शनि रत्न नीलम

नीलम शनिदेव का प्रधान रत्न है। इसे संस्कृत में इन्द्रनीलमणि, हिन्दी में नीलम, फारसी में नीलविल याकूत और अंग्रेजी भाषा में सेफायर टरग्यूज (Sapphire Turguese) कहते हैं। अधिकतर नीलम हिमालय, विन्ध्य, आबू पर्वतों के अंचल में, लंका, काबुल, जावा आदि की ओर मिलता है । प्रत्येक वर्ण के लिए इस रत्न का धारण करना श्रेष्ठ माना गया है। इसके प्रधानतः पाँच गुण हैं :-

  • इसका रंग नीला होता है, परन्तु मोर पंख के रंग का नीलम सर्वश्रेष्ठ माना गया है ।
  • यह चमकीला होता है तथा पतली-पतली नीली किरणें-सी निकलती दिखाई देती हैं ।
  • यह चिकना होता है ।
  • यह स्पष्ट साफ होता है तथा पारदर्शीवत् पाया जाता है।
  • इसका पानी श्रेष्ठ होता है तथा इसके कोण सुडौल होते हैं ।

नीलम की परीक्षा

सच्चे नीलम की पहिचान करने के कई तरीके हैं, जिनमें से कुछ ये हैं :-

  • धूप में यह प्रखर होता है, तेज किरणें निकलती हैं ।
  • पानी के गिलास में नीलम डाल दिया जाय तो पानी में से नीली किरणें निकलती-सी स्पष्ट दिखाई देती हैं ।
  • दूध के मध्य खरा नीलम रख दिया जाय, तो दूध का रंग नीला होता है ।

शनी की साढे सती

जन्म लग्न से या चन्द्र से शनि बारहवाँ, जन्म का और दूसरा होता है, तो इस पूरे समय को साढेसती कहा जाता है। शनि एक राशि पर ढाई वर्ष तक रहता है । इस प्रकार तीन राशियों पर उसका भ्रमण साढ़े सात वर्ष का होता है । यदि किसी को साढेसती अनिष्टकर हो तो, उसे नीलम अवश्य पहिनना चाहिए।

नीलम का प्रभाव

समस्त रत्नों में नीलम ही एक ऐसा रत्न है जो शीघ्र ही कुछ ही घंटों में अपना असर दिखाता है, अतः नीलम पहिनने के पश्चात् निम्न घटनायें घटित होती हों तो नीलम नहीं पहिने, नीलम को उतारकर रख देना चाहिए

  • रात को यदि डरावने और बुरे स्वप्न आने लगें, तो नीलम उतार दें ।
  • नीलम पहिनने के बाद से मुखाकृति में अन्तर आ गया हो, या आँखों की पीड़ा बढ़ गई हो, तो नीलम उतार दें ।
  • यदि कोई अनिष्ट हो गया हो, तो भी तुरन्त नीलम रत्न उतारकर रख देना चाहिए।

नीलम के दोष

नीलम खरीदते समय पूरी सावधानी रखनी चाहिए। इसमें निम्न दोष पाये जाते हैं :-

1. सफेद डोरिया- प्रमुखतः यदि नीलम में सफेद लाइन या डोरा-सा दिखाई दे, तो वह नीलम शस्त्र से मृत्यु करता है ।

2. दूधिया – दूधिए रंग का नीलम कुल-लक्ष्मी का नाश करने वाला माना गया है। 3. चीरी – जिस नीलम में कोई चीरी या क्रास दिखाई दे, तो वह नीलम दरिद्रता बढ़ाता है ।

4. दुरंगा – दो रंगों वाला नीलम संतान तथा पत्नी पक्ष के लिए घातक है ।

5. जाल – यदि नीलम में जाल हो, तो वह नीलम रोगवर्धक होता है ।

6. खड्डा – खड्डे वाला नौलम शत्रु-भय को बढ़ाने वाला माना गया है ।

7. सुन्न – बिना चमक का नीलम सुन्न कहलाता है । ऐसा मीलम प्रिय बन्धुओं का नाश करता है ।

8. धब्बे – जिस नीलम में सफेद छोटे-छोटे धब्बे हों, वह विषयुक्त होता है ।

9. छीटी – जिस नीलम में लाल रंग के छोटे-छोटे बिन्दु दिखाई दें, वह पुत्र सुख नष्ट करने वाला तथा रोगवर्धक होता है।

नीलम के उपरत्न

नीलम के मुख्यतः दो उपरत्न पाये जाते हैं। जो व्यक्ति धनाभाव से नीलम नहीं खरीद सकते, उन्हें नीलम के उपरत्न खरीदकर धारण करने चाहिए ।

1. लीलिया – यह नीले रंग तथा हल्की रक्तिम ललाई लिए हुए होता है। यह चमकदार भी होता है। विन्ध्य तथा गंगा-यमुना के कछारों में यह मिल जाता है ।

2. जमुनिया – इसका रंग पके जामुन-सा होता है, साथ ही यह हल्का गुलाबी, सफेद रंगों में भी पाया जाता है। यह चिकना, साफ, पारदर्शी होता है। हिमालय प्रदेश में यह अधिकतर पाया जाता है।

नीलम कौन पहिने ?

नीलम पहिनने का चुनाव अत्यन्त सावधानीपूर्वक करना चाहिए । नीचे वे बिन्दु स्पष्ट किए जा रहे हैं, जिन्हें नीलम पहिनना श्रेयस्कर रहता है-

1. मेष, वृष, तुला, वृश्चिक लग्न रखने वालों को नीलम पहिनना भाग्यवर्धक रहता है।

2. जन्मकुण्डली में शनि चौथे, पांचवें, दसवें या ग्यारहवें भाव में बैठा हो तो नीलम अवश्य पहिनना चाहिए।

3. यदि शनि षष्ठेश या अष्टमेश के साथ बैठा हो तो नीलम पहिनना श्रेष्ठ रहता है।

4. यदि शनि अपने भाव से छठे या आठवें स्थान में स्थित हो तो नीलम जरूर पहिनना चाहिए ।

5. शनि मकर तथा कुम्भ राशि का स्वामी है । यदि एक राशि श्रेष्ठभाव में हो तथा दूसरी अशुभ भाव में हो तो नीलम न पहिनें, अपितु यदि शनि की दोनों राशियाँ जन्मकुण्डली में श्रेष्ठ भावों का प्रतिनिधित्व करती हों तो अवश्य नीलम धारण करना चाहिए।

6. शनि की साढ़सती चल रही हो तो नीलम धारण करना श्रेष्ठ है।

7. किसी भी ग्रह की महादशा में शनि की अन्तर्दशा चल रही हो तो अवश्य ही नीलम पहिनना चाहिए ।

8. यदि शनि सूर्य के साथ हो, सूर्य की राशि में हो या सूर्य से दृष्ट हो तब भी नीलम धारण करना चाहिए ।

9. यदि शनि जन्मकुण्डली में मेष राशि पर स्थित हो, तो नीलम पहिनना जरूरी होता है ।

10. जन्मकुण्डली में शनि वक्री, अस्तंगत या दुर्बल हो और शुभ भावों का प्रतिनिधित्व कर रहा हो तो नीलम पहिनना श्रेष्ठ माना गया है ।

11. जो शनिग्रह प्रधान व्यक्ति हैं, उन्हें नीलम पहिनना चाहिए।

12. क्रूर कर्म करने वालों के लिए शनि-रत्न नीलम हर समय उपयोगी माना गया है ।

रोगों पर नीलम का प्रभाव

  • आंखों के रोग, धुन्ध, जाला, पानी गिरना, मोतिया आदि में यदि नीलम केवड़े के जल में घोटकर आंखों में डालें, तो शीघ्र लाभ मिलता है ।
  • पागलपन की बीमारी में नीलम-भस्म श्रेष्ठोषधि मानी गयी है ।
  • इसके धारण करने से स्वतः ही खाँसी, उलटी, रक्त विकार, विषम ज्वर आदि रोग नष्ट हो जाते हैं ।

नीलम का प्रयोग

शनि मकर या कुम्भ राशि में हो, अथवा उत्तराषाढ़ा श्रवण, धनिष्ठा, शतभिषा, पूर्वाभाद्रपद, चित्रा स्वाति और विशाखा नक्षत्र के दिन शनिवार हो तो ऐसे शुभ दिन को नीलम खरीदकर पंचधातु फौलाद (लोहा) या सोने की अंगूठी में जड़वावे । अंगूठी लगभग 6 रत्ती की हो तथा चार रती से छोटा नीलम न हो। इससे छोटा नीलम कम प्रभावशाली होता है ।

तत्पश्चात् शनि-मंडप बनावे, ग्रह-शांति के साथ शनि-यज्ञ करे एवं ‘ॐ ह्रीं ऐं श्री शनैश्चराय नमः ।।’ मंत्र से 6000 आहुतियाँ दे । तत्पश्चात् शनि-स्थण्डल धनुषाकार बनावे, उस पर नौ तोले चाँदी के पत्र पर शनि-यन्त्र उत्कीर्ण कर स्थापित करे एवं उस पर नीलम जड़वावे । फिर उस शनि-यन्त्र पर नीलम जड़ी अँगूठी रखकर षोडसोपचार पूजा कर प्राण-प्रतिष्ठा कर शनि वेदोक्त मन्त्र का 23 हजार जप करावे । शनि मन्त्र यह है :-

ॐ शन्नो देवीरभिष्टम आपो भवंतु पीतये । शंय्यौ रभिश्रवंतुनमः ।।

फिर वह अँगूठी धारण करे तथा पूर्णाहुति करे, तत्पश्चात् वह शनि-यंत्र, तिल-पात्र, तेल, मसूर, भैंस, लोह, काली गाय, श्याम वस्त्र आदि का दान करे। सायं दीप-बलि, भैरव पूजन एवं दीप दान करे। इस प्रकार करने से शनि से संबंधित सभी अनिष्ट शान्त होकर सुख-शान्ति होती है ।

नीलम वजन

नीलम चार रत्ती या इससे बड़ा ही प्रभावशाली होता है। पंचधातु या लोहे की अंगूठी में यह विशेष फलदायी है। सोने की अंगूठी में भी नीलम पहिना जा सकता है । पाँच वर्षों के पश्चात् पहिने गये नीलम का प्रभाव समाप्त हो जाता है, अतः इसके बाद दूसरा श्रेष्ठ नीलम अँगूठी में धारण करना चाहिए ।


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