कर्क लग्न में चन्द्रमा का फलादेश
कर्क लग्न में चन्द्रमा का फलादेश प्रथम भाव में
लग्नेश चन्द्र प्रथम भाव में स्थित होने से ऐसा जातक माता-पिता द्वारा तरस कर ली गई संतान होती है। जातक माता-पिता की विलम्ब से प्राप्त संतति होती है।
ऐसा जातक स्त्री या माता की सलाह पर काम करने वाला, चांदी के बर्तन में भोजन करने वाला होता है। चन्द्रमा लग्न में होने से स्वगृही होता है। ऐसे जातक का मन मजबूत एवं पत्नी सुन्दर होती है। जातक शास्त्रज्ञ होता है।
यामिनीनाथ योग – स्वगृही चन्द्रमा केन्द्र में होने से ‘यामिनीनाथ योग’ बनता है। ऐसा व्यक्ति आनन्दी स्वभाव एवं दीर्घायु वाला होगा। मातृकारक चन्द्रमा मातृस्थान से दसवें होने के कारण जातक का माता के साथ अच्छा संबंध होगा।
यदि यह चन्द्रमा पूर्णिमा का हो तो जातक अकेला ही समस्त शत्रु बलों को नष्ट करने वाला ऐश्वर्यशाली राजा होता है।
दृष्टि – यहां चन्द्रमा अपनी सातवीं दृष्टि से शत्रु शनि की मकर राशि को एवं सप्तम भाव को देखता है। अतः जातक को सामान्य असंतोष के साथ स्त्री तथा भोग की प्राप्ति होती है। पत्नी का पूर्णसुख सप्तमेश शनि की स्थिति पर निर्भर करता है।
विशेष – यदि इस कुण्डली में सूर्य मीन राशि में हो तो ‘जातक पारिजात’ के अनुसार जातक राजा होता है।
बुद्धि एवं शिक्षा – ऐसा जातक पढ़ा लिखा, बुद्धिमान, परोपकारी, राज दरबार में प्रतिष्ठा पाने वाला, माता का सेवक, बहुत बहनों वाला, स्त्री / माता की बात मानकर चलने वाला, चालचलन का नेक, शुद्ध दन्तावली वाला, प्रसिद्ध नेता एवं प्रभावशाली व्यक्ति होता है।
दशाफल – चन्द्रमा की दशा जातक को अच्छा फल देगी। गुप्त लाभ होगा।
चन्द्रमा का अन्य ग्रहों से सम्बन्ध
1. चन्द्र + गुरु – लग्नस्थ चन्द्रमा की यदि गुरु के साथ युति हो तो ‘किम्बहुना योग’ बनेगा। ऐसा जातक राजा तुल्य ऐश्वर्य को भोगेगा। जातक का स्वास्थ्य उत्तम रहता है।
2. चन्द्र + मंगल – चन्द्रमा के साथ मंगल होने से ‘नीचभंग राजयोग’ बनेगा। ऐसा जातक धनवान होगा। उसके राज्य एवं सन्तान सुख दोनों उत्तम होंगे।
3. चन्द्र + शनि – यहां चन्द्रमा के साथ शनि होने से ‘निष्ठुरभाषी योग’ बनेगा। जातक की वाणी अप्रिय होगी।
4. चन्द्र + सूर्य – चन्द्रमा के साथ सूर्य हो तो जातक अपने स्वयं के पराक्रम व पुरुषार्थ से अच्छा रुपया कमाएगा। आयु के 24वें वर्ष में उसका भाग्योदय हो जाएगा। ऐसा जातक राजा होता है।
5. चन्द्र + बुध – चन्द्रमा के साथ बुध लग्नस्थ होने पर जातक अपने कुटुम्ब का नाम अच्छे कार्य से दीपक के समान रोशन करेगा। जातक की पत्नी सुन्दर होगी ।
6. चन्द्र + शुक्र – चन्द्रमा के साथ सुखेश-लाभेश शुक्र होने से जातक उत्तम वाहन का स्वामी होगा। पत्नी रूप की रानी एवं कामक्रीड़ा में जातक को संतुष्टि प्रदान करने वाली होगी। विवाह के बाद ही जातक की किस्मत जागेगी।
7. चन्द्र + राहु – ऐसा जातक सौम्य स्वभाव का होते हुए भी थोड़ा लड़ाकू किस्म का होगा। जातक को विचारों में अस्थिरता बनी रहेगी।
8. चन्द्र + केतु – ऐसा जातक धर्म ध्वज एवं समाज में यश-कीर्ति प्राप्त करने वाला व्यक्ति होगा परन्तु पत्नी का सुख कमजोर रहेगा।
9. यदि चन्द्रमा के साथ राहु या केतु में से कोई ग्रह हो तो ‘ग्रहण योग’ बनेगा। जातक मानसिक तनाव में रहेगा।
प्रथम भाव के चंद्रमा का उपचार
- चांदी के बर्तन में खाना-पीना करें तो भाग्य पलटेगा।
- वट के वृक्ष को सोमवार सोमवार पानी डालें।
- माता की सेवा करें एवं माता से आशीर्वाद रूप में चावल, चांदी लें।
- विवाह 24 वर्ष के बाद ही करना चाहिए।
- यदि मानसिक तनाव ज्यादा हो तो पलंग के चारों पायों में चार तांबें की कीलें सोमवार को लगा दें तो जातक को अच्छी नींद आएगी।
- नव मोती युक्त चन्द्र यंत्र गले में धारण करें।
- मोतियों की माला पहनें।
- सफेद वस्त्र पहनने पर अधिक जोर दें।
कर्क लग्न में चन्द्रमा का फलादेश द्वितीय भाव में
लग्नेश चन्द्र द्वितीय भाव में स्थित होने से यह जातक शुभ संतति वाला, हंसमुख, रोते हुए को हंसाने वाला, मीठा बोलने वाला, भाई-बहनों से युक्त पिता व ससुराल दोनों ही स्थानों से धन-संपत्ति पाने वाला, सफेद वस्तुओं के व्यापार से लाभ पाने वाला होता है। ऐसे जातक को 18 वर्ष की आयु में ही सही लाइन मिल जाती है।
जीवन में प्रतिष्ठा एवं सफलता – जातक जाति व समाज में सम्मान पाने वाला, स्वपराक्रम से धन अर्जित करने वाला, सफल व्यक्ति होता है।
परिवर्तन योग – सूर्य-चन्द्र के परस्पर ‘परिवर्तन योग’ के कारण जातक स्वयं के पुरुषार्थ, पराक्रम से यथेष्ट धन कमाएगा। जातक ‘लक्षाधिपति’ होगा।
दृष्टि – यहां से चन्द्रमा अपनी सातवीं शत्रु दृष्टि से शनि की कुम्भ राशि अष्टम भाव को देखता है। अतः आयु के संबंध में कुछ परेशानियां आती हैं।
दशाफल – चन्द्रमा की दशा मध्यम फल देगी।
चन्द्रमा का अन्य ग्रहों से सम्बन्ध
1. चन्द्र + सूर्य – यदि चन्द्रमा के साथ सूर्य हो तो जातक खुद के परिश्रम से खूब रुपया कमाएगा।
2. चन्द्र + मंगल – चन्द्रमा के साथ यदि मंगल हो तो लग्नेश व पंचमेश दशमेश की यह युति विद्या द्वारा ठेकेदारी एवं राजकार्य द्वारा धन प्राप्ति की सूचना देती है जातक निःसंदेह धनवान होगा।
3. चन्द्र + बुध – लग्नेश, तृतीयेश खर्चेश की युति धनस्थान में धन का अपव्यय करायेगी। यथेष्ट धन संग्रह के प्रति जीवन संघर्षमय रहेगा।
4. चन्द्र + गुरु – भाग्येश-षष्टेश गुरु की लग्नेश चन्द्र के साथ धनस्थान में युति गजकेसरी योग के कारण धनदायक है। ऐसे व्यक्ति को पिता की सम्पत्ति मिलेगी। जातक धर्म-कर्म से पैसा कमायेगा।
5. चन्द्र + शुक्र – चन्द्रमा के साथ सुखेश लाभेश शुक्र होने से जातक धनवान होगा एवं विलासिता में रुपया खर्च करेगा। जातक कला संगीत, नृत्य, अभिनय, फोटोग्राफी में रुचि रखेगा।
6. चन्द्र + शनि – सप्तमेश अष्टमेश शनि की युति लग्नेश चन्द्र के साथ धनस्थान में होने से व्यक्ति का धन औरत बच्चों की देखरेख एवं बीमारी के रखरखाव में खर्च होगा। आर्थिक संघर्ष की स्थिति रहेगी।
7. चन्द्र + राहु – धन स्थान में राहु शत्रुक्षेत्री है व अपने शत्रु के साथ है। फलतः धन के घड़े में छेद है। धन संग्रह नहीं होगा। जातक की वाणी में विश्वसनीयता नहीं रहेगी।
8. चन्द्र + केतु – धनस्थान में केतु भी शत्रुक्षेत्री है। ऐसे जातक को दन्त रोग रहेगा। वाणी कपटपूर्ण होगी।
9. यहां चन्द्रमा के साथ यदि कोई पाप ग्रह हो तो विद्या में रूकावट और यदि शुभ ग्रह हो तो जातक विद्यावान एवं धनवान होगा।
द्वितीय भाव के चंद्रमा का उपचार
- माता का आशीर्वाद लें।
- माता की सेवा करके, माता से चावल, चांदी लेकर पास रखें।
- घर में घंटी, शंख न रखें।
- मकान की नींव में चांदी का सिक्का दबाएं।
- मानसिक तनाव ज्यादा हो तो मोती के साथ ‘चंद्र यंत्र’ पहनें।
कर्क लग्न में चन्द्रमा का फलादेश तृतीय भाव में
लग्नेश चन्द्र तृतीय भाव में स्थित होने से चन्द्रमा शत्रुक्षेत्री होगा। ऐसा व्यक्ति राज्य सरकार द्वारा सम्मानित होता है जातक लम्बी आयु वाला, बहुत यात्राएं करने वाला, भाई-बहन व परिवार को पालने वाला होता है, परन्तु परिवार वालों से उसे यश नहीं मिलता। 24 वें वर्ष से भाग्योदय होगा। गाय-भैंस या वाहन के रख-रखाव पर बहुत खर्च होगा अथवा ज्योतिष या साहित्य के रख-रखाव में रुपया खर्च करेगा |
निशानी – जातक शतरंज, तैराकी का शौकीन होता है। पर जलभय का खतरा बना रहता है।
दृष्टि – यहां से चन्द्रमा सातवीं मित्र दृष्टि से नवम भाव को गुरु की मीन राशि में देखता है। अत: जातक की भाग्य एवं धर्म के क्षेत्र में उन्नति होती है।
दशाफल – चन्द्रमा की दशा भाग्योदय कराएगी।
चन्द्रमा का अन्य ग्रहों से सम्बन्ध
1. चन्द्र + सूर्य – चंद्रमा के साथ सूर्य होने से व्यक्ति महान पराक्रमी होता है। जातक अपने भाग्य का द्वार स्वयं के कठिन परिश्रम से खोलता है।
2. चन्द्र + बुध – यहां बुध उच्च का होगा जो कि खर्चेश भी है। जातक महान पराक्रमी एवं कीर्तिवान होगा। जातक अपनी शान-शौकत के रख-रखाव में काफी रुपया खर्च करेगा।
3. चन्द्र + गुरु – यहां गुरु की युति से गजकेसरी योग बनेगा। जातक भाग्यशाली होगा। जीवन में विशिष्ट सफलता 32 वर्ष की आयु बाद मिलेगी।
4. चन्द्र + शुक्र – शुक्र यहां नीच राशि में होगा पर सुखेश लाभेश शुक्र की लग्नेश के साथ युति होने से जातक को अपनी स्वयं की स्त्री एवं अन्य स्त्रियों से लाभ होगा। जातक पराक्रमी होगा। बहनों की संख्या अधिक होगी।
5. चन्द्र + शनि – सप्तमेश-अष्टमेश की युति लग्नेश के साथ विष योग की सृष्टि करेगी। जातक के परिजन, मित्र षड्यंत्रकारी होंगे। अपकीर्ति का योग अधिक है।
6. चन्द्र + राहु – चन्द्रमा के साथ यदि राहु हो तो आयु के 24 वें वर्ष में राजदण्ड से भय रहेगा। जीवन में सरकारी परेशानी आएगी। ऐसे जातक की माता की मृत्यु छोटी उम्र में होती है। मित्रों से दगा मिलेगा। परिजनों से भारी मनमुटाव का संकेत देता है। मुकदमेबाजी की नौबत आ सकती है।
7. चन्द्र + केतु – जातक कीर्तिवन्त व यशस्वी होगा पर उसकी पीठ पीछे सदैव बुराई होती रहेगी। जातक के परिजन विश्वास योग्य नहीं होंगे।
तृतीय भाव के चंद्रमा का उपचार
- लड़की के जन्म पर चन्द्र की चीजों दूध, चावल, चांदी का दान करें।
- घर आए मेहमान को दूध पिलाएं।
- लड़के के जन्म पर सूर्य की चीजों गेहूं, गुड़, तांबा का दान करें।
- कुंवारी कन्याओं का पूजन करें।
- बहन, लडकी का कन्यादान करें।
कर्क लग्न में चन्द्रमा का फलादेश चतुर्थ भाव में
लग्नेश चन्द्र चतुर्थ भाव में स्थित होने से जातक माता का आज्ञाकारी, जमीन जायदाद एवं वाहन सुख वाला होता है, पर कुछ गर्वीला होने से किसी का अहसान नहीं मानता है। प्रायः आत्मीय जनों की आलोचना से दुःखी रहता है, पर राजनीति में पूर्ण सफल होता है।
ऐसा जातक राज्य दरबार में शामिल होता है तथा अच्छे वाहन का स्वामी होता है। मातृकारक चन्द्रमा मातृस्थान में होने से जातक का माता एवं मातृपक्ष से अच्छा सम्बन्ध होता है।
यामिनीनाथ योग – चन्द्रमा केन्द्र में होने से यह योग बना। ऐसा व्यक्ति आनन्दी स्वभाव का एवं दीर्घायु वाला होता है।
दृष्टि – यहां चन्द्रमा सातवीं मित्र दृष्टि से मंगल की मेष राशि में दशम भाव को देखता है। अतः जातक के पिता स्थान की उन्नति होती है।
होगी।
दशाफल – चन्द्रमा की दशा में जातक को नौकरी मिलेगी। नए वाहन एवं सुख की प्राप्ति होगी।
चन्द्रमा का अन्य ग्रहों से सम्बन्ध
1. चन्द्र + सूर्य – ऐसा जातक अपने पुरुषार्थ से यथेष्ट धन कमायेगा पर सरकारी नौकरी लगते लगते रह जाएगी।
2. चन्द्र + मंगल – यदि चन्द्रमा के साथ मंगल हो तो जातक ‘लक्ष्मी योग’ के कारण लक्षाधिपति होगा एवं उसके जीवन में धन की कोई कमी नहीं रहेगी।
3. चन्द्र + बुध – यदि यहां बुध हो तो माता एवं मातृपक्ष से विवाद बना रहेगा।
4. चन्द्र + गुरु – यदि चन्द्रमा के साथ गुरु हो तो ‘गजकेसरी योग’ के कारण जातक अत्यधिक भाग्यशाली होगा एवं जीवन में उसका कोई कार्य रुका हुआ नहीं रहेगा।
5. चन्द्र + शुक्र – चन्द्रमा के साथ यदि शुक्र हो तो ‘मालव्य योग’ बनेगा। जातक राजातुल्य ऐश्वर्य को भोगेगा। जातक श्रेष्ठ वाहन एवं श्रेष्ठ बंगले का स्वामी होगा तथा व्यापार से खूब रुपया कमाएगा।
6. चन्द्र + शनि – यहां शनि उच्च का होने से ‘शशयोग’ बनेगा। जातक राजा तुल्य ऐश्वर्यशाली एवं पराक्रमी होगा। विवाह के बाद एवं शनि की दशा में जातक की किस्मत चमकेगी। परन्तु गुप्त शत्रु भी जातक के बहुत रहेंगे।
7. चन्द्र + राहु – यहां राहु जातक की माता को कष्ट पहुंचायेगा या अचानक वाहन दुर्घटना कराएगा ।
8. चन्द्र + केतु – यहां केतु के कारण जातक की माता बीमारी से तकलीफ उठायेगी। वाहन दुर्घटना भी होगी पर बचाव हो जायेगा। राजा से दण्ड का भय रहेगा।
चतुर्थ भाव के चंद्रमा का उपचार
- सुबह काम करते समय दूध का कुम्भ रखना।
- दूध का दान दें या घर आए मेहमान को दूध या घी खिलाएं।
- दूध न बेचे डेयरी का काम बिल्कुल न करें।
- माता के साथ हिस्सादारी में व्यापार करना ।
- ‘चंद्रयंत्र’ मोती जड़ा हुआ गले में पहनें।
- असुविधा की अवस्था में लेखक से सम्पर्क कर सकते हैं।
कर्क लग्न में चन्द्रमा का फलादेश पंचम भाव में
लग्नेश चन्द्र पंचम भाव में स्थित होने से चन्द्रमा नीच का होगा। ऐसा व्यक्ति राजा की किस्मत वाला न्याय मूर्ति, राजदरबार में विजय पाने वाला, लम्बी आयु, प्राय: प्रथम संतति कन्या वाला होता है तथा उसकी संतान बहुत तरक्की करती है।
ऐसा व्यक्ति किसी के आगे नहीं झुकेगा। अन्य शुभ योग हों तो जातक राजनीति में बहुत बड़ा पद प्राप्त करेगा। ऐसे जातक की स्त्री प्रजावान, रूपवती किन्तु कुछ व कोपवती होगी।
निशानी – पहली संतति कन्या होगी। जुड़वां बच्चे भी संभव हैं। जातक खट्टा स्वाद पसन्द करेगा। पंचम भाव में यदि पुरुष ग्रह हो तो फलादेश बदल सकता है।
दृष्टि – यहां से चन्द्रमा सातवीं उच्च दृष्टि से शुक्र की वृषभ राशि में एकादश भाव को देखता है। अतः जातक आर्थिक लाभ के लिए अपनी मानसिक तथा शारीरिक शक्तियों एवं गुप्त युक्तियों का प्रयोग करता है और उसमें उसे सफलता प्राप्त होती है। विशेष सफलता मंगल की स्थिति पर निर्भर है। धार्मिक एवं आध्यात्मिक सोच धार्मिक अनुष्ठान, यज्ञ व देवताओं की निरन्तर पूजा करने से शक्ति प्राप्त होगी।
दशाफल – चन्द्रमा की दशा सफलता देने वाली होगी।
परिवर्तन योग – लग्न में मंगल हो चन्द्र-मंगल के परस्पर परिवर्तन योग से जातक विद्यावान, उत्तम सन्तति युक्त व्यापार प्रिय एवं धनवान होगा।
चन्द्रमा का अन्य ग्रहों से सम्बन्ध
1. चन्द्र + सूर्य – धनेश लग्नेश की इस युति से जातक विद्यावान एवं तेजस्वी होगा। जातक को पुत्र एवं कन्या संतति दोनों की प्राप्ति होगी।
2. चन्द्र + मंगल – यदि चन्द्रमा के साथ मंगल होगा तो ‘नीचभंग राजयोग’ बनेगा। जातक आर्थिक रूप से सम्पन्न होगा तथा भूमि ठेकेदारी एवं विद्या के माध्यम से धन कमाएगा।
3. चन्द्र + बुध – चन्द्रमा के साथ तृतीयेश-खर्चेश बुध पंचम भाव में होने से जातक विद्या अध्ययन के लिए जन्म स्थान से दूर जायेगा। विदेश भी जा सकता है। अध्ययन संघर्षपूर्ण रहेगा। फिर भी सफलता मिलेगी।
4. चन्द्र + गुरु – चंद्रमा के साथ गुरु होने से ‘गजकेसरी योग’ बनेगा। जातक भाग्यशाली होगा एवं व्यापार मार्ग से आगे बढ़ता हुआ, उत्तम उद्योगपति भी बन सकता है। उसे प्रथम पुत्र होगा । कन्याएं भी होंगी।
5. चन्द्र + शुक्र – चन्द्रमा के साथ शुक्र स्वगृही हो तो जातक कला प्रेमी होगा पर कन्या संतति अधिक होगी।
6. चन्द्र + शनि – चन्द्रमा के साथ सप्तमेश अष्टमेश शनि की युति कष्टदायक है। जातक विदेशी भाषा पढ़ेगा। विदेश जाने के अवसर भी उसे मिलेंगे पर ऐन वक्त पर विद्या धोखा देगी। विष भोज्य का भय रहेगा।
7. चन्द्र + राहु – मातृशाप, पितृदोष से पुत्र संतति में बाधा संभव है। पुत्र यदि है तो उसकी उन्नति में बाधाएं रहेंगी। विद्या में रुकावट निश्चित हैं।
8. चन्द्र + केतु – गर्भपात, शल्यचिकित्सा से संतति की प्राप्ति कष्ट साध्य होगी। विद्या में निरन्तर संघर्ष का संकेत है।
पंचम भाव के चंद्रमा का उपचार
- जंगल पहाड़ की सैर करें तो उत्तम रहेगा।
- कोई भी नया काम प्रारम्भ करने से पहले परिपक्व व्यक्ति से सलाह लेकर काम करें।
- मोती युक्त ‘चंद्र यंत्र धारण करें।
कर्क लग्न में चन्द्रमा का फलादेश षष्टम भाव में
लग्नेश चन्द्र षष्टम भाव में स्थित होने से ऐसे जातक के पेट में खराबी एवं व्यापार में बार-बार तबदीली आती है। ऐसा व्यक्ति तड़पते के मुंह में पानी डालने वाला हर एक का हमदर्द होता है पर इसके गुप्त शत्रु बहुत होते हैं।
लग्नेश होकर चन्द्रमा के छठे स्थान में जाने से ‘लग्नभंग योग’ बना। ऐसे जातक को परिश्रम का पूरा लाभ नहीं मिलता। भाग्योदय हेतु काफी संघर्ष करना पड़ता है। माता के लिए इसका जन्म नेष्ट होता है और ऐसा जातक सदैव मानसिक परेशानी से त्रस्त रहेगा।
दृष्टि – यहां से चन्द्रमा अपनी सातवीं दृष्टि में बुध की मिथुन राशि, द्वादश भाव को देखता है। अतः जातक को खर्च अधिक रहता है। बाहरी यात्राओं में सम्मान मिलता है।
दशाफल – चन्द्रमा की दशा नेष्ट फल देगी।
परिवर्तन योग – यदि गुरु लग्न में हो तो परस्पर परिवर्तन योग एवं ‘हंसयोग’ के कारण लग्नभंग योग नष्ट होकर चन्द्रमा का अशुभत्व नष्ट हो जाएगा।
चन्द्रमा का अन्य ग्रहों से सम्बन्ध
1. चन्द्र + सूर्य – सूर्य छठे जाने से ‘धनहीन योग’ बनेगा। जातक को पुरुषार्थ का लाभ नहीं मिलेगा एवं धन प्राप्ति हेतु बहुत संघर्ष करना पड़ेगा।
2. चन्द्र + मंगल – यहां चन्द्र-मंगल की युति ‘लक्ष्मी योग’ होते हुए भी ज्यादा सार्थक नहीं है। मंगल छठे जाने से राजभंग योग, संततिहीन योग भी बनता है। जातक को आजीविका हेतु योग्य संतान की प्राप्ति हेतु बहुत संघर्ष करना पड़ेगा।
3. चन्द्र + बुध – पराक्रमेश छठें जाने से एक बार पराक्रम भंग होगा परन्तु व्ययेश का छठे जाने से ‘विपरीत राजयोग’ बनेगा। जातक धनवान होगा। निजी मकान, निजी वाहन का सुख है पर जीवन संघर्षपूर्ण रहेगा।
4. चन्द्र + गुरु – चन्द्रमा के साथ यदि गुरु हो तो जातक के भाग्योदय में निरन्तर बाधा आती रहेगी पर ‘गजकेसरी योग’ के कारण कोई काम अटका हुआ नहीं रहेगा।
5. चन्द्र + शुक्र – सुखेश-लाभेश शुक्र छठे जाने से सुखहीन योग एवं लाभभंग योग बना। ऐसे जातक को स्त्री सुख में कुछ न कुछ कमी महसूस होती रहेगी। जिसके कारण मानसिक शान्ति भंग होगी।
6. चन्द्र + शनि – शनि छठे होने से विलम्ब विवाह योग बनता है। गृहस्थ सुख विवादित रहेगा परन्तु अष्टमेश छठे जाने से विपरीत राजयोग भी बनेगा। जातक धनवान तथा उच्च श्रेणी का व्यापारी होगा।
7. चन्द्र + राहु – जातक की माता को लम्बी बीमारी या दुर्घटना का भय रहेगा।
8. चन्द्र + केतु – जातक के पांव में चोट पहुंच सकती है अथवा पांव में जहरीला फोडा होगा।
9. यदि चन्द्रमा राहु या केतु के साथ है तो जातक सदैव अर्थाभाव में संघर्ष करता रहेगा।
षष्टम भाव के चंद्रमा का उपचार
- अपना भेद किसी को न बताओ।
- घर में खरगोश की पालना करें।
- मोती जड़ा हुआ ‘चंद्र यंत्र’ सहित गले में धारण करें।
- ‘चंद्रकवच’ का पाठ करें।
- रात्रि को दूध न पीएं।

कर्क लग्न में चन्द्रमा का फलादेश सप्तम भाव में
लग्नेश चन्द्र सप्तम भाव में स्थित होने से यह जातक अपने पराक्रम से आगे बढ़ता है। ऐसा जातक धन-दौलत की कमी न पाने वाला, कट्टर स्वाभिमानी होता है तथा किसी के आगे हाथ नहीं फैलाता। जातक की स्त्री सुन्दर व शुभ लक्षणों से युक्त होती है।
जातक ज्योतिषी, कवि, लेखक या योगाभ्यासी होता है। ‘यामिनीनाथ योग’ के कारण जातक आनन्दी एवं विनोदी स्वभाव का होता है एवं सकारात्मक विचारों वाला होता है।
विशेष – लग्नेश के लग्न को देखने के कारण ‘लग्नाधिपति योग’ बना। ऐसा जातक अपने स्वयं के परिश्रम व पुरुषार्थ से खूब आगे बढ़ता है। जातक सुखी, धनी, सुन्दर एवं विलासी होता है।
जीवन में प्रतिष्ठा एवं सफलता – जातक की स्त्री धन की देवी, सुन्दर व शुभ लक्षणों से युक्त होती है। ऐसा जातक नित नए विषयों की खोज करने वाला, ज्योतिष, तंत्र-मंत्र में सफलता पाने वाला, जलीय वस्तुओं व यात्राओं से कीर्ति कमाने वाला, अपनी मौत के समय घर पर ही होता है। सत्ता पक्ष का साथ देने से जातक को प्रमुख पद मिलता है।
दृष्टि – यहां से चन्द्रमा सातवीं दृष्टि से अपनी कर्क राशि के प्रथम भाव को देखता है। अतः जातक को शारीरिक सौन्दर्य, मनोबल आध्यात्मिक शक्ति एवं लौकिक कार्यों में सफलता मिलती है।
दशाफल – चन्द्रमा की दशा तरक्की देगी।
चन्द्रमा का अन्य ग्रहों से सम्बन्ध
1. चन्द्र + सूर्य – यदि चन्द्रमा के सामने सूर्य हो तो जातक एक पत्नी व्रत का पालन करने वाला सैद्धान्तिक आदमी होता है।
2. चन्द्र + मंगल – चन्द्रमा के साथ यदि मंगल हो तो ‘महालक्ष्मी योग’ बनता है। जातक ठेकेदारी, भूमि-भवन, व्यवसाय में खूब रुपया कमाता है। ऐसी ग्रह स्थिति में यदि सूर्य द्वितीय स्थान में हो तो जातक करोड़पति होता है।
3. चन्द्र + बुध – चन्द्रमा के साथ तृतीये-खर्चेश बुध सप्तम भाव में होने से पत्नी को लेकर खर्चा होता रहेगा। जातक अपने ससुराल वालों की सेवा में धन लुटायेगा। जातक की पत्नी सुन्दर होगी।
4. चन्द्र + गुरु – लग्नेश एवं भाग्येश गुरु की युति यहां सफल गजकेसरी योग की सृष्टि करेगी। जातक का भाग्योदय विवाह के बाद होगा। जातक की पत्नी सुन्दर, पतिव्रता व धार्मिक होगी। जातक कुल का नाम रोशन करेगा।
5. चन्द्र + शुक्र – चन्द्रमा के साथ सुखेश लाभेश शुक्र सप्तम भाव में होने से जातक की पत्नी अत्यधिक सुन्दर होगी। पत्नी से जातक को पूर्ण सुख एवं शन्ति मिलेगी। पत्नी के नाम से किया गया व्यापार फलेगा।
6. चन्द्र + शनि – यदि चन्द्रमा के साथ शनि हो तो योग अत्यन्त सुखद होगा। प्रतिष्ठा तथा वैवाहिक जीवन दोनों सुखमय हो जाएंगे।
7. चन्द्र + राहु – यहां पर राहु की स्थिति जीवन साथी से बिछोहदायक है। जातक के सुख में न्यूनता बनी रहेगी। वैचारिक विषमता संभव है।
8. चन्द्र + केतु – चन्द्रमा के साथ केतु होने से जातक का अपने जीवन साथी के साथ वैचारिक मतभेद रहेगा।
9. यदि चन्द्रमा के साथ सूर्य व शनि हो तो जातक दो स्त्री वाला होता है।
सप्तम भाव के चंद्रमा का उपचार
- विवाह के दिन ससुराल से पत्नी के वजन के बराबर दूध, पानी या चावल लाएं या पहले लाएं।
- चांदी के बर्तन में खाना-पीना शुभ रहेगा।
- क्लेश दूर करने के लिए ‘चंद्र यंत्र’ धारण करें।
कर्क लग्न में चन्द्रमा का फलादेश अष्टम भाव में
लग्नेश चन्द्र अष्टम भाव में स्थित होने से ऐसा जातक बुजुर्गों की संपत्ति को बर्बाद करता है। खराब समय में राजदरबार से हानि पाता है। ऐसा जातक अपनी किस्मत को आप चमकाता है।
लग्नेश चन्द्रमा यहां अष्टम स्थान में होने के कारण ‘लग्नभंग योग’ बना। ऐसे जातक को परिश्रम का लाभ नहीं मिलता तथा उसे भाग्योदय हेतु बहुत संघर्ष करना पड़ता है। ससुराल, ननिहाल के लिए शुभ। ससुराल संबंध में किस्मत चमकेगी।
ऐसा जातक अपने कर्त्तव्य पालन के प्रति ज्यादा सतर्क रहता है। ऐसा व्यक्ति कूटनीति में सफल हो सकता है पर राजनीति में कुछ समय ही सफल रह पाएगा ।
निशानी – जातक का जन्म ननिहाल के लिए शुभ होता है। जातक को क्षय रोग होने की संभावना अधिक रहेगी।
दृष्टि – यहां से चन्द्रमा सातवीं मित्र दृष्टि से सूर्य की सिंह राशि में द्वितीय भाव को देखता है। अतः जातक कठिन शारीरिक श्रम द्वारा धन की प्राप्ति करता है।
दशाफल – चन्द्रमा की दशा संघर्ष कराएगी
चन्द्रमा का अन्य ग्रहों से सम्बन्ध
1. चन्द्र + सूर्य – सूर्य के कारण धनहीन योग बनेगा। जातक को परिश्रम का लाभ नहीं मिलेगा। आर्थिक संकट रहेगा।
2. चन्द्र + मंगल – मंगल, चन्द्रमा के साथ होने से ‘सन्ततिहीन योग’ एवं राजभंग योग की सृष्टि होती है। यहां लक्ष्मी योग ज्यादा सार्थक नहीं है। जातक को विद्या प्राप्ति हेतु बाधाओं का सामना करना पड़ेगा। आजीविका के साधान प्राप्ति हेतु भी संघर्ष करना पड़ेगा।
3. चन्द्र + बुध – बुध अष्टम में जाने से पराक्रम भंगयोग बनेगा। एक बार जातक की प्रतिष्ठा गिरेगी, परन्तु व्ययेश आठवें होने में विपरीत राजयोग बनेगा। जातक धनवान होगा। गाड़ी, बंगले का योग है परन्तु मानसिक तनाव, शल्य चिकित्सा होगी।
4. चन्द्र + गुरु – चन्द्रमा के साथ यदि गुरु हो तो जातक की मृत्यु क्षयरोग से होगी।
5. चन्द्र + शुक्र – चन्द्र के साथ शुक्र होने से ‘लाभभंग योग’ एवं सुखहीन योग बनता है। जातक की माता एवं सासु बीमार रहेंगी। जिसकी वजह से जातक को परेशानी उठानी पड़ेगी। वाहन दुर्घटना का भी भय है । अतः तेजगति से वाहन स्वयं न चलाएं।
6. चन्द्र + शनि – चन्द्रमा के साथ यदि शनि हो तो ‘विषयोग’ बनेगा। ऐसे जातक का दाम्पत्य जीवन तनावपूर्ण रहेगा। जातक प्रायः ‘निष्ठुर भाषी’ होगा।
7. चन्द्र + राहु – दुर्घटना का भय, प्राणों पर अचानक संकट आयेगा। राहु व चंद्रमा की दशा में सावधान रहें। महामृत्युंजय का जाप कराएं।
8. चन्द्र + केतु – शल्य चिकित्सा का योग बनता है। दाएं पांव में चोट लगने का भय है।
9. चन्द्रमा के साथ यदि राहु या केतु हो तो ‘ग्रहण योग’ बनेगा। जातक को मानसिक परेशानी के साथ धन का अभाव बना रहेगा।
अष्टम भाव के चंद्रमा का उपचार
- श्राद्ध या बुजुर्गों के नाम पर दान देना ।
- पनीर / दूध के पानी का इस्तेमाल करें। दूध पीना निषेध है।
- अस्पताल या श्मशान में कुआं या हैण्डपैम्प लगाना ।
- ‘चन्द्र यंत्र’ धारण करना।
- बच्चों व बुजुर्गों के पांव धोए।
- चन्द्रकवच का नित्य पाठ करें।
कर्क लग्न में चन्द्रमा का फलादेश नवम भाव में
लग्नेश चन्द्र नवम भाव में स्थित होने से ऐसा व्यक्ति जन्म से गरीब और फिर धनवान होता है एवं कीचड़ में कमल की तरह भाग्योदय की ओर आगे बढ़ता है। ऐसा व्यक्ति ईमानदार, सामाजिक कार्यकर्ता, जननेता एवं धर्मार्थ कार्य में रुचि लेने वाला होता है तथा जनप्रिय होता है। ऐसा व्यक्ति विदेशी कार्य एवं विदेश यात्रा से लाभ कमा सकता है।
चन्द्रमा क्षीण, मध्य व उत्तमबली होने के अनुपात से इनके भाग्यशाली होने का निर्णय लिया जाता है।
निशानी – ऐसा जातक बुजुर्गों का नाम रोशन करता है तथा तालाब, प्याऊ, मन्दिर एवं धार्मिक कार्यों के निर्माण में रुचि लेकर पुरखों का नाम रोशन करता है।
दृष्टि – यहां से चन्द्रमा अपनी सातवीं दृष्टि से बुध की कन्या राशि तृतीय भाव को देखता है । अत: जातक को भाई बहन का सुख प्राप्त होता है तथा उसके पराक्रम में वृद्धि होती है।
दशाफल – चन्द्रमा की दशा शुभ फल देगी।
चन्द्रमा का अन्य ग्रहों से सम्बन्ध
1. चन्द्र + सूर्य – जातक धनवान होगा। परिश्रम का लाभ मिलेगा।
2. चन्द्र + मंगल – चन्द्रमा के साथ मंगल की युति राज्येश-पंचमेश की लग्नेश से युति भाग्य स्थान में कहलायेगी। यह बहुत उत्तम राजयोग कारक युति है। जातक महान पराक्रमी होगा। जातक का भाग्योदय आयु के 28वें वर्ष में हो जाएगा।
3. चन्द्र + बुध – चन्द्रमा के साथ पराक्रमेश-खर्चेश बुध की युति जातक को पराक्रमी बनायेगी । बुध यहां नीच का होगा। जातक अपनी उन्नति हेतु, व्यक्तित्व विकास एवं निजी शौक की पूर्ति हेतु बहुत रुपया खर्च करेगा।
4. चन्द्र + गुरु – चन्द्रमा के साथ गुरु हो तो प्रबल ‘गजकेसरी योग’ बनता है। जातक राजतुल्य ऐश्वर्य का भोगता है। उसका कोई काम साधन के अभाव में अटका हुआ नहीं रहता । जातक परम भाग्यशाली होता है क्योंकि गुरु स्वगृही है।
5. चन्द्र + शुक्र – शुक्र यहां उच्च का होगा। लग्नेश चन्द्र के साथ सुखेश लाभेश शुक्र की यति परम सौभाग्यशाली साबित होगी। जातक के पास अनेक वाहन होगे। उत्तम भवन भी होगा।
6. चन्द्र + शनि – चन्द्रमा के साथ सप्तमेश-अष्टमेश शनि भाग्य स्थान में होने से मिले-जुले मिश्रित परिणाम मिलेगे। जातक को ससुराल से मदद मिलेगी। जातक पराक्रमी होगा एवं जीवन में उतार-चढ़ाव के साथ उच्च उपलब्धियों को स्पर्श करेगा।
7. चन्द्र + राहु – भाग्य स्थान में मीन का राहु राजयोग बनाएगा।
नवम भाव के चंद्रमा का उपचार
- धर्म-कर्म और तीर्थ यात्रा में रुचि लें।
- ‘चन्द्र यंत्र धारण करें।
कर्क लग्न में चन्द्रमा का फलादेश दशम भाव में
लग्नेश चन्द्र दशम भाव में स्थित होने से उच्चाभिलाषी होकर बैठा हो तो व्यक्ति भंवर में फंसी नाव को पार लगाने वाला, कुल-कुटुम्ब को तारने वाला, बूढ़े बुजुर्गों की सेवा करने वाला, अनेक प्रकार के कार्यों से धन कमाने वाला, समाज का सेवक, जनता का प्रिय जननेता होता है। अन्य शुभ योगों के साथ जातक को राजनीति में आशातीत सफलता मिलती है।
यामिनीनाथ योग – ऐसा जातक आनन्दी एवं विनोदी स्वभाव का होता है। मातृभवन पर दृष्टि होने से माता एवं मातृपक्ष से अच्छा सम्बन्ध होता है।
निशानी – जातक विद्यावान होगा एवं रहस्यमय विद्याओं का ज्ञाता होगा।
दृष्टि – यहां से चन्द्रमा अपनी सातवीं दृष्टि से शुक्र की तुला राशि में चतुर्थ भाव को देखता है। अतः जातक के सुख में वृद्धि होगी।
दशाफल – चन्द्रमा की दशा राज्य में तरक्की एवं सुख में वृद्धि करेगी। नए वाहन की प्राप्ति एवं प्रमोशन की संभावना रहेगी।
चन्द्रमा का अन्य ग्रहों से सम्बन्ध
1. चन्द्र + सूर्य – रविकृत राजयोग के कारण जातक महाधनी होगा।
2.चन्द्र + मंगल – चन्द्रमा के साथ मंगल हो तो क्रमशः ‘महालक्ष्मी योग’ एवं ‘मालव्य योग’ तथा ‘पद्मसिंहासन योग’ की सृष्टि होगी। ऐसा जातक साक्षात राजा तुल्य ऐश्वर्य को भोगने वाला परम पराक्रमी होता है। जातक को भूमि से लाभ होगा।
3. चन्द्र + बुध – चन्द्रमा के साथ तृतीयेश-व्ययेश बुध होने से राजपक्ष में खराब रहेगा। जातक अपने कुटुम्ब परिवार का नाम दीपक के समान रोशन करेगा।
4. चन्द्र + गुरु – चन्द्रमा के साथ गुरु होने से गजकेसरी योग बनेगा। जातक धनवान एवं सौभाग्यशाली होगा। ऐसा जातक समाज में, राजनीति में प्रभावशाली व्यक्ति होगा।
5. चन्द्र + शुक्र – यहां शुक्र सुखेश लाभेश होकर दशम भाव में लग्नेश चन्द्रमा के साथ होने से राजयोग बनाता है। जातक महाभाग्यशाली होगा। उसके पास एक से अधिक वाहन होगे। जातक को माता की सम्पत्ति मिलेगी।
6. चन्द्र + शनि – यहां चन्द्रमा के साथ शनि सप्तमेश अष्टमेश होने के कारण कष्टकारक होगा। शनि नीच का ‘विष योग बनाएगा। जातक को राजदण्ड का भय रहेगा। गुप्त शुत्र रहेंगे।
7. चन्द्र + राहु – चन्द्रमा के साथ राहु सरकारी भय उत्पन्न करेगा। राजदण्ड सम्भव है। कोर्ट केस में पराजय सम्भव है।
8. चन्द्र + केतु – चन्द्रमा के साथ केतु सरकारी कारोबार से नुकसान पहुंचायेगा ।
दसम भाव के चंद्रमा का उपचार
- रात को दूध ना पीना, क्योंकि यह दूध जहर का काम करेगा।
- ‘चन्द्रयंत्र’ धारण करें।
कर्क लग्न में चन्द्रमा का फलादेश एकादश भाव में
लग्नेश चन्द्र एकादश भाव में स्थित होने से लग्नेश चन्द्रमा उच्च का होगा। जातक माता व संतान से युक्त, दूरदर्शी, दूध/पानी व सफेद वस्तुओं से लाभ पाने वाला होता है।
जीवन में प्रतिष्ठा एवं सफलता – जातक को स्व मकान व स्व वाहन का सुख अवश्य होता है। जीवन की यौवन अवस्था में कदम रखते ही ऐसे जातक उत्तम धन व यश को प्राप्त करने लग जाते हैं। यदि शुक्र की स्थिति शुभ हो तो कहना ही क्या? ऐसा व्यक्ति उच्चवर्गीय राजनेता होता है।
बुद्धि एवं शिक्षा – जातक उच्च शिक्षाधिकारी, वकील, राज्याधिकारी व सामाजिक कार्यकर्ता होता है। जातक पुत्र-पौत्रादि संतान से युक्त होता है तथा उसकी संतान सद्गुणी होती है।
निशानी – जातक की प्रथम संतति कन्या होगी। यदि पंचम भाव में पुरुष ग्रह हो तो फलादेश बदल सकता है।
दृष्टि – यहां से चन्द्रमा सातवीं नीच दृष्टि से मंगल की वृश्चिक राशि में पंचम भाव को देखता है। ऐसे जातक की बुद्धि उर्वरक होगी। जातक प्रजावान एवं विद्यावान होगा।
दशाफल – चन्द्रमा की दशा उत्तम फल एवं सन्तति देगी।
चन्द्रमा का अन्य ग्रहों से संबंध
1. चन्द्र + सूर्य – यदि यहां चन्द्रमा के साथ सूर्य हो तो जातक अकेला ही सब शत्रुओं को नष्ट करने वाला राजा होता है।
2. चन्द्र + मंगल – चन्द्रमा के साथ पंचमेश व दशमेश मंगल होने से जातक ‘महालक्ष्मी योग’ के कारण धनवान होगा। टैक्नीकल, मैकेनिकल कार्य का जानकार होगा एवं बड़ी भूमि का स्वामी होगा।
3. चन्द्र + बुध – चन्द्रमा के साथ पराक्रमेश एवं खर्चेश बुध होने से जातक महान पराक्रमी होगा तथा व्यापार में प्रवृत्त होता हुआ धीरे-धीरे बहुत आगे बढ़ जाएगा।
4. चन्द्र + गुरु – चन्द्रमा के साथ गुरु हो तो बहुत ही उत्तम श्रेणी का ‘गजकेसरी योग’ होता है। जातक राजा तुल्य ऐश्वर्य को भोगता है। जातक परोपकारी होता है तथा पुण्यार्थ में धन खर्च करता है।
5. चन्द्र + शुक्र – यहां चन्द्रमा के साथ यदि शुक्र हो तो ‘किम्बहुना योग’ की सृष्टि होगी। ऐसा जातक राजा तुल्य ऐश्वर्य को भोगता है उसे मां का सुख उत्तम वाहन, नौकर एवं श्रेष्ठ भवन का सुख मिलता है। कन्या संतति की बहुलता रहेगी।
6. चन्द्र + शनि – चन्द्रमा के साथ सप्तमेश अष्टमेश शनि पत्नी (ससुराल पक्ष) से चिन्ता कराएगा। जातक अपनी मेहनत से आगे बढ़ेगा एवं स्वाभिमानी होगा।
7. चन्द्र + राहु – चन्द्रमा के साथ राहु लाभ में बाधा पहुंचाएगा, जातक को व्यापारिक चिन्ता होगी।
8. चन्द्र + केतु – चन्द्रमा के साथ केतु जातक को उद्योग से लाभ पहुंचाएगा।
एकादश भाव के चंद्रमा का उपचार
- बच्चों को 121 पेडे या रेवड़ी बराबर बांटना ।
- भैरों के मंदिर में दूध देना।
- नवमोती युक्त ‘चन्द्रयंत्र’ धारण करें।
- स्फटिक की माला गले में धारण करें, इससे राजयोग व उत्तम संतति की प्राप्ति होगी।
कर्क लग्न में चन्द्रमा का फलादेश द्वादश भाव में
लग्नेश चन्द्र शत्रुक्षेत्री होकर द्वादश भाव में होने से शुभ ग्रहों से दृष्ट न हो तो जातक दीवाना, बातूनी, बुजुर्गों की सम्पत्ति बरबाद करने वाला, बीते हुए समय को याद करके रोने वाला होता है।
लग्न भंग योग – लग्नेश चन्द्रमा बारहवें स्थान में होने से यह योग बनता है। ऐसे जातक को परिश्रम का लाभ नहीं मिलता तथा उसके जीवन में संघर्ष की स्थिति बनी रहती है।
जीवन में प्रतिष्ठा एवं सफलता – जातक जबान का कच्चा, ससुराल को डुबोने वाला अनेक कष्ट व दिक्कतों के साथ आगे बढ़ने वाला होता है। राजनीति में इन्हें प्रायः धोखा मिलता है। जातक यात्राएं बहुत करेगा।
निशानी – जातक का शरीर दुबला-पतला होगा। यात्राएं अधिक होंगी।
विशेष – बारहवें घर में शत्रुक्षेत्री चन्द्रमा जातक की बाईं आंख को नुकसान पहुंचाता है।
दृष्टि – यहां से चन्द्रमा सातवीं मित्र दृष्टि से षष्ठ भाव को गुरु की धनु राशि में देखता है अत: जातक गुप्त शत्रुओं से पीड़ित रहेगा।
दशाफल – चन्द्रमा की दशा मध्यम फल देगी। यात्राओं में धनहानि व धोखा होगा।
चन्द्रमा का अन्य ग्रहों से सम्बन्ध
1. चन्द्र + सूर्य – सूर्य के कारण धनहीन योग बनेगा। जातक को परिश्रम का फल नहीं मिलेगा।
2. चन्द्र + मंगल – चन्द्रमा के साथ पंचमेश दशमेश मंगल होने से ‘विद्याभंग योग’, ‘राजभंग योग’ बनेगा। ऐसे जातक को विद्या प्राप्ति में बाधा आएगी। सरकारी कार्य में बाधा आएगी।
3. चन्द्र + बुध – चन्द्रमा के साथ पराक्रमेश व्ययेश बुध होने से एक बार पराक्रम भंग होगा। व्ययेश के व्यय स्थान में स्वगृही होने से विपरीत राजयोग बना। फलतः जातक धनी होगा। उसके पास निजी वाहन, निजी भवन होगा।
4. चन्द्र + गुरु – चन्द्रमा गुरु के साथ होने से ‘गजकेसरी योग’ बना परन्तु भाग्येश बारहवें ‘भाग्यभंग योग’ बनाता है। षष्टेश बारहवें होने से ‘विपरीत राजयोग’ भी बना। जातक धनवान होगा तथा निजी भवन एवं निजी वाहन का स्वामी होगा जीवन में संघर्ष रहेगा।
5. चन्द्र + शुक्र – चन्द्रमा बारहवें और शुक्र यदि द्वितीय स्थान में हो तो जातक की दोनों आंखों की रोशनी चली जाएगी।
6. चन्द्र + शनि – सप्तमेश बारहवें स्थान पर होने से ‘विलम्ब विवाह योग’ बनेगा। अष्टमेश व्यय भाव में होने से ‘विपरीत राजयोग’ बनेगा। ऐसा जातक धनी होगा। निजी भवन, निजी गाड़ी वगैरह होगी पर मानसिक उद्विग्नता रहेगी। यहां चंद्रमा का अशुभत्व बढ़ेगा।
7. चन्द्र + राहु – चन्द्र राहु की युति से यात्रा योग विशेष रहेगा। यात्रा में कष्ट होगा। दुर्घटना का भय रहेगा।
8. चन्द्र + केतु – चन्द्र-केतु की युति से जातक तीर्थयात्राओं, धार्मिक व परोपकार के कार्यों में रुचि लेगा।
द्वादश भाव के चंद्रमा का उपचार
- चावल, चांदी, दूध आदि का दान करना।
- सच्चा मोती (दूध रंग) धारण करना, मोती के अभाव में चांदी धारण करें या चंद्र यंत्र पहनना।
- दूध का बर्तन रात को सिरहाने रखकर सुबह वटवृक्ष में डालना।
- सोमवार का व्रत रखना।
- शिवजी की उपासना करना।
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