हृदय रेखा
हाथ के अध्ययन में हृदय रेखा को अत्यन्त महत्त्वपूर्ण स्थान दिया गया है। जीवनरूपी नाटक में पुरुष का स्त्री के प्रति प्रेम अथवा स्त्री का पुरुष के प्रति आकर्षण स्वाभाविक है। इसीलिये इन भावनाओं का परिचय हाथ में भी पाया जा सकता है। हृदय रेखा इसमें प्रमुख भूमिका अदा करती है जो कि हाथ पर बृहस्पति क्षेत्र से आरम्भ होकर शनि एवं सूर्य पर्वत क्षेत्रों को पार करती हुई बुध पर्वत के मूल स्थान तक जा पहुंचती है (देखिए रेखाकृति 1)।
हृदय रेखा गहरी, स्पष्ट और अच्छी रंगत वाली होनी चाहिये, लेकिन सभी हाथों में इसका प्रारम्भ एक समान नहीं होता। कभी यह बृहस्पति पर्वत क्षेत्र के मध्य से तो कभी तर्जनी और मध्यमा के बीच से व कभी शनि पर्वत के केन्द्र से प्रारम्भ होती दिखाई देती है।
जब यह रेखा बृहस्पति पर्वत क्षेत्र के मध्य से आरम्भ होती दिखाई दे तो व्यक्ति एक आदर्श प्रेमी होता है तथा अपने प्रेम पात्र की पूजा करता है (देखिए रेखाकृति 2 d-d) । ऐसी रेखा वाले व्यक्ति अपने प्रेम सम्बन्धों में दृढ़, स्थिर एवं विश्वसनीय होते हैं। उनकी यह आकांक्षा भी होती है कि वे जिसको प्रेम करें, वह स्त्री महान, भद्र एवं विख्यात हो। ऐसे व्यक्ति अपने स्तर से नीचे की स्त्री से कभी विवाह नहीं करते।
लेकिन जिन व्यक्तियों के हाथों में हृदय रेखा शनि पर्वत क्षेत्र के नीचे से आरम्भ होती है, वे बहुत कम प्रेम सम्बन्ध स्थापित कर पाते हैं।
कभी-कभी हृदय रेखा बृहस्पति पर्वत क्षेत्र या तर्जनी के नीचे आरम्भ होती है (देखिए रेखाकृति 2 e-e)। यदि रेखा की स्थिति ऐसी हो तो व्यक्ति के उपर्युक्त गुणों में अधिकता की सूचक होती है। ऐसे व्यक्ति प्रायः प्रेम में सब कुछ भूलकर अन्धे जैसे हो जाते हैं और उन्हें अपने प्रेमी में कोई दोष दिखाई नहीं देता। ऐसे व्यक्ति प्रेम में प्रायः दुःख भोगते हैं और जब उनके इस विश्वास को आघात पहुंचता है अथवा जब उन्हें यह पता चलता है कि वे जिसको प्रेम करते हैं वह प्रेमपात्र उतना उत्कृष्ट नहीं है जितना कि वे उसे समझते थे तो उनके स्वाभिमान को बड़ी ठेस पहुंचती है। इस विचार के प्रभाव से वे कभी उबर नहीं पाते।
बेचारे पुजारी कब ये समझेंगे कि स्त्री पवित्र तो हो सकती है, पर वह देवी कभी नहीं बन सकती और न ही कभी पूर्ण हो सकती है। वे नहीं समझते कि उसका स्थान तो व्यक्ति की सहचरिणी के रूप में ही सही है। फिर उसे इतना ऊंचा क्यों उठा दिया जाए कि उसके गिरने की सम्भावना पैदा हो जाए।
यदि हृदय रेखा तर्जनी एवं मध्यमा के बीच से आरम्भ होती दिखाई दे तो ऐसा व्यक्ति अपने प्रेमपात्र को प्रेम तो सच्चे मन से करता है, परन्तु उसकी प्रकृति अधिक शान्त एवं गम्भीर होती है। (देखिए रेखाकृति 2 f-f) । वह बेचैन या अधीर नहीं होता। ऐसे व्यक्ति बृहस्पति या गुरु पर्वत से मिलने वाले आदर्शों एवं आत्माभिमान तथा शनि पर्वत से प्राप्त भावावेश के बीच के गुण ग्रहण करते दिखाई देते हैं। ऐसे व्यक्तियों में न तो अधिक गरिमा होती है और न ही उच्च अभिलाषाएं ।
जिन व्यक्तियों के हाथ में हृदय रेखा शनि पर्वत क्षेत्र से आरम्भ होती है उनके प्रेम में वासना अधिक होती है। वे अपने प्रेम के मामले में स्वार्थी भी होते हैं। घरेलू जीवन में भी ऐसे व्यक्ति अधिक मुखर एवं प्रदर्शनप्रिय नहीं होते, जैसा कि गुरु पर्वत क्षेत्र से आरम्भ होने वाली रेखा वाले व्यक्ति होते हैं। ऐसा तभी होता है जब हृदय रेखा मध्यमा के मूल स्थान से आरम्भ हो । तब तो व्यक्ति वासना के वशीभूत होते हुए और भी अधिक स्वार्थी हो जाता है। ऐसी रेखा वाले व्यक्तियों में यह दुर्गण कुछ अधिक ही होते हैं।
यदि हृदय रेखा अपनी स्वाभाविक लम्बाई से अधिक लम्बी हो तथा हथेली के एक सिरे से दूसरे सिरे तक चली जाए तो ऐसे व्यक्ति की प्रेम-भावनाओं में अधिकता आ जाती है तथा उसमें इर्ष्या की प्रवृत्ति भी पैदा हो जाती है। यह प्रवृत्ति तब तो और भी अधिक बढ़ जाती है जब हृदय रेखा हथेली के बाहर से शुरू होकर तर्जनी के मूल स्थान तक पहुंच जाए।
यदि अनेक छोटी-छोटी रेखाएं आकर हृदय रेखा से मिलती हुई दिखाई दें तो व्यक्ति अपने प्रेम सम्बन्धों में स्थिर नहीं रह पाता। उसका कोई भी प्रेम सम्बन्ध स्थाई नहीं रह पाता। वह काम सम्बन्धों में भी विविधता चाहता है (देखिए रेखाकृति 2)
यदि हृदय रेखा शनि पर्वत क्षेत्र से आरम्भ हुई हो तथा चौड़ी एवं श्रृंखलाकार भी हो तो व्यक्ति विपरीत लिंगी व्यक्ति के प्रति घृणा की दृष्टि से देखता है।
यदि हृदय रेखा चमकीले लाल रंग की हो तो व्यक्ति का कामोद्वेग हिंसात्मक भी हो सकता है। इसका अर्थ यह भी हो सकता है कि ऐसा व्यक्ति अपनी वासना की पूर्ति के लिए बलात्कार आदि भी कर सकता है।
यदि हृदय रेखा फीकी, पीली और चौड़ी हो तो व्यक्ति का स्वभाव नीरस होता है। तथा कामवासना आदि के प्रति उसकी विशेष दिलचस्पी नहीं होती।
यदि हृदय रेखा हाथ पर कुछ नीचे को हो तथा मस्तिष्क रेखा के निकट हो तो ऐसी परिस्थिति में हृदय की भावनाओं पर मस्तिष्क का अधिकार रहता है। लेकिन यदि हृदय रेखा ऊंची हो और मस्तिष्क रेखा के कारण उन दोनों के बीच का अन्तर काफी कम हो तो परिणाम भी उल्टा होता है। ऐसी परिस्थिति में मस्तिष्क पर हृदय का प्रभाव अधिक देखने को मिलता है। ऐसा व्यक्ति निष्ठुर, कठोर, इर्ष्यालु एवं अनुदार हो जाता है।
हृदय रेखा का टूटना प्रेम सम्बन्धों में निराशा का सूचक होता है।
- यदि ऐसा शनि पर्वत क्षेत्र के नीचे हो तो व्यक्ति के प्रेम सम्बन्ध उसकी इच्छा के विद्धध होकर टूट जाते हैं।
- यदि सूर्य पर्वत क्षेत्र के नीचे हो तो आत्माभिमान के कारण प्रेम सम्बन्धों में बाधा पड़ती है।
- यदि हृदय रेखा बुध पर्वत क्षेत्र के नीचे टूटी हो तो व्यक्ति की मूर्खता अथवा कामुकता के कारण प्रेम-सम्बन्धों में कटुता आ जाती है। या सम्बन्ध विच्छेद हो जाता है।
- यदि हृदय रेखा बृहस्पति पर्वत क्षेत्र के नीचे से दो शाखाओं में आरम्भ होती हो तो ऐसे व्यक्ति दिल से सच्चे एवं प्रेम के प्रति उत्साहित दिखाई पड़ते हैं।
यहां यह भी ध्यान में रखने की बात है कि हृदय रेखा ऊंचाई से शुरू होती है या नीचे से। इनमें से पहली स्थिति यानि हृदय रेखा का ऊंचाई से प्रारम्भ होना उत्तम माना जाता है, क्योंकि इससे व्यक्ति की प्रकृति प्रसन्नचित्त होती है।
यदि हृदय रेखा नीची तथा मस्तिष्क रेखा की ओर ढलवां या झुकी हुई हो तो व्यक्ति को अपने जीवन के आरम्भिक दिनों में प्रेम सम्बन्धों में निश्चित रूप से असन्तोष मिलता है।
यदि हृदय रेखा अपने आरम्भ में ही दो शाखाओं वाली हो और एक शाखा बृहस्पति पर्वत क्षेत्र पर पहुंच जाए तथा दूसरी तर्जनी और मध्यमा के बीच तो व्यक्ति सन्तुष्ट, शान्त, सौभाग्यशाली एवं अपने प्रेम सम्बन्धों में सुख अनुभव करता है। लेकिन यदि एक शाखा बृहस्पति पर्वत क्षेत्र पर रहे एवं दूसरी शाखा शनि पर्वत क्षेत्र की ओर चली जाए तो व्यक्ति का जीवन संकटपूर्ण हो जाता है। ऐसे व्यक्ति अपने परिवर्तनशील व्यवहार के कारण प्रेम सम्बन्धों में न तो सुखी हो पाते हैं और न ही उनमें कोई रुचि ले पाते हैं।
यदि हृदय रेखा अत्यन्त बारीक हो तथा उसकी कोई शाखा भी न हो तो यह व्यक्ति के हृदय की निष्ठुरता एवं प्रेम के अभाव की द्योतक होती है।
यदि हृदय रेखा जहां समाप्त होती है उस स्थान पर उसमें शाखाएं न हों अथवा वह अत्यन्त बारीक हो तो व्यक्ति में सन्तानोत्पादक क्षमता नहीं होती तथा वह सन्तानहीन होता है।
यदि कुछ बारीक रेखाएं मस्तिष्क रेखा से निकल कर हृदय रेखा का स्पर्श करें तो ये उन व्यक्तियों या विचारों का प्रतिनिधित्व करती हैं जिनका व्यक्ति के हृदय पर प्रभाव पड़ा हो। यदि ऐसी रेखाएं हृदय रेखा को काट दें तो व्यक्ति के प्रेम-सम्बन्धों पर किसी संकट की द्योतक होती हैं।
यदि हृदय रेखा, मस्तिष्क रेखा एवं जीवन रेखा आपस में परस्पर जुड़ी हुई हों तो यह एक अशुभ लक्षण होता है। इस प्रकार के व्यक्ति प्रेम के सम्बन्ध में अपनी अभिलाषा को पूर्ण करने के लिये कुछ भी कर गुजरते हैं।
यदि हाथ में हृदय रेखा न हो अथवा केवल नाममात्र को हो तो ऐसे व्यक्ति में घनिष्ठ प्रेम सम्बन्ध स्थापित करने की क्षमता ही नहीं होती। फिर भी यदि हाथ मुलायम हो तो व्यक्ति कामुक सिद्ध हो सकता है। लेकिन यदि हाथ कठोर हो तो व्यक्ति वासना से विमुख होते हुए प्रेम-सम्बन्धों में भी नीरस ही रहता है।
यदि किसी हाथ में हृदय रेखा धुंधली पड़ गई हो तो यह इस बात का चिह्न है कि व्यक्ति को प्रेम सम्बन्धों में भयंकर निराशाओं का सामना करना पड़ा है, जिसके कारण वह निष्ठुर और उदासीन हो गया है।
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