मंगल रत्न मूंगा

इसे संस्कृत में विद्रुम, फारसी में मिरजान और अंग्रेजी में कोरल (Coral) कहते हैं । इसका स्वामी मंगल है। हिमालय पहाड़ और मानसरोवर के पास यह पाया जाता है। मूँगा मुख्यतः चार रंग का होता है -लाल, सिन्दूरी, हिंगुले के रंग-सा और गेरुआ।

मूंगे के गुण

प्रत्येक प्रकार के मूंगे में निम्न गुण प्रमुख रूप में पाए जाते हैं-

  • यह चमकदार होता है ।
  • यह चिकना और उँगलियों में लेने पर फिसलने वाला होता है ।
  • कोणदार होता है ।
  • औसत से अधिक वजनदार प्रतीत होता है ।

मूंगे की परीक्षा

मूंगे की परीक्षा कई प्रकार से की जा सकती है। दो-तीन विधियाँ प्रस्तुत की जा रही हैं :-

  • दूध में मूंगा डालने से दूध में से लाल रंग की झाई-सी दिखाई पड़ती है ।
  • सूर्य की धूप में यदि कागज या रुई पर रख दिया जाए, तो रुई में अग्नि प्रवेश हो जाती है ।
  • खून या रक्त में मूँगा रख दिया जाय तो मूंगे के चारों ओर गाढ़ा खून हो जाता है-

मूंगे के दोष

जहाँ मूंगा उत्तम फल देने वाला होता है, वहाँ त्रुटियुक्त मूंगा पहिनने से अनिष्ट भी शीघ्र ही हो जाता है। मूंगे में मुख्यतः सात दोष पाये जाते हैं ।

1. अंग-भंग – यदि मूंगा कटा-छँटा हो, या कहीं से टूट गया हो, तो ऐसा मूंगा हानिकारक होता है । इसके पहिनने से सन्तान नष्ट हो जाती है ।

2. दुरंगा – दुरंगा मूंगा या जिस मूंगे में दो रंग मिले हुए हों, ऐसा मूंगा सुख- सम्पत्ति नष्ट करने वाला होता है ।

3. गड्ढेदार – जिस मूंगे में गड्ढा हो, वह पत्नी के लिए प्राणघातक होता है। स्त्री यदि पहिने तो पति के लिए मृत्युकारक समझना चाहिए ।

4. स्याह – काले धब्बे से युक्त लूंगा पहिनने से स्वास्थ्य नष्ट हो जाता है तथा एक्सीडेंट होने की सम्भावना होती है ।

5. श्वेत – जिस मूंगे में सफेद छोटे पाए जायें, वह मूंगा धन-धान्य को नाश करने वाला होता है ।

6. लाखी – लाख के रंग का मूंगा पहिनने से शस्त्र-भय एवं चोर-भय बनता है ।

7. छेवित – छेदयुक्त मूंगा शरीर के स्वास्थ्य को चौपट करने वाला होता है। अतः ऐसा मूँगा कभी भी धारण नहीं करना चाहिए ।

मूंगे की मणि (उपरत्न)

जो व्यक्ति मूंगा नहीं खरीद सकते, उन्हें मूंगे की मणि धारण करनी चाहिए। इसे विद्रुम मणि या संगमूंगी कहते हैं ।

वह मूँगी लाल रंग की होती है तथा छेदयुक्त होती है । यह तोल में हल्की होती है। यह चिकनी लाल, गुलाबी या मूँगिया रंग की भी पाई जाती है । इस पर गंदुमी छींटे भी पाए जाते हैं ।

गुण-

  • यह साधारणतः चमकदार होती है ।
  • यह तोल में हल्की होती है।
  • यह चिकनी होती है।
  • इसके शरीर पर कई रंग के छींटे भी पाए जाते हैं ।
  • गर्भिणी के पेट पर यदि इसकी भस्म का लेप कर दिया जाए, तो गर्भ नहीं गिरता ।

मूंगा कौन पहिने

जिस व्यक्ति की कुण्डली में मंगल दूषित, अस्त या प्रभावहीन हो है, उसे मूंगा पहिनना अत्यन्त लाभदायक रहता है । अपनी जन्मकुण्डली में निम्न प्रकारेण भौम की स्थिति रखने वाले क मूंगा पहनना चाहिए ।

1. यदि जन्मकुण्डली में मंगल, राहु या शनि के साथ कहीं भी स्थित हो तो मूंगा पहिनना अत्यन्त लाभदायक माना गया है।

2. लग्न में मंगल हो तो मूंगा धारण करना चाहिए ।

3. तीसरे भाव में मंगल बन्धुओं में मतभेद बढ़ाने में समर्थ होता है। अतः ऐसे व्यक्ति को भी मूंगा पहिनना श्रेयस्कर रहता है।

4. चतुर्थ भाव में स्थित मंगल पत्नी को रोगिणी बना देता है, अतः जिस व्यक्ति के चौथे भाव में मंगल हो, उसे मूंगा अवश्य धारण करना चाहिए।

5. सप्तम भाव या द्वादश भाव में स्थित मंगल पत्नी के जीवन के लिए शुभ नहीं है, अतः ऐसे व्यक्ति को भी मूंगा धारण करना चाहिए।

6. धनेश मंगल नवम भाव में, पराक्रमेश मंगल दशम में, चतुर्थेश भौम एकादश स्थान में हो, अथवा पंचम भाव का स्वामी भौम द्वादश भाव में हो तो मूंगा अवश्य धारण करना चाहिए ।

7. नवमेश भौम चतुर्थ स्थान में, दशमेश मंगल पंचम भाव में या एकादशेश भौम षष्ठ स्थान में हो तो शीघ्र ही मूंगा रत्न धारण करना चाहिए ।

8.मंगल कहीं पर भी बैठकर सप्तम, नवम, दशम या एकादश भाव पर दृष्टि डालता हो तो मूंगा रत्न अवश्य धारण करना चाहिए।

9. लग्नेश भौम छठे भाव में हो, या धनेश भौम सप्तम भाव में हो, चतुर्थेश् भौम नवम भाव में हो, पंचमेश भोम दशम भाव में हो, सप्तमेश मंगल द्वादश भाव में हो, नवमेश भौम धन-स्थान में हो, दशमेश मंगल तीसरे भाव में हो या एकादशेश मंगल चौथे भाव में हो तो मूंगा रत्न अवश्य धारण करना चाहिए।

10. जन्मकुण्डली में मंगल 6, 8, या 12वें भाव में हो तो मूंगा रत्न पहिनना अत्यन्त लाभदायक माना गया है ।

11. यदि जन्मकुण्डली में मंगल सूर्य के साथ बैठा हो, या सूर्य से देखा जाता हो तो मूंगा पहिनना परमावश्यक है ।

12. चन्द्र मंगल के साथ में हो तो मूंगा पहिनना आर्थिक दृष्टि से शुभ माना गया है ।

13. यदि जन्मकुण्डली में मंगल अष्टमेश या षष्ठेश के साथ हो या इन ग्रहों से देखा जाता हो, तो मूंगा अवश्य पहिनना चाहिए।

14. यदि जन्मकुण्डली में मंगल वक्री, अस्त या वेदयुक्त हो तो मूंगा जरूर पहिनना चाहिए।

15. मंगल शुभ भावों का स्वामी होकर शत्रु ग्रहों में स्थित हो तो मंगल को बलशाली बनाने के लिए मूंगे को धारण करना श्रेयस्कर माना गया है ।

रोगों पर मूँगे का प्रभाव

  • रक्त सम्बन्धी विकारों में मूँगा परम लाभदायक है। यदि किसी को ब्लडप्रेशर की शिकायत हो तो मूंगे की भस्म शहद के साथ चाटने से शीघ्र लाभ होता है ।
  • मंदाग्नि में मूंगे की भस्म गुलाब जल के साथ देने से लाभ होता है ।
  • प्लीहा या पेट का दर्द हो तो मूंगे की भस्म मलाई के साथ खिलानी चाहिए।
  • कमजोरी में भी मूँगे की भस्म गुणकारी मानी गई है ।
  • मिर्गी, हृदयरोग या वायुकम्प में मूंगे की भस्म को दूध के साथ देने से रोग जड़ से नष्ट हो जाता है ।

मूंगे का प्रयोग

मंगलवार को मेष या वृश्चिक राशि पर चन्द्रमा या मंगल ग्रह हो, तो उस दिन मृगशिरा, चित्रा या धनिष्ठा नक्षत्र हो, तो उस दिन प्रातः सूर्योदय से ग्यारह बजे तक के मध्य सोने की अंगूठी बनवाकर मूंगा जड़वावे । यदि मंगल मकर राशि में हो तो उस दिन भी अंगूठी बनवाकर मूंगा जड़वाना श्रेयस्कर माना गया है । अँगूठी में मूंगा इस प्रकार से जड़वावे कि मूंगे का निचला हिस्सा उँगली को छूता रहे । यह अंगूठी बाएँ हाथ की मध्यमा उँगली में धारण करनी चाहिए।

प्रातः ग्यारह बजे के बाद भौम-यज्ञ करे । ताम्बे का त्रिकोण बनवाकर उस पर मंगल यन्त्र बनवावे, फिर उस यन्त्र पर मूंगे से जड़ित अँगूठी रखकर षोडसोपचार पूजा कर भौम मन्त्र से अभिषित करे । भौम मन्त्र इस प्रकार से है-

ओं अग्निर्मूर्द्धादिव ककुत्पतिः पृथिव्याऽअयम् ।

अपार्धं रेतार्धंसि जिन्वति || भौमाय नमः ॥

तत्पश्चात् ब्राह्मण से “भौं भौमाय नमः” लघु मन्त्र की ७०० आहुतियाँ दे ।

हवन के पश्चात् पूर्णाहुति दे एवं उस अंगूठी में मंगल की प्राण-प्रतिष्ठा करे ।

तब वह अंगूठी पहनकर ब्राह्मण को वह भोम यन्त्र, गेहूं, गुड़, रक्त, वस्त्र और दक्षिणा दे । इस प्रकार करने से ही अभीष्ट सिद्धि संभव है।

मूंगे की दान विधि

यदि जन्मकुण्डली में मंगल ज्यादा दूषित या पापी हो तो मूंगे का दान करना चाहिए। ताम्रपत्र पर भौम यन्त्र बनवाकर सात दिन तक उसका जप करावे और “ओं भूमिसुताय नमः” मन्त्र से जप करे। इस मंत्र का 28000 जप करावे । आठवें दिन वह मन्त्र, पीले और द्रव्य योग्य ब्राह्मण को दान कर दे। इसके साथ मूंगे का गुप्त दान करे। इस प्रकार करने से भौम-बाधा शान्त हो जाती है तथा सभी कार के अनिष्ट मिटकर कार्यों में सिद्धि प्राप्त होती है ।

मूंगे का वजन

कम से कम छः रत्ती सोने की अंगूठी बनवावे और उसमें आठ रत्ती मूंगे को जड़वावे । इस प्रकार से बनी अँगूठी ही प्रभावशाली मानी जाती । 8  रत्ती से छोटा मूंगा कम फल देने वाला माना गया है। मूंगा अँगूठी में जड़वाने के दिन से तीन साल तीन दिन तक प्रभावयुक्त रहता है, तत्पश्चात् वह निस्तेज हो जाता है । अतः इस समय के बाद मंगल प्रधान व्यक्तियों को दूसरा मूंगा पहिनना चाहिए।


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