कर्क लग्न में शनि का फलादेश
कर्क लग्न में सातवें एवं आठवें घर का स्वामी होने से शनि मारक है। शनि की दृष्टि में विष, भय एवं अलगाववाद की मनोवृत्ति है।
कर्क लग्न में शनि का फलादेश प्रथम भाव में
यहां पर जलराशि में बैठकर शनि तीसरे, सातवें एवं दसवें स्थान को पूर्ण दृष्टि से देखेगा।
व्यवहार ये लोग कुछ मधुरभाषी होते हैं। ऐसे जातक अन्तकरण में ईर्ष्यालु स्वभाव के होते हैं तथा अपने से बड़े या वरिष्ठ अधिकारी से झगड़े कर उन्नति प्राप्त करते हैं। यद्यपि इनका स्वभाव अच्छा होता है पर इनमें स्वार्थी प्रवृत्ति कुछ विशेष होती है।
ऐसे जातक के जीवन में भाग्योदय का अवसर 26 वें वर्ष में या 36 वें वर्ष के मध्य होता है तथा आयु के 25 वें एवं 31 वें वर्ष आर्थिक विषमता, नुकसान व संघर्ष के भय होते हैं।
रोग – इनको सर्दी-जुकाम, खांसी व दमे की शिकायत रहती है।
शनि का अन्य ग्रहों से सम्बन्ध
कर्क लग्नस्थ शनि की दृष्टि जिन-जिन स्थानों पर है, उन उन स्थानों में सूर्य या राहु में से कोई भी ग्रह वहां बैठा हो तो जातक को उस भाव के शुभ फल से वंचित कर देगा, अर्थात् यदि तीसरे भाव में राहु या सूर्य हो तो जातक को भाई का सुख प्राप्त नहीं होगा।
यदि सातवें स्थान में राहु या सूर्य हो तो जातक को जीवनसाथी का सुख नहीं मिलेगा। यदि दसवें स्थान में राहु या सूर्य हो तो जातक को पिता का सुख राज्य का सुख नहीं मिलेगा।
कर्क लग्न में शनि का फलादेश द्वितीय भाव में
कर्क लग्न में द्वितीयस्थ शनि सिंह राशि में शत्रुक्षेत्री होगा। सातवें भाव से आठवें एवं आठवें भाव से सातवें स्थान पर रहकर शनि चौथे आठवें एवं ग्यारहवें भाव को पूर्ण दृष्टि में देखेगा।
यह शनि कुटुम्ब सुख में न्यूनता देता है। जातक के कुटुम्बीगण जातक के शुभचिन्तक नहीं होंगे। जातक को नेत्र पीड़ा, दांत की पीड़ा एवं धनी की कमी मध्यम आयु तक होती है तथा उसकी भाषा ओछी होती है।
सप्तमेश होकर सातवें भाव से आठवें होने के कारण पत्नी से विचारों में मतऐक्यता नहीं रहेगी।
जातक की माता बीमार रहेगी। जातक का बड़े भाई से सम्बन्ध अच्छा नहीं रहेगा। भागीदार से सम्बन्ध तनाव पूर्ण रहेंगे। शनि जातक को आकस्मिक धन भी देता है।
दशा – शनि की दशा मारक होगी।
शनि का अन्य ग्रहों से सम्बन्ध
1. शनि + सूर्य – शनि के साथ सूर्य हो तो ‘कलत्रमूल धनयोग’ बनेगा। जातक का ससुराल धनवान होगा। जातक को पत्नी एवं ससुराल की सम्पत्ति मिलेगी। जातक का भाग्योदय विवाह के बाद होता है।
2. शनि + चन्द्र – लग्नेश व सप्तमेश अष्टमेश की युति धन स्थान में विवाह के बाद जातक की उन्नति होने का संकेत देती है।
3. शनि + मंगल – पंचमेश-दसमेश की युति सप्तमेश-अष्टमेश के साथ धन स्थान में धनार्जन में सहायक है। जातक विवाह के बाद धनी एवं प्रथम पुत्र संतति के बाद महाधनी होगा।
4. शनि + बुध – तृतीयेश-खर्चेश बुध की युति सप्तमेश-अष्टमेश शनि के साथ धन स्थान में धन की अपव्यय कराएगी।
5. शनि + गुरु – षष्टेश-भाग्येश गुरु की युति सप्तमेश-अष्टमेश शनि के साथ धन स्थान में होने से विवाह के बाद जातक का भाग्योदय कराएगी।
6. शनि + शुक्र – लाभेश-सुखेश शुक्र की युति सप्तमेश अष्टमेश शनि के साथ धन स्थान में होने से जातक का धन वाहन इत्यादि के रख-रखाव में खर्च कराएगी।
7. शनि + राहु – शनि के साथ राहु धनहानि कराता है तथा धन का संग्रह नहीं होने देता।
8. शनि + केतु – शनि के साथ केतु धन की बरकत में बाधक है।
द्वितीय भाव के शनि का उपचार
- नवरत्न जडित ‘श्रीयंत्र’ का लॉकेट पहनने से आर्थिक विषमताएं दूर होंगी।
- दाम्पत्य सुख हेतु शनि भार्या स्तोत्र का पाठ करें।
कर्क लग्न में शनि का फलादेश तृतीय भाव में
कर्क लग्न में तीसरे स्थान पर कन्या का शनि मित्रक्षेत्री होगा। यह शनि सातवें भाव से सातवें और आठवें भाव से आठवें स्थान पर बैठकर पंचम भाव, नवमभाव और 12 द्वादश भाव पर दृष्टि डालेगा।
यह शनि वैवाहिक सुख तो उत्तम देगा पर शयन सुख में बाधक का कार्य करेगा। जातक को सभी प्रकार की भौतिक सुख-सुविधा, उत्तम होते हुए भी उसका पूरा आनंद नहीं मिलेगा।
जातक की आयु लम्बी होगी पर वृद्धावस्था अच्छी नहीं होगी। जातक डरपोक स्वभाव का होगा तथा छोटे भाई-बहनों से अच्छे सम्बन्ध नहीं रख पाएगा। जातक के अध्ययन में बाधा आकर पढ़ाई अधूरी छूट जाएगी।
सन्तान प्राप्ति में तकलीफ होगी। जातक अंधविश्वास का विरोधी होगा।
जातक व्यर्थ की चिन्ताएं अधिक करेगा। जिससे नींद कम आएगी।
दशा – शनि की दशा मिश्रित फल देगी। ऐसा मीठा फल जिसका अन्त कड़वा होगा।
शनि का अन्य ग्रहों से सम्बन्ध
1. शनि + सूर्य – यदि शनि के साथ सूर्य हो तो जातक का बड़ा भाई गुजर जाएगा एवं जातक स्वयं परिवार का मुखिया बन जाएगा।
2. शनि + चन्द्र – लग्नेश चंद्रमा सप्तमेश के साथ तृतीय स्थान में होने से जातक का पराक्रम विवाह के बाद बढ़ेगा।
3. शनि + मंगल – पंचमेश-दशमेश मंगल के साथ शनि होने से जातक को भाइयों से लाभ रहेगा परन्तु मित्रों से अधिक लाभ रहेगा।
4. शनि + बुध – शनि के साथ बुध हो तो जातक छोटे भाई-बहनों की सहायता करेगा तथा अनजान व्यक्ति की सहायता भी करेगा।
5. शनि + गुरु – भाग्येश-षष्टेश गुरु शनि के साथ तृतीय स्थान में होने से विवाह के बाद जातक का भाग्योदय होगा।
6. यदि शनि के साथ और कोई पाप ग्रह हो तो जातक ‘भातृद्वेषी’ होगा।
कर्क लग्न में शनि का फलादेश चतुर्थ भाव में
कर्क लग्न में चतुर्थ भाव में स्थित शनि उच्च का होगा। जातक को मकान वाहन का सुख उत्तम होगा। जातक पर कर्जा नहीं होगा। जातक के शत्रु स्वतः ही नष्ट होते रहेंगे।
शशयोग – शनि केन्द्र में उच्च का होने के कारण ‘शशयोग’ बनता है जो पंच महापुरुष योगों में से एक उत्तम योग है। सप्तमेश उच्च का होने से जातक का जीवनसाथी उच्च कुटुम्ब परिवार से होगा। जातक का गृहस्थ जीवन सुखी होगा। विवाह के बाद जातक का भाग्योदय होगा।
जातक नौकर-चाकर, बंगला गाड़ी ऐश-आराम में परिपूर्ण जीवन जीएगा।
जातक व्यापार के माध्यम से खूब रुपया कमाएगा। जातक विदेश जाएगा तो खूब रुपया कमाएगा। एक्सपोर्ट-इम्पोर्ट व हैण्डीक्राफ्ट के धंधे में जातक को लाभ होता है।
दशा – शनि की दशा शुभ फल देगी।
शनि का अन्य ग्रहों से सम्बन्ध
1. शनि + सूर्य – शनि के साथ यदि सूर्य हो तो ‘नीचभंग राजयोग’ बनता है। जातक राजा के समान पराक्रमी होगा। जातक को ससुराल की सम्पत्ति विरासत में मिलेगी।
2. शनि + चन्द्र – लग्नेश चन्द्रमा केन्द्र में शनि के साथ होने से जातक को माता की सम्पत्ति मिलेगी। जातक का निजी भवन, निजी वाहन उत्तम श्रेणी का होगा।
3. शनि + मंगल – शनि के साथ मंगल होने से जातक बड़ी भू-सम्पत्ति का स्वामी होगा। जातक का ससुराल धनी व प्रतिष्ठित होगा।
4. शनि + बुध – शनि के साथ बुध होने से जातक पराक्रमी तथा कुल का दीपक होगा। अपने कुटुम्ब परिवार का नाम रोशन करेगा।
5. शनि + गुरु – शनि के साथ भाग्येश गुरु होने से ‘केसरी योग’, ‘कुलदीपक योग’ बनेगा। ऐसा जातक परिवार का प्रेमी व अतिभाग्यशाली होगा।
6. शनि + शुक्र – शनि के साथ यदि शुक्र हो तो ‘किम्बहुना योग’ बनता है जातक राजा के समान पराक्रमी एवं यशस्वी होगा।
7. शनि + राहु – शनि के साथ राहु ‘मान्दी योग’ बनाएगा। जातक को माता का सुख नहीं मिलेगा। वाहन से दुर्घटना होगी।
चतुर्थ भाव के शनि का उपचार
- शनि चालीसा एवं नवग्रह स्तोत्र पढ़ें।
- नीलम 5.25 कैरट का धारण करें।
कर्क लग्न में शनि का फलादेश पंचम भाव में
कर्क लग्न में शनि पंचम भाव में वृश्चिक राशि का शत्रुक्षेत्री है। परन्तु सप्तमेश होकर पंचम भाव में बैठ कर अपने घर (सप्तम भाव) पर पूर्ण दृष्टि होने के कारण जातक को जीवनसाथी शक्तिशाली व धनाढ्य मिलेगा। ससुराल से आर्थिक लाभ एवं ससुराल पक्ष सदैव मददगार रहेगा।
जातक का विवाह देरी से होगा। जीवनसाथी से खटपट रहेगी । सन्तान सम्बन्धी कोई न कोई चिन्ता जातक को जीवन में लगी रहेगी।
जातक को व्यापार में लाभ होगा परन्तु उधार दिए गए रुपयों का डूबने का अन्देशा बराबर लगा रहेगा।
जातक के स्वयं के विद्याध्ययन में बाधा आएगी।
दशा – शनि दशा सामान्य रहेगी। सावधानी रखने योग्य है।
शनि का अन्य ग्रहों से सम्बन्ध
1. शनि + सूर्य – धनेश सूर्य की सप्तमेश शनि के साथ युति होने से जातक को ससुराल की सम्पत्ति मिलेगी पर विवाद रहेगा क्योंकि शनि अष्टमेश है।
2. शनि + चन्द्र – लग्नेश चन्द्र की सप्तमेश शनि के साथ पंचम में युति होने से जातक स्वपराक्रम से आगे बढ़ेगा तथा सफलता प्राप्त करेगा।
3. शनि + मंगल – पंचमेश राज्येश मंगल स्वगृही होकर शनि के साथ होने से जातक को तीन पुत्र देगा। पुत्र जन्म के बाद जातक का भाग्योदय होगा।
4. शनि + बुध – तृतीयेश खर्चेश बुध शनि के साथ होने से जातक के विद्याध्ययन में संघर्ष रहेगा। संतति पर रुपया खर्च होता रहेगा।
5. शनि + गुरु – भाग्येश-षष्टेश गुरु पंचम भाव में शनि के साथ होने से विद्या द्वारा भाग्योदय, पुत्र संतति द्वारा जातक का भाग्योदय होगा।
6. शनि + शुक्र – सुखेश-लाभेश शुक्र, शनि के साथ पंचम स्थान में होने से जातक को गुप्त व्यापार समझौता से लाभ होगा।
7. शनि + राहु – शनि के साथ राहु होने से विद्या में बाधा व रुकावट रहेगी। संतान अवज्ञाकारक होगी।
8. शनि + केतु – शनि के साथ केतु होने से जातक के पुत्र आवारा होंगे।
पंचम भाव के शनि का उपचार
- संतान गोपाल का पाठ करें।
कर्क लग्न में शनि का फलादेश षष्टम भाव में
कर्क लग्न में शनि के छठे धनु राशि में बैठकर आयु भाव को देखने से जातक की आयु लम्बी होगी। छठे भाव में स्थित शनि शत्रुओं का नाश करने में पूर्णतः सक्षम है। धन के मामले में जातक व्यावहारिक होगा। जातक पर कर्जा नहीं होगा। शनि स्वगृहाभिलाषी होने में जातक महत्वाकांक्षी होगा। जातक के छोटे भाई से सम्बन्ध मधुर नहीं होंगे।
जातक कानून का जानकार, धर्म-अध्यात्म, ज्योतिष एवं मन्त्र-तन्त्र विद्या में रुचि रखने वाला होगा। शनि की द्वादश भाव दृष्टि होने के कारण जातक फिजूल खर्च होगा। जातक विकलांग हो सकता है।
कलत्रहीन योग – सप्तमेश के छठे जाने से एवं शनि सातवें भाव से बारहवें स्थान पर स्थित होने के कारण यह योग पुष्ट होता है। प्रथमतः तो जातक की सगाई, विवाह में विघ्न आएगा, विलम्ब हो या न हो, यदि देवकृपा से विवाह हो जाए तो पत्नी का पूर्ण सुख प्राप्त नहीं होगा। पत्नी घर से भाग जाएगी, तलाक हो जाए या पत्नी की मृत्यु पहले हो जाएगी।
दशा – शनि की दशा अशुभ फल देगी, सावधानी रखें एवं उपाय करें।
शनि का अन्य ग्रहों से सम्बन्ध
1. शनि + सूर्य – धनेश सूर्य शनि के साथ छठे होने पर ‘धनहीन योग बनता है। गुप्त समझौतों से धोखा मिलेगा।
2. शनि + चन्द्र – लग्नेश चन्द्रमा शनि के साथ छठे होने से ‘लग्नभंग योग’ बनेगा। जातक को परिश्रम का लाभ नहीं मिलेगा। जातक निराशावादी होगा।
3. शनि + मंगल – पंचमेश-दशमेश मंगल शनि के साथ छठे होने से संतान एवं विद्या पक्ष में बाधा आएगी। गुप्त समझौते भंग होंगे।
4. शनि + बुध – पराक्रमेश-खर्चेश बुध छठे स्थान में शनि के साथ होने से पराक्रम भंग होगा। जातक बदनाम होगा।
5. शनि + गुरु – भाग्येश-षष्टेश गुरु शनि के साथ छठे होने से ‘भाग्यभंग योग’ बनेगा। भाग्योदय में बाधा आएगी।
6. शनि + शुक्र – सुखेश-लाभेश शुक्र छठे होने से सुखभंग योग बनेगा। सुख प्राप्ति में निरन्तर बाधा, व्यापार में बाधा आएगी।
7. शनि + राहु – शनि के साथ राहु पत्नी सुख में बाधक है। जातक के जीवनसाथी की मृत्यु पहले होगी।
8. शनि + केतु – शनि के साथ केतु पत्नी को असाध्य बीमारी देगा।
षष्टम भाव के शनि का उपचार
- शनिकवच, महाकाल शनि मृत्युंजय स्तोत्र का नित्य पाठ करें।
- बजरंग बाण का पाठ करें।
कर्क लग्न में शनि का फलादेश सप्तम भाव में
कर्क लग्न में शनि सातवें स्थान में होने से स्वगृही होगा तथा चतुर्थ स्थान, लग्न स्थान एवं भाग्यस्थान पूर्ण दृष्टि से देखेगा। जातक अत्यन्त धनी राज्याधिकारी एवं शक्तिशाली होगा। जातक दीर्घायु वाला एवं ईर्ष्यालु एवं प्रतिक्रियावादी होता है। जातक उच्च कोटि का समाज सेवी होगा।
शशयोग – शनि केन्द्र में स्वगृही होने से यह योग बना है। यह पंच महापुरुष योगों में उत्तम योग है। जातक को सभी प्रकार की भौतिक सुख-सुविधाएं उपलब्ध रहती हैं। वह बड़ी भू-सम्पत्ति का स्वामी होता है। वाहन सुख उत्तम पर वाहन पुराना होगा।
जातक का भाग्योदय विवाह के बाद होगा। जातक दिखने में ज्यादा सुन्दर नहीं होगा। कुछ श्यामल छाया जातक के शरीर पर होगी। जातक को पिता की सम्पत्ति नहीं निलेगी। ऐसा जातक अन्य जाति की कन्या से विवाह करता है।
दशा – शनि दशा ठीक जाएगी पर उसमें सूर्य या शुक्र का अन्तर मारक होगा।
शनि का अन्य ग्रहों से सम्बन्ध
1. शनि + सूर्य – धनेश सूर्य शनि के साथ होने से पत्नी व ससुराल से निश्चय धन मिलेगा।
2. शनि + चन्द्र – शनि के साथ यदि चन्द्रमा हो तो ‘लग्नाधिपति योग’ बनता है।
3. शनि + मंगल – शनि के साथ यदि मंगल हो तो ‘किम्बहुना योग बनता है। ऐसा जातक साक्षात राजा तुल्य ऐश्वर्यशाली होता है पर अत्यन्त कामी होता है।
4. शनि + बुध – खर्चेश-पराक्रमेश बुध शनि के साथ सप्तम में होने से जातक की पत्नी बुद्धिमान एवं पराक्रमी होगी।
5. शनि + गुरु – शनि के साथ यदि गुरु हो तो ‘नीचभंग राजयोग’ बनता है।
6. शनि + शुक्र – शनि के साथ शुक्र हो तो जातक अत्यन्त कामी होता है।
7. शनि + राहु – शनि के साथ राहु गृहस्थ सुख में बाधक है।
8. शनि + केतु – शनि के साथ यदि केतु हो तो जातक पराई स्त्रियों के साथ सम्भोग करेगा।

कर्क लग्न में शनि का फलादेश अष्टम भाव में
कर्क लग्न में अष्टमस्थ शनि कुम्भ राशि में अपनी मूल त्रिकोण राशि में होगा। आठवें स्थान पर बैठकर इसकी दृष्टि धन स्थान, पंचम स्थान एवं दशम स्थान पर होगी। यह शनि जातक को दीर्घायु देता है, साथ ही जातक पुरानी वस्तुओं का खरीददार व शौकीन होता है। ऐसे जातक को हैंडीक्राफ्ट तथा आयात-निर्यात के धंधे में लाभ होता देखा गया है।
द्वितीय स्थान पर शनि की दृष्टि होने के कारण जातक को नेत्र रोग, दन्त रोग एवं कौटुम्बिक अशांति का सामना करना पड़ेगा।
जातक के अपने पिता के साथ सम्बन्ध ठीक नहीं होंगे। जातक की एक दो सन्तान नष्ट होंगी। जातक में किसी भी प्रकरण के बारे तत्काल निर्णय लेने की शक्ति नहीं होंगी। जातक कुटुम्बीजनों से भयभीत रहेगा।
विद्याभंग योग – शनि की दृष्टि पंचम भाव पर होने के कारण विद्या में बाधा आएगी। सन्तान सम्बन्धी चिन्ता भी रहेगी।
कलत्रहीन योग – सातवें स्थान का स्वामी होकर शनि के आठवें जाने से यह योग बना। शनि सातवें भाव में दूसरे स्थान पर होने के कारण जातक का वैवाहिक जीवन तो सुखी रहेगा पर पत्नी वृद्धावस्था में साथ छोड़ देगी। पत्नी की मृत्यु जातक से पहले होगी।
शनि का अन्य ग्रहों से सम्बन्ध
1. शनि + सूर्य – शनि के साथ सूर्य ‘धनहीन योग’ बनाएगा। फलतः आर्थिक परेशानी जातक का पीछा नहीं छोड़ेगी।
2. शनि + चन्द्र – शनि के साथ चन्द्रमा ‘लग्नभंग योग’ भी बनाएगा। फलत: जातक को परिश्रम का फल नहीं मिलेगा।
3. शनि + मंगल – शनि मंगल की युति से ‘नीचभंग राजयोग’ बनेगा। जातक राजा के समान पराक्रमी एवं वैभवशाली होगा।
4. शनि + बुध – शनि के साथ बुध होने से ‘विपरीत राजयोग’ बना। जातक धनवान होगा पर उसका पराक्रम भंग जरुर होगा। जातक बदनाम होगा।
5. शनि + गुरु – शनि के साथ गुरु होने से ‘भाग्यभंग योग’ एवं ‘विपरीत राजयोग’ दोनो बने। ऐसा जातक धनवान होगा परन्तु अचानक भाग्योदय में बाधा आएगी।
6. शनि + शुक्र – शनि के साथ शुक्र होने से ‘सुखहीन योग’ एवं ‘लाभभंग योग’ बनेंगे। जातक के जीवन में अनेक कष्ट आएंगे।
7. शनि + राहु – शनि के साथ राहु अचानक दुर्घटना कराता है।
8. शनि + केतु – जातक के पैरों में कष्ट पहुंचेगा।
अष्टम भाव के शनि का उपचार
- दशरथकृत शनि स्तोत्र पढ़ें।
कर्क लग्न में शनि का फलादेश नवम भाव में
कर्क लग्न में शनि मीन राशि का होकर नवम भाव में बैठने पर तृतीय स्थान, षष्टम स्थान एवं एकादश स्थान पर दृष्टि डालेगा।
सप्तमेश होकर शनि भाग्य स्थान में होने से जातक का वैवाहिक जीवन सुखी होगा। उसकी आयु लम्बी होगी एवं जातक को ससुराल पक्ष से समय-समय पर आर्थिक लाभ होता रहेगा।
नवम भाव में स्थित शनि पिता के लिए ठीक नहीं है। जातक अपने पिता से अधिक कमाएगा तथा धर्म, समाज व परोपकार हेतु अधिक धन खर्च करेगा। जातक की नौकरी अच्छी होगी।
शनि की एकादश भाव पर दृष्टि होने से जातक का लाभ प्राप्ति थोड़ी देरी में होगी। परिश्रम का लाभ मिलेगा जरूर पर देरी से।
शनि का अन्य ग्रहों से सम्बन्ध
1. शनि + सूर्य – शनि के साथ सूर्य जातक को पराक्रमी बनाएगा, परन्तु जातक का सही पराक्रम पिता की मृत्यु के बाद उदय होगा।
2. शनि + चन्द्र – शनि के साथ लग्नेश चन्द्रमा भाग्य स्थान में जातक को जलीय पदार्थों से लाभ दिलायेगा।
3. शनि + मंगल – शनि के साथ मंगल हो तो ‘राजयोग’ बनेगा।
4. शनि + बुध – शनि के साथ तृतीयेश खर्चेश बुध नीच का होगा। ऐसे जातक की बुद्धि ऐन समय पर कुण्ठित हो जाती है।
5. शनि + गुरु – यदि गुरु यहां सप्तम या अष्टम भाव में हो तो शनि के घर में होगा एवं शनि गुरु के घर में होगा। इस परस्पर परिवर्तन के कारण शनि जिस स्थान में बैठा है वहां के फल को पुष्ट करेगा, उस स्थान की वृद्धि करेगा पर गुरु उस स्थान को कमजोर करेगा।
6. शनि + शुक्र – शनि के साथ साथ सुखेश लाभेश शुक्र उच्च का होगा। फलत: जातक के भाग्योदय विवाह के बाद या माता की मृत्यु के बाद होगा।
7. शनि + राहु – शनि के सफा राहु संघर्ष के साथ भाग्योदय करायेगा ।
8. शनि + केतु – शनि के साथ केतु भाग्य में उतार-चढ़ाव लाता रहेगा।
कर्क लग्न में शनि का फलादेश दशम भाव में
कर्क लग्न में मेष का शनि दशम भाव में नीच का होगा। इस शनि की दृष्टि द्वादश स्थान, चतुर्थ स्थान एवं सप्तम स्थान पर है। ऐसा जातक अच्छा कमाता है एवं राजदरबार से, सरकारी क्षेत्र से उसे समय-समय पर सहयोग मिलता रहता है।
सप्तमेश शनि केन्द्र में होने एवं सप्तम भाव पर पूर्ण दृष्टि होने से जातक का वैवाहिक जीवन सुखी परन्तु पत्नी व ससुराल पक्ष जातक के अपेक्षा स्तर में निम्न होंगे। विवाह देर से होगा।
अष्टमेश होकर शनि दसवें भाव से होने में जातक को कमाने के लिए खूब मेहनत करनी पड़ेगी। शनि की दृष्टि बारहवें भाव पर होने के कारण जातक बेकार बहुत खर्चे होंगे। यात्राओं एवं परदेश गमन पर रुपया खर्च होगा।
शनि की चौथे भाव पर दृष्टि है जो कि उसकी उच्च राशि है। ऐसे जातक को मातृ-सुख उत्तम प्राप्त होता है एवं रहने का मकान उत्तम एवं वाहन सुख भी उत्तम होता है।
शनि का अन्य ग्रहों से संबंध
1. शनि + सूर्य – शनि के साथ सूर्य यहां ‘नीचभंग राजयोग’ बनाएगा। जातक महाधनी होगा। पिता की मृत्यु के जातक की बाद किस्मत चमकेगी।
2. शनि + चन्द्र – शनि के साथ चन्द्रमा ‘विष योग’ बनाएगा। नौकरी में बाधा पर बहुधंधी व्यापार में लाभ होगा।
3. शनि + मंगल – शनि के साथ यदि मंगल हो तो ‘नीचभंग राजयोग’ बनता है।
4. शनि + बुध – शनि के साथ जातक को पराक्रमी बनाएगा पर सगे भाई-बहनों से कम पटेगी।
5. शनि + गुरु – शनि के साथ गुरु जातक को भाग्यशाली बनाएगा पर उसका भाग्योदय धीमी गति से होगा। जातक राजनीति में विशेष दक्ष होगा।
6. शनि + शुक्र – शनि के साथ सुखेश लाभेश शुक्र जातक को व्यापार में उन्नति रहेगा।
7. शनि + राहु – शनि के साथ राहु व्यापार में बाधक है।
8. शनि + केतु – शनि के साथ केतु थोड़ी तकलीफ के साथ व्यापार को शुरू करायेगा।
9. यदि मंगल यहां मकर राशि में हो तो सप्तमेश व दशमेश मंगल शनि में परस्पर परिवर्तन योग बनने से इस कारण पद्मसिंहासन योग भी बनता है।
कर्क लग्न में शनि का फलादेश एकादश भाव में
कर्क लग्न में शनि एकादश भाव में वृष राशि गत | होकर मित्रक्षेत्री होगा। जहां पर बैठ कर शनि लग्न स्थान पंचम स्थान एवं अष्टम स्थान को पूर्ण दृष्टि से देखेगा। शनि की यह स्थिति पूर्णतः लाभदायक है।
जातक को बड़े भाई-बहनों, भागीदारों एवं मित्रों से आर्थिक लाभ मिलता रहेगा। सप्तमेश लाभ स्थान में होने से एवं सप्तम भाव से शनि पंचम स्थान पर होने से जातक का वैवाहिक जीवन सुखमय रहेगा।
अष्टमेश शनि एकादश भाव में जाकर अष्टम स्थान को पूर्ण दृष्टि से देखने के कारण जातक की आयु लम्बी होगी।
शनि की लग्न भाव पर दृष्टि होने के कारण जातक का चिन्तन प्रायः नकारात्मक होगा। जातक को छोटी-मोटी बीमारियां लगी रहेंगी।
शनि की दृष्टि पंचम स्थान पर होने के कारण जातक की प्रथम सन्तति विलम्ब से होगी। सन्तान संबंधी कोई न कोई चिन्ता जातक को लगी रहेगी।
गडा धन मिलेगा – लाभ स्थान में बैठकर शनि की दृष्टि अष्टम भाव पर होने से जातक को जमीन में गड़ा खजाना, गुप्त धन मिलेगा या आकस्मिक धन लाभ होगा।
शनि का अन्य ग्रहों से सम्बन्ध
1. शनि + सूर्य – शनि के साथ सूर्य विवाह से धन दिलाएगा।
2. शनि + चन्द्र – शनि के साथ चन्द्रमा प्रयत्न से लाभ दिलाएगा। जातक थोड़ा उदासीन स्वभाव का होगा।
3. शनि + मंगल – शनि के साथ मंगल प्रथम पुत्रोत्पत्ति के बाद भाग्योदय कराता है।
4. शनि + बुध – शनि के साथ बुध जातक को पराक्रमी एवं यात्रा प्रेमी बनाएगा ।
5. शनि + गुरु – शनि के साथ गुरु जातक को भाग्यशाली बनेगा पर विवाह के बाद।
6. शनि + शुक्र – शनि के साथ सुखेश लाभेश शुक्र स्वगृही होने से जातक उद्योगपति होगा।
7. शनि + राहु – शनि के साथ राहु एक बार चलते उद्योग को रोकेगा।
8. शनि + केतु – शनि के साथ केतु व्यापार-उद्योग में उतार-चढ़ाव लायेगा ।
कर्क लग्न में शनि का फलादेश द्वादश भाव में
कर्क लग्न में शनि द्वादश स्थान में मिथुन राशि का मित्र के घर में होगा। वहां बैठकर धन स्थान, षष्टम् स्थान एवं भाग्य स्थान को पूर्ण दृष्टि से देखेगा। जातक ज्योतिष, तन्त्र-मन्त्र, गुप्त विद्याओं का जानकार होगा। जातक की स्त्री की सेहत खराब होगी।
शनि की नवम भाव पर दृष्टि पिता के लिए ठीक नहीं होगी। जातक परदेश में रहेगा या परदेशी के साथ धंधा करेगा।
दुर्घटना भय – अष्टमेश शनि बारहवें जाने से जातक को अकस्मात् दुर्घटना का भय रहेगा।
कोर्ट-कचहरी के चक्कर – अष्टमेश शनि की दृष्टि छठे स्थान पर होने के कारण रोग व शत्रु पर विजय मिलेंगी पर जातक को कोर्ट-कचहरी के चक्कर लगाने होंगे। यदि शनि पर शुभ ग्रहों की दृष्टि न हो तो जातक को जेल भी जाना पड़ सकता है।
कलत्रहीन योग – सप्तमेश होकर बारहवें जाने से एवं सप्तम भाव में शनि छठे स्थान पर होने से जातक का वैवाहिक जीवन सुखमय नहीं होगा। अंतर्जातीय विवाह या कुछ विचित्रता बनी रहेगी।
निशानी – जातक सदैव चिन्ताग्रस्त रहेगा।
दशा – शनि की महादशा, अंतर्दशा कष्टप्रद होगी।
शनि का अन्य ग्रहों से सम्बन्ध
1. शनि + सूर्य – शनि के साथ सूर्य जातक को एक आंख से काना बना देगा तथा नेत्र पीड़ा देगा। धनहीन योग के कारण आर्थिक विषमता रहेगी।
2. शनि + चन्द्र – जातक को परिश्रम का फल नहीं मिलेगा। बाईं आंख नष्ट होगी।
3. शनि + मंगल – जातक की संतान कपूत होगी तथा वह उसकी आज्ञा में नहीं रहेगी।
4. शनि + बुध – जातक का पराक्रम भंग होगा। कुटुम्ब से अपयश मिलेगा।
5. शनि + गुरु – जातक का भाग्य विलम्ब से उदय होगा। जातक गुप्त रोगों का शिकार होगा।
6. शनि + शुक्र – शनि के साथ सुखेश-लाभेश शुक्र चलते व्यापार में रुकावट तथा नुकसान करायेगा।
7. शनि + राहु – शनि के साथ राहु भ्रमण करायेगा। यात्रा में चोरी होगी।
8. शनि + केतु – शनि के साथ केतु परोपकार एवं शुभकार्यों में धन का अपव्यय करायेगा ।
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