मिथुन लग्न की कुंडली का फलादेश
मिथुन राशि, राशि-समूह में पहली युग्म राशि है, जिसका आकार स्त्री-पुरुष सम्बन्धों के लेकर है । काल पुरुष शरीर में इसका स्थान स्तनमध्य है । मिथुनाकृति में स्त्री-पुरुष का जोड़ा होता है, जिसमें स्त्री के हाथ में वीणा तथा पुरुष के हाथ में गदा धारण की हुई प्रतीत होती है।
मिथुन का स्थान जुआ, रति-स्थान एवं विहार भूमि है। यह सम संज्ञक, पुरुष प्रधान, पश्चिम दिशा की स्वामिनी, क्रूर स्वभाव तथा द्विस्वभाव संज्ञक है। यह शीर्षोदय तथा रात्रिबली है।
यह मुख्यतः जलाश्रयी राशि है, लग्न में जली तथा जीव संज्ञक, वैश्यवर्ण, मध्यान्हान्ध तथा हरे रंग की अधिपति है । इसका स्वामी बुध है जो कि सौम्य ग्रह कहलाता है ।
मिथुन लग्न की कुंड्ली के फलित बिन्दु
सूर्य – अकारक, क्योंकि त्रिषडाय राशियों में से एक राशि का अधिपति होगा ।
चन्द्र – धनेश पर साथ ही साथ सामान्य मारकेश भी ।
मंगल – अत्यन्त पापी तथा अकारक, क्योंकि यह दो त्रिषडाय छठे तथा ग्यारहवें भाव का अधिपति होगा ।
बुध – लग्नेश-चतुर्थेश । दो केन्द्रों का मालिक होने से तटस्थ, पर लग्नेश होने से कारक भी ।
गुरु – दो केन्द्रों का मालिक होने से अकारक । मारकेश, सप्त- मेश, राज्येश ।
शुक्र – कारक ग्रह, क्योंकि त्रिकोणेश है पर साथ हो व्यवेश भी है पर शुक्र को व्ययेश दोष नहीं लगेगा ।
शनि – पूर्णतः अकारक, अष्टमेश, भाग्येश ।
(1) मिथुन लग्न हो तथा तीसरे भाव में सूर्य-बुध का संयोग हो तो ऐसा बुध अत्यन्त शक्तिशाली एवं योगकारक माना जाएगा तथा अपनी दशा में (बुध की दशा में) श्रेष्ठतम धन का लाभ कराने में समर्थ होगा ।
(2) चन्द्र-मंगल एवं शुक्र यदि तीनों ही ग्रह दूसरे भाव में हों तो व्यक्ति अतुल धनी होगा तथा उसे आकस्मिक द्रव्य लाभ भी होगा, क्योंकि इस प्रकार धन स्थान में धनेश आयेश तथा भोग का कारक ग्रह शुक्र ये तीनों ही साथ में होंगे ।
(3) अष्टम भावस्थ शनि लम्बी उम्र देने में समर्थ होगा ।
(4) दूसरे भाव में मंगल तथा अष्टम भाव में शनि-चंद्र हों तो शनि की दशा सामान्य ढंग से व्यतीत होगी पर मंगल की दशा आर्थिक दृष्टि से श्रेष्ठतम रहेगी ।
(5) यदि अष्टम में चन्द्र हो तथा दूसरे भाव में मंगल-शनि हो तो वह व्यक्ति लखपति भी हो तो भी शनि की दशा में कंगाल हो जाता है, क्योंकि इसमें धनेश मृत्युग्रह से एवं अष्टमेश धन भाव के अकारक ग्रह मंगल से सम्बन्ध स्थापित करेगा ।
(6) शनि नवम भाव में हो तथा सूर्य एवं बुध ग्यारहवें भाव में हों तो व्यक्ति श्रेष्ठतम प्रसिद्धि प्राप्त करता है तथा विश्वविख्यात कीर्तिवान् होता है ।
(7) शनि नवम भाव में हो तथा चन्द्रमा एवं मंगल ग्यारहवें भाव में हों तो वह व्यक्ति कंगाल के घर में जन्म लेकर भी लखपति बनता है ।
(8) छठे भाव में सूर्य-चन्द्र-बुध की युति हो या ये तीनों ही ग्रह छठे भाव में हों तो व्यक्ति कपटी तथा असत्यवादी होता है।
(9) गुरु-शनि का सम्बन्ध नवम भाव में हो तो व्यक्ति कई बार तीर्थ यात्राएं करता है ।
(10) पंचम भाव में शुक्र तथा चन्द्रमा एक साथ बैठे हों तो व्यक्ति निश्चय ही परस्त्रीगामी होता है ।
(11) अकेला बुध यदि ग्यारहवें भाव में हो तो उस व्यक्ति के बारे में भ्रम बना रहता है।
(12) शुक्र अकेला बारहवें भाव में हो तथा सूर्य से आगे हो (अर्थात् सूर्य नवम, दशम या एकादश भाव में हो) तो व्यक्ति कई बार विदेश यात्राएँ करता है तथा अतुल सम्पदा का स्वाभी होता है।
(13) तीसरे भाव में गुरु पापी या अकारक ग्रह के साथ बैठा हो तो व्यक्ति दाम्पत्य जीवन में दुःख भोगता है एवं उसे मानसिक अमन्तोष बना रहता है ।
(14) मंगल पापी ग्रह है अतः यदि मंगल केन्द्र में बैठा हो तो अपनी दशा-अन्तर्दशा में शुभ फल ही प्रदान करेगा।
(15) मंगल जहाँ भी बैठेगा, उस भाव की हानि ही करेगा, उदाहरणार्थ, मंगल चौथे भाव में होगा तो हृदय रोग एवं मातृ-सुख में न्यूनता देगा, तीसरे भाव मे बैठेगा तो भाइयों का अत्यल्प सुख होगा, आदि-आदि।
(16) नवम भाव में राहु व्यक्ति को प्रखर बुद्धिमान एवं साहसी बनाएगा ।
(17) मिथुन लग्न में शनि राजयोग भंग करने वाला है, यदि शनि की दृष्टि भी दशम भाव पर हो तो उसे राजकीय सेवा से कोई लाभ नहीं रहता ।
(18) मिथुन लग्न में शनि यदि नवम भाव में न होकर और कहीं भी बैठा हो तो भाग्योन्नति में विलम्ब एवं व्यवधान उपस्थित करता है ।
(19) सूर्य पंचम भाव में हो तो व्यक्ति हड्डियों के रोग से पीड़ित रहता है तथा जीवन में कई बार चोट इत्यादि लगती है ।
(20) चन्द्रमा छठे भाव में हो तो बराबर अनिश्चित स्थिति तथा मानसिक परेशानी बनाए रखता है ।
(21) गुरु नवम भाव में हो तो व्यक्ति शैक्षणिक क्षेत्र में उच्च पदासीन होता है । इसका कारण यह है कि ऐसा गुरु केन्द्रेश होकर त्रिकोणस्थ होने के कारक होगा, पंचम तथा लग्न पर समान दृष्टि डालेगा तथा गुरु होने से शिक्षा विभाग या शैक्षणिक क्षेत्र में उच्चपदस्थ कराने में सहायक होगा ।
(22) लग्न में अकेला केतु हो तथा सूर्य चौथे, सातवें या दशम भाव में हो तो व्यक्ति प्रखर व्यक्तित्व सम्पन्न एवं विरोधियों में भी धाक जमाने वाला होता है।’
(23) मंगल की दृष्टि यदि लग्न तथा चन्द्र पर हो तो व्यक्ति हिंसक स्वभाव सम्पन्न बन जाता है तथा मिलिटरी, पुलिस आदि विभागों में शीघ्र उन्नति करने में समर्थ होता है ।
(24) बुध पर यदि मंगल की दृष्टि पड़े तो अत्यधिक खर्चीला, व्यसनी एवं लम्पट होता है, क्योंकि बुध-मंगल नैसर्गिक शत्रु हैं, फिर बुध लग्न स्थान का अधिपति भी है ।
(25) बुध पर शनि-राहु की दृष्टि हो तो त्वचा रोग होता है। तथा रक्त विकार बना रहता है ।
(26) शुक्र, चन्द्र एवं बुधइन तीनों ही ग्रहों पर मंगल की दृष्टि या युति हो तो व्यक्ति वृद्धावस्था में पागल हो जाता है अथवा उसका मस्तिष्क विकृत हो जाता है ।
(27) शुक्र पांचवे, छठे या बारहवें हो तो व्यक्ति ज्योतिष आदि Occult विद्याओं में गहरी रुचि लेता है ।
(28) गुरु-मंगल कहीं भी एक साथ बैठे हों तथा इन पर किसी भी शुभ ग्रह की दृष्टि न हो तो व्यक्ति का गृहस्थ जीवन एवं दाम्पत्य जीवन दुःखमय ही कहा जाएगा, क्योंकि मिथुन लग्न में गुरु सप्तमेश होगा, जबकि मंगल अकारक एवं अग्नि तत्व प्रधान ग्रह इन दोनों की युक्ति पारिवारिक सम्बन्ध-विच्छेद करा दे तो आश्चर्यं क्या ?
(29) दूसरे भाव में सूर्य-चन्द्र हों तथा उन पर मंगल की दृष्टि या प्रभाव हो तो दृष्टि नाश योग होता है ।
(30) अकेला मंगल यदि दूसरे भाव में हो तो व्यक्ति किसी की गोद जाता है ।
(31) बारहवां चन्द्र इसमें शुभफलदाता ही बना रहेगा ।
(32) सूर्य का सम्बन्ध चन्द्र तथा बुध दोनों से हो तो व्यक्ति साहित्य-लेखन में रुचि रखने वाला होगा। यदि अकेला सूर्य या सूर्य- बुध दशम भाव या एकादश भाव में स्थित हों तो व्यक्ति उच्च महत्त्वाकांक्षी एवं श्रेष्ठतम लोगों से सम्पर्क रखने वाला होगा ।
(33) दशम भाव में गुरु-शुक्र के साथ हो तो व्यक्ति गजेटेड अधिकारी, यश, राज्य, धन आदि में श्रेष्ठ होता है ।
(34) बुध एकादश भाव में तथा मंगल अष्टम भाव में हो तो व्यक्ति लुटेरा बनता है ।
मिथुन लग्न कुंड्ली दशाफल
सूर्य महादशा
सूर्य अन्तर – भाई से विरोध ।
चन्द्र – व्ययाधिक्य, चोट ।
मंगल – श्रेष्ठ धनलाभ |
राहु – सामान्यतः अनिष्टकर ।
गुरु – तकलीफदायक, तबादला ।
शनि – पूर्वार्द्ध में अवनति, उत्तरार्द्ध में उन्नति ।
बुध – श्रेष्ठ धनलाभ ।
केतु – सामान्य
शुक्र – मांगलिक कार्य, विवाह, शुभ ।
चन्द्र महादशा
चन्द्र अन्तर – धनलाभ, एक्सीडेंट ।
मंगल – शुभ, उन्नति ।
राहु – हानि, व्ययाधिक्य
गुरु – कष्टदायक |
शनि – एक्सीडेंट, मृत्युसम कष्ट ।
बुध – उन्नति, प्रोमोशन, धनलाभ ।
केतु – अनुकूल ।
शुक्र – लाभ, हर्षदायक समाचार ।
सूर्य – धनलाभ, प्रसिद्धि, प्रतिष्ठा ।
मंगल महादशा
मंगल अन्तर – पूवार्द्ध हल्का, उत्तरार्द्ध लाभदायक
राहु – शुभदायक
गुरु – धनलाभ |
शनि – मांगलिक शुभकार्य, प्रसिद्धि ।
बुध – उत्तम ।
केतु – शुभ ।
शुक्र – श्रेष्ठ धनलाभ |
सूर्य – सन्तानसुख ।
चन्द्र – अनुकूल |
राहू – महादशा
राहु अन्तर – अनुकूल !
गुरु – धनहानि, अपमान, राज्यावनति ।
शनि – रोगवर्द्धक ।
बुध – श्रेष्ठ, अनुकूल ।
केतु – सामान्य ।
शुक्र – पूर्णतः अनुकूल, यात्राएँ ।
सूर्य – कष्टदायक, धनहानि ।
चन्द्र – मानसिक परेशानी, व्यथा ।
मंगल -अनुकूल, लाभदायक,
गुरु महादशा
गुरु अन्तर – सामान्य
शनि – धनलाभ, व्यापारवृद्धि ।
बुध – श्रेष्ठ ।
केतु – भाग्यवर्द्धक ।
शुक्र – पूर्णतः शुभ ।
सूर्य – प्रतिष्ठा, सम्मान, शुभ ।
चन्द्र – धनलाभ ।
मगल – व्यापारवृद्धि, धनलाभ ।
राहु – कष्टदायक, अवनति ।
शनि महादशा
शनि अन्तर – मृत्युसम कष्ट, पदावनति ।
बुध – सामान्यतः शुभ ।
केतु – शुभ |
शुक्र – धनलाभ, अनुकूल ।
सूर्य – प्रतिष्ठा, सम्मान ।
चन्द्र – पूर्वार्द्ध व्ययाधिक्य, उत्तरार्द्ध शुभ ।
मंगल – पूर्णतः अनुकूल ।
राहु – तकलीफदायक ।
गुरु – अनुकूल ।
बुध महादशा
बुध अन्तर – श्रेष्ठ ।
केतु – धनलाभ, अनुकूल ।
शुक्र – विद्योन्नति, सन्तानसुख, विवाह ।
सूर्य – पूर्ण प्रतिष्ठा ।
चन्द्र – पूर्ण धनलाभ, उन्नति ।
मंगल – श्रेष्ठतम ।
राहु – कष्टदायक ।
गुरु – शुभ, मांगलिक कार्य ।
शनि – भाग्योन्नतिदायक ।
केतु महादशा
केतु अन्तर – तबादला, शुभ, राज्योन्नति ।
शुक्र – शुभ ।
सूर्य – श्रेष्ठ ।
चन्द्र – श्रेष्ठतम, धनलाभ ।
मंगल – श्रेष्ठतम, धनलाभ ।
राहु – घोर कष्ट, एक्सीडेंट ।
गुरु – सामान्य मारकेश, उन्नति ।
शनि – उन्नतिदायक |
बुध – पूर्णोन्नति, लाभदायक ।
शुक्र महादशा
शुक्र अन्तर – सामान्य, धीमी प्रगति, उन्नति के आसार ।
सूर्य – श्रेष्ठतम, धनलाभ ।
चन्द्र – पूर्णतः अनुकूल ।
मंगल – उन्नति, लाभदायक ।
राहु – कष्टदायक ।
गुरु – विवाह, राज्योन्नति, लाभ ।
शनि – व्यापारवृद्धि, भाग्यवर्द्धक ।
बुध – श्रेष्ठ, सर्वतोमुखी उन्नति ।
केतु – श्रेष्ठ ।
साथ ही ग्रह संयोगों का अध्ययन भी कर लेना चाहिए, जिससे फलकथन में प्रामाणिकता रहे ।
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