मेष लग्न में मंगल का फलादेश
मेष लग्न में मंगल लग्नेश व अष्टमेश होता है पर यहां लग्नेश होने से मंगल को अष्टमेश को दोष नहीं लगेगा।
मेष लग्न में मंगल का फलादेश प्रथम भाव में
मेष लग्न में मंगल स्वगृही लग्न में होने के कारण ‘रुचक योग बना ऐसा व्यक्ति जिला, शहर या गांव का प्रमुख होता है। उत्तम भवन एवं वाहन का सुख उसे सहज में ही प्रप्त होता है। जीवन में सभी प्रकार के भौतिक ऐश्वर्य व संसाधनों की प्राप्ति बलपूर्वक प्राप्त करता है मंगल की प्रधानता के कारण जातक शूरवीर व साहसी होता तथा आगे बढ़ने की तीव्र महत्वाकांक्षा इनमें कूट-कूट कर भरी होती है।
लग्न में बैठकर बलवान मंगल चौथे स्थान सातवें स्थान एवं आठवें स्थान को पूर्ण दृष्टि से देख रहा है। फलतः यह दृष्टि जातक की आयु मातृसुख एवं विवाह सुख के लिए संतोषप्रद है। लग्न में मंगल होने में व्यक्ति क्रोधी होगा।
मंगल की यह स्थिति कुण्डली को मांगलिक बनाती है। ऐसे पुरुष या स्त्री का जीवन साथी भी मांगलिक होना चाहिए। तभी विवाह सुख, गृहस्थ सुख स्थाई रहेगा अन्यथा दोनों में से एक खण्डित होगा।
प्राय: ऐसा जातक पुलिस प्रशासन मिल्टरी में नौकरी अथवा टैक्नीकल व मैकेनिकल व्यक्ति होता है। इन्हें प्राय: भूमि-भवन के निर्माण कार्य, लकड़ी मशीनरी, ठेकेदारी में लाभ होता है।
भाग्योदय प्राय: 28 वर्ष की आयु में होता है। विवाह के तत्काल बाद होता है अथवा मंगल की दशा, अंतंदशा में होता है।
दशा – मंगल की दशा अति उत्तम फल देगी।
मंगल का अन्य ग्रहों से सम्बन्ध
1. मंगल + चन्द्र – मंगल के साथ चन्द्रमा हो तो ‘महालक्ष्मी योग’ बनेगा। जातक महाधनवान होगा। यहां मांगलिक दोष भी समाप्त होगा।
2. मंगल + सूर्य – यदि यहां मंगल के साथ सूर्य हो तो ‘किम्बहुना योग’ बनता है। सूर्य यहां उच्च का होने से जातक को एक तेजस्वी पुत्र होगा। जातक राजातुल्य ऐश्वर्यशाली होगा।
3. मंगल + बुध – मंगल के साथ यहां बुध होने से जातक महान पराक्रमी होगा। षष्टेश लग्नेश की युति गुप्त रोग व गुप्त शत्रुओं से भय देता रहेगा।
4. मंगल + गुरु – मंगल के साथ भाग्येश गुरु होने से जातक परम भाग्यशाली होगा। पर खर्चीले स्वभाव का होगा।
5. मंगल + शुक्र – धनेश व अष्टमेश की युति शत्रुओं से धन दिलाएगी। जातक रंगीन मिजाज का होगा किन्तु परम साहसी होगा।
6. मंगल + शनि – नीचभंग राजयोग यदि यहां मंगल के साथ शनि हो तो ‘नीचभंग राजयोग’ बनेगा। शनि का नीचत्व भंग होगा। शनि एवं मंगल परस्पर शत्रु होते हुए भी यहां अत्यन्त शुभफल देंगे। जातक दुस्साहसी एवं हठी होगा तथा राजतुल्य ऐश्वर्य भोगेगा। महिमा मण्डित होगा।
7. मंगल + राहु – ऐसा जातक परम तेजस्वी योद्धा होगा।
8. मंगल + केतु – ऐसा जातक जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में विजयी रहेगा। कीर्तिवन्त होगा।
प्रथम भाव में मंगल का उपचार
- झूठ बोलने से जातक की ताकत कमजोर होगी।
- न मुफ्त का माल लेना न दान लेना।
- हाथी दांत का सामान घर में न रखे।
मेष लग्न में मंगल का फलादेश द्वितीय स्थान में
लग्नेश धनस्थान में होने से जातक धनवान होगा। जीवन में सभी प्रकार की सुख सुविधाओं को अपने प्रयत्न (पुरुषार्थ) से प्राप्त करने में सफल होगा।
दृष्टि – मंगल की दृष्टि पंचम भाव, अष्टम भाव एवं भाग्य (नवम भाव पर है। फलतः जातक के कम से कम दो पुत्र (ऑपरेशन न हो तो) तीन पुत्र होते हैं पुत्र जन्म के बाद जातक का भाग्योदय होता है। जातक गुप्त विद्याओं, ज्योतिष मन्त्र-तन्त्र-मन्त्र का जानकार होता है जातक साधक होग।
दशा – मंगल की दशा अति उत्तम फल देगी। इस दशा में जातक का सम्पूर्ण भाग्योदय होगा।
मंगल का अन्य ग्रहों से सम्बन्ध
1, मंगल + चन्द्र – मंगल के साथ यदि चन्द्रमा हो तो ‘महालक्ष्मी योग’ बनेगा। जातक महाधनी होगा। इसे माता की सम्पत्ति मिलेगी। मकान वाहन का सुख उत्तम होगा। यहां मांगलिक दोष समाप्त होगा।
2. मंगल + सूर्य – पंचमेश लग्नेश की युति धनस्थान में व्यक्ति को महाधनी बनाएगी। ऐसा जतक विद्या व हुनर के माध्यम से आगे बढ़ता है।
3. मंगल + बुध – तृतीयेश धनस्थान में लग्नेश के साथ हो तो व्यक्ति अपना पराक्रम बढ़ाने में, इष्ट मित्रों में धन खर्च करता है।
4. मंगल + गुरु – भाग्येश लग्नेश की युति धनस्थान में व्यक्ति को पुरुषार्थ के द्वारा धन दिलाती है। खासकर मध्यम आयु में व्यक्ति धनी होता है।
5. मंगल + शुक्र – मंगल के साथ यदि यहां शुक्र हो तो बलवान धनेश की लग्नेश के साथ युति के कारण जातक स्वपराक्रम से अर्जित धन-वैभव को भोगेगा भाग्योदय विवाह के बाद होगा।
6. मंगल + शनि – दसमेश लाभेश शनि की लग्नेश से युति धनस्थान में होने से व्यक्ति व्यापार से खूब धन कमाता है पर धन खर्च होता चला जाता है।
7. मंगल + राहु – यदि मंगल के साथ राहु हो तो पत्नी की मृत्यु पहले होगी।
8. मंगल + केतु – मंगल के साथ केतु धनस्थान में जातक के जीवन में स्थाई धन के एकत्र में बाधक है।
द्वितीय भाव में मंगल का उपचार
- लाल या नारंगी रंग का सुगंधित रुमाल पास रखना।
- बच्चों को दोपहर समय चना-गुड़ बांटना।
- घर में मृगछाला (हिरण की खाल) रखें।
- मूंगा युक्त ‘मंगल यंत्र’ धारण करें।
- ऋणमोचन मंगल स्तोत्र पढ़े।
मेष लग्न में मंगल का फलादेश तृतीय स्थान में
मंगल यहाँ मिथुन राशि में है। जो इसकी मित्र राशि नहीं है। मंगल यहां मिश्रित फलकारी है।
मिथुनराशिगत तृतीयस्थ मंगल जातक को महान पराक्रमी बनाता है। भाई-बहन के साथ सम्बन्ध अच्छे नहीं होते क्योंकि मंगल बुध का शत्रु है।
दृष्टि – तृतीय स्थान में मंगल होने से इसकी दृष्टि छठे भाव, नवमभाव एवं दशम भाव पर होगी। ऐसा जातक अपने शत्रुओं का नाश करने में सक्षम होता है भाग्योदय 28 वर्ष के बाद एवं पिता का सम्पत्ति भी 32 वर्ष बाद मिलेगी।
दशा – मंगल की महादशा से जातक का सम्पूर्ण भाग्योदय होगा।
मंगल का अन्य ग्रहों से सम्बन्ध
1. मंगल + चन्द्र – मंगल के साथ यदि चन्द्रमा हो तो लक्ष्मी योग बनेगा। जातक धनवान होगा। उसके नजदीकी रिश्तेदार भी धनवान होंगे।
2. मंगल + सूर्य – मंगल के साथ पंचमेश सूर्य की प्रति व्यक्ति को पराक्रमी बनाएगा। इष्ट मित्रों से, राजदरबार से जातक लाभान्वित होता रहेगा।
3. मंगल + बुध – मंगल के साथ स्वगृही बुध, जातक को महान पराक्रमी बनाता है। जातक व्यवहार कुशल एवं यशस्वी होगा।
4. मंगल + गुरु – मंगल के साथ गुरु होने से कुटम्बी, मित्रों द्वारा धन व यश की प्राप्ति सम्भव है।
5. मंगल + शुक्र – मंगल के साथ, धनेश-सप्तमेश शुक्र विवाह के बाद जातक का पराक्रम बढ़ाएगा।
6. मंगल + शनि – मंगल के साथ शनि के कारण जातक पराक्रमी तो होगा पर भाइयों में नहीं बनेगी। मित्रों से झगड़ा रहेगा।
7. मंगल + राहु – मंगल के साथ राहु मित्रों से दगा मिलेगा। कुटम्बीजनों से विवाद बना रहेगा।
8. मंगल + केतु – मंगल के साथ केतु व्यक्ति को धर्म ध्वज बनाएगा। कुटुम्बीजनों में विरोध रहेगा।
तृतीय भाव में मंगल का उपचार
- हाथी दांत पास रखे।
- चांदी का छल्ला बायें हाथ में पहने।
- ध्यान रहे तोंद न बढ़े।
मेष लग्न में मंगल का फलादेश चतुर्थ स्थान में
मंगल यहां कर्क राशि में है जो उसके मित्र की राशि है। ऐसा व्यक्ति पराक्रमी एवं निडर होगा। जातक दूसरों का हितैषी वाहन सुख वाला होता है। बालक के जन्म से माता को तकलीफ होती है।
दृष्टि – कर्कस्थ मंगल की दृष्टि सप्तमभाव, दशम (राज्य) भाव एवं एकादश भाव पर है। ऐसे जातक का विवाह के बाद भाग्योदय होगा। जातक नौकरी या व्यवसाय जो भी करे, उससे 28 से 32 वर्ष के भीतर खूब तरक्की होगी। जातक न्यायप्रिय एवं सच्चाई का साथ देने वाला व्यक्ति होगा।
दशा – मंगल की महादशा उत्तम फलकारी साबित होगी।
मंगल का अन्य ग्रहों से सम्बन्ध
1 मंगल + चन्द्र – नीचभंग राजयोग यदि यहां मंगल के साथ चन्द्रमा हो तो ‘नीचभंग राजयोग’ के साथ-साथ ‘यामिनीनाथ योग’ एवं ‘महालक्ष्मी योग’ बनेगा। जातक को माता की सम्पत्ति, स्नेह विशेष मिलेगा। जातक पृथ्वीपति (land lord) होगा। ‘महालक्ष्मी योग’ यहां ज्यादा मुखरित होगा तथा मांगलिक दोष भी समाप्त होगा।
2. मंगल + सूर्य – पंचमेश सूर्य केन्द्र में होने से जातक विद्यावान् होगा। मां बीमार रहेगी परन्तु घर सुख-सुविधाओं से भरपूर होगा।
3. मंगल + बुध – मंगल के साथ बुध यहां शत्रुक्षेत्री होगा। जातक की माता अल्पायु होगी। जातक स्वयं को हृदय सम्बंधी शल्य चिकित्सा करानी पड़ेगी।
4. मंगल + गुरु – नीचभंग राजयोग यदि यहां मंगल के साथ उच्च का गुरु हो तो नीचभंग राजयोग बनेगा मंगल का नीचत्व समाप्त होगा। जातक राजा तुल्य ऐश्वर्य को भोगेगा। हंस योग के कारण जातक गांव का प्रमुख होकर ऊंची प्रतिष्ठा प्राप्त करेगा।
5. मंगल + शुक्र – मंगल के साथ शुक्र जातक को एकाधिक वाहन एवं नौकरों का सुख देगा।
6. मंगल + शनि – मंगल के साथ शनि जातक को सरकारी नौकरी या ठेकेदारी में लाभ दिलाएगा।
7. मंगल + राहु – माता की अल्पायु में मृत्यु का संकेत देता है।
8. मंगल + केतु – माता को गम्भीर बीमारी एवं जातक के लिए भी शल्य चिकित्सा का योग बनाता है।
9. मंगल + गुरु – चन्द्रमा की युति कर्क राशि में हो तो यह प्रबल राजयोग होगा जातक लालबत्ती की गाड़ी का हकदार होगा।
चर्तुथ भाव में मंगल का उपचार
- घर में दक्षिणी दरवाजा, कीकर, बेर, बबूल या केक्टस हो तो फौरन हटाए।
- काला, काना, नि:स्तान, गंजा या विकलांग से दूर रहें।
- दूध में मीठा डालकर बरगद के वृक्ष में चढ़ाये 28 मंगलवार तक।
- संतान की रक्षा के लिए मिट्टी के पात्र में शहद मंगलवार के दिन वीरान जगह में दबा दें।
- पेट, मस्से या चर्मरोग जैसी बीमारी से बचने के लिए 28 मंगलवार तक गीली मिट्टी का तिलक लगाये।
मेष लग्न में मंगल का फलादेश पंचम स्थान में
मंगल यहां सिंह राशि में है। जिसका स्वामी सूर्य शुभफलदायक है। जातक पहलवानी, व्यायाम में रुचि रखने वाला शरीर बल पर ज्यादा ध्यान देने वाला होगा। जातक स्वभाव से क्रोधी होगा पर क्रोध क्षणिक होगा। सिंहस्थ मंगल पंचमभाव में मित्र के घर में होगा। जातक को जीवन में उच्च पद या सफलता अवश्य मिलेगी।
दृष्टि – सिंहस्थ मंगल की दृष्टि अष्टम भाव, लाभभाव एवं व्ययभाव पर होगी। फलत: जातक की आयु लम्बी होगी। व्यापार में लाभ होगा। जातक महत्वाकांक्षी होगा तथा अपनी महत्वाकांक्षा की पूर्ति हेतु धन का अपव्यय करेगा। धैर्य की कमी होगी। पर जातक शूरवीर व साहसी होगा।
दशा – मंगल की महादशा शुभफलदायक होगी। इस दशा में यात्रा में लाभ, व्यापार-व्यवसाय में लाभ होगा। उत्तम धन की प्राप्ति होगी।
मंगल का अन्य ग्रहों से सम्बन्ध
1. मंगल + चन्द्र – यदि मंगल के साथ चन्द्रमा हो तो ‘लक्ष्मी योग’ बनेगा। जातक धनवान होगा।
2. मंगल + सूर्य – यदि यहां मंगल के साथ सूर्य हो तो जातक के प्रथम तेजस्वी पुत्र उत्पन्न होगा।
3. मंगल + बुध – मंगल के साथ बुध जातक को पुत्र के अलावा दो कन्या सन्तति देगा।
4. मंगल + गुरु – मंगल के साथ भाग्येश गुरु जातक को तीन से पांच पुत्र देगा। प्रथम पुत्र होगा।
5. मंगल + शुक्र – मंगल के साथ शुक्र जातक पुत्र के अलावा कन्या सन्तति की बाहुल्यता भी दूंगा।
6. मंगल + शनि – मंगल के साथ शनि जातक को उद्योगपति बनाएगा। जातक विदेशी भाषा पढ़ेगा एवं तकनीकी विशेषज्ञ होगा।
7. मंगल + राहु – मंगल के मध्य राहु विद्या में बाधा। प्रथम सन्तति का गर्भपात भी करा सकता है।
8. मंगल + केतु – मंगल के साथ केतु जातक की सन्तति शल्य चिकित्सा से कराएगा।
पंचम भाव में मंगल का उपचार
- नीम का वृक्ष लगावे ।
- रात को सिरहाने पानी रखें सुबह किसी गमले आदि में डाले।
- अपना चरित्र चाल-चलन ठीक रखे।
मेष लग्न में मंगल का फलादेश षष्टम् स्थान में
यहां छठे स्थान में मंगल कन्या राशि में होग। बुध की राशि में मंगल प्रसन्न नहीं रहता। शरीर में रोग की सम्भावना रहती है। जातक नपुसंक होगा। इस मंगल पर शुभग्रह की दृष्टि न हो तो जातक को कुष्ठरोग या चर्मरोग होने की सम्भावना रहती है।
जातक का जीवन संघर्षमय रहता है। जातक शत्रु से परेशान रहता है। पशु व वाहन के कारोबार में जातक नुकसान होगा।
दृष्टि – कन्या राशि में स्थित मंगल की दृष्टि भाग्य भवन, व्यय भवन एवं लग्न स्थान पर पड़ेगी। फलतः भाग्योदय हेतु काफी संघर्ष करना पड़ेगा। यात्राओं से रुपया खर्च होगा। जीवन में दुर्घटना का भय रहेगा। जातक अपने व्यक्तित्व के निखार हेतु रुपया खर्च करेगा।
लग्नभंग योग – लग्नेश छठे जाने से यह योग बना। फलत: ऐसे जातक को अपने आपको स्थापित करने के लिए काफी परिश्रम करना पड़ेगा।
विपरीतराज योग – अष्टमेश मंगल छठे होने से विमल नामक विपरीत राजयोग बनेगा। जातक के पास उत्तम वाहन, भौतिक ऐश्वर्य की कमी नहीं रहेगी।
दशा – मंगल की दशा मिश्रित फल देगी। यदि बुध की स्थिति अच्छी हो तो मंगल की दशा शुभफल देगी। मंगल शुभग्रहों में दृष्ट हो तो 60% उत्तम फल मिलेगा।
मंगल का अन्य ग्रहों से सम्बन्ध
1. मंगल + चन्द्र – यहां चन्द्र-मंगल की युति ज्यादा सार्थक नहीं होगी फिर भी जातक धनवान होगा। जातक को रक्त चाप रहेगा।
2. मंगल + सूर्य – मंगल के साथ सूर्य ‘विद्या बाधा योग’ ‘सन्तति हीन योग’ भी बनाता है।
3. मंगल + बुध – मंगल के साथ यदि बुध हो तो जातक का पराक्रम निश्चित रूप से भंग होगा। जातक असावधान रहा तो उसे जेल भी हो सकती है।
4. मंगल + गुरु – मंगल के साथ गुरु ‘भाग्यभंग योग’ बनाता है परन्तु व्यमेश छठे होने से विपरीत राजयोग भी बना। जातक धनवान होगा। उत्तम वाहन भवन का स्वामी होगा।
5. मंगल + शुक्र – मंगल के साथ शुक्र ‘धनहीन योग’ ‘विवाहभंग योग’ बनाएगा। जातक का जीवन संघर्षमय होगा। दाम्पत्य सुख चिन्ताजनक रहेगा।
6. मंगल + शनि – मंगल के साथ शनि ‘राजभंग योग’ ‘लाभभंग योग’ बनाएगा। जातक कां सरकारी नौकरी नहीं मिलेगी। ठेकेदारी में नुकसान होगा।
7. मंगल + राहु – मंगल के साथ राहु जातक शत्रुओं का सम्पूर्ण नाश करने में समर्थ होगा। शत्रु भयभीत रहेंगे।
8. मंगल + केतु – मंगल के साथ केतु होने से जातक युद्ध में सदैव विजयी रहेगा।
षष्टम भाव में मंगल का उपचार
- संतान के जन्म पर मीठे की जगह नमक बांटना (मोठे को नमकीन बनाकर बांटे।
- घर में हर वक्त दो बोरी अनाज रखना।
- बजरंग बाण का पाठ करें।
मेष लग्न में मंगल का फलादेश सप्तम स्थान में
मंगल यहां तुला राशि में है। तुला राशि में मंगल प्रसन्न नहीं रहता क्योंकि शुक्र मेष लग्न में मुख्य मारक ग्रह है।
ऐसा जातक इंसाफ तौलने वाला, दण्ड देने वाला ‘जज’ होता है। राज्य में अधिकार पाता है तथा इच्छित वस्तु को पाकर ही दम लेता है।
तुलाराशि गत मंगल सप्तम में होने यह कुण्डली ‘मांगलिक’ कहलाएगी। जातक का चरित्र संदिग्ध होगा। उसके विवाह हेतु जीवन साथी की जन्मकुण्डली भी मांगलिक होनी चाहिए, तभी पूर्ण विवाह सुख मिलेगा।
निशानी – विष्णु की तरह पोषक, भाई की औलाद को पालने वाला। जातक के जन्म से घर-परिवार बढ़े। पर जातक की पत्नी झगड़ालू होगी।
दृष्टि – तुला राशि गत मंगल की दृष्टि राज्यभाव लग्नस्थान एवं धनस्थान पर होगी। व्यक्तित्व का रौब जमाने में, एवं धन कमाने में जातक को बराबर सफलता मिलेगी।
दशा – मंगल की महादशा अति उत्तम फल देगी। मंगल की दशा जातक को धनवान बनाएगी राज (सरकार) से लाभ दिलाएगी। मंगल की दशा-अंर्तदशा में जातक के व्यक्तित्व का बहुमुखी विकास होगा।
मंगल का अन्य ग्रहों से सम्बन्ध
1. मंगल + चन्द्र – मंगल के साथ चन्द्रमा हो तो ‘महालक्ष्मी योग’ बनेगा तथा मांगलिक दोष भी समाप्त होगा। जातक धनाढ्य होगा ।
2. मंगल + सूर्य – मंगल के साथ सूर्य नीच का होगा। ऐसे जातक की पत्नी तेज स्वभाव की होती है।
3. मंगल + बुध – मंगल के साथ बुध जातक के जीवनसाथी को स्थाई रोग देता है।
4. मंगल + गुरु – मंगल के साथ भाग्येश गुरु की युति जातक का भाग्योदय विवाह के बाद कराती है।
5. मंगल + शुक्र – मंगल के साथ यदि शुक्र हो तो जातक का भाग्योदय विवाह के तत्काल बाद होगा। पत्नी रम्भा के समान सुन्दर होगी। ‘मालव्ययोग’ के कारण जातक राजातुल्य ऐश्वर्य को भोगेगा।
6. मंगल + शनि – यदि मंगल की शनि से युति हो या शनि से दृष्टि सम्बन्ध भी हो तो जातक व्यभिचारी होगा। उसका अनेक स्त्रियों से सम्बन्ध होंगे। द्विभार्या योग बनता है।
7. मंगल + राहु – मंगल के साथ राहु हो तो पत्नी की मृत्यु पहले होगी।
8. मंगल + केतु – मंगल के साथ केतु हो तो जातक अधैर्यशाली होकर रजस्वला स्त्री के साथ भी सम्भोग करेगा।
सप्तम भाव में मंगल का उपचार
- बहन, लड़की, साली को मीठा खिलाना ।
- भाई की संतान को पालने से शुभ फल मिलेगा।
- बेलदार पौधें घर में न लगावे ।
- जातक दही एवं लस्सी का अधिक उपयोग करे।
मेष लग्न में मंगल का फलादेश अष्टम स्थान में
यहां अष्टम स्थान में मंगल स्वगृही है। ऐसा व्यक्ति दीर्घजीवी एवं कठोर परिश्रमी होता है। ऐसा जातक युद्ध में शत्रु को जीतने वाला एवं स्त्री को काम में सन्तुष्ट करने वाला होता है। विपत्तियों को हंसकर झेलने वाला, साहसी जातक होता है। जीवन में लड़ाई-झगड़े का माहौल सदैव बना रहेगा।
अष्टमेश अष्टम स्थान में स्वगृही हो तो ‘सरल योग’ नामक विपरीत राजयोग बनता है। जातक दीर्घजीवी, विद्वान एवं ख्यातिप्राप्त व्यक्ति होता है जातक की भाषा कठोर होगी।
लग्नभंग योग – लग्नेश होकर मंगल आठवें जाने से यह योग बना। फलत: जातक को अपने आपको स्थापित करने के लिए काफी संघर्ष करना पड़ेगा।
दृष्टि – अष्टमस्थ मंगल की दृष्टि लाभस्थान, धनस्थान एवं पराक्रम स्थान पर पड़ेगी। फलतः मंगल इस जातक को व्यापार में लाभ देगा। 28 वर्ष के बाद यथेष्ट धन देगा तथा मित्रों व कुटम्बीजनों में पराक्रम (कीर्ति) बढ़ाएगा।
दशा – मंगल की महादशा मिश्रित फल देगी। यदि मंगल शुभग्रह से दृष्ट हो तो मंगल की दशा शुभफल देगी।
मंगल का अन्य ग्रहों से सम्बन्ध
1. मंगल + चन्द्र – यदि मंगल के साथ चन्द्रमा हो तो ‘नीचभंग राजयोग’ बनेगा। चन्द्र-मंगल की युति से ‘महालक्ष्मी योग भी बनेगा। जातक खूब पैसे वाला होगा। यहां मांगलिक दोष भी समाप्त होगा।
2. मंगल + सूर्य – मंगल के साथ सूर्य ‘विद्याभंग योग’ बनाता है। ऐसे जातक के विद्या में बाधा, सन्तति में बाधा आती है।
3. मंगल + बुध – मंगल के साथ बुध जहां ‘पराक्रमभंग योग’ बनाता है वही षष्टेश का अष्टम स्थान में जाने से विपरीत राजयोग बना। जातक धनवान, ऐश्वर्यवान होगा।
4. मंगल + गुरु – मंगल के साथ गुरु जहां ‘भाग्यभंग योग’ बनाएगा। वहीं व्यमेश का अष्टम स्थान में जाने से विपरीत राजयोग भी बनेगा। जातक धनवान एवं ऐश्वर्यवान होगा।
5. मंगल + शुक्र – मंगल के साथ शुक्र ‘धनहीन योग’ ‘विवाहभंगयोग’ भी कराता है। जातक का जीवन संघर्षमय होगा। वैवाहिक सुख भी विवादास्पद रहेगा।
6. मंगल + शनि – मंगल के साथ शनि राजभंग योग एव ‘लाभभंग योग’ बनाता है। जातक को व्यापार-व्यवसाय में नुकसान होगा।
7. मंगल + राहु – यदि मंगल के साथ राहु हो तो पत्नी की मृत्यु पहले होगी।
8. मंगल + केतु – मंगल के साथ केतु जीवनदायी को स्थाई बीमारी या कष्ट देता है।
अष्टम भाव में मंगल का उपचार
- दक्षिण का दरवाजा घर में न रखे।
- विधवा औरतों का आशीर्वाद समय-समय पर लें।
- मीठी रोटी या लड्डू कुत्ते को खिलावे ।
- रोटी पकाने के समय तवे पर पानी के छींटे दे।
- बंजरग बाण का नियमित पाठ करें।
मेष लग्न में मंगल का फलादेश नवम स्थान में
मंगल यहां धनु राशि में बैठकर भाग्यभवन में होगा। धनु राशि में मंगल हर्षित रहता है तथा अग्निसंज्ञक राशि में रहकर भी उद्ण्ड नहीं होता। ऐसा जातक राज्याधिकारी, भाग्यशाली एवं स्वाभिमानी होता है।। अपनी किस्मत आप चमकाता है।
ऐसा जातक युद्ध के मैदान में कोर्ट कचहरी में विजय पाने वाला शत्रुओं का मानमर्दन करने में सक्षम होता है। मंगल यहा उच्चाभिलाषी है अतः जातक बहुत महत्त्वाकांक्षी होगा।
धनुराशि गत नवम भावस्थ मंगल जातक को जमीन का लाभ देता है। जातक को पिता के धंधे में रुचि होगी।
दृष्टि – धनु राशि में स्थित मंगल यहां व्ययभाव, पराक्रम एवं चतुर्थ भाव को पूर्ण दृष्टि से देखेगा। फलत: जातक यात्राओं द्वारा धनार्जन करेगा। मित्रों से एवं सघन जनसम्पर्क से लाभ होगा। जातक को वाहन का सुख, माता या माता की सम्पत्ति का सुख मिलेगा।
दशा – मंगल की महादशा शुभफल देगी।
मंगल का अन्य ग्रहों से सम्बन्ध
1. मंगल + चन्द्र – मंगल के साथ चन्द्रमा ‘महालक्ष्मी योग’ बनाएगा। जातक धनवान होगा। यदि यहां गुरु भी हो तो जातक लालबत्ती की गाड़ी का हकदार होगा।
2. मंगल + सूर्य – मंगल के साथ सूर्य जातक को महाभाग्यशाली बनाएगा। जातक का भाग्योदय प्रथम सन्तति के बाद होगा।
3. मंगल + बुध – मंगल के साथ बुध जातक को महान पराक्रमी बनाएगा। जातक व्यापार प्रिय होगा ।
4. मंगल + गुरु – यदि मंगल के साथ गुरु हो तो जातक कूटनीतिज्ञ एवं राजनीतिज्ञ होता है। वह चुनाव जीतता है तथा राजनीति में विधायक सांसद या मन्त्री का पद प्राप्त करने में सफल होता है।
5. मंगल + शुक्र – मंगल के साथ शुक्र जातक को महाधनी बनाएगा। जातक के विवाह के बाद महाधनी होगा।
6. मंगल + शनि – मंगल के साथ शनि जातक को ठेकेदारी से लाभ दिलाएगा।
7. मंगल + राहु – मंगल के साथ राहु भाग्योदय में हल्की रुकावट का संकेत देता है।
8. मंगल + केतु – मंगल के साथ केतु व्यापार में सफलतादायक है।
नवम भाव में मंगल का उपचार
- भाई की पत्नी की सेवा करें।
- भाई की आज्ञा मानने से सबकुछ ठीक रहेगा।
- सुगंधित लाल रुमाल हर वक्त जेब में रखें।
- ‘मंगल यंत्र’ गले में धारण करे तो मंगल अनुकूल होगा।
मेष लग्न में मंगल का फलादेश दशम स्थान में
मंगल दशम स्थान में होने से दिक्बली है। मंगल दशम में होने से ‘कुलदीपक योग’ भी बना। ऐसे बालक के जन्म लेते ही घर में धन व कीर्ति की वृद्धि होती है। बालक कुटुम्ब परिवार का नाम दीपक के समान रोशन करता है।
रुचक योग – मेष लग्न में दशम भाव में मंगल उच्च का होने से यह योग बना। इस योग में जन्म लेने वाला व्यक्ति जिला शहर या गांव का मुखिया होता है। उत्तम भवन एवं वाहन का सुख उसे सहज में प्राप्त होता है। ऐसा जातक जीवन में सभी प्रकार के भौतिक संसाधनों एवं ऐश्वर्य की प्राप्ति बलपूर्वक करता है। जातक शूरवीर व साहसी होता है तथा शत्रुओं का मानमर्दन करने में सक्षम होता है।
दशा – मंगल की महादशा अत्यन्त शुभफल देगी।
व्यवसाय – जातक पुलिस, मिल्टरी या प्रशासन में होगा। उच्च श्रेणी का ठेकेदार, विद्युत व्यवसायी, मैकेनिकल इंजीनियरिंग कार्यों में दक्ष भूमि भवन के क्रय-विक्रय से लाभ कमाने वाला, साहसी होता है।
भाग्योदय – जातक का भाग्योदय मंगल की दशा-अंतर्दशा में होगा। 28 वर्ष की आयु होगा। प्रथम पुत्र के बाद भाग्योदय होगा। 32 वर्ष की आयु में भी पुनः भाग्योदय होगा।
मंगल का अन्य ग्रहों से सम्बन्ध
1. मंगल + चन्द्र – यदि यहां मंगल के साथ चन्द्रमा हो तो ‘यामिनीनाथ योग’ एवं ‘महालक्ष्मी ‘योग’ बनेगा। जातक के पास दो-तीन उत्तम वाहन एवं श्रेष्ठ बंगले होंगे।
2. मंगल + सूर्य – मंगल के साथ सूर्य जातक को उच्च राज्याधिकारी बनाएगा।
3. मंगल + बुध – मंगल के साथ बुध जातक को महान् पराक्रमी बनाएगा।
4. मंगल + गुरु – यदि मंगल के साथ गुरु हो तो गुरु का नीचत्व भंग हो जाएगा। जातक भाग्य पग-पग पर उसकी सहायता करेगा। जातक परोपकारी एवं दयालु होगा।
5. मंगल + शुक्र – यदि मंगल के साथ शुक्र हो तो जातक खुद तो बहुत कमाएगा ही परन्तु स्त्री से धन मिलेगा। स्त्री जातक के लिए लक्की साबित होगी।
6. मंगल + शनि – किम्बहुना योग यदि मंगल के साथ शनि हो तो ‘किम्बहुना योग’ बनेगा। शनि यहां राज्येश-लामेश होकर स्वगृही होगा। जातका राजातुल्य ऐश्वर्य को भोगेगा परन्तु दम्भी व हठी होगा। यदि यहां गुरु भी हो तो जातक लालबत्ती की गाड़ी वाला होगा।
7. मंगल + राहु – ऐसा व्यक्ति निरंकुश राजा होगा। अभिमानी होगा तथा अपने से बड़ा किसी को नहीं समझेगा।
8. मंगल + केतु – मंगल के साथ केतु व्यक्ति को शत्रुघ्न्ता, पराक्रमी व शूरवीर बनाता है।
दशम भाव में मंगल का उपचार
- काले व्यक्ति, काना, निःस्तान की सेवा करने से लाभ होगा।
- घर के स्वर्ण आभूषण बुरे वक्त में न बेचे। बेचने से संतान हानि एवं परिवार में बरबादी की शुरुआत होगी।
- दूध को आग पर उफनने से बचावे ।
मेष लग्न में मंगल का फलादेश एकादश स्थान में
मंगल यहां कुम्भ राशि में है। शनि की राशि में है। शनि मेष लग्न हेतु पापफलं देने वाला है। फिर भी ऐसा जातक गुरुभक्त एवं उच्च पदाधिकारी होगा। उसे राजनीति में अनायास सफलता मिलती है।
कुम्भ राशिगत एकादश स्थान में स्थित मंगल जातक को सरकारी नौकरी दिलाता है पर जातक अपने अधिकारी के साथ तकरार करता है।
दृष्टि – कुम्भ राशि में स्थित मंगल की दृष्टि धनस्थान, पंचमभाव एवं षष्टम् भाव पर होगी। ऐसा जातक जीवन में यथेष्ट धन कमाता है। प्रथम सन्तति के बाद तीव्रता से भाग्योदय होता है। जातक अपने शत्रुओं को परास्त करता है तथा शत्रुओं को परास्त करने में किसी की सहायता लेना पसन्द नहीं करता है।
दशा – मंगल की महादशा उत्तमफल देगी।
मंगल का अन्य ग्रहों से सम्बन्ध
1. मंगल + चन्द्र – यहां चन्द्र-मंगल युति लक्ष्मी योग बनाएगी। जातक धनवान होगा।
2. मंगल + सूर्य – मंगल के साथ सूर्य जातक को विद्या के द्वारा लाखों रुपये कमाने में सफलता देगा।
3. मंगल + बुध – मंगल के साथ बुध जातक को मित्रों द्वारा धन दिलाएगा।
4. मंगल + गुरु – मंगल के साथ गुरु जातक को महान् उद्योगपति बनाएगा। मंगल शुक्र मंगल के साथ शुक्र जातक विवाह के बाद महाधनी बनाएगा।
6. मंगल + शनि – मंगल के साथ यदि शनि हो तो जातक न्यायाधीश (जज) होगा। स्वत: ही भले-बुरे का लेखा-जोखा करता रहेगा। धन भी न्याय से कमाएगा पर मंगल के कारण दम्भी होगा।
7. मंगल + राहु – मंगल के साथ राहु व्यापार में नुकसानदायक है।
8. मंगल+ केतु – मंगल के साथ केतु उद्योग में तनाव देगा।
9. यदि इस मंगल के साथ कोई भी दो शुभ ग्रह हो तो जातक महाराजाधिराज के समान ऐश्वर्यशाली होगा |
एकादश भाव में मंगल का उपचार
- सिन्दूर या शहद मिट्टी के बर्तन में रखकर श्मशान की जमीन में दबावे।
- मंगल यंत्र’ धारण करें।
- लाल कुत्ता पाले ।
- छोटे बच्चों को घर में रखे।
मेष लग्न में मंगल का फलादेश द्वादश स्थान में
मंगल यहां मीन राशि होकर बारहवें स्थान पर होगा। मीन राशि गुरु की राशि है। गुरु मेष लग्न वालों के लिए योगकारक है। फलतः मीन राशि में मंगल हर्षित एवं नियंत्रित रहेगा। ऐसा जातक शत्रुओं को परास्त करने में समर्थ एवं घर का मुखिया होता है। जाताक यात्राएं अधिक करता है एवं बाप-दादाओं की कीर्ति को बढ़ाता है। हाथ खर्चीला होता है। जातक दानी होता है।
‘भोजसंहिता’ के अनुसार मंगल द्वादश में जातक का रुपया मुकदमे में अपराध प्रवृत्ति एवं शत्रुनाश में खर्च कराता है।
दृष्टि – मीन राशि गत मंगल यहां पराक्रम स्थान छठे स्थान एवं सप्तम भाव को पूर्ण दृष्टि से देखेगा। फलतः ऐसे जातक को मित्रों से लाभ, सघन जनसम्पर्क से लाभ होता है। जातक अपने पराक्रम से शत्रुओं का नाश करता है। उसे पत्नी का सुख मिलता है। पत्नी आज्ञाकारी रहती है।
दशा – भोजसंहिता के अनुसार जातक को मंगल की महादशा मिश्रित फल देगी। यदि शुभग्रहों की दृष्टि मंगल पर हो तो मंगल की दशा शुभ फल देगी।
मंगल का अन्यग्रहों से सम्बन्ध
1. मंगल + चन्द्र – मंगल के चन्द्र की युति जातक को धनवान बनाएगी। मांगलिक दोष भी नष्ट करेगी।
2. मंगल + सूर्य – मंगल के साथ सूर्य ‘विद्याभंग योग’ एवं ‘संतानहीन योग’ बनाता है। जातक उच्चविद्या प्राप्ति या उत्तम सन्तति प्राप्ति में बाधा महसूस करेगा।
3. मंगल + बुध – मंगल के साथ बुध ‘विपरीतराज योग’ बनाएगा। ऐसे जातक के पास गाड़ी, बंगला, नौकर, वाहन सबकुछ होगा।
4. मंगल + गुरु – मंगल के साथ गुरु ‘विपरीतराज योग’ बनाएगा। साथ ही ‘भाग्यभंग योग’ के कारण संघर्ष की स्थिति भी उत्पन्न करेगा।
5. मंगल + शुक्र – मंगल के साथ शुक्र ‘धनहीन योग’ ‘विवाहभंग योग’ बनाता है पर द्वादश शुक्र उच्च का विदेश व्यापार में, स्त्री मित्रों से धन दिलाएगा।
6. यदि गुरु या सूर्य मंगल के साथ हो तो जातक को पुत्र सन्तति का पूर्ण सुख मिलता है। अपने बेटों-पोतों का खिलाएगा एवं उनकी तरक्की होते देखेगा।
7. यदि यहां मंगल के साथ गुरु-बुध की युति हो तो यह भी जबरदस्त राजयोगकारक है।
8. यदि यहां पर चंद्र-मंगल-गुरु-शुक्र की युति हो तो जातक (राजा) मिनिस्टर होगा एवं लालबत्ती का हकदार होगा।
द्वादश भाव में मंगल का उपचार
- सूर्य के अर्घ्य की मीठा डालकर जल चढ़ाये।
- लाल-भूरे कुत्तों को मीठी रोटियां खिलाना ।
- मंदिर में पताशा चढ़ाकर बच्चों को बांटने से अशुभ फल नष्ट होगा।
- घर में जंग लगा हुआ, हथियार, चाकू, बर्तन न रखें।
- बंजरग बाण का नियमित पाठ करें।
- ऋणमोचन मंगल स्तोत्र का पाठ करें।
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