शुक्र रत्न हीरा

संस्कृत में इसे वज्रमणि या इन्द्रमणि, हिन्दी में हीरा, फारसी में अलिमास और अंग्रेजी में डायमण्ड (Diamond) कहते हैं । यह रत्न-राज कहलाता है, क्योंकि अन्य समस्त रत्नों में यह दुर्लभ और कीमती होता है । समस्त देवतागण इसे धारण करते हैं। भाग्यवान देशों में ही इसकी खानें होती हैं तथा बिरले पुरुष ही इस रत्न को धारण करते हैं । हीरे के मुख्यतः 8 भेद पाये जाते हैं :-

1. अत्यन्त सफेद – हंस के पंख के समान शुभ्र हीरा हँसपति हीरा कहलाता है। यह अत्यन्त मूल्यवान एवं शुभ होता है ।

2. कमलासन हीरा – जो हीरा कमल पुष्प के समान वर्णवाला होता है, वह अत्यन्त तेजस्वी होता है । भगवान् विष्णु स्वयं इसे धारण करते हैं।

3. वनस्पति हीरा – सब्जी के रंग का हीरा वनस्पति हीरा कहलाता है । यह दुर्लभ होता है ।

4. वासन्ती हीरा – गेदे के पुष्प के रंग वाला हीरा वासन्ती हीरा कहलाता है। इसे स्वयं शंकर धारण किये रहते हैं।

5. नीलक हीरा – नीलकंठ के रंग का नीला हीरा मूल्यवान, श्रेष्ठ एवं उत्तम कोटि का होता है । देवपति इन्द्र के गले में यह सुशोभित रहता है ।

6. श्यामल हीरा – काला या श्याम रंग का हीरा भाग्य-विधायक होता है । यमराज इस हीरे को धारण किये रहते हैं ।

7. तेलिया हीरा – तेल के समान रंग वाला जर्द वर्णयुक्त हीरा तेलिया हीरा कहलाता है । यह मनोवांछित कार्य सम्पन्न करने वाला माना गया है ।

8. पीत हीरा – पीला वासन्ती पुष्प पराग के सदृश हीरा पीत हीरा कहलाता है। स्वयं कामदेव इस हीरे के स्वामी हैं । प्रेमी-प्रेमियों को रिझाने या केलि-क्रीड़ा में यह हीरा परमोपयोगी माना गया है ।

हीरे के गुण

हीरे में मुख्यतः पाँच गुण पाये जाते हैं :-

  • यह चमकदार होता है।
  • यह चिकना, हाथों में से फिसलने वाला होता है ।
  • इसमें से किरणें निकलती रहती हैं।
  • अँधेरे में यह जुगनू की तरह उजाला करता है ।
  • यह अच्छे पानी का तथा अच्छे घाट का होता है।

हीरे की परीक्षा

हीरे की परीक्षा करने की कई विधियाँ प्रचलित हैं, जिनमें से कुछ नीचे दी जा रही हैं :-

  • एकदम गरम दूध में यदि हीरा डाल दिया जाय और तुरन्त दूध ठंडा हो जाय, तो हीरा सच्चा समझना चाहिए।
  • गरम पिघले हुए घी में हीरा डाल दिया जाय, तो घी तुरन्त जमने लग जायगा ।
  • सूर्य की धूप में हीरा रख दिया जाय तो उसमें से इन्द्रधनुषवत् किरणें निकलती दिखाई देती हैं।
  • यदि तोतले बच्चे के मुँह में हीरा रख दिया जाय और वह धाराप्रवाह बोलने लगे, तो हीरा सच्चा समझना चाहिए।
  • विपरीत लिंगी पहिना हुआ हीरा देखकर वश में होता-सा प्रतीत हो, तो हीरा सच्चा समझा जाना चाहिए।

हीरे की विशेषताएँ

हीरा चमकदार होता है, साथ ही इसमें वशीकरण करने की अपूर्व क्षमता होती है । इसके पास में रहने से भूत-प्रेत का कतई डर नहीं रहता । हीरा पहिनकर युद्ध में जाने से विजय प्राप्त होती है । स्त्री के साथ संभोग करते समय दोनों ने हीरा पहिना हुआ हो तो स्थंभन रहता है तथा काम-क्रीड़ा में मादकता छा जाती है । शत्रुओं को वश में करने की इसमें क्षमता होती है तथा इसके पहनने से वंश-वद्धि, धन-धान्य-वृद्धि एवं अटूट लक्ष्मी बनी रहती है ।

इसके पहिने होने से विद्युत् झटका क्षीण-सा प्रतीत होता है । जादू- टोना नहीं लगता तथा जहर खा लेने पर भी उसका असर नहीं के बराबर होता है। बुद्धि, सम्मान, बल एवं शरीर की पुष्टता हीरा धारण करने से स्वतः ही बढ़ती है ।

हीरे के दोष

1. रक्तमुखी – जिस हीरे का मुंह लाल हो, वह रक्तमुखी हीरा कहलाता है। ऐसा हीरा धन-धान्य का नाश करने वाला होता है ।

2. पीतमुखी – पीले मुँह वाला हीरा वंश का नाश करने वाला होता है ।

3. श्याम जवी – जिस हीरे में श्याम जौ के जैसा चिह्न हो, वह बल, वीर्य, बुद्धि आदि का नाश करने वाला होता है ।

4. गंदगी – जिस हीरे का रंग धूमिल या धुएं के सदृश हो, वह पशुधन का नाश करने वाला होता है ।

5. गडढा – जिस हीरे में गड्ढा हो, वह रोग को बढ़ाने वाला माना गया है।

6. सुन्न – जिस हीरे में चमक नहीं हो, वह सुन्नी हीरा कहलाता है। ऐसा हीरा लक्ष्मी का नाश करने वाला होता है।

7. लकीर – जिस हीरे में आड़ी लकीर दिखाई दे, वह हीरा चित्त की अस्थिरता बढ़ाने वाला तथा मनोमालिन्य बढ़ाने वाला होता है ।

8. बिन्दु – जिस हीरे में किसी भी रंग का छोटा-सा बिन्दु दिखाई दे, वह मृत्युकारक हीरा माना गया है ।

9. धार – जो हीरा कटा हुआ या धारयुक्त होता है, उसे पहिनने से चोर भय बढ़ता है ।

10. काकपक्षी – जिस हीरे में कौए के पजे जैसा चिह्न दिखाई दे, वह काकपक्षी हीरा कहलाता है। ऐसा हीरा सभी प्रकार से अनिष्ट करने वाला होता है।

हीरे के उपरत्न

1. दतला – यह हिमालय, बर्मा तथा श्याम में पाया जाता है। यह दिखने में चमकदार तथा सफेद होता है ।

2. तंकू हीरा – यह गुलाबीसी झाईं रखने वाला होता है । कावेरी और गंगा के कछारों में यह बहुतायत से पाया जाता है।

3. कंसला – यह अधिक चिकना, कोणीय तथा पानीदार होता है एवं नेपाल के आसपास यह मिलता है । यह हीरा हल्की हरी झाईं रखने वाला होता है ।

4. कुरंगी – यह वजन में भारी, कम चमकदार तथा पीली-सी झाईं वाला होता है। गंगा के कछार तथा हिमालय में इसका निवासस्थान है ।

5. सिम्मा – यह सफेद-काले धब्बों से चमकयुक्त पानीदार होता है तथा उत्तर दिशा के पहाड़ों में अधिकतर मिलता है।

जो व्यक्ति हीरा खरीदने की सामर्थ्य न रखते हों, उन्हें हीरे के उपरत्न धारण करने चाहिए। यह हीरे की अपेक्षा कम प्रभावशाली होते हैं।

हीरा कौन पहिने ?

1. जिस पुरुष या स्त्री को भूत-प्रेतादि बाधा हो, उसे तुरन्त हीरा पहिनना चाहिए ।

2. जहर को समाप्त करने में हीरा प्रबल माना गया है, अतः जिस व्यक्ति को जंगलादि में घूमना पड़ता हो या विषधर जन्तुओं से पाला पड़ता रहता हो, उसे हीरा अवश्य धारण करना चाहिए।

3. तुला या वृष लग्न रखने वाले व्यक्तियों को भी हीरा धारण करना चाहिए।

4. जो काम-क्रीड़ा में अशक्त या निर्बल हों या जिनसे पत्नी संतुष्ट न हो, उन्हें हीरा पहिनना चाहिए।

5. घर में पति-पत्नी में कलह या मनमुटाव हो तो हीरा पहिनना श्रेयस्कर है ।

6. व्यापारिक एजेंट, जिन्हें कई व्यक्तियों से मिलना पड़ता हो या प्रेमी अथवा प्रेमिका, जो दूसरे को वश में करना चाहते हों, उन्हें भी हीरा धारण करना चाहिए।

7. जिस व्यक्ति की कुण्डली में शुक्र शुभ भावों का स्वामी होकर अपने भाव से अष्टम या षष्ठ हो तो उसे हीरा अवश्य पहिनना चाहिए ।

8. जन्मकुण्डली में यदि शुक्र छठे या आठवें भाव में हो तो हीरा पहिनने की सलाह देनी चाहिए।

9. जन्म कुण्डली में यदि शुक्र वक्री, नीच, अस्तंगत या पाप ग्रहों के साथ स्थित हो तो हीरा पहिनना परम लाभकारी रहता है।

10. किसी भी ग्रह की महादशा में शुक्र का अन्तर चल रहा हो तो हीरा अवश्य धारण करना चाहिए।

11. बल, वीर्य, कामेच्छा बढ़ाने के लिए भी हीरा पहिना जाता है।

रोगों पर हीरे का प्रभाव

1. मंदाग्नि में यदि हीरे को भस्म शहद के साथ ली जाय, तो भूख लगती है और मंदाग्नि नष्ट होती है ।

2. जिसका वीर्य नहीं बनता हो, या शीघ्र स्खलित हो जाता हो, या पतला हो, या संतान उत्पन्न करने में अक्षम हो तो हीरे की भस्म मलाई के साथ सेवन करने से शीघ्र लाभ होता है ।

3. दुर्बल, अशक्त शरीर, अतिसार, अजीर्ण, वायुप्रकोप आदि रोगों में हीरा पहिनने से लाभ पहुँचता है ।

हीरे का प्रयोग

वृष, तुला या मीन राशि पर शुक्र हो, अथवा शुक्रवार के दिन भरणी, पूर्वाफाल्गुनी या पूर्वाषाढा नक्षत्र हो तो शुभ मुहूर्त में हीरा खरीदकर (शुक्रवार को प्रातः सूर्योदय से साढ़े ग्यारह बजे तक) सोने की अंगूठी में हीरा जड़वा ले। तत्पश्चात् यज्ञ मण्डप बनवावे । पंचकोणाकार शुक्र स्थंडल बनावे, उस पर सात तोले चाँदी के पत्र पर शुक्र यन्त्र को अंकित कर उसमें हीरा जड़वाकर स्थापन करे और उस पर यजमान की हीरा जड़ी अँगूठी रख ‘ओ३म् ऐं जं गीं शुक्राय नमः ।।’ मन्त्र से अभिषेक करे । उपर्युक्त मन्त्र का 4000 जप करे तथा शुक्र मूल मन्त्र का 16 हजार जप करावे । शुक्र मन्त्र निम्न है-

ओ३म अन्नात्परिश्रुतोरसं ब्रह्मणाव्यपि बत्क्षत्रं पयः । सोमं प्रजापति ऋतेन सत्यमिद्रियं विपानर्धं शुक्र मंधऽइंद्रस्येन्द्रियमिदंपयोमृतं मधु ||

तत्पश्चात् अँगूठी में शुक्र की प्राण-प्रतिष्ठा करे, अँगूठी पहिने एवं पूर्णाहुति करे तथा वह शुक्र यन्त्र, कपड़ा, सफेद धोती, गाय, हीरा, चाँदी, चावल, घी एवं कपूर का दान करे ।

हीरा वजन

सात रत्ती या इससे बड़ी सोने की अंगूठी हो तथा उसमें लगभग एक रत्ती या इससे बड़ा हीरा जड़वावे, तभी हीरा प्रभावशाली होगा। हीरा तोल में जितना ही ज्यादा बड़ा होगा, वह उतना ही अधिक प्रभावशाली होगा। हीरे के साथ स्वर्ण की ही अँगूठी हो ।

हीरा पहिनने की तारीख से सात वर्ष तक हीरे का प्रभाव रहता है, तत्पश्चात् वह निष्फल-सा बन जाता है, अतः सात वर्षों के बाद मुहूर्त में दूसरा हीरा पहिनना चाहिए।


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