उंगलियां एवं उंगलियों के जोड़

उंगलियां चाहे लम्बी हों चाहे छोटी, हथेली की लम्बाई से उनका कोई सम्बन्ध नहीं होता। लम्बी उंगलियां इस बात की द्योतक होती हैं कि व्यक्ति हर बात के सूक्ष्म विवरण के प्रति जागरूक है। चाहे बात कमरे की सजावट की हो या नौकरों के प्रति उसके व्यवहार की, राष्ट्रीय व्यवस्था की हो या चित्रकारी की लम्बी उंगलियों वाले व्यक्ति अपने पहनावे के प्रति पूरे सावधान एवं छोटी से छोटी बातों के प्रति भी सजग होते हैं। ऐसे व्यक्ति प्रायः छोटी-छोटी बातों पर चिन्तित हो जाते हैं और कई बार तो सनकियों की भांति व्यवहार करने लगते हैं, जबकि उनका ऐसा व्यवहार कृत्रिम ही दिखाई पड़ता है।

छोटी उंगलियों वाले व्यक्ति प्रायः जल्दबाज होते हैं। उन्हें छोटी-छोटी बातें प्रभावित नहीं कर पातीं। वे हर बात में पूर्णता चाहते हैं। ऐसे व्यक्तियों को न तो समाज की परम्पराओं की ही कोई चिन्ता होती है और न किसी प्रकार के दिखावे की। वे विचारों में जल्दबाज और बातचीत में स्पष्टवादी होते हैं।

यदि उंगलियां छोटी मोटी तथा भट्टी भी हों तो व्यक्ति क्रूर एवं स्वार्थी होता है। यदि उंगलियां कर अकड़ी हुई सी तथा भीतर की ओर मुड़ी या सिकड़ी हुई हों तो ऐसे व्यक्ति सावधानी बरतने वाले तथा आत्मनियन्त्रक होते हैं। ऐसे व्यक्ति प्रायः कायर भी होते हैं।

यदि उंगलियां लचीली और पीछे की ओर धनुष के समान मुड़ जाने वाली हों तो व्यक्ति आकर्षक स्वभाव वाला, शालीन, चतुर, किन्तु हर बात को जानने का होता है।

यदि जंगलियां टेढ़ी-मेढ़ी अथवा विकृत हों तो व्यक्ति धूर्त अथवा बिगड़े स्वभाव का होता है। किसी अच्छे हाथ में ऐसी उंगलियां प्रायः कम ही होती हैं। यदि हों तो ऐसे व्यक्ति को देखकर मन प्रसन्न नहीं होता, उसे देखकर चिढ़ पैदा होती है।

यदि उंगलियों के नाखून वाले भाग पर भीतर की ओर मांस की गद्दी सी हो तो ऐसा व्यक्ति अत्यधिक संवेदनशील एवं व्यवहारकुशल होता है। ऐसे व्यक्ति का सदा यही प्रयत्न रहता है कि उसके कारण दूसरों को कोई कष्ट न हो।

यदि उंगलियां जड़ पर मोटी और फूली हुई हों तो ऐसा व्यक्ति दूसरों की अपेक्षा अपने आराम का अधिक ध्यान रखता है। ऐसा व्यक्ति अपने खाने पीने और रहन सहन में बड़ा शौकीन होता है। लेकिन यदि इसके विपरीत उंगलियां अपनी जड़ पर कमर के समान पतली हों तो ऐसा व्यक्ति निस्वार्थ प्रकृति का होता है तथा अपने भोजन में सन्तुलन रखता एवं सावधान रहता है।

यदि उंगलियां खुली हुई हों तथा तर्जनी और मध्यमा के बीच फासला अधिक हो तो व्यक्ति स्वतन्त्र विचारों का होता है। लेकिन यदि मध्यमा और अनामिका के बीच फासला अधिक हो तो व्यक्ति स्वतन्त्र रूप से काम करने वाला होता है।

उंगलियों का लम्बा या छोटा होना

प्रत्येक हाथ में उंगलियों की लम्बाई में अन्तर होता है। किसी हाथ में तर्जनी बहुत छोटी होती है तो किसी में वह मध्यमा के बराबर होती है। ऐसा ही अन्य उंगलियों के सम्बन्ध में भी होता है।

यदि तर्जनी अत्यधिक लम्बी हो तो व्यक्ति घमण्डी हो जाता है। ऐसे व्यक्ति में दूसरों पर शासन करने तथा अपना प्रभुत्व जमाने की प्रवृति आ जाती है। प्रायः धर्मगुरुओं एवं राजनीतिज्ञों के हाथों की तर्जनी ऐसी ही होती है।

यदि तर्जनी असामान्य रूप से लम्बी अथवा मध्यमा जितनी लम्बी हो तो व्यक्ति में घमण्ड की मात्रा कुछ अधिक ही होती है। ऐसे व्यक्ति अपने को संसार का सबसे ऊंचा व महान् व्यक्ति मान बैठते हैं। नेपोलियन की तर्जनी इसी प्रकार की थी। उसकी तर्जनी मध्यमा के बराबर थी।

यदि मध्यमा यानी शनि की उंगली वर्गाकार और मोटी हो तो व्यक्ति अत्यन्त गम्भीर स्वभाव का होता है। उसे एक प्रकार से अस्वस्थ भी कहा जा सकता है। यदि मध्यमा नुकीली हो तो व्यक्ति निष्ठुर एवं छिछोरा होता है।

यदि अनामिका या सूर्य की उंगली तर्जनी जितनी लम्बी हो तो ऐसा व्यक्ति धाकांक्षी एवं कलात्मक रुचि द्वारा प्रतिष्ठा प्राप्त करने का इच्छुक होता है। यदि अनामिका अत्यधिक लम्बी हो या मध्यमा के बराबर हो तो व्यक्ति जीवन को एक लाटरी समझता है। ऐसा व्यक्ति अपने जीवन, धन तथा मान-सम्मान को दांव पर लगाने के लिये सदा तैयार रहता है।

यदि अनामिका का अग्रभाग चमचाकार हो तो व्यक्ति सफल अभिनेता, वक्ता अथवा धर्मोपदेशक बनता है, जिसका अर्थ है कि ऐसे व्यक्ति को जनता द्वारा समर्थन प्राप्त होता है।

यदि कनिष्ठिका लम्बी एवं सुगठित हो तो वह हाथ में अंगूठे से सन्तुलन बनाने का काम करती है तथा व्यक्ति के दूसरों पर प्रभाव डालने की क्षमता की सूचना देती है। यदि कनिष्ठिका अत्यधिक लम्बी हो तथा अनामिका के नाखून तक पहुंच जाए तो ऐसा व्यक्ति प्रतिभाशाली लेखक, दार्शनिक अथवा ओजस्वी वक्ता होता है। ऐसा व्यक्ति किसी भी विषय पर अपने ज्ञान और तथ्यों की जानकारी द्वारा दूसरों को प्रभावित कर सकता है।

उंगलियों के जोड़

उंगलियों के जोड़ चाहे विकसित हों या गांठदार या अविकसित हों, हस्तपरीक्षण में बहुत महत्त्वपूर्ण माने जाते हैं। वास्तव में उंगलियों के जोड़ उनके पोरों की बीच की दीवार होते हैं, जिससे व्यक्ति के स्वभाव एवं विशेषताओं का परिचय मिलता है।

उंगलियां एवं उंगलियों के जोड़
रेखाकृति 1 – उंगलियों के जोड़

जिस व्यक्ति की उंगलियों के जोड़ सीधे व सपाट हों वह भावनाप्रधान और तर्क अथवा विवेचनशक्ति का उपयोग किये बिना ही किसी निर्णय पर पहुंचने वाला होता है। यदि हाथ वर्गाकार हो तो यह सम्भावना कुछ कम अवश्य हो जाती है, पर किसी भी दशा में पूरी तरह समाप्त नहीं होती। फलस्वरूप यदि किसी वैज्ञानिक की उंगलियां वर्गाकार हों व उनके जोड़ भी स्पष्ट हों (देखिये रेखाकृति 1 क) तो ऐसा व्यक्ति तुरन्त किसी निष्कर्ष पर पहुंच जायेगा। कोई भी तर्क उसके मार्ग में बाधक नहीं बन सकेगा। यदि ऐसा व्यक्ति डाक्टर हो तो वह अपने रोगियों का निदान इसी प्रकार करेगा और यदि वह वास्तव में प्रतिभाशाली भी हुआ तो उसका निदान सही भी होगा। फिर भी इस प्रकार की उंगलियों वाले व्यक्ति उन व्यक्तियों की तुलना मैं कहीं न कहीं भूल कर ही जाते हैं जिनकी उंगलियां वर्गाकार व गांठदार होती हैं।

नुकीली उंगलियों के सपाट जोड़ वाले व्यक्ति अन्तर्ज्ञानप्रधान होते हैं (देखिये रेखाकृति 1 ख ) । उन पर किसी प्रकार के तर्क का असर नहीं पड़ता। वे अपने पहनावे व अन्य छोटी-छोटी बातों की ओर भी विशेष ध्यान नहीं देते। ऐसे व्यक्ति यदि व्यापारी हों तो उनके काम करने के ढंग में कोई व्यवस्था नहीं होती, जबकि वे दसरों को व्यवस्थित देखना पसन्द करते हैं।

यदि उंगलियों के जोड़ विकसित अथवा गांठदार हों (देखिये रेखाकृति 1-ग) तो ऐसे व्यक्तियों में विपरीत गुण ही नजर आते हैं। जोड़ों के विकसित या अविकसित होने से व्यक्ति की कार्यक्षमता में कोई अन्तर नहीं आता। जिन व्यक्तियों की उंगलियों के जोड़ विकसित होते हैं वे भी उतना ही कठोर परिश्रम करते हैं जितना कि वे जिनकी उंगलियों के जोड़ गांठदार या विकसित नहीं होते ।

अन्तर केवल इतना है कि जिन लोगों की उंगलियों के जोड़ विकसित या गांठदार होते हैं वे मानसिक श्रम अधिक करते हैं, जबकि अविकसित उंगलियों के जोड़ वाले व्यक्ति शारीरिक परिश्रम करते हैं। ऐसे जोड़ कई बार तो परिवार में पीढ़ी-दर-पीढ़ी पाए जाते हैं या फिर परिवार के एक व्यक्ति के हाथ में तो सम्पूर्ण रूप में दिखाई पड़ते हैं, जबकि अन्य लोगों के हाथों में उनका केवल प्रभाव ही दीखता है।

विकसित या गांठों के सपाट जोड़ों या अविकसित गांठों से विपरीत होने के कारण यह निष्कर्ष निकलता है कि विकसित अथवा गांठदार जोड़ों का अर्थ है कार्यपद्धति में सटीक होना। यदि विकसित या गांठदार जोड़ों वाली उंगलियां किसी वैज्ञानिक के हाथ में हों तो वह इस बात की चिन्ता नहीं करता कि वह जिस कार्य में संलग्न है। उसके सूक्ष्म विवेचन एवं विशेषता में कितना समय लगता है। यही कारण है कि दार्शनिक हाथों वाले व्यक्ति अपने कार्य के विवरण के प्रति पूरी तरह सजग होते हैं।

यदि गांठदार जोड़ वाली उंगलियों वाले व्यक्ति किसी कमरे में बैठे हों तो उन्हें तुरन्त इस बात का पता लग जाता है कि वहां कौन चीज गलत स्थान पर रखी है। ऐसे व्यक्ति छोटी-छोटी बातों से भी चिन्तित हो जाते हैं, परन्तु अनेक महत्त्वपूर्ण मामलों में स्थिर बने रहते हैं। ऐसे व्यक्ति अपने पहनावे के प्रति भी अत्यधिक सतर्क और सावधान होते हैं। यदि उनके साथ कोई महिला हो, जिसके वस्त्रों में किसी प्रकार का तालमेल न हो तो उन्हें इस बात से भी बड़ी परेशानी होती है। ऐसे व्यक्ति नाटकों में अभिनेताओं की भूमिका के लिये बहुत अच्छे सिद्ध होते हैं, किन्तु उनमें नाटकीयता बिल्कुल नहीं होती। ऐसे व्यक्ति विज्ञान के अतिरिक्त साहित्यिक क्षेत्र में अधिक श्रेष्ठ सिद्ध होते हैं, क्योंकि उनमें मनुष्य के स्वभाव और उसकी प्रकृति के सूक्ष्म विवेचन करने की क्षमता होती है।

अतः इन सब बातों से यह निष्कर्ष निकलता है कि जिन व्यक्तियों की उंगलियों की गांठें विकसित होंगी वे आवेश के ज्वार पर नियन्त्रण पा सकते हैं तथा उनका स्वभाव अत्यन्त विवेकशील, विचारशील एवं विश्लेषण करने वाला होता है।


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