तुला लग्न में चंद्रमा का फलादेश

तुला लग्न में चंद्रमा दशम स्थान का स्वामी, राज्येश होने से शुभ फल प्रदाता व राजयोग कारक है। यह लग्नेश शुक्र का मित्र है।

तुला लग्न में चंद्रमा का फलादेश प्रथम स्थान में

यहां प्रथम स्थान में चंद्रमा तुला राशि का होगा। ऐसा जातक विख्यात कवि, लेखक, कला संगीत मर्मज्ञ होता है। उसे संसार के सभी सुख ऐश्वर्य, भोग विलास की सामग्री सहज में प्राप्त हो जाती है।

ऐसे व्यक्ति के नेत्र कमनीय, चंचल व शरीर सुन्दर होता है। जातक सुन्दर, सौम्य और विनम्र स्वभाव का होगा।

चंद्रमा का अन्य ग्रहों से सम्बन्ध

1. चंद्र के साथ गुरु होने से तुला लग्न के प्रथम स्थान में यह युति वस्तुतः राज्येश चंद्रमा की तृतीयेश-षष्ठेश बृहस्पति के साथ युति होगी। यहां बैठकर दोनों शुभ ग्रह पंचम स्थान, सप्तम भाव एवं भाग्य स्थान को पूर्ण दृष्टि से देखेंगे। तुला लग्न में यह योग ज्यादा सार्थक नहीं है क्योंकि तुला लग्न के लिए बृहस्पति पापी ग्रह है अशुभ फल प्रदाता है।

फलतः ऐसे जातक के पराक्रम में न्यूनता आएगी। जातक की प्रथम सन्तति की मृत्यु होगी। जातक को भाग्योदय हेतु काफी संघर्ष करना पड़ेगा। फिर अन्तिम रूप से सफल रहेंगे।

2. सूर्य-चंद्र की तुला राशिगत प्रथम स्थान में यह युति वस्तुतः दशमेश चंद्र की लाभेश सूर्य के साथ युति कहलायेगी। तुला लग्न में चंद्रमा राज्येश होने से शुभ फलदायक है, जबकि लग्नेश शुक्र का शत्रु होने से सूर्य अशुभ फलदायक है। सूर्य लग्न में नीच राशि का भी है। जातक को सरकारी नौकरी नहीं मिलेगी फिर भी जातक पराक्रमी होगा। जातक की पत्नी सुंदर होगी। तुला लग्न में यदि चंद्र के साथ बुध हो तो जातक के स्वयं के निर्णय विवादास्पद रहेंगे।

3. तुला लग्न में चंद्र के साथ मंगल होने से जातक महाधनी होगा।

4. तुला लग्न में चंद्र के साथ शुक्र हो तो जातक का व्यक्तित्व सुन्दर होगा। चेहरा भी सुन्दर होगा।

5. तुला लग्न में चंद्र के साथ शनि हो तो ‘शश योग’ के कारण जातक चक्रवर्ती राजा के समान धनी होगा।

6. तुला लग्न में चंद्र के साथ राहु हो तो यहां पर राहु की दशा में रोगोत्पत्ति होगी। जातक हठी होगा।

7. तुला लग्न में चंद्र के साथ केतु हो तो जातक जिद्दी होगा। निर्णय संदिग्ध होंगे।

तुला लग्न में चंद्रमा का फलादेश द्वितीय स्थान में

यहां चंद्रमा द्वितीय स्थान में वृश्चिक राशि का होगा जो कि इसकी नीच राशि है। इसके तीन अंशों तक यह परम नीच का होता है। परन्तु अपनी राशि में पांचवे स्थान पर होने के कारण नीच होते हुए भी चंद्रमा यहां शुभ फल देगा। ऐसा जातक राजमान्य गुणी, धनी, अतिदानी और पिता के सुख से युक्त सम्पन्न व्यक्ति होगा।

दृष्टि – द्वितीयस्थ चंद्रमा की दृष्टि अष्टम भाव (वृष राशि) पर होगी। फलतः जातक लंबी उम्र जीने वाला व्यक्ति होगा।

निशानी – जातक की वाणी विष बुझे के तौर की तरह विषैली होगी।

दशा – चंद्रमा की दशा-अन्तर्दशा में जातक धनवान होगा।

चंद्रमा का अन्य ग्रहों से सम्बन्ध

1. चंद्र के साथ गुरु तुलालग्न के द्वितीय स्थान में यह युति वस्तुतः राज्येश चंद्रमा की तृतीयेश-षष्ठेश बृहस्पति के साथ युति होगी। चंद्रमा यहां नीच राशि का होगा। यहां बैठकर ये दोनों शुभ ग्रह षष्टम स्थान, अष्टम स्थान एवं राज्य स्थान को पूर्ण दृष्टि से देखेंगे। यह युति यहां ज्यादा सार्थक नहीं है।

फिर भी जातक के शत्रुओं का नाश होगा। जातक की आयु बढ़ेगी। राजपक्ष में प्रभाव बढ़ेगा। ऋण, रोग और शत्रु का भय तो रहेगा परन्तु इस शुभ योग के कारण जातक का बचाव होता रहेगा। मुसीबत में मदद मिलती रहेगी।

2. सूर्य-चंद्र की वृश्चिक राशिगत धन स्थान में यह युति वस्तुतः राज्येश होने से शुभ फलदायक है। जबकि लग्नेश शुक्र का शत्रु होने से सूर्य प्रतिकूल है। चंद्रमा यहां नीच का होगा। ये दोनों ग्रह यहां धन हानि देने वाले हैं। अष्टम स्थन (वृष राशि) पर इनकी दृष्टि जातक के जीवन में रोग उत्पन्न कराने वाली है तथा आयु के लिए अनिष्ट सूचक है।

3. तुला लग्न में चंद्र के साथ मंगल हो तो ‘नीचभंग राजयोग’ एवं ‘महालक्ष्मी योग’ के कारण जातक धनी एवं पराक्रमी होगा।

4. तुला लग्न में चंद्र के साथ बुध हो तो धन का अपव्यय होगा। रोकना कठिन है।

5. तुला लग्न में चंद्र के साथ शुक्र हो तो जातक को परिश्रम का पूरा लाभ मिलेगा।

6. तुला लग्न में चंद्र के साथ शनि हो तो जातक को जीवन में सभी प्रकार के भौतिक सुख मिलेंगे।

7. तुला लग्न में चंद्र के साथ राहु हो तो धन के घड़े में भारी छेद है।

8. तुला लग्न में चंद्र के साथ केतु हो तो धन का अपव्यय होगा। संग्रह कठिन है।

तुला लग्न में चंद्रमा का फलादेश तृतीय स्थान में

यहॉ पर तृतीयस्थ चंद्रमा धनु राशि में होगा जो कि चंद्रमा की मित्र राशि है ऐसा जातक धन-धान्य, पद-प्रतिष्ठा से युक्त, भाई व नौकरों से युक्त पराक्रमी, गुणी व सत्यवक्ता होता है।

दृष्टि – तृतीयस्थ चंद्रमा की दृष्टि भाग्य भवन (मिथुन राशि) पर होगी। फलतः जातक के भाग्य में 24 वर्ष की आयु के बाद दिन प्रतिदिन वृद्धि होती रहेगी।

निशानी – ऐसा जातक कुछ क्रोधी स्वभाव का एवं महत्वकांक्षी होगा।

दशा – चंद्रमा की दशा-अन्नति होगी, पराक्रम बढ़ेगा नौकरी लगेगी।

चंद्रमा का अन्य ग्रहों से सम्बन्ध

1. चंद्र के साथ गुरु होने से राज्येश चंद्रमा की तृतीयेश-षष्ठेश बृहस्पति के साथ युति होगी। बृहस्पति तुलालग्न के लिए पापी व अशुभ फलकर्त्ता है । परन्तु यहां तृतीय स्थान में धनु राशि में बृहस्पति स्वगृही होगा। जहां से वह सप्तम भाव, भाग्य स्थान एवं लाभ स्थान को पूर्ण दृष्टि से देखेगा।

फलतः आपका पराक्रम तेज रहेगा। विवाह के बाद शीघ्र आपका भाग्योदय होगा। आपको गिनती भाग्यशाली लोगों में होगी। इस गजकेसरी योग के कारण आपको व्यापार-व्यवसाय में भी उचित लाभ होता रहेगा।

2. सूर्य चंद्र की धनु राशिगत तृतीय स्थान में यह युति वस्तुतः राज्येश चंद्र की लाभेश सूर्य के साथ युति होगी । तुलालग्न में चंद्रमा राज्येश होने से शुभ फलदायक है। जबकि शुक्र का शत्रु होने के कारण सूर्य प्रतिकूल है। ये दोनों अग्नि संज्ञक राशि में होने से तृतीय स्थान के शुभ फल को नष्ट करेंगे पर इनकी दृष्टि भाग्य स्थान पर शुभ है। ऐसे जातक को भाई-बहन दोनों का सुख रहेगा।

3. चंद्र के साथ मंगल हो तो भाई-बहनों का सुख होगा।

4. चंद्र के साथ बुध हो तो भाई-बहनों का सुख होगा। बहन अधिक होंगी।

5. चंद्र के साथ शुक्र हो तो बहनें अधिक होंगी।

6. चंद्र के साथ शनि हो तो बहनें अधिक होंगी पर सभी सुखी होंगी।

7. चंद्र के साथ राहु हो तो भाई बहनों में विवाद रहेगा।

8. चंद्र के साथ केतु हो तो परिजनों में अविश्वास रहेगा।

तुला लग्न में चंद्रमा का फलादेश चतुर्थ स्थान में

यहां चतुर्थ स्थान में चंद्रमा दिग्बली होकर मकर राशि में होगा जो कि इसकी मित्र राशि है। ऐसा जातक माता-पिता, वृद्धजन के आदर-सत्कार, सेवा भाव में विश्वास रखता है। ऐसा जातक सुनीति एवं न्याय में विश्वास रखता है। जातक राजनीति में हस्तक्षेप रखता है।

दृष्टि – चतुर्थ भाव स्थित चंद्रमा की दृष्टि अपने स्वगृह (कर्क राशि) दशम भाव पर होगी। फलत: जातक को उत्तम मकान एवं वाहन का परिपूर्ण सुख मिलेगा।

निशानी – ऐसा जातक घर की आन्तरिक सजावट पर विशेष ध्यान देता है।

दशा – चंद्रमा की दशा सुख में वृद्धि करेगी। यह दशा उन्नति दायक एवं प्रतिष्ठा वर्धक होगी।

चंद्रमा का अन्य ग्रहों से सम्बन्ध

1. चंद्र के साथ गुरु यह युति वस्तुतः राज्येश चंद्रमा की तृतीयेश-षष्ठेश बृहस्पति के साथ युति होगी। बृहस्पति यहां नीच तथा पापी भी है। परन्तु केन्द्रवर्ती होने से शुभ फलदायक होगा। इन दोनों शुभ ग्रहों की दृष्टि अष्टम भाव राज्य स्थान एवं व्यय भाव पर होगी।

इस युति के कारण आपको माता का सुख मिलेगा, आयु लंबी होगी। धन खर्च बहुत होगा पर खर्चा शुभ होगा। जीवन में कोई कार्य रुका हुआ नहीं रहेगा। अन्तिम सफलता निश्चित है।

2. सूर्य चंद्र की मकर राशिगत चतुर्थ स्थान में यह युति वस्तुतः राज्येश चंद्र की लाभेश सूर्य के साथ युति होगी। तुलालग्न में चंद्रमा राज्येश होने से शुभ फलदायक है। सूर्य यहां शत्रुक्षेत्री होने से अशुभ फलदायक है। ऐसे जातक को माता-पिता की सम्पत्ति मिलेगी। भले ही वह सम्पत्ति ज्यादा मात्रा में न हो। ऐसे जातक के जीवन में वाहन दुर्घटना के द्वारा विकलांग होने का भय रहता है।

3. चंद्र के साथ मंगल हो तो यहा मंगल उच्च का ‘रूचक योग’, ‘महालक्ष्मी योग’ बनायेगा। जातक राजा के समान पृथ्वीपति व धनवान होगा।

4. चंद्र के साथ बुध हो तो भाग्य उत्तम पर माता के निर्णय ज्यादा ठीक नहीं होंगे।

5. चंद्र के साथ शुक्र हो तो परिश्रम का पूरा लाभ मिलेगा। जातक के पास एकाधिक वाहन होंगे।

6. चंद्र के साथ शनि हो तो यहां शनि स्वगृही होने से ‘शश योग’ बनायेगा। जातक राजा के समान पृथ्वीपति एवं धनवान होगा।

7. चंद्र के साथ राहु हो तो वाहन दुर्घटना का भय रहेगा।

8. चंद्र के साथ केतु हो तो वाहन में चोट पहुंचेगी। वाहन खर्चीला होगा।

तुला लग्न में चंद्रमा का फलादेश पंचम स्थान में

यहां पंचम स्थान में चंद्रमा कुंभ राशि का होगा। चंद्रमा की यह स्थिति अपनी राशि में आठवें स्थान पर होने से थोड़ी अशुभ फलदायक है। जातक एकान्त प्रिय तथा थोड़ा ईर्ष्यालु स्वभाव का होता है। ऐसा जातक धनी होता है। दार्शनिक होता है। ज्योतिष एवं अन्य रहस्यमय विद्याओं का ज्ञाता होता है।

दृष्टि – पंचमस्थ चंद्रमा की दृष्टि एकादश भाव (सिंह राशि) पर होगी। फलतः जातक को रहस्यमय विद्याओं व व्यापार से लाभ होगा।

निशानी – जातक को कन्या सन्तति अधिक होती है।

दशा – चंद्रमा की दशा-अन्तर्दशा मध्यम फल देगी।

चंद्रमा का अन्य ग्रहों से सम्बन्ध

1. तुला लग्न के पंचम स्थान में चंद्र के साथ गुरु की युति वस्तुत: राज्येश चंद्रमा की तृतीयेश-षष्ठेश बृहस्पति के साथ युति होगी। बृहस्पति यहां पापी व अशुभ ग्रह होते हुए भी आपको शुभ सन्तति देगा। इसकी दृष्टि भाग्य भाव, लाभ भवन एवं लग्न स्थान पर है। फलतः आपके भाग्य का उदय किसी की मदद से होगा। व्यापार व्यवसाय में आपको समय-समय लाभ पर मिलता रहेगा। आपकी उन्नति चहुंमुखी होगी। एक साथ अनेक कार्यों से आपको लाभ होगा।

2. सूर्य चंद्र की कुंभ राशिगत पंचम स्थान में यह युति वस्तुतः राज्येश चंद्र की लाभेश सूर्य के साथ युति होगी। तुलालग्न में चंद्रमा राज्येश होने से शुभ फलदायक है। सूर्य यहां शत्रुक्षेत्री होने से अशुभ फलदायक है। ऐसे जातक की सन्तति का क्षरण होता है या मृत सन्तति हाथ लगती है।

3. चंद्र के साथ मंगल हो तो सन्तति का गर्भपात होगा।

4. चंद्र के साथ बुध हो तो शल्य चिकित्सा होगी खासकर पत्नी की।

5. चंद्र के साथ शुक्र हो तो पत्नी की शल्य चिकित्सा, सिजेरियन चाइल्ड सम्भव है।

6. चंद्र के साथ शनि हो तो शनि यहां त्रिकोण में स्वगृही होने से राजयोग बनता है।

7. चंद्र के साथ राहु हो तो राहु यहां मानसिक उन्माद उत्पन्न करेगा। सन्तान में बाधा होगी।

8. चंद्र के साथ केतु हो तो कन्या सन्तति ऑपरेशन से होगी।

तुला लग्न में चंद्रमा का फलादेश षष्टम् स्थान में

यहां षष्ट स्थान में चंद्रमा मीन राशि का होगा। चंद्रमा छठे जाने से ‘राजभंग योग’ बनेगा। जीवन में नौकरी, व्यापार, रोजी-रोजगार के लिए संघर्ष की स्थिति रहेगी। जातक मानसिक परेशानी व तनाव में रहेगा। ऐसा जातक पिता सुख से हीन व शत्रुओं से तंग रहता है।

दृष्टि – छठे भाव में स्थित चंद्रमा की दृष्टि व्यय भाव (कन्या राशि) पर रहेगी। फलत: जातक खर्ची के प्रति चिन्तित रहेगा।

निशानी – जातक के चतुर होने पर भी धन की कमी रहती है।

दशा – चंद्रमा की दशा-अन्तर्दशा रोग व शत्रुओं के प्रति सावधानी रखने की है।

चंद्रमा का अन्य ग्रहों से सम्बन्ध

1. चंद्र के साथ गुरु की युति। बृहस्पति यहां स्वगृही होगा। तथा उसकी दृष्टि दशम भाव व्यय स्थान एवं धन स्थान पर होगी। फलत: रोग का नाश होगा। यहां पर क्रमश: ‘पराक्रमभंग योग’ एवं ‘राज्यभंग योग’ की सृष्टि दुःखद है। कोई अन्यतम मित्र जिस पर आप ज्यादा भरोसा करते हैं, धोखा देगा। सरकार से कोर्ट कचहरी से दण्ड भी मिल सकता है, सावधान रहें। फिर भी कुल मिलाकर आपको इस योग के कारण कोई गंभीर नुकसान नहीं होगा। प्रतिष्ठा बनी रहेगी।

2. सूर्य चंद्र की मकर राशिगत चतुर्थ स्थान में युति वस्तुतः राज्येश चंद्र की लाभेश सूर्य के साथ युति होगी। चंद्रमा खड्डे में जाने से ‘राजभंग योग’ तथा सूर्य के खड्डे में जाने से ‘लाभभंग योग’ बना। इन दोनों ग्रहों की यह स्थिति निकृष्ट है। जातक को राज्य प्राप्ति (सरकारी नौकरी) एवं व्यापार व्यवसाय में लाभ की प्राप्ति हेतु जीवन पर्यन्त संघर्ष करना पड़ेगा।

3. चंद्र के साथ मंगल हो तो पत्नी व गृहस्थ सुख में विवाद होगा।

4. चंद्र के साथ बुध हो तो भाग्योदय में रुकावट होगी।

5. चंद्र के साथ में शुक्र हो तो प्रारम्भ में परिश्रम का फल नहीं पर अन्तिम सफलता जोरदार होगी।

6. चंद्र के साथ शनि हो तो सुख-संसाधनों व सन्तति प्राप्ति में बाधा रहेगी।

7. चंद्र के साथ राहु हो तो रोग, संघर्ष में मुक्ति नहीं मिलेगी ।

8. चंद्र के साथ केतु हो तो संघर्ष में वृद्धि होती रहेगी।

तुला लग्न में चंद्रमा का फलादेश

तुला लग्न में चंद्रमा का फलादेश सप्तम स्थान में

यहां सप्तम भाव चंद्रमा मेष राशि अपनी मित्र राशि में हैं। चंद्रमा की यह स्थिति स्वराशि में दशम अर्थात् दशम भाव में होने से महत्वपूर्ण है। ऐसे जातक सुन्दर, आकर्षक व प्रभावशाली व्यक्तित्व के धनी होते हैं। जीवन साथी भी प्रभावशाली एवं सुन्दर होता है। जातक माता-पिता, राज्य, नौकरी-व्यवसाय व सन्तान से सुखी होता है।

दृष्टि – चंद्रमा की दृष्टि लग्न भाव (तुला राशि) पर होने से जातक शीघ्र उन्नति करेगा।

निशानी – जातक सत्य खोजी व अन्वेषण (अनुसंधान) में रुचि रखता है।

दशा – चंद्रमा की दशा-अन्तर्दशा में जातक उन्नति, राजपद, प्रतिष्ठा एवं पिता की सम्पत्ति को प्राप्त करता है।

चंद्रमा का अन्य ग्रहों से सम्बन्ध

1. चंद्र के साथ गुरु युति वस्तुतः राज्येश चंद्रमा की तृतीयेश-षष्ठेश बृहस्पति के साथ युति होगी। यहां दोनों केन्द्रस्थ होने से ‘यामिनीनाथ योग’ की सृष्टि कर रहे हैं। इन दोनों शुभ ग्रहों की दृष्टि लाभ स्थान, लग्न स्थान एवं पराक्रम स्थान पर होगी।

फलतः आपके कारोबार में आपको तरक्की उन्नति मिलेगी। व्यापार व्यवसाय में समय-समय पर धन की प्राप्ति होती रहेगी। और पराक्रम से मित्र सर्किल, समाज में कीर्ति व यश की प्राप्ति होगी। बृहस्पति व चंद्रमा दोनों की दशाएं शुभ फल देंगी।

2. सूर्य चंद्र की मेष राशिगत सप्तम स्थान में युति वस्तुतः राज्येश चंद्र की लाभेश सूर्य के साथ युति होगी। सूर्य यहां उच्च का है अतः ‘रविकृत राजयोग’ बना रहा है। चंद्रमा राज्येश होकर उच्चभिलाषी है। जातक महत्वाकांक्षी होगा एवं राजातुल्य ऐश्वर्य व राजलक्ष्मी को भोगेगा।

3. चंद्र के साथ मंगल हो तो ‘महालक्ष्मी योग के कारण धन की बरकत रहेगी।

4. चंद्र के साथ बुध हो तो भाग्य बलवान रहेगा पर निर्णय विवादास्पद होंगे।

5. चंद्र के साथ शुक्र हो जातक की उन्नति होती रहेगी।

6. चंद्र के साथ शनि हो तो जातक को सन्तान व शिक्षा का सुख मिलेगा।

7. चंद्र के साथ राहु हो तो पति-पत्नी में समर्पण की भावना का अभाव रहेगा।

8. चंद्र के साथ केतु हो तो पति-पत्नी में मनमुटाव रहेगा।

तुला लग्न में चंद्रमा का फलादेश अष्टम स्थान में

यहां अष्टमस्थ चंद्रमा वृष राशि का होगा। यह चंद्रमा की उच्च राशि है। इसके तीन अंशों तक चंद्रमा परमोच्च का होता है। चंद्रमा अष्टम में जाने से ‘राजभंग योग’ की सृष्टि हुई। उच्च के चंद्रमा के कारण जातक दीर्घजीवी होगा। पाराशर ऋषि के अनुसार जातक कर्महीन एवं पर निन्दक होगा। जातक को धन की कमी चिन्तित करती रहेगी।

दृष्टि – अष्टम भावगत चंद्रमा की दृष्टि धन भाव (वृश्चिक राशि) पर होगी। फलत: जातक खर्च की अधिकता को लेकर चिन्तित रहेगा।

निशानी – जातक को माता-पिता के सुख में न्यूनता रहेगी।

दशा – चंद्रमा की दशा-अन्तर्दशा मिश्रित फल देगी।

चंद्रमा का अन्य ग्रहों से सम्बन्ध

1. चंद्र के साथ गुरु । यहां चंद्रमा उच्च का होगा तथा दोनों ग्रह की दृष्टि व्यय भाव धन स्थान एवं सुख स्थान पर होगी। फलतः खर्च ज्यादा होगा। रुपयों की बरकत नहीं होगी तथा सुख प्राप्ति में कुछ न कुछ बाधा आती रहेगी। यहां बृहस्पति के कारण पराक्रमभंग योग एवं चंद्रमा के कारण राज्यभंग योग भी बन रहा है। इसका प्रभाव भी 40 प्रतिशत जातक के जीवन पर पड़ेगा अतः सरकारी अधिकारियों से न उलझें तथा मित्रों के साथ व्यवहार सही रखें।

2. चंद्र-सूर्य की युति। सूर्य-चंद्र की वृष राशिगत अष्टम स्थान में यह युति वस्तुतः राज्येश चंद्र की लाभेश सूर्य के साथ युति होगी। सूर्य के खड्डे में गिरने से ‘राजभंग योग’ बना। इन दोनों ग्रहों की यह स्थिति निकृष्ट है। हालांकि चंद्रमा यहां उच्च का होगा। जातक को राज्य (सरकारी नौकरी) प्राप्ति एवं व्यापार व्यवसाय में लाभ की प्राप्ति हेतु जीवन भर संघर्ष करना पड़ेगा।

3. तुला लग्न में चंद्र के साथ मंगल हो तो धन का अभाव रहेगा। गृहस्थ सुख में बाधा रहेगी।

4. तुला लग्न में चंद्र के साथ बुध हो तो भाग्य में रुकावट पर अन्तिम सफलता मिलेगी।

5. चंद्र के साथ शुक्र हो तो परिश्रम का लाभ विलम्ब से मिलेगा।

6. चंद्र के साथ शनि हो तो शिक्षा व सन्तति में बाधा होगी।

7. चंद्र के साथ राहु हो तो गुप्त रोग की सम्भावना तथा मानसिक पीड़ा रहेगी।

8. चंद्र के साथ केतु हो तो जातक को मानसिक सन्ताप रहेगा।

तुला लग्न में चंद्रमा का फलादेश नवम स्थान में

यहां नवम भाव गत चंद्रमा मिथुन राशि में होगा। जो कि चंद्रमा की शत्रु राशि है। यहां दशमेश चंद्रमा अपनी राशि में द्वादश भाव में स्थित होकर जातक के जीवन में गौरव एवं प्रतिष्ठाशाली रोजगार की कमी दिलवाता है। पाराशर ऋषि के अनुसार ऐसा जातक राजकुलोत्पन्न राजा या राजपुरुष होता है। परन्तु पूर्वजों की प्रतिष्ठा कायम नहीं रख पाता।

दृष्टि – नवम भावगत चंद्रमा की दृष्टि तृतीय स्थान (धनु राशि) पर होगी फलत: जातक प्रबल पराक्रमी होगा।

निशानी – जातक का जन्म उच्चकुल में होगा।

दशा – चंद्रमा की दशा-अन्तर्दशा में जातक शक्ति सम्पन्न होगा तथा राजपद को प्राप्त करेगा।

चंद्रमा का अन्य ग्रहों से सम्बन्ध

1. चंद्र के साथ गुरु की युति वस्तुतः राज्येश चंद्रमा की तृतीयेश-षष्ठेश बृहस्पति के साथ युति होगी। चंद्रमा शत्रुक्षेत्री है तथा बृहस्पति पापी है। इन दोनों शुभ ग्रहों की दृष्टि लग्न स्थान, पराक्रम स्थान एवं पंचम भाव पर है फलत: जातक का भाग्योदय 24 वर्ष की आयु में हो जाएगा जातक की उन्नति, भाग्योदय थोड़े संघर्ष के बाद होगा। जातक प्रजावान होगा। संघर्ष के बाद विजय मिलेगी। जीवन सफल रहेगा।

2. सूर्य चंद्र की मिथुन राशिगत नवम स्थान में युति वस्तुतः राज्येश चंद्र की लाभेश सूर्य के साथ युति होगी। राज्येश चंद्रमा यहां शत्रु क्षेत्री है। सुखेश सूर्य का भाग्य स्थान में बैठना शुभ है। जातक के भाग्योदय को लेकर संघर्ष की स्थिति रहेगी। फिर भी जातक पराक्रमी व धनी होगा।

3. चंद्र के साथ मंगल हो तो जातक धनी होगा।

4. चंद्र के साथ बुध हो तो भाग्य में वृद्धि होती रहेगी।

5. चंद्र के साथ शुक्र हो तो परिश्रम का लाभ बराबर मिलेगा।

6. चंद्र के साथ राहु हो तो धन प्राप्ति हेतु संघर्ष रहेगा।

7. चंद्र के साथ केतु हो तो भाग्य में रुकावटें आएंगी।

8. चंद्र के साथ शनि हो तो जातक को शिक्षा व सन्तति का लाभ मिलेगा।

तुला लग्न में चंद्रमा का फलादेश दशम स्थान में

दशम भावगत चंद्रमा यहां स्वगृही होगा। यहां ‘यामिनीनाथ योग’ ‘पद्यसिहांसन योग’ बनेगा। ऐसा जातक उत्तम नौकरी व्यवसाय को प्राप्त करता है। माता-पिता के सुख से युक्त माता-पिता की सम्पत्ति को प्राप्त करता है। गुरु की भक्ति व शक्ति को प्राप्त करता है। जातक धनी व यशस्वी होता है।

दृष्टि – दशमस्थ चंद्रमा की दृष्टि चतुर्थ भाव (मकर राशि) पर होगी फलतः जातक को माता की सम्पत्ति मिलेगी। माता का घर, ननिहाल समृद्ध होगा।

निशानी – जातक की माता दीर्घायु होती है।

दशा – चंद्रमा की दशा-अन्तर्दशा में जातक अद्वितीय कीर्ति, धन, यश व प्रतिष्ठा को प्राप्त करेगा।

चंद्रमा का अन्य ग्रहों से सम्बन्ध

1. दशम स्थान में चंद्र के साथ गुरु की युति वस्तुतः राज्येश चंद्रमा की तृतीयेश-षष्ठेश बृहस्पति के साथ युति होगी। यहां चंद्रमा स्वगृही का एवं बृहस्पति उच्च का होगा। ‘किम्बहुना योग’ के कारण यह इस योग की सर्वोत्तम स्थिति है। इन दोनों शुभ ग्रहों की दृष्टि व धन स्थान, सुख स्थान एवं षष्टम भाव पर है।

फलतः धन की प्राप्ति 24 वर्ष की आयु से होनी शुरु हो जाएगी। जातक को उत्तम वाहन की प्राप्ति होगी। मां का सुख मिलेगा एवं जातक अपने शत्रुओं का नाश करने में पूर्ण सक्षम होगा।

2.  सूर्य चंद्र की कर्क राशिगत दशम स्थान में युति वस्तुतः राज्येश चंद्र की लाभेश सूर्य के साथ युति होगी। चंद्रमा यहां स्वगृही होकर ‘चंद्रकृत राजयोग’ बनायेगा । सूर्य केन्द्रवर्ती होकर स्वगृहाभिलाषी होगा। ऐसा जातक राजातुल्य प्रतापी एवं ऐश्वर्यवान होगा।

3. चंद्र के साथ मंगल हो तो ‘नीचभंग राजयोग’ के कारण जातक महाधनी होगा। पराक्रमी होगा एवं बड़ी भू-सम्पत्ति का स्वामी होगा।

4. चंद्र के साथ बुध हो तो जातक भाग्यशाली होगा पर भाग्योदय विलम्ब से होगा।

5. चंद्र के साथ शुक्र हो तो जातक आगे बढ़ेगा। जातक राजातुल्य ऐश्वर्यशाली होगा। सरकारी काम फटाफट होंगे।

6. चंद्र के साथ शनि हो तो जातक के पास एकाधिक वाहन व बंगले होंगे।

7. चंद्र के साथ राहु हो तो सरकारी काम में बाधा, राजनीति के लाभ पर पीठ पीछे बदनामी होगी।

8. चंद्र के साथ केतु हो तो जातक की उन्नति में छोटी-छोटी बाधाए आती रहेंगी।

तुला लग्न में चंद्रमा का फलादेश एकादश स्थान में

यहां एकादश भाव में चंद्रमा सिंह राशि में होगा जो कि उसके मित्र की राशि है। ऐसे जातक को पिता, राज्य, नौकरी-व्यवसाय से बड़े भाई से धन व यश की प्राप्ति होती है। ऐसा जातक धन-पुत्र पौत्रादि से युक्त होकर दीर्घजीवी होता हैं।

दृष्टि – सिंहस्थ चंद्रमा की दृष्टि पंचम भाव (कुंभ राशि) पर होगी फलतः विद्या, बुद्धि एवं संतान के उत्तम सुख की प्राप्ति होती है।

निशानी – जातक व्यवहार कुशल होगा तथा दूसरों से अपना काम निकलवाने में माहिर होगा।

दशा – चंद्रमा की दशा-अन्तर्दशा में जातक को यथेष्ट लाभ की प्राप्ति होती रहेगी।

चंद्रमा का अन्य ग्रहों से सम्बन्ध

1. चंद्र के साथ गुरु की युति। यहां बैठकर दोनों शुभ ग्रह पराक्रम भाव, पंचम स्थान एवं सप्तम भाव को पूर्ण दृष्टि से देखेंगे फलतः जातक का पराक्रम बढ़ेगा। उसे पुत्र सन्तति की प्राप्ति होगी। पत्नी सुन्दर मिलेगी। जातक का वैवाहिक जीवन सुखमय होगा।

2. सूर्य चंद्र की सिंह राशिगत एकादश स्थान में युति वस्तुतः राज्येश चंद्र की लाभेश सूर्य के साथ युति होगी। यहां सूर्य स्वगृही होकर ‘रविकृत राजयोग’ बनायेगा व उत्तम सन्तति देगा। जातक राजातुल्य प्रतापी एवं ऐश्वर्यवान होगा।

3. चंद्र के साथ मंगल हो तो जातक उद्योगपति व धनी होगा।

4. चंद्र के साथ बुध हो तो जातक भाग्यशाली व धनी होगा।

5. चंद्र के साथ शुक्र हो तो जातक उन्नति पथ पर आगे बढ़ता जाएगा।

6. चंद्र के साथ शनि हो जातक महाधनी होगा। सन्तति उत्तम होगी।

7. चंद्र के साथ राहु हो तो लाभांश में बाधा रहेगी।

8. चंद्र के साथ केतु हो तो आध्यात्मिक सुख में वृद्धि पर भौतिक सुख में संघर्ष रहेगा।

तुला लग्न में चंद्रमा का फलादेश द्वादश स्थान में

यहां द्वादश स्थान में चंद्रमा कन्या राशि अपनी शत्रु राशि में होगा। ऐसा जातक प्रायः नेत्र रोगी होता है, खासकर बांयी आंख कमजोर होगी। ‘राजभंग योग’ के कारण जातक मान-प्रतिष्ठा, नौकरी-व्यवसाय पिता राजनीति, शासन व कोर्ट-कचहरी द्वार कष्ट अपमान व परेशानियों का अनुभव करता है।

दृष्टि – द्वादश चंद्रमा की दृष्टि छठे भाव (मीन राशि) पर होगी। फलत: जातक रोग व शत्रु पक्ष से पीड़ित रहेगा।

निशानी – व्यक्ति चतुर होने पर भी सदा चिन्तित रहता है, पर यात्राओं में धन अर्जित करने में कुशल होता है। विदेश यात्रा करता है।

दशा – चंद्रमा की दशा-अन्तर्दशा में जातक शासन से राजनीति से सम्बन्धित कार्यों में कष्ट पाता है।

चंद्रमा का अन्य ग्रहों से सम्बन्ध

1. चंद्र के साथ गुरु की युति। यहां बैठकर यह दोनों शुभ ग्रह चतुर्थ भाव, षष्टम स्थान एवं अष्टम भाव को पूर्ण दृष्टि से देखेंगे तथा ‘पराक्रमभंग योग’ एवं ‘राजभंग योग’ की सृष्टि भी करेंगे फलतः गजकेसरी योग की यहां ज्यादा सार्थकता नहीं है। फिर भी सुख में वृद्धि होगी। शत्रुओं का नाश होगा तथा जातक का दुर्घटनाओं से बचाव होता रहेगा। जातक को संघर्ष के बाद सफलताएं मिलती रहेंगी जो कि सफल जीवन के लिए बहुत जरूरी है।

2. सूर्य चंद्र की कन्या राशिगत द्वादश स्थान में यह युति वस्तुतः राज्येश चंद्र की लाभेश सूर्य के साथ युति होगी। चंद्रमा बारहवें होने से ‘राजभंग योग’ तथा सूर्य का बारहवां होने से ‘लाभभंग योग’ की सृष्टि होती है। इन दोनों ग्रहों की यह स्थिति निकृष्ट है। जातक को राज्य (सरकारी नौकरी) की प्राप्ति हेतु एवं व्यापार-व्यवसाय में लाभ की प्राप्ति हेतु जीवन भर संघर्ष करना पड़ेगा।

3. चंद्र के साथ मंगल हो तो इस युति के कारण पारिवारिक सुखों में हानि होगी।

4. चंद्र के साथ बुध हो तो यहां बुध उच्च का होग। जातक का भाग्य यात्राओं से चमकेगा। ट्रांसपोर्ट, ट्रेवल ऐजेन्सी व कोरियर के व्यवसाय में लाभ होगा।

5. चंद्र के साथ शुक्र हो तो जातक के अन्य स्त्रियों के साथ यौन सम्बन्ध, कभी लाभ कभी हानि की स्थिति रहेगी। शुक्र यहां नीच का होने से गुप्त रोगों की शल्य चिकित्सा भी सम्भव है।

6. चंद्र के साथ शनि हो तो जातक को शिक्षा एवं सन्तान सुख में बाधा महसूस होगी।

7. चंद्र के साथ राहु हो तो यहां यह युति शुभ है। जातक ऊर्जावान होगा व देश-विदेश में ख्याति अर्जित करेगा।

8. चंद्र के साथ केतु हो तो जातक ईर्ष्यालु व झगड़ालू स्वभाव का होगा।

Categories: Uncategorized

0 Comments

Leave a Reply

Avatar placeholder

Your email address will not be published. Required fields are marked *