अंगूठे की बनावट और प्रकार

व्यक्ति के हाथ का अंगूठा इतना महत्त्वपूर्ण है कि उस पर विशेष ध्यान देना आवश्यक है। हस्तरेखा विज्ञान के अनेक सत्य केवल अंगूठे के माध्यम से ही जाने जा सकते हैं। हस्ताकृति-विज्ञान एवं हस्तरेखा शास्त्र का विवेचन करने में अंगूठा और व्यक्ति के साथ जुड़ी उसकी चारित्रिक विशेषताओं के सम्बन्ध को बड़ी आसानी से व्यक्त किया जा सकता है।

अंगूठे के महत्त्व को लेकर चिकित्सा विज्ञान से भी अनेक उदाहरण लिये जा सकते हैं, परन्तु इन लम्बे विवरणों में न पड़कर केवल इतना कहना पर्याप्त है कि मस्तिष्क शरीर के जिस अंग से अंगूठे का सम्बन्ध स्थिर करता है उसे चिकित्सा विज्ञान में अंगुष्ठ-केन्द्र कहा जाता है।

आपने देखा होगा कि स्नायु रोग के विशेषज्ञ केवल अंगूठे की परीक्षा करके ही यह बता सकते हैं कि व्यक्ति को पक्षाघात अथवा लकवे का रोग हो चुका है या होने वाला है या नहीं। शरीर के किसी भी भाग में इस रोग के लक्षण पैदा होते ही अंगूठा इनका संकेत दे देता है और जब यह संकेत मिल जाते हैं तो मस्तिष्क में अंगुष्ठ-केन्द्र की शल्यक्रिया करके, मरीज की रक्षा कर ली जाती है। आश्चर्यजनक बात तो यह है कि आपरेशन होने के बाद पुनः मरीज के अंगूठे को ही परखा जाता है, जिससे उसके रोगमुक्त होने की सूचना मिलती है।

यदि आप किसी पागलखाने में जाकर देखें तो आप पायेंगे कि सभी पागलों के अंगूठे अत्यन्त कमजोर और बेकार से होते हैं। यहां तक कि अनेक पागलों के अंगूठे तो ठीक से विकसित हुए भी नहीं दीखते । यह एक तथ्य है कि मानसिक रूप से अपंग, अविकसित अथवा कमजोर व्यक्तियों के अंगूठे प्रायः निर्बल ही होते हैं।

मृत्यु ज्यों-ज्यों निकट आती जाती है, व्यक्ति की विचारशक्ति लुप्त होती जाती है और उसके अंगूठे की शक्ति समाप्त होती जाती है। वह हथेली पर लुढ़क जाता है और तब यह निश्चित हो जाता है कि अब इस व्यक्ति की मृत्यु अत्यन्त निकट है। लेकिन यदि व्यक्ति की विचारशक्ति एवं चेतना अस्थायी तौर पर नष्ट हुई हो तो अंगूठा सशक्त बना रहता है और तब व्यक्ति के जीवन की आशा की जा सकती है।

उन्नीसवीं सदी के प्रसिद्ध फ्रांसिसी हस्तरेखाविद् डॉक्टर आपेंटिग्नी का कथन है कि अंगूठा किसी भी व्यक्ति को एक पहचान प्रदान करता है। यह एक आश्चर्यजनक सत्य है चिम्पान्जी के हाथ लगभग मनुष्यों के हाथ के समान होते हैं, लेकिन यदि नापा जाए तो उसका अंगूठा उसकी तर्जनी के मूल तक भी नहीं पहुंचता।

इससे यह सिद्ध होता है कि अंगूठा जितना ऊंचा और आनुपातिक रूप में अच्छा होगा, व्यक्ति की मानसिक क्षमताएं उतनी ही प्रबल होंगी। यदि अंगूठे की बनावट इसके विपरीत होगी तो परिणाम भी विपरीत ही होंगे।

छोटे, भद्दे व मोटे अंगठे वाले व्यक्ति प्रायः असभ्य और क्रूर एवं पाशविक वृतियों वाले होते हैं, जबकि लम्बे, सूपड़ एवं सविकसित अंगूठे वाले व्यक्ति की मानसिक वृत्तियां अत्यन्त विकसित होती हैं।

इससे यह सिद्ध होता है कि

  • लम्बे, मजबूत एवं सुविकसति अंगूठे वाले व्यक्ति बौद्धिक रूप से सुसंस्कृत होते हैं।
  • अंगूठे को न तो हथेली से समकोण पर होना चाहिये और न ही उससे आगे सटा हुआ होना चाहिए। उसका ढलान थोड़ा उंगलियों की ओर होना चाहिये, परन्तु इतना भी नहीं कि वह उंगलियों पर गिरता हुआ दिखाई दे।
  • यदि अंगूठा हथेली से समकोण पर हो तो व्यक्ति का झुकाव स्वाधीनता की ओर अधिक होता है। ऐसे व्यक्तियों को नियन्त्रण में रखना असम्भव होता है, क्योंकि वे किसी भी अवरोध को स्वीकार नहीं करते और आक्रामक रूप अपनाने वाले होते हैं।
  • यदि अंगूठा सुविकसित होते हुए भी उंगलियों की ओर झुका हुआ हो तो व्यक्ति के स्वभाव में स्वतन्त्रता की कमी का द्योतक होता है। ऐसे व्यक्ति प्रायः भीरु और सावधान स्वभाव के होते हैं। उनके बारे में यह जानना कठिन होता है कि वे कब और क्या कर डालेंगे। ऐसे व्यक्ति कभी भी स्पष्टवादी नहीं हो सकते।
  • यदि अंगूठा लम्बा है तो व्यक्ति अपने विरोधियों को अपनी मानसिक शक्तियों द्वारा परास्त करने में सक्षम होता है।
  • यदि अंगूठा छोटा और मोटा हो तो व्यक्ति हिसात्मक योजनाएं बनाने के लिये अवसर की प्रतीक्षा करता रहता है ।
  • सुविकसित अंगूठे वाले व्यक्ति के मन में सदा ही स्वाधीनता की कामना रहती है ताकि उसकी गरिमा एवं प्रतिष्ठा बढ़ती रहे। ऐसा व्यक्ति अपने प्रत्येक कार्य के प्रति सजग रहता है। उसकी इच्छाशक्ति भी दृढ़ होती है।

इस प्रकार यह सिद्ध होता है कि लम्बा एवं सुगठित अंगूठा व्यक्ति की मानसिक शक्ति की दृढ़ता का सूचक है, जबकि छोटा और मोटे आकार का अंगूठा उसकी पाशविक शक्तियों का द्योतक है। छोटा व कमजोर अंगूठा व्यक्ति की कमजोर इच्छाशक्ति का भी सूचक होता है।

अंगूठे के तीन मुख्य भाग माने गये हैं, जो प्रेम, तर्क एवं इच्छाशक्ति जैसी महान् शक्तियों के सूचक हैं। इनमें पहला भाग अथवा नाखून वाला हिस्सा इच्छाशक्ति का द्योतक है, दूसरा तर्कशक्ति का तथा तीसरा हिस्सा जो कि शुक्र क्षेत्र के निकट है, प्रेम का सूचक है।

यदि अंगूठा असन्तुलित रूप से विकसित हुआ हो, जैसे उसका पहला भाग असाधारण रूप से लम्बा हो तो ऐसा व्यक्ति न तो किसी तर्क पर विश्वास करता है और न संगति असंगति का ही विचार करता है। उसको तो केवल अपनी इच्छाशक्ति पर विश्वास होता है और वह उसी से काम लेता है।

यदि अंगूठे के पहले भाग की अपेक्षा दूसरा भाग अधिक लम्बा हो तो ऐसा व्यक्ति हर काम को तर्कसंगत ढंग से पूरा करना चाहता है, परन्तु अपनी योजनाओं को कार्यरूप देने के लिए उसमें पर्याप्त इच्छाशक्ति और संकल्प की कमी होती है।

यदि अंगूठे का तीसरा भाग अधिक लम्बा हो तथा शेष अंगूठा छोटा हो तो व्यक्ति अत्यधिक भावनाप्रधान और कामुक वृत्ति का होता है।

अंगूठे के सम्बन्ध में अध्ययन करते समय अंगूठे का लचकदार या सख्त होना प्रमुख बात है। यदि अंगूठा लचकदार हो तो पीछे की ओर मुड़कर कमान का सा . आकार बना लेता है, लेकिन यदि सख्त हो तो पहले भाग को दबाने पर भी पीछे को नहीं मुड़ता। इन दोनों ही विशेषताओं का सम्बन्ध व्यक्ति के स्वभाव एवं उसके आचरण से होता है।

अंगूठे की बनावट और प्रकार
रेखाकृति 1

लचकदार अंगूठा (देखिये रेखाकृति 1-ख ) । प्रायः लैटिन लोगों की विशेषता है, जबकि सख्त अंगूठा उत्तर दिशा की ओर रहने वाले व्यक्तियों की निशानी है। इस प्रकार के लचकदार अंगूठे प्रायः डैनिश, नार्वेजियन, जर्मन, इंगलिश तथा स्टाकिश आदि जातियों में अधिक मिलते हैं। आयरिश, फ्रेंच, स्पैनिश व इटालियन जाति के व्यक्तियों में भी इस प्रकार के अंगूठे पाये जाते हैं। मैं इस विषय में वातावरण आदि के प्रभाव को नहीं मानता। मेरा मत है कि पैतृक वातावरण का प्रभाव इस प्रकार की विशेषता से अधिक सम्बन्ध रखता है, क्योंकि व्यक्ति के चारित्रिक गुण उस राष्ट्र के अनुकूल होते हैं जिसका वह व्यक्ति एक अंग होता है।

लचकदार जोड़ वाला अंगूठा

उदाहरण के लिये कहा जा सकता है कि जिन व्यक्तियों का अंगूठा लचकदार एवं जोड़ वाला होता है और हाथ पर पीछे की ओर सरलता से मुड़ जाता है वे फिजूल खर्च होते हैं। धन के मामले में ही नहीं, बल्कि अपने विचारों और स्वभाव से ही वे न धन की परवाह करते हैं, न समय की ऐसे व्यक्ति स्वभावतः परिस्थिति के अनुकूल बन जाते हैं या अपने आपको उसके अनुकूल बना लेते हैं। समाज, जाति- और देश के प्रति उनके मन में एक भावुक संवेदना होती है तथा किसी भी नये वातावरण में वे सरलता से रम जाते हैं। कहीं भी चले जायें, उन्हें किसी कठिनाई का अनुभव नहीं होता।

कठोर जोड़ वाला अंगूठा

ऊपर हमने लचकदार जोड़ वाले अंगूठे के सम्बन्ध में जो कुछ लिखा है, कठोर जोड़ के अंगूठे वाले व्यक्ति उसके बिल्कुल विपरीत होते हैं। (देखिये रेखाकृति 1-ग)। ऐसे अंगूठे वाले व्यक्ति अधिक व्यावहारिक होते हैं, उनकी इच्छाशक्ति दृढ़ होती है तथा उनका संकल्प हठ का पुट लिये होता है, जिसके कारण उनका चरित्र अधिक दृढ़ होता है। उनके इसी गुण का उनकी सफलता में मुख्य हाथ होता है। ऐसे व्यक्ति अपना हर कदम पूरी सावधानी से उठाते हैं और अपने मन की बात को इस मन में ही रखते हैं। वे जिस बात पर डट जाते हैं, उस पर डटे ही रहते हैं। अपने उद्देश्य के प्रति हठधर्मी भी करते हैं और अपने विरोध को कुचल डालने में भी विश्वास रखते हैं।

ऐसे व्यक्ति अपने घर तथा देश की उन्नति में पूर्णतया योगदान देते हैं। वे अपने आपको सदा वश में रखते हैं, प्रेम का प्रदर्शन नहीं करते, किन्तु युद्ध में शक्ति का प्रदर्शन करने से न तो घबराते हैं और न ही पीछे हटते हैं। कला के क्षेत्र में भी उनकी शक्ति का प्रभाव दिखाई पड़ता है। ऐसे ही व्यक्ति शक्तिशाली शासक भी सिद्ध होते हैं।

अंगूठे का दूसरा भाग

अंगूठे का इस भाग की बनावट पर विशेष ध्यान दिया जाना चाहिये, क्योंकि यह अनेक प्रकार का दीख पड़ता है। इस भाग से व्यक्ति के स्वभाव की निश्चित जानकारी प्राप्त होती है। इसके प्रायः दो रूप दिखाई पड़ते हैं।

  1. बीच से पतला – कमर के समान दीखने वाला (देखिये रेखाकृति 1-घ) ।
  2. बीच से भरा हुआ और बेढंगा (देखिये रेखाकृति 1-च ) ।

अब तक आपने यह तो जान ही लिया होगा किं अंगूठे का सुन्दर आकार व्यक्ति की विकसित मानसिक शक्ति का सूचक है और उसका भद्दा आकार व्यक्ति की स्वाभाविक पाशविक शक्ति का द्योतक है। जबकि बेढंगी बनावट या अंगूठे का बीच से मोटा होना उद्देश्य प्राप्ति के लिये जोर-जबरदस्ती का सूचक है। इसलिये अंगूठे के दूसरे भाग का बीच में से पतला होना व्यक्ति के नीतिकुशल एवं व्यवहारकुशल होने की सूचना देता है।

यदि अंगठे का पहला भाग अथवा नाखून वाला हिस्सा मोटा व भारी हो तथा नाखून भी छोटा हो तो यह इस बात का संकेत है कि व्यक्ति की भावनाएं अनियंत्रित हैं। पाशविक वृत्ति वाले सभी जीवों के अंगूठे इसी प्रकार के होते हैं। ऐसे व्यक्ति हठी प्रकृति के होते हैं और जब वे अपने आपे से बाहर हो जाते हैं तो हिंसा एवं अपराध तक कर डालते हैं। लेकिन यदि पहला भाग सपाट और लम्बा हो, चाहे छोटा ही हो तो व्यक्ति अपेक्षाकृत शान्त प्रकृति का होता है।

यदि व्यक्ति का हाथ सख्त होगा तो उसमें शक्ति और दृढ़ता जैसी प्रवृत्तियां अवश्य होंगी, जिनकी ओर उसका अंगूठा संकेत करता है। जब दृढ़ हाथ और सुविकसित अंगूठे वाला व्यक्ति अपने उद्देश्य तथा अपने विचारों को कार्यान्वित करने के प्रति कोमल हाथ वाले व्यक्ति की तुलना में अधिक संकल्पशील दीख पड़ता है, तब इस प्रकार की सम्भावना और अधिक बढ़ जाती है।

जिन व्यक्तियों के हाथ कोमल होते हैं, वे अपनी इच्छाशक्ति के प्रयोग में कभी स्थिर नहीं हो पाते और न ही अपनी योजनाओं के क्रियान्वित होने में कोई रुचि दिखाते हैं।

हाथ के माध्यम से व्यक्ति की प्रकृति का अध्ययन करते समय एक बात विशेषतः उन लोगों के बारे में मिलती है, जिनका अंगूठा लचीला या पीछे को मुड़ने वाला होता है। ऐसे व्यक्तियों में प्रायः उत्तरदायित्त्व की वह भावना नहीं होती जो उन लोगों में पाई जाती है जिनके अंगूठे दृढ़, सीधे एवं विकसित होते हैं।


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