कर्क लग्न के धन योग
कर्क लग्न में जन्म लेने वाले जातकों के लिए धनप्रदाता ग्रह सूर्य है। धनेश सूर्य की शुभाशुभ स्थिति से धन स्थान से संबंध जोड़ने वाले ग्रहों की स्थिति एवं योगायोग, सूर्य एवं धनस्थान पर पड़ने वाले ग्रहों के दृष्टि संबंध से जातक की आर्थिक स्थिति, आय के स्त्रोतों तथा चल-अचल संपत्ति का पता चलता है।
इसके अतिरिक्त लग्नेश चंद्र, पंचमेश एवं दशमेश मंगल, भाग्येश गुरु, शुक्र की अनुकूल स्थितियां कर्क लग्न वालों के लिए धन, ऐश्वर्य एवं वैभव को बढ़ाने में सहायक होती हैं।
वैसे कर्क लग्न के लिए शुक्र, शनि व बुध परम पापी व अशुभ हैं। गुरु, सूर्य शुभ हैं। इस लग्न में मंगल अकेला राजयोग कारक है। सूर्य मारकेश होकर भी स्वयं मारक का काम नहीं करेगा। सूर्य साहचर्य से मारक का फल देगा। गुरु पापी होने पर भी योग कारक है।
सफल योग – 1. चंद्र+मंगल, 2. चंद्र+गुरु, 3. मंगल+गुरु, 4. मंगल+शुक्र
निष्फल योग – 1. गुरु+शुक्र, 2. गुरु+शनि
अशुभ योग – 1. मंगल+शनि
राजयोग कारक केवल मंगल ही है।
लक्ष्मी योग – मंगल केंद्र, त्रिकोण में; सूर्य द्वितीय, पंचम, नवम में; चंद्रमा लग्न या एकादश में।
विशेष योगायोग
1. कर्क लग्न में सूर्य, सिंह या मेष राशि में हो तो जातक धनाध्यक्ष होता है। धन के मामले में लक्ष्मी उसका पीछा नहीं छोड़ती।
2. धनेश सूर्य, मीन राशि में तथा गुरु, सिंह राशि में परस्पर राशि परिवर्तन करके बैठे हों तो जातक भाग्यशाली होता है तथा अत्यधिक धन कमाता हुआ लक्ष्मीवान होता है।
3. गुरु कर्क या मीन राशि में हो तो जातक अल्प प्रयत्न से बहुत धन कमाता है। ऐसा जातक धन के मामले में भाग्यशाली होता है।
4. सूर्य, शुक्र के घर में तथा शुक्र, सूर्य के घर में में परस्पर परिवर्तन करके बैठा हो तो व्यक्ति महाभाग्यशाली होता है तथा जीवन में अत्यधिक धन अर्जित करता है।
5. मंगल केंद्र या त्रिकोण में कहीं भी चंद्रमा के साथ हो तो जातक 28 वर्ष की आयु के बाद खूब धन कमाता है तथा कीचड़ में कमल की तरह खिलता हुआ सामान्य परिवार में जन्म लेकर धीरे-धीरे प्रचुर मात्रा में द्रव्य कमाता हुआ लक्षाधिपति यहां तक करोड़पति तक हो जाता है।
6. लग्न में चंद्रमा गुरु एवं मंगल के साथ दृष्ट हो तो जातक महाधनी होता है तथा व्यक्ति धनशाली व्यक्तियों में अग्रगण्य होता है।
7. स्वगृही मंगल पंचम भाव में हो तथा लाभ स्थान में शुक्र स्वगृही हो तो व्यक्ति महालक्ष्मीवान होता है।
8. चंद्रमा यदि वृष राशि में हो तथा शुक्र कर्क राशि में हो तो जातक 33वें वर्ष में धनवान होता है तथा शत्रुओं का नाश करते हुए, स्वअर्जित धनलक्ष्मी को भोगता है। ऐसे व्यक्ति को जीवन में अचानक धन मिलता है।
9. लग्नेश चंद्रमा, धनेश सूर्य, भाग्येश गुरु, लाभेश शुक्र अपनी-अपनी उच्च एवं स्वराशियों में हों तो जातक करोड़पति होता है।
10. धनेश सूर्य यदि छठे, आठवें या बारहवें स्थान में हो तो धनहीन योग की सृष्टि होती है।
11. धनेश सूर्य यदि आठवें हो तथा लग्नेश चंद्रमा व शुभ ग्रह उसे देखते हों तो जातक को गढ़े हुए धन की प्राप्ति होती है या लॉटरी से धन मिल सकता है पर यह धन उसके पास टिकता नहीं है।
12. चंद्रमा, पंचमेश मंगल व भाग्येश गुरु दूसरे भाव में हो तथा शुक्र, सूर्य वृश्चिक राशिस्थ हो तो जातक भिक्षुक के घर में जन्म लेकर भी करोड़पति बनता है।
13. बुध, शुक्र के साथ पंचम भाव में हो तो बुध अपनी दशा व अंतर्दशा में अर्थ प्राप्ति करवाता है।
14. सूर्य स्वराशिस्थ, बुध तीसरे भाव में उच्च राशि में गुरु भी तृतीय भाव में मंगल छठे धनु राशि में हो तो जातक अपने बाहुबल से श्रेष्ठ अर्थ प्राप्त करता है एवं लखपति होता है।
15. बुध, शुक्र 12वें भाव में हों तो शुक्र की दशा में जातक ख्याति, यश एवं धन लाभ करता है।
16. धनेश यदि धनभाव या केंद्र, त्रिकोण में हो तो धन की वृद्धि व 6, 8, 12 स्थानों में हो तो धन की हानि होती हैं।
17. धनेश सूर्य व लाभेश शुक्र दोनों ही अस्त हों या पापयुक्त हों तो जन्म से ही जातक धनहीन होता है।
18. मंगल यदि मेष, वृश्चिक या मकर राशि में हो तो “रुचकयोग” बनता है। ऐसा जातक राजातुल्य ऐश्वर्य को भोगता हुआ अथाह भूमि, संपत्ति व धन का स्वामी होता है।
19. सुखेश शुक्र नवम भाव में शुभ ग्रह से युति किए हुए मंगल से दृष्ट हो तो व्यक्ति को अनायास धन की प्राप्ति होती है।
20. गुरु-चंद्र की युति सिंह, तुला, वृश्चिक या मीन राशि में हो तो इस प्रकार के ‘गजकेसरी योग’ के कारण व्यक्ति को अनायास उत्तम धन की प्राप्ति होती है। ऐसे व्यक्ति को लॉटरी, शेयर बाजार या अन्य व्यापारिक स्त्रोत से अकल्पनीय धन मिलता है।
21. धनेश सूर्य अष्टम में तथा अष्टमेश शनि धनस्थान में परस्पर परिवर्तन करके बैठे हों तो ऐसा जातक गलत तरीके से धन कमाता है। ऐसा व्यक्ति ताश, जुआ, मटका, घुड़दौड़, स्मगलिंग एवं अनैतिक कार्यों से धन अर्जित करता है।
22. बुध लाभस्थान में एवं लाभेश शुक्र, तृतीय स्थान में परस्पर परिवर्तन करके बैठे हों तो ऐसे व्यक्ति को भाई मित्र, भागीदारी, लेखन, प्रकाशन एवं बुद्धिबल के द्वारा धन की प्राप्ति होती है।
23. बलवान सूर्य के साथ यदि चतुर्थेश शुक्र की युति हो तो व्यक्ति माता के द्वारा नौकर एवं वाहन के द्वारा धन अर्जित करता है।
24. बुध कन्या राशि में हो तो जातक कुशल भविष्यवक्ता होता है और बुद्धिबल से खूब धन कमाता है।
25. सूर्य, चंद्रमा कुंभ राशि में हो तथा तीन-चार ग्रह नीच के हों तो व्यक्ति करोड़पति के घर में जन्म लेकर भी दरिद्र होता है।
26. यदि बलवान सूर्य की पंचमेश मंगल से युति हो, द्वितीय भाव शुभ ग्रह से दृष्ट हो तो ऐसे व्यक्ति को पुत्र के द्वारा धन की प्राप्ति होती है, पुत्र जन्म बाद ही जातक का भाग्योदय होता है।
27. यदि बलवान सूर्य की षष्टेश गुरु से युति हो तथा धनेश सूर्य शनि या मंगल से दृष्ट हो तो जातक को शत्रुओं के द्वारा धन की प्राप्ति होती है। ऐसा जातक कोर्ट कचहरी में शत्रुओं का हराता है तथा शत्रुओं के कारण ही उसे धन व यश की प्राप्ति होती है।
28. बलवान सूर्य यदि सप्तमेश शनि के साथ हो तो जातक का भाग्योदय विवाह के बाद होता है तथा उसे पत्नी सुसराल पक्ष से चल-अचल संपत्ति की प्राप्ति होती है।
29. बलवान सूर्य की नवमेश गुरु से युति हो तो ऐसा जातक राजा, राज्य सरकार, सरकारी अधिकरियों एवं अनुबंधनों से काफी धन कमाता है।
30. बलवान सूर्य दशमेश मंगल के साथ हो तो जातक को पैतृक संपत्ति, पिता द्वारा संरक्षित धन की प्राप्ति होती है अथवा पिता का व्यवसाय जातक के भाग्योदय में सहायक होता है।
31. कर्क लग्न में दशम भाव का स्वामी मंगल यदि छठे, आठवें या बारहवें स्थान में हो तो जातक को परिश्रम का पूरा लाभ नहीं मिलता, जन्म स्थान में कमाई नहीं होती तथा जातक को सदैव धन का अभाव बना रहता है।
32. कर्क लग्न में लग्नेश चंद्रमा यदि छठे, आठवें या बारहवें स्थान में हो एवं सूर्य अष्टम स्थान में कुंभ राशि का हो तो व्यक्ति कर्जदार होता है। उसकी आर्थिक स्थिति सदैव दयनीय होती है।
33. कर्क लग्न के द्वितीय भाव में पाप ग्रह हो तथा लाभेश शुक्र यदि छठे, आठवें या बारहवें स्थान में हो तो व्यक्ति को सदैव धन का अभाव बना रहता है।
34. धनेश सूर्य बलहीन हो, नीच राशि (तुला) में हो तथा धन स्थान या अष्टम स्थान में कोई पाप ग्रह हो तो व्यक्ति सदैव ऋणग्रस्त रहता है। कर्ज उसके सिर से नहीं उतरता।
35. लाभेश शुक्र, यदि छठे, आठवें या बारहवें स्थान में हों, लाभेश अस्तगत या पाप पीड़ित हो तो व्यक्ति महादरिद्री होता है।
36. अष्टमेश शनि वक्री होकर कहीं भी बैठा हो या अष्टम स्थान में कोई भी ग्रह वक्री होकर बैठा हो तो अकस्मात् धनहानि का योग बनता है। अतः ऐसे व्यक्ति को धन के मामले में परिस्थितिवश अचानक भारी नुकसान हो सकता है। अतः सावधान रहें।
37. अष्टमेश शनि शत्रु क्षेत्री, नीच राशिगत या अस्त हो तो अचानक धन की हानि होती है।

कर्क लग्न में राजयोग
1. कर्क लग्न वाले मनुष्य के यदि उच्च का गुरु लग्न में हो, साथ ही उच्च का मंगल सप्तम भाव में उच्च का सूर्य राज्य स्थान में और उच्च का शनि मातृ स्थान में हो तो जातक राजा के समान ऐश्वर्य एवं वैभव को भोगता है।
2. उच्च का गुरु लग्न में हो, उच्च का शनि चतुर्थ में हो और उच्च का मंगल सप्तम भाव में हो तो जातक राजा के समान ऐश्वर्य एवं वैभव का भोगता है।
3. उच्च का गुरु स्वगृही चंद्र के साथ लग्न में हो और उच्च का सूर्य दशम में हो तो जातक राजा के समान ऐश्वर्य एवं वैभव को भोगता है।
4. उच्च का गुरु स्वगृही चंद्र के साथ लग्न में हो और उच्च का शनि चतुर्थ स्थान में हो तो जातक राजा के समान ऐश्वर्य एवं वैभव को भोगता है।
5. उच्च का गुरु स्वगृही चंद्र के साथ लग्न में और उच्च का मंगल सप्तम स्थान में हो तो जातक राजा के समान ऐश्वर्य एवं वैभव को भोगता है।
6. उच्च का गुरु पूर्ण चंद्र के साथ लग्न में हो या कर्क का स्वगृही पूर्ण चंद्र लग्न में हो और उच्च का शनि चतुर्थ स्थान में हो तो जातक राजा के समान ऐश्वर्य एवं वैभव को भोगता है।
7. उच्च का गुरु लग्न में हो एवं उच्च का सूर्य राज्य स्थान में और बुध, शुक्र और शनि लाभ स्थान में हों तो जातक राजा के समान ऐश्वर्य एवं वैभव को भोगता है।
8. उच्च का गुरु लग्न में और स्वगृही मंगल राज्य स्थान में हो या उच्च का शनि चतुर्थ में हो, स्वगृही मंगल दशम में हो और शुक्र सप्तम स्थान में हो तो जातक राजा के समान ऐश्वर्य एवं वैभव को भोगता है।
9. उच्च का गुरु लग्न में हो, स्वगृही मंगल दशम में हो और स्वगृही शुक्र चतुर्थ भाव में हो तो जातक राजा के समान ऐश्वर्य एवं वैभव को भोगता है।
10. उच्च का गुरु लग्न में, स्वगृही शुक्र चतुर्थ में और स्वगृही शनि सप्तम में और उच्च का चंद्रमा एकादश स्थान में हो तो जातक राजा के समान ऐश्वर्य एवं वैभव को भोगता है।
11. सूर्य, चंद्रमा, शुक्र, तीनों उच्च के हों या गुरु उच्च का लग्न में और में हो तो जातक राजा के समान ऐश्वर्य एवं वैभव को भोगता है।
12. उच्च का गुरु लग्न में उच्च का सूर्य दशम में और चंद्र-बुध-शुक्र एकादश में हों, तो जातक राजा के समान ऐश्वर्य एवं वैभव को भोगता है।
13. तुला का शनि मंगल के साथ चतुर्थ स्थान में हो और राज्य स्थान में उच्च का सूर्य तीनों शुभ ग्रहों के साथ बैठा हो तो ऐसे योग में जन्मा मनुष्य बड़ी प्रतिष्ठा वाला होता है।
14. यदि कर्क का पूर्ण स्वगृही चंद्रमा लग्न में हो और स्वगृही मीन का गुरु मित्र मंगल के साथ भाग्य या नवम स्थान में हो मनुष्य धन-धान्य से युक्त बड़ा आदमी होता है।
15. यदि लग्न में चंद्रमा और गुरु हो, दूसरे स्थान में सूर्य, बुध और शुक्र हो, मकर का मंगल सप्तम स्थान में हो तो जातक राजा के समान ऐश्वर्य एवं वैभव को भोगता है।
16. मिथुन राशि का शनि बारहवें स्थान में हो या कर्क का चंद्रमा लग्न में हो, सूर्य, मंगल, गुरु और शुक्र सिंह राशि में दूसरे स्थान में हों, तो जातक राजा के समान ऐश्वर्य एवं वैभव को भोगता है।
17. मकर का शनि स्वगृही सप्तम स्थान में हो, मिथुन का स्वगृही बुध व्यय या द्वादश स्थान में हो, तो मनुष्य राजमान्य बहुत बड़ा सरकारी नौकर होता है।
18. यदि लग्न में कर्क का गुरु, चतुर्थ में तुला का शुक्र, सप्तम स्थान में मकर का शनि, दशम स्थान में मेष का मंगल हो तो मनुष्य बड़ा पराक्रमी, पुलिस, सेना में उच्चाधिकारी होता है।
19. शनि अपनी राशि का या मूल त्रिकोण या उच्च का होकर केंद्र में हो तो राज योग होता है। ऐसा जातक राजनीति विशारद, नगरपालिका अध्यक्ष या प्रसिद्ध नेता होता है तथा राजा तुल्य आनंद भी भोगता है।
20. नवमेश और चतुर्थेश परस्पर केंद्र में हों तथा लग्नेश बलवान हो तो जातक शरीर से बलिष्ठ वीर व दृढ़ चरित्र वाला होता है। मिलिट्री या सेना में उच्च पद प्राप्त करता है ।
21. गुरु शत्रु भावस्थ हो तथा केतु से युति करे तो जातक बहु ऐश्वर्यवान तथा योग्य व राजनीतिपटु होता है।
22. शनि सुख भाव में, गुरु लग्न में लग्नेश के साथ, सूर्य उच्च का तथा मंगल मकर का हो तो उत्तमातोत्तम राजयोग होता है।
23. चंद्रमा स्व को हो, मंगल तीसरे भाव में, बुध, शुक्र, गुरु का मेष पर दृष्टि हो तो जातक को अद्वितीय राज्य ख्याति व पद प्राप्त होता है।
24. गुरु मंगल के नवांश में हो और उस पर मंगल की दृष्टि हो एवं मेष का सूर्य दशम भाव में स्थित हो तो जातक यशस्वी राजनीतिज्ञ होता है।
25. उच्च का गुरु केंद्र में तथा शुक्र कर्म भाव में हो तो जातक राजनीति में पटु होता है।
26. लग्न से गुरु केन्द्र में हो तथा केवल शुभ्र ग्रहों से दृष्ट या युक्त हो तथा अस्त, नीच या शत्रु राशि में न हो तो जातक मुख्यमंत्री बनता है।
27. कर्क लग्न में सिंह, वृष, कन्या, कर्क इन चारों राशियों में से किसी में भी राहु हो तो जातक महाराजाधिराज और लक्ष्मी से संपन्न होता है।
28. दसवें स्थान में बुध, सूर्य हो और मंगल, राहु छठे में हो तो इस राजयोग में उत्पन्न जातक मनुष्यों में श्रेष्ठ होता है।
29. लग्न से चतुर्थ में शुक्र हो और मंगल, राहु छठे में हों तो इस राजयोग में उत्पन्न जातक मनष्यों में श्रेष्ठ होता है।
30. उच्च का गुरु और मंगल हो तो राजयोग होता है।
31. स्वराशि का पूर्ण चंद्रमा लग्न में, सप्तम में बुध, चतुर्थ में शुक्र, दशम में गुरु, षष्ट में सूर्य और शनि-मंगल तृतीय स्थान में हो तो वैभव संपन्न राजयोग होता है।
32. लग्न में कर्क का गुरु; दशम में रवि; वृष में चंद्रमा, बुध, शुक्र हों तो जातक अपने बाहुबल से राजयोग प्राप्त करता है।
33. कर्क लग्न में शीर्षोदय राशि में (मिथुन, सिंह, कन्या, तुला, मकर) सब ग्रह हों और पूर्ण चंद्रमा स्वगृह का लग्न में शुभ ग्रह दृष्ट हो तो राजयोग होता है।
कर्क लग्न के आयुष्य योग
1. कर्क लग्न के लिए आयुष्य प्रदाता ग्रह चन्द्र है।
2. यदि कर्क लग्न में चन्द्रमा वृषभ का, शनि तुला में गुरु मकर में हो, तो जातक पूर्ण यशस्वी एवं चिरंजीवी होता है।
3. कर्क लग्न में यदि शुक्र केन्द्रवर्ती होकर गोपुरांश में हो, गुरु पारावतांश में होकर त्रिकोण में हो तो व्यक्ति चिरंजीवी होता है।
4. कर्क लग्न हो तथा सभी ग्रह कर्क से लेकर मकर राशि में क्रमशः उच्च या स्वगृही हों या कर्क में गुरु, चन्द्र; सिंह में सूर्य; कन्या में बुध; तुला में शनि; वृश्चिक, मकर में मंगल हो तो जातक ऋषि-मुनियों की तरह दीर्घजीवी यशस्वी एवं चिरंजीवी होता है।
5. कर्क लग्न में चन्द्रमा यदि कर्क, वृश्चिक या मीन राशि में हो तो जातक हृष्ट-पुष्ट शरीर वाला होता है।
6. कर्क लग्न में अष्टमेश शनि सातवें हो, चन्द्रमा पाप ग्रहों के साथ छठे या आठवें स्थान में हो तो ऐसा व्यक्ति 58 वर्ष की आयु में गुजर जाता है।
7. कर्क लग्न में शनि किसी भी अन्य ग्रह के साथ लग्नस्थ हो, चन्द्रमा आठवें या द्वादश स्थान में हो तो ऐसा जातक सैद्धान्तिक एवं विद्वान होता हुआ 52 वर्ष की आयु में गुजर जाता है।
8. कर्क लग्न में लग्नेश चन्द्रमा पाप ग्रहों के साथ अष्टम भाव में हो तथा अष्टमेश शनि पाप ग्रहों के साथ छठे स्थान में किसी भी शुभ ग्रह से दृष्ट न हो तो ऐसा जातक मात्र 45 वर्ष तक ही जी पाता है।
9. लग्न में शनि, मंगल हो; चन्द्रमा आठवें; गुरु छठे शुभ ग्रहों से दृष्ट न हो तो जातक 32 वर्ष की अल्पायु को प्राप्त करता है।
10. कर्क लग्न में द्वितीय या द्वादश भाव में पाप ग्रह हो, लग्नेश हो, लग्नेश चन्द्रमा निर्बल हो तथा लग्न, द्वितीय व द्वादश भाव शुभ ग्रहों से दृष्ट न हो तो जातक 32 वर्ष की अल्पायु को प्राप्त करता है।
कर्क लग्न के रोग योग
1. कर्क लग्न में सूर्य सातवें हो तो मनुष्य को नेत्र रोग होता है।
2. षष्टेश गुरु पाप ग्रहों से दृष्ट हो तो व्यक्ति जलस्राव से अंधा होता है।
3. चौथे भाव में पाप ग्रह हो तथा चतुर्थेश शुक्र पाप ग्रहों के मध्य हो तो जातक को हृदय रोग होता है।
4. चतुर्थेश शुक्र, अष्टमेश शनि के साथ अष्टम स्थान में हो तो जातक को हृदय रोग होता है।
5. चतुर्थेश शुक्र कन्या या सिंह राशि में हो, अस्त हो तो जातक को हृदय रोग होता है।
6. शनि तुला का चतुर्थ में हो तथा षष्टेश गुरु सूर्य के साथ पाप ग्रहों के मध्य हो तो जातक को हृदय रोग होता है।
7. चौथे एवं पांचवें भाव में पाप ग्रह हो तो व्यक्ति को हृदय रोग होता है।
8. तुला का शनि चौथे एवं कुंभ का सूर्य आठवें हो तो व्यक्ति को हृदय रोग होता है।
9. चतुर्थ स्थान में राहु अन्य पाप ग्रहों से दृष्ट हो तथा लग्नेश चंद्रमा हीनबली हो तो जातक को असह्य हृदयशूल (हार्ट-अटैक) होता है।
10. वृश्चिक का सूर्य दो पापग्रहों के मध्य हो तो जातक को तीव्र हृदयशूल (हार्ट-अटैक) होता है।
11. चंदमा, शुक्र, शनि की एक साथ युति दुःस्थानों में हो तो वाहन दुर्घटना से मृत्यु होती है।
12. लग्न में पापग्रह हो, लग्न का स्वामी चंद्रमा बलहीन हो तो व्यक्ति रोगी होता है।
13. क्षीण चन्द्रमा लग्न में हो, लग्न पर पाप ग्रह की दृष्टि हो तो व्यक्ति रोगी होता है।
14. अष्टमेश शनि लग्न में तथा लग्नेश चंद्रमा अष्टम में हो, लग्न पाप ग्रह से दृष्ट हो तो व्यक्ति दवाई लेने पर भी ठीक नहीं होता। सदैव रोगी बना रहता है।
15. कर्क लग्न के दूसरे स्थान में सिंह का सूर्य हो तथा चौथे एवं दसवें भाव में भी पाप ग्रह हो तो ऐसा व्यक्ति बहुत कष्ट से जीता है।
16. अष्टम या सप्तम स्थान में गुरु, राहु, मंगल, सूर्य हो तो ऐसा जातक बहुत कष्ट से जीता है। उसे कोई न कोई बीमारी लगी ही रहती है।
17. लग्नेश चंद्रमा एवं लग्न दोनों पाप ग्रहों के मध्य हों, सप्तम स्थान में भी पाप ग्रह हो, आत्मकारक सूर्य निर्बल हो तो ऐसा जातक जीवन से निराश होकर “आत्महत्या ” करता है।
18. कर्क (चर) लग्न में चंद्रमा पापग्रहों के साथ हो, सप्तम में शनि हो तो जातक देवता के शाप या शत्रुकृत अभिचार से पीड़ित रहता है।
19. कर्क लग्न में षष्टेश गुरु सप्तम या दशम भाव में हो, लग्न पर मंगल की दृष्टि हो तो जातक देवता के शाप या शत्रुकृत अभिचार से पीड़ित रहता है।
20. निर्बल चंद्रमा अष्टम स्थान में शनि के साथ हो तो जातक प्रेत बाधा अथवा शत्रुकृत अभिचार से पीड़ित रहता हुआ, अकाल मृत्यु को प्राप्त करता है।
कर्क लग्न के विवाह योग
1. सप्तमस्थ शनि चंद्रमा के साथ हो, लग्न में सूर्य हो तो ऐसे जातक के विवाह में भयंकर बाधा आती है। विलंब से विवाह तो निश्चित है, अविवाह की स्थिति भी बन सकती है।
2. यदि शनि व चंद्रमा एक दूसरे को परस्पर देख रहे हों तो विवाह विलंब से होता है।
3. शनि द्वादश या अष्टम में हो, सूर्य द्वितीय भाव में हो और लग्नेश चंद्रमा निर्बल हो तो जातक का विवाह नहीं होता।
4. शनि छठे और सूर्य अष्टम में हो तथा शुक्र भी बलहीन हो तो जातक का विवाह नहीं होता।
5. सूर्य, शनि और शुक्र की युति कहीं भी हो तो जातक का विवाह नहीं होता।
6. शुक्र लग्न या द्वितीय में हो तथा सूर्य या चंद्रमा शुक्र से द्वितीय या द्वादश स्थान में हो तो जातक का विवाह नहीं होता।
7. सप्तमेश शनि वक्री हो, सप्तम भाव में कोई वक्री ग्रह हो, या किसी वक्री ग्रह की सप्तम भाव पर दृष्टि हो तो जातक के विवाह में अनेक अवरोध आते हैं। विवाह समय पर नहीं होता।
8. चंद्रमा यदि चर राशि (मेष, कर्क, तुला, मकर) में हो, पाप ग्रह केंद्र में हो, शुभ ग्रह उन्हें न देखते हों तो ऐसी स्त्री विवाह के पूर्व अन्य पुरुषों से संसर्ग करती है।
9. राहु या केतु सप्तम भाव या नवम भाव में क्रूर ग्रहों से युक्त होकर बैठे हों तो निश्चय ही जातक का विवाह विलंब से होता है। ऐसा जातक प्राय: अंतर्जातीय विवाह करता है।
10. सप्तमस्थ मंगल पर शनि की दृष्टि हो तो जातक में कामवासना प्रबल होती है। यदि ऐसे मंगल के साथ राहु हो तो जातक अपने आश्रय में रहने वाली सेविका से यौन संबंध रखता है।
11. सप्तमेश शनि यदि चर राशि में हो तो स्त्री का पति परदेश में रहेगा। ऐसे में यदि सप्तम भाव में बुध व शनि हो तो स्त्री का पति नपुंसक होगा।
12. सातवें सूर्य हो, उस पर गुरु की दृष्टि हो तो ऐसी स्त्री रोग रहित, पुत्र-पौत्रों से युक्त, सुंदरियों में प्रधान, रानी के समान सुंदर, वैभव एवं ऐश्वर्य शालिनी होती है।
13. चंद्रमा यदि (1/4/6/8/10/12) राशि में हो तो ऐसी स्त्री अत्यंत कोमल व मृदु स्वभाव वाली होती है।
14. सप्तमेश शनि यदि चर राशि (1/4/7/10) में हो तो ऐसी स्त्री का पति निरंतर प्रवास में रहता है।
15. कर्क लग्न में उत्पन्न कन्याएं सुंदर होती हैं। यदि लग्न में चंद्रमा हो तो ऐसी स्त्री पति को प्रिय व प्राणवल्लभा होती है।
16. जिस स्त्री का जन्म कर्क लग्न में हो तथा सातवें भाव में चंद्रमा हो, अन्य तीन केंद्रों में कोई भी पाप ग्रह न हो तो ऐसी स्त्री रानी तुल्य ऐश्वर्य को भोगती है। उसके घर कार इत्यादि उच्च वाहन, नौकर-चाकर का सुख, पति का सुख उत्तम होता है।
17. चन्द्रमा हो साथ में अष्टमेश शनि भी हो तो ‘द्विभार्यायोग’ बनता है। ऐसा जातक दो नारियों के साथ रमण करता है।
18. सप्तमेश शनि द्वितीय या द्वादश में हो तो पूर्ण व्यभिचारी योग बनता है। ऐसा जातक जीवन में अनेक स्त्रियों के साथ संभोग करता है।
19. लग्न में सूर्य हो तथा सातवें स्थान में शनि हो तो ऐसे जातक का दांपत्य जीवन कलहपूर्ण रहता है। जीवन साथी से उसकी विचारधारा बिल्कुल नहीं मिलती। इसके विपरीत सूर्य सातवें एवं शनि लग्न में हो तो भी यही योग बनता है।
20. जिस महिला के लग्न में शनि बैठा हो वह एक नंबर की जिद्दी व हठी महिला होती है। ऐसी महिला प्रेम विवाह करती है तथा जात-पात की मर्यादा, कुल परंपरा एवं लोकलज्जा की परवाह नहीं करती।
21. सप्तमस्थ चंद्रमा शनि से दृष्ट हो तो ऐसी महिला अंतर्जातीय विवाह करती है पर उसके परिणाम सुखद नहीं होते।
22. कर्क लग्न में सप्तमेश शनि छठे, आठवें या बारहवें हो तथा षष्ठेश (गुरु) अष्टमेश (शनि) या द्वादशेश (बुद्ध) सातवें भाव में हो तो ऐसा जातक अविवाहित रहता है।
28. सूर्य द्वितीय भाव में शनि के साथ हो तो जातक का भाग्योदय विवाह के पश्चात् होता है तथा जातक को ससुराल की सारी सम्पत्ति मिलती है।
कर्क लग्न में संतान योग
1. पंचमेश मंगल यदि आठवें हो तो जातक के अत्यल्प संतति होती है।
2. पंचमेश मंगल अस्त हो या पाप पीड़ित होकर छठे, आठवें या बारहवें स्थान में हो तो जातक के पुत्र नहीं होता।
3. पंचमेश मंगल यदि कर्क, वृश्चिक या मीन राशि में हो जातक के पहली संतान कन्या ही होती है।
4. पंचमेश मंगल विषम राशि में हो तथा गुरु से युत या दृष्ट हो तो व्यक्ति की प्रथम संतान पुत्र ही होता है।
5. लग्न में मंगल हो, पंचमस्थ सूर्य हो तथा शनि आठवें स्थान में हो तो व्यक्ति की जवानी बीत जाने के बाद, बहुत प्रयत्न करने पर पुत्र प्राप्त होता है।
6. लग्न में शनि हो, गुरु आठवें एवं मंगल बारहवें स्थान में हो तो व्यक्ति की जवानी बीत जाने के बाद, बहुत प्रयत्न करने पर पुत्र प्राप्त होता है।
7. लग्न में पाप ग्रह हो, गुरु से पांचवें स्थान में भी पापग्रह हो, चंद्रमा ग्यारहवें वृष राशि का हो तो बहुत प्रयत्न करने पर जवानी बीत जाने के बाद व्यक्ति को पुत्र रत्न की प्राप्ति होती है।
8. मंगल पंचम भाव में वृश्चिक का हो तो जातक के तीन पुत्र होते हैं।
9. मंगल लग्न में तथा चंद्रमा पंचम भाव में परस्पर परिवर्तन करके बैठे हों तो जातक दूसरे की संतान गोद लेता है तथा उसे अपने लड़के की तरह पालकर, धन का स्वामी बनाता है।
10. पंचम भाव में राहु हो तथा राहु मंगल से दृष्ट हो तो जातक को पुत्र का सुख नहीं मिलता। इसके पुत्र उत्पन्न तो होता है पर कुछ कालांतर के बाद मृत्यु को प्राप्त हो जाता है।
11. पंचमेश मंगल पंचम, षष्ट या द्वादश स्थान में हो और पंचम भाव शुभ ग्रहों से दृष्ट न हो तो “अनपत्ययोग’ बनता है। ऐसे जातक को निर्बीज पृथ्वी की तरह पुत्र संतान उत्पन्न नहीं होती पर दोष निवृति के उपायों से शांति हो जाती है।
12. राहु, सूर्य एवं मंगल पंचम भाव में हों तो ऐसे जातक को शल्य चिकित्सा द्वारा कष्ट से पुत्र संतान की प्राप्ति होती है। आज की भाषा में ऐसे बालक को “सिजेरियन चाइल्ड ” कहते हैं।
13. पंचमेश मंगल कमजोर हो तथा राहु एकादश में हो तो जातक को वृद्धावस्था में संतान प्राप्त होती है।
14. राहु, केतु या शनि इत्यादि पाप ग्रह हों तो गर्भपात अवश्य होता है।
15. लग्नेश चंद्र द्वितीय स्थान में हो तथा पंचमेश मंगल पाप ग्रस्त या पाप पीड़ित हो तो जातक के पुत्र उत्पन्न होने के बाद नष्ट हो जाते हैं।
16. पंचम स्थान में मंगल, राहु हो तो वह मनुष्य संतान होते हुए भी संतान सुख प्राप्त नहीं कर पाता।
17. समराशि (2, 4, 6, 8, 10, 12) में गया हुआ बुध कन्या संतति की बाहुल्यता देता है। यदि चंद्रमा और शुक्र का भी पंचम भाव पर प्रभाव हो तो वह योग अधिक पुष्ट हो जाता है।
18. पंचमेश मंगल निर्बल हो, लग्नेश चंद्रमा भी निर्बल हो तथा पंचम भाव में राहु हो तो जातक को सर्पदोष के कारण पुत्र संतान नहीं होती।
19. पंचम भाव में राहु हो और एकादश स्थान में स्थित केतु के मध्य सारे ग्रह हों तो पद्म नामक “कालसर्पयोग” के कारण जातक के पुत्र संतान नहीं होती। ऐसे जातक को वंश वृद्धि की चिंता एवं मानसिक तनाव रहता है।
20. सूर्य अष्टम हो, पंचम भाव में शनि हो, पंचमेश राहु से युत हो तो जातक को पितृदोष होता है तथा पितृशाप के कारण पुत्र संतान नहीं होती।
21. लग्न में मंगल, अष्टम में शनि, पंचम में सूर्य एवं बारहवें स्थान में राहु या केतु हो तो ” वंशविच्छेद योग” बनता है। ऐसे जातक के स्वयं का वंश समाप्त हो जाता है, आगे पीढ़ियां नहीं चलतीं।
22. चतुर्थ भाव में पाप ग्रह हो तथा चंद्रमा जहां बैठा हो उससे आठवें स्थान में पाप ग्रह हो तो ” वंशविच्छेद योग बनता है। ऐसे जातक के स्वयं का वंश समाप्त हो जाता है, उसके आगे पीढ़ियां नहीं चलतीं।
23. तीन केन्द्रों में पाप ग्रह हो तो व्यक्ति को “इलाख्य नामक” सर्पयोग बनता है। इस दोष के कारण जातक को पुत्र संतान का सुख नहीं मिलता।
24. कर्क लग्न में पंचमेश पंचम, पष्ट या द्वादश भाव में हो तथा पंचम भाव शुभ ग्रहों से दृष्ट न हो तो ” अनपत्ययोग ” बनता है ऐसे जातक को निर्बीज पृथ्वी की तरह संतान उत्पन्न नहीं होती पर उपाय से दोष शांत हो जाता है।
25. जिस स्त्री की जन्म कुंडली में सूर्य लग्न में और शनि यदि सातवें हो, अथवा सूर्य-शनि की युति सातवें हो तथा दशम भाव पर गुरु की दृष्टि हो तो “अनगर्भायोग” बनता है ऐसी स्त्री गर्भधारण योग्य नहीं होती।
26. जिस स्त्री की जन्म कुंडली में शनि-मंगल छठे या चौथे स्थान में हो तो “अनगर्भायोग” बनता है। ऐसी स्त्री गर्भधारण करने योग्य नहीं होती।
27. शुभ ग्रहों के साथ सूर्य, चंद्रमा यदि पंचम स्थान में हों तो “कुलवर्द्धन योग ” बनता है। ऐसी स्त्री दीर्घजीवी, धनी एवं ऐश्वर्यशाली संतानों को उत्पन्न करती है।
28. पंचमेश मिथुन या कन्या राशि में बुध से युत हो, पंचमेश और पंचम भाव पर पुरुष ग्रहों की दृष्टि न हो तो जातक को ” केवल कन्या योग” होता है। पुत्र संतान नहीं होती।
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