गोचर विचार
जातक पर चल रहे वर्तमान समय की शुभाशुभ जानकारी के लिए गोचर विचार सरल और उपयोगी साधन है । गोचर ग्रहों के प्रभाव उनकी राशि परिवर्तन के साथ-साथ बदलते रहते हैं । वर्ष की जानकारी गुरु और शनि से, मास की सूर्य से और प्रतिदिन की चन्द्र गोचर से की जा सकती है।
इस पद्धति में ग्रहों की चन्द्र से किस भाव में स्थिति है इस बात पर फलों का निर्णय किया गया है। यह तो आप जानते ही हैं कि जन्म कुण्डली के ग्रहों का फल भी बिना चन्द्रकुण्डली से ग्रह स्थिति को देखे सत्य रूप से नहीं कहा जा सकता । चन्द्र का दरजा लग्न से कम नहीं है । ज्योतिष शास्त्र के पिता ने (बृहत्पाराशर होराशास्त्र अध्याय १२, श्लोक ११ में) कहा है :
“एवं चन्द्राच्च विज्ञेयं फलं जातककोविदैः “
अर्थात् ज्योतिष शास्त्र के पण्डितों को लग्न की भांति चन्द्र लग्न से भी फलादेश कहना चाहिए।
गोचर में ग्रहों का विचार लग्न से किया जावे अथवा जन्म राशि से यह एक महत्त्वपूर्ण प्रश्न है । इस प्रश्न का उत्तर ‘ज्योतिर्निबन्ध ‘ का निम्नलिखित श्लोक कुछ हद तक उपस्थित करता है :
“विवाहे सर्वमाङ्गल्ये यात्रादौ ग्रहगोचरे
जन्मराशेः प्रधानत्वं नाम राशि न चिन्तयेत”
अर्थात् विवाह और अन्य मंगल कार्यों में, यात्रा आदि में, और ग्रहों के ‘गोचर’ विचार में जन्मराशि की प्रधानता है न कि नाम राशि की । दक्षिण भारत के प्रसिद्ध ज्योतिष ग्रन्थ ‘फलदीपिका’ में भी चन्द्र लग्न से अर्थात् जन्म राशि से गोचर विचार करने का निर्देश है :
“सर्वेषु लग्नेष्वपि सत्सु
चन्द्रलग्नं प्रधानं खलु गोचरेषु ।”
अर्थात् सब प्रकार की लग्नों (लग्न, सूर्य लग्न, चन्द्र लग्न) के होते हुए भी गोचर विचार में प्रधानता चन्द्र लग्न ही की है। वैसे भी चन्द्र लग्न की महानता ज्योतिषशास्त्र में कुछ कम नहीं । चन्द्र लग्न की महानता का कुछ अन्दाजा आपको ‘जातक पारिजात’ के राजयोग के निम्नलिखित श्लोक से भी हो जाएगा-
“नीचं गतो जन्मनि यो ग्रह स्पात् तद् राशि नाथोऽपि तदुच्च नाथः
सचन्द्र लग्नाद् यदि केन्द्रवर्ती
राजा भवेद धार्मिक चक्रवर्ती।”
अर्थात् जन्म के समय जो ग्रह नीच राशि में स्थित हो, यदि उस नीच राशि का स्वामी अथवा उस ग्रह के उच्च स्थान का स्वामी चन्द्र लग्न से केन्द्र में हो तो वह जातक चक्रवर्ती राजा होता है । यहां केन्द्र स्थिति चन्द्र से कही है जिससे चन्द्र की लग्न रूप से महिमा व्यक्त है। देवकेरलकार ने भी लिखा है-
“चन्द्रलग्नं शरीरं स्यात् लग्नं स्यात् प्राण संज्ञकम्
ते उभे संपरीक्ष्यैव सर्व नाडी फलं स्मृतम् ।” अर्थात् चन्द्र लग्न शरीर है, लग्न प्राण है, इन दोनों का सम्यक् विचार करने के अनन्तर ही कुण्डली का फल कहना चाहिए ।
सूर्य का गोचर में फल
जन्मकुण्डली में चन्द्रमा जहां स्थित है वहां से तीसरे, छठे, दसवें और ग्यारहवें भाव पर सूर्य का जो प्रभाव है वह उन स्थानों में सूर्य के लिए बलप्रद तथा शुभताप्रद है । इसी बात को हम यूं भी कह सकते हैं कि जब सूर्य चन्द्रमा से तृतीय, छठे, दसवें और ग्यारहवें भाव में गोचर वश पहुंचता है तब शुभ फल करता है, शेष भावों में सूर्य का फल अशुभ माना गया है।
चन्द्र लग्न में जब गोचर का सूर्य जाता है तब धन का नाश होता है, व्यक्ति के मान-सम्मान में कमी आती है, स्वास्थ्य अच्छा नहीं रहता, रक्त भाराधिक्य, हृदय रोग, थकावट, उदर विकार, पेट के तथा नेत्र के रोगों से कष्ट उठाना पड़ता है, प्रत्येक कार्य विलम्व से सम्पन्न होता है और समय पर भोजन नहीं मिलता, बिना किसी उद्देश्य के भ्रमण होता है, और व्यक्ति को अपने परिवार से अलग होना पड़ता है । सम्बन्धियों, मित्रों और सज्जनों से झगड़ा होने के कारण मानसिक व्यथा रहती है ।
चन्द्र लग्न से द्वितीय स्थान में जब सूर्य जाता है तब दुष्ट और बुरे कर्म वाले लोगों से मुलाकात होती है। व्यक्ति का निज का स्वभाव भी धूर्तता तथा नीचता की ओर अग्रसर होता है। सिर और आंखों में पीड़ा रहती है । व्यापार और धन-सम्पत्ति की हानि का भय रहता है। मित्रों और सम्बन्धियों से झगड़ा होता है और व्यक्ति का पूरा महीना सुख- रहित व्यतीत होता है ।
चन्द्र लग्न से तृतीय स्थान में जब सूर्य गोचर वश आता है तो रोगों से मुक्ति, सुख, चैन शुभफल मिलते हैं। सज्जनों एवं उच्च राज्याधिकारियों से मेल-मुलाकात होती है। पुत्रों तथा मित्रों से धन- लाभ तथा सम्मान होता है। शत्रुओं की सरलता से पराजय होती है तथा व्यक्ति लक्ष्मी और मान-प्रतिष्ठा प्राप्त करता है । इस अवधि में प्रायः पद की प्राप्ति होती है और व्यक्ति सबसे शुभ व्यवहार करता है
चन्द्र से चतुर्थ स्थान में जब गोचर का सूर्य जाता है तब मानसिक और शारीरिक व्यथा रहती है, घरेलू झगड़ों के कारण सुखों में कमी आ जाती है, जमीन-जायदाद सम्बन्धी अनेक प्रकार की समस्याएं उत्पन्न हो जाती हैं, अच्छी सुख-सामग्री नहीं मिलती। यात्रा में असुविधायें होती हैं । लोग परेशान करते हैं, विवाहित सुख में भी अड़चन पड़ती है । मान-हानि की संभावना रहती है ।
चन्द्र से पंचम भाव में गोचर का सूर्य जब जाता है तब मानसिक भ्रम खासतौर से उत्पन्न होता है । शारीरिक और मानसिक शक्ति में कमी आती है । धनहानि भी होती है। स्वयं और सन्तान का रोग उत्पन्न होता है । राज्याधिकारियों से वाद-विवाद बढ़ता है। यात्रा में दुर्घटनाएं होती हैं। धनहानि भी होती है। व्यक्ति दीनता का अनुभव करता है ।
चन्द्र से छठे स्थान में सूर्य जब गोचर में आता है तब कार्यसिद्धि और सुख की प्राप्ति होती है, अन्न-वस्त्र आदि का लाभ होता है। शत्रुओं पर विजय प्राप्त होती है। रोगों का नाश होता है । राज्या- धिकारियों से लाभ रहता है । निज प्रताप में वृद्धि होती है । शोक-मोह आदि भावों का नाश होकर चित्त और शरीर स्वस्थ रहते हैं ।
चन्द्र से सातवें स्थान में सूर्य के जाने से दाम्पत्य जीवन में वैमनस्य की उत्पत्ति होती है, स्त्री और पुत्र बीमार रहते हैं । कार्यों में असफल- ताएं प्राप्त होती हैं । व्यवसाय में बाधायें उत्पन्न होती हैं। कष्टकारी यात्राएं करनी पड़ती हैं । उदर पीड़ा, सिर पीड़ा आदि रोग होते हैं । धन और मानहानि के कारण व्यक्ति के मन को क्लेश रहता है।
चन्द्र से अष्टम भाव में सूर्य के जाने पर जातक को अपने बुरे कर्मों का फल मिलता है । शत्रुओं से झगड़ा होता है। शरीर में पीड़ा रहती है। बवासीर, अपच आदि रोग उत्पन्न हो जाते हैं । राज भय (जुर्माना, मुकदमा, गिरफ्तारी होता है । स्त्री को भी कुछ कष्ट होता है। बहुत अधिक खर्च होता है। कभी-कभी ज्वर, रक्त भाराधिक्य के कारण मृत्यु भी हो सकती है। अपमान का विशेष भय रहता है।
चन्द्र से नवम स्थान में गोचरवश जब सूर्य जाता है तब कांति का क्षय, झूठा आरोप, बिना कारण धन और पुण्य की हानि, आय की कमी, रोग एवं अशान्ति उत्पन्न होते हैं। बड़ों से, भाइयों से मित्रों से तथा विरोध रहता है । अपमान का भय रहता है। हर उद्योग में असफलता मिलने के कारण व्यक्ति दीन बन जाता है ।
चन्द्र से दशम भाव में सूर्य के जाने पर धन, स्वास्थ्य, मित्र आदि का सुख प्राप्त होता है । राज्याधिकारियों और प्रतिष्ठित लोगों से मित्रता बढ़ती है । सज्जनों द्वारा लाभ होता है, प्रत्येक कार्य में सफलता मिलती है। पदोन्नति का सुअवसर प्राप्त होता है। मान, गौरव तथा प्रताप बढ़ते हैं ।
चंद्रमा से एकादश भाव में सूर्य के जाने से हर प्रकार का लाभ, धन- प्राप्ति, उत्तम भोजन, नवीन पद और बड़ों के अनुग्रह की प्राप्ति होती है । स्वास्थ्य अच्छा रहता है और आध्यात्मिक एवं मांगलिक कार्य होते रहते हैं । सात्विकता में वृद्धि होती है। राज्य की ओर से कृपा की प्राप्ति होती है। पदोन्नति का यह समय होता है, पितादि से लाभ रहता है ।
चन्द्र से द्वादश भाव में गोचर में रवि के आ जाने से दूर देश का भ्रमण होता है । कार्य एवं पद की हानि होती है। व्यय अधिक रहता है । कई प्रकार की कठिनाइयां झेलनी पड़ती हैं। ज्वर आदि रोग उत्पन्न होते हैं। पेट में अधिक गड़बड़ रहती है। राज्य की ओर से विरोध होता है। आंखों में कष्ट की संभावना रहती है। मित्रों का व्यवहार भी शत्रुतापूर्ण हो जाता है। अपमान का भय रहता है।
सूर्य की राशि प्रवेश की अंग्रेजी तारीखें
उपरोक्त पंक्तियों में चन्द्र लग्न से क्रमश: बारह स्थानों में गोचरवश सूर्य का फल कहा गया है। प्रति मास प्रायः निम्नलिखित तारीखों को सूर्य एक राशि से दूसरी राशि में प्रवेश करता है और वहां करीब एक मास रहता है । इन तारीखों का ध्यान रखने पर बिना पंचांग की सहायता से ही यात्रा अथवा उत्सव आदि के अवसर पर जन्म राशि से किसी भी व्यक्ति का मास फल बताया जा सकता है-
सूर्य का उपरोक्त राशि संचार भारतीय निरयन पद्धति के अनुसार है न कि पाश्चात्य मतानुसार ।
चन्द्र गोचरफल
जन्म कुण्डली में चन्द्रमा जहां स्थित है वहां से प्रथम, तृतीय, छठे, सातवें, दसवें और ग्यारहवें भाव पर उसका जो प्रभाव है वह उन स्थानों पर चन्द्र के लिए बलप्रद तथा शुभ फलदायक है।
दूसरे शब्दों में जब गोचर में चन्द्रमा जन्म चन्द्र राशि से उपरोक्त भावों में आता है तो शुभ फल करता है। शेष भागों में उसे अशुभ समझना चाहिए।
चन्द्र लग्न में ही गोचरवश जब चन्द्रमा आता है तब व्यक्ति सुख और आनन्द प्राप्त करता है। रोग-मुक्त रहता है । उत्तम भोजन, वस्त्र और शय्या सुख प्राप्त होता है। स्त्री संभोग का अवसर आता है। उपहारादि धन की प्राप्ति होती है।
चन्द्र लग्न से द्वितीय भाव में गोचर का चन्द्रमा मानसिक असन्तोष देता है। कुटुम्ब वालों से नहीं बनती। नेत्रों में पीड़ा का कोई रोग उत्पन्न होता है। अच्छा भोजन सुख प्राप्त नहीं होता । कार्यों में असफलता मिलती है । पाप कर्मों में प्रवृत्ति बढ़ती है, विद्या में हानि उठानी पड़ती है।
चंद्र से तीसरे स्थान में गोचरवश चंद्र्मा के आ जाने पर धन की प्रप्ति होती है. शत्रु पर विजय प्राप्त होती है. स्वास्थय ठीक रहता है. मन प्रसन्न रहता है.
चंद्र से चतुर्थ स्थान में गोचरवश चंद्र्मा के आ जाने पर स्वजनो से झगडा होता है. चित में चंचलता रहती है. भोजन और नीद में बधाए उत्पन्न होती हैं. जल और स्त्री जाति से भय होता है. जनता से भी अपमान का भय होता है. स्त्री सुख में कमी आती है.
चंद्र से पंचम स्थान में गोचरवश चंद्र्मा के आ जाने पर यात्रा में कष्ट और दुर्घटना की सम्भावना रहती है. कार्य सफल नहीं होता, मन में अशांति रहती है. धन हानि होती है.
चंद्र से छठे स्थान में गोचरवश चंद्र्मा के आ जाने पर धन लाभ होता है तथा जातक का स्वास्थ्य भी ठीक रहता है । यश और आनन्द की प्राप्ति होती है। महिलाओं से वार्तालाग का अवसर मिलता है । अपने घर में सुखपूर्वक रहने का अवसर प्राप्त होता है । शत्रुओं की पराजय होती है और रोगों का नाश होता है । व्यय में अधिकत रहती है।
चन्द्र से सातवें स्थान में गोचरवश चन्द्र के आने पर धन लाभ होता है । जातक को पर्याप्त काम (Sex) का सुख मिलता है। छोटी परन्तु लाभदायक यात्राएं होती हैं । वाणिज्य व्यवसाय में लाभ रहता है । उत्तम भोजन, क्षीर आदि पेय पदार्थ तथा शयन-सुख मिलता है। स्वास्थ्य अच्छा रहता है वाहन और ख्याति की प्राप्ति होती है विशेष- तया जबकि शुक्र भी गोचर में शुभ फल दे रहा हो।
चन्द्र से अष्टम भाव में चन्द्रमा के आने पर व्यक्ति के अपच, श्वास, खांसी आदि छाती के रोग उत्पन्न होते हैं, झगड़ा-विवाद और मानसिक क्लेश रहता है । नियत समय पर अच्छा भोजन प्राप्त नहीं होता । अचानक महान् कष्ट में ग्रसित हो जाने की सम्भावना रहती है । धन का नाश होता है ।
चन्द्र से नवम भाव में चन्द्रमा के जाने पर राज्य की ओर से परेशानी होती है और व्यवसाय में हानि उठानी पड़ती है । पुत्रों से मतभेद रहता है, बल्कि पुत्रों के स्वास्थ्य को भी हानि पहुंचती है। उदर की कोई शिकायत जैसे कालरा – प्लूरेसी आदि होती है। मनुष्य का भाग्य उसका साथ नहीं देता । शत्रु परेशान करते हैं। राज्य की ओर से परेशानी उठानी पड़ती है ।
चन्द्र से दशम स्थान में चन्द्र जाने पर अभीष्ट की सिद्धि होती है । सभी कार्य सरलता से पूर्ण हो जाते हैं। व्यक्ति का स्वास्थ्य अच्छा रहता है। राज्य की ओर से धन और सम्मान की प्राप्ति होती है । नौकरी में पदोन्नति होती है। उच्चाधिकारी प्रसन्न रहते हैं । उत्तम गृह-सुख मिलता है ।
चन्द्र से ग्यारहवें चन्द्र के जाने पर मनुष्य की आय में वृद्धि होती है । व्यापार से पर्याप्त लाभ प्राप्त होता है । पुत्रादि से मिलाप होता है । उत्तम भोजन समयानुकूल प्राप्त होता है। मित्रों से हास-परिहास और स्त्री- -सुख से समय व्यतीत होता है। मन महत्त्वाकांक्षा की ओर अग्रसर होता है । स्त्री वर्ग से लाभ रहता है और तरल पदार्थों से आय में वृद्धि होती है।
चन्द्र से द्वादश में चन्द्र के जाने से शारीरिक कष्ट होता है विशेषतया आंखों को रोग हो जाने का भय रहता है। धन और मान की हानि होती है । पुत्रादिकों का सहयोग प्राप्त नहीं होता। मानसिक चिन्ताएं बढ़ जाती हैं । व्यय अधिक होता है । वाराही संहिता में आया है. कि :
अन्त्यगो वृषभ चरितान्दोषान् अन्ने करोति हि सव्ययान्
अर्थात् द्वादश भाव में गोचरवश गया हुआ चन्द्र अधिक व्यय के साथ-साथ उन्मत्त बैल का सा व्यवहार भी करवाता है और शक्ति सम्बंधित अनर्थ करवाता है ।
विशेष:- दूसरे, पांचवें तथा नवें स्थान में जो गोचर चन्द्र का फल लिखा है वह अशुभ फल केवल ‘क्षीण’ चन्द्रमा के रहने से होता है। यदि उक्त भावों में पूर्ण चन्द्र गोचरवश आवे तो वह शुभफल ही करता है । सूर्य से ६ तिथि (७२ अंश) आगे अथवा पीछे यदि चन्द्र स्थित हो तो वह ‘क्षीण’ संज्ञा वाला होता है।
मंगल गोचरफल
मंगल चन्द्र लग्न से गोचरवश तीसरे, छठे और ग्यारहवें भाव में शुभ फल देता है । शेष भावों में इसका फल अशुभ समझा गया है। चन्द्र लग्न में यदि गोचरवश मंगल हो तो उस समय कार्य सफल नहीं होते । व्यक्ति ज्वर, व्रण और रक्त विकार से कष्ट उठाता है । आग, जहर और हथियारों से हानि की सम्भावना होती है। बवासीर: आदि रोगों से पीड़ित होना पड़ता है । स्त्री को भी ज्वर आदि से कष्ट होता है। दुर्जनों को कष्ट मिलता है। यात्रा में दुर्घटनाएं होती हैं। और भी कई उपद्रव होते हैं।
चन्द्र से द्वितीय भाव में यदि मंगल गोचरवश स्थित हो तो बल की हानि होती हैं, कार्यों में असफलता मिलती है। दुष्ट मनुष्यों तथा चोरों आदि से तथा अग्नि आदि से धन की हानि होती है । वह सदा कठोर वचनों का प्रयोग करता है । राज्य की ओर से दण्डित होने का भय रहता है। शरीर में पित्त के आधिक्य से कष्ट रहता है।
चन्द्र से तृतीय भाव में यदि मंगल गोचरवश स्थित हो तो जातक का साहस बढ़ता है तथा उसके शत्रु पराजित होते हैं। धातुओं में धन मिलता है । वैयक्तिक प्रभाव में वृद्धि होती है। राज्य कर्मचारियों की ओर से सहायता प्राप्त होती है। तर्कशक्ति बढ़ती है तथा धन की वृद्धि होती है ।
चन्द्र से चतुर्थ भाव में यदि मंगल गोचरवश गया हो तो शत्रुओं की वृद्धि और स्वजनों का विरोध होता है। धन एवं वस्तुओं की कमी आ जाती है। जमीन-जायदाद की समस्याएं उत्पन्न होती रहती हैं। घरेलू जीवन का सुख कम मिलता है । ज्वर, वक्षस्थल के रोग तथा रक्त से उत्पन्न होने वाले रोगों से पीड़ा होती है। व्यक्ति के मान में कमी आती है । जनता अर्थात् सर्वसाधारण से भी प्रायः विरोध रहता है। माता को कष्ट मिलता है तथा मन में हिंसा तथा क्रूरता की वृत्ति जाग्रत होती है, मन भयभीत रहता है।
‘चन्द्र से पंचम में जब मंगल गोचरवश आता है तो धन और स्वास्थ्य का नाश होता है । सन्तान बीमार रहती है । यदि अन्य पाप प्रभाव भी हों तो सन्तान की मृत्यु तक की संभावना रहती है । मन पाप कर्मों की ओर अधिक प्रवृत्त होता है। उसके गौरव और प्रताप को विशेष धक्का लगता है। शत्रुओं से पीड़ा होती है।
चन्द्र से छठे जब मंगल गोचरवश आता है, तब धन, अन्न और तांबादि तथा स्वर्ण की प्राप्ति होती है । शत्रुओं पर सरलता से विजय प्राप्त होती है, शत्रुओं का नाश होता है । वैयक्तिक प्रभाव में वृद्धि होती है । यदि मंगल छठे भाव में उच्चादि राशि में स्थित हो तो स्वास्थ्य ठीक रहता है।
चन्द्र से सप्तम जब मंगल गोचरवश आता है तो स्वजनों को मानसिक तथा शारीरिक कष्ट होता है । भोजन-वस्त्र आदि में कमी आती है । अपनी स्त्री से कलह रहती है। स्त्री का स्वास्थ्य भी ठीक नहीं रहता । भाइयों से विवाद होता है और दुःख प्राप्त होता है। नेत्र विकार से पीड़ा होती है ।
चन्द्र से अष्टम जब मंगल गोचरवश आता है तो जातक का परदेशवास होता है। कार्य की हानि होती है, पुरुषार्थ निष्फल जाता है। घाव और रोग से पीड़ा होती है । गुदा अथवा उसके समीप तथा नेत्र में रोग की उत्पत्ति होती है। आघात आदि से इस समय मृत्यु भी सम्भव है । भाइयों से अनबन रहती है । पाप में प्रवृत्ति अधिक रहती है। जुआ आदि व्यसन घेरे रहते हैं । शत्रुओं से भय रहता है ।
चन्द्र से नवम जब मंगल गोचरवश आता है तो तब मनुष्य अनादर पाता है । पट्ठों के दर्द से पीड़ित और ‘सूखा’ (Atrophy of muscles) के रोग से पीड़ित हो सकता है। शरीर में निर्बलता रहती है । भाग्य में धक्का लगने के कारण धनाभाव का कष्ट उठाना पड़ता है। रोजगार में बाधा उत्पन्न होती है। ऑपरेशन आदि के बिगड़ने की संभावना रहती है। मनुष्य शत्रुओं से पराजित होता है । धर्म के विरुद्ध आचरण करता है तथा भाइयों से कष्ट होता है।
चन्द्र से दशम में मंगल जब गोचरवश आता है तब तामसिक पदार्थों का भोजन प्राप्त होता है । शरीर में आघात आदि द्वारा रोग की उत्पत्ति होती है । किसी कार्यवश घर से बाहर रहना पड़ता है । रोजगार में विघ्न वाधाएं आती हैं। चोरों का भय भी रहता है । परन्तु ‘वाराही’ के अनुसार दशम भाव में गोचरवश जाने वाला मंगल धन की प्राप्ति करवाता है । हमारे विचार में धन प्राप्ति का फल उत्तरार्द्ध अवधि में ही संभव मानना चाहिए ।
चन्द्र से एकादश भाव में मंगल जब गोचरवश आ जाता है, तब जय, आरोग्य और धन-धान्य की प्राप्ति होती है। आय में आशा- तीत वृद्धि होती है। भूमि आदि के लाभ का यह उपयुक्त समय रहता है । मकान के किराये की आय में वृद्धि होती है । भाइयों की वृद्धि होती है तथा व्यक्ति को उनसे लाभ भी रहता है। कार्यों में सफलता मिलती है।
चन्द्र से द्वादश भाव में गोचरवश जब मंगल आता है तो धन का व्यय होता है तथा घर से बाहर जाना पड़ता है। मनुष्य नेत्र रोग से पीड़ित होता है। भाइयों में अनबन रहती है। मान-हानि होती है। स्त्री को कष्ट होता है तथा उससे कलह होती है। पुत्रों को कष्ट की प्राप्ति होती है।
बुध गोचरफल
चन्द्र लग्न से दूसरे, चौथे, छठे, आठवें, दसवें और ग्यारहवें भाव में गोचरवश विचरता हुआ बुध शुभ फल करता है। शेष भावों में वह अशुभ फल देने वाला होता है ।
चन्द्र लग्न में जब गोचरवश बुध आता है तो चुगलखोरी में समय व्यतीत होता है। जातक अप्रिय शब्दों का प्रयोग करता है। धनहानि और बन्धन का भय रहता है छोटे-छोटे झगड़ों के कारण उसके धन की हानि होती है, लोग उसका आदर-सत्कार भी नहीं करते । सम्बन्धियों को हानि पहुंचती है । यदि यात्रा में पथ में चलते हुए उसका स्वागत भी हो तो भी अन्ततोगत्वा जातक को आदर नहीं मिल पाता ।
बुध चन्द्र लग्न से द्वितीय भाव में गोचर वश जब आता है तब आनन्द की वृद्धि होती है, धन-आभूषणोंकी प्राप्ति होती है। अपनी भाषण शक्ति से मनुष्य अच्छा धन प्राप्त करता है । विद्या में उन्नति होती है। अच्छे खाद्य पदार्थों की प्राप्ति होती है तथा सम्बन्धियों से धन की प्राप्ति होती है।
बुध चन्द्र लग्न से तीसरे भाव में गोचरवश जब आता है तो व्यक्ति को भयभीत होकर रहना पड़ता है। उसके साहस में कमी आ जाती है। बन्धुजनों से उसका झगड़ा तथा धन की हानि होती है । ‘वाराही संहिता’ के अनुसार तृतीय भाव में आया हुआ बुध मित्रों की प्राप्ति करवाता है। जातक भय के कारण भागता फिरता है ।
बुध चन्द्र लग्न से चतुर्थ भाव में जब गोचरवश आता है तो धन की प्राप्ति होती है। माता को सुख मिलता है। जमीन-जायदाद में वृद्धि होती है। अच्छे विद्वानों तथा भद्र पुरुषों से तथा उच्च पदस्थ लोगों से मित्रता बढ़ती है। घरेलू जीवन का सुख भी अच्छा मिलता है।
बुध चन्द्रमा से पंचम भाव में जब गोचरवश आता है तब मान- सिक पीड़ा होती है। योजनाओं पर किया विचार सफल नहीं होता । पुत्र तथा स्त्री से झगड़ा होता है । आर्थिक क्षेत्र में परेशानी रहती है। अन्य स्त्रियों से प्रेम-वार्ता होती है, परन्तु असफल ।
बुध चन्द्रमा से छठे भाव में गोचरवश आता है तो धन, अन्न और उत्तम वस्त्रों की प्राप्ति होती है। अच्छी और मनोरंजक पुस्तकें पढ़ने का अवसर मिलता है । शत्रुओं पर विजय प्राप्त होती है। सभी लोग जातक का मान-सम्मान करते हैं। अच्छा शारीरिक और मानसिक सुख प्राप्त होता है । लेखन तथा वाद्य कला में ख्याति मिलती है । बुध चन्द्रमा से सातवें भाव में गोचरवश जब आता है तो शरीर निस्तेज तथा पीड़ायुक्त रहता है। स्त्री आदि से विवाद रहता है । मित्रों तथा सम्बन्धियों से भी अनबन रहती है। राज्य की ओर से भय रहता है तथा धन का नाश होता है । यात्रा तथा व्यवसाय द्वारा लाभ नहीं होता । मनुष्य चिन्ताओं में ग्रस्त रहता है ।
बुध चन्द्र से आठवें भाव में गोचरवश जब आता है तो धन का लाभ तथा पुत्र को सुख होता है । शत्रुओं पर विजय प्राप्त होती है । हर कार्य में सफलता तथा प्रसन्नता बढ़ती है । जातक की आर्थिक तथा सामाजिक स्थिति ऊंची होती है ।
बुध चन्द्रमा से नवम भाव में गोचरवश जव आता है तब खेद, पीड़ा तथा सब कार्यों में विघ्न वाधाएं आती हैं। यात्रा में असुविधा तथा हानि होती है । धन और मान की भी हानि होती है । सम्बन्धियों तथा भाइयों से वैमनस्य रहता है। धर्म की बातों में छिद्रान्वेषण (बुराई ढूंढ़ना) करता है।
बुध चन्द्रमा से दशम भाव में गोचरवश जव आता है तो किसी नये पद की प्राप्ति होती है । शत्रुओं की पराजय का सुख मिलता है । व्यवसाय की वृद्धि होती है । मानसिक सुख शान्ति के साथ-साथ उत्तम गृह सुख भी जातक को प्राप्त होता है । जातक के मान में वृद्धि भी होती है और उसको सफलता की प्राप्ति होती है। जातक द्वारा जनहित के कार्य भी होते हैं।
बुध चन्द्र से एकादश भाव में जब गोचरवश आता है तो स्वास्थ्य, सुख, यश और धन की प्राप्ति होती है। मित्रों और पारिवारिक सदस्यों से अच्छी मेल-मुलाकात रहती है और उनसे सुख प्राप्त होता है। सन्तान प्राप्ति की संभावना भी रहती है । शुभ कार्यों में प्रवृत्ति बढ़ती है ।
बुध चन्द्र से द्वादश भाव में जब गोचरवश आता है तो धन तथा सुख की हानि होती है । चित्त में सन्ताप रहता है । भोजन में अरुचि रहती है । झगड़े आदि के कारण प्रायः सभी कार्यों में हानि होती है । शत्रुओं द्वारा अपमान तथा पराजय का अवसर आता है। शारीरिक स्वास्थ्य अच्छा नहीं रहता, सम्बन्धियों से अनबन रहती है । विद्या में हानि होती है ।
बृहस्पति गोचरफल
चन्द्र लग्न से दूसरे, पांचवें, सातवें नवें और ग्यारहवें भाव में गोचर द्वारा आया हुआ बृहस्पति शुभ फल करता है। शेष भावों में उसका फल अशुभ माना गया है।
बृहस्पति चन्द्र लग्न में जब गोचर वश आता है तब भय और मानहानि होती है। रोजगार और व्यवसाय में विघ्न-बाधाएं आती हैं। राजभय और मानसिक व्यथा रहती है। कार्य बहुत विलम्ब से पूरे होते हैं । यात्रा में कष्ट होता है और सुख में बहुत कमी आ जाती है। भारी व्यय के कारण जातक की आर्थिक स्थिति डांवाडोल हो जाती है।
बृहस्पति चन्द्र लग्न से दूसरे भाव में गोचरवश जब आता है धन का आगमन होता है । कुटुम्ब की सुख समृद्धि बढ़ती है। विवाह अथवा पुत्र जन्म का सुख होता है। शत्रुओं के विरुद्ध कार्य करने की आवश्यकता नहीं पड़ती। उनसे सन्धि आदि करते रहते हैं। जातक की ख्याति बढ़ती है और उसकी रुचि भी परोपकार और दान आदि में रहती है। चल सम्पत्ति जैसे कैश सर्टिफिकेट्स आदि में वृद्धि होती है।
बृहस्पति चन्द्र लग्न से तीसरे भाव में गोचरवश जब आता है तब शारीरिक पीड़ा होती है और कुटुम्बियों से झगड़ा होता है। रोजगार में झंझट उत्पन्न होता है। नौकरी छूट जाने तक की संभावना रहती है। राज्य कर्मचारियों की ओर से विरोध होता है। मित्रों का अनिष्ट होता । धन और मान में हानि होती है और यात्रा लाभदायक नहीं होती ।
बृहस्पति चन्द्र लग्न से चतुर्थ में गोचरवश जब आता है तो मन में अशान्ति रहती है। धन तथा कान्ति की हानि होती है । शत्रुवृद्धि के कारण कष्ट होता है। जातक को जन्म-स्थान छोड़कर बाहर जाना पड़ता है। जमीन-जायदाद तथा परिवार के सदस्यों का सुख नहीं मिलता। राज्य की ओर से तरह-तरह का भय रहता है।
बृहस्पति चन्द्र लग्न से पांचवें में जब गोचरवश आता है तब सुख और आनन्द की वृद्धि होती है। हर एक कार्य में सफलता मिलती है, पद की प्राप्ति होती है । व्यवसाय में उन्नति होती है । कोई स्थिर लाभ होता है । घर में मांगलिक उत्सव होते हैं । पुत्रजन्म की संभावना रहती है। तर्कशक्ति, सूझ-बूझ में वृद्धि होती है। सट्टे आदि भविष्य के व्यापार में लाभ रहता है, सद्गुणों में वृद्धि होती है।
बृहस्पति चन्द्र लग्न से छठे भाव में गोचरवश जब आता है तो रोग की उत्पत्ति करता है, पुत्रों आदि से वैमनस्य रहता है, धन की कमी अनुभव होती है, पेट के रोगों में वृद्धि होती है । राजकर्मचारियों से विरोध की संभावना रहती है ।
बृहस्पति चन्द्र लग्न से सातवें भाव में गोचरवश जब आता है तब चिन्ता बढ़ती है, चोर आदि से भय रहता है, राज्य के कर्मचारियों से अनबन हो जाती है तथा उनसे भय रहता है। धन रहते हुए भी उसमें कमी का अनुभव होता है। धन की गति (Circulation) रुक जाती है। पुत्र आदि से सुख की प्राप्ति नहीं होती । पुत्र आदि सम्बन्धियों से जातक की नहीं वनती ।
बृहस्पति चन्द्र लग्न से आठवें भाव में शोक, रोग, चोर और राज्य की ओर से गोचरवश आने से बन्धन, कष्ट होता है । कठोर वचन बोलने के कारण वह जातक तिरस्कार को प्राप्त करता है । कान्ति की हानि होती है। नौकरी छूटने तक की नौबत आ जाती है । धन व्यापार में भारी हानि होती है । शारीरिक कष्ट बढ़ जाता है । अपने ही देश में लम्बी यात्राओं से कष्ट मिलता है। पुत्रादिकों से विरोध रहता है ।
बृहस्पति चन्द्र लग्न से नवम भाव में गोचरवश जब आता है तो धन में वृद्धि होती है । पुत्रजन्म का उत्सव होता है । भाग्य में विशेष उन्नति होती है । पुत्र की भी वृद्धि होती है। राज्य में मान तथा पदोन्नति होती है । हर कार्य में सफलता मिलती है, भाइयों से सुख सहायता प्राप्त होती है। धर्म के कार्यों में रुचि बढ़ती है ।
बृहस्पति चन्द्र लग्न से दशम भाव में गोचरवश जब आता है तो दीनता की प्राप्ति होती है, मान-हानि तक की सम्भावना रहती है । अन्न तथा धन की भी हानि होती है ।
बृहस्पति चन्द्र लग्न से ग्यारहवें भाव में गोचरवश जब आता है तब धन और प्रतिष्ठा की वृद्धि होती है । शत्रुओं की पराजय होती है और समस्त कार्यों में सफलता मिलती है। विवाह अथवा पुत्र जन्म का अवसर आता है। नौकरी में पदोन्नति और व्यापार में अवश्य ही वृद्धि होती है । उत्तम सुख की प्राप्ति होती है। वैभव विलास के पदार्थ प्राप्त होते हैं । पुत्रों से तथा राज्याधिकारियों से सुख मिलता है। शुभ कार्यों में रुचि तथा रति की वृद्धि होती है ।
बृहस्पति चन्द्र लग्न से बारहवें भाव में गोचरवश जब आता है तब पुत्रादिकों से अलग होना पड़ता है। यात्रा में कष्ट और धन व्यय होता है । व्यय में अत्यधिक वृद्धि हो जाती है। विश्वासपात्र व्यक्ति से भी कलंक लगते हैं। शरीर अस्वस्थ रहता है । सदाचार में बहुत कमी आ जाती है । व्यर्थ का झूठा उपदेश मनुष्य देता फिरता है ।
शुक्र गोचरफल
गोचर में शुक्र, चन्द्र लग्न से प्रथम, द्वितीय, तृतीय, चतुर्थ, पंचम, अष्टम, नवम, एकादश और द्वादश भाव में शुभ फल करता है । शेष भावों में इसका फल शुभ नहीं माना जाता ।
शुक्र चन्द्र लग्न में जब गोचरवश आवे तब सुख और धन की प्राप्ति तथा शत्रु का नाश होता है, परन्तु जातक कुछ दुराचार भी करता है । विवाह और सन्तान जन्म का अवसर आता है तथा विद्या अध्ययन में सफलता प्राप्त होती है । सब प्रकार के आमोद-प्रमोद और वैभव-विलास प्राप्त होते हैं । सत्यता की ओर झुकाव बढ़ता है। व्यापार में वृद्धि होती है । जलीय पदार्थों तथा सुगन्धित द्रव्यों तथा फेन्सी गुड्स (Fancy Goods) आदि से आय होती है ।
शुक्र चन्द्र लग्न से द्वितीय भाव में गोचरवश जब आता है तब धन की बार-बार प्राप्ति होती है । शरीर स्वस्थ रहता है। नवीन वस्त्र तथा आभूषण धारण करने का यह समय होता है । उत्तम स्त्री-सुख मिलता है । सन्तान प्राप्ति का भी यह समय है। राज्य की ओर से मान बढ़ता है, विद्या में उन्नति होती है । शरीर के सौन्दर्य में निखार आता है। गायन-वादन में रुचि बढ़ती है । शत्रुओं का नाश होता है ।
शुक्र चन्द्र लग्न से तृतीय भाव में गोचरवश आता है तब मित्रों की वृद्धि तथा शत्रुओं की पराजय होती है। धन की प्राप्ति होती है और जातक का साहस बढ़ता है। नौकरों का सुख मिलता है और मान- सम्मान में वृद्धि होती है, भाग्योदय होता है। राज्य की ओर से कृपा प्राप्त होती है । बहिन-भाइयों का सुख बढ़ता है। धर्म में रुचि बढ़ती है।
शुक्र चन्द्र लग्न से चतुर्थ भाव में गोचरवश जब आता है तो मनो- कामनाएं पूर्ण होती हैं और धन की प्राप्ति होती है। वैभव-विलास की सामग्री, मोटर साईकल, कार आदि की प्राप्ति होती है । सम्बन्धियों से सहायता प्राप्त होती है। जनता से सम्पर्क तथा प्रेम बढ़ता है । शरीर तथा मन में विशेष बल की अनुभूति होती है।
शुक्र चन्द्र लग्न से पांचवें भाव में गोचरवश आता है तो पुत्रादिकों से प्रेम प्यार बढ़ता है । अन्न तथा धन की प्राप्ति होती है और उत्तम प्रकार का खाना-पीना रहता है । यश की वृद्धि होती है । शत्रुओं पर विजय प्राप्त होती है । पुत्रादि के जन्म का अवसर होता है । प्रेमी- प्रेमिका से सम्बन्ध पत्रके रूप से स्थापित हो जाते हैं । मनुष्य विभागीय परीक्षाओं (Departmental Examinations) में सफलता प्राप्त करता है । आमोद-प्रमोद के स्थानों, सिनेमा, क्लब आदि में अधिक आना जाना रहता है ।
शुक्र चन्द्र लग्न से छठे भाव में गोचरवश आने से शत्रुओं की वृद्धि और विजय होती है और उनसे सन्धि करने पर विवश होना पड़ता है ! साझेदारों से व्यापार सम्बन्धी झगड़ा होता है। यात्रादि से दुर्घटनाओं द्वारा हानि पहुंचती है । स्त्री विमुख हो जाती है ।
शुक्र चन्द्र लग्न से सातवें भाव में गोचरवश आने से अपमानित होने का भय रहता है। बड़े परिश्रम से आजिविका निर्वाह होता है। जननेन्द्रिय सम्बन्धी रोगों से जातक को कष्ट होता है । स्त्री से विवाद रहता है । स्त्री के रोगी रहने की सम्भावना रहती है । अन्य स्त्रियों से प्रेम आदि के कारण हानि और अपमान सहना पड़ता है। यात्राएं अधिक करनी पड़ती हैं ।
शुक्र चन्द्र लग्न से आठवें भाव में जब गोचरवश आता है तब धन की प्राप्ति होती है और सुखों में वृद्धि होती है । जातक के समस्त कष्ट दूर हो जाते हैं। विलास की सामग्री में वृद्धि होती है। कुटुम्बियों से धन तथा सुख की प्राप्ति होती है। विद्या में उन्नति होती है।
शुक्र चन्द्र लग्न से नवम भाव में जब गोचरवश आता है तो उत्तम वस्त्र तथा आभूषणों की प्राप्ति होती है । शरीर स्वस्थ रहता है । आशा से अधिक लाभ रहता है । कोई चिरस्थायी लाभ भी प्राप्त होता है । राज्य-कृपा मिलती है। घर में मांगलिक तथा धार्मिक उत्सव होते हैं । स्त्री द्वारा भाग्य में वृद्धि होती है, मित्रों से लाभ रहता है। भाइयों से सहायता तथा प्रेम मिलता है । लम्बी यात्रा देश के अन्दर होती है ।
शुक्र चन्द्र लग्न से दशम भाव में गोचरवश आया हो तो शरीर में पीड़ा रहती है । मानसिक चिन्ता बढ़ती है। धन की हानि होती है। नौकरी और व्यवसाय में विघ्न आते हैं । शत्रुओं की वृद्धि होती है । कार्यों में असफलता मिलती है। जनसाधारण से विरोध खड़ा हो जाता है । स्त्री वर्ग से दुःख की प्राप्ति होती है । सम्बन्धियों से अनबन रहती है। राज्य की ओर से परेशानी रहती है ।
शुक्र चन्द्र लग्न से एकादश भाव में जब गोचरवश आता है तब धन की वृद्धि होती है और जातक का प्रताप बढ़ता है। सभी कार्यों में सफलता मिलती है। उत्तम भोजनादि की प्राप्ति होती है । स्त्री सम्बन्धित सुखों में वृद्धि होती है। स्त्रियों से मित्रता बढ़ने के कारण जातक प्रसन्नता अनुभव करता है। मित्रों का पूर्ण सहयोग प्राप्त होता है।
शुक्र चन्द्र लग्न से बारहवें भाव में जब गोचरवश आता है तो जातक को मित्रों, धन, अन्न तथा विलास के सुगन्धित पदार्थादि की प्राप्ति होती है । यद्यपि जातक का धन बढ़ता है, परन्तु अन्ततोगत्वा उसको कपड़े के सामान की हानि उठानी पड़ती है ।
शनि गोचरफल
गोचर शनि चन्द्र लग्न से केवल तीसरे, छठे और ग्यारहवें भाव में शुभ फल करता है। शेष भावों में उसका फल अशुभ होता है।
शनि चन्द्र लग्न में जब गोचरवश आता है तो बुद्धि काम नहीं करती। शरीर निस्तेज रहता है। मानसिक और शारीरिक पीड़ा होती है । भाइयों तथा स्त्री आदि से झगड़ा होता है । शस्त्र और पत्थर से भय रहता है। दूर स्थानों की यात्रा होती है। मित्र और घर हाथ से निकल जाते हैं। सभी कार्यों में असफलता मिलती है। अपमान होता है और कभी राज्य से बन्धन का भय भी रहता है। अर्थिक स्थिति में बहुत कमजोरी आ जाती है।
शनि चन्द्रलग्न से द्वितीय भाव में जब गोचरवश आता है तब क्लेश होता है और बिना कारण झगड़ा खड़ा हो जाता है । स्वजनों से वैर चलता है। धन की हानि होती है और कार्य सफल नहीं होते । जातक शारीरिक दृष्टि से कमजोर रहता है और उसके लाभ तथा सुख में ‘बहुत कमी आ जाती है। स्त्री को कष्ट रहने और उसकी मृत्यु तक की संभा- वना रहती है । घर छोड़कर बाहर जाना पड़ता है। विदेश यात्रा की भी सम्भावना रहती है।
शनि चन्द्र लग्न से तृतीय भाव में जब गोचरवश आता है तो आरोग्य, पराक्रम और सुख में वृद्धि होती है । हर कार्य में सफलता मिलने के साथ-साथ, धन और नौकरी की प्राप्ति अथवा होती है। जातक स्वयं डरपोक भी हो तो भी उसे शत्रुओं पर विजय प्राप्त होती है और शत्रु उसे धीर वीर ही समझते हैं। जातक को पशु धन की भी प्राप्ति होती है। भूमि (Lands) प्राप्ति के लिए भी यह उपयुक्त समय होता है।
शनि चन्द्र लग्न से चतुर्थ भाव में जब गोचरवश आता है तब शत्रुओं और रोगों की वृद्धि होती है । स्थान परिवर्तन अथवा तबादला (Transfer) होता है । सम्बन्धियों से वियोग होता है। धन की कमी रहती है । यात्रा में कष्ट होता है और जातक के सुखों में कमी आती है, यह समय बहुत अपमानजनक सिद्ध होता है। जनता तथा राज्य दोनों द्वारा विरोध होता है । जातक के मन में वंचना (ठगो) और कुटिलता का संचार होता है।
शनि चन्द्र लग्न से पंचम भाव में गोचरवश जब आता है तो बुद्धि में भ्रम उत्पन्न हो जाता है। योजनाएं न बन पाती हैं न सफल होती हैं । जनता से ठगी करने की सम्भावना रहती है । धन और सुख में विशेष कमी आ जाती है। जातक अपना अधिकांश समय दुष्ट प्रकृति की स्त्रियों के साथ व्यतीत करता है । पुत्र की बीमारी अथवा मृत्यु की सम्भावना रहती है । अपनी स्त्री से वैमनस्य बढ़ता है। व्यापार में मन्दी आती है। स्त्री को वायु रोगों (Wind Troubles) की सम्भावना रहती है । पुत्र से हानि होती है ।
शनि चन्द्र लग्न से छठे भाव में गोचरवश जब आता है तो धन, अन्न और सुख की वृद्धि होती है। शत्रुओं पर विजय प्राप्त होती है । भूमि मकान आदि की प्राप्ति का समय होता है। जातक का स्वास्थ्य उत्तम रहता है और उसे स्त्री भोगादि सुखों की प्राप्ति होती है ।
शनि चन्द्र लग्न से सातवें भाव में गोचरवश जब आता है तो घर छोड़ना पड़ता है, बार-बार यात्राएं होती हैं। स्त्री रोगी रहती है; उसकी मृत्यु भी सम्भव है। जातक गुप्त रोगों के कारण कष्ट पाता है। धनहानि होती है और मानसिक व्यथा बढ़ती है। यात्रा में कष्ट होता है। और दुर्घटना की सम्भावना रहती है। मान-हानि होती है । धन में कमी आती है। नौकरी अथवा व्यापार छूट जाने तक की नौबत आ जाती है।
शनि चन्द्र लग्न से आठवें भाव में गोचरवश जब आता है तो द्रव्य तथा धन की हानि होती है। कार्य सफल नहीं होते । अपमानित होने का भय लगा रहता है। राज्य की ओर से भी भय रहता है । पुत्र से वियोग की सम्भावना रहती है । स्त्री की मृत्यु तक की सम्भावना रहती है। जुए और दुष्ट व्यक्तियों की मित्रता के कारण कई प्रकार की परेशानियां आती हैं।
शनि चन्द्र लग्न से नवें भाव में गोचरवश जब आता है तो दु:ख, रोग और शत्रुओं की वृद्धि होती है। धर्म के कार्यों से मनुष्य पीछे हट जाता है अथवा धर्म परिवर्तन कर बैठता है । प्रादेशिक अथवा तीर्थ यात्राएं होती हैं, परन्तु लाभप्रद नहीं होतीं । भ्रातृ वर्ग से अनबन रहती है, मित्रों से कष्ट पाता है। लाभ में कमी आ जाती है । भृत्य वर्ग से भी परेशान रहता है । बन्धन एवं आरोपों का भय रहता है।
शनि चन्द्र लग्न से दशम भाव में गोचरवश जब आता है तो नौकरी अथवा व्यवसाय में परिवर्तन होते हैं और उनके सम्बन्ध में विघ्नबाधाएं भी आती हैं। धन का व्यय होता है पर सफलता प्राप्त नहीं होती । जातक पाप कर्म करता है और मानसिक व्यथा सहन करता है । उसे घर आदि से दूर रहना पड़ता है वह जनता का विरोध भी पाता है । स्त्री से वैमनस्य के कारण उससे पृथकत्व की सम्भावना रहती है। छाती के रोगों की सम्भावना रहती है।
शनि चन्द्र लग्न से एकादश भाव में गोचरवश जब आता है तो बहुत ज्यादा लाभदायक सिद्ध होता है । स्त्री वर्ग से, लोहे आदि से अथवा भूमि से, मशीनरी, पत्थर, सीमेंट, कोयला, चमड़ा आदि से लाभ देता है। रोग से मुक्ति मिलती है। पदोन्नति होती है । भृत्य वर्ग से लाभ रहता है।
शनि चन्द्र लग्न से द्वादश भाव में गोचरवश जब आता है तो अपने कुटुम्ब से दूर रहने पर विवश होना पड़ता है । सम्बन्धियों तथा शुभ प्रतिष्ठित लोगों से मतभेद चलता है। धन का व्यय होता है । स्वास्थ्य खराब रहता है । दूर की यात्रा करनी पड़ती है जिसमें दुःख उठाना पड़ता है। इस समय धन नाश द्वारा भाग्य पतन का भय रहता है । सन्तान के लिए भी यह समय कष्टप्रद है । सन्तान की मृत्यु तक की संभावना रहती है ।
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