तुला लग्न में केतु का फलादेश

पृथ्वी के दक्षिण भाग की छाया राहु तथा उत्तरी छाया को केतु कहा गया है। इसलिए ये दोनों आमने-सामने रहते हैं। तुला लग्न में लग्नेश शुक्र केतु का मित्र ग्रह है।

तुला लग्न में केतु का फलादेश प्रथम भाव में

तुला लग्न में केतु अपनी मित्र राशि में हैं। जातक में पद-प्रतिष्ठा ऊंचा स्थान प्राप्त करने की महत्वाकांक्षा रहेगी। जातक उन्नति मार्ग पर आगे बढ़ने के लिए चेष्टावान् प्रयत्नशील रहेगा। उसमें उसे सफलता भी मिलेगी। जातक बुजुर्गों के मार्गदर्शन में आगे बढ़ेगा।

निशानी – जातक संयुक्त परिवार में रहना पसन्द करेगा |

दशा – यदि कुण्डली में कालसर्प योग न हो तो केतु की दशा-अन्तर्दशा उन्नति दायक साबित होगी।

केतु का अन्य ग्रहों से सम्बन्ध

1. केतु + चंद्र – कार्य में रुकावट, नौकरी में रुकावट होगी।

2. केतु + सूर्य – सरकारी पथ में रुकावट। मंगल भाईयों में विवाद।

3. केतु + बुध – भाग्य में रुकावट।

4. केतु + बृहस्पति – मित्रों से मनमुटाव। केतु शुक्र परिश्रम का लाभ नहीं।

5. केतु + शनि – शिक्षा में रुकावट सम्भव।

तुला लग्न में केतु का फलादेश द्वितीय भाव में

यहां द्वितीय स्थान में केतु वृश्चिक राशि में होगा वृश्चिक राशि में केतु उच्च का होता है। केतु की यह स्थिति धन के घड़े में छेद को बताती है। जातक कमाएगा बहुत पर धन की बरकत नहीं होगी। जातक की वाणी दूषित होगी। धनेश मंगल की स्थिति आर्थिक स्थिति को सुस्पष्ट करेगी। अन्यथा आर्थिक संघर्ष का संकेत स्पष्ट है।

निशानी – वाणी में थोड़ी कटुता रहेगी।

दशा – केतु की दशा-अन्तर्दशा संघर्ष की संकेतक है। यदि कुण्डली में कालसर्प योग बना है तो यह दशा कष्टदायक रहेगी।

केतु का अन्य ग्रहों से सम्बन्ध

1. केतु + चंद्र – नेत्र विकार सम्भव है।

2. केतु + सूर्य – राज दण्ड से धन नाश होगा। नेत्र विकार सम्भव है।

3. केतु + मंगल – धन आएगा पर खर्च होता चला जाएगा।

4. केतु + बुध – भाग्य में रुकावटें ।

5. केतु + बृहस्पति – धन के कारण भाईयों में विवाद सम्भव है।

6. केतु + शुक्र – परिश्रम के धन में विवाद सम्भव ।

7. केतु + शनि – विद्या में व्यवधान ।

तुला लग्न में केतु का फलादेश तृतीय भाव में

यहां तृतीय स्थान में केतु धनु राशि का होगा। धनु राशि में केतु स्वग्रही होता है। केतु की यह स्थिति व्यक्ति के पराक्रम को बढ़ाती है। जातक धार्मिक अभिरुचि से ओतप्रोत होता है। जातक को आध्यात्मिक मित्रों की तलाश रहेगी। जाताक भाई-बहनों, परिजनों से अच्छा सम्बन्ध बनाने हेतु लालायित रहेगा।

निशानी – जातक धार्मिक ग्रन्थों का अध्येता होगा।

दशा – केतु की दशा-अन्तर्दशा कीर्ति में वृद्धि करेगी। परंतु कुण्डली में यदि कालसर्प योग है तो दशा प्रतिकूल रहेगी। पराक्रम भंग होगा।

केतु का अन्य ग्रहों से सम्बन्ध

1. केतु + चंद्र – भाई-बहनों में विवाद ।

2. केतु + सूर्य – सरकारी कर्मचारियों से विवाद। |

3. केतु + मंगल – एकाध भाई की अकाल मृत्यु।

4. केतु + बुध – शिक्षा में रुकावट।

5. केतु + बृहस्पति – बड़ों के प्रति अनादर की भावना ।

6. केतु + शुक्र – परिश्रम में रुकावट ।

7. केतु + शनि – शिक्षा व सन्तति में रुकावट

तुला लग्न में केतु का फलादेश चतुर्थ भाव में

यहां चतुर्थ स्थान में केतु मकर राशि का होगा। मकर राशि केतु की मूलत्रिकोण राशि है। केतु की यह स्थिति मातृसुख में बाधक है। इनको लेकर कष्ट अथवा जमीन-जायदाद को लेकर कष्ट हो सकता है।

निशानी – वाहन को लेकर खर्चा होता रहेगा।

दशा – केतु की दशा-अन्तर्दशा मध्यम फल देगी। परंतु कुण्डली में यदि कालसर्प योग है तो पूर्णत: अनिष्ट फल देगी।

केतु का अन्य ग्रहों से सम्बन्ध

1. केतु + चंद्र – माता को कष्ट ।

2. केतु + सूर्य – पिता को कष्ट ।

3. केतु + मंगल – भाईयों को कष्ट, धन हानि।

4. केतु + बुध – उच्च शिक्षा में व्यवधान ।

5. केतु + बृहस्पति – गुरु से द्वेष, बड़ों का अनादर ।

6. केतु + शुक्र – वाहन दुर्घटना योग ।

7. केतु + शनि – वाहन से चोट पहुंचे।

तुला लग्न में केतु का फलादेश पंचम भाव में

यहां पंचम स्थान में केतु कुंभ राशि का होगा। कुंभ राशि केतु की मित्र राशि है। ऐसे जातक को उच्च शैक्षणिक डिग्री की प्राप्ति में दिक्कतों का सामना करना पड़ता है। संतान के मामले में एक दो गर्भपात होते हैं। विद्या प्रायः अधूरी छूट जाती है।

दशा – केतु की दशा प्रतिकूल फल को देने वाली है। यदि कुण्डली में कालसर्प योग की स्थिति हो तो यह प्रतिकूलता ज्यादा बढ़ जाएगी।

केतु का अन्य ग्रहों से सम्बन्ध

1. केतु + चंद्र – कन्या की अकाल मृत्यु।

2. केतु + सूर्य – पुत्र संतति का नाश।

3. केतु + मंगल – पुत्र व भाई का नाश।

4. केतु + बुध – पुत्री का नाश।

5. केतु + बृहस्पति – गुरु व ज्ञान का शोषण ।

6. केतु + शुक्र – गुप्त बीमारी।

7. केतु + शनि – शिक्षा में बाधा, सुख में बाधा।

तुला लग्न में केतु का फलादेश षष्टम भाव में

यहां षष्टम स्थान में केतु मीन राशि का होगा। मीन राशि केतु की स्वराशि है। ऐसे जातक के स्वजन ही जातक के शत्रु होते हैं। जातक के जीवन में गुप्त शत्रुओं की बाहुल्यता रहेगी। गुप्त रोग भी जातक को परेशान करते रहेंगे। जातक उद्विग्न रहेगा। दिमागी शान्ति भंग रहेगी।

दशा – केतु की दशा-अन्तर्दशा अशांति देगी। यदि कुण्डली में कालसर्प योग है तो अशांति चरम सीमा पर रहेगी।

केतु का अन्य ग्रहों से सम्बन्ध

1. केतु + चंद्र – राज्य सम्मान में बाधा ।

2. केतु + सूर्य – सरकारी कार्य में रोड़ा ।

3. केतु + मंगल – भाईयों द्वारा धन नाश

4. केतु + बुध – बहनों का सुख नहीं।

5. केतु + बृहस्पति – गुरुजनों का अपमान ।

6. केतु + शुक्र – परिश्रम के फल में बाधा।

7. केतु + शनि – शिक्षा व सुख में बाधा।

तुला लग्न में केतु का फलादेश

तुला लग्न में केतु का फलादेश सप्तम भाव में

यहां सप्तम स्थान में केतु मेष राशि का होगा। मेष राशि केतु की मित्र राशि है। जातक के विचार जीवन साथी से नहीं मिलेंगे। गृहस्था सुख की समरसता हेतु जातक को एक तरफा समझौता (Adjustment) करना होगा। गुप्त समझौते के लिए भी केतु की यह स्थिति ठीक नहीं है।

दशा – केतु की दशा-अन्तर्दशा मिश्रित फलकारी रहेगी। यदि कुण्डली में कालसर्प योग हो तो केतु की दशा ज्यादा कष्टदायक होगी।

केतु का अन्य ग्रहों से सम्बन्ध

1. केतु + चंद्र – पत्नी सुंदर व गृहस्थ सुख में विवाद ।

2. केतु + सूर्य – राज्यपक्ष से लाभ पर नौकरी में विवाद ।

3. केतु + मंगल – भाईयों से लाभ पर व्यक्तिगत विवाद रहेगा।

4. केतु + बुध – बुद्धि से लाभ पर बुद्धि कुण्ठित ।

5. केतु + बृहस्पति – भाईयों से लाभ, ज्ञान से लाभ, पर कुतर्क अधिक।

6. केतु + शुक्र – परिश्रम का पूरा लाभ पर खुद के निर्णय कई बार गलत होंगे।

7. केतु + शनि – सुख प्राप्ति पर उपकरण (रास्ता) गलत। विदेशी पढ़ाई व स्त्री में रुचि, अर्न्तजातीय विवाह ।

तुला लग्न में केतु का फलादेश अष्टम भाव में

यहां अष्टम स्थान में केतु वृष राशि का होगा। वृष राशि में केतु नीच का कहा गया है। केतु की यह स्थिति स्वास्थ्य के लिए प्रतिकूल है। अचानक दुर्घटना से चोट पहुंच सकती है। गुप्त बीमारी भी सम्भव है। संतान के जन्म के बाद जातक की आयु को खतरा नहीं है।

दशा – केतु की दशा-अन्तर्दशा स्वास्थ्य के लिए प्रतिकूल है। यदि कुण्डली में कालसर्प योग हो तो केतु ज्यादा कष्टदायक रहेगा।

विशेष – यदि जातक के मकान की छत पर कुत्ता रोए तो केतु अनिष्ट फल देगा। लाल किताब वालों ने केतु को कुत्ता कहा है। भूरे रंग का कुत्ता।

केतु का अन्य ग्रहों से सम्बन्ध

1. केतु + चंद्र – दुर्घटना भय, जलभय ।

2. केतु + सूर्य – दुर्घटना भय, अग्नि भय ।

3. केतु + मंगल – दुर्घटना भय, रक्तस्राव ।

4. केतु + बुध – भाग्योदय में भयंकर बाधा ।

5. केतु + बृहस्पति – पिता, श्वसुर, बड़े भाई की चिंता ।

6. केतु + शुक्र – परिश्रम के लाभ में रुकावट ।

7. केतु + शनि – शिक्षा व संतति में बाधा, पुत्र की दुर्घटना संभव है।

तुला लग्न में केतु का फलादेश नवम भाव में

यहां नवम स्थान में केतु मिथुन राशि का होगा। मिथुन राशि में केतु नीच का कहा गया है। नवम स्थान भाग्य का द्वार है। केतु यहां भाग्योदय में बाधा डालता है। नवम स्थान में केतु हो व्यक्ति की संतान बलवान एवं उन्नतिशील होती है।

निशानी – यदि ऐसे व्यक्ति की नीयत में बेईमानी आ जाए तो वह कभी दौलतमंद नहीं बन सकता।

दशा – केतु की दशा-अन्तर्दशा मिश्रित फल देगी। यदि कुण्डली में कालसर्प योग हो तो केतु की दशा भाग्योदय में पूर्ण बाधक का कार्य करेगी।

केतु का अन्य ग्रहों से सम्बन्ध

1. केतु + चंद्र – भाग्योदय के निर्णय में विवाद रहेगा।

2. केतु + सूर्य – व्यापार के निर्णय में विवाद रहेगा।

3. केतु + मंगल – भाईयों के निर्णय में विवाद रहेगा एवं सगाई के निर्णय में विवाद रहेगा।

4. केतु + बुध – विद्या सम्बन्धी निर्णय में विवाद रहेगा।

5. केतु + बृहस्पति – गुरुजनों के निर्णय में विवाद रहेगा ।

6. केतु + शुक्र – स्वयं के निर्णय विवादात्मक होंगे।

7. केतु + शनि – संतति के निर्णय में विवाद रहेगा।

तुला लग्न में केतु का फलादेश दशम भाव में

यहां दशम स्थान में केतु कर्क राशि का होगा। जो इसकी शत्रु राशि है। ऐसे जातक को राजकीय व्यक्ति अथवा किसी सरकारी अधिकारी द्वारा धोखा हो सकता है। पिता की संपत्ति में बाधा या पिता की अकृपा संभव है।

निशानी – जातक अपनी किस्मत से असन्तुष्ट रहेगा।

दशा – केतु की दशा-अन्तर्दशा अशुभ ही रहेगी। यदि कालसर्प योग है तो यह दशा ज्यादा अशुभ होगी।

केतु का अन्य ग्रहों से सम्बन्ध

1. केतु + चंद्र – राज्य व नौकरी पक्ष ठीक पर बाधाएं निरन्तर रहेगी।

2. केतु + सूर्य – सरकारी क्षेत्र में कष्ट पहुंचेगा।

3. केतु + मंगल – पत्नी व भाईयों से विवाद रहेगा।

4. केतु + बुध – भाग्य में बाधा बनी रहेगी।

5. केतु + बृहस्पति – ‘हंसयोग’ के कारण जातक राजा तुल्य पराक्रमी होगा।

6. केतु + शुक्र – जातक उन्नति पथ पर ठोकर खाकर आगे बढ़ेगा।

7. केतु + शनि – सुख प्राप्ति एवं शिक्षा में बाधा। संतति आज्ञा में नहीं रहेगी।

तुला लग्न में केतु का फलादेश एकादश भाव में

यहां एकादश स्थान में केतु सिंह राशि का होगा। जो कि केतु की शत्रु राशि कही गई है। ऐसे जातक के भाग्योदय में बाधा, व्यापार-व्यवसाय की उन्नति में लगातार रुकावट के संकेत केतु की यह स्थिति देती है। सरकारी ठेके एवं धार्मिक कार्यों में यश नहीं मिलेगा।

निशानी – जातक अपने व्यापार, कारोबार, नौकरी से असंतुष्ट रहेगा।

दशा – केतु की दशा-अन्तर्दशा अशुभ फल देगी।

केतु का अन्य ग्रहों से सम्बन्ध

1. केतु + चंद्र – जातक लोकप्रिय व्यापारी होगा।

2. केतु + सूर्य – जातक राज्य सरकार से फायदा उठाएगा।

3. केतु + मंगल – जातक को पत्नी के नाम के व्यापार से लाभ होगा।

4. केतु + बुध – जातक उद्योगपति होगा पर स्थिति संघर्षशील रहेगी।

5. केतु + बृहस्पति – जातक के परिजनों में विवाद रहेगा।

6. केतु + शुक्र – उन्नति में बाधा पर अन्त में लाभ।

7. केतु + शनि – सुख व संतति में बाधा पर अंत में लाभ ।

तुला लग्न में केतु का फलादेश द्वादश भाव में

यहां द्वादश स्थान में केतु कन्या राशि का होगा । कन्या राशि केतु की मूलत्रिकोण राशि है। केतु की यह स्थिति अनवरत यात्रा को बताती है एवं यात्राओं में लाभ होने का, यश-कीर्ति मिलने का संकेत भी देती है। जातक धार्मिक कार्य, परोपकार के कार्य, समाज सेवा में बढ़-चढ़कर रुचि लेगा। जातक की बुद्धि तीव्र होगी। जातक प्लानिंग मास्टर होगा।

निशानी – जातक को विदेशी व्यापार से लाभ होगा।

दशा – केतु की दशा-अन्तर्दशा में आध्यात्मिक लाभ होगा। यदि कुण्डली में कालसर्प योग की स्थिति है तो दशा अशुभ फल देगी।

केतु का अन्य ग्रहों से सम्बन्ध

1. केतु + चंद्र – नेत्र विकार, पीड़ा।

2. केतु + सूर्य – नेत्र विकार, पीड़ा, सरकारी नुकसान।

3. केतु + मंगल – धन का अपव्यय अधिक, पत्नी से झगड़ा ।

4. केतु + बुध – भाग्योदय होगा पर संघर्ष के साथ यात्रा ट्रेवल ऐजेन्सी से लाभ होगा।

5. केतु + बृहस्पति – भाईयों से मनमुटाव या सुख नहीं।

6. केतु + शुक्र – परिश्रम का लाभ कठिनता से मिलेगा।

7. केतु + शनि – शिक्षा व संतति विलम्ब से होगी।

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