कुंडली में बुध का प्रभाव
बुध हमारे सौरमंडल का सबसे छोटा और सबसे चंचल ग्रह समझा जाता है इसलिए अंग्रेजी में इसे मरकरी (MERCURY) अर्थात् ‘पारा’ कहा गया है। यह सूर्य का निकटतम पड़ौसी है और मात्र 88 दिन में उसकी एक परिक्रमा पूरी कर लेता है। इसकी कोणीय दूरी सूर्य से कभी भी ° 28° से अधिक नहीं रहती । पृथ्वी से इसकी दूरी 3,68,41,460 मील आंकी गई है। इसका भार पृथ्वी की तुलना में मात्र 0.055 तथा व्यास मात्र 3140 मील बताया जाता है। इसे सौरमंडल के राजकुमार का पद प्राप्त है।
सूर्य से अति निकट होने के कारण बुध उसके प्रचंड ताप से पीड़ित रहता है और वैज्ञानिकों के अनुसार इसका ताप कभी भी 430° सेटीग्रेड से कम नहीं रहता। यह रहने लायक जगह नहीं माना जाता। लेकिन हाल ही में वैज्ञानिकों ने इस उबलते हुए ग्रह के ध्रुवों पर बर्फ की विशाल गहराई वाली परतें देखी हैं। यह तथ्य उसकी अस्थिर प्रकृति और द्विस्वभावी ग्रह होने की ही पुष्टि करता है लेकिन भौतिक साक्ष्यों के रंग में पगे आधुनिक वैज्ञानिकों को अभी तक इस रहस्यात्मक गुत्थी का कोई संतोषजनक उत्तर नहीं सूझ पाया है। वे इधर-उधर की कहानियां गढ़ने की जुगत में है। मसलन नासा वैज्ञानिकों की एक दलील यह है कि बुध के कुछ हिस्से कभी भी सूर्य के सामने नहीं आते और हमेशा ही छाया में बने रहते हैं। इसके साथ भी बुध पर गड्ढे भी भरे पड़े हैं जिनमें जमी बर्फ उन हिस्सों के हमेशा छाया में बने रहने के कारण कभी नहीं पिघलती और उसकी तहों पर तहें जमती चली जा रही हैं। उनका कहना है कि बुध पर कोई वायुमंडल न होने के कारण, उसके जिन हिस्सों पर सूर्य की किरणें पड़ती हैं, उन हिस्सों से ऊष्मा का संचरण अन्य हिस्सों में नहीं हो पाता। इसलिए बर्फ जमें क्षेत्रों का तापमान हमेशा शून्य बना रहता है ।
दलीलें चाहे कुछ भी हों नयी वैज्ञानिक खोजों से ज्योतिष शास्त्रियों का बुध के द्विस्वभावी होने के मत की ही इससे पुष्टि हुई है। बुध बहुत जल्दी-जल्दी वक्री होता रहता है। इसके कुछ-कुछ दिनों में ही वक्री मार्गी, मार्गी-वक्री होते रहने के कारण ही ज्योतिष विज्ञान में इस ग्रह को चंचल वृत्ति वाला कहा गया है। मानस भी चंचल होता है। इसलिए बुध को मानस (मन) से जोड़ा गया है।
आमतौर पर ज्योतिष विज्ञान में लग्न, चंद्र, मंगल, बृहस्पति और शनि तथा चंद्र की धुरी छायाएं कहे जाने वाले राहु-केतु पर ही अधिक ध्यान दिया जाता रहा है और सूर्य, बुध तथा शुक्र को ज्योतिष शास्त्री लगभग उपेक्षित ही करते रहे हैं। इनमें भी सर्वाधिक उपेक्षा बुध के ही हिस्से में आती है। लेकिन कोई भी बुद्धिमान ज्योतिषी बुध की उपेक्षा करने की गलती नहीं कर सकता। सभी ग्रहों में केवल बुध ही ऐसा है जिसे सदैव कालबली समझा जाता है। इतना ही नहीं वरन् बुध ही सात्विक ग्रहों में एक मात्र ऐसा ग्रह भी है जो कि मृत्यु स्थान समझे जाने वाले 8वें भाव में बैठकर भी शुभ फल देने में पूर्ण समर्थ होता है। यदि बुध अन्य अशुभ ग्रहों अथवा अशुभकारी राशियों से दुष्प्रभावित न हो तो यह जन्मकुंडली के किसी भी भाव में स्थित होने पर उस भाव-राशि के शासन वाले कार्यों पर शुभ फलकारक प्रभाव ही डालता है ।
बुध की दूसरी विशेषता यह है कि सूर्य के निकट होने से दग्ध होकर यह अन्य ग्रहों की भांति बिल्कुल प्रभावहीन नहीं हो जाता। यह ग्रहों की गुटबाजी में भी शामिल नहीं होता और दोनों ही गुट इसे अपने बीच का मानते हैं । वह सूर्य का भी मित्र होता है और शनि का भी । ज्ञातव्य है कि सूर्य गुट में सूर्य, मंगल, बृहस्पति, चंद्र और केतु को तथा शनि के गुट में शनि, शुक्र और राहु को शामिल माना जाता है।
बुध को राशि व्यवस्था में दो राशियों मिथुन और कन्या का स्वामित्व प्राप्त है। नक्षत्रों में वह तीन नक्षत्रों अश्लेषा, ज्येष्ठा और रेवती का स्वामी माना जाता है और विंशोत्तरी दशा पद्धति में उसे बृहस्पति की दशा से भी 1 वर्ष अधिक अर्थात् 17 वर्ष आवंटित किए जाते हैं। बुध पार्थिव और दुबले शरीर तथा हरे रंग का द्विस्वामी ग्रह माना जाता है। उसे पुरुष हिजड़ा माना गया है। वह उत्तर दिशा का प्रतिनिधि व शासक होता है। बुध को ज्योतिष विज्ञान में मुख्यतः मन का प्रतिनिधि माना गया है जो कि हमारे पार्थिव अस्तित्व में लौकिक और पारलौकिक तत्त्वों के बीच एक समन्वयक कड़ी का काम करता है। बुध को उसके नाम के अनुरूप जातक के बुद्धि-चातुर्य से भी जोड़ा जाता है। बुध के स्थान वाणिज्य और व्यापार केंद्र, चर्च, पाठशालाएं और विद्यालय, पार्क, जुआघर, सट्टा बाजार आदि कहे गए हैं। उत्पादों में वह हरा चना, पन्ना, सीसा, तिलहन, खाद्य तेल, सिरका आदि का, शारीरिक अंगों और अवयवों में मस्तिष्क, गला, जीभ, स्नायुतंत्र, थायरायड (गल ग्रंथि) त्वचा और गर्दन का तथा बीमारियों में गूंगापन, पागलपन, स्मृतिलुप्त होने, सिरदर्द और त्वचा रोगों का शासक, प्रतिनिधि और संचालक माना जाता है।
कुंडली में बुध का प्रभाव
बुध द्वारा शासित अन्य चीजों में मेकेनिकी, क्लर्की, कविता-लेखन, बुद्धि, शिक्षा, लेखन क्षमता, वाणी की शक्ति, गरिमा, मुद्रा, मिश्रित धातु आदि के साथ-साथ विशाल भवन, घोड़े, चिकित्सक, व्यापारी और मामा, नाना आदि शामिल हैं।
बुध ही एक मात्र ऐसा ग्रह है जो कि अपनी राशि व मूल त्रिकोण राशि कन्या में ही उच्चत्व प्राप्त करता है। उसकी नीच की राशि (Debilitation Sign) मीन होती है। बुध सूर्य व शुक्र को अपना परम मित्र मानता है। मंगल, बृहस्पति और शनि से उसके संबंध न मित्र, न शत्रु जैसे होते हैं। जबकि चंद्र उसका शत्रु है (कुछ ज्योतिष शास्त्री शनि को बुध का शत्रु मानते हैं, चंद्र को नहीं)। दूसरी ओर बृहस्पतिबुध से शत्रुता भाव मानता है और अपनी राशि मीन में उसके संचरणकाल को निस्तेज बनाए रखता है।
पुराणों में वर्णित कथाओं के अनुसार बुध दक्ष प्रजापति की कन्या और चंद्र की प्रिय पत्नी रोहिणी के गर्भ से उत्पन्न पुत्र है। इस रोहिणी-चंद्र संतान का विवाह देवलोक से निष्कासित होकर मृत्युलोक में आकर बसे वैवस्त्य मनु की पुत्री इला से हुआ बताया जाता है। बुध और इला की संतान महाराज पुरुरवा ने अपने जीवनकाल में 100 अश्वमेघ यज्ञ किए थे। बुध का आचरण मानव मन की तरह होता है जिस प्रकार यदि कोई मनुष्य सत्संगति में बैठकर सज्जन और कुसंगति में बैठकर दुर्जन बन जाता है। उसी प्रकार बुध शुभ ग्रहों के साथ अथवा उनकी दृष्टि में स्थित हो तो शुभ ग्रह की भांति और अशुभ ग्रहों के साथ बैठा हो तो अशुभ ग्रह की भांति आचरण करता है। यदि कुंडली में बुध अकेला और दग्धतामुक्त होकर बैठा हो तो शुभ ग्रह कहलाता है ।
बुध पहले भाव में दिग्बली माना जाता है जबकि सातवें भाव में इसकी स्थिति दिग्बल विहीन और नपुंसकत्व की कारक कही गई है।
विभिन्न भावों में बुध की स्थिति के फल
1. पहला भाव : बुध जन्म कुंडली के पहले भाव में बैठा हो तो जातक को हंसमुख, मिलनसार, विद्वान और दीर्घायु बनाता है। वह अच्छा वक्ता, तेज बुद्धि तथा नए से नया ज्ञान प्राप्त करने के लिए हमेशा तैयार रहने वाला होता है। उसकी संपत्ति बढ़ती है। वह अच्छे कामों के द्वारा लोकप्रियता प्राप्त करता है।
2. दूसरा भाव : इस भाव में बैठा बुध जातक को सुंदर सुखी व गुणी बनाता है। जातक सफल वकील या दलाल बन सकता है। वह अपने जीवनकाल में प्रसिद्धि, सम्मान व धन-समृद्धि प्राप्त कर लेता है ।
3. तीसरा भाव : जातक परिश्रमी, लेखक या संपादक बन सकता है। वह धर्मपरायण होता है। जातक शरीर से दुर्बल और जरा-सा काम करके थक जाने वाला होता है। वह धोखाधड़ी का शिकार बनकर दुखी हो सकता है। उसे कष्ट साध्य यात्राएं भी करनी पड़ सकती हैं। जातक भाइयों के मामले में भाग्यशाली होता है ।
4. चौथा भाव : इस भाव में बैठा बुध जातक को भाग्यशाली, आलसी, लेखक, धर्मपरायण, धनी, दानी और उच्चकोटि का विद्वान बनाता है। जातक बड़ी संख्या में मित्र बनाना पसंद करता है। उस जातक को शिक्षा के क्षेत्रों में उपलब्धियां प्राप्त होती है। उसकी माता स्वस्थ और प्रसन्न रहती है। उसकी संपदा बढ़ती है और जमीन जायदाद आदि से उसे विशेष लाभ मिलता है। उसका घरेलू जीवन सुखी और व्यापार अथवा व्यवसाय सफल होता है। उसे पदोन्नतियां मिलती हैं।
5. पांचवां भाव : जिस जातक की जन्मकुंडली में बुध पांचवें भाव में बैठा हो, वह सदाचारी, विद्वान, उद्यमी, प्रतिष्ठित, सक्रिय लेकिन स्थूल देह वाला होता है। उसे पद प्राप्त हो सकता है। वह अच्छे कार्य करता है और सम्मानित व प्रसिद्ध होता है। वह जिस काम में भी हाथ डालता है वह सफल हो जाता है। उसे अच्छी संतानों की प्राप्ति होती है। उसका घरेलू वातावरण शांत रहता है। वह सुखी और संपन्न होता है ।
6. छठवां भाव : बुध छठवें भाव में हों तो जातक परिश्रमी और विवेकशील तो होता है लेकिन वह साथ ही स्त्री-आसक्त, कलहप्रिय और अभिमानी भी होता है। वह जातक कठोर व रुखे स्वभाव वाला और रोगग्रस्त होता है। उसमें अनैतिक प्रवृत्तियां घर कर जाती हैं और वह शत्रुओं के हाथों अपनी धन-संपत्ति की हानि करा सकता है। ऐसा जातक अपने मामाओं के लिए भारी होता है।
7. सातवां भाव : किसी जातक की जन्मकुंडली में सातवें भाव में शनि बैठा हों तो वह सुसंस्कारी, विद्वान, सुदर्शन, धनी और लेखन प्रतिभा से युक्त होता है। वह विद्वानों की संगति में उठना-बैठना पसंद करता है। भौतिक सुखों की लालसा उसमें बहुत होती है लेकिन अक्सर वह शुक्राणुविहीन अथवा क्षीण कामशक्ति वाला भी होता है। वह दिखावे का शौकीन होता है। ऐसे जातक का विवाह किसी घनी परिवार में होता है
8. आठवां भाव : आठवें भाव में बुध रखने वाला जातक बहुधा कृषि पेशे वाला, अभिमानी और मानसिक रूप से संतप्त होता है, लेकिन साथ ही वह सरकार या शासन से मान्य और प्रतिष्ठित भी होता है। वह धन-संपन्न और प्रसिद्ध और लोकप्रिय होता है तथा अपने रिश्तेदारों और मित्रों की भरपूर मदद करता है।
9. नौवां भाव : जिस जातक की जन्मकुंडली में नौवें भाव में बुध बैठा हो वह भाग्यवान, विद्वान, शास्त्रों और ज्योतिष का ज्ञाता, कवि, लेखक या गायक होता है। वह सदाचारी होता है और जीवन में उच्चपद, धन-समृद्धि और यश प्राप्त करता है। जनता उसका आदर करती है। पिता के लिए वह जातक भाग्यशाली होता है।
10. दसवां भाव : जन्मकुंडली के दसवें भाव में बैठा बुध जातक को व्यवसाय • और व्यापार में सफल, संपन्न बनाता है और उच्च पद पर पहुंचा देता है। उसे यश, सम्मान और प्रसिद्धि मिलती है। वह घनी, समृद्ध और सुखी होता है। वह सत्यवादी, न्यायी और उच्चकोटि का कवि होता है।
11. ग्यारहवां भाव : जिस जातक की जन्मकुंडली में बुध ग्यारहवें स्थान पर हो, वह जातक जैसे देवी लक्ष्मी से अकूत धन-संपदा का वरदान लेकर जन्म लेता है। वह दीर्घजीवी, स्वस्थ, विद्वान, सदाचारी और प्रसिद्ध होता है। वह सेवा और कल्याण कार्य करता है । उसको धन की प्राप्ति शुरु होती है तो प्रवाह-सा बन जाता है जिसका कोई अंत नहीं होता। वह अक्षयकोष की तरह होता है।
12. बारहवां भाव : यदि जन्म समय बुध बारहवें भाव में बैठा हो तो जातक विद्वान, वेदांती, धर्मपरायण तो होता है लेकिन साथ-ही-साथ आलसी भी बहुत होता है । उसमें कभी-कभी निर्दयता की भावनाएं भी घर कर जाती हैं। उसे संपत्ति और सुख-सुविधाओं से वंचित होकर गरीबी और दुखों का जीवन बिताना पड़ सकता है।
विशोत्तरी दशा-अंतरदशा प्रभाव
यदि जन्मकुंडली में बुध मजबूत, दुष्प्रभावमुक्त और दग्धतारहित होकर बैठा हो तो उसकी दशा-अंतरदशाओं की अवधि में संबंधित जातक को अच्छे मित्रों का साथ मिलता है। विद्वान लोग उसे सम्मान देते हैं। उसे उच्चपद प्राप्त होता है । वरिष्ठ लोग उसका पक्ष लेते हैं। उसे व्यापार और व्यवसाय में लाभ होता है। उसका यश बढ़ता है और वाणी प्रवाहमयी हो जाती है। उसके घर-परिवार का वातावरण सुखपूर्ण होता है ।
इसके विपरीत यदि बुध कुंडली में कमजोर, दुष्प्रभावित और दग्ध होकर किसी प्रतिकूल भाव में बैठा हो तो उसकी दशा-अंतरदशा के आने पर जातक को आंखों, गले, टांसिल आदि के रोग होते हैं। त्वचा रोग, रक्त की कमी और मानसिक परेशानियों का भी वह इस दौरान शिकार होता है। वरिष्ठजन उससे नाखुश हो जाते हैं और मित्रों के साथ उसका झगड़ा हो जाता है। उसे मजबूरीवश सुदूर स्थानों की कष्टसाध्य यात्रा भी इस अवधि में करनी पड़ सकती है। वह किसान हो तो खेती में घाटा उठाता है और व्यापारी हो तो अनुचित कार्यों के कारण उसे नुकसान हो सकता है। उसका मामा बीमार हो जाता है अथवा उसकी मृत्यु हो जाती है।
बुध के योग
बुध तारा ग्रह होने के कारण पंच महापुरुष योग समूह के प्रमुख योग ‘भद्रयोग’ का कारक होता है। यह योग जातक को विद्वान, सर्वगुण संपन्न, अधिशासी पद पर आसीन, दीर्घायु, स्वस्थ, लोकप्रिय जननेता और कुशल वक्ता के साथ-साथ शास्त्रों का जानकार व कई भाषाओं का ज्ञाता भी बना देता है। उसकी चाल शेर की तरह गरिमापूर्ण और राजसी होती है और वह तीक्ष्ण व त्वरित बुद्धि और तीक्ष्ण नेत्रों का भी मालिक होता है।
भद्र योग : यदि बुध अपनी राशि (मिथुन या कन्या) अपनी मूल त्रिकोण राशि व उच्च की राशि (कन्या) में स्थित होकर जन्मकुंडली में लग्न भाव से क्रेंद्र स्थान में (1, 4, 7, 10) भाव में बैठा हो तो इस प्रकार बनने वाला योग भद्रं योग कहलाता है। भद्र योग यदि कन्या राशि में दसवें भाव में दुष्प्रभावों से मुक्त बुध बनाए तो जातक सर्वोच्च कार्यकारी पद तक जा पहुंचता है।
बुधादित्य योग : यह योग बुध द्वारा बनाए जाने वाले योगों में दूसरा प्रभावशाली माना जाने वाला और चर्चित योग है। आमतौर पर यह योग कुंडलियों में आसानी से मिल जाता है क्योंकि बुध सूर्य के आसपास ही रहता है। इसी कारण से ज्योतिषविद् इसे अपेक्षित महत्त्व का नहीं मानते लेकिन इसका बारीकी से विश्लेषण किया जाए तो जातक के जीवन पर कई महत्त्वपूर्ण प्रभाव डालने के लिए यह योग जिम्मेदार मिलता है। यदि कुंडली में बुध और सूर्य किसी भी भाव और किसी भी राशि में साथ-साथ बैठे हों तो यह योग बनता है। बुध और आदित्य (सूर्य) द्वारा बनाए जाने के कारण ही इस योग को ‘बुधादित्य’ योग कहा जाता है । बुधादित्य योग के विभिन्न भावों में विभिन्न फल मिलते हैं जो निम्न प्रकार हैं।
1. लग्न—जातक भाग्यशाली, संपत्तिशाली, उच्च पद पर आसीन, अच्छा गणितज्ञ अथवा योगी होता है।
2. धन भाव — जातक बुद्धिमान और सद्गुणों से युक्त होता है ।
3. शौर्य भाव-जातक कामुक होता है। इस एक अवगुण को छोड़कर शेष सभी सद्गुण उसमें होते हैं ।
4. भातृ-संपदा भाव—इस भाव में ‘बुधादित्य योग’ प्रथम श्रेणी का राजयोग बन जाता है।
5. संतान भाव—जातक दीर्घायु होता है और उसे अच्छी व संपन्न संतान होती है।
6. बैर भाव — जीवन में जातक को अच्छी हैसियत व सम्मान मिलता है।
7. दाम्पत्य भाव—भाग्यशाली और धनवान जीवनसाथी मिलता है।
8. मृत्यु भाव- -यह योग 8वें भाव में जातक को दीर्घायु, संपदा व उच्च पद देता है।
9. भाग्य व धर्मभाव—उच्च पद और संपन्नता । चौबीसवें वर्ष से भाग्योदय ।
10. रोजगार कर्म भाव — संपत्ति और उच्च पद के साथ-साथ नेतृत्व वाली हैसियत देता है।
11. लाभ भाव- -अकूत संपत्तिशाली बनाता है।
12. हानि (व्यय भाव) — यदि जातक हमेशा सोना पहने रहे तो इस भाव में बुधादित्य योग उसे संपन्नता ही देता है।
चंद्र-बुध : यह योग भी जातक को संपन्नता देने वाला और शिक्षा व ज्ञान के क्षेत्र में उपलब्धियां दिलाने वाला माना जाता है।
बुध-केतु : यदि बुध-केतु के साथ हो तो जातक कुशल जासूस, भेदिया और तंत्र आदि रहस्यात्मक विद्याओं का ज्ञाता होता है।
बुध मस्तिष्क, बुद्धि और मेधा का शाक व संचालक होता है और बौद्धिक ग्रह होने के नाते विश्लेषणात्मक बुद्धि और तर्कपूर्ण सोच प्रदान करता है। यदि बुध दुष्प्रभावित हो तो जातक का मस्तिष्क भी दुष्प्रभावित और उसकी सोच संकीर्ण व कुत्सित हो सकती है।
बुधकृत पीड़ा निवारण
यदि किसी जातक की कुंडली में बुध दुष्प्रभावित, कमजोर और अशुभ होकर बैठा हो तो उसे बल प्रदान करने के लिए ज्योतिष विज्ञान में पन्ना या उसके उपरत्नों में से किसी को अंगूठी में जड़वाकर पहनने की सलाह दी गई है ।
इसके लिए कम-से-कम 6 रत्ती सोने की अंगूठी में कम-से-कम 3 रत्ती का पन्ना, बुधवार के दिन आश्लेषा, ज्येष्ठा अथवा रेवती नक्षत्रों में से किसी में बुध के संचरण काल में पहना जाना चाहिए । पन्ना जड़ी अंगूठी को कनिष्ठिका अंगुली में धारण किया जाना चाहिए। अंगूठी धारण करने से पहले पन्ना में बुध की प्राण प्रतिष्ठा और विधिवत पूजा करा ली जानी चाहिए।
बुध के लिए मंत्र
लघु मंत्र — ॐ बुं बुधाय नमः (जप 4000)
तंत्रोक्त मंत्र — ॐ ब्रां ब्रीं श्रीं सः बुधाय नम (जप 8000)
असरकारक मंत्र — ॐ उद बुध्य स्वाग्ने प्रतिजा गृहित्व मिष्टापूर्ते स धूं सृजेथामयम् चास्मित्सघस्थे अद्युत्तरास्मिन विश्वे देवा यजमानश्च सीदत् बुधाय नमः (जप संख्या 8000)
पन्ना न मिलने पर टोड़ा वैरुज, पन्नी, मरगज अथवा पित्तमणि आदि उपरत्नों में से किसी को अंगूठी में जड़वाकर पहना जा सकता है।
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