है।
8. गुरु + केतु – चतुर्थ भाव में गुरु के साथ केतु माता को बीमार करायेगा।
सिंह लग्न में गुरु का फलादेश पंचम स्थान में
यहां पंचम स्थान में गुरु स्वगृही धनु राशि में होगा। धनु राशि के दस अंशों तक गुरु मूल त्रिकोणी होकर अत्यन्त शुभ फल देगा। ऐसे जातक को विद्या, बुद्धि, धन-सम्पत्ति का खूब लाभ मिलेगा। ऐसा जातक ऋण रोग व शत्रुओं का नाश करने में सक्षम होगा।
दृष्टि – पंचमस्थ गुरु की दृष्टि भाग्य भाव (मेष राशि) लाभ स्थान (मिथुन राशि) एवं लग्न भाव (सिंह राशि) पर होगी। जातक परम भाग्यशाली होगा। व्यापार से धन कमायेगा तथा उसे परिश्रम का पूरा-पूरा लाभ मिलेगा।
निशानी – जातक के पांच पुत्र होगे अथवा पुत्र संतति अधिक होगी।
दशा – गुरु की दशा अंतर्दशा में जातक का सर्वागीण विकास होगा। शत्रुओं का नाश होगा।
गुरु का अन्य ग्रहों से सम्बन्ध
1. गुरु + सूर्य – लग्नेश सूर्य पंचम में स्वगृही गुरु के साथ होने से जातक को राजगुरु की पदवी दिलायेगा। घर, समाज, राजनीति में लोग जातक का मार्गदर्शन प्राप्त करेंगे।
2. गुरु + चंद्र – सिंहलग्न के पंचम भाव में गुरु-चंद्र की युति व्ययेश चंद्रमा की पंचमेश, अष्टमेश गुरु के साथ युति है। पंचम स्थान में गुरु स्वगृही होगा। यहां बैठकर दोनों ग्रह नवम स्थान एकादश भाव एवं लग्न भाव को देखेंगे। फलतः ऐसे जातक का भाग्योदय 32 वर्ष की आयु के बाद होगा। व्यापार व्यवसाय से लाभ होगा। जातक को व्यक्तिगत सफलता मिलती रहेगी।
3. गुरु + मंगल – सुखेश, भाग्येश मंगल पंचम स्थान में गुरु के साथ होने से जातक के पांच पुत्र होंगे। पुत्र तेजस्वी होंगे।
4. गुरु + बुध – धनेश, लाभेश बुध पंचम भाव में गुरु के साथ होने से जातक धनी होगा। उसे पुत्र व पुत्री दोनों का सुख मिलेगा।
5. गुरु + शुक्र – तृतीयेश-दशमेश शुक्र पंचम भाव में गुरु के साथ होने से अनेक संतति देगा। जातक के पुत्र व कन्याएं प्रचुर मात्रा में होंगे।
6. गुरु + शनि – षष्टेश पंचम भाव में गुरु के साथ होने संतति को लेकर चिंता करायेगा।
7. गुरु + राहु – यहां सिंह लग्न में अष्टमेश गुरु पंचम स्थान में स्वगृही होकर राहु के साथ होने से चाण्डाल योग बना। जातक का प्रथमतः पुत्र न हो। पुत्र होंगे तो भी मूर्ख व संस्कारहीन होंगे। विद्या में बाधा निश्चित है। जातक का खान-पान दूषित होगा।
8. गुरु + केतु – पंचम भाव में गुरु के साथ कंतु जातक के गर्भपात करायेगा । जातक की संतति शल्य चिकित्सा द्वारा होगी।
सिंह लग्न में गुरु का फलादेश षष्टम स्थान में
यहां छठे स्थान पर गुरु मकर (नीच) राशि में होगा। मकर राशि के पांच अंशों तक गुरु परम नीच का होगा। गुरु की यह स्थिति ‘संतानहीन योग’ की सृष्टि करती है परन्तु अष्टमेश गुरु के छठे स्थान में जाने से ‘सरल नामक’ विपरीत राजयोग बनेगा। फलत: जातक बहुत धनी सम्पन्न एवं प्रतिष्ठित व्यक्ति होगा। जातक को वाहन सुख मिलेगा। भूमि भवन का लाभ होगा।
दृष्टि – षष्टमस्थ गुरु की दृष्टि दशम भाव (वृष राशि) व्यय भाव (कर्क (राशि) एवं पराक्रम स्थान तुला राशि) पर होगी। जातक को गुप्त रोग संभव हैं। खर्च व ऋण की चिन्ता रहेगा। मित्रों से लाभ निश्चित है।
दशा – गुरु की दशा अंतर्दशा में जातक विपरीत परिस्थितियों में होते हुए भी आगे बढ़ेगा।
गुरु का अन्य ग्रहों से सम्बन्ध
1. गुरु + सूर्य – सूर्य लग्नेश होकर छठे स्थान में गुरु के साथ होने से जातक को परिश्रम का लाभ नहीं मिलेगा। जातक की मनोकामना पूर्ण नहीं होगी।
2. गुरु + चंद्र – सिंहलग्न के छठे भाव में गुरु चंद्र की युति व्ययेश चंद्रमा की पंचमेश, अष्टमेश गुरु के साथ युति है। छठे स्थान में गुरु नीच का होगा एवं ‘संतानहीन योग’ की सृष्टि करेगा। यहां बैठकर दोनों ग्रह दशम भाव, द्वादश भाव एवं धन भाव को देखेंगे। फलतः राजनीति में धोखा मिलेगा, नौकरी व व्यापार से धोखा मिलेगा। धन का अपव्यय होगा। पैसा पास में टिकेगा नहीं।
3. गुरु + मंगल – सुखेश-भाग्येश मंगल यहां ‘नीचभंग राजयोग’ बनायेगा। ऐसा जातक राजा या राजगुरु तथा महान् पराक्रमी होगा।
4. गुरु + बुध – धनंश लाभेश बुध गुरु के साथ होने से धनहीन योग बना। यद्यपि विपरीत राजयोग के कारण जातक वैभवशाली जीवन जीयेगा।
5. गुरु + शुक्र – तृतीयेश दशमेश शुक्र गुरु के साथ छठे स्थान में जातक का पराक्रम भंग करायेगा।
6. गुरु + शनि – पष्टेश शनि गुरु के साथ ‘नीचभंग राजयोग’ बना रहा है। ऐसा जातक राजनेताओं का गुरु या महामण्डलेश्वर होगा।
7. गुरु + राहु – यहां सिंह लग्न में अष्टमेश गुरु छठे स्थान में नीच राशि का होकर राहु के साथ होने से ‘चाण्डाल योग’ बनायेगा। ऐसे जातक को बाल्यावस्था में जलभय, सर्पदंश का भय रहता है। आयु का 6, 8, 18 व 20 वर्ष घातक है।
8. गुरु + केतु – गुरु के साथ केतु गुप्त शत्रुओं का प्रकोप बढ़ायेगा।

सिंह लग्न में गुरु का फलादेश सप्तम स्थान में
सप्तम में गुरु कुम्भ (शत्रु) राशि में होगा। गुरु के कारण यहां केसरी योग एवं कुलदीपक योग बना। जातक को धन विद्या यश, पद-प्रतिष्ठा की प्राप्ति होगी। जातक का दाम्पत्य जीवन सुखी होगा। जातक शिक्षित व सभ्य होगा एवं पुरातन मान्यताओं में विश्वास रखेगा।
दृष्टि – सप्तम भावगत गुरु की दृष्टि लाभ स्थान (मिथुन राशि) लग्न स्थान (सिंह राशि) एवं पराक्रम स्थान (तुला राशि) पर होगी। जातक को परिश्रम का पूरा लाभ मिलेगा। व्यापार व्यवसाय में भी लाभ होगा। जातक का परिश्रम (जन सम्पर्क) तेज होगा।
दशा – गुरु की दशा अंतर्दशा में जातक की उन्नति होगी। व्यापार-व्यवसाय में लाभ होगा।
गुरु का अन्य ग्रहों से सम्बन्ध
1. गुरु + सूर्य – लग्नेश सूर्य सप्तम स्थान में होने से जातक को धर्मप्रिय एवं वफादार जीवनसाथी देगा।
2. गुरु + चंद्र – सिंह लग्न के सप्तम भाव में गुरु-चंद्र की युति व्ययेश चंद्रमा की पंचमेश, अष्टमेश गुरु के साथ युति है। सप्तम भाव में बैठकर दोनों शुभ ग्रह लाभ स्थान, लग्न स्थान एवं पराक्रम स्थान को पूर्ण दृष्टि से देखेंगे। फलतः विवाह के तत्काल बाद जातक की उन्नति होगी। उसका पराक्रम, जनसम्पर्क बढ़ेगा एवं उसे लाभ होगा।
3. गुरु + मंगल – सुखेश, भाग्येश मंगल सप्तम भाव में भाग्यशाली पत्नी देगा। जातक को ससुराल से मदद मिलती रहेगी।
4. गुरु + बुध – धनेश, लाभेश मंगल सप्तम भाव में गुरु के साथ होने से जातक की पत्नी भाग्यशाली होगी एवं उसका बैंक बैलेंस अच्छा होगा।
5. गुरु + शुक्र – तृतीयंश, दशमेश शुक्र सप्तम भाव में सुंदर व सुशील पत्नी दंगा। पत्नी का शरीर मांसल व पुष्ट होगा।
7. गुरु + शनि – षष्टेश शनि सप्तम भाव में गुरु के साथ ‘शश योग’ बनायेगा। जातक राजा के समान ऐश्वर्यशाली होगा।
8. गुरु + राहु – सिंहलग्न में सातवें स्थान में अष्टमेश गुरु के साथ राहु होने से क्रूर ‘चाण्डाल योग’ बनेगा। जातक की मृत्यु सर्पदंश से अथवा धीमी गति के जहर के कारण शान्ति पूर्वक होगा। जातक की पत्नी विधवा होगी।
9. गुरु + केतु – सप्तम भाव में गुरु के साथ केतु पत्नी से मनमुटाव देगा।
सिंह लग्न में गुरु का फलादेश अष्टम स्थान में
अष्टम स्थान में गुरु स्वगृही मीन राशि में होगा। गुरु की यह स्थिति संतानहीन योग बना रहा है। अष्टमेश अष्टम भाव में स्वगृही होने से ‘सरल नामक’ विपरीत राजयोग बना। ऐसा जातक विद्या बुद्धि संतान से युक्त, दीर्घायु एवं यशस्वी होता है। जातक आलोचक, चिंतक, समालोचक एवं व्यगंकार होता है।
दृष्टि – अष्टमस्थ गुरु की दृष्टि व्यय भाव (कर्क राशि) धन भाव (कन्या राशि) एवं चतुर्थ भाव (वृश्चिक राशि) पर होगी। फलत: जातक खर्चीले स्वभाव का होगा। जातक धनवान होगा। उसके पास सभी सुख-सुविधाएं होगी।
गुरु का अन्य ग्रहों से सम्बन्ध
1. गुरु + सूर्य – लग्नेश सूर्य अष्टम भाव में गुरु के साथ होने से जातक को परिश्रम का लाभ नहीं मिलेगा परन्तु विपरीत राजयोग के कारण जातक धनी होगा।
2. गुरु + चंद्र – आपका जन्म सिंहलग्न का है। सिंह लग्न के अष्टम भाव में गुरु-चंद्र की युति व्ययेश चंद्रमा की पंचमेश, अष्टमेश गुरु के साथ युति है। अष्टम स्थान में गुरु स्वगृही होगा। दोनों ग्रह यहां बैठने से ‘संतानहीन योग’ बनेगा । यदि ध्यान नहीं दिया गया तो विद्या प्राप्ति में बाधा आयेगी । खड्ढे में गिरे हुए ये दोनों ग्रह खर्च स्थान, धन स्थान एवं चतुर्थ भाव को पूर्ण दृष्टि से देखेंगे। फलतः धन का अपव्यय होगा। बढ़ते हुए खर्च के प्रति चिंता रहेगी। माता या वाहन को लेकर भी धन खर्च होगा।
3. गुरु + मंगल – सुखेश, भाग्येश मंगल अष्टम स्थान में गुरु के साथ होने से जातक के भाग्योदय में दिक्कत पैदा करेगा।
4. गुरु + बुध – धनेश, लाभेश बुध अष्टम स्थान में गुरु के साथ ‘नीचभंग राजयोग’ बनाता है। ऐसा जातक राजा के समान महान् पराक्रमी होगा।
5. गुरु + शुक्र – तृतीयेश, दशमेश शुक्र अष्टम स्थान में शारीरिक सौष्टव प्रदान करेगा।
6. गुरु + शनि – अष्टमेश गुरु के साथ षष्ठेश शनि अंग भंग कराता है तथा दुर्घटना योग बनाता है।
7. गुरु + राहु – सिंह लग्न के आठवें स्थान में अष्टमेश गुरु होने से सरल नाम विपरीत राजयोग होगा पर यहा राहु होने से चाण्डाल योग बना। जातक धन-वैभव से परिपूर्ण जीवन जीयेगा। परन्तु अचानक दुर्घटना का भय रहेगा।
8. गुरु + केतु – अष्टम स्थान में गुरु के साथ केतु शल्य चिकित्सा करायेगा।
सिंह लग्न में गुरु का फलादेश नवम स्थान में
नवम स्थान में गुरु मेष (मित्र) राशि में होगा। ऐसा जातक पूर्ण धर्मात्मा, ज्ञानवान, उदार हृदय एवं सद्विचारों से ओतप्रोत व्यक्ति होगा। जातक की स्त्री का सुख, पुत्र संतति का सुख, नौकरी-व्यवसाय का सुख पूर्ण होगा।
दृष्टि – यहां नवमस्थ गुरु की दृष्टि लग्न स्थान (सिंह राशि), तृतीय स्थान (तुला राशि) एवं पंचम भाव (धनु राशि) पर होगी। फलतः ऐसे जातक को पुरुषार्थ का लाभ मिलेगा। जातक पराक्रमी, विद्यावान् एवं यशस्वी होगा।
दशा – गुरु की दशा अंतर्दशा में जातक का भाग्योदय सर्वांगीण विकास व उन्नति होगी।
गुरु का अन्य ग्रहों से सम्बन्ध
1. गुरु + सूर्य – लग्नेश सूर्य गुरु के साथ उच्च का होने से जातक महान सौभाग्यशाली होगा। रविकृत राजयोग के कारण जातक राजनीति में उच्च पद को प्राप्त करेगा।
2. गुरु + चंद्र – सिंह लग्न के नवम भाव में गुरु-चंद्र की युति व्ययेश चंद्रमा की पंचमेश, अष्टमेश गुरु के साथ युति है। नवम स्थान में बैठकर दोनों शुभ ग्रह, लग्न स्थान पराक्रम स्थान एवं पंचम स्थान जो कि गुरु का स्वयं का घर है पर पूर्ण दृष्टि डालेंगे।
फलत: प्रथम संतति के बाद आपको विशेष भाग्योदय होगा। आपके मित्र एवं शुभचिंतकों की संख्या में अद्वितीय वृद्धि होगी। राजनीति में आपकी जीत होगी एवं संतान आज्ञाकारी होगी।
3. गुरु + मंगल – सुखेश, भाग्येश मंगल स्वगृही भाग्यस्थान में गुरु के साथ होने से जातक परम भाग्यशाली तथा बड़ी भू-सम्पत्ति का स्वामी होगा।
4. गुरु + बुध – धनेश, लाभेश बुध, गुरु के साथ भाग्य स्थान में होने से जातक कां महाधनी बनायेगा।
5. गुरु + शुक्र – तृतीयेश, दशमेश शुक्र भाग्य स्थान में गुरु के साथ जातक को उच्च राजनेता बनायेगा।
6. गुरु + शनि – षष्टेश शनि नीच होकर भाग्य स्थान में गुरु के साथ होने से भाग्य में उतार-चढ़ाव का झटका देता रहेगा।
7. गुरु + राहु – सिंह लग्न में नवम स्थान में अष्टमेश बृहस्पति के साथ राहु होने से चाण्डाल योग बनता है। ऐसा जातक परनिन्दक होता है। जातक धर्म के विपरीत आचरण करता है व नास्तिक होता है। जातक परधन हर्ता एवं दुःशीला स्त्रियों के साथ रहता है।
8. गुरु + केतु – गुरु के साथ केतु भाग्य स्थान में होने से जातक को भाग्य में बढ़ावा देगा।
सिंह लग्न में गुरु का फलादेश दशम स्थान में
यहां दशम भावगत गुरु वृष (शत्रु) राशि में होगा। गुरु की इस स्थिति से कुलदीपक योग’ एवं ‘केसरी योग’ बनेगा। जातक राजनीति में उच्च पद को प्राप्त करेगा तथा अध्ययन-अध्यापन में ज्यादा कीर्ति प्राप्त करेगा। यदि धनेश बुध की स्थिति सुदृढ़ हो तो जातक उद्योगपति होगा।
दृष्टि – दशम भावगत गुरु की दृष्टि धन स्थान (कन्या राशि) चतुर्थ भाव (वृश्चिक राशि) एवं छटे भाव (मकर राशि) पर रहेंगी। फलतः ऐसा जातक धनवान होगा। उसे सभी भौतिक सुखों की प्राप्ति होगी। जातक अपने शत्रुओं का नाश करने में सक्षम होगा।
दशा – गुरु की दशा अंतर्दशा में जातक की उन्नति होगी। जातक की तरक्की होगी एवं उसे राजनीति में सफलता मिलेगी।
गुरु का अन्य ग्रहों से सम्बन्ध
1. गुरु + सूर्य – लग्नेश सूर्य दशम स्थान में गुरु के साथ जातक को सरकारी नौकरी एवं सरकारी काम-काज के लिए शुभ है।
2. गुरु + चंद्र – सिंह लग्न में दशम भाव के गुरु-चंद्र की युति व्ययेश चंद्रमा की पंचमेश, अष्टमेश गुरु के साथ युति है। दशम भाव में चंद्रमा उच्च का होगा एवं यामिनीनाथ योग’ बनायेगा। दशम भाव में बैठे दोनों शुभ ग्रह धन स्थान, चतुर्थ भाव एवं षष्ट भाव पर पूर्ण दृष्टि डालेंगे।
फलतः 24 वर्ष की आयु के बाद धनप्राप्ति होनी शुरू होगी। जातक अपने शत्रुओं को नष्ट करने में समर्थ होगा एवं 38 वर्ष की आयु के बाद दो मंजिला मकान बनायेगा अच्छा वाहन खरीदेंगा।
3. गुरु + मंगल – सुखेश, भाग्येश मंगल दशम स्थान में गुरु के साथ होने से जातक को उच्च पद व प्रतिष्ठा दिलायेगा।
4. गुरु + बुध – धनेश, लाभेश बुध दशम भाव में गुरु के साथ होने से व्यापार में भारी धन दिलायेगा।
5. गुरु + शुक्र – तृतीयेश दशमेश शुक्र दशम भाव में गुरु के साथ ‘मालव्य योग’ बनायेगा। ऐसा जातक राजा से कम नहीं होगा।
6. गुरु + शनि – षष्टेश शनि दशम भाव में गुरु के साथ होने से ससुराल से पत्नी व पुत्र से धन दिलायेगा ।
7. गुरु + राहु – सिंह लग्न के दशम स्थान में अष्टमेश गुरु के साथ राहु होने से चाण्डाल योग बनता है। ऐसा जातक पिता के सुख से हीन, चुगलखोर एवं कर्महीन होता है।
8. गुरु + केतु – दशम स्थान में गुरु के साथ केतु जातक को राजदरबार में प्रतिष्ठा दिलायेगा।
सिंह लग्न में गुरु का फलादेश एकादश स्थान में
यहां एकादश स्थान में गुरु मिथुन (शत्रु) राशि में होगा। ऐसा जातक उच्च विद्या प्राप्त अति बुद्धिशाली व्यक्ति होगा। व्यापार के लाभांश में रुकावट आयेगी। जातक की पीठ पीछे निन्दा होगी।
दृष्टि – एकादश भाव में स्थित गुरु की दृष्टि पराक्रम भाव (तुला राशि) पंचम भाव (धनु राशि) एवं सप्तम भाव (कुम्भ राशि) पर होगी। फलत: जातक अपने सहोदर एवं संतान से सुखी होता है। जातक की पत्नी आज्ञाकारी होता है। जातक का गृहस्थ जीवन सुखमय होता है।
निशानी – जातक के बड़ा भाई नहीं होगा।
दशा – गुरु की दशा अंतर्दशा में धन लाभ होगा। व्यापार बढ़ेगा। नौकरी में उन्नति होगी।
गुरु का अन्य ग्रहों से सम्बन्ध
1. गुरु + सूर्य – लग्नेश सूर्य लाभ स्थान में गुरु के साथ होने से जातक को व्यापार में घाटा होने का संकेत देता है।
2. गुरु + चंद्र – सिंह लग्न के एकादश भाव में गुरु-चंद्र की युति व्ययेश चंद्रमा की पंचमेश, अष्टमेश गुरु के साथ युति है। एकादश भाव में चंद्रमा शत्रुक्षेत्री होगा। यहां बैठकर दोनों शुभ ग्रह पराक्रम स्थान, पंचम स्थान एवं सप्तम भाव पर पूर्ण दृष्टि डालेंगे।
फलतः आपका पराक्रम बढ़ा-चढ़ा रहेगा। आपकी विद्या पूर्ण होगी। आपको शैक्षणिक डिग्री मिलेगी पर नम्बरों में कुछ न्यूनता अनुभव करेंगे। ससुराल अच्छा मिलेगा। पत्नी सुन्दर मिलेगी। प्रथम संतति के बाद जातक के भाग्योदय की गति में तेजी आयेगी।
3. गुरु + मंगल – सुखेश, भाग्येश मंगल के लाभ स्थान में गुरु के साथ होने से जातक उद्योगपति होगा।
4. गुरु + बुध – धनेश, लाभेश बुध लाभ स्थान स्वगृही होकर, गुरु के साथ बैठने से जातक पराक्रमी होगा। उसे स्त्री संतान का पूर्ण सुख मिलेगा।
5. गुरु + शुक्र – तृतीयेश सुखेश शुक्र लाभ स्थान में गुरु के साथ होने से जातक का राजनीति में उच्च लोगों से सम्पर्क होगा।
6. गुरु + शनि – षष्टेश शनि एकादश स्थान में होने से लाभ में बाधा पहुंचेगी। जातक को बड़े भाई का सुख नहीं होगा।
7. गुरु + राहु – सिंह लग्न के एकादश स्थान में अष्टमेश गुरु के साथ राहु होने से ‘चाण्डाल योग बनता है। ऐसा जातक बचपन से दुःखी, धनहीन एवं कपट आचरण करने में माहिर होता है। जातक जैसा दिखता है, वैसा होता नहीं।
8. गुरु + केतु – गुरु के साथ कंतु एकादश स्थान में होने पर जातक को व्यापार में नुकसान पहुंच सकता है।
सिंह लग्न में गुरु का फलादेश द्वादश स्थान में
यहां द्वादश स्थान में कर्क राशि में उच्च का होगा। कर्क राशि में पांच अंशों तक गुरु परमोच्च का की यह स्थिति ‘संतानहीन योग’ बनाती है। अष्टमेश के द्वादश स्थान में उच्च का होने से सरल नाम विपरीत राजयोग बना। जातक धनी होगा। ऋण रोग व शत्रु समूह का मान मर्दन करने में पूर्णत: समर्थ होगा। जातक की निजी कार गाड़ी बंगला इत्यादि होगा।
दृष्टि – द्वादश भावगत गुरु की दृष्टि चतुर्थ भाव (वृश्चिक राशि) छठे भाव (मकर राशि) तथा अष्टम भाव (मीन राशि) पर होगी। फलत: जातक भौतिक सुख-सुविधाओं से युक्त रोग व शत्रु पर विजय प्राप्त करने वाला, लम्बी का आयु भोगने वाला जाताक होगा।
दशा – गुरु की दशा अंतर्दशा में जातक अचानक उन्नति को प्राप्त करेगा।
गुरु का अन्य ग्रहों से सम्बन्ध
1. गुरु + सूर्य – लग्नेश का व्ययभाव में जाना नेत्र पीड़ा देगा। गुरु यहां दीर्घायु को कम करेगा।
2. गुरु + चंद्र – सिंह लग्न के द्वादश भाव में गुरु चंद्र की युति व्ययेश चंद्रमा की पंचमेश, अष्टमेश गुरु के साथ युति है। द्वादश स्थान में चंद्रमा स्वगृही होगा एवं गुरु उच्च का होकर ‘किम्बहुना योग बनायेगा। साथ ही गुरु बारहवें होने से ‘संतानहीन योग’ की सृष्टि भी होगी।
शुभ, अशुभ मिश्रित फलों से युक्त होकर दोनों ग्रह चतुर्थ भाव पष्टम भाव एवं अष्टम भाव पर पूर्ण दृष्टि डालेंगे। फलतः आपको जीवन में बहुत ही उत्तम श्रेणी का मकान सुख एवं वाहन सुख मिलेगा। आपकी आयु दीर्घ होगी। रोग व शत्रु दोनों का नाश करने में आप सक्षम होंगे।
3. गुरु + मंगल – सुखेश, भाग्येश मंगल व्यय भाव में गुरु के साथ होने से ‘नीचभंग राजयोग’ बनेगा। जातक राजा से कम नहीं होगा।
4. गुरु + बुध – धनेश, लाभेश बुध व्यय भाव में गुरु के साथ होने से व्यापार में हानि का संकेत देता है।
5. गुरु + शुक्र – तृतीयेश दशमेश शुक्र व्यय भाव में गुरु के साथ होने से पराक्रम भंग करेगा।
6. गुरु + शनि – षष्टेश, सप्तमेश शनि व्यय भाव में गुरु के साथ गृहस्थ सुख में न्यूनता एवं मानभंग का संकेत देता है।
7. गुरु + राहु – सिंह लग्न के द्वादश स्थान में अष्टमेश गुरु के साथ राहु होने से ‘चाण्डाल योग’ बना। ऐसा जातक गलत कार्य में धन खर्च करता है। जातक अल्पायु होता है तथा पापकर्मों में निमग्न रहता है।
8. गुरु + केतु – गुरु के साथ केतु व्यय भाव में होने से यात्रा से धनहानि होगी। आपरेशन से नुकसान होगा।
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