मेष लग्न में केतु का फलादेश

सूर्य मंगल और गुरु केतु के मित्र हैं। केतु की उच्चराशि धनु, नीच राशि मिथुन है। कई विद्वान केतु की उच्चराशि वृश्चिक मानते हैं क्योंकि यह ‘कुजवत्’ काम करता है। केतु ‘ध्वजा’ को कहते हैं फलतः केतु कीर्ति का प्रतीक है। यश देने वाला ग्रह है। यह राहु जितना अशुभ नहीं होता है।

फलादेश का सूत्र यह है कि केतु राक्षस का धड़ (शरीर) है। राहु राक्षस का सिर है। इसे ‘ड्रेगन हैड’ और केतु ‘ड्रेगन टेल’ कहते हैं। सिर (राहु) कुण्डली के जिस भाव (स्थान) में होगा उस भाव को विकृत करेगा। दूसरों शब्दों में उस भाव के शुभ फल से जातक को वंचित करेगा।

परन्तु केतु शरीर है यह तड़फ रहा है तथा सिर से जुड़ने के लिए तीव्र उत्कण्ठा लिए हुए है। फलतः जन्मकुण्डली के जिस भाव (स्थान) में केतु इस भाव के शुभफल को पाने के लिए जातक जीवन पर्यन्त तड़पता रहेगा।

मेष लग्न में केतु का फलादेश प्रथम स्थान में

मेष लग्न के प्रथम स्थान में केतु मेष राशि का होकर मंगल के घर में होगा। ऐसा जातक धनवान होता है। तरक्की अधिक तबदीली कम, पिता का पहला पुत्र, भाइयों में बड़ा होगा। लम्बी यात्राएं करने वाला, पिता एवं गुरु से लाभ पाने वाला सुखी जातक होता है।

लग्न में केतु व्यक्ति को कृतघ्न बनाता है। ऐसा जातक मामा (बांधवों) को तकलीफ पहुंचाता है। लग्न में केतु होने के कारण आगे बढ़ने की महत्वाकांक्षा प्रतिपल बनी रहेगी।

दशा – केतु की दशा शुभफल देगी।

केतु का अन्य ग्रहों से सम्बन्ध

1. केतु + सूर्य – यहां केतु के साथ सूर्य उच्च का होकर ‘रविकृत राजयोग’ बनाएगा। ऐसा जातक तेजस्वी व यशस्वी होगा। सरकार में ऊंचा पद प्राप्त करेगा।

2. केतु + चन्द्र – यहां केतु के साथ चन्द्रमा माता को बीमार करेगा।

3. केतु + मंगल – यहां केतु के साथ मंगल होने से ‘रुचक योग’ बनेगा। ऐसा जातक राजा के समान पराक्रमी होगा।

4. केतु + बुध – यहां केतु के साथ बुध जातक को पराक्रमी बनाएगा।

5. केतु + गुरु – केतु के साथ गुरु जातक की प्रतिष्ठा बढ़ाएगा।

6. केतु + शुक्र – केतु के साथ शुक्र जातक को सुन्दर पत्नी देगा।

7. केतु + शनि – यहां केतु के साथ शनि नीच का होगा। जातक हठी व लड़ाकू होगा।

प्रथम भाव में केतु का उपचार

  • केतु के तांत्रिक मंत्र के एक लाख सत्रह हजार जा कर दशांश हवन, कुशा, तिल, कस्तूरी व कपूर से करें।
  • शनिवार के दिन काले कपड़े का दान करें।

मेष लग्न में केतु का फलादेश द्वितीय स्थान में

मेष लग्न में केतु द्वितीय स्थान पर होने से ‘वृष राशि’ का होगा। वृष राशि पृथ्वी संज्ञक, स्थिर स्वभाव की है। ऐसा जातक राजदरबार (सरकार) में इज्जत-सम्मान एवं धन पाने वाला होता है। ऐसे जातक की छोटी आयु में किस्मत चमकती है एवं कमाना शुरू कर देता है।

जातक दूसरों की नेकी को याद करने वाला कृतज्ञ होता है तथा बिना मांगे ही दूसरों की सहायता करने में रुचि रखता है। ऐसा व्यक्ति प्रायः यात्रा के द्वारा धनार्जन करने वाला, सैल्समैन, कमीशन ऐजेन्ट के रूप में स्थापित होता है।

केतु धन स्थान में है। ऐसे जातक को धन कमाने की तीव्र इच्छा जीवन पर्यन्त बनी रहेगी।

दशा – केतु की दशा शुभफल देगी।

केतु का अन्य ग्रहों से सम्बन्ध

1. केतु + सूर्य – यहां केतु के साथ सूर्य विद्या में बाधा पहुंचाएगा।

2. केतु + चन्द्र – यहां केतु के साथ चन्द्रमा उच्च का जातक को धनवान बनाएगा।

3. केतु + मंगल – यहां केतु के साथ मंगल जातक को खर्चीले स्वभाव का एवं मुहफट व्यक्ति बनाएगा।

4. केतु + बुध – यहां केतु के साथ बुध जातक को दंत रोग देगा।

5. केतु + गुरु – केतु के साथ गुरु जातक को अत्यधिक खर्चीले स्वभाव का बनाएगा।

6. केतु + शुक्र – केतु के साथ शुक्र स्वगृही होगा जातक विवाह के बाद धनी होगा।

7. केतु + शनि – यहां केतु के साथ शनि होने से जातक की रुचि षड्यंत्रकारी कार्यों में होगी।

द्वितीय भाव में केतु का उपचार

  • नवरत्न जड़ित श्रीयंत्र स्वर्ण में धारण करें।
  • सुबह-शाम श्री सूक्त के नित्य पाठ करें।
  • केतु शांति का प्रयोग करें।

मेष लग्न में केतु का फलादेश तृतीय स्थान में

मेष लग्न के तृतीय स्थान में केतु मिथुन राशि में होगा। मिथुन राशि वायुतत्व वाली एवं द्विस्वभाव राशि होती है। ऐसा जातक सबको तारने वाला भाई-बहनों के लिए शुभ होता है। ऐसे जातक के स्वभाव की एक विशेषता यह है अपने ऊपर की गई नेकी को याद रखता है और बुराई को भूल जाता है। ऐसा जातक उच्च पदाधिकारी एवं पराक्रमी होता है। यदि कोई व्यवधान न हो तो एक या तीन नर सन्तान से युक्त होता है।

भोज संहिता के अनुसार तृतीय स्थान में केतु होने से जीवन पर्यन्त यश (कीर्ति) प्राप्ति के लिए तड़फता (लालायित) रहेगा। केतु की नीच राशि मिथुन है। फिर भी यहां शुभफल देगा।

दशा – केतु की दशा शुभ होगी। कीर्तिदायक होगी।

केतु का अन्य ग्रहों से सम्बन्ध

1. केतु + सूर्य – यहां केतु के साथ सूर्य जातक के मित्र पराक्रमी होंगे।

2. केतु + चन्द्र – यहां केतु के साथ चन्द्रमा होने से जातक के स्वजन ही उसके शत्रु होंगे।

3. केतु + मंगल – यहां केतु के साथ मंगल जातक को भाइयों से लाभ होगा।

4. केतु + बुध – यहां केतु के साथ बुध जातक को लेखन व अन्य कार्यों में यश दिलाएगा।

5. केतु + गुरु – केतु के साथ गुरु जातक को भाग्यशाली व्यक्ति बनाएगा।

6. केतु + शुक्र – केतु के साथ शुक्र जातक को स्त्री मित्रों से लाभ दिलाएगा।

7. केतु + शनि – यहां केतु के साथ शनि होने से जातक का पराक्रम व्यापार द्वारा बढ़ाएगा।

तृतीय भाव में केतु का उपचार

  • भाई-बहनों के साथ विन्रम एवं सद्व्यवहार बनाए रखो।
  • अजनबी लोगों व मित्रों पर अत्यधिक भरोसा न करें।
  • अश्वगंधा की जड़ अभिमंत्रित कर ताबीज में धारण करने से यश की प्राप्ति होगी।
  • केसर- चंदन का तिलक नाभि व मस्तिष्क पर लगावें तो किस्मत खुलेगी।

मेष लग्न में केतु का फलदेश चतुर्थ स्थान में

लग्न के चतुर्थ स्थान में केतु कर्क राशि का होगा। कर्क राशि जलसंज्ञक एवं चर राशि है। जातक तीव्रगामी होगा, धनवान होगा, उच्च वाहन एवं मकान सुख से सम्पन्न होगा। जातक का जन्म माता के लिए शुभ होगा। जातक दृढ़ निश्चयी होगा। परन्तु प्रथम सन्तति विलम्ब से होगी। जातक पिता एवं गुरु का सेवक होगा।

‘भोज संहिता’ के अनुसार चतुर्थ भाव में कर्क राशिगत केतु व्यक्ति को सुख प्राप्ति, भौतिक ऐश्वर्य एवं वस्तुओं की प्राप्ति हेतु जीवन पर्यन्त तीव्र रूप से लालायित बनाए रखता है।

दशा – केतु की दशा शुभफल देगी।

केतु का अन्य ग्रहों से सम्बन्ध

1. केतु + सूर्य – यहां केतु के साथ सूर्य वाहन दुर्घटना का भय देगा।

2. केतु + चन्द्र – यहां केतु के साथ स्वगृही चन्द्रमा माता को सुख देता है पर माता को जल या श्वास की बीमारी होगी।

3. केतु + मंगल – यहां केतु के साथ मंगल जातक को साहसी व लड़ाकू बनाएगा।

4. केतु + बुध – यहां केतु के साथ बुध जातक का झगड़ा मामा, मातृपक्ष से कराएगा।

5. केतु + गुरु – केतु के साथ गुरु उच्च का ‘हंस योग’ बनाएगा। ऐसा जातक राजा के समान पराक्रमी व यशस्वी होगा।

6. केतु + शुक्र – केतु के साथ शुक्र होने से जातक परिवार का नाम रोशन करेगा। उसके पास उत्तम वाहन होगा।

7. केतु + शनि – केतु के साथ शनि होने से जातक के पास उत्तम मकान होगा।

चतुर्थ भाव में केतु का उपचार

  • केतु अष्टोत्तर शत नामावली का हवनात्मक प्रयोग करें।
  • दुर्घटना से बचने के लिए वाहन पर मारुति यंत्र लगावें ।
  • शनिवार के दिन चितकबरे कुत्तों को मीठी रोटी खिलावें।
  • गुरुवार के दिन कुलपुरोहित को पीले वस्त्र व पीला भोजन भेंट करें।

मेष लग्न में केतु का फलादेश पंचम स्थान में

मेष लग्न के पंचम स्थान में केतु सिंह राशि में होगा । सिंह राशि अग्निसंज्ञक एवं स्थिर स्वभाव की राशि है जातक धार्मिक विचारों वाला गुरुभक्त एवं आस्तिक होगा। जातक धनवान होगा एवं अधिक सन्तति युक्त होगा परन्तु एक सन्तति की अपरिपक्व अवस्था में मृत्यु होगी।

‘भोज संहिता’ के अनुसार पंचम भावस्थ सिंहराशिगत केतु व्यक्ति को जीवन पर्यन्त सुयोग्य सन्तति प्राप्ति हेतु लालायित रखता है। जातक ज्ञानपिपासु होता है तथा प्रतिपल उत्तम ज्ञान की प्राप्ति हेतु लालायित (उत्कण्ठ) रहता है।

दशा – केतु की दशा शुभ फल देगी।

केतु का अन्य ग्रहों से सम्बन्ध

1. केतु + सूर्य – यहां केतु के साथ स्वगृही सूर्य जातक को विद्या में तेजस्वी बनाएगा। जातक पुत्रवान होगा पर पुत्र विलम्ब से होगा।

2. केतु + चन्द्र – केतु के साथ चन्द्रमा जातक को मानसिक चिन्ता कराएगा। जातक के विद्या में बाधा आएगी।

3. केतु + मंगल – यहां केतु के साथ मंगल जातक को तीन पुत्र देगा जबकि एकाध गर्भपात संभव है।

4. केतु + बुध – यहां केतु के साथ बुध जातक को उत्तम बुद्धि विद्या देगा पर शैक्षणिक उपाधि में बाधा आएगी।

5. केतु + गुरु – केतु के साथ गुरु व्यक्ति को उत्तम विद्या ज्ञान देगा। शैक्षणिक उपाधि में कमी रहेगी।

6. केतु + शुक्र – केतु के साथ शुक्र व्यक्ति को कन्या सन्तति देगा।

7. केतु + शनि – केतु के साथ शनि होने से कन्या सन्तति देगा एवं जातक व्यापार प्रिय होगा ।

पंचम भाव में केतु का उपचार

  • पितृदोष या कालसर्पयोग की शांति करवाए।
  • केतु शांति प्रयोग करें।
  • केतु के वैदिक मंत्रों का हवनात्मक प्रयोग करें तथा केतु सम्बंधी वस्तुओं का दान करें।

मेष लग्न में केतु का फलादेश षष्टम स्थान में

मेष लग्न में षष्टम स्थान में केतु कन्या राशि का होगा। कन्या राशि पृथ्वी संज्ञक द्विस्वभाव राशि है। जातक का जन्म ननिहाल के लिए शुभ होगा। जातक जन्म स्थान से दूरस्थ प्रदेशों विदेशों में उन्नति पाने वाला होता है। जातक धनवान होता है एवं शत्रुओं पर विजय पाने में सक्षम होता है ऐसा जातक उत्साही एवं सेवा करने की भावना से ओत-प्रोत व्यक्ति

भोज संहिता’ के अनुसार छठे भाव में स्थित कन्या राशि गत केतु व्यक्ति को जीवनपर्यन्त शत्रुओं के नाश हेतु लालायित रखता है। शत्रु नहीं हो तो रोग अवश्य होगा। जातक रोग की समूल निवृत्ति हेतु सदैव प्रयत्नशील रहेगा।

दशा – केतु की दशा शुभफल देगी। जातक चेष्टावान बना रहेगा।

केतु का अन्य ग्रहों से सम्बन्ध

1. केतु + सूर्य – यहां केतु के साथ सूर्य उत्तम विद्या एवं उत्तम सन्तति दोनों में बाधक है।

2. केतु + चन्द्र – यहां केतु के साथ चन्द्रमा माता की अल्पायु कराता है जातक को मूत्ररोग होगा।

3. केतु + मंगल – यहां केतु के साथ मंगल ‘लग्नभंग योग’ बनाता है। जातक को परिश्रम का लाभ नहीं मिलेगा।

4. केतु + बुध – यहां केतु के साथ बुध ‘पराक्रमभंग योग’ बनाता है। साथ ही ‘विपरीत राजयोग’ के कारण जातक धनवान होगा।

5. केतु + गुरु – केतु के साथ गुरु ‘भाग्यभंग योग’ बनाता है ऐसा जातक भौतिक सुख-सुविधओं व ऐश्वर्य से सम्पन्न होगा पर जीवन सघर्षशील रहेगा।

6. केतु + शुक्र – केतु के साथ शुक्र ‘विलम्बविवाह’ का योग कराता है। जातक को जीवनसाथी का सुख कम ही प्राप्त होगा।

7. केतु + शनि – केतु के साथ शनि होने से जातक के जीवन में व्यापार से दो बार बदलाव कराएगा।

षष्टम भाव में केतु का उपचार

  • केतु कवच का नित्य पाठ करें।
  • काला कुत्ता पाले या शनिवार के दिन काले कुत्ते को दूध रोटी खिलावं ।
  • लहसुन या प्याज शनिवार से शुक्रवार छ दिन तक जल में प्रवाहित करें।
  • अपनी बहन, बुआ, पुत्री, मासी, भाणजे को खुश रखें।
मेष लग्न में केतु का फलादेश

मेष लग्न में केतु का फलादेश सप्तम भाव में

मेष लग्न के सप्तम भाव में केतु तुला राशि में होगा। तुला राशि चर राशि एवं वायुसंज्ञक है। ऐसा जातक साहसी होता है तथा शेर से मुकाबला करने की शक्ति रखता है। ऐसे जातक के जितने बहन-भाई होंगे उतना ही सन्तानें होंगी। 40 वर्ष की आयु तक धन बढ़ता रहेगा। जातक के पास सब कुछ होते हुए भी रोता रहेगा।

भोज संहिता के अनुसार ऐसा जातक सुन्दर पत्नी की प्राप्ति हेतु लालायित रहेगा। यदि जातक विवाहित होगा तो अपने जीवनसाथी से विविध प्रकार के सुख-ऐश्वर्य की प्राप्ति होते इच्छातुर रहेगा। पर उसकी इच्छा तृप्त नहीं होगी।

दशा – केतु की दशा अच्छा फल देगी।

केतु का अन्य ग्रहों से सम्बन्ध

1. केतु + सूर्य – यहां केतु के साथ सूर्य एक हजार राजयोग नष्ट करेगा। जातक के वैवाहिक सुख में कमी रहेगी।

2. केतु + चन्द्र – यहां केतु के साथ चन्द्रमा माता को कष्टमय जीवन देगा।

3. केतु + मंगल – यहां केतु के साथ मंगल कुण्डली को ‘डबल मंगलीक’ बनाएगा। प्रथमतः जातक का विवाह देरी से होगा। फिर गृहस्थ सुख में कमी रहेगी।

4. केतु + बुध – केतु के साथ बुध जातक का जीवनसाथी बुद्धिमान व सुन्दर देगा।

5. केतु + गुरु – केतु के साथ गुरु जातक को आध्यात्मिक विद्या का जानकार एवं जीवनसाथी को वफादार बनायेगा।

6. केतु + शुक्र – केतु के साथ शुक्र ‘मालव्य योग’ बनायेगा। ऐसा जातक राजा के समान पराक्रमी एवं ऐश्वर्यशाली होगा।

7. केतु + शनि – केतु के साथ शनि ‘शश योग’ बनाएगा। ऐसे जातक का जीवन साथी शक्तिशाली होगा। जातक स्वयं राजा के समान ऐश्वर्यशाली होगा।

सप्तम भाव में केतु का उपचार

  • केतु विशंति नाम का पाठ करें।
  • पूर्ण वैवाहिक सुख की प्राप्ति हेतु अष्टोतरशत नामावली का हवनात्मक प्रयोग करें।

मेष लग्न में केतु का फलादेश अष्टम स्थान में

मेष लग्न के अष्टम स्थान में केतु वृश्चिक राशि का होगा। वृश्चिक राशि जलसंज्ञक स्थिर स्वभाव की राशि है।

जातक धनवान होगा पर जातक का भाई निसन्तान होगा। जातक उस भाई को सन्तान का दान देगा। जातक की स्त्री सुन्दर सुशील एवं शुभविचारों वाली होगी। परन्तु 34 वर्ष बाद जातक दूसरा विवाह कर सकता है।

‘भोज संहिता’ के अनुसार अष्टमभावस्थ वृश्चिक का केतु व्यक्ति को लम्बी आयु की प्राप्ति हेतु लालायित रखेगा। जातक धन प्राप्ति हेतु भी जीवन पर्यन्त चेष्टा करता रहेगा।

दशा – केतु की दशा शुभफल देगी। केतु वृश्चिक राशि का होने से ‘कुजवत्’ फल देगा। अतः इस कुण्डली में मंगल की स्थिति देखने बाद ही केतु की दशा के सही फल का निरूपण होगा।

केतु का अन्य ग्रहों से सम्बन्ध

1. केतु + सूर्य – केतु के साथ सूर्य ‘विद्या में बाधा’ एवं पुत्र संतान में बाधा उत्पन्न करेगा।

2. केतु + चन्द्र – केतु क साथ चन्द्रमा माता के सुख में बाधक है। जातक के जीवन में शल्य चिकित्सा जरूर होगी।

3. केतु + मंगल – केतु के साथ मंगल स्वगृही होने से ‘विपरीत राजयोग’ बनेगा। जातक पास उत्तम वाहन, उत्तम भवन होगा। जातक समाज का प्रभावशाली व्यक्ति होगा।

4. केतु + बुध – केतु के साथ बुध ‘विपरीत राजयोग’ के कारण सभी प्रकार के भौतिक सुख देगा। परन्तु प्रतिष्ठा भंग होने का भय रहेगा।

5. केतु + गुरु – केतु के साथ गुरु ‘विपरीत राजयोग’ के कारण जातक को भौतिक सुखों से परिपूर्ण करेगा।

6. केतु + शुक्र – केतु के साथ शुक्र विलम्ब विवाह योग बनाता है। जीवनसाथी को गुप्त रोग रहेगा।

7. केतु + शनि – केतु के साथ शनि ‘व्यापार भंग योग’ बनाता है जातक को वैवाहिक सुख देरी से मिलेगा।

अष्टम भाव में केतु का उपचार

  • केतु कवच का नित्य पाठ करें।
  • कान छिदवा कर सोने का आभूषण पहनें।
  • काला कुत्ता पाले या उसकी सेवा करें।
  • दहेज में प्राप्त चारपाई पर शयन करने का नियम बन पावे तो केतु अनुकूल होगा।
  • दोरंगा कम्बल धर्मस्थान में भेंट करे तो शुभ रहेगा।

मेष लग्न में केतु का फलादेश नवम् स्थान में

मेष लग्न के नवम स्थान में केतु धनु राशि में होगा। धनु राशि अग्निसंज्ञक द्विस्वभाव राशि है जहां केतु स्वगृही कहलाएगा। ऐसा जातक पिता का आज्ञाकारी पुत्र साबित होगा। जन्म स्थान के दूरस्थ प्रदेशों के कमाएगा, उच्चाधिकारी होगा पर समाज का सेवक होगा। जातक बहुत तरक्की करेगा। इन पर इष्टकृपा की कृपा विशेष होगी।

भोज संहिता के अनुसार धनु राशिगत नवम भाव में स्थित केतु वाला जातक जीवनपर्यन्त सही भाग्योदय हेतु लालायित रहेगा। जातक पराक्रम प्राप्ति हेतु चेष्टवान बना रहेगा।

दशा – केतु धनुराशि में होने से गुरुवत् फल देगा। अतः इस कुण्डली में गुरु की स्थिति का अध्ययन करने के बाद केतु की दशा की सही फलादेश हो सकेगा क्योंकि राहु और केतु का कोई स्वतंत्र अस्तित्व नहीं होता ये जिस राशि व ग्रह के साथ बैठे हैं ‘तत्वत्’ हो जाते हैं। वैसे केतु की दशा यहां शुभ फल देगी। जातक का भाग्योदय कराएगी।

केतु का अन्य ग्रहों से सम्बन्ध

1. केतु + सूर्य – केतु के साथ सूर्य जातक को महान् पराक्रमी एवं आध्यात्मिक विद्या का जानकार बनाता है।

2. केतु + चन्द्र – केतु के साथ चन्द्रमा जातक को माता का सुख देगा परन्तु मामा से विचार नहीं मिलेगे।

3. केतु + मंगल – केतु के साथ मंगल जातक को पैतृक सम्पत्ति दिलायेगा पर थोड़ा विवाद होगा ।

4. केतु + बुध – केतु के साथ बुध जातक को प्रखर पराक्रमी बनायेगा। जातक बुद्धिशाली व चतुर दिमाग वाला होगा।

5. केतु + गुरु – केतु के साथ गुरु जातक को राजा तुल्य वैभवशाली बनायेगा।

6. केतु + शुक्र – केतु के साथ शुक्र होने से जातक की किस्मत विवाह के बाद चमकेगी।

7. केतु + शनि – केतु के साथ शनि जातक को व्यापार प्रिय बनायेगा। जातक प्रायः ठेकेदार होगा।

नवम् भाव में केतु का उपचार

  • रंग-बिरंगे कपड़े न पहनें।
  • तिल, तैल, काले-नीले पुष्प, कस्तूरी व काले वस्त्रों का दान शनिवार के दिन करें।
  • केतु शान्ति का प्रयोग करें।

मेष लग्न में केतु का फलादेश दशम स्थान में

मेष लग्न के दशम स्थान में केतु मकर राशि का होगा। मकर राशि पृथ्वी तत्त्व प्रधान एवं चरसंज्ञक है। ऐसा जातक नौकर-चाकर सेवकों से युक्त सुखी व्यक्ति होता है। जातक खेलों का शौकीन एवं दक्ष खिलाड़ी होगा। जातक के भाई-बन्धु इसकी दौलत को बरबाद करेंगे फिर भी जातक उनको माफ करता रहेगा। उनकी मदद करता रहेगा।

‘भोज संहिता’ के अनुसार मकर राशिगत दशमस्थ केतु जातक को राज्य (सरकार) में पद प्राप्ति हेतु लालायित बनाए रखता है अथवा सरकार से ठेका, वजीफा, सम्मान प्राप्ति हेतु जीवन भर प्रयत्नशील रहेगा।

दशा – केतु की दशा शुभ रहेगी। केतु यहां शनि तुल्य फल देगा अतः शनि की स्थिति का अध्ययन करने के बाद ही केतु की दशा का सही फलादेश हो पाएगा।

केतु का अन्य ग्रहों से सम्बन्ध

1. केतु + सूर्य – केतु के साथ सूर्य जातक को राजसुख देगा। उत्तम विद्या देगा।

2. केतु + चन्द्र – केतु क साथ चन्द्रमा माता की सम्पत्ति दिलायेगा। वाहन का सुख दिलायेगा।

3. केतु + मंगल – केतु के साथ उच्च का मंगल ‘रुचक योग’ की सृष्टि करेगा। जातक राजा तुल्य पराक्रमी व ऐश्वर्यशाली होगा।

4. केतु + बुध – केतु के साथ बुध जातक को बुद्धिशाली एवं परिवार का शुभ चिन्तक बनायेगा।

5. केतु + गुरु – ऐसा जातक आध्यात्मिक राह का पथिक एवं धर्मध्वज होगा।

6. केतु + शुक्र – केतु के साथ शुक्र जातक को उत्तम वाहन सुख देगा। नौकरी विवाह के बाद लगेगी।

7. केतु + शनि – केतु के साथ शनि ‘शश योग’ बनायेगा। ऐसा जातक माता के समान पराक्रमी, ऐश्वर्यशाली एवं प्रतिष्ठित होगा।

दशम भाव में केतु का उपचार

  • चितकबरे कुत्ते को सात दिन तक दूध-रोटी खिलावें।
  • चितकबरी गाय को चार खिलावे। इससे अचानक आई विपत्ति दूर होगी।

मेष लग्न में केतु का फलादेश एकादश स्थान में

मेष लग्न के एकादश स्थान में केतु कुम्भ राशि का | होगा। कुम्भ राशि वायु तत्त्व प्रधान एवं स्थिर स्वभाव की राशि है। जातक राजदरबार में इज्जत-सम्मान पाने वाला, आने वाले समय को ध्यान में रखकर प्लानिंग के साथ काम करने वाला, धनवान, अच्छी किस्मत वाला, लम्बी यात्रा से लाभ पाने वाला होता है। प्रथम सन्तति प्रायः विलम्ब से होती है।

‘भोज संहिता’ के अनुसार कुम्भ राशिगत एकादशस्थ केतु जातक को सदैव लाभ प्राप्ति हेतु लालायित रखेगा।

दशा – केतु की दशा शुभ फल देगी। केतु शनि की मूलत्रिकोण कुम्भ राशि में है अतः कुण्डली में शनि की शुभ-अशुभ स्थिति का अध्ययन करने के बाद केतु की दशा पर सही फलादेश हो सकेगा।

केतु का अन्य ग्रहों से सम्बन्ध

1. केतु + सूर्य – केतु के साथ सूर्य जातक को उच्च शैक्षणिक उपाधि दिलायेगा ।

2. केतु + चन्द्र – केतु के साथ चन्द्रमा माता की सम्पत्ति देगा। प्रखर कल्पना शक्ति देगा ।

3. केतु + मंगल – केतु के साथ मंगल को पुरुषार्थ का लाभ देगा।

4. केतु + बुध – केतु के साथ बुध जातक को प्रखर बुद्धिशाली बनायेगा ।

5. केतु + गुरु – केतु के साथ गुरु जातक को सौभाग्यशाली बनायेगा ।

6. केतु + शुक्र – केतु के साथ शुक्र जातक को उत्तम विद्या, सम्मान एवं स्त्री सुख देगा।

7. केतु + शनि – केतु के साथ शनि जातक को उद्योगपति बनायेगा। जातक व्यापार प्रिय होगा।

एकादश भाव में केतु का उपचार

  • घर में छिपकली न घूमने दे।
  • लकड़ी से बनी चारपाई या पलंग दान करे।
  • अश्वगंधा की जड़ को अभिमंत्रित कर लॉकेट में धारण करें।
  • मृत संतान यदि पैदा होती हो तो सफेद मूली स्त्री के सिरहाने रखकर, शनिवार के सवेरे धर्म स्थान में दान देने से नर संतान खुशहाल रहेगी।

मेष लग्न में केतु का फलादेश द्वादश स्थान में

मेष लग्न में द्वादश स्थान में केतु मीन राशि का होता है। मीन राशि जलसंज्ञक एवं द्विस्वभाव राशि होती है। ऐसा जातक जमीन-जायदाद का स्वामी, जातक का गृहस्थ जीवन सुखी होगा। जातक ऐश्वर्यवान व धनवान होगा। जातक सन्तान से सुख पाने वाला, शत्रुओं पर विजय पाने वाला पराक्रमी व्यक्ति: होगा।

‘भोज संहिता’ के अनुसार मीन राशिगत द्वादशस्थ केतु जातक को नित नूतन वस्तु की जानकारी एवं बाहरी यात्राओं हेतु लालायित रखेगा।

दशा – केतु की दशा में जातक तीर्थयात्राएं करेगा। परोपकार के कार्य करेगा। दशा शुभ रहेगी, परन्तु गुरु की स्थिति ज्यादा सटीक फलादेश में सहायक होगी।

केतु का अन्य ग्रहों से सम्बन्ध

1. केतु + सूर्य – केतु के साथ सूर्य जातक को विद्या में संतान में, खासकर पुत्र सुख में बाधा पहुंचाएगा।

2. केतु + चन्द्र – केतु क साथ चन्द्रमा जातक को माता के सुख से वंचित करेगा।

3. केतु + मंगल – केतु के साथ मंगल कुण्डली को ‘डबल मंगलीक’ कर देगा। जातक के विवाह में विलम्ब होगा।

4. केतु + बुध – केतु के साथ बुध ‘पराक्रमभंग योग’ बनायेगा। जातक धनवान एवं समाज का प्रभावशाली व्यक्ति होगा पर मानभंग का भय बना रहेगा।

5. केतु + गुरु – केतु के साथ गुरु ‘विपरीत राजयोग’ बनायेगा। जातक धनवान एवं ऐश्वर्यशाली होगा।

6. केतु + शुक्र – केतु के साथ शुक्र जातक को फिजूलखर्ची बनायेगा । जातक परोपकारी दानी होगा।

7. केतु + शनि – केतु के साथ शनि ‘व्यापारभंग योग’ बनाता है जातक का जमा-जमाया व्यापार एक बार उखड़ेगा।

द्वादश भाव में केतु का उपचार

  • केतु कवच का नित्य पाठ करें।
  • 12 दिन तक निरन्तर गुरुवार को शुरू करके 12 केले प्रतिदिन धर्मस्थान से भेंट करने पर केतु का अशुभत्व नष्ट होता है।
  • 12 दिन तक निरन्तर 12 बार प्रतिदिन दूध व शहद में अंगूठा भिगोकर चूसने से केतु अनुकूल होता है ऐसा लाल किताब वाले कहते हैं।
  • केतु के तांत्रिक मंत्रों का जाप करें।
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