कुंडली में शुक्र का प्रभाव

सौरमंडल के मुख्य ग्रहों में से शुक्र ही ऐसा ग्रह है जिसे सूर्य और पृथ्वी दोनों का ही पड़ौसी कहा जा सकता है। सूर्य से इसकी दूरी 6,70,00,000 मील और पृथ्वी से अधिकतम 3,43,00,000 मील और न्यूनतम 20,00,000 मील है। आकार में यह ग्रह पृथ्वी से मामूली-सा छोटा है। इसका आकार पृथ्वी की अपेक्षा 0.92 प्रतिशत तथा भार 0.82 प्रतिशत आंका गया है। इस ग्रह का व्यास 7984 मील (मतांतर से 7700 मील) आंका जाता है। इसके किसी चंद्रमा के होने का अभी तक कोई पता नहीं चला है।

शुक्र अपनी अंडाकार कक्षा में लगभग 22 मील प्रति सेकंड की गति से चलता हुआ लगभग 225 दिन (224 दिन 10 घंटे 49 मिनट 8 सेकंड) में सूर्य की एक परिक्रमा करता है। एक राशि में इसका संरचरण 24-25 दिन का औसतन होता है। वैज्ञानिकों के लिए यह ग्रह सूर्य के प्रचंड ताप से एकदम सूखा हुआ और किसी प्रकार की चुम्बकीय शक्ति से रहित रेगिस्तानी ग्रह है जबकि ज्योतिष शास्त्र में इसे जीवन में रस, लालित्य भर देने वाला जीवंत ग्रह माना गया है।

कुछ वैज्ञानिक भी ज्योतिर्विदों की शुक्र के प्रति गहरी दिलचस्पी को देखते हुए पूरे विश्वास के साथ यह कहते कि शुक्र पूरी तरह चुम्बकीय आकर्षण से विहीन है। प्रमुख अंतरिक्ष वैज्ञानिक डा. ई. जी. बोवेन का मत है कि शुक्र का सूर्य से निकट आना सौर वायु को प्रभावित कर सकता है। सौर लहरों का पृथ्वी पर महत्त्वपूर्ण प्रभाव पड़ता है, यह सभी जानते हैं । गोचर में यह ग्रह कभी भी सूर्य से अधिकतम ±48° से अधिक दूर नहीं होता ।

पुराणों में शुक्र को महर्षि भृगु का पुत्र बताया गया है जो कि एक नेत्र से विहीन है और असुरों (दैत्यों) का गुरु है। सौरमंडल में बृहस्पति की भांति शुक्र को भी मंत्री पद प्राप्त है ।

ज्योतिष में शुक्र को स्त्रीलिंग ग्रह माना गया है। यह भी ताज्जुब की बात है कि विज्ञान जिसे सूखा ग्रह बताता है, ज्योतिष विज्ञान ने उसे जलीय ग्रह माना है। उसका रंग सफेद, प्रकृति वात और कफ मानी गई है। शुक्र को आकर्षक देह का स्वामी बताया गया है।

शुक्र को जीवनसाथी, विवाह, शयनकक्ष, कविता, नृत्य, गायन, मनोरंजन यौवन-शक्ति, यौन-सुख, पुष्प माला, शृंगार, मादक गंध, कला-कौशल, जल-क्रीड़ा, सज्जा, वसंत, आभूषण, संगीत वाद्य, सौंदर्य, प्रेम-भावना, यौन उत्तेजना आदि का संचालक प्रतिनिधि ग्रह माना जाता है। इसके अतिरिक्त शुक्र सुगंधों, रसायनों, औषधियों, व्यापार, वाहन, विलासिता की वस्तुओं, सूती, ऊनी व रेशमी वस्त्रों, आदि का भी प्रतिनिधित्व, संचालन और नियंत्रण करता है ।

सैर-सपाटा, नौकरानियों आदि का संचालन व शासन भी उसी का दायित्व है। शारीरिक अंगों और अवयवों में शुक्र को यौनांगों, वीर्य, मांसपेशियों, कूल्हों, मूत्र व मूत्र प्रणाली और बालों का, रोगों में यौन रोग, यौन अक्षमता, पेशियों में हरारत, श्वेत प्रदर, सफेदा, नेत्र विकार, घ्राण शक्ति में कमी आदि का, खेलों में जल क्रीड़ाओं, मनोरंजन पार्कों की गतिविधियों, अभिनय, मंच-सज्जा आदि का कारक, नियंत्रक, शासक, संचालक और प्रतिनिधि माना गया है। वह दक्षिण पूर्व दिशा का भी प्रतिनिधित्व करता है ।

राशि व्यवस्था में शुक्र को दो राशियों वृष और तुला का स्वामित्व प्राप्त है। उसकी मूल त्रिकोण राशि तुला, उच्च की राशि मीन और नीच की राशि कन्या मानी गई है। ग्रहों मे बुध व शनि उसके मित्र, चंद्र व सूर्य उसके शत्रु माने जाते हैं। मंगल व बृहस्पति के साथ उसके संबंध सामान्य (न मित्र न शत्रु के ) होते हैं ।

विभिन्न भावों में शुक्र की स्थिति के फल

1. पहला भाव : सामान्य सुख, मान-सम्मान में वृद्धि, ऐशोआराम की वस्तुएं और संपन्नता, शुभ और सुखी विवाह, वैवाहिक सुख, मनोरंजन, अच्छी संतान का जन्म। यह सभी कुछ लग्न भाव में बैठा शुक्र जातक को प्रदान करता है। जातक सुंदर, आकर्षक, दीर्घायु, मधुरभाषी और विलासप्रिय होता है। वह काम-कलाओं में प्रवीण होता है और विपरीत लिंगियों के आकर्षण व लोकप्रियता का केंद्र बना रहता है। वह कविता, संगीत कला, नाटक और सिनेमा का शौकीन, सज्जन, गरिमापूर्ण व्यवहार वाला और मिलनसार होता है। उस जातक के दांतों की बनावट सुंदर होती है और दांत बिल्कुल साफ रहते हैं ।

2. दूसरा भाव : शुक्र यदि कुंडली के दूसरे भाव में स्थित हो तो जातक को धनवान, यशस्वी, लोकप्रिय व सुखी बनाता है। वह सुंदर, चमकीली और चंचल आंखों वाला व्यक्ति होता है जो अपनी दृष्टि में सम्मोहन शक्ति रखता है। वह मृदुभाषी, सभ्य, संयत व्यवहार वाला, काव्य प्रेमी और मिलनसार होता है। वह सज्जन और प्रतिष्ठित व्यक्तियों में ही उठता- बैठता है और उन्हीं की संगति के माध्यम से लाभ कमाता है। शुक्र की दशा या अंतरदशा के दौरान ऐसे जातक की आय, धन व संपदा बढ़ती है । उस व्यक्ति को आभूषणों व रत्नों की अच्छी परख होती है और वह जौहरी बन सकता है।

3. तीसरा भाव : यदि किसी जातक की कुंडली में तीसरे भाव में बैठा हो तो जातक अलोकप्रिय, निर्धन, यौन-सुखों से वंचित लेकिन दयालू होता है। वह दूसरों की जरूरत पड़ने पर मदद करने को हमेशा तैयार रहता है। दरअसल ऐसा व्यक्ति जिम्मेदारियों के बोझ से दबा होता है । पारिवारिक जनों का दायित्व संभालने में उसकी अपनी भावनाएं कहीं भीतर ही घुट जाती है। अक्सर देखा गया है कि यदि वह पुरुष है तो उससे ठीक बाद जन्म लेने वाली उसकी बहन होगी और यदि वह महिला है तो उसके बाद उसकी माता से जन्म लेने वाली संतान उसका छोटा भाई होता है। वह निर्धन रहता है जबकि उसके भाई-बहन संपन्न व लोकप्रिय हो जाते हैं। उसकी पत्नी या पति अक्सर बीमार रहते हैं। वैसे वह जातक निरोगी और समझदार होता है। ऐसे व्यक्ति में नाट्य प्रतिभा होती है। वह चित्रकार भी बन सकता है। उसका आलस्य उसकी सबसे बड़ी कमजोरी होती है ।

4. चौथा भाव : किसी जातक की कुंडली के चौथे भाव में स्थित शुक्र उसे सुखी, संपन्न, भोग-वृत्ति वाला लेकिन सद्गुणी, न्यायप्रिय और आस्तिक बनाता है। उसे अच्छा मकान, वाहन और ऐशोआराम का जीवन जीने के लिए सभी सुख-साधन उपलब्ध होते हैं। वह शिक्षा और ज्ञान की प्राप्ति में नई-नई उपलब्धियां हासिल करता है। वह अच्छे लोगों से अपना मेल-जोल बढ़ाता है और उनके माध्यम से लाभ, प्रसिद्धि और सम्मान प्राप्त करता है। उसके घर का वातावरण शांत और सदभावपूर्ण होता है।

अच्छी तरह सज्जित घर, अच्छा वाहन, अच्छा और आकर्षक जीवनसाथी और धन-समृद्धि उस जातक को शुक्र के वरदान स्वरूप मिलते हैं । वह अपने परिवार के साथ सैर-सपाटा करने वाला होता है और अपने दाम्पत्य साथी व बच्चों को छोड़कर कहीं दूर नहीं जाता। गांवों की अपेक्षा शहरों में ऐसे जातक की धन-संपदा तेजी से बढ़ती है। वह अपना घर स्वयं अर्जित धन से बनाता है और उसे पूर्ण सज्जित रखने का उसे शौक होता है। उसे अपनी माता का भी भरपूर प्यार मिलता है। शुक्र की दशा-अंतरदशा के दौरान उसे विशेष उपलब्धियां मिलती हैं ।

5. पांचवां भाव : शुक्र यदि लग्न के पांचवें भाव में बैठा हो तो जातक विद्वान, उदार, दानी, प्रतिभाशाली और अच्छा लाभ कमाने वाला होता है। इस भाव में शुक्र जातक को सुंदर व गुणी बेटियां भी संतान रूप में देता है। जातक को अकूत संपन्नता व समृद्धि मिलती है व उच्चाधिकारी, प्रतिष्ठित और धनी व्यक्ति होता है। उसे बुद्धिमान सलाहकार मिलते हैं और वह अच्छे कामों के द्वारा यश का भागी होता है। वह जातक चतुर, विद्वान और कवि हृदय और कई भाषाओं का ज्ञाता होता है लेकिन विज्ञान, गणित और कानून जैसे रुखे विषयों में उसकी कोई रुचि नहीं होती। वह कठिन परिश्रम में रुचि नहीं रखता। वह परीक्षाओं में उत्तीर्ण होने लायक़ नम्बर आने से ही संतुष्ट रहता है। पढ़ाई के दिनों में वह सांस्कृतिक गतिविधियों और खेल-कूद में अधिक समय लगाता है। वह पाठयक्रम में भले ही अधिक रुचि न रखे लेकिन सांसारिक बातों का अच्छा ज्ञान रखता है। वह शास्त्रों और पढ़ाई के बाहर की ज्ञान की पुस्तकों को भी चाव से पढ़ता है।

6. छठवां भाव : लग्न से छठवें भाव में बैठा शुक्र जातक को दुराचारी मूत्र प्रणाली में रोग रखने वाला, वैभवहीन और पत्नी-पति सुख विहीन बनाता है । वह शत्रु पर विजय पाता है लेकिन दुश्चरित्र स्त्री-पुरुषों से संबंध रखकर अपनी धन-संपदा गंवा बैठता है। वह दुखी होता है और अक्सर उसका जीवनसाथी बीमार होता है। जातक त्वचा रोगों, गुर्दा रोग अथवा डिम्बाशय के रोगों से पीड़ित हो सकता है । ऐसा शुक्र मधुमेह भी देता है। आमतौर पर ऐसा व्यक्ति स्वस्थ रह सकता है। जातक पेटू होता है और उसे मीठा खाना अधिक अच्छा लगता है। इसके कारण वह उदर रोगों का शिकार भी बन सकता है।

7. सातवां भाव : सुखी और स्वस्थ वैवाहिक जीवन के लिए शुक्र का लग्न से सातवें भाव में स्थित होना सर्वोत्तम माना गया है। व्यापारिक भागीदारी के लिए भी शुक्र की इस स्थिति को फायदेमंद कहा गया है। ऐसा शुक्र जातक को दाम्पत्य सुख, लोकप्रियता, उदारता, धन और सत्संगति देता है। वह शान-शौकत, विलासिता और मनोरंजन पर खुलकर खर्च करता है। वह आनंददायक यात्राएं करता है । जातक कामक्रीड़ा का लती और पत्नी/पति पर आसक्त होता है। सामान्यतः जातक धनी व संपन्न होता है ।

8. आठवां भाव : इस भाव में शुक्र स्थित हो तो जातक मनस्वी, विद्वान, गुप्तरोगी और विदेशवासी होता है । वह अनैतिक प्रवृत्तियां भी रखता है और स्त्री के माध्यम से धन कमा सकता है। उसे व्यापार में लाभ होता है और अक्सर वह समृद्ध भी होता है। उसका जीवनसाथी रोगी होता है। ऐसा शुक्र जातक की माता पर भी भारी होता है। जातक विरासत, बीमा, ईंधन, वन, काठ व्यापार, प्रसाधन वस्तुएं आदि का व्यापार भी कर सकता है। उस जातक को बिना अधिक प्रयास के कमा-कमाया धन दहेज इत्यादि मिलने की भी प्रबल संभावना होती है। यह जातक को दीर्घजीवी भी बनाता है और उसकी मृत्यु बड़ी शांति से होती है । वह तपा हुआ प्रेमी होता है और अक्सर किसी रईस घराने की युवती युवक से प्रेम विवाह करके भी धनी बन सकता है।

9. नौवां भाव : यदि कुंडली के नौवें भाव में शुक्र बैठा हो तो जातक को आस्तिक, गुणी, दयालु, प्रेमी और शासकवर्ग में प्रिय बना देता है। ऐसा शुक्र जातक को उच्च पद, व्यापक अधिकार, सम्मान, लोकप्रियता और यश प्रदान करता है। जातक की धन-समृद्धि को बढ़ाता है। उसे सभी प्रकार की सुख-सुविधाएं प्रदान करता है। जातक को वह अच्छी और गुणी संतान भी प्रदान करता है। इस भाव में बैठा शुक्र जातक को सुंदर व गुणी जीवन साथी, योग्य संतान, अच्छे मित्रों और संपन्नता से नवाजता है। जातक यात्राओं और साहसिक अभियानों का शौकीन होता है और संयुक्त परिवार से अलग रहना ही पसंद करता है।

वह कला, संगीत, अभिनय और लेखन कला में दक्ष होता है। वह परंपरावादी नहीं होता और अक्सर विजातीय प्रेम विवाह करता है। ऐसा व्यक्ति किसी संस्थान, पुलिस अथवा थल सेना आदि का उच्चाधिकारी बनने की भी क्षमता रखता है। उसका भाग्योदय 24 वें वर्ष में होता है और 33 वर्ष का होते-होते वह अपना एक मुकाम बना लेता है ।

10. दसवां भाव : लग्न से दसवें भाव में बैठा शुक्र जातक को व्यवहार कुशल, मिलनसार, विलासी, समृद्ध, न्यायप्रिय, कुछ मामलों में लोभी भी बनाता है। ऐसा जातक बुजुर्गों का दुलारा होता है और उसे उनके माध्यम से भी धन-संपदा मिलती है। वह उच्च पद, व्यापक अधिकार, अच्छा मकान, अच्छे वाहन, नौकर-चाकर आदि का स्वामी होता है। एक बार जब किसी को मित्र बना लेता है तो आजीवन संबंध निभाता है। यदि वह पहले-पहल मामूली नौकरी भी करता हो तो अपनी दशा-अंतरदशा आने पर शुक्र उसे इतना मधुर व्यवहार और कार्य-कुशलता प्रदान करता है कि उसका बॉस उसे पदोन्नति देकर अधिकारी बना देता है। जातक यदि व्यापार अथवा उद्योग के क्षेत्र में हो तो बहुत सफल रहता है और अकूत धन-संपदा का मालिक बन जाता है।

कुंडली में शुक्र का प्रभाव, kundli men shukra ka prahav

इस भाव में शुक्र जातक को लोकप्रिय, सार्वजनिक जीवन में सफलता प्रदान करता है। वह जातक सफल कूटनीतिज्ञ बन सकता है। वह अपनी मीठी बातों से हर किसी का दिल जीत लेने की क्षमता रखता है। दूसरे का सम्मान करना और अपना सम्मान कराना वह भली-भांति जानता है। जातक संगीत, गायन, अभिनय, आभूषण, शृंगार सामग्री, मनोरंजन, सट्टा बाजार आदि के जरिए धन लाभ कमा सकता है। लेकिन ऐसे जातक की शिक्षा नियमित नहीं रहती और टूट-टूट कर चलती है। वह कामक्रीड़ाप्रिय होता है और विपरीत लिंगी उसे बहुत पसंद करते हैं ।

यदि शुक्र चंद्र से दसवें भाव में हो तो जातक को पत्नी-पति, माता, बहन आदि के माध्यम से धन मिलता है। शुक्र शुभ बली व दुष्प्रभावमुक्त हो तो जातक बिना अधिक प्रयासों के धन व समृद्धि प्राप्त कर लेता है लेकिन यदि यहां शुक्र कमजोर हो तो जातक अनैतिक मार्गों से महिलाओं के जरिए धन कमाता है।

11. ग्यारहवां भाव : इस भाव में बैठा शुक्र जातक को विलासी, लोकप्रिय, परोपकारी और जौहरी बनाता है। वह समृद्ध होता है। वह सुख-सुविधाओं से युक्त और आरामदेह जीवन गुजारता है। वह दूर-दूर की यात्राएं करता है। उस जातक का यश और प्रभाव उसके जीवनकाल के बाद भी पीढ़ियों तक बना रहता है। वह विद्वान और कई भाषाओं का ज्ञाता होता है। विवाह के बाद उसे सामाजिक सफलता और समृद्धि मिलती है। विपरीत लिंगियों का वह रसिया होता है। वह अपने व्यवहार और प्रभाव से दूसरों को आसानी से अपना मित्र बना लेता है। ऊंचे लोगों, शासक वर्ग में उसकी उठ-बैठ होती है। वह भू-स्वामी और किसान हो तो कृषि के माध्यम से समृद्धि प्राप्त कर लेता है। वह सुंदर मकान, वाहनों आदि का उपभोग करता है। जातक कविता, नाटक, कला, संगीत आदि के माध्यम से नाम और लाभ कमाता है। उसके मित्रों में विपरीत लिंगियों की बड़ी संख्या होती है।

12. बारहवां भाव : यदि किसी जातक की कुंडली में शुक्र बारहवें भाव में स्थित हो तो वह जातक को अत्यधिक कामुक बना देता है। वह जातक मौज-मजे के पीछे अंधा होकर भागता है। इस भाव में बैठा शुक्र गुप्त प्रेम-संबंधों का संकेतक होता है। जातक बुजुर्गों की नाराजगी लेता है और घर परिवार से अलग होकर भटकता है। इस भाव में शुक्र धन, वैभव प्रदान करता है लेकिन काम-सुखों की ललक इसे नष्ट कर सकती है। जातक का स्वास्थ्य भी ऐसा शुक्र दुष्प्रभावित कर सकता है। जातक ललित कलाओं, चित्रकारी आदि में रुचि रखने वाला तथा गुप्त विद्याओं को जानने के लिए उत्सुक होता है।

शुक्र शुभ, बली व दुष्प्रभावमुक्त हो

यदि कुंडली में शुक्र क्रूर या अशुभ ग्रहों की संगति अथवा दृष्टि से दुष्प्रभावित न होकर तथा बली होकर बैठा हो तो जातक को विद्वान, दीर्घजीवी, स्वस्थ, सुंदर और कलात्मक रुझान वाला बनाता है (प्रथम भाव ) । जातक को चमकीली आंखें, मोहक वाणी, सम्मोहित करने वाली दृष्टि, काव्य प्रतिभा और धन-समृद्धि मिलती है। (दूसरा भाव)। जातक नाटकीय प्रतिभा वाला होता है और उसे एक बहन भी कम-से-कम प्राप्त होती है (तीसरा भाव) । कुंडली में बली होकर बैठा शुक्र घरेलू सुख, अच्छे कपड़े और अच्छे वाहन देता है। जातक घर-परिवार से गहरा लगाव रखता है (चौथा भाव)। जातक अकूत संपदा और अच्छी संतान का मालिक, कई भाषाओं का ज्ञाता, कवि, कला-प्रेमी होता है। जातक अपने जीवन साथी से गहरा लगाव रखता है और उसके प्रति वफादार रहता है (पांचवां भाव ) । जातक प्रसव समस्याओं, मातृत्व, नर्सिंग, पालतू जानवरों के रख-रखाव तथा मुर्गी पालन आदि के व्यवसायों में सफल होता है। मामा-मामी से उसे धन-संपत्ति मिल सकती है और वह शत्रुओं पर विजय प्राप्त करता है (छठवां भाव)। जातक का विवाह सुखपूर्वक होता है और विवाहित जीवन सुखों से भरपूर रहता है। वह यात्राएं भी खूब करता है (सातवां भाव ) । जातक की आय व व्यापार बढ़ाता है और उसे विरासत, बीमें या दहेज आदि में धन प्राप्त होता है (आठवां भाव ) ।

शुभ शुक्र अष्टम में हो तो जातक को दीर्घजीवी, अधिवक्ता या चिकित्सक भी बनाता है। नवम भाव में शुभ हों तो अच्छी पत्नी, मित्र, संतान व संपन्नता देता है और दशम में हो तो राजयोग कारक होता है । ग्याहरवें भाव में यह व्यापार व लोकप्रियता देता है. और 12वें भाव में जातक के लिए सुख-सुविधाओं के सभी सामान, वाहन आदि का स्वामी जातक को बनाता है और विदेश यात्राएं देता है।

शुक्र निर्बल व दुष्प्रभावित हो

शुक्र दुष्प्रभावित व निर्बल होकर कुंडली के किसी भाव में बैठा हो, उस भाव के कार्यों को नुकसान ही पहुंचता है। लग्न में ऐसा शुक्र हो तो जातक को उसकी काम भावनाओं का दास और निरंकुश बना देता है और वह भौतिक सुखों का दास होता है। तीसरे भाव में हो तो जातक को आवारागर्द व लम्पट बना देता है। चौथे भाव में दुष्प्रभावित शुक्र जातक को आलसी, गप्पी और अपनी भावनाओं पर नियंत्रण न रखने वाला बनाता है। पांचवें भाव में दुष्प्रभावित होकर बैठा शुक्र दाम्पत्य सुखों पर विपरीत प्रभाव डालने वाला होता है ।

छठवें भाव में दुष्प्रभावित शुक्र जातक को नशे का लती और दुश्चरित्र बनाता है। सातवें भाव में वह वैवाहिक सुखों को नष्ट कर देता है। यह जातक को एक से अधिक पलियां भी देता है। उसकी पहली पत्नी या तो मर जाती है या बीमार रहती है और वह अन्य औरतों का रसिया हो जाता है। आठवें भाव में दुष्प्रभावित शुक्र – निर्दयता और ईर्ष्या देता है। जातक के विपरीत लिंगियों से संबंध दुखद रहते हैं और नौबत अलगाव और तलाक तक पहुंच जाती है। नौवें भाव में दुष्प्रभावित और निर्बल शुक्र जातक का संबंध दुश्चरित्र व्यक्तियों से कराते हैं। जातक निराशावादी भी हो जाता है। दसवें भाव में ऐसा शुक्र जातक को अनैतिक व्यापार के जरिए धन कमाने की प्रवृत्ति देता है। ग्यारहवें भाव में वह जातक को चरित्रहीन बनाता है और उसका संसर्ग निम्न श्रेणी के व्यक्तियों, नौकर-नौकरानियों से होता है। बारहवें भाव में दुष्प्रभावित और कमजोर शुक्र जातक को आवारागर्द, अवांछित, असम्मानित और बेशर्म बना देता है। उसे लोग नापसंद करते हैं।

विभिन्न राशियों में शुक्र

शुक्र की स्थिति अपनी राशियों वृष और तुला तथा उच्च की राशि मीन में हो तो अत्यंत शुभ फलकारक मानी गई है। ये शुभ फल उस भाव के मामलों में होते हैं जिनमें किसी व्यक्तिगत कुंडली में वह राशि स्थित होती है। शुक्र, मेष, कर्क, कन्या, वृश्चिक और धनु राशियों में स्थित हो तो अपनी भाव स्थिति के अनुसार ही बुरे फल देता है। मेष, कर्क, वृश्चिक और मकर में इसकी स्थिति अशुभ फल देने वाली कही गई है। शेष राशियों में यह मिश्रित फल देता है। विभिन्न फल राशियों में शुक्र की स्थिति के परिणाम निम्न प्रकार हैं

1. मेष – पेशेवर औरतों चरित्रहीन पुरुषों से संबंध और झगड़ें।

2. वृष– कई विपरीत लिंगियों से मैत्री संबंध, लोकप्रियता, लाभ और यश ।

3. मिथुन — अत्यधिक कामुक प्रवृत्ति ।

4. कर्क—शराब और सैक्स की अधिकता से बीमारी, दो विवाह ।

5. सिंह — मजबूत शरीर सदैव विपरीत लिंगियों को आकर्षित करते रहने और प्रसन्न रखने की चेष्टा ।

6. कन्या — निम्न श्रेणी के व्यक्तियों (स्त्री-पुरुषों) से संसर्ग की लत, मधुर वाणी ।

7. तुला – राजयोग, धन व समृद्धि योगकारक सुखी व्यक्ति

8. वृश्चिक– जीवनसाथी के अलावा प्रेमिका-प्रेमी संबंध, झगड़े में संपत्ति का नुक्सान। मक्कार व्यक्तियों से विवाद ।

9. धनु- मजबूत शरीर, जबर्दस्त काम-शक्ति ।

10. मकर–वृद्ध और धूर्त (स्त्री-पुरुष) से संबंध और पूर्ण आसक्ति ।

11. कुंभ-दूसरे के जीवन साथी (स्त्री-पुरुष) से संबंध |

12. मीन—कला प्रतिभा, कौशल, दाम्पत्य, सुख-प्रसन्नता, संपन्नता, वैभव और अच्छा स्वास्थ्य |

महिला जातकों पर शुक्र का प्रभाव

शुक्र पुरुषों में और मंगल स्त्रियों में यौन जीवन का कारक, संचालक और शासक ग्रह होता है। शुक्र की विभिन्न भावों, विभिन्न राशियों में स्थिति पुरुष जातकों पर तो जबर्दस्त प्रभाव डालती ही है, महिलाओं के जीवन पर इसके क्या-क्या प्रभाव हो सकते हैं, यह संक्षिप्त विवरण निम्न प्रकार है :

1. पहला भाव : किसी महिला की कुंडली के लग्न भाव में स्थित शुक्र पर यदि सूर्य, मंगल, यूरेनस, राहु आदि अशुभ ग्रहों का प्रभाव हो तो वह अभिभावकों की रातों की नींद उड़ा सकती है। वह गुप्त विवाह कर सकती है और अपने प्रेमी के साथ घर से भाग भी सकती है। यदि बुध, चंद्र आदि शुभ ग्रहों का संगति या दृष्टि प्रभाव लग्न में स्थित शुक्र पर हो तो वह महिला चंचल वृत्ति की तो होती है लेकिन समझदार भी होती है। वह कला-कुशल, विद्वान, व्यवहारकुशल और अत्यंत मधुर वाणी वाली होती है। वह अभिनय अथवा गायन के क्षेत्र में उतरे तो पर्याप्त यश और धन कमा सकती है। लेखन कार्य में भी वह पर्याप्त यश और प्रसिद्धि ले सकती है। महिला का व्यक्तित्व सम्मोहक और गरिमामय होता है।

2. दूसरा भाव : इस भाव में शुक्र अकेला हो तो मधुर वाणी, चमकदार आंखें और काव्य लेखन प्रतिभा देता है। शुभ ग्रहों में शुक्र का संबंध महिला में इन गुणों को बढ़ाता है। सूर्य-शुक्र दूसरे भाव में हो तो महिला नेत्र-विकार से पीड़ित

होती है। अन्य अशुभ ग्रहों के साथ शुक्र का संगति अथवा दृष्टि संबंध उसे वाणी, नेत्र आदि के विकार दे सकता है।

3. तीसरा भाव : किसी महिला की कुंडली में इस भाव में शुक्र का शुभ ग्रहों से दृष्टि या संगतिकारक संबंध उसे उद्यमी चतुर, प्रकृति प्रेमी, सैर-सपाटे की शौकीन बना देता है । वह पत्रकारिता, लेखन और प्रकाशन के क्षेत्र में चमक सकती है। अशुभ ग्रहों के साथ शुक्र का संबंध महिला को दुस्साहसी और झगड़ालू बना सकता है।

4. चौथा भाव : शुक्र अकेला या शुभ ग्रहों से संबंधित होकर इस भाव में बैठा हो तो महिला का विवाह समृद्ध और संपन्न परिवार में कराता है। वह पर्याप्त सुख भोगती है वह गृहकार्य में दक्ष होती है। लेकिन अशुभ ग्रहों से संबंधित शुक्र महिला को बदकिस्मत और ईर्ष्यालू बना सकता है ।

5. पांचवां भाव : शुक्र इस भाव में शुभ ग्रहों से संबंधित हो तो महिला जातक विद्वान, स्पष्टवादी, स्वस्थ व अच्छी संतानों को जन्म देने वाली लेकिन मनोरंजन को अधिक तरजीह देने वाली होती है। वह महिला खेल-तमाशे, नाटक, मेले और सिनेमा की शौकीन होती है। वह चित्रकारी, कविता, गायन, ललित कलाओं में दक्ष और चतुर होती है ।

6. छठवें और आठवें भावों में किसी महिला की कुंडली में शुक्र की स्थिति – किसी भी हालत में शुभ नहीं मानी जाती। नौ, दस व ग्यारहवें भावों में शुक्र की स्थिति के परिणाम पुरुषों के समान ही होते हैं

7. सातवें भाव : शुक्र सातवें भाव में होने पर महिला को धनी व संपन्न पति मिलता है लेकिन वह महिला 18 से 36 वर्ष की आयु तक ही पूर्ण सुख शक्र के कारण भोग पाती है। इसके बाद का उसका जीवन अन्य ग्रहों और राशियों की कुंडली में स्थिति पर निर्भर करता है। इस भाव में यदि महिला का शुक्र मीन राशि का हो तो सर्वश्रेष्ठ माना जाता है ।

बारहवां भाव : यदि किसी महिला की कुंडली में शुक्र 12वें भाव में बैठा हो तो उसकी शादी जल्दी कर देना ही ठीक रहता है। यदि इस भाव में बैठा शुक्र शुभ ग्रहों के प्रभाव में हो तो महिला सुंदर और अपने पति की जरुरतों का पूरा-पूरा ध्यान रखने वाली होती है। यदि शुक्र पर मंगल, यूरेनस, शनि आदि अशुभ ग्रहों का संगति या दृष्टि प्रभाव हो तो वह महिला गुप्त प्रेम-संबंध बना सकती है। ऐसे संबंधों की परिणिति गर्भधारण में हो सकती है। बारहवें भाव में स्थित शुक्र के साथ चंद्र, सूर्य, बुध, मंगल आदि का किसी प्रकार का संपर्क कर्ज और गुप्त शत्रुओं का संकेत देता है।

शुक्र के गोचर प्रभाव

विभिन्न ग्रहों पर से शुक्र का गोचर अत्यधिक प्रभावकारी परिणाम गोचर अवधि के दौरान दर्शाता है, अतः इसको अनदेखा करके कोई तत्कालिक भविष्य वाणी नहीं की जा सकती। विभिन्न ग्रहों के साथ शुक्र की गोचर संगति के परिणाम निम्न निकलते हैं।

शुक्र-सूर्य गोचर संगति महीने में पांच दिन की होती है। यह दिन जातक के जीवन में सौभाग्यशाली घटनाएं लाते हैं। इस दौरान उसकी मेल-मुलाकात ऊंचे लोगों से होती है । शुक्र-चंद्र गोचर संगति प्रत्येक महीने दो दिन के लिए होती है । ये दो दिन जातक को आलसी, सुख-भोग की प्रवृत्ति का दास बनाता है। यदि जन्मकुंडली में मंगल लग्न चंद्र से 3, 9, 12 वें भावों में मेष, सिंह, वृश्चिक, धनु या मकर राशि में हो तो यह संगति अच्छी रहती है। इस दौरान जातक की आय बढ़ने की प्रबल संभावना होती है। शुक्र का बुध के साथ गोचर संग जातक को यात्राएं कराता है। रिशतेदारों से भेंट कराता है। व्यापार में सफलता और लेखन क्षमता देता है।

गोचर भ्रमण के दौरान शुक्र-बृहस्पति का संग जातक को घरेलू सुख देता है और किसी सामाजिक राजनीतिक नेता से उसका परिचय-भेंट कराता है । गोचर का शुक्र उस भाव के स्वामी ग्रह के समान ही फल देता है जब जन्मकुंडली में शुक्र अच्छे भाव में मजबूत होकर बैठा हो । यदि इस गोचर के समय शनि प्रबल हो तो एक सप्तान तक रोजगार के मामले में, भौतिक संपन्नता के मामले में तथा सामान्य सुखों और दाम्पत्य सुखों के मामले में अनुकूल परिणाम दर्शाता है।

शुक्र और संतान

शुक्र एक स्त्री ग्रह है अतः वह पुरुषोचित गुणों की अपेक्षा स्त्रियोचित गुण अधिक दर्शाता है। यदि शुक्र संतति भाव (पांचवां भाव) में स्थित हो तो संबंधित जातक को अधिक पुत्रियां देता है। पांचवे भाव पर शुक्र की दृष्टि के भी यही परिणाम कमोबेश निकलते हैं लेकिन किसी निश्चित परिणाम पर पहुंचने के लिए कुंडली में अन्य ग्रहों और राशियों की स्थिति का भी विश्लेषण कर लिया जाना चाहिए।

शुक्र के अन्य ग्रहों से संबंध

भारतीय सनातन ज्योतिष के अनुसार शुक्र व कुंडली के सातवें भाव और प्राकृतिक कुंडली की सातवीं भाव राशि तुला को मुख्यतः विवाह संबंधों का ही प्रतिनिधि माना जाता है। सातवां भाव खुले शत्रुओं और व्यापार साझेदारों का भी प्रतिनिधित्व करने वाला ग्रह होता है । स्त्री ग्रह होने के नाते यह पुरुषों में विवाह संबंधों का प्रतिनिधित्व और संचालन करता है। मंगल को तथा उसकी राशि वृश्चिक को स्त्री जातकों के जीवन में विवाह संबंधों का प्रतिनिधि माना जाता है। मंगल शक्ति का शासक तथा शुक्र सौंदर्य का शासक माना गया है। इस प्रकार मंगल-शुक्र संबंध मानव जातकों में विवाह संबंधों के संकेतन और प्रतिनिधि माने गए हैं। अन्य ग्रहों की भूमिका इस विषय में गौण मानी गई है।

मंगल-शुक्र संबंध यौन-सुखों को मापने का पैमाना माने गए हैं अतः यहां उन पर भी विचार आवश्यक है। यदि शुक्र सप्तम भाव के स्वामी ग्रह के साथ बैठा हो तो जातक अत्यधिक रोमांसप्रिय होता है। सातवें भाव का स्वामी यदि शुक्र ही हो और वह अपनी नीच की राशि में अथवा सूर्य की समीपता से दग्ध होकर अथवा अशुभ ग्रहों की संगति या दृष्टि से दुष्प्रभावित होकर कुंडली में बैठा हो तो जातक (पुरुष) को हृदयहीन, अमर्यादित और ठग प्रवृत्ति की पत्नी देता है। लेकिन यदि वह सातवें भाव का स्वामी होकर शुभ नवांश में या मित्र ग्रह के नवांश में या उच्च नवांश में बैठा हो, शुभ ग्रहों का उस पर प्रभाव हो अथवा वह अपनी ही राशि में बैठा हो तो जातक की पत्नी गुणवंती, सहृदय और बतरसिया होती है ।

शुक्र का प्रभाव अन्य ग्रहों के साथ उसके संगति या दृष्टि संबंधों के अनुसार ही बदलता रहता है। उदाहरण के लिए (i) यदि शुक्र और बृहस्पति एक साथ हों अथवा शुक्र पर बृहस्पति की दृष्टि हो तो जातक (पुरुष) को पत्नी सुंदर और गुणवती मिलती है (ii) यदि शुक्र के साथ कोई अशुभ ग्रह हो या अशुभ ग्रह उस पर दृष्टि रखता हो तो जातक की पत्नी न तो सुंदर होगी न गुणवती। सूर्य, चंद्र, मंगल आदि के साथ शुक्र के संबंध भी इसी प्रकार के उतार-चढ़ाव वाले परिणाम दर्शाते हैं।

शुक्र-शनि का अच्छा योग जातक को ईमानदार, पक्के इरादे वाला और आत्म-विश्वासी बनाता है। वह जातक अपने बलबूते पर तरक्की करता है और कठिन परिश्रम से कमाई पूंजी जोड़कर धनवान बन जाता है। किसी पुरुष जातक की कुंडली में यह योग एक अच्छी, परिश्रमी, चतुर, बुद्धिमान पत्नी देता है और उसके विवाहित जीवन को आनंद से भरपूर बना देता है।

किसी स्त्री जातक की कुंडली में भी यह योग हो तो उसे भाग्यशाली बना देता है। दूसरी ओर यदि यह योग अशुभकारक स्थितियों में हो (अन्य अशुभ ग्रहों द्वारा दुष्प्रभावित हो, शनि अथवा शुक्र में से कोई वक्री हो अथवा अपनी अस्त (नीच) राशि में बैठा हो तो) जातक को व्यापार, नौकरी में बदनामी दे देता है । उस जातक का कोई नैतिक सिद्धांत नहीं होता ।

शुक्र-नेपच्यून योग जातक की दिलचस्पी ललित कलाओं, काव्य, वाद्य संगीत और धन कमाने में जगाता है। योग अशुभकारक हो तो जातक को प्रेम में असफल, नशेबाज, सनकी और उन्मादी बनाता है।

शुक्र-राहु योग यदि कुंडली के 3, 6, 7, 8, 12वें भावों में हो तो अशुभ प्रभाव देता है। अन्य भावों में यह योग अच्छा रहता है और जातक को सुंदर, आकर्षक, गठीली देह वाली पत्नी देता है। ऐसा जातक अत्यधिक कामुक होता है और विवाह के बाद भी बाहर भी गुप्त यौन-संबंध बनाता है।

मालव्य योग : शुक्र यदि अपनी राशि या अपनी उच्च राशि का होकर केंद्र में (लग्न-चंद्र लग्न से) बैठा हो तो पंच महापुरुष योगों में से एक मालव्य योग देता है। इस योग वाला जातक (पुरुष) साक्षात् कामदेव का अवतार होता है और स्त्री (इसी स्थिति में मंगल उसकी कुंडली में हो तो) रति का अवतार होती है। वह जातक विपरीत लिंगियों के आकर्षण का केंद्र आजीवन बना रहता है और हर प्रकार से सुखी व समृद्ध जीवन गुजारता है, लेकिन विवाह संबंधों के निर्वहन के लिए यह योग ठीक नहीं माना जाता ।

शुक्र को विंशोत्तरी दशा प्रणाली में 20 वर्ष का महादशा काल प्राप्त होता है। अन्य ग्रहों की भांति यह भी अपनी महादशा-अंतरदशा की अवधि में विशेष प्रभाव व्यक्तिगत कुंडली में अपनी स्थिति और बल के अनुसार ही दर्शाता है ।

शुक्र और नक्षत्र

कुल 27 नक्षत्रों में से शुक्र को तीन नक्षत्रों, भरणी, पूर्वाषाढ़ और पूर्व फाल्गुनी का स्वामित्व प्राप्त होता है। यह आश्लेषा, ज्येष्ठा, रेवती, कृतिका, स्वाति तथा आर्द्रा नक्षत्रों के उदयकाल में शुभ फल तथा भरणी, पूर्वाषाढ़, पूर्व फाल्गुनी, मृगशिरा, चित्रा व धनिष्ठा नक्षत्रों में अशुभ फल देता है।

रत्न धारण : यदि कुंडली में शुक्र कमजोर, दुष्प्रभावित, अस्त अथवा दग्ध होकर स्थित हो तो जातक को पीड़ा देता है। इस पीड़ा के निवारण के लिए ज्योतिर्विद शुक्र के रत्न ‘हीरे’ को सोने की अंगूठी में जड़वाकर पहनने की सलाह देते हैं। हीरा वजन में कम-से-कम 1 रत्ती का तथा सोना 7 रत्ती वजन का शुभ और उपयुक्त माना जाता है।

इस अंगूठी को शुक्रवार के दिन पुष्य नक्षत्र में हीरे में शुक्र की प्राण-प्रतिष्ठा कराकर तर्जनी अंगुली में धारण करना चाहिए।

शुक्र के लिए उपरल : जो जातक हीरे की अंगूठी धारण करने में असमर्थ हो, वे कासला, दतला, कुरंज या तुरमूली धारण कर सकते हैं। ये उपरत्न हीरे जितने प्रभावशाली तो नहीं होते लेकिन काम चला सकते हैं ।

शुक्र के अशुभ प्रभावों का निराकरण करने के लिए मंत्रोच्चार का उपाय भी प्रभावशाली रहता है। मंत्रोच्चार विधिपूर्वक पूजा के रूप में जातक द्वारा स्वयं किया जाए तो कारगर रहता है। निम्नलिखित मंत्रों का जप करना आसान और ठीक रहता है।

लघु मंत्र:    ॐ शुं शुक्राय नमः   (जप संख्या 16,000)

तंत्रोक्त मंत्र :   ॐ द्रां ट्रीं द्रौं सः शुक्राय नमः  (जप संख्या 16,000)


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