तुला लग्न में सूर्य का फलादेश

तुला लग्न में सूर्य लाभेश है। यह लग्नेश शुक्र का शत्रु होने से यहां पाप फलप्रद है।

तुला लग्न में सूर्य का फलादेश प्रथम भाव में

तुला राशि सूर्य की नीच राशि है। यहां सूर्य 10 अंशों तक परम नीच का होता है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार तुला लग्न में यदि सूर्य, बुध और शुक्र लग्नस्थ हो तो जातक भाग्यशाली व धनवान होता है।

यहां सूर्य अपनी राशि से तीसरे स्थान पर है अतः जातक पराक्रमी होगा, पर थोड़ा रूखा एवं उष्ण स्वभाव का होगा तुला राशिगत सूर्य की दृष्टि सातवें भाव (मेष राशि) पर होगी जो कि उसकी उच्च राशि है फलत: जातक का ससुराल सम्पन्न व प्रतिष्ठित होगा। जातक स्वयं प्रभावशाली व्यक्तित्व का धनी होगा।

दशा – सूर्य की दशा-अन्तर्दशा लाभकारी व उन्नतिदायक साबित होगी।

सूर्य का अन्य ग्रहों से सम्बन्ध

1. सूर्य + बुध – प्रथम स्थान में तुला राशिगत यह युति वस्तुतः लाभेश सूर्य की भाग्येश-खर्चेश बुध के साथ युति कहलाएगी। सूर्य यहां नीच का है। यहां बैठकर दोनों ग्रह सप्तम भाव को पूर्ण दृष्टि से देखेंगे। जहां सूर्य उच्च राशि स्थित है।

फलत: जातक बुद्धिमान एवं भाग्यशाली होगा। विवाह के तत्काल बाद जातक का भाग्योदय होगा। बुध के लग्न में स्थित होने में ‘कुलदीपक योग’ बना। जातक समाज का प्रतिष्ठित व्यक्ति होगा। इस कारण अपनी जाति कुटुम्ब परिवार का नाम दीपक के समान रोशन करेगा।

2. सूर्य + चंद्र की तुला राशिगत प्रथम स्थान में युति वस्तुतः दशमेश चंद्र की लाभेश सूर्य के साथ युति कहलाएगी। तुला लग्न में चंद्रमा राज्येश होने से शुभ फलदायक है, जबकि लग्नेश शुक्र का शत्रु होने से सूर्य अशुभ फलदायक है। सूर्य लग्न में नोच राशि का भी है जातक को सरकारी नौकरी नहीं मिलेगी। फिर भी जातक पराक्रमी होगा । जातक की पत्नी सुन्दर होगी।

3. सूर्य + मंगल – लाभेश सूर्य के साथ धनेश, सप्तमेश मंगल, ससुराल से लाभ की प्राप्ति, व्यापार से लाभ की प्राप्ति कराने में सहायक है।

4. सूर्य + बृहस्पति – लाभेश सूर्य की षष्टेश (पापी) बृहस्पति के साथ युति कष्टदायक है।

5. सूर्य + शुक्र – यहां ‘नीचभंग राजयोग’ बना। क्योंकि शुक्र स्वगृही है। ऐसा जातक राजातुल्य ऐश्वर्य को भोगेगा। जातक बुद्धिमान होगा एवं उच्चविद्या प्राप्त करेगा।

6. सूर्य + शनि – यहां ‘नीचभंग राजयोग’ बना। क्योंकि शनि उच्च का है। ऐसा जातक राजातुल्य ऐश्वर्य को भोगेगा। यहां शनि राजयोग कारक होने से यह युति बहुत लाभप्रद है।

7. सूर्य + राहु – राहु सूर्य के तेज को नष्ट करता है। जातक निरंकुश होगा।

8. सूर्य + केतु – केतु के साथ सूर्य निर्बल होगा।

तुला लग्न में सूर्य का फलादेश द्वितीय स्थान में

तुला लग्न के द्वितीय स्थान में सूर्य वृश्चिक राशि में है। वृश्चिक राशि सूर्य की मित्र राशि है। सूर्य लाभेश होकर धन स्थान में होने से धन संग्रह में सहायक। ऐसा जातक सब कार्य में सिद्धि पाने वाला है।

दृष्टि – सूर्य की दृष्टि अष्टम भाव (वृष राशि) पर होने से जातक निरोगी होगा एवं कर्मशील होगा। कार्य करने में भरपूर विश्वास रखेगा।

दशा – सूर्य की दशा जातक को धनवान बनाएगी।

सूर्य का अन्य ग्रहों से सम्बन्ध

1. सूर्य + बुध – द्वितीय स्थान में वृश्चिक राशिगत यह युति वस्तुतः लाभेश सूर्य की भाग्येश-खर्चेश बुध के साथ युति कहलाएगी। यहां बैठकर दोनों ग्रह अष्टम भाव को देखेंगे। फलतः जातक बुद्धिशाली व धनवान होगा। जातक में रोग व शत्रु से लड़ने की शक्ति होगी। जातक भाग्यशाली भी होगा तथा समाज के लब्धप्रतिष्ठित व्यक्तियों में जातक का नाम होगा।

2. सूर्य + चंद्र – सूर्य-चंद्र की वृश्चिक राशिगत द्वितीय स्थान में यह युति वस्तुतः दशमेश चंद्र की लाभेश सूर्य के साथ युति कहलाएगी। तुलालग्न में चंद्रमा राज्येश होने से शुभ फलदायक है, जबकि लग्नेश शुक्र का शत्रु होने के कारण सूर्य प्रतिकूल है। चंद्रमा यहां नीच का होगा। ये दोनों ग्रह यहां धन हानि देने वाले हैं। अष्टम स्थान (वृष राशि) पर इनकी दृष्टि जातक के जीवन में रोग उत्पन्न कराने वाली है तथा आयु के लिए अनिष्ट सूचक है।

3. सूर्य + मंगल – मंगल यहां स्वगृही होगा। फलतः जातक को ससुराल से धन लाभ होगा। जातक को व्यापार से लाभ होगा। जातक धनी होगा।

4. सूर्य + बृहस्पति – जातक पराक्रमी होगा पर धीमी गति से कमाएगा।

5. सूर्य + शुक्र – जातक धनी होगा एवं संघर्षशील रहेगा।

6. सूर्य + शनि – जातक बहुत पैसे वाला होगा पर भाग्योदय पिता की मृत्यु के बाद होगा।

7. सूर्य + राहु – धन की स्थिति कष्टदायक होगी।

8. सूर्य + केतु – धन को लेकर संघर्ष बना रहेगा।

तुला लग्न में सूर्य का फलादेश तृतीय स्थान में में

तुला लग्न के तृतीय स्थान में सूर्य धनु का होगा। यह इसकी मित्र राशि है। ऐसे व्यक्ति परिश्रमी एवं निर्भीक होते हैं। यहां सूर्य की स्थिति अपनी सिंह राशि से पंचम स्थान पर होने से जातक को धन पद प्रतिष्ठा, वीरता, पराक्रम एवं उत्तम भवन की प्राप्ति कराता है।

दृष्टि – धनु राशिगत सूर्य की दृष्टि भाग्य स्थान (मिथुन राशि) पर होगी। फलत: जातक का भाग्योदय 32 वर्ष की आयु में होगा।

दशा – सूर्य की दशा उन्नतिदायक रहेगी।

सूर्य का अन्य ग्रहों से सम्बन्ध

1. सूर्य + बुध – तृतीय स्थान में धनु राशिगत यह युति वस्तुतः लाभेश सूर्य की भाग्येश-खर्चेश बुध के साथ युति कहलाएगी। यहां बैठकर दोनों ग्रह नवम भाव को देखेंगे। फलतः जातक बुद्धिमान पराक्रमी एवं भाग्यशाली होगा। जातक का भाग्योदय शीघ्र होगा। जातक को जीवन में परिजनों व मित्रों का सहयोग मिलता रहेगा। मित्रों के सहयोग से जातक का भाग्योदय होगा। जातक समाज का लब्ध प्रतिष्ठित व्यक्ति होगा।

2. सूर्य + चंद्र – सूर्य चंद्र की धनु राशिगत तृतीय स्थान में यह युति वस्तुतः राज्येश चंद्र की लाभेश सूर्य के साथ युति कहलाएगी। तुला लग्न में चंद्रमा राज्येश होने से शुभ फलदायक है, जबकि शुक्र का शत्रु होने के कारण सूर्य प्रतिकूल है। ये दोनों अग्नि संज्ञक राशि में होने से तृतीय स्थान के शुभ फल को नष्ट करेंगे पर इनकी दृष्टि भाग्य स्थान पर शुभ है। ऐसे जातक को भाई-बहन दोनों का सुख रहेगा।

3. सूर्य + मंगल – मित्रों से भाईयों की मदद से बिगड़े कार्य सुधरेंगे।

4. सूर्य + बृहस्पति – जातक को बड़े भाई का सुख मिलेगा।

5. सूर्य + शुक्र – मित्रों से लाभ रहेगा।

6. सूर्य + शनि – जातक के मित्र सम्पन्न होंगे। पुत्र उत्पत्ति के बाद जातक का पराक्रम बढ़ेगा। छोटे-बड़े भाईयों की मृत्यु के लिए ग्रह स्थिति जिम्मेदार है।

7. सूर्य + राहु – भाईयों से धोखा होगा। राज्यपक्ष से भी धोखा होगा।

8. सूर्य + केतु – मित्र दगा देंगे। बड़े भाई की मृत्यु हेतु यह स्थिति जिम्मेदार है।

तुला लग्न में सूर्य का फलादेश चतुर्थ स्थान में

चतुर्थ स्थान में सूर्य मकर राशि में होने से शत्रुक्षेत्री होगा। इस स्थान में सूर्य अपनी राशि में छठे स्थान पर होने से सुखों में कमी कराएगा। ऐसे जातक को माता के सुख में कमी व भूमि सुख में विवाद की स्थिति रहती है। जातक को भौतिक सुखों की प्राप्ति हेतु काफी संघर्ष करना पड़ेगा।

दृष्टि – मकर राशिगत सूर्य की दृष्टि राज्य स्थान (कर्क राशि) पर होगी। फलत: जातक को साधारण नौकरी मिलेगी।

निशानी – जातक को उच्च रक्तचाप होगा या किराए के मकान में रहेगा। दशा सूर्य की दशा संघर्षमय रहेगी।

सूर्य का अन्य ग्रहों से सम्बन्ध

1. सूर्य + बुध – सूर्य यहां पर शत्रुक्षेत्री होगा। बुध केन्द्र में होने से ‘कुलदीपक योग’ बना। यहां बैठकर दोनों ग्रह दशम भाव को देखेंगे। फलतः जातक बुद्धिशाली होगा। उसे माता की संपत्ति मिलेगी। उसे उत्तम वाहन सुख, उत्तम मकान का सुख भी मिलेगा। जातक समाज का लब्ध प्रतिष्ठित व्यक्ति होगा।

2. सूर्य + चंद्र – सूर्य-चंद्र की मकर राशिगत चतुर्थ स्थान में यह युति वस्तुतः राज्येश चंद्र की लाभेश सूर्य के साथ युति कहलाएगी। तुला लग्न में चंद्रमा राज्येश होने से शुभ फलदायक है पर सूर्य यहां शत्रुक्षेत्री होने से अशुभ फलदायक है। ऐसे जातक को पिता की सम्पत्ति मिलेगी। भले ही वह सम्पत्ति ज्यादा मात्रा में न हो। ऐसे जातक के जीवन में वाहन दुर्घटना के द्वारा विकलांग होने का भय रहता है।

3. सूर्य + मंगल – यहां मंगल उच्च का होने से सूर्य बलवान होकर ‘राजयोग’ बनायेगा। ‘रूचक योग’ के कारण जातक धनवान होगा।

4. सूर्य + बृहस्पति – षष्टेश गुरु यहां नीच का होगा। फलत: अशुभ फलों में वृद्धि होगी।

5. सूर्य + शुक्र – लग्नेश केन्द्र में होने से ‘कुलदीपक योग’ बनेगा परन्तु पाप ग्रह के साथ होने से सुख प्राप्ति हेतु संघर्ष की स्थिति रहेगी।

6. सूर्य + शनि – शनि यहां स्वगृही होगा। ‘शश योग’ बनाएगा। जातक राजातुल्य ऐश्वर्य भोगेगा पर वाहन दुर्घटना का भय रहेगा।

7. सूर्य + राहु – जातक मस्तिष्क रोगी, एकान्तवासी, पैतृक सम्पत्ति से हीन होगा।

8. सूर्य + केतु – जातक को पिता का सुख कम मिलेगा। सिर दर्द की शिकायत रहेगी।

तुला लग्न में सूर्य का फलादेश पंचम स्थान में

यहां पंचमस्थ सूर्य कुंभ राशि में शत्रुक्षेत्री होगा। परन्तु अपनी सिंह राशि से सातवें स्थान पर होकर अपने ही घर लाभ स्थान को पूर्ण दृष्टि से देखेगा। फलतः जातक को धन, पद-प्रतिष्ठा, मान-सम्मान, मकान व संतान का सुख मिलेगा। ऐसे जातक के पुत्र सुखी एवं विद्वान होते हैं। जातक स्वयं सुशील, धर्मात्मा एवं सुखी होता है।

निशानी – पुत्र सन्तति जरूर होगी।

दशा – सूर्य की दशा-अन्तर्दशा शुभ फल देगी।

सूर्य का अन्य ग्रहों से सम्बन्ध

1. सूर्य + बुध – पंचम स्थान में कुम्भ राशिगत यह युति वस्तुतः लाभेश सूर्य की भाग्येश-खर्चेश बुध के साथ युति कहलाएगी। सूर्य यहां पर शत्रुक्षेत्री होगा। यहां बैठकर दोनों ग्रह लाभ स्थान को देखेंगे। जो कि कन्या सन्तति की अधिकता देगा पर सूर्य की कृपा से एक पुत्र भी होगा। जातक समाज का लब्ध प्रतिष्ठित व्यक्ति होगा।

2. सूर्य + चंद्र – सूर्य चंद्र की कुंभ राशिगत पंचम स्थान में यह युति वस्तुतः राज्येश चंद्र की लाभेश सूर्य के साथ युति कहलाएगी । ऐसे जातक सन्तति का क्षरण होता है या मृत सन्तति हाथ लगती है।

3. सूर्य + मंगल – मंगल साथ होने से गुप्त शत्रु पीड़ा पंहुचाएंगे।

4. सूर्य + बृहस्पति – एकाध पुत्र सन्तति की अकाल मृत्यु सम्भव है।

5. सूर्य + शुक्र – प्रथम सन्तति के बाद उन्नति होगी।

6. सूर्य + शनि – जातक को पुत्र व कन्या दोनों सन्तति होंगी।

7. सूर्य + राहु – सन्तति नष्ट होगी।

8. सूर्य + केतु – पुत्र सन्तति नष्ट होगी।

तुला लग्न में सूर्य का फलादेश षष्टम स्थान में

यहां छठे स्थान में सूर्य मीन राशि का होगा। अपनी मित्र राशि में होगा। फिर भी ‘लाभभंग योग’ के कारण जीवन में उन्नति लाभ की प्राप्ति हेतु बहुत संघर्ष करना पड़ेगा।

दृष्टि – मीन राशिगत सूर्य की दृष्टि व्यय भाव (कन्या राशि) पर होगी। फलत: रोग में रुपया खर्च होगा। यदि जातक को कोई रोग नहीं है तो ईर्ष्या, राग-द्वेष के कारण, अहम् की प्राप्ति हेतु रुपया खर्च करेगा।

निशानी – जातक शत्रुओं से पीड़ित रहेगा। स्व जाति में शत्रुओं की बाहुल्यता रहेगी।

दशा – सूर्य की दशा अनिष्ट सूचक नहीं होगी। परन्तु जातक को जमीन-जायदाद का लाभ कराएगी।

सूर्य का अन्य ग्रहों से सम्बन्ध

1. सूर्य + बुध – छठे स्थान में मीन राशिगत यह युति वस्तुतः लाभेश सूर्य की भाग्येश-खर्चेश ‘बुध’ के साथ युति कहलाएगी। यहां बैठकर दोनों ग्रह व्यय भाव को देख रहे हैं। फलतः जातक बुद्धिशाली होगा व शत्रुओं का नाश करने में सक्षम होगा। सूर्य छठे जाने से ‘लाभभंग योग’ तथ बुध के छठे जाने से ‘भाग्यभंग योग’ बना।

फलतः यहां पर यह युति ज्यादा सार्थक नहीं है। जातक को भाग्योदय हेतु काफी संघर्ष करना पड़ेगा। व्यापार में लाभ के प्रति जातक शंकित रहेगा।

व्ययेश छठे जाने से विमल योग बना इस योग के कारण जातक समाज का लब्ध व्यक्ति होगा।

2. सूर्य + चंद्र – सूर्य चंद्र की मीन राशिगत षष्टम स्थान में यह युति वस्तुतः राज्येश चंद्र की लाभेश सूर्य के साथ युति कहलाएगी। चंद्रमा खड्डे में जाने से ‘राजभंग योग’ तथा सूर्य के खड्डे में जाने से ‘लाभभग योग’ बना। इन दोनों ग्रहों की यह स्थिति निकृष्ट है। जातक को राज्य प्राप्ति (सरकारी नौकरी) एवं व्यापार-व्यवसाय में लाभ की प्राप्ति हेतु जीवन पर्यन्त संघर्ष करना पड़ेगा ।

3. सूर्य + मंगल – धन व गृहस्थ सुख में लगातार कमी रहेंगी।

4. सूर्य + बृहस्पति – पराक्रम भंग होगा। मित्रों व रिश्तेदारों से धोखा मिलेगा।

5. सूर्य + शुक्र – परिश्रम का लाभ नहीं मिलेगा।

6. सूर्य + शनि – पुत्र सन्तति में बाधा। भौतिक सुख में लगातार बाधा मिलेगी।

7. सूर्य + राहु – लाभ प्राप्ति में रुकावट रोग में वृद्धि व राज्यसुख मिलेगा।

8. सूर्य + केतु – व्यापार में हानि सम्भव है।

तुला लग्न में सूर्य का फलादेश सप्तम स्थान में

यहां सूर्य सप्तम भाव में मित्र राशि में बैठकर उच्च का होगा। यहां सूर्य दस अंशों तक परमोच्च का होगा। फलतः कुण्डली में ‘रविकृतभंग योग’ बना।

फलतः जातक राजातुल्य ऐश्वर्य को भोगेगा। जातक महान बुद्धिमान ज्ञानी एवं दार्शनिक होगा। ऐसा जातक ससुराल से लाभ पाने वाला विवाह के पश्चात् उन्नति को प्राप्त करता है।

दृष्टि – सप्तमस्थ सूर्य की दृष्टि लग्न भाव (तुला राशि) पर होगी फलत: जातक अपने स्वयं के पराक्रम व पुरुषार्थ से उन्नति प्राप्त करेगा, अपने आगे बढ़ने का मार्ग स्वयं बनाएगा पर स्वार्थी व लम्पट होगा।

निशानी – ऐसा जातक अति कामी होगा। कामाग्नि तृप्त नहीं होगी। जातक सदैव पत्नी की आज्ञा (वश) में रहेगा।

दशा – सूर्य की दशा-अन्तर्दशा में जातक का भाग्योदय होगा। जातक उन्नति पथ की ओर आगे बढ़ेगा।

सूर्य का अन्य ग्रहों से सम्बन्ध

1. सूर्य + बुध – सप्तम स्थान में मेष राशिगत यह युति वस्तुतः लाभेश सूर्य की भाग्येश-खर्चेश बुध के साथ युति कहलाएगी। यहां बैठकर सूर्य उच्च का होगा तथा दोनों ग्रह लग्न स्थान को पूर्ण दृष्टि से देखेंगे। फलतः जातक बुद्धिशाली व भाग्यशाली होगा। विवाह के तत्काल बाद जातक का भाग्योदय होगा।

‘कुलदीपक योग’ एवं ‘रविगत राजयोग के कारण जातक अपने कुटुम्ब परिवार का नाम दीपक के समान रोशन करेगा एवं सरकारी क्षेत्र में उच्च पद-प्रतिष्ठा की प्राप्ति करेगा।

2. सूर्य + चंद्र – सूर्य चंद्र की मेष राशिगत सप्तम स्थान में यह युति वस्तुतः राज्येश चंद्र की लाभेश सूर्य के साथ युति कहलाएगी। सूर्य यहां उच्च का है अतः ‘रविकृत योग’ बना रहा है। चंद्रमा राज्येश होकर उच्चाभिलाषी है। जातक महत्वाकांक्षी होगा एवं राजातुल्य ऐश्वर्य व राजलक्ष्मी को भोगेगा।

3. सूर्य + मंगल – सूर्य के साथ मंगल होने से ‘किम्बहुना योग’ बनेगा। ऐसा जातक अति घमण्डी एवं अमानवीय व्यवहार से ओत प्रोत रहेगा।

4. सूर्य + बृहस्पति – षष्टेश गुरु की सूर्य से युति के कारण जातक को गुप्त रोग एवं गुप्त शत्रु पीड़ा पहुंचाएंगे।

5. सूर्य + शुक्र – शुक्र के कारण ‘कुलदीपक योग’, ‘लग्नाधिपति योग’ बनेगा। जातक जाति व समाज में नामचीन व्यक्ति एक सफल व्यक्ति होगा, परन्तु अति कामुकता के कारण उसे गुप्त रोग रहेगा।

6. सूर्य + शनि – यहां नीचभंग राजयोग’ की सृष्टि होगी। जातक निश्चय ही धनी एवं बड़ी भू-सम्पत्ति का स्वामी होगा पर पत्नी के लिए समर्पित नहीं होगा।

7. सूर्य + राहु – ऐसा जातक अपने जीवन साथी के प्रति अव्यवहारिक होगा। अमानवीय दृष्टिकोण रहेगा।

8. सूर्य + केतु – जीवन साथी से विचार नहीं मिलेंगे।

तुला लग्न में सूर्य का फलादेश

तुला लग्न में सूर्य का फलादेश अष्टम स्थान में

यहां सूर्य वृष राशि में शत्रुक्षेत्री होगा। यह ‘लाभभंग योग’ बनाएगा। सूर्य की दृष्टि धन भाव (वृश्चिक राशि) पर होगी। ऐसा जातक दुर्बल, रुग्ण व रोगी होगा। व्यापार में लाभ की कमी एवं हृदय में उत्साह की कमी रहेगी। प्रत्येक कार्य में हानि की सम्भावना अधिक रहेगी।

दशा – सूर्य की दशा-अन्तर्दशा अशुभ फल देगी। बचाव अनिवार्य है।

सूर्य का अन्य ग्रहों से सम्बन्ध

1. सूर्य + बुध – अष्टम स्थान में वृष राशिगत यह युति वस्तुतः लाभेश सूर्य की भाग्येश-खर्चेश बुध के साथ युति कहलाएगी। यहां बैठकर दोनों ग्रह ‘धन भाव’ को देखेंगे। सूर्य आठवें जाने से ‘लाभभंग योग’ तथा बुध आठवें जाने से ‘भाग्यभंग योग’ की सृष्टि होगी। फलतः यहां यह युति ज्यादा सार्थक नहीं है।

जातक बुद्धिशाली होगा भाग्यशाली भी होगा परन्तु भाग्योदय हेतु संघर्ष बहुत करना पड़ेगा। व्यापार-व्यवसाय में लाभ के प्रति भी जातक आशकित रहेगा। व्ययेश आठवें जाने से ‘विमल योग’ बना अतः जातक समाज का अग्रगण्य लब्ध प्रतिष्ठित व्यक्ति होगा।

2. सूर्य + चंद्र की वृष राशिगत अष्टम स्थान में यह युति वस्तुतः राज्येश चंद्र की लाभेश सूर्य के साथ युति कहलाएगी। सूर्य के खड्डे में गिरने से ‘राजभंग योग’ बना। इन दोनों ग्रहों की यह स्थिति निकृष्ट है। हालांकि चंद्रमा यहां उच्च का होगा। जातक को राज्य (सरकारी नौकरी) प्राप्ति एवं व्यापार-व्यवसाय में लाभ की प्राप्ति हेतु जीवन भर संघर्ष करना पड़ेगा।

3. सूर्य + मंगल – पत्नी से उग्र विवाद तलाक (बिछोह), मुकदमा बाजी की सम्भावना रहेगी।

4. सूर्य + बृहस्पति – ‘हर्ष योग’ के कारण दुर्घटना से बचाव सम्भव पर दुर्घटना जरूर होगी।

5. सूर्य + शुक्र – पैर में चोट, रोग, कष्ट की प्राप्ति सम्भव है।

6. सूर्य + शनि – पैर में चोट, वाहन दुर्घटना सम्भव ।

7. सूर्य + राहु – अचानक दुर्घटना का भय रहेगा।

8. सूर्य + केतु – लड़ाई-झगड़े से मृत्यु संभव है।

तुला लग्न में सूर्य का फलादेश नवम स्थान में

यहां नवमस्थ सूर्य मिथुन राशि में होकर तृतीय स्थान (धनु राशि) को पूर्ण दृष्टि से देखेगा। सूर्य यहां अपनी सिंह राशि से एकादश स्थान को प्राप्त होकर त्रिकोण में स्थित होने से अत्यन्त शुभ फलदायक हो गया है। ऐसे जातक को निश्चय ही धन विद्या, बुद्धि सौभाग्य एवं पराक्रम वृद्धि का सुख प्राप्त होगा। लाभेश भाग्य स्थान में होने से जातक धनवान एवं भाग्यशाली होगा।

निशानी – जातक का भाग्योदय 22 व 24 वर्ष के मध्य होगा।

दशा – सूर्य की दशा-अन्तर्दशा जातक का भाग्योदय तीव्रगति से करायेगी।

सूर्य का अन्य ग्रहों से सम्बन्ध

1. सूर्य + बुध – नवम स्थान में मिथुन राशिगत यह युति वस्तुतः लाभेश सूर्य की भाग्येश खर्चेश-बुध के साथ युति कहलायेगी। यहां बैठकर दोनों ग्रह पराक्रम स्थान को देखेंगे। फलत: जातक बुद्धिशाली, भाग्यशाली एवं महान पराक्रमी होगा। जातक को पिता की सम्पत्ति मिलेगी तथा मित्रों एवं परिजनों का सहयोग समय समय मिलता रहेगा। जातक समाज का लब्ध प्रतिष्ठित व्यक्ति होगा।

2. सूर्य + चंद्र – सूर्य चंद्र की मिथुन राशिगत नवम स्थान में यह युति वस्तुतः राज्येश चंद्र की लाभेश सूर्य के साथ युति कहलायेगी । राज्येश चंद्रमा यहां शत्रुक्षेत्री है। सुखेश सूर्य का भाग्य स्थान में बैठना शुभ है। जातक के भाग्योदय को लेकर संघर्ष की स्थिति रहेगी। फिर भी जातक पराक्रमी व धनी होगा।

3. सूर्य + मंगल – व्यापार में अद्वितीय लाभ होगा।

4. सूर्य + बृहस्पति – पराक्रम बढ़ेगा, मित्र लाभ देंगे।

5. सूर्य + शुक्र – भाग्योदय तीव्रगति से होगा। व्यापार में लाभ होगा।

6. सूर्य + शनि – जीवन में सभी प्रकार के भौतिक सुखों की प्राप्ति होगी।

7. सूर्य + राहु – पिता के सुख में कमी रहेगी।

8. सूर्य + केतु – पिता के सुख में न्यूनता रहेगी।

तुला लग्न में सूर्य का फलादेश दशम स्थान में

यहां पर दशम स्थान में सूर्य कर्क राशि का होगा। जातक को धन, यश, पद-प्रतिष्ठा की बराबर प्राप्ति होगी। जातक राजमान्य होगा। राजनीति क्षेत्र में उसका हस्तक्षेप रहेगा। ऐसा जातक सत्य वक्ता एवं जितेन्द्रिय होगा।

दृष्टि – कर्कस्थ सूर्य की दृष्टि चतुर्थ भाव (मकर राशि) पर होगी फलत: जातक का घर का मकान एवं निजी वाहन होगा। सूर्य के साथ शुभ ग्रह हो तो जातक नौकर-चाकर से युक्त होकर अनेक भवनों का स्वामी होगा।

निशानी – जातक प्राय: मातृभक्त एवं पितृद्वेषी होगा।

दशा – सूर्य की दशा-अन्तर्दशा में उन्नति होगी। नौकरी लगेगी। सुख की प्राप्ति होगी।

सूर्य का अन्य ग्रहों से सम्बन्ध

1. सूर्य + बुध – दशम स्थान में कर्क राशिगत यह युति वस्तुतः लाभेश सूर्य की भाग्येश-खर्चेश बुध के साथ युति कहलाएगी। यहां बैठकर दोनों ग्रह सुख भाव को देखेंगे। बुध यहां शत्रुक्षेत्री होगा। फलत: जातक बुद्धिशाली होगा। राज्य पक्ष सरकारी क्षेत्र में उसका दबदबा, वर्चस्व होगा जातक को माता की सम्पत्ति मिलेगी। ‘कुलदीपक योग’ के कारण जातक अपने कुटुम्ब परिवार का नाम दीपक के समान रोशन करेगा। जातक समाज का प्रतिष्ठित व्यक्ति होगा।

2. सूर्य + चंद्र – सूर्य-चंद्र की कर्क राशिगत दशम स्थान में यह युति वस्तुतः राज्येश चंद्र की लाभेश सूर्य के साथ युति कहलाएगी। चंद्रमा यहां स्वगृही होकर ‘चंद्रकृत राजयोग’ बनाएगा। सूर्य केन्द्रवर्ती होकर स्वगृहाभिलाषी होगा। ऐसा जातक राजातुल्य प्रतापी एवं ऐश्वर्यवान होगा।

3. सूर्य + मंगल – व्यापार में अद्वितीय लाभ होगा।

4. सूर्य + बृहस्पति – यहां बृहस्पति उच्च का होगा। ‘हंस योग’ ‘पद्यसिंहासन योग’ के कारण जातक अनेक भवन, एकाधिक वाहनों एवं नौकरों का स्वामी होकर राजा तुल्य ऐश्वर्य को प्राप्त करेगा।

5. सूर्य + शुक्र – परिश्रम व पुरुषार्थ से धन की प्राप्ति होगी। पिता की सम्पत्ति भी मिलेगी।

6. सूर्य + शनि – वाहन सुख मिलेगा। पुत्र सुख मिलेगा। पुत्र पराक्रमी होगा।

7. सूर्य + राहु – राज्य से दण्ड मिलेगा। नौकरी छूटेगी।

8. सूर्य + केतु – नौकरी में अवन्नति होगी। व्यापार में नुकसान सम्भव है।

तुला लग्न में सूर्य का फलादेश एकादश स्थान में

एकादश स्थान में सूर्य स्वगृही होकर सिंह राशि का होगा। ऐसा जातक धन स्त्री, पुत्र-पौत्र, वाहन, नौकरी एवं व्यापार से युक्त समृद्धिशाली, ऐश्वर्यशाली जीवन का यापन करता है। ऐसा जातक पण्डित, विद्वान व सुखी होगा। 22 वर्ष की आयु के पश्चात उसे दिन-प्रतिदिन हर कार्य में सफलता मिलती जाएगी।

दृष्टि – एकादशस्थ सूर्य की दृष्टि पंचम भाव (कुंभ राशि) पर होगी फलतः जातक स्वयं शिक्षित होगा। संतान भी सुशिक्षित होगी।

निशानी – जातक राष्ट्रभक्त होगा। पुत्र-पौत्र से युक्त होगा।

सूर्य का अन्य ग्रहों से सम्बन्ध

1. सूर्य + बुध – एकादश स्थान में सिंह राशिगत यह युति वस्तुतः लाभेश सूर्य की भाग्यंश-खर्चेश बुध के साथ युति कहलाएगी। यहां सूर्य स्वगृही होगा तथा दोनों ग्रहों की दृष्टि पंचम भाव पर होगी। फलत: जातक बुद्धिशाली व शिक्षिता होगा। जातक की सन्तति भी शिक्षित होगी। जातक व्यापार में रुचि लेगा तथा उसकी आमदनी के जरिए एक से अधिक होंगे। जातक भाग्यशाली होगा।

2. सूर्य + चंद्र – सूर्य-चंद्र की सिंह राशिगत एकादश स्थान में यह युति वस्तुतः राज्येश चंद्र की लाभेश सूर्य के साथ युति कहलाएगी। यहां सूर्य स्वगृही होकर ‘रविकृत राजयोग’ बनाएगा। उत्तम सन्तति देगा। जातक राजातुल्य प्रतापी एवं ऐश्वर्यवान होगा ।

3. सूर्य + मंगल – यदि यहां मंगल हो तो व्यक्ति अदम्य साहसी होगा। धर्म व न्याय के लिए मर मिटेगा ।

4. सूर्य + बृहस्पति – बड़े भाई का सुख मिलेगा। बुजुर्गों की सलाह से लाभ ।

5. सूर्य + शुक्र – व्यापार में लाभ पुरुषार्थ परिश्रम से लाभ होगा।

6. सूर्य + शनि – भौतिक सुख, सम्पन्नता में वृद्धि, व्यापार से लाभ, सन्तति शिक्षित होगी।

7. सूर्य + राहु – विद्या एवं व्यापार में रुकावट।

8. सूर्य + केतु – व्यापार में बदलाव होता रहेगा।

तुला लग्न में सूर्य का फलादेश द्वादश स्थान में

यहां द्वादश स्थान में सूर्य कन्या राशि में होकर नीचाभिलाषी होगा। सूर्य अपनी राशि (सिंह) में दूसरे स्थान पर होने के कारण धन का खर्च शुभकार्य, परोपकार, धार्मिक क्रिया-कलाप में होगा। जातक विदेशी सम्बन्ध एवं विदेशी व्यापार के माध्यम से ज्यादा धन कमाने में सक्षम होगा।

दृष्टि – कन्या राशिगत सूर्य की दृष्टि छठे स्थान (मीन राशि) पर होगी। फलतः ऐसा जातक अपने शत्रुओं व रोगों का नाश करने में पूर्ण सक्षम होगा।

दशा – सूर्य की दशा-अन्तर्दशा शुभ फल एवं आध्यात्मिक लाभ देगी।

सूर्य का अन्य ग्रहों से सम्बन्ध

1. सूर्य + बुध – द्वादश स्थान में कन्या राशिगत यह युति वस्तुतः लाभेश सूर्य की भाग्येश-खर्चेश बुध के साथ युति कहलाएगी। बुध बारहवें जाने से ‘भाग्यभंग योग’ तथा सूर्य के कारण ‘लाभभंग योग’ बना। अतः जातक एक बार ऊपर चढ़कर नीचे गिरेगा। खर्च अधिक करेगा। तीर्थाटन, धार्मिक यात्राओं में रुपया खर्च करेगा। व्ययेश स्वगृही होकर बारहवें होगा जातक परोपकारी, दानी एवं समाज का लब्ध प्रतिष्ठित व्यक्ति होगा।

2. सूर्य + चंद्र – सूर्य-चंद्र की कन्या राशिगत द्वादश स्थान में यह युति वस्तुतः राज्येश चंद्र की लाभेश सूर्य के साथ युति कहलाएगी। चंद्रमा बारहवें में होने से ‘राजभंग योग’ तथा सूर्य बारहवां होने से ‘लाभभंग योग’ की सृष्टि होती है। इन दोनों ग्रहों की यह स्थिति निकृष्ट है। जातक को राज्य (सरकारी नौकरी) की प्राप्ति हेतु एवं व्यापार-व्यवसाय में लाभ की प्राप्ति हेतु जीवन भर संघर्ष करना पड़ेगा।

3. सूर्य + मंगल – प्रखर वक्ता, जातक का स्वभाव खर्चीला होगा।

4. सूर्य + बृहस्पति – जातक महाविद्वान, ज्योतिषी होगा।

5. सूर्य + शुक्र – विद्वान होगा पर परिश्रम का लाभ नहीं मिलेगा। ‘लग्नभंग योग’ बनेगा।

6. सूर्य + शनि – अस्पष्टभाषी, जुआरी व विद्या व्यसनी होगा।

7. सूर्य + राहु – वाणी में स्खलन, यात्रा में नुकसान होगा या चोरी होगी।

8. सूर्य ‌+ केतु – यात्रा में धन लाभ एवं खर्च दोनों होंगे।

Categories: Uncategorized

0 Comments

Leave a Reply

Avatar placeholder

Your email address will not be published. Required fields are marked *