मेष लग्न में राहु का फलादेश

राहु-केतु छायाग्रह इनका कोई शारीरिक अस्तित्व नहीं है। स्वतन्त्र सत्ता नहीं है। अतः अनेक प्राचीन विद्वानों ने इन्हें ग्रह माना ही नहीं इसका कारण उनकी स्थूल सोच थी। जिस पर मनुष्य के शरीर की छाया का कोई वजन, तौल, भार अथवा शरीर में हटकर अलग से स्वतन्त्र अस्तित्व नहीं हो सकता परन्तु उसकी सत्ता से कोई इंकार नहीं कर सकता। ठीक इसी प्रकार राहु व केतु का फलादेश अक्षुण्ण है, अकाट्य है।

ज्योतिष से यदि ये दोनों ग्रह नहीं हो तो फलादेश की सार्थकता ही नष्ट हो जाए। अतः फलादेश करते समय इनकी सूक्ष्म गतिविधियों का सफल अध्ययन कुशल ज्योतिषी को करना चाहिए। एक बात और है राहु अंधेरा है. धुआं है, पर्दे के पीछे छिपी हुई वस्तु है। राहु जन्मकुण्डली के जिस भाव में बैठेगा, वहां भ्रम उत्पन्न करेगा, यह निश्चित है।

‘राहुशनिवत् केतुः कुजवत्’ राहु शनि के समान एवं केतु मंगल के समान फल देता है । बुध-शुक्र और शनि राहु के मित्र ग्रह हैं। राहु के लिए मंगल शत्रु है। राहु की उच्च राशि मिथुन, स्वगृह कन्या है, नीच राशि धनु है और सिंह राशि में राहु हर्षित रहता है। राहु की मूल त्रिकोण राशि कर्क कही गई है वृष का राहु मित्र क्षेत्री होता है। कई विद्वान राहु को वृष में उच्च का मानते हैं।

मेष लग्न में राहु का फलादेश प्रथम स्थान में

मेष लग्न के प्रथम स्थान में राहु मेष राशि (अग्निसंज्ञक राशि) मंगल के घर में होगा। ऐसे जातक का जन्म अस्पताल या ननिहाल में होता है। जातक अच्छी सेहत वाला धनवान होता है। राजदरबार (सरकार) में मान-सम्मान इज्जत पाने का भूखा होता है। जातक बड़े परिवार वाला होता है। चरलग्न में राहु होने पर जातक एक जगह टिक कर नहीं बैठता। जातक कामी होता है।

मेष लग्न का राहु शारीरिक नैरोग्य-शारीरिक बल इतना देता है कि जातक अपने यौवन से अनेक स्त्रियों का उपभोग लेने में समर्थ होता है। अपनी स्त्री से असंतुष्ट रहने से व्याभिचारी वृति भी होती है। परन्तु मेष लग्न में राहु वाला व्यक्ति उदार हृदय का होता है। कब क्या कर बैठेगा इसका अंदाज किसी को नहीं होगा।

दशा – राहु की दशा संघर्षशील साबित होगी।

राहु का अन्य ग्रहों से सम्बन्ध

1. राहु + सूर्य – यहां राहु के साथ सूर्य उच्च का होकर ‘रविकृत राजयोग’ बनाएगा। ऐसा जातक तेजस्वी होगा। पर राजदण्ड से भ्रमित होगा।

2. राहु + चन्द्र – यहां राहु के साथ चन्द्रमा मातृसुख को तोड़ेगा।

3. राहु + मंगल – यदि राहु के साथ मंगल हो तो ‘रुचक योग’ बनेगा। जातक लम्बा होगा। महापराक्रमी होगा। हठी, जिद्दी व क्रोधी होगा पर दयावान भी होगा। जातक कामातुर होगा।

4. राहु + बुध – यहां राहु के साथ बुध जातक को पराक्रमी बनाएगा।

5. राहु + गुरु – यदि राहु के साथ गुरु हो तो ‘चाण्डाल योग’ होगा। जातक अभक्ष्य भक्षण करेगा।

6. राहु + शुक्र – यहां राहु के साथ शुक्र जातक को सुन्दर पत्नी देगा। पर जीवनसाथी स्वेच्छाचारी होगा।

7. राहु + शनि – यदि राहु के साथ शनि हो तो जातक निष्ठुर होगा। न्यायप्रिय होगा पर आसानी से किसी के काबू में नहीं आएगा जातक कहेगा कुछ व करेगा कुछ। उसका व्यवहार संदिग्ध होगा।

8. यदि सूर्य, चन्द्र के साथ राहु हो तो ‘ग्रहण योग होगा। ऐसे जातक मितव्ययी एवं सदा रोगी होगा।

प्रथम भाव में राहु का उपचार

  • शनिवार को काले कुत्ते को रोटी खिलावें।
  • सूर्यग्रहण, चन्द्रग्रहण के समय दान-दक्षिणा, मंत्र पाठ करे।
  • शनिवार के दिन काला वस्त्र न पहने।
  • शनिवार के दिन जौ के आटे की गोलियां मछलियों को खिलावें ।
  • राहु के मंत्र का जाप करें, दशांश हवन करे एवं राहु की वस्तुओं का दान करें।
  • हाथी दांत की मूर्ति या वस्तुएं घर में न रखे।

मेष लग्न में राहु का फलादेश द्वितीय स्थान में

मेष लग्न में द्वितीय स्थान में राहु वृष राशि (स्थिर राशि) में होगा। राहु शुक्र के घर में शुक्र से प्रभावित होगा। जातक परोपकारी होगा। जीवन में उतार-चढ़ाव बहुत आएंगे। मिट्टी से सोना या कभी सोने से मिट्टी बनाएगा। 34 वर्ष की आयु के बाद दो विवाह की सम्भावना रहेगी।

धन के घड़े में छेद है। जातक रुपया इक्कठा नहीं कर पाएगा। जातक कठोर वचन बोलने वाला होता है।

वृष के राहु वाला व्यक्ति लोगों के काम में बहुत दखल देने वाला होता है। राहु धन भाव में हो तो मनुष्य कुबेर के समान दौलत वाला हो तो भी निर्धन होता है। उसे धन की कमी बराबर सताती रहती है। जातक की वाणी अपवित्र (अप्रिय) होती है । मनुष्य झूठ बोलने वाला होता है।

दशा – राहु की दशा संघर्षशील साबित होगी। सही फलादेश हेतु शुक्र की स्थिति का अध्ययन करना भी जरूरी है।

राहू का अन्य ग्रहों से सम्बन्ध

1. राहु + सूर्य – पंचमेश सूर्य राहु के साथ यहां होने से विद्या में निश्चित बाधा आएगी। विद्या व सन्तति को लेकर धन का अपव्यय होगा।

2. राहु + चन्द्र – राहु के साथ उच्च का चन्द्रमा जातक के सुख ऐश्वर्य में वृद्धि करेगा।

3. राहु + मंगल – यदि राहु के साथ मंगल हो तो पत्नी की मृत्यु पहले होगी।

4. राहु + बुध – राहु के साथ बुध जातक के पराक्रम को तोड़ता है।

5. राहु + गुरु – राहु के गुरु भाग्योदय में बाधक है। जातक को भाग्योदय व धनप्राप्ति हेतु बाधओं का सामना करना पड़ेगा।

6. राहु + शुक्र – राहु के साथ शुक्र विलम्ब विवाह कराएगा।

7. राहु + शनि – राहु के साथ शनि व्यापार-व्यवसाय में वांछित लाभ में बाधक है।

द्वितीय भाव में राहु का उपचार

  • श्रीसूक्त का सुबह-शाम नित्य पाठ करें।
  • श्रीयंत्र, कनकधारा यंत्र, कुबेर यंत्र का नित्य पूजन दर्शन करें।
  • राहु शान्ति का प्रयोग करें।
  • कड़वा वचन किसी को न बोले।
  • धन प्राप्ति हेतु दूर्वा एवं काले तिल से राहु का हवन करें।

मेष लग्न में राहु का फलादेश तृतीय स्थान में

मेष लग्न में तृतीय स्थान में राहु मिथुन राशि (वायु राशि) में होगा। मिथुन राशि में राहु उच्च का कहा गया है। ऐसा जातक विद्वान व कलम का धनी होगा। उसकी कलम में तलवार से अधिक ताकत होगी। जातक भाई-बन्धु, परिजनों की सेवा करेगा। स्वप्न में जो भी दिखेगा सच हो जाएगा। जातक स्त्री, सन्तान से सुखी होगा। परन्तु भाइयों से मनमुटाव रहेगा। जातक गरम मिजाज का होगा।

मिथुन में राहु वाला व्यक्ति ‘छिन्द्रान्वेषक’ होता है। अपने मित्रों व परिजनों के कार्यों में दोष ढूँढता रहता है। तृतीयस्थ राहु वाला जातक जबरदस्त बाहुबली होता है। सारा संसार उसे सगे भाई की तरह आदर देगा। परन्तु सहोदर भाई का नाश होता है।

दशा – राहु की दशा में भाग्योदय के अवसर प्राप्त होंगे पर भाइयों, परिजनों एवं मित्रों से धोखा इसी दशा में मिलेगा। राहु के साथ यदि शनि या बुध हो तो राहु की दशा ठीक जाएगी।

राहु का अन्य ग्रहों से सम्बन्ध

1. राहु + सूर्य – राहु के साथ सूर्य विद्या में बाधा डालेगा। कुटुम्ब में कलह होगा।

2. राहु + चन्द्र – राहु के साथ चन्द्रमा मातृपक्ष से विरोध उत्पन्न करेगा। पराक्रम व मान भंग का भय रहेगा।

3. राहु + मंगल – राहु के साथ मंगल भाइयों में विरोध, मित्रों से धोखा दिलाएगा।

4. राहु + बुध – राहु के साथ बुध मिश्रित फल देगा। मित्रों से लाभ एवं विरोध दोनों उत्पन्न करता रहेगा।

5. राहु + गुरु – राहु के साथ गुरु व्यक्ति को फिजूल खर्च बनाएगा।

6. राहु + शुक्र – राहु के साथ शुक्र धन का अपव्यय मित्रों के लिए कराएगा। स्त्री को लेकर धन खर्च होगा।

7. राहु + शनि – राहु के साथ शनि राज्य सुख में बाधा, व्यापार-व्यवसाय में बाधा पहुंचाएगा।

तृतीय भाव में राहु का उपचार

  • भाई – कुटुम्बीजनों को पलटकर जबाब न दें।
  • गलत व्यक्तियों एवं व्याभिचारी स्त्रियों की सौबत से बचे।
  • जौ रात्रि सिरहाने रखकर प्रातः जानवरों या किसी गरीब को भेंट करे ।
  • बड़े भाई या बहन से लड़ने पर चूल्हे की आग बुझ जाएगी।

मेष लग्न में राहु का फलादेश चतुर्थ स्थान में

मेष लग्न के चतुर्थ स्थान में राहु कर्क राशि का होगा कर्क राशि चर राशि है। जलचर राहु चन्द्रमा के प्रभाव में रहेगा। ऐसा जातक धनवान एवं माता-पिता का सेवक होगा। कर्क के राहु के कारण जातक पिस्तौल बन्दूक या घातक हथियार साथ रखने का शौकीन होगा। उच्च पदाधिकारी होगा। घर के सुख में कुछ न कुछ कमी न्यूनता रहेगी। सभी सुख के साधन उपलब्ध होते हुए भी जातक सुखी नहीं होगा। विद्या में विघ्न होगा।

कर्क राहु की मूल त्रिकोण राशि मानी गई है। यहां राहु हर्षित रहता है परन्तु ऐसा जातक लोगों के काम में दखल देने वाला, निरंकुश जातक होता है। चतुर्थ भावस्थ राहु व्यक्ति की माता को बीमार रखता है अथवा चतुर्थस्थ राहु सौतेली मां का योग कराता है। माता को लेकर चिन्ता बनी रहती है। ‘भोज संहिता’ के अनुसार ऐसे जातक का मन घर में नहीं लगेगा। घर में बैचेन व बाहर मस्त रहेगा।

दशा – राहु की दशा संघर्षशील रहेगी। यदि चन्द्रमा की स्थिति कुण्डली में स्वराब है तो राहु की दशा खराब जाएगी। यदि चन्द्र की स्थिति शुभ है तो दशा मध्यम फलकारी साबित होगी।

राहु का अन्य ग्रहों से सम्बन्ध

1. राहु + सूर्य – राहु के साथ सूर्य विद्या में भौतिक सुखों में बाधक है।

2. राहु + चन्द्र – राहु के साथ चन्द्रमा माता को बीमार करेगा। जातक के पास उत्तम (चार पहियों का) वाहन होगा।

3. राहु + मंगल – राहु के साथ मंगल नीच का होने से जातक लड़ाकू होगा।

4. राहु + बुध – राहु के साथ बुध व्यापार में हानिकारक है। वाहन दुर्घटना का भय बना रहेगा।

5. राहु + गुरु – राहु के साथ गुरु पिता के सुख में बाधक है।

6. राहु + शुक्र – राहु के साथ शुक्र पत्नी से मनमुटाव उत्पन्न करेगा। वाहन दुर्घटना का भय बनाएगा ।

7. राहु + शनि – राहु के साथ शनि, व्यापार में नुकसान, भौतिक सुखों की प्राप्ति में बाधक है।

चतुर्थ भाव में राहु का उपचार

  • तेजगति के वाहन से दूर रहें।
  • माता, बुआ या बड़ी बहन की बीमारी में लापरवाही न रखें।
  • राहु के वैदिक मंत्रों का जाप करें।
  • राहु शान्ति प्रयोग करें।

मेष लग्न में राहु का फलादेश पंचम स्थान में

मेष लग्न के पंचम स्थान में राहु सिंह राशि का होगा। सिंह राशि अग्नि संज्ञक व स्थिर राशि है। राहु सूर्य के प्रभाव में होने के कारण जातक गुस्सैल क्रोधी प्रवृत्ति का शीघ्र भड़कने वाला व्यक्ति होगा। जातक व्यापारी होगा पर सन्तान के लिए तरसेगा ।

भृगुसूत्र के अनुसार- ‘पुत्राभाव सर्पशापात् सुतक्षय, नागप्रतिष्ठया पुत्र प्राप्ति ।’ सर्प के शाप से पुत्र का अभाव हो पर नाग की प्रतिष्ठ कालसर्पशक्ति करने से पुत्र की प्राप्ति होगी। जातक उच्च अधिकारियों से लाभ प्राप्त करने वाला होगा।

पांचवा स्थान ‘पूर्वजन्मकृत पुण्य’ का होता है। ऐसे जातक की कुण्डली में पूर्व जन्मकृत पुण्य का अभाव रहता है।

अनुभव – सिंह राशि राहु की प्रिय राशि है जिसमें वह प्रमुदित रहता है। राहु सिंह का हो तो निर्जन प्रदेश में निवास करके भी मनुष्य यथेष्ट धन अर्जित कर लेता है। ऐसा जातक दयालु होता है। परन्तु पंचमस्थ राहु पुत्रसुख में बाधक है। यह पहली सन्तान को मारता है। पंचम भावस्थ राहु को लेकर ‘पद्मनामक’ कालसर्प योग बनता है ऐसा जातक कितना भी डॉक्टरी ईलाज करा ले पर उसे पुत्र सन्तति नहीं होती।

ऐसी सैकड़ों कुण्डलियां हमारे संग्रह में है परन्तु कालसर्पयोग की शान्ति विधि-विधान से तीन बार करा लेने पर लोगों के सन्तति हुई है। ऐसा प्रत्यक्ष अनुभव (चमत्कार) हमारे द्वारा कई लोगों को प्राप्त हुआ है।

यहां आकर मानना ही पड़ता है कि मनुष्य का कर्म (परिश्रम) भाग्य के सामने वृथा है। कर्म फल प्राप्ति के लिए अनिवार्य है। परन्तु शुभ-अशुभ फल दैवकृपा से ही मिलता है अकेला पुरुषार्थ व्यर्थ है।

दशा – राहु की दशा अनिष्ट फल देगी।

राहु का अन्य ग्रहों से सम्बन्ध

1. राहु + सूर्य – राहु के साथ सूर्य स्वगृही विद्या से लाभ, पुत्र सन्तति देरी से होगी। पर पुत्र तेजस्वी होगा।

2. राहु + चन्द्र – राहु के साथ चन्द्रमा सन्तान सुख में बाधक है पर मातृदोष को शान्ति के बाद उत्तम सन्तति होगी।

3. राहु + मंगल – राहु के साथ मंगल भाइयों के सुख एवं पुत्र सुख में बाधक (अवरोधक) है।

4. राहु + बुध – राहु के साथ बुध होने से व्यक्ति की मामा एवं मातृपक्ष से कम पटेगी।

5. राहु + गुरु – राहु के साथ गुरु जातक की विद्या को बिगाड़ेगा एवं भाग्योदय में भी देरी कराएगा।

6. राहु + शुक्र – राहु के साथ शुक्र जातक के वैवाहिक सुख में बाधक

7. राहु + शनि – राहु के साथ शनि व्यापार में नुकसान देगा।

पंचम भाव में राहु का उपचार

  • संतान गोपाल स्तोत्र का नित्य पाठ करें।
  • राहु के तांत्रिक मंत्रों का जाप, हवन एवं तर्पण करें।
  •  राहु की वस्तुओं का दान करें।
  • पितृदोष या कालसर्पयोग की शान्ति करावे ।
मेष लग्न में राहु का फलादेश

मेष लग्न में राहु का फलादेश षष्टम स्थान में

मेष लग्न में षष्टम भाव में राहु कन्या राशि का होगा। कन्या राशि द्विस्वभाव राशि एवं वायु तत्त्व प्रधान है। इसमें राहु उच्च का कहा गया है। ऐसा जातक बुधई के कार्यों से दूर रहने वाला, भीरवान और अतिसुखी होता है।

ऐसा जातक दृढ़ निश्चयी होता है। लम्बी आयु का स्वामी एवं शत्रुओं पर विजय पाने वाला साहसी होता है। उसके शत्रु उसकी प्रतापग्नि में नित्य जलते हैं। ऐसा जातक अपनी किस्मत आप चमकाता है। जातक के जीवन में शत्रु या रोग का प्रकोप अवश्य रहेगा।

छठे भाव में राहु शत्रुओं के जंगल को भस्मसात करने की शक्ति रखता है। परन्तु उसे चाचा मामा का सुख नहीं होता।

दशा – राहु की दशा अनिष्ट फल देगी।

राहु का अन्य ग्रहों से सम्बन्ध

1. राहु + सूर्य – राहु के साथ सूर्य होने के कारण जातक के जीवन में स्थिरता पुत्र जन्म के बाद ही आएगी। पुत्र जन्म भी देवताओं की उपासना व कृपा से होगा।

2. राहु + चन्द्र – यहां पर यदि राहु के साथ चन्द्रमा हो जातक राजा की स्त्री, राजमंत्री की पत्नी से गुप्त सम्बन्ध रखता है।

3. राहु + मंगल – राहु के साथ मंगल होने से जातक को परिश्रम का लाभ 34 वर्ष की आयु के बाद मिलेगा।

4. राहु + बुध – यदि बुध राहु के साथ है तो पराक्रम भंग होगा। जातक अवश्य जेल जाएगा।

5. राहु + गुरु – राहु के साथ गुरु जातक को राजयोग देगा परन्तु संघर्ष के बाद देगा।

6. राहु + शुक्र – राहु के साथ शुक्र सम्पूर्ण विवाह सुख में बाधक है।

7. राहु + शनि – राहु के साथ शनि जातक को व्यापार एवं व्यवसाय सुख में बाधक है।

षष्टम भाव में राहु का उपचार

  • राहु कवच का नित्य पाठ करे।
  • चांदी की ठोस गोली जेब में रखें।
  • राहु पंचविंशति स्तोत्र का हवनात्मक प्रयोग करें।
  • राहु की वस्तुओं का दान करें।
  • रात्रि को गहरी नींद में सोए हुए व्यक्ति को भूरे काले रंग का कम्बल ओढ़ाकर चुपचाप चले जाए।

मेष लग्न में राहु का फलादेश सप्तम स्थान में

मेष लग्न के सप्तम स्थान में राहु तुला राशि में होगा। तुला राशि चर है और वायु तत्त्व प्रधान है। ऐसा जातक शत्रुओं पर विजय पाने वाला राज्याधिकारी होता है। इनके जीवन में धन की कमी नहीं रहेगी। इनका गृहस्थ जीवन विवादास्पद होता है। दुनिया में आकर ये नाम कमाते है

प्रथम स्त्री की मृत्यु बीमार से होने प्रायः दूसरी शादी होती है। शुभग्रह साथ हो या शुभग्रह की दृष्टि हो तो एक पत्नी होगी। जातक अंतर्जातीय विवाह या विधवा विवाह करने में संकोच नहीं करेगा। वैवाहिक जीवन सुखमय नहीं होगा।

तुला राशि में राहु वाला व्यक्ति ‘छिद्रान्वेषक’ होता है। अपनी पत्नी, मित्र व भागीदारों में दोष ढूढ़ता रहता है। सप्तम भाव में राहु स्त्री का विनाश करता है। उसे रोगिनी बनाता है। सप्तम भाव में राहु मधुमेह का रोग देता है और भी कारण से स्त्री सुख में न्यूनता देता है।

दशा – राहु की दशा मिश्रित फल देगी। शुक्र की स्थिति सही फलादेश का मार्ग प्रशस्त करेगी।

राहु का अन्य ग्रहों से सम्बन्ध

1. राहु + सूर्य – राहु के साथ सूर्य नीच का होने से जातक को सरकारी नौकरी नहीं मिलेगी तथा राजदण्ड का भय रहेगा।

2. राहु + चन्द्र – सप्तम भाव में राहु के साथ चन्द्रमा हो तो मनुष्य स्त्री को विभिन्न प्रकार भोग-उपभोग की सामग्रियां निरन्तर भेंट करता रहता है। यदि सप्तम भाव में अन्य पापग्रह हों तो ऐसे जातक की स्त्री कुटिला, कुशीला और लड़ाकू होगी। पति-पत्नी में लगातार कलह बनी रहेगी।

3. राहु + मंगल – यदि राहु के साथ मंगल भी हो तो पत्नी की मृत्यु पहले होगी।

4. राहु + बुध – राहु के साथ बुध जातक को पत्नीपक्ष, मातृपक्ष एवं मित्रपक्ष से हानि दिलवाता है। स्त्री-मित्र से धोखा मिलेगा।

5. राहु + गुरु – राहु के साथ गुरु ‘चाण्डाल योग’ बनाता है। ऐसा जातक अन्तरजातीय विवाह करता है।

6. राहु + शुक्र – राहु के साथ ‘मालव्य योग’ बनाता है। जातक राजातुल्य ऐश्वर्य को भोगता है।

7. राहु + शनि – राहु के साथ उच्च का शनि ‘शशयोग’ बनाता है। ऐसा जातक राजा के समान पराक्रमी, ऐश्वर्यशाली व धनवान होता है।

राहु के साथ यदि शनि या शुक्र हो तो जातक दुर्दान्त राजा होगा ऐसा प्रभावशाली व्यक्ति होगा जो गलत कार्यों में अपनी शक्ति (प्रभाव) का दुरुपयोग करेगा।

सप्तम भाव में राहु का उपचार

  • राहु शान्ति प्रयोग करें।
  • राहु के वैदिक मंत्रों का जाप रुद्राक्ष की माला पर करें।
  • राहु की वस्तुओं का दान करें।
  • अत्यधिक बूढ़ी एवं बेसहारा स्त्रियों की मदद करे।

मेष लग्न में राहु का फलादेश अष्टम स्थान में

मेष लग्न में अष्टम स्थान में राहु वृश्चिक राशि का होगा। वृश्चिक राशि जलसंज्ञक है, स्थिर है। जातक को 32 वर्ष आयु पर खतरा आएगा। जातक की किस्मत झूले की तरह आगे-पीछे, ऊपर-नीचे डोलती रहेगी। ऐसा जातक धनवान् होगा ।

34 वर्ष की आयु के बाद दूसरे विवाह की सम्भावना बनी रहेगी। जातक को गुप्त रोग, मूत्राशय, पथरी, हरनिया की सम्भावना रहेगी।

ऐसे जातक को पेट में रोग, ट्यूमर या गुप्तांग में बीमारी होती है। जातक अंतर्जातीय विवाह या विधवा विवाह करता है। जातक को 32, 45 एवं 60वें वर्ष मृत्यु का भय रहता है। जातक की वृद्धावस्था कष्टमय रहती है। तथा मृत्यु का पूर्वाभास मृत्यु के पहले हो जाता है।

यदि राहु के साथ मंगल हो तो उपरोक्त वर्षों में दुर्घटना का भय और भी प्रबल जाता है। पैर टूटने का भय रहता है। ऐसे जातक को नवरत्न जड़ित महामृत्युंजय का लॉकेट गले में हर वक्त पहनना चाहिए। इसके लिए लेखक से सीधा सम्पर्क किया जा सकता है।

दशा – राहु की दशा अनिष्ट फल देगी। यदि इस कुण्डली में मंगल की स्थिति भी खराब हो तो यह दशा घातक होगी।

राहु का अन्य ग्रहों से सम्बन्ध

1. राहु + सूर्य – राहु के साथ सूर्य पुत्र सन्तान एवं उच्च शैक्षणिक डिग्री प्राप्त कराने में बाधक है।

2. राहु + चन्द्र – राहु के साथ चन्द्रमा नीच का होगा। जातक को गुप्त बीमारी का प्रकोप रहेगा। शल्य चिकित्सा से राहत मिलेगी।

3. राहु + मंगल – राहु के साथ मंगल होने से ‘विपरीत राजयोग’ बनेगा। जातक महाधनी होगा पर जीवन संघर्षपूर्ण रहेगा।

4. राहु + बुध – राहु के साथ बुध होने से जातक को ‘विपरीत राजयोग’ के कारण भौतिक सुख-सम्पन्नता मिलेगी पर जातक के मित्र दगाबाज होंगे।

5. राहु + गुरु – राहु के साथ गुरु ‘विपरीत राजयोग’ बनाता है। जातक धनी होगा परन्तु संघर्षशील जीवन रहेगा।

6. राहु + शुक्र – राहु के साथ शुक्र विवाहसुख से विच्छेद का संकेत देता है।

7. राहु + शनि – राहु के साथ शनि भी विवाह विच्छेदक है और व्यापार-व्यवसाय में धोखा देगा।

अष्टम भाव में राहु का उपचार

  • राहु कवच का नित्य पाठ करे।
  • असाध्य बीमारी से बचाव हेतु महामृत्युंजय का पाठ करे।
  • हाथी दांत की वस्तुएं घर में न रखे, न प्रयोग में ले।
  • यदि प्राणों पर संकट हो तो अपने वजन के बराबर कच्चा कोयला शनिवार के दिन जल में प्रवाहित करे।
  • यदि बुखार न उतर रहा हो तो 800 ग्राम जौ गौ मूत्र में धोकर शनिवार के दिल जल में प्रवाहित करे।

मेष लग्न में राहु का फलादेश नवम स्थान में

मेष लग्न के नवम स्थान में राहु धनु राशि का होगा। धनु राशि अग्निसंज्ञक है, द्विस्वभाव है। ऐसा जातक जादू-टोना, श्मशान क्रिया व तंत्र का जानकार होता है। बहन-भाइयों का पोषक होते हुए भी लालची एवं बेईमान होता है।

ऐसा जातक सन्तान से सुखी एवं अधिक यात्रा करने वाला. कुछ क्रोधी एवं तनुक मिजाजी व्यक्ति होता है।  ऐसा जातक भाग्योदय में कुछ न कुछ रुकावट महसूस करता होगा।

नवमस्थ राहु वाला व्यक्ति अपने द्वारा प्रारम्भ किए हुए कार्य को अधूरा नहीं छोड़ता। ऐसा जातक देवताओं व तीर्थों में श्रद्धा विश्वास रखने वाला, सभ्य व्यक्ति होता है। ऐसा जातक अपने ऊपर किए गए उपकार को कभी भूलता नहीं। व्यक्ति कृतज्ञ होता है परन्तु अपने दुश्मन को कभी नहीं छोड़ता।

जातक प्रायः अपने पिता का इकलौता पुत्र होता है बहन यदि हो तो 22वें वर्ष में उसकी मृत्यु हो जाती है। भाई यदि हो तो 36वें वर्ष में उसकी भी मृत्यु हो जाती है।

दशा – राहु की दशा मिश्रित फल देगी परन्तु यदि इस कुण्डली में गुरु छठे, आठवें या बारहवें स्थान में हो जातक पर विपत्ति का पहाड़ टूटेगा। उसके प्रयत्न इस दशा में विफल होंगे। राहु का उपाय ही एकमात्र समाधान होगा।

राहु का अन्य ग्रहों से सम्बन्ध

1. राहु + सूर्य – राहु के साथ सूर्य जातक का भाग्योदय विद्यार्जन से कराएगा।

2. राहु + चन्द्र – राहु के साथ चन्द्रमा जातक का भाग्योदय माता की मदद से कराएगा।

3. राहु + मंगल – राहु के साथ मंगल के कारण जातक को परिश्रम का लाभ मिलेगा। जातक बड़ी सम्पत्ति का स्वामी होगा।

4. राहु + बुध – राहु के साथ बुध जातक को महान् पराक्रम बनाएगा।

5. राहु + गुरु – राहु के साथ गुरु जातक को महान भाग्यशाली एवं तेजस्वी व्यक्ति बनाएगा।

6. राहु + शुक्र – राहु के साथ शुक्र जातक का भाग्योदय विवाह के बाद कराएगा।

7. राहु + शनि – राहु के साथ शनि जातक की किस्मत व्यापार के द्वारा चमकाएगा।

नवम भाव में राहु का उपचार

  • राहु के वैदिक मंत्रों का जाप, अनुष्ठान करें।
  • राहु शान्ति प्रयोग करें।
  • शीघ्र भाग्योदय हेतु राहु के एक लाख अठारह हजार तांत्रिक मंत्रों का दूर्वा काले तिल कर्पूर व कमलगट्टे का हवन करें।

मेष लग्न में राहु का फलादेश दशम स्थान में

मेषलग्न के दशम स्थान में राहु मकर राशि का होगा। मकर राशि पृथ्वीसंज्ञक चर राशि है। जातक का जन्म पिता के लिए कष्टकारी होता है जातक राज दरबार (सरकार) मान-सम्मान पाने का इच्छुक होता है। जातक धनवान होगा. लम्बी आयु वाला होगा। जातक चाल-चलन का अच्छा एवं चरित्रवान होगा। परन्तु राज्यपक्ष से कष्ट महसूस करेगा।

दशम भाव का राहु बलवान होता है, परन्तु ऐसे जातक को पिता का सुख नहीं मिलता। वाहन सुख तो होता है परन्तु वाहन को लेकर खर्च होता रहता। जातक को म्लेच्छ, निम्न जाति एवं विदेशी लोगों से लाभ होगा अर्थात् अपनी जाति के लोगों से कम लाभ होता है।

दशा – राहु की दशां मिश्रित फल देगी। यदि शनि राहु के साथ है तो दशा अच्छी जाएगी परन्तु यदि शनि इस कुण्डली के छठे, आठवें और बारहवें स्थान में हो जातक राज (सरकार) कोर्ट-कचहरी द्वारा दण्डित होगा।

राहु का अन्य ग्रहों से सम्बन्ध

1. राहु + सूर्य – राहु के साथ सूर्य शत्रुक्षेत्री होकर विद्या अधूरी कराएगा। सरकारी नौकरी में बाधा पहुंचेगी।

2. राहु + चन्द्र – राहु के साथ चन्द्रमा माता की सम्पत्ति में बाधा, मकान को लेकर विवाद कराएगा।

3. राहु + मंगल – राहु के साथ उच्च का मंगल यहां ‘रुचक योग’ बनाएगा। जातक राजा के समान पराक्रमी, ऐश्वर्यशाली एवं बड़ी सम्पत्ति का स्वामी होगा।

4. राहु + बुध – राहु के साथ बुध होने से जातक पराक्रमी होगा। व्यापार प्रिय होगा पर वंचक होगा। चालाक होगा।

5. राहु + गुरु – राहु के साथ गुरु नीच का होने से जातक को नौकरी, अध्यापन बगैरा से लाभ होगा।

6. राहु + शुक्र – राहु के साथ शुक्र व्यापार एवं स्त्री संसर्ग को लेकर धन खर्च करने का संकेत देता है।

7. राहु + शनि – राहु के साथ शनि ‘शश योग’ बनाएगा। ऐसे जातक राजा के समान पराक्रमी एवं ऐश्वर्य सम्पन्न होता है।

दशम भाव में राहु का उपचार

  • राजयोग की प्राप्ति हेतु राहु के तांत्रिक मंत्रों का हवन करें।
  • राहु की वस्तुओं का दान करें।
  • राहु पंचविंशति नाम स्तोत्र का नित्य पाठ करे।
  • राहु के पंचविशति स्तोत्र का हवनात्मक प्रयोग काले तिल व दूर्वा से करें।

मेष लग्न में राहु का फलादेश एकादश स्थान में

मेष लग्न के एकादश स्थान राहु कुम्भ राशि का होगा। कुम्भ राशि वायु तत्व प्रधान एवं स्थिर राशि है। ऐसा जातक सन्तान से सुखी, धनवान बड़ी जमीन जायदाद का स्वामी होगा। पुत्र भी ऐश्वर्यशाली होंगे। जातक के जीवन में संघर्ष की स्थिति बनी रहेगी। मुकदमों एवं झगड़ों से जातक उलझा रहेगा। अन्त में विजय प्राप्त करेगा। पिता की आयु लम्बी होगी। जिसका साथ निभाएगा, उसको अकेला नहीं छोड़ेगा। जातक लाभ में कमी (न्यूनता) महसूस करेगा, पर मित्र बहुत होंगे।

दशा – राहु की दशा अशुभ फल देगी। यदि शनि की स्थिति इस कुण्डली में छठे, आठवें या बारहवें स्थान पर हो तो यह स्थिति ज्यादा अनिष्ट फल देगी। ऐसी स्थिति व राहु व शनि दोनों की शान्ति के उपाय करने होंगे।

राहु का अन्य ग्रहों से सम्बन्ध

1. राहु + सूर्य – राहु के साथ सूर्य शत्रुक्षेत्री होने से जातक को व्यापार में

राज्य कर्मचारियों द्वारा कष्ट पहुंचेगा।

2. राहु + चन्द्र – राहु के साथ चन्द्रमा विद्या एवं संतान में रुकावट देता है। ऐससा जातक मानसिक परेशानी में रहेगा।

3. राहु + मंगल – राहु के साथ मंगल होने से जातक को भूमि लाभ होगा पर भूमि को लेकर विवाद भी होगा। कोर्ट केस बनेगा।

4. राहु + बुध – राहु के साथ बुध जातक पराक्रमी बनाएगा। पर मित्र दगा देंगे।

5. राहु + गुरु – राहु के साथ गुरु जातक को विद्यावान एवं भाग्यशाली बनाएगा।

6. राहु + शुक्र – राहु के साथ शुक्र जातक को धनवान तो बनाएगा पर जीवनसाथी को लेकर बदनामी भी होगी।

7. राहु + शनि – राहु के साथ शनि जातक को उद्योगपति बनाएगा पर उतार-चढ़ाव बहुत आएगा।

एकादश भाव में राहु का उपचार

  • भंगी या निम्न वर्ग के व्यक्ति को कभी-कभी खैरात देना। उनके जरूरत की वस्तु भेंट करना।
  • रात को आराम करने की जगह पर शक्कर की बोरी या सौंफ रखने से राहु का अशुभफल नष्ट होगा।
  • राहु शन्ति प्रयोग करें।

मेष लग्न में राहु का फलादेश द्वादश स्थान में

मेष लग्न के द्वादश स्थान में राहु मीन राशि का होगा। मीन राशि द्विस्वभाव राशि व जलचर है। ऐसा जातक बहुत बड़े परिवार को पालने वाला, धनवान व सुखी होगा। रात को आराम से सोने वाला, गुप्त विद्याओं (तन्त्र-साधना) का जानकार होगा। मित्रों एवं परिजन के शुभ कार्यों पर रुपया खर्च करने वाला, व्यावहारिक ज्ञान से सम्पन्न, बुद्धिमान एवं विवेकी व्यक्ति होगा। ऐसे जातक को ‘नींद’ में कमी महसूस होगी। यदि अन्य अशुभ ग्रहों का प्रभाव लग्न या चन्द्रमा पर हुआ तो जातक की कल्पना का अन्त दुःखद होगा ।

ऐसे जातक की दुष्टों से मैत्री होती है तथा सज्जनों से परमशत्रुता निरन्तर बनी रहती है। राहु अशुभ हो तो प्रायः नेत्ररोग एवं पैर में जख्म होता है। मामा की मृत्यु होती है। घर में एक बार चोरी अवश्य होती है। बारहवें स्थान पर मीन का राहु आध्यात्म ज्ञान एवं संन्यास के लिए शुभ है। जातक का रुपया फालतू कार्यों में खर्च होगा।

दशा – राहु की दशा अनिष्ट फल देगी। यात्रा में नुकसान सम्भव है। शत्रु अचानक वार करेंगे। यदि गुरु की स्थिति इस कुण्डली में शुभ हो तो राहु की दशा मिश्रित फल देगी। गुरु की खराब स्थिति दशा को और बदतर बनाएगी। ऐसी दशा में राहु और गुरु दोनों की शान्ति के उपाय करने होंगे।

राहु का अन्य ग्रहों से सम्बन्ध

1. राहु + सूर्य – राहु के साथ ‘विद्याभंग योग’ बनाएगा। ऐसे जातक को विद्या में बाधा, संतान में बाधा आएगी।

2. राहु + चन्द्र – राहु के साथ चन्द्र सुख में बाधा पहुंचेगा। जातक चिंताग्रस्त रहेगा।

3. राहु + मंगल – राहु के साथ मंगल बारहवें ‘लग्नभंग योग’ बनाता है जातक भूमि संबंधी विवाद से भ्रमित होगा।

4. राहु + बुध – राहु के साथ बुध बारहवें ‘पराक्रमभंग योग’ बनाता है जातक का पराक्रम भंग होगा।

5. राहु + गुरु – राहु के साथ गुरु ‘विपरीत राजयोग’ बनाएगा। जातक धनवान होगा पर फिजूलखर्च होगा।

6. राहु + शुक्र – राहु के साथ शुक्र ‘विलम्बविवाह योग’ एवं ‘धनहीन योग’ बनाता है। ऐसा जातक आर्थिक संघर्ष से त्रस्त रहता है।

7. राहु + शनि – राहु के साथ शनि ‘लाभभंग योग’ बनाता हो जातक को व्यापार-व्यवसाय में नुकसान होगा एवं व्यर्थ की यात्राएं निरर्थक साबित होगी। इसकी कल्पना की दुःखान्त त्रासदी होगी। आंखों में मोतियाबिंद होगा।

द्वादश भाव में राहु का उपचार

  • आर्थिक स्थिति को सुधारने के लिए अपनी आय का कुछ हिस्सा पुत्री, बहन, बुआ, भानजी पर खर्च करें।
  • लाल कपड़े की थैली में सौंफ डालकर सिलाई कर ले। यह थैली सिरहाने रखे तो बुरे स्वप्न समाप्त होंगे। राहु का भार मिटेगा ।
  • रसोई में बैठकर खाना खाने से राहु का अशुभ प्रभाव नष्ट हो जाता है।
  • राहु कवच का पाठ करें। राहु का तांत्रिक हवन करें।
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