सूर्य रत्न माणिक

माणिक, माणक या माणिक्य को संस्कृत में पदमराग कहते हैं। फारसी में इसे याकूत, उर्दू में चुन्नी और अंग्रेजी में रूबी (Ruby) कहते हैं। यह मुख्यतः तीन प्रकार के पत्थरों से निष्पन्न होता है । सौगन्धिक पत्थर से उत्पन्न माणिक भ्रमर के रंग के समान होता है, जिसकी चमक प्रखर होती है । कुरुविन्द पत्थर से उत्पन्न माणिक शुक्ल-कृष्ण मिश्रित, मन्द कान्ति और अन्य धातुओं से बिद्ध होता है । स्फटिक पत्थर से निकलने वाला माणिक विविध वर्णयुक्त, अद्भुत कान्तिवान और विशुद्ध रूप में होता है |

मुख्यतः माणिक कई रंगों में पाया जाता है। यथा लाल, रक्तकमलवत् सिन्दूरी, सिगरिफ तथा वीरबहूटी आदि । काबुल, लंका के अतिरिक्त भारत में गंगा नदी के किनारे ये रत्न पाये जाते हैं। विन्ध्याचल और हिमालय के अंचलों में भी इसकी खानें पायी जाती हैं।

माणिक के गुण

मुख्यतः माणिक में पाँच गुण पाये जाते हैं । यह स्निग्ध, कान्तियुक्त, अच्छे पानी का, धारदार और चमकीला होता है। हाथ में लेने पर कुछ भारी-सा प्रतीत होता है । तब हल्की-हल्की गर्मी महसूस होती है ।

माणिक की परीक्षा

इसकी परीक्षा के लिए चार विधियाँ हैं-

  1. गौ के दूध में इस रत्न को डालने पर दूध गुलाबी-सा दिखाई देने लगता है ।
  2. सफेद चाँदी के थाल में इसे रखकर सूर्य के सम्मुख करें, तो यह रजत को भी लाल-सा बना देता है ।
  3. काँच के पात्र में रखकर देखें तो काँच में से हल्की-हल्की रक्तिम किरणें-सी निकलती दिखाई देती हैं ।
  4. कमल की कली पर इसे रख दिया जाय, तो कमल तुरन्त खिल जाता है ।

माणिक के दोष

दोषयुक्त माणिक प्रभावशाली नहीं होता, अपितु वह धारण करने वाले के लिए विपरीत फलदाता भी बन जाता है। माणिक में मुख्यत: ग्यारह दोष पाये जाते हैं :-

1. सुन्न – जो माणिक बिना चमक का होता है, वह सुन्न माणिक कहलाता है। ऐसे माणिक को धारण करने वाला व्यक्ति भाइयों से पीड़ित रहता है ।

2. दूधक – जिस माणिक का रंग दूध के सदृश हो, वह दूधक माणिक कहलाता है। ऐसा रत्न पशुधन का नाश कर चित्त में बेचैनी बनाए रखता है।

3. जालक – जिस माणिक में जाल हो, आड़ी-तिरछी कई रेखाओं से युक्त हो, वह जालक माणिक कहलाता है। ऐसा माणिक घर में कलहपूर्ण वातावरण बनाए रखने में समर्थ होता है।

4. दुरंगा – जिस माणिक में दो प्रकार के रंग दिखाई दें, वह दुरंगा माणिक पिता के लिए कष्टकर होता है ।

5. धूम्र – धुएँ के रंग जैसा माणिक व्यक्ति के लिए दैवी प्रकोप लाता है ।

6. चीरित – जिस माणिक में क्रॉस हो, या चीरा लगा हुआ हो, वह चीरित माणिक कहलाता है। ऐसा माणिक शस्त्र से आघात लगने में सहायक होता है।

7. मटमैला – मटमैला माणिक अशुभ होता है। इसके धारण करने से उदरविकार रहता है।

8. त्रिशूल – जिस माणिक में त्रिभुज, त्रिकोण या त्रिशूल-सा चिह्न हो वह सन्तानोत्पत्ति में बाधक रहता है ।

9. श्वेत – सफेद रंग का या कालिमायुक्त माणिक व्यक्ति की धनहानि करता है तथा कीर्ति में बाधा पहुँचाता है।

10. गड्ढा – जिस माणिक में गड्ढा हो, ऐसा माणिक धारण करने पर शरीर में व्याधियाँ उत्पन्न होती हैं।

11. एकाधिकी – जिस माणिक में उपर्युक्त एक से अधिक दोष हों, वह, मृत्युकारक होता है तथा किसी भी समय असंभावित घटित हो सकता है ।

माणिक धारण करने वाले को चाहिए कि वह माणिक खरीदते समय यह ध्यान रक्खे कि उसमें उपर्युक्त प्रकारेण किसी भी प्रकार का दोष न हो ।

माणिक की मणि

माणिक की मणि को लालड़ी कहते हैं । जो व्यक्ति माणिक नहीं खरीद सकते, उन्हें लालड़ी खरीदनी चाहिए। उसे फारसी में लाल कहते हैं। यह १० प्रकार की होती है-

1. गेरुआ रंग की ।

2. सिंदूरी रंग की।

3. कनेर के फूल के समान रंग वाली।

4. चेत महीने में फूलने वाले गुलाब के रंग की

5. अनारकली के रंग के समान ।

6. सुर्ख रंग वाली।

7. साफ रक्तिम रंग की ।

8. जमे हुए खून के रंग की ।

9. मोतिया रंग की ।

10. गुलाबी रंग की ।

सूर्यमणि की परीक्षा

अच्छी सूर्यमणि या लालड़ी वह कहलाती है, जिसे दोपहर को साफ रुई पर रखकर सूर्य के सम्मुख की जाय, तो कुछ समय पश्चात् रुई में आग लग जाती है ।

इसमें दस गुण पाए जाते हैं जो निम्नरूपेण होते हैं-

  1. यह चमकदार होती है।
  2. वह चिकनी होती है।
  3. इसका पानी श्रेष्ठ होता है ।
  4. इसका रंग शुद्ध होता है।
  5. हाथ में लेने पर कुछ वजन-सा प्रतीत होता है जो सामान्य से अधिक होता है ।
  6. हाथ में कुछ समय रखने पर गर्मी-सी प्रतीत होती है।
  7. पानी में डालने पर इसमें से रक्तिम किरणें निकलती-सी दिखाई देती हैं।
  8. दूध में डालने पर दूध का रंग लाल-सा दिखाई देता है ।
  9. दिखने में श्रेष्ठ होती है ।
  10. यह शीघ्र प्रभावकारी होती है।

सूर्यमणि का प्रभाव

सूर्यमणि या लालड़ी शीघ्र प्रभाव डालने में समर्थ होती है। इसके पहिनने से दारिद्र का नाश होता है तथा अन्न-धन का भण्डार भरा रहता है । मन में धार्मिक विचार उत्पन्न होते हैं तथा तीर्थयात्रा के संयोग बनते हैं। घर में यदि प्रेत अथवा भूतबाधा हो तो इसके धारण करने से निश्चय ही ऐसी वाधा शान्त हो जाती है। शरीर में रोग, पीड़ा या व्याधि को मिटाने में प्रबल रूप से सहायक है। जन्मकुण्डली में यदि सूर्य अकारक ‘अथवा दोषी हो तो इसके पहिनने से सूर्यवाधा शान्त होती है।

सूर्यमणि के दोष

उत्तम सूर्य मणि धारण करने से जहाँ लाभ होता है वहाँ दोषयुक्त लालड़ी धारण करने से नुकसान भी शीघ्र ही हो जाता है। लालड़ी में मुख्यतः ये बारह दोष पांये जाते हैं-

1. जिस मणि में खड़ी लकीर-सी दिखाई दे । ऐसी मणि पहिनने से शस्त्रबाधा का सामना करना पड़ता है ।

2. कई छोटी लकीरें हों। ऐसी मणि स्त्री के लिए घातक कही गई है ।

3. जिस मणि में छोटे-छोटे काले धब्बे हों तो वह मणि धन का नाश करती है ।

4. जो मणि दो रंगों से युक्त हो, वह समाज में विरोधियों की संख्या बढ़ाती है।

5. जिस मणि में जाल हो, वह मणि शरीर के लिए हानिकारक होती है |

6. जिस मणि में कोई गड्ढा दिखाई दे, वह पशुधन के लिए हानिकारक कही गई है।

7. जिस मणि के आर-पार सरलतापूर्वक न देखा जा सके, ऐसी मणि पहिनने से हृदय रोग का शिकार होना पड़ता है।

8. बिन्दुयुक्त या जिस मणि में सफेद बिन्दु दिखाई दे, वह मणि रोग- वर्धक होती है ।

9. जिस मणि में काले बिन्दु दिखाई दें, वह शस्त्र-भय को बढ़ाने वाली होती है ।

10. शहद के समान बिन्दु वाली भाइयों के लिए मृत्युदायक सिद्ध होती है ।

11. जिस मणि में हल्के-हल्के लाल छींटे दिखाई दें, वह सन्तान के लिए बाधाकारक कही गई है ।

12. जो मणि धूमिल या अस्पष्ट हो उसको धारण करने से स्वयं के लिए कष्ट बढ़ जाता है तथा वह मणि प्राणघातक कही गई है ।

मणि कौन पहिने ?

माणिक मुख्यतः सूर्य का रत्न है और सूर्य कालपुरुष की आत्मा कहा जाता है । यह पुरुष ग्रह, ताँबे के रंग के समान दैदीप्यमान, पूर्व दिशा का स्वामी और पापग्रह है। यदि जन्मकुण्डली में सूर्य की स्थिति ठीक नहीं हो तो माणिक धारण करना चाहिए। अपनी जन्मकुण्डली में निम्नप्रकारेण सूर्य की स्थिति रखने वाले को माणिक्य धारण करना चाहिए ।

1. लग्न में सूर्य हो तो, क्योंकि लग्नस्थ सूर्य संतान बाधा, अल्प संतति एवं स्त्री के लिए कष्टप्रद होता है, अतः ऐसे व्यक्ति को माणिक धारण करनी चाहिए ।

2. धन स्थान या द्वितीय स्थान का सूर्य धनप्राप्ति में बाधक ही रहता है। नौकरी में वह कई प्रकार के कष्ट सहन करता है, अतः ऐसी स्थिति में सूर्य-रत्न धारण करना श्रेष्ठ कहा गया है।

3. यदि किसी की जन्मकुण्डली में तीसरे भाव में सूर्य हो और उसके छोटे भाई जीवित न रहते हों, तो उसे सूर्य को प्रसन्न करने के लिए माणिक पहिनना चाहिए।

4. चौथे स्थान में स्थित सूर्य आजीविका में बाधाएं उपस्थित करता है

तथा बार-बार राज्यभंग योग बनता रहता है, अतः ऐसे व्यक्ति को माणिक धारण करना चाहिए ।

5. यदि सूर्य भाग्येश, धनेश या राज्येश होकर छठे या आठवें स्थान में पड़ा हो तो उसे भी माणिक धारण करना चाहिए ।

6. यदि जन्मकुण्डली में सूर्य अष्टमेश या षष्ठेश होकर पंचम अथवा नवम् भाव में पड़ा हो तो उस मनुष्य को अवश्य ही माणिक धारण करना चाहिए ।

7. सप्तम् भाव में पड़ा सूर्य स्वयं के स्वास्थ्य के लिए हानिप्रद होता है, अतः ऐसे जातक को सूर्य-रत्न अवश्य धारण करना चाहिए ।

8. यदि सूर्य जीव नक्षत्र का स्वामी हो, तो सर्वोन्नति के लिए माणिक पहनना लाभप्रद है ।

9. यदि जन्मकाल में सूर्य कहीं पर भी स्थित होकर अपने नक्षत्रों कृत्तिका,

उत्तरा फाल्गुनी या उत्तराषाढ़ा को पूर्ण दृष्टि से देख रहा हो तो ऐसे का व्यक्ति को भी माणिक धारण करना चाहिए ।

10. द्वितीय भाव अथवा द्वादश भाव में सूर्य स्थित हो, तो नेत्रों के लिए कष्टप्रद होता है, अतः नेत्रों की ज्योति कायम रखने के लिए भी माणिक धारण करने से लाभ होगा ।

11. एकादश भाव में पड़ा सूर्य पुत्रों के बारे में चिन्ताएं उत्पन्न करता है तथा बड़े भाई के लिए हानिप्रद सिद्ध होता है, अतः ऐसे व्यक्ति को भी सूर्य का रत्न माणिक धारण करना चाहिए ।

12. यदि सूर्य जन्मकुण्डली में अपने भाव से अष्टम स्थान में स्थित हो,

तो ऐसी कुण्डली रखने वाले व्यक्ति को शीघ्र ही माणिक्य रत्न धारण करना चाहिए ।

रोगों पर माणिक का प्रभाव

रक्त सम्बन्धी विकार होने पर यदि माणिक की भस्म का सेवन किया जाय, तो आश्चर्यजनक लाभ होता है।

1. यदि खून के दस्त लग रहे हों, और उसे माणिक का धोया हुआ जल पिलाया जाय, तो तुरन्त लाभ करता है।

2. यदि किसी को संग्रहणी, अतिसार आदि रोग हों तो अपनी अंगूठी में माणिक जड़वाने से तुरन्त लाभ होता है ।

3. अजीर्णावस्था में माणिक सिंचित जल विशेष लाभ करता है।

4. नामर्दी और खूनी बवासीर में माणिक्य-भस्म रामबाण औषधि है।

5. घर में यदि माणिक पड़ा हो तो उसकी रश्मियों के प्रभाव से कीटाणु नाश होते हैं तथा वातावरण निर्मल रहता है ।

माणिक का प्रयोग

जब तक किसी भी रत्न से सम्बन्धित ग्रह की प्राण-प्रतिष्ठा नहीं हो जाती, तब तक वह रत्न प्रभाव नहीं डालता, अतः जो व्यक्ति धारण करना चाहे उसे निम्न बातों पर सावधानीपूर्वक विचार एवं पालन करना चाहिए।

1. रविवार को पुष्य नक्षत्र हो या रविवार के दिन कृतिका, उत्तरा- फाल्गुना या उत्तराषाढ़ा नक्षत्र हो, उस दिन प्रातः सूर्योदय से 8 बजे के बीच अँगूठी बनावे और उसमें माणिक्य रत्न जड़े ।

2. अँगूठी या तो सोने की हो अथवा ताँबे की हो, इसके अलावा अन्य धातु का माणिक के साथ संयोग न हो।

3. अंगूठी में माणिक्य इस प्रकार जड़ा जाय कि उस माणिक्य का नीचे का हिस्सा उँगली को छूता रहे ।

4. वह अंगूठी दाहिने हाथ की अनामिका उंगली में धारण करे ।

5. प्रात: दस बजे के पश्चात् सूर्ययज्ञ करे, सूर्य प्रकोष्ठ बनावे तथा सवा पाँच तोले का चांदी का सूर्यासन बनाकर उस पर सवा दो मासे की सूर्य की मूर्ति प्रतिष्ठित करे ।

तत्पश्चात् अँगूठी एवं सूर्य की षोडसोपचार पूजा करे तथा सूर्य मंत्र से अभिषित करे ।

‘आकृष्णे नरजसा वर्तमानो निवेसयन्न मृत्यंच ।

हिरण्यये न सविता रथेनादेवो याति भुवनानि पश्यन्’ ।

यह सूर्य मन्त्र है ।

इसके पश्चात् ब्राह्मण से ‘ॐ ह्रीं हंसः सूर्याय नम:’ इस मन्त्र से अंगूठी को तथा यजमान को अभिषेक दे । तत्पश्चात् रत्न में सूर्यं प्राण-प्रतिष्ठा करे।

फिर अँगूठी धारण कर हवन करे तथा सूर्यासन, सूर्यमूर्ति एवं अँगूठी अन्य छोटा-सा माणिक ब्राह्मण को दान में दे । माणिक जड़ी अँगूठी स्वयं धारण करे । इस प्रकार से किया गया प्रयोग ही लाभप्रद एवं सिद्धिदाता होता है ।

माणिक रत्न की दानविधि

यदि सूर्य से प्रभावित व्यक्ति या सिंह लग्न वाले अथवा जिनकी कुंडली में सूर्य बाधाकारक बनकर स्थित हो और उसे अथवा उसकी सन्तान को क्षय, विषम ज्वर, पीड़ा आदि हो तो उसे विधिपूर्वक माणिक दान करना चाहिए। इससे सभी प्रकार की बाधाओं का शमन हो जाता है ।

गेहूँ, गुड़, कमल, स्वर्णपत्र पर अंकित सूर्य की मूर्ति, लाल वस्त्र, रक्त-चंदन और श्रेष्ठ माणिक लेकर संकल्प के साथ किसी योग्य ब्राह्मण को दान करना चाहिए ।

ब्राह्मण से ७००० सूर्य मन्त्र जप कराकर विधिवत् दक्षिणा देनी चाहिए। यह दान रविवार को प्रातः दस बजे से पूर्व करना चाहिए। इससे सभी प्रकार के अनिष्ट नाश होकर जीवन में सुख एवं सम्पदा बढ़ती है ।

सूर्ययन्त्र – पूजा एवं प्रयोग

यदि सूर्य बाधा के फलस्वरूप पुत्र सन्तान न होती हो, तो सूर्ययन्त्र का प्रयोग करना चाहिए। सूर्ययंत्र को स्वर्ण-पत्र पर अंकित करे तथा उसके बीच में माणिक जड़वावे, तत्पश्चात् 27 दिनों तक उस यन्त्र का षोडसोपचाररूपेण पूजा करे एवं सूर्यदेव से अभिषेक दे तथा उस जल को चरणामृत रूप में पत्नी एवं पति दोनों लें ।

28वें दिन ‘ऊं ह्रीं हंसः सूर्याय नमः स्वाहा’ मन्त्र से ११०० आहुतियाँ दे एवं ‘पुत्रोत्पत्ति’ यज्ञ संपूर्ण विधि से श्रेष्ठ ब्राह्मण से संपन्न करावे । पूर्णाहुति के पश्चात् यह यन्त्र ब्राह्मण को दान में दे दे, इसके साथ ही घृत, ऊनी वस्त्र, गेहूँ, तिल एवं गुड़ का भी दान करे ।

यज्ञ के पश्चात् दूसरे दिन वही ब्राह्मण ‘आकृष्णेति’ मंत्र की एक माला उस यज्ञस्थल पर बैठकर पूरी करे एवं उस यज्ञ भस्म का पति-पत्नी किंचित् सेवन करें। इस प्रकार के प्रयोग से निश्चित ही सुन्दर एवं श्रेष्ठ पुत्र रत्न की प्राप्ति होती है।

मैंने स्वयं इस प्रकार का प्रयोग कई व्यक्तियों एवं गण्यमान्य सज्जनों के साथ किया है एवं उनकी अभीष्ट कामना पूर्णत: फलवती हुई है, इसमें सन्देह नहीं ।

माणिक वजन

माणिक जितना ही ज्यादा बड़ा हो, वह श्रेष्ठ होता है, पर तीन रत्ती से कम तोल का माणिक प्रभावशाली नहीं होता है । इसी प्रकार पाँच रत्ती से कम वजन की स्वर्ण अंगूठी निरुपयोगी होती है ।

माणिक अँगूठी में जड़वाने के दिन से चार वर्ष तक प्रभावशाली रहता है, तत्पश्चात् उसका प्रभाव समाप्त हो जाता है। अत: चार वर्ष के पश्चात् दूसरा माणिक धारण करना चाहिए।


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