बृहस्पति रत्न पुखराज
संस्कृत में इसे पुष्पराग, हिन्दी में पुखराज या पुषराज, फारसी में जर्द याकूत, अंग्रेजी भाषा में टोपे (Topay) कहते हैं। यह मुख्यतः लंका, उड़ीसा तथा बंगाल के अंचलों में, ब्रह्मपुत्र के आसपास और विन्ध्य तथा हिमालय पहाड़ के अंचल में पाया जाता है । यह मुख्यतः पाँच रंगों में पाया जाता है-
- हल्दी के रंग के समान जर्द ।
- केशर के समान केशरिया ।
- नींबू के छिलके के समान ।
- स्वर्ण के रंग के समान ।
- सफेद, पर पीली झाईं लिए हुए ।
पुखराज के गुण
- यह रत्न चिकना होता है ।
- पुखराज चमकदार होता है ।
- यह पानीदार होता है ।
- किनारे व्यवस्थित होते हैं, और
- यह लगभग पारदर्शी-सा होता है ।
पुखराज की परीक्षा
पुखराज खरीदते समय पूरी परीक्षा कर लेनी चाहिए। पुखराज की परीक्षा के निम्न तरीके हैं-
- सफेद कपड़े पर पुखराज रखकर सूर्य की धूप में देखें तो कपड़े पर पीली झाई सी दिखाई देगी ।
- दूध में चौबीस घण्टे पुखराज रखने के बाद भी उसकी चमक क्षीण न पड़े तो असली पुखराज समझना चाहिए ।
- जहरीला जानवर जिस स्थान पर काटे, वहाँ पर पुखराज घिसकर लगावे और तुरन्त जहर मिट जावे तो सच्चा पुखराज समझना चाहिए ।
पुखराज के दोष
जहाँ पुखराज में विशेषताएँ हैं वहाँ उसमें दोष भी पाये जाते हैं। मुख्यतः पुखराज में निम्न दोष पाये जाते हैं-
1. सुन्न – जिस पुखराज में चमक नहीं होती, उसे सुन्न कहते हैं । ऐसा पुखराज स्वास्थ्य के लिए हानिकारक होता है।
2. चीरी – जिस पुखराज में खड़ी लकीर दिखाई दे, वह पुखराज बन्धु बान्धवों में विरोध पैदा करता है।
3. दूधक – सफेद झक्क पुखराज या दूधिये रंग का पुखराज शरीर में चोट करता है।
4. जाल – यदि पुखराज में जाल हो, तो वह पुखराज सन्तान पक्ष के लिए हानिकारक होता है ।
5. श्याम – जिस पुखराज में काला धब्बा हो, वह पशुओं के लिए अनिष्टकारक है ।
6. श्वेत बिन्दु – सफेद छोटे-छोटे बिन्दुओं वाला पुखराज मृत्युकारक माना गया है। 7. रक्तिम – लाल छींटों मे युक्त पुखराज धन-धान्य को नाश करने वाला होता है।
8. खड्डा – जिस पुखराज में खड्डा पाया जाय, वह लक्ष्मी को मिटाने वाला होता है।
9. दुरंगा – दो रंगों वाला पुखराज रोगवृद्धि में सहायक होता है ।
पुखराज के उपरत्न
जो व्यक्ति धनाभाव के कारण पुखराज न खरीद सकें, उन्हें पुखराज के उपरत्न धारण करने चाहिए। पुखराज के पाँच उपरत्न हैं :-
1. सोनेला – यह चमकदार शुभ्र, सफेद रंग का तथा चिकना होता है । तुर्किस्तान तथा हिमालय में यह पाया जाता है ।
2. घिया – यह ईरान में पाया जाता है। इसका रंग हल्का पीला होता है तथा यह जरूरत से ज्यादा हल्का होता है।
3. कैरू – यह वर्मा, चीन इत्यादि में पाया जाता है । पीतल के समान वर्ण वाला यह उपरत्न टूटने पर कपूर-सी सुगन्ध फैलाता है ।
4. सोनल – इस उपरत्न में से सफेद-पीली मिश्रित किरणें-सी निकलती दिखाई देती हैं । यह लंका, काबुल आदि की ओर अधिकतर पाया जाता है ।
5. केसरी – केसर के समान रंग वाला यह उपरत्न लंका तथा गन्डक नदी के आसपास पाया जाता है। यह वजन में भारी तथा चमक में फीका होता है।
पुखराज कौन पहिने ?
जो व्यक्ति गुरु द्वारा संचालित हों या जिनकी जन्मकुण्डली में गुरु प्रधान हो, उन्हें पुखराज अवश्य धारण करना चाहिए ।
1. धनु और मीन लग्न रखने वाले व्यक्तियों को युवराज अवश्य धारण करना चाहिए ।
2. जन्मकुण्डली में गुरु पाँचवें, छठे, आठवें या बारहवें भाव में पड़ा हो तो पुखराज पहनना चाहिए ।
3. यदि गुरु मेष, वृष, सिंह, वृश्चिक, तुला, कुंभ और मकर राशियों पर स्थित हो तो पुखराज धारण करना श्रेष्ठ रहता है।
4. मकर राशि पर गुरु हो तो शीघ्र पुखराज धारण करना चाहिए।
5. यदि गुरु धनेश होकर नवम भाव में, चतुर्थेश होकर एकादश भाव में, सप्तमेश होकर द्वितीय भाव में, भाग्येश होकर चतुर्थ भाव में, राज्येश होकर पंचम भाव में स्थित हो, तो पुखराज धारण करने से श्रेष्ठ फल रहता है।
6. यदि गुरु उत्तम भाव का स्वामी होकर अपने भाव से छठे या आठवें स्थान में स्थित हो तो पुखराज अवश्य धारण करना चाहिए ।
7. किसी भी ग्रह की महादशा में बृहस्पति का अन्तर चल रहा हो तो पुखराज धारण करना श्रेष्ठ फल देता है ।
8. यदि लड़की का विवाह नहीं हो रहा हो या विवाह होने में अनावश्यक विलम्ब हो रहा हो तो पुखराज धारण करने से शीघ्र ही मन की इच्छा पूरी होती है।
9. पुखराज धारण करने से पाप-विचारों एवं कार्यों में क्षीणता आती है तथा शुभ एवं आध्यात्मिक विचार प्रबल होते हैं, चित्त में शांति बढ़ो है ।
रोगों पर पुखराज का प्रभाव
1. पीलिया, एकान्तिक ज्वर आदि में पुखराज शहद के साथ घिसकर दें, तो लाभ होता है ।
2. तिल्ली, गुर्दा आदि रोगों में पुखराज केवड़े के जल में घोटकर दें, तो लाभ होता है ।
3. हड्डी का दर्द, बवासीर, खाँसी आदि में पुखराज की भस्म श्रेष्ठ गुणकारी मानी गई है ।
4. यदि मात्र पुखराज कुछ समय तक मुँह में रखा जाय तो मुँह की दुर्गन्ध दूर होती है, दाँत मजबूत होते हैं तथा मुंह से सुगन्ध आने लगती है ।
पुखराज का प्रयोग
गुरुवार को पुष्य नक्षत्र हो, उस दिन प्रातः सूर्योदय के समय पुखराज ले तथा ग्यारह बजे से पहले-पहले अंगूठी बनवावे । पुखराज के साथ केवल सोना ही फलदायी है। सोने की अंगूठी लगभग सात रत्ती या इससे भारी हो । चार रत्ती से हल्का पुखराज कम प्रभावशाली होता है ।
पट्टिशाकर गुरु का स्थंदल बना, उस पर नौ चाँदी के पत्र पर गुरु-यंत्र अंकित करे तथा बीच में पुखराज जड़े। यह यंत्र स्थंदल पर रक्खे एवं चने की दाल का अष्टमण्डल बनावे, उस पर कलश स्थापन कर अभिषेक दे एवं गुरु-मन्त्र से उसका जप करे । गुरु मन्त्र यों है-
ॐ बृहस्पते अतियनय्र्य्योऽअर्हाद्य मद्विभतिक्रतुमज्जनेषु ।
यद्दीदयच्छवस ऋतप्रजा ततदस्मा सुद्रविणं घेहि चित्रम् ।।’
तत्पश्चात् ‘ॐ ऐं श्री बृहस्पतये नमः’ मंत्र से 4500 आहुतियां दें एवं बाद में उस अंगूठी में गुरु की प्राणप्रतिष्ठा कर दें। फिर शुभ प्रहर में अंगूठी धारण कर पीला वस्त्र, पीताम्बर, चने की दाल, स्वर्ण, शर्करा, हल्दी, बृहस्पति-यंत्र, पुखराज एवं पीतपुष्प का दान कर दे ।
इस प्रकार करने से जीवन के समस्त मनोवांछित कार्य सम्पन्न होते हैं एवं घर में धन-धान्य की वृद्धि होती है। घर में पुण्योदय होता है एवं स्थायी लक्ष्मी का आधार बनता है।
पुखराज वजन
चार रत्ती से कम तोल का वजन फलदायी नहीं माना गया है तथा जिस दिन पुखराज धारण करे, उस दिन से उक्त पुखराज का प्रभाव 4 साल 3 महीने 18 दिन रहता है। इसके पश्चात् शुभ मुहूर्त में दूसरा पुखराज धारण करना चाहिए।
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