हाथ की रेखाएं
इससे पहले कि मैं हस्तरेखा के सम्बन्ध में कुछ गम्भीर विवरण प्रस्तुत करूं, मैं चाहता हूं कि मैं इस विषय के पाठकों और छात्रों से कुछ शब्द कहूं, ताकि वे इस विषय के अध्ययन में पर्याप्त दिलचस्पी ले सकें तथा इस पुस्तक के अध्ययन से लाभ उठा सकें।
सबसे पहले तो मैं यह बता दूं कि हस्तरेखा विज्ञान से सम्बन्धित इन लेखों को एक भरोसेमन्द मार्गदर्शक बनाने की इच्छा से मैं इस विद्या के सम्बन्ध में विस्तार से बात करना चाहता हूं। हो सकता है कि मेरे कुछ पाठक इन बातों से ऊब महसूस करते हों, लेकिन विषय के पूर्ण अध्ययन के लिये यह बहुत आवश्यक है। भविष्य में इससे आपको लाभ होगा तथा अनेक सच्चाइयों का पता चलेगा।
इस लेखों को तैयार करते समय मैंने अपने आपको किसी एक विचार, परम्परा अथवा विद्वान् तक ही सीमित नहीं रखा है, बल्कि संसार के हर कोने से छोटी से छोटी जानकारी एकत्र करके यहां प्रस्तुत की है तथा उस सबको अपने अनुभव की कसौटी पर परखने के बाद ही पाठकों के सम्मुख रखने का प्रयत्न किया है। मैंने यहां वही बातें लिखी हैं जिन्हें मैंने अपने अनुभव से सही पाया है। मेरा अपने पाठकों से अनुरोध है कि वे इन लेखों का अध्ययन करते समय धैर्य और एकाग्रता बनाये रखें।
जिस प्रकार दो व्यक्तियों का स्वभाव एक समान नहीं होता, उसी प्रकार दो हाथ भी एक जैसे नहीं होते। हाथ को पढ़ने का अर्थ है – प्रकृति को पढ़ना। हाथ का पढ़ना जितना श्रमसाध्य है, उससे अधिक आकर्षक और कुछ नहीं है। इस विषय के प्रति न्याय करते हुए मैं अन्य लेखकों की भांति यह नहीं कहता कि यह विज्ञान अत्यन्त सरल है तथा हाथों के अमुक चित्र देखकर आप हाथ को पढ़ना सीख सकते हैं। मेरा कहना है कि हाथ की प्रत्येक रेखा का भिन्न अर्थ होता है, जिसका कारण हाथों की बनावट होती है। उदाहरण के लिये किसी वर्गाकार हाथ पर ढलवां मस्तिष्क रेखा का जो अर्थ होता है, वह किसी नुकीले या दार्शनिक हाथ में भिन्न हो जाएगा। इन लेखों को लिखते हुए मैंने इस बात का ध्यान रखा है कि ये लेख पाठकों के लिये केवल मनोरंजन का साधन ही न बन जाए अपित् उपयोगी भी सिद्ध हो। इस सम्बन्ध में मेरा यह प्रयत्न रहा है कि विषय से सम्बन्धित छोटी से छोटी बात भी बिल्कुल स्पष्ट हो जाए । यद्यपि इस प्रकार के विषय में प्रत्येक छोटी-से-छोटी बात को स्पष्ट करना बहुत कठिन है तथापि मेरा भरसक प्रयत्न रहा है कि हर बात पूर्णरूप से स्पष्ट हो जाए।
एक अन्य महत्त्वपूर्ण बात जिसे ध्यान में रखना बहुत आवश्यक है, वह है इस विषय के बारे में भिन्न-भिन्न मत, जिन्हें प्रायः इस विज्ञान के विरुद्ध तर्क के रूप में प्रस्तुत किया जाता है। हमें यह याद रखना होगा कि यदि हम किसी विषय से सम्बन्धित सच्चाई तक पहुंचना चाहते हैं तो उससे सम्बन्धित अनेक मतों का व्यावहारिक रूप से निरीक्षण-परीक्षण करना होगा और तभी अनेक लोगों का किसी एक निष्कर्ष पर पहुंचने के लिये जो मत बनेगा, उस पर सहमति हो सकेगी।
इस सम्बन्ध में इससे बढ़कर और क्या प्रमाण हो सकता है कि मनुष्य आज तक न तो धर्म के क्षेत्र में और न विज्ञान के क्षेत्र में ही कभी एक मत हुआ है, न होगा। इस बारे में मतों की जितनी विभिन्नता चिकित्साशास्त्रियों में है, उससे अधिक और किसी समुदाय में नहीं पाई जाती। इसीलिये मैं यहां एक प्रतिष्ठित चिकित्सक के ये शब्द उद्धृत करता हूं कि “हमें किसी भी विषय के अध्ययन करते समय उस ज्ञान को अवश्य ग्रहण कर लेना चाहिये, जिसे सही मानने के लिए हमारे पास सर्वाधिक कारण हों”। इस प्रकार हम उस व्यक्ति की अपेक्षा कहीं अधिक ज्ञान प्राप्त कर सकते हैं जो हर ज्ञानी के प्रति श्रद्धा रखता हुआ निरन्तर किसी घुमक्कड़ की भांति यहां से वहां भटकता रहता है।
मैं हस्तरेखा विज्ञान के विषय में यह कहना चाहता हूं कि इसके अध्ययन के लिए आप कोई एक ऐसी पुस्तक चुन लें, जिसके बारे में आप पूर्ण विश्वस्त हों तथा यह मानते हों कि वह सत्य के अधिक निकट है। इस प्रकार आप उन लोगों की अपेक्षा अधिक सफल हो सकेंगे जो बार-बार नये-नये लेखकों की पुस्तकें पढ़कर, विश्वासहीन एवं निराश होकर अन्त में अज्ञानी रह जाते हैं।
मुझ में और दूसरे लेखकों की मान्यताओं में यही एक मुख्य अन्तर है। मैं हाथ पर दिखाई पड़ने वाली विभिन्न रेखाओं को अलग-अलग शीर्षकों के अन्तर्गत विभाजित करता हूं और हर बिन्दु पर ध्यानपूर्वक मनन करता हूं।
इस प्रकार अध्ययन की यह विशेषता अधिक सरल और तर्कसंगत सिद्ध होती है। उदाहरण के लिये मैं जीवन रेखा को जीवन के सभी विषयों से सम्बन्धित मानता हूं। जैसे जीवन की अवधि अथवा देश या वातावरण में किसी प्रकार के परिवर्तन को मैं मस्तिष्क रेखा से सम्बन्धित मानता हूं, जो किसी भी कारण से मन से सम्बन्धित है अथवा उसे प्रभावित करता है। मेरी यह योजना अत्यन्त सरल और सटीक है तथा उन अनेक विद्वानों के मतानुकूल भी है जिनके विचारों का मैं आदर करता हूं। कोई घटना कब घटित होगी, इसका निश्चय करने के लिए मैं सामान्य प्रचलित नियमों का विरोधी हूं, क्योंकि मैं उस सिद्धान्त का मानने वाला हूं जिसके बारे में यह प्रसिद्ध है कि वह दिलचस्प भी है और युक्तिसंगत भी । प्राकृतिक नियमों के अनुसार जीवन को सात भागों में विभाजित किया गया है। आगे चलकर मैं भी अपनी इस बात को सिद्ध करूंगा।
हाथ की रेखाएं
हाथ पर सात प्रमुख रेखाएं होती हैं और सात ही गौण रेखाएं भी होती हैं (देखिए रेखाकृति 1) । हाथ की प्रमुख रेखाएं इस प्रकार हैं।
- जीवन रेखा – जो शुक्र पर्वत के क्षेत्र को घेरे रहती हैं।
- मस्तिष्क रेखा – जो हाथ के बीच में एक सिरे से दूसरे सिरे तक होती है ।
- हृदय रेखा – जो मस्तिष्क रेखा के समानान्तर ही उंगलियों के मूल स्थान के नीचे होती है।
- शुक्र मुद्रिका – जो मूलतः हृदय रेखा से ऊपर सूर्य व शनि पर्वत के क्षेत्र को घेरे हुए होती है।
- स्वास्थ्य रेखा – जो बुध पर्वत क्षेत्र से आरम्भ होकर हाथ में नीचे की ओर जाती है।
- सूर्य रेखा – जो मंगल पर्वत क्षेत्र से ऊपर उठती हुई हाथों के बीचों-बीच सूर्य पर्वत क्षेत्र की ओर जाती है।
- भाग्य रेखा – जो हथेली के बीचों-बीच होती है तथा मणिबन्ध से आरम्भ होकर शनि पर्वत क्षेत्र की ओर जाती है।
हाथ की सात गौण – रेखाएं इस प्रकार हैं।
- मंगल रेखा – जो मंगल पर्वत से आरम्भ होकर जीवन रेखा की ओर होती है।
- वासना रेखा – जो स्वास्थ्य रेखा के समानान्तर होती है।
- अन्तर्ज्ञान रेखा – जो बुध पर्यंत क्षेत्र से आरम्भ होकर चन्द्र पर्वत क्षेत्र की ओर अर्द्धवृत्ताकार रूप में होती है।
- विवाह रेखा – जो बुध पर्वत क्षेत्र पर आड़ी रेखा के रूप में होती है।
- तीन मणिबन्ध रेखाएं – जो कलाई या मणिबन्ध पर पाई जाती हैं।
प्रमुख रेखाओं को कुछ अन्य नाम भी दिये जाते हैं, जैसे जीवन रेखा को आयु रेखा, मस्तिष्क रेखा की शीर्ष रेखा, भाग्य रेखा को शनि रेखा, सूर्य रेखा को प्रखर रेखा अथवा स्वास्थ्य रेखा को यकृत रेखा ।
मस्तिष्क रेखा पूरी हथेली को दो भागों अथवा दो गोलाद्धों में विभाजित करती है।
- ऊपरी गोलार्द्ध – जिसमें हाथ की उंगलियां तथा बृहस्पति, शनि, सूर्य, बुध एवं मंगल पर्वत क्षेत्र होते हैं। यह भाग व्यक्ति की बौद्धिक एवं मानसिक क्षमताओं का प्रतिनिधित्व करता है।
- निचला गोलार्द्ध – जिस पर हथेली का आधार होता है तथा जो मस्तिष्क रेखा से हाथ के मूल स्थान तक फैला होता है। यह क्षेत्र भौतिकता का प्रतिनिधित्व करता है या व्यक्ति की रुचियों एवं भावनाओं का सूचक होता है।
इस प्रकार यह स्पष्ट हो जाता है कि हाथ के ये दो भाग हस्तरेखाविद् के मार्गदर्शक बन कर व्यक्ति के बारे में सब कुछ स्पष्ट कर देते हैं।
अब तक हाथ का इस प्रकार विभागीकरण नहीं किया गया, लेकिन यह अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है, क्योंकि इस प्रकार फलकथन में किसी भी भूल की सम्भावना नहीं रह जाती । उदाहरण के लिये यदि व्यक्ति का रुझान अपराधी प्रवृत्तियों की ओर होता है तो उसके हाथ की मस्तिष्क रेखा असामान्य हालत में ऊपर को उठी हुई पाई जाती है, जैसा कि आप रेखाचित्र 14 में देख सकते हैं। यह मेरे इस वक्तव्य की प्रामाणिकता को पुष्ट करने का केवल एक उदाहरण है।
हस्तरेखाओं की विशेषताएं
हस्तरेखाओं के बारे में एक स्पष्ट नियम यह है कि
- वे हाथ पर पूरी तरह से स्पष्ट अंकित हों। न तो अधिक चौड़ी हों और न ही उनका रंग पीलापन लिये हुए हो । इसके साथ ही न तो उनमें टूट-फूट होनी चाहिये, न द्वीप के चिह्न और न ही किसी प्रकार की अनियमितताएं होनी चाहिएं।
- यदि रेखाएं लाल रंग की हों तो वे व्यक्ति के आत्मविश्वास एवं आशावादी स्वभाव तथा दृढ़ चरित्र की द्योतक होती हैं।
- पीले रंग की रेखाएं इस बात का संकेत करती हैं कि व्यक्ति में अच्छे स्वास्थ्य की कमी है तथा उसमें न तो स्फूर्ति है और न निर्णय लेने की क्षमता है।
- पीले रंग की रेखाएं व्यक्ति की पित्तप्रधान प्रकृति की द्योतक होती हैं। उनसे यह भी पता चलता है कि व्यक्ति को यकृत रोग की सम्भावना है। ऐसा व्यक्ति अपने तक सीमित, संकुचित वृत्ति का अर्थात् कम मिलने-जुलने वाला व घमण्डी होता है।
- यदि रेखाएं गहरे रंग की या काली-सी हों तो व्यक्ति के गम्भीर एवं एकान्तप्रिय होने की सूचक होती हैं। ऐसा व्यक्ति आमतौर पर प्रतिरोधी वृत्ति का, क्षमा की भावना से हीन तथा हठधर्मी होता है।
हाथ का अध्ययन करते समय यह बात सदा ध्यान में रखनी चाहिये कि हस्तरेखाएं दिखाई भी पड़ सकती हैं, धुंधली भी पड़ सकती हैं और मिट भी सकती हैं। हस्तरेखाविद् का यह कर्तव्य है कि वह व्यक्ति को उसकी दुष्प्रवृतियों के कारण उस पर आने वाले संकट से उसे सावधान कर दे। यह उस व्यक्ति की इच्छा पर निर्भर करता है कि वह अपनी उन दुष्प्रवृतियों पर अधिकार कर सकता है, उन्हें नियन्त्रित कर सकता है अथवा नहीं। हस्तरेखाविद् व्यक्ति को यह भी बता सकता है कि भविष्य में वह अपनी बुराइयों पर नियन्त्रण पाने में समर्थ हो सकेगा या नहीं। हस्त परीक्षण करते हुए किसी एक ही अशुभ लक्षण को देखकर कोई निर्णय नहीं ले लेना चाहिये, क्योंकि यदि व्यक्ति में कोई दुष्प्रवृत्ति है तो हाथ की हर प्रमुख रेखा उसके प्रभाव की ओर अवश्य संकेत करेगी। साथ ही यह भी आवश्यक है कि किसी अन्तिम निर्णय पर पहुंचने से पहले व्यक्ति के दोनों हाथों की परीक्षा की जाए। केवल एक अकेला चिह्न अपने आप में किसी दुष्प्रवृत्ति का सूचक हो सकता है, लेकिन यदि अन्य रेखाओं से भी उसकी पुष्टि हो जाए तो समझ लेना चाहिये उस लक्षण से सांकेतिक संकट का आना अवश्यम्भावी है।
प्रायः प्रश्न किया जाता है कि क्या हथेली पर दिखाई देने वाले संकटों से व्यक्ति बच सकता है। इस सम्बन्ध में मेरा कहना है कि यदि वह प्रयत्न करे तो निश्चित रूप से अपनी रक्षा कर सकता है। लेकिन इसके साथ ही मेरा यह भी दृढ़ मत है कि शायद ही कोई व्यक्ति ऐसा कर पाता हो । मेरे अनुभव में ऐसे अनेक व्यक्ति आए हैं जिन्हें बिल्कुल सही चेतावनी दी गई, लेकिन उन्होंने उस पर कोई ध्यान नहीं दिया और जब वह संकट आ गया तो बहुत देर हो चुकी थी ।
जब किसी प्रमुख रेखा, जैसे मस्तिष्क रेखा या जीवन रेखा के साथ कोई सहायक रेखा भी आ मिले या उसके साथ-साथ चलती दिखाई दे तो वह उस मुख्य रेखा को अतिरिक्त बल प्रदान करती है (देखिए रेखाकृति 2 a-a ) । इसी प्रकार यदि कोई प्रमुख रेखा कहीं से टूट रही हो तो इस प्रकार की सहायक रेखा उस दोष का निवारण कर देती है तथा प्रमुख रेखा के टूटने के कारण आने वाला संकट या तो टल जाता है या मध्यम पड़ जाता है। ऐसा प्रायः जीवन रेखा के साथ देखा जाता है।
यदि किसी रेखा की अन्त में दो शाखाएं हो जाती हों तो वह रेखा अधिक बलवान हो जाती है, लेकिन ऐसा जीवन रेखा के साथ नहीं होना चाहिये। यदि मस्तिष्क रेखा की अन्त में दो शाखाएं हो जाएं तो वह व्यक्ति की मानसिक शक्ति में वृद्धि का द्योतक होती हैं, परन्तु तब व्यक्ति का स्वभाव भी दो प्रकार का हो जाता है।
यदि कोई रेखा अन्त में गुच्छे के रूप में समाप्त होती हो तो यह व्यक्ति की मानसिक दुर्बलता का चिह्न होता है (देखिए रेखाकृति 2 b-b)। इसके कारण उस रेखा के सद्गुण नष्ट हो जाते हैं। यदि जीवन रेखा के अन्त में ऐसा हो तो यह व्यक्ति की स्नायविक शक्तियों के ह्रास एवं उसकी दुर्बलता का सूचक होता है।
यदि जीवन रेखा से कुछ शाखाएं या छोटी-छोटी रेखायें ऊपर की ओर उठती हुई दिखाई दें तो वे व्यक्ति की शक्ति को बढ़ाती हैं, जबकि नीचे को गिरती हुई रेखाएं इसके विपरीत फल देती हैं।
हृदय रेखा के आरम्भ में ऐसी शाखाओं का होना अत्यन्त महत्त्वपूर्ण होता है। विशेषतः तब जब व्यक्ति के वैवाहिक जीवन का प्रश्न हो। ऐसी रेखा से ऊपर की ओर उठती हुई शाखाएं व्यक्ति के प्रेम सम्बन्धों में स्निग्धता एवं गरिमा की द्योतक हैं, जबकि नीचे की ओर जाने वाली शाखाएं इसके विपरीत फल प्रदान करती हैं (देखिए रेखाकृति 3 a-a) |
मस्तिष्क रेखा पर ऊपर को उठती शाखाएं व्यक्ति की चतुराई एवं उसकी महत्त्वाकांक्षाओं का संकेत देती हैं (देखिए रेखाकृति 16 c-c)। भाग्य रेखा पर इस प्रकार ऊपर को उठती हुई शाखाएं प्रत्येक क्षेत्र में व्यक्ति की सफलताओं की द्योतक होती हैं।
किसी भी रेखा का श्रृंखलाकार होना एक दुर्बल चिह्न होता है (देखिए रेखाकृति 14 थ)।
- यदि हृदय रेखा इस प्रकार श्रृंखलाकार हो तो व्यक्ति की दुर्बलता एवं प्रेम सम्बन्धों में परिवर्तनशीलता की द्योतक होती है,
- लेकिन यदि मस्तिष्क रेखा इस प्रकार की हो तो व्यक्ति में स्थिर विचारों की कमी एवं मानसिक दुर्बलता की सूचक होती है। किसी रेखा का टूटना उससे सम्बन्धित असफलता का सूचक होता है (देखिए रेखाकृति 3 c-c) |
- रेखा का लहरदार होना उस रेखा के निर्बल हो जाने का सूचक होता है (देखिए रेखाकृति 3 b-b ) ।
- केशकीय रेखाएं अथवा बाल जैसी महीन वे रेखाएं जो किसी प्रमुख रेखा के साथ-साथ चलती हैं, कभी उसमें मिल जाती हैं तो कभी उससे निकल कर किसी श्रृंखला की तरह चलती दिखाई देती हैं, व्यक्ति की दुर्बलता की सूचक होती हैं।
- यदि पूरा हाथ छोटी-छोटी रेखाओं से भरा हुआ हो या उस पर रेखाओं का जाल – सा बिछा दीखता हो तथा रेखायें बिना किसी उद्देश्य के किसी भी दिशा में आती-जाती दिखाई दें तो यह व्यक्ति की मानसिक चिन्ताओं एवं उसके व्यग्र स्वभाव का द्योतक होता है। इससे प्रतीत होता है कि व्यक्ति उदिग्न प्रकृति का है तथा उसका स्वभाव चिन्तापूर्ण है ।
जैसे कण-कण एकत्रित होकर एक पर्वत का रूप धारण कर लेते हैं, वैसे ही इन छोटी-छोटी बातों का अध्ययन हस्तरेखाविद् को दक्षता प्रदान करता है। अतः मेरी सलाह है कि आप इन छोटी-छोटी बातों का अत्यन्त सूक्ष्म निरीक्षण करें।
दायां एवं बायां हाथ
हस्तपरीक्षण में दायें और बायें हाथ के अन्तर को अत्यन्त महत्त्वपूर्ण समझना चाहिये। कभी-कभार हाथ देखने वाले व्यक्ति को भी हाथ पर दृष्टि डालते ही यह पता चल जाता है कि दायें और बायें हाथ की आकृति एवं उन पर बनी रेखाओं की स्थिति में अन्तर होता है। फिर हस्तरेखाविद् द्वारा निरीक्षण किये जाने पर तो यह एक महत्त्वपूर्ण बात है। मैं स्वयं दोनों हाथों के निरीक्षण करता हूं, किन्तु बायें हाथ की अपेक्षा दायें हाथ द्वारा दी जाने वाली जानकारी पर मुझे अधिक विश्वास है। इस विषय में एक पुरानी उक्ति है कि बायें हाथ के साथ तो हम जन्म लेते हैं, लेकिन दायें हाथ को हम स्वयं निर्मित करते हैं। वास्तव में यह सिद्धान्त ठीक भी है।
बायां हाथ व्यक्ति के प्रकृतिप्रदत्त स्वभाव को प्रदर्शित करता है, जबकि दायें हाथ से उसके प्रशिक्षण, अनुभव तथा जीवन को प्रभावित करने वाले वातावरण आदि का पता लगता है। पहले बायें हाथ को देखने की प्रथा थी, क्योंकि यह विश्वास किया जाता था कि हृदय के अत्यन्त निकट होने के कारण वह व्यक्ति के जीवन के बारे में अधिक स्पष्ट रूप से बता सकेगा, लेकिन यह केवल एक अन्धविश्वास था, जिसको अपमानित होना पड़ा और जिसके कारण इस विज्ञान को भारी हानि हुई । उस काल में हृदय को अत्यधिक महत्त्वपूर्ण अंग माना जाता था, इसीलिये यह अन्धविश्वास पनप सका।
यदि हम हस्तरेखा विज्ञान का तर्कसंगत एवं वैज्ञानिक रूप से विवेचन करें तो पाएंगे कि व्यक्ति अपने दायें हाथ को अधिक प्रयोग में लाता है और इसी कारण बायें हाथ की अपेक्षा दायें हाथ की मांसपेशियां एवं स्नायु अधिक विकसित होते हैं। मस्तिष्क द्वारा दिये गये आदेशों एवं उसमें उठते विचारों का जितना अधिक पालन दायां हाथ करता है, उतना बायां नहीं इसलिये मनुष्य शरीर एक धीमे किन्तु नियमित विकास की प्रक्रिया से गुजरता है और उसमें जो भी परिवर्तन होता है उसकी छाप व्यक्ति के शरीर की सम्पूर्ण व्यवस्था पर पड़ती है। इससे यह तर्कसंगत निष्कर्ष निकलता है कि उन परिवर्तनों को जानने के लिये जिन पर व्यक्ति के भविष्य का विकास निर्भर करता है, दायें हाथ की ही परीक्षा करनी चाहिये।
इस सम्बन्ध में मेरी सलाह तो यह है कि पहले दोनों हाथों की साथ-साथ परीक्षा करें और देखें कि प्रकृति क्या कह रही है और वहां क्या लिखा है। परीक्षा करके ही यह जानने का प्रयत्न करना चाहिये कि व्यक्ति के जीवन में जो परिवर्तन हुए उनके क्या कारण थे। यदि भविष्यवाणी करनी हो तो भी दायें हाथ में होने वाले परिवर्तनों को ध्यान में रखकर ही की जानी चाहिए।
जो लोग बायें हाथ को अधिक प्रयोग में लाते हैं, उनके बायें हाथ में ही रेखाएं पूरी तरह स्पष्ट होती हैं तथा भविष्यवाणी करते समय भी उनके बायें हाथ को ही ध्यान में रखा जाना चाहिये तथा उनके दायें हाथ को प्रकृतिप्रदत्त गुणों का प्रतीक समझा जाना चाहिये। प्रायः देखा गया है कि कुछ व्यक्ति इतने अधिक परिवर्तनशील होते हैं कि उनके बायें हाथ की रेखायें उनके दाहिने हाथ की रेखाओं से बिल्कुल नहीं मिलतीं, जबकि कुछ लोगों में इतना कम परिवर्तन होता है कि उनके दोनों हाथों की रेखाओं में बहुत ही कम अन्तर दिखाई देता है।
इस बारे में एक सामान्य नियम यह है कि यदि व्यक्ति के दोनों हाथों की रेखाओं में अन्तर दिखाई दे तो समझ लेना चाहिये कि व्यक्ति का जीवन बहुत अधिक दिलचस्प और घटनापूर्ण रहा है, लेकिन जब दोनों हाथों की रेखाएं एक जैसी दिखाई पड़ें तो व्यक्ति के जीवन में इस प्रकार का अन्तर नहीं माना जाता। इस प्रकार सावधानीपूर्वक हाथों का निरीक्षण करके किसी भी व्यक्ति के विगत जीवन की घटनाओं के बारे में अत्यन्त महत्त्वपूर्ण जानकारी प्राप्त की जा सकती है तथा उसके कार्य एवं विचारों में आने वाले परिवर्तनों का भी पता लगाया जा सकता है।
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