चंद्र रत्न मोती

मोती को संस्कृत में मुक्तक कहते हैं। चन्द्रमा इसका स्वामी है तथा इसके धारण करने से चन्द्रमा सम्बन्धी दोष नष्ट हो जाते हैं ।

1. गजमुक्तक: यह मोती संसार में सर्वश्रेष्ठ होते हैं तथा कठिनता से प्राप्त होते हैं। जिन हाथियों का जन्म पुष्य या श्रवण नक्षत्र में चन्द्र एवं रविवार को एवं उत्तरायणगत सूर्यकाल में होता है, उनके विशाल मस्तिष्क में यह मोती पाया जाता है। हस्तियों के दन्तकोष अथवा कुम्भस्थलों में से भी मोती प्राप्त होते हैं। ये मोती सुडौल, स्निग्ध एवं तेजयुक्त होते हैं, जिन्हें देखते ही आँखों में शीतलता का संचार होता है। ऐसे मोतियों को न तो बिधाना चाहिए और न इनका मूल्य ही लगाना चाहिए। इस प्रकार के महापवित्र, निर्दोष एवं प्रभावपूर्ण मोती को शुभ मुहूर्त में धारण किया जाय, तो जीवन के समस्त क्लेश मिट जाते हैं, मन को अपार शांति मिलती है तथा घर में चतुर्दिक हर्ष का वातावरण बना रहता है ।

2. सर्वमुक्तक – श्रेष्ठ वासुकी जाति के भुजंगम के सिर में यह मोती पाया जाता है । ज्यों-ज्यों सर्प की उम्र बढ़ती जाती है, यह मुक्तक हल्के नीले रंग का तेजयुक्त, अत्यन्त प्रभावशाली होता जाता है। यह मोती कठिनाई से प्राप्त होता है और भाग्यशाली पुरुष ही इसे धारण करते हैं। शुभ समय में धारण किया हुआ यह मोती मन की प्रत्येक इच्छा को सम्पन्न करने में समर्थ होता है।

3. वंश मुक्तक – जहाँ बाँसों की अधिकायत होती है अथवा बाँसों के जंगल होते हैं, वहाँ उस वन में स्वाति, पुष्य अथवा श्रवण नक्षत्र से एक दिन पहले से इसकी ध्वनि गुंजित होने लग जाती है और सम्बन्धित नक्षत्र के समाप्ति काल तक यह वेद ध्वनि के समान गूंजता रहता है । ऐसे समय जिस बाँस में यह मोती होता है, उसे बीच से काट, बाँस के गर्भस्थल में से इसे निकाल लिया जाता है। इसका रंग हल्का हरा और आकृति गोल होती है । इसे बींधा नहीं जा सकता। उत्तम कोटि के भाग्यशाली ही इसे प्राप्त करने में सफल होते हैं। इस मोती के धारण करने से भाग्योदय एवं घर में अटूट संपत्ति बनी रहती है। वे राज्य पक्ष एवं सामाजिक पक्ष में अत्यन्त उच्च पद पर सहज पहुँच जाते हैं ।

4. शंखमुक्ता – समुद्र में पाँचजन्य शंख में यह पाया जाता है। ज्वार-भाटे के समय उथल-पुथल में यह शंख सरलता से प्राप्त हो जाता है । पाँचजन्य शंख की नाभि में यह मोती स्थिर होता है। इसका रंग हल्का नीला, सुडौल और सुन्दर होता है तथा इस पर तीन लकीरें यज्ञोपवीत की तरह धारण की हुई होती हैं। यह मोती भी बींधा नहीं जाता। इस मोती में चमक नहीं होती। यह मोती आरोग्यवर्द्धक, स्थिरलक्ष्मी में सहायक और सर्व प्रकार के अभावों को दूर करने में समर्थ होता है।

5. शूकर मुक्ता – वाराह वर्ग में उत्पन्न शूकर के यौवनकाल में यह

उसके मस्तिष्क से प्राप्त होता है। पीले-पीले से रंग वाला यह मोती गोल, सुन्दर एवं चमकदार होता है । वाक्सिद्धि के लिए यह मोती गुणकारी है । इसके धारण करने से स्मरणशक्ति बढ़ती है तथा वाक्शक्ति में निपुणता आती है । जिसके कन्या सन्तान ही होती हों, पुत्र सुख न हो तो गर्भिणी स्त्री को यह मोती पहिनाने से निश्चय ही पुत्रलाभ होता है । यह कई व्यक्तियों पर अनुभूत है ।

6. मीन मुक्तक – यह मोती मछली के उदर से प्राप्त होता है । चने के आकार का यह मोती पाण्डु रंग का चमकदार होता है। इसके पहिनने से पानी में प्रकाश-सा होता है तथा जल में डुबकी लगाने पर पानी में नीचे की वस्तुएँ स्पष्टतः देखी जा सकती हैं। क्षय रोग को मिटाने में अद्भुत प्रभावशाली है ।

7. आकाश मुक्तक – पुष्य नक्षत्र को घटाटोप आकाश के मेघों से कभी-कभी इस मोती की भी वर्षा होती है। पूरी वर्षा में एक या दो मोती नीचे गिरते हैं । भाग्यशाली पुरुषों को ही यह मोती प्राप्त होता है। विद्युत के समान चमकदार एवं गोल आकृति का होता है । इसके धारण करने से व्यक्ति परम तेजस्वी एवं भाग्यशाली बनता है तथा जीवन कई बार उसे अटूट खजाने प्राप्त होते हैं ।

8. मेघ मुक्तक – रविवार को पुष्य या श्रावण नक्षत्र हो, तो उस दिन वर्षा में यह मोती एकाध ठौर कहीं गिरता है। इसका रंग मेघ के समान एवं अक्षुण्ण चमकयुक्त होता है। इस मोती के पहिनने से जीवन में किसी भी प्रकार का अभाव नहीं रहता ।

9. सीप मुक्ता – अधिकतर मोती सीपों से ही प्राप्त होते हैं, और यही मोती बींधे भी जाते हैं। स्वाति नक्षत्र में गिरी जल की बूंद सीप के धारण करने पर इस मोती का जन्म होता है। इस मोती पर चन्द्रमा का पूर्ण प्रभाव होता है। इनकी आकृति कई प्रकार की होती है । लम्बे, गोल, बेडौल, सुडौल, तीखे और चपटे सभी प्रकार के होते हैं । यों तो यह मोती विश्व के लगभग सभी समुद्रों में मिल जाता है, पर स्याम और बसरे की खाड़ी में पाया जाने वाला उत्तम कोटि का होता है । चन्द्र प्रभावयुक्त व्यक्तियों को संभवतः बसरे की खाड़ी का ही मोती धारण करना चाहिए : बसरे की खाड़ी का भी गोल मोती श्रेष्ठ कहा गया है । इन मोतियों का रंग हल्का पीला और गंदुमी-सा होता है। इस मोती के धारण करने से धनप्राप्ति, स्वास्थ्यवर्धक तथा आनन्द की प्राप्ति होती है ।

मोती के गुण

यद्यपि मोती कई रंगों के होते हैं, पर कुछ गुण ऐसे होते हैं, जो सभी मोतियों में पाये जाते हैं। वे गुण हैं :- चिकना, निर्मल, कांतियुक्त, कोमल और सुडौल । किसी-किसी मोती में बाल के बराबर छिद्र भी पाया जाता है । ऐसा मोती दोषी नहीं कहा जाता ।

मोती पहिनने से व्यक्ति की दूषित एवं पापयुक्त बुद्धि समाप्त हो जाती है। मोती ज्ञानवर्धक एवं धनदाता होता है। निर्बलता को दूर कर चेहरे पर कांति लाने में यह प्रबल रूप से सहायक होता है ।

मोती की परीक्षा

मोती की सही परीक्षा के लिए निम्न विधियाँ काम में लानी चाहिए :-

  • काँच के गिलास में पानी डालकर उसमें मोती डाल दो । यदि पानी में से किरणें-सी निकलती दिखाई दें, तो मोती सच्चा समझना चाहिए ।
  • गाय का मूत्र किसी मिट्टी के बर्तन में लेकर उसमें मोती डाल दें और उस मोती को रात भर उसमें रहने दें। प्रातः यदि मोती टूटा हुआ नहीं मिले, तो उस मोती को शुद्ध समझना चाहिए।
  • धान की भूसी में मोती रखकर खूब मलें। यदि मोती नकली होगा, तो उसका चूरा हो जायगा और यदि असली मोती होगा, तो वह चमककर और निखर आयेगा ।
  • घी में शुद्ध मोती रखने से घी पिघल जाए, तो शुद्ध मोती समझना चाहिए।

मोतियों के दोष

मोती खरीदते समय पूरी सावधानी बरतनी चाहिए। दोषयुक्त मोती लाभ की अपेक्षा हानि ही अधिक करता है । पाठकों की जानकारी हेतु नीचे मोतियों में पाये जाने वाले प्रमुख दोष और उससे निष्पन्न फल का भी संक्षिप्त विवेचन प्रस्तुत किया जा रहा है।

1. टूटा मोती – टूटा हुआ मोती अशुद्ध, व्यर्थ एवं हानिप्रद होता है। ऐसा मोती पहिनने से कष्ट बढ़ जाता है । चित्त में अस्थिरता एवं विकलता बनी रहती है।

2. रेखित मोती – जिस मोती में लहरदार रेखा दिखाई दे, वह अच्छा मोती नहीं कहा जा सकता। ऐसा मोती धारण करने से आर्थिक हानि एवं मन उद्विग्न बना रहता है ।

3. मेंडा मोती – जिस मुक्तक के चारों ओर वृत्ताकार रेखा खिची हुई दिखाई दे वह मेंडा मोती कहलाता है। ऐसा मोती स्वास्थ्य के लिए हानिकारक एवं हृदय को कमजोर बनाने वाला होता है ।

4. धब्बा मोती – जिस मोती में कहीं पर भी छोटा-सा काला धब्बा दिखाई दे, वह मोती अशुभ होता है तथा स्वास्थ्य के लिए हानिप्रद होता है।

5. मस्सा मोती – जिस मोती में कई रंग के या एक ही रंग के छोटे-छोटे बिन्दु दिखाई दें, ऐसा मोती धारण करने से बल-बुद्धि एवं वीर्य नष्ट हो जाता है।

6. दुर्बल मोती – जो मोती बेडौल, लम्बा या दुर्बल-सा हो तो वह मोती पहनने से बल-बुद्धि नष्ट होकर चित्त में खिन्नता बनी रहती है ।

7. निस्तेज मोती – बिना चमक का मोती अशुभ कहा गया है, और ऐसा मोती दरिद्रता को बढ़ाने वाला होता है ।

8. चोंच मोती – जिस मोती के चोंच हो, या एक ओर से नुकीला सा दिखाई दे, तो ऐसा मोती कुलहानि करने वाला होता है।

9. चतुर्भुज मोती – जो मोती चपटा हो और चार कोणों से युक्त हो, तो ऐसा मोती धारण करने से पत्नी का नाश होता है ।

10. त्रिकोण मोती – तीनों कोनों वाला मोती पहिनने वाले को नपुंसक बनाता है तथा बल, वीर्य एवं बुद्धि का नाश करता है।

11. काक मोती – जिस मोती में मोटा-सा काला धब्बा हो, वह काक मोती कहलाता है । ऐसा मोती जातक के संतान के लिए भयंकर कष्टप्रद होता है ।

12. चपटा मोती – जो मोती चपटा हो, वह सुख-सौभाग्य का हरण करने वाला एवं चिन्ताओं को बढ़ाने वाला होता है।

13. ताम्रक मोती – ताम्बे के रंग का मोती कुल का नाश करने वाला होता है ।

14. रक्तमुखी मोती – लाल रंग का मोती दुःख बढ़ाने वाला एवं लक्ष्मीनाशक होता है।

15. रेखक मोती – जिस मोती के गर्भ में लम्बी-सी लकीर दिखाई दे, वह मोती अशुद्ध होता है तथा ऐसा मोती श्रीहीन एवं दुःखवर्धक माना गया है ।

मोती की मणि (उपरत्न)

जो व्यक्ति मोती नहीं पहन सकते, उन्हें मोती का उपरत्न पहनना चाहिए। इसे ‘निमरू’ के नाम से सम्बोधित किया जाता है। सीप की मृत्यु पर उसकी पूँछ से छोटा-सा मोती सदृश रत्न मिलता है जो ‘निमरू’ कहलाता है । यह चन्द्र का उपरत्न कहलाता है । यद्यपि यह मोती के समान प्रभावशाली तो नहीं होता, फिर भी इसके पहनने से किंचित लाभ अवश्य होता है । निमरू का रंग चाँदी के समान उज्ज्वल सफेद होता है ।

चन्द्रमणि – सफेद रंग का पुखराज चन्द्रमणि कहलाता है । जिस जातक की जन्मकुण्डली में चन्द्र क्षीण, दुर्बल, अशुभ हो गया हो तो उसे चन्द्रमणि भी पहननी चाहिए। एक ही अँगूठी में मोती और चन्द्रमणि दोनों ही जड़वा कर पहिना जाय तो तुरन्त वांछित फलप्राप्ति होती है तथा विशेष प्रभावशाली बन जाता है ।

चन्द्रमणि लंका, नर्मदा के कछार, वैतरणी के किनारों पर विन्ध्य और हिमाचल की उपत्यकाओं में पायी जाती है ।

चन्द्रमणि के प्रकार

चन्द्रमणि या सफेद पुखराज के तीन भेद होते हैं ।

1. श्वेत संग – यह शुभ, चमकदार और अच्छे पानी का होता है तथा इसके शरीर पर किसी प्रकार का धब्बा नहीं दिखाई देता । लंका और रामेश्वरम् की ओर यह अधिकांशतः पाया जाता है। रक्त सम्बन्धी विकार, मानसिक असन्तोष, नामर्दी और पेशाब की तकलीफ को दूर करने में यह रामबाण औषधि है । इसके पहनने से उपर्युक्त बीमारियाँ नहीं होती और हों तो । शीघ्र मिट जाती हैं ।

2. नील संग – इस पर एक नीले रंग की पतली धारी दिखाई देती है, जो कि चारों ओर लिपटी-सी प्रतीत होती है। इसके पहनने से शरीर पर विष का असर नहीं होता । जंगलों में घूमने वाले या विषधरों से सुरक्षित रहने के लिए इसका पहिनना परम लाभदायक माना गया है ।

3. गौरी संग – इस सफेद पुखराज या चन्द्रकान्त मणि पर गौरीशंकर की मूर्ति गेरुए रंग में बनी दिखाई देती है। हिमालय की खानों में यह कभी-कभी प्राप्त होता है । इसके पहनने से सर्वतोमुखी कल्याण, धनधान्य की वृद्धि एवं निरोगिता बनी रहती है।

मोती कौन पहिने

मोती मुख्यतः चन्द्रमा का रत्न है, अतः जिसकी जन्मकुण्डली में चन्द्रमा दूषित हो, उसे अवश्य ही मोती धारण करना चाहिए। चन्द्र मानव के चित्त का स्वामी है और इसका अधिकार मानव के मन पर रहता है। अपनी जन्मकुण्डली में निम्नप्रकारेण चन्द्र की स्थिति हो, तो उसे मोती अवश्य धारण करना चाहिए ।

1. जन्मकुण्डली में चन्द्रमा सूर्य के साथ हो या सूर्य से अगली पाँच राशियों के पहले-पहले स्थित हो, तो चन्द्रमा क्षीण होता है, अतः ऐसे व्यक्ति को अवश्य ही मोती धारण करना चाहिए।

2. धनस्थान का स्वामी (मिथुन लग्न में) होकर कुण्डली में छठे स्थान में चन्द्रमा पड़ा हो, तो मोती पहिनना श्रेयस्कर होता है।

3. केन्द्र में पड़ा चन्द्र हल्का रहता है, अतः ऐसे चन्द्र को रखने वाले व्यक्तियों को भी चाहिए कि वे मोती पहिनें ।

4. यदि जन्मकुण्डली में चन्द्रमा पंचमेश होकर 12वें भाव में, सप्तमेश होकर दूसरे भाव में, नवमेश होकर चतुर्थ भाव में, दशमेश होकर पंचम् भाव में तथा एकादशेश होकर षष्ठ भाव में बैठा हो, तो ऐसे व्यक्तियों को शीघ्रातिशीघ्र मोती धारण करना चाहिए।

5. यदि जन्मकुण्डली में धनेश चन्द्र सप्तम भाव में, चतुर्थेश चन्द्र नवम

भाव में, पंचमेश चन्द्र राज्य भाव में, सप्तमेश चन्द्र द्वादश भाव में, नवमेश चन्द्र द्वितीय भाव में, दशमेश तृतीय भाव में और एकादशेश चन्द्र चतुर्थ भाव में बैठा हो, तो उस व्यक्ति को बिना आगा-पीछा सोचे मोती धारण कर लेना चाहिए।

6. यदि किसी की कुण्डली में चन्द्र वृश्चिक राशि का होकर कहीं भी स्थित हो, तो उसे भी मोती धारण करना चाहिए।

7. जिसकी जन्मपत्रिका में चन्द्रमा षष्ठ, अष्टम या द्वादश भाव में स्थित हो, तो अवश्य मोती धारण करना चाहिए।

8. जिसकी कुण्डली में चन्द्रमा राहु, केतु या शनि इन तीनों में से किसी भी एक ग्रह के साथ बैठा हो, तो मोती पहिनना परम लाभदायक रहता है ।

9. यदि चन्द्रमा पर राहु, केतु, मंगल या शनि इनमें से किसी भी एक या अधिक ग्रहों की दृष्टि हो, तो मोती अवश्य ही पहिनना चाहिए।

10. यदि चन्द्रमा अपनी राशि से छठे या आठवें भाव में पड़ा हो तो मोती पहिनना परम लाभदायक माना गया है।

11. चन्द्रमा नीच, वक्री या अस्तंगत अथवा राहु के साथ ग्रहणयोग बना रहा हो, तो चन्द्रमा का रत्न मोती पहिनना परम लाभदायक माना गया है ।

12. विंशोत्तरी पद्धति से जिस जातक को चन्द्रमा की महादशा या अन्तर्दशा चल रही हो, तो ऐसे व्यक्ति को अवश्य ही मोती धारण करना चाहिए ।

रोगों पर मोती का प्रभाव

1. पथरी का रोग हो और मोती की भस्म शहद के साथ ली जाय, तो तुरन्त प्रभाव करती है।

2. पेशाब में जलन होने पर मोती की भस्म केवड़े के जल के साथ लेने से तुरन्त फायदा होता है ।

3. शरीर में गर्मी ज्यादा हो तो शुद्ध मोती का पहिनना उत्तम माना गया है ।

4. बवासीर और जोड़ों के दर्द में मुक्तक भस्म रामबाण औषधि के समान समझनी चाहिए ।

5. जिस स्त्री को पेट सम्बन्धी तकलीफ या व्याधि रहती हो, तो उसे उत्तम मोती पहिनना चाहिए ।

मोती का प्रयोग

सर्वप्रथम उत्तम कोटि का मोती खरीदें जिसमें किसी भी प्रकार का दोष न हो । गुरुवार या रविवार को पुष्य नक्षत्र हो, उस दिन प्रातः ही सूर्योदय से दस बजे के बीच 4 रत्ती या इससे ज्यादा तोल की चांदी की अंगूठी बनवावे और उसमें मोती जड़वावे। मोती लगभग 4 रत्ती का हो, तभी श्रेष्ठ फल देता है। मोती के साथ सोने या चाँदी की ही धातु काम में लायी जाय, अन्य धातु विपरीत फल देने लगती है।

अँगूठी में मोती इस प्रकार जड़ा जाय कि उसके नीचे का हिस्सा उँगली को छूता रहे । यह अँगूठी बायें हाथ की कनिष्ठिका उँगली में पहिनी जाय । तर्जनी में भी ऐसी अंगूठी पहनी जा सकती है ।

प्रातः दस बजे के पश्चात् चन्द्रयज्ञ करे, चन्द्रकोष्टक बनावे तथा चार तोला सात रत्ती का चन्द्रासन बनावे और उस पर उस मुक्तक जड़ी अँगूठी को स्थापित करे ।

तत्पश्चात् षोडसोपचार से अँगूठी एवं चन्द्रासन की पूजा करे तथा चन्द्रमन्त्र से उसे अभिषित करे । चन्द्रमन्त्र इस प्रकार से है-

“ॐ इमन्देवाऽअसपत्नर्धं सुवध्वम्महते क्षत्राय महते ज्यैष्ठ्याय महते जानराज्यायेन्द्रस्येन्द्रियाय । इममनुष्य पुत्रममुष्यं पुत्रमष्यैपुत्रमध्ये व्विशऽएषवोऽमीराजांसामाऽस्माक ब्राह्मणानार्धं राजा ।।

इसके पश्चात् || ओ३म् सौं सोमायनमः ॥ मन्त्र से घृत की अग्नि में ७०० आहुतियाँ दे तथा गुग्गुल, तिलादि से हवन करे। तत्पश्चात् मोती में चन्द्र प्राण-प्रतिष्ठा करे।

पूर्णाहुति के पश्चात् वह अभिषित अंगूठी धारण करे और चन्द्रासन तया उज्ज्वल मोती ब्राह्मण को दान में दे। इसके साथ ही बांस की छाबड़ी, श्वेत वस्त्र, चीनी, घृत चावल और कपूर का भी दान करे ।

इस प्रकार से प्रयोग करके ही मोती धारण करने से अभीष्ट सिद्धि होती है। मोती पहनने से पेट के रोग, मुख रोग, त्वचा रोग, ज्वर, पायरिया, दन्त रोग, हृदय व्याधि, ब्लडप्रेशर आदि रोग शान्त हो जाते हैं ।

चन्द्रयन्त्र पूजा एवं प्रयोग

यदि चन्द्रबाधा प्रबल हो तो चन्द्रयन्त्र बनाना चाहिए। चाँदी के पाँच तोले के रजतपत्र पर चन्द्रयन्त्र खुदवाना या बनवाना चाहिए, तत्पश्चात् 7 दिनों तक इसकी षोडसोपचार पूजा करनी चाहिए एवं आठवें दिन यह यन्त्र श्रेष्ठ ब्राह्मणों को दान कर देना चाहिए। ऐसा करने से लक्ष्मी स्थायी बनती है तथा भयंकर से भयंकर रोग शान्त हो जाता है । चन्द्र जिन-जिन वस्तुओं का कारक है, उन वस्तुओं की वृद्धि के लिए चन्द्रयन्त्र अद्भुत प्रयोग है ।

मुक्तक वजन

मोती का कोई भी वजन हो सकता है, पर लगभग 4 रत्ती का मोती श्रेष्ठ एवं शीघ्र फलदाता माना गया है । मोती पहनने के दिन से 2 वर्ष 1 मास 27 दिन तक प्रभावयुक्त रहता है, तत्पश्चात् उसका प्रभाव समाप्त हो जाता है, अतः इस अवधि के बाद दूसरा मोती अँगूठी में जड़वाना ही श्रेयस्कर रहता है।


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