कर्क लग्न में सूर्य का फलादेश
कर्क लग्न में सूर्य का फलादेश प्रथम भाव में
कर्क लग्न में सूर्य धनेश होगा। धनेश का स्वगृहाभिलाषी होकर लग्न में बैठना अत्यन्त शुभ है। ऐसा जातक अपने स्वयं के पराक्रम व पुरुषार्थ से अच्छा रुपया कमाता है। ऐसा जातक सूर्य के समान तेजस्वी व यशस्वी होता है। रंग गोरा एवं चेहरा चमकदार व रौबीला होता है।
जातक स्वभाव में उग्र होगा एवं उसमें दूसरों पर हुकूमत चलाने की मनोवृति रहेगी। दशम भाव का कारक होकर सूर्य का केन्द्र में होने से पिता से सम्बन्ध ठीक रहेंगे। पिता की सम्पत्ति भी मिलेगी।
सूर्य की सप्तम भाव पर दृष्टि होने के कारण कुटुम्ब में एवं वैवाहिक जीवन में छोटी-मोटी तकरार होती रहेगी। तकरार का कारण भी जातक का अहंकार होगा।
जातक अपने सभी भाइयों में होशियार होगा तथा अपने समाज में भी अपना महत्वपूर्ण स्थान सदैव बनाए रखेगा।
दृष्टि (Vision) – यहां से सूर्य अपनी सातवीं शत्रु दृष्टि से शनि की मकर राशि, सप्तम भाव को देखता है ऐसे जातक को पत्नी पक्ष, ससुराल पक्ष से असहयोग असंतोष रहता है।
दशाफल – सूर्य की दशा जातक को अच्छा फल देगी।
सूर्य का अन्य ग्रहों से सम्बन्ध
1. सूर्य + चन्द्र – यदि लग्न में सूर्य के साथ चन्द्रमा हो तो जातक का जिस धन्धे में हाथ डालेगा रुपया बढ़ता ही चला जाएगा।
2. सूर्य + मंगल – यहां मंगल नीच का होगा पर धनेश-दशमेश की युति पूर्ण योगकारक है। जातक लड़ाकू होगा पर शत्रुओं के लिए दशहत का दूसरा नाम होगा।
3. सूर्य + बुध – सूर्य के साथ बुध ‘बुधादित्य योग’ बनाएगा। यहां तृतीयेश-व्ययेश बुध सूर्य के साथ होने से जातक महान पराक्रमी होगा। जनसम्पर्क तेज रहेगा।
4. सूर्य + गुरु – सूर्य के साथ गुरु उच्च का होकर ‘हंसयोग’ बनाएगा। ऐसा जातक राजा के समान पराक्रमी, ऐश्वर्यशाली एवं यशस्वी होगा।
5. सूर्य + शुक्र – सूर्य के साथ सुखेश-लाभेश शुक्र की युति जातक को सुखी सम्पन्न जीवन देगी। जातक का जीवनसाथी अत्यन्त सुन्दर होगा।
6. सूर्य + शनि – सूर्य के साथ शनि सप्तमेश अष्टमेश शनि जातक का चरित्र विवादास्पद बनाएगा।
7. सूर्य + राहु – सूर्य के साथ राहु जातक को राजदण्ड दिलाएगा।
8. सूर्य + केतु – सूर्य के साथ केतु जातक को उद्दण्ड बनाएगा। सरकारी अधिकारी प्रायः धोखा देंगे।
9. यदि लग्नेश चन्द्रमा नवम में हो तो जातक पिता या परिवार के बुजुर्ग व्यक्ति का धन प्राप्त करता है।
10. यदि लग्न में सूर्य एवं द्वितीय भाव में चन्द्रमा में हो तो परस्पर परिवर्तन योग के कारण ‘अत्यन्त धन लाभ योग’ बनेगा। ऐसे जातक को बिना कुछ विशेष मेहनत किए धन लाभ मिलता रहेगा।
11. यदि चन्द्रमा सातवें स्थान पर सूर्य के सामने हो तो ‘लग्नाधिपति योग’ बनेगा। ऐसा जातक स्वपराक्रम में खूब धन कमाएगा।
प्रथम भाव के सूर्य का उपचार
- माणिक रत्न का लॉकेट ‘सूर्य यंत्र’ के साथ जड़वाकर पहने।
- यदि जातक अपने पैतृक मकान में हैण्ड पम्प लगाए तो सूर्य का दुष्प्रभाव नष्ट होगा।
- परोपकार एवं सेवा का कार्य अधिक करें।
- धन प्राप्ति हेतु ‘शिवप्रोक्त सूर्याष्टकम्’ पढ़ें।
कर्क लग्न में सूर्य का फलादेश द्वतीय भाव में
धनेश सूर्य यदि धन स्थान में ही स्वगृही होकर बैठा हो तो जातक शास्त्र का ज्ञाता ज्ञानवान एवं विद्वान होता है। जातक समाज में इज्जत मान, पद-प्रतिष्ठा पाने वाला, राजदरबार में विजय पाने वाला, किसी बड़ी फैक्टरी, उद्योग व कारोबार का स्वामी होता है। ऐसा जातक वाकपटु व कुशल वक्ता होता है। वह स्वयं राजनैतिक वर्चस्व वाला होता है।
सूर्य दशम भाव का कारक होकर दसवें भाव से त्रिकोण में होने के कारण राजकीय सम्मान तथा पिता की सम्पत्ति भी मिलती है। जातक का पिता समाज के प्रतिष्ठित व्यक्तियों में से एक होगा।
दृष्टि – सूर्य की अष्टम स्थान कुंभ राशि पर शत्रु दृष्टि होने से जातक को भगन्दर, मस्सा, पेशाब के रोग, डायबीटिज, उच्च रक्तचाप जैसे रोग सम्भव हैं।
दशाफल – सूर्य की दशा शुभ फल देगी।
सूर्य का अन्य ग्रहों से सम्बन्ध
1. सूर्य + चन्द्र – सूर्य के साथ चन्द्रमा होने से जातक धनी होगा। उसे परिश्रम का लाभ मिलेगा।
2. सूर्य + मंगल – सूर्य के साथ मंगल जातक को महाधनी बनाएगा पर जातक दम्भी होगा। जातक की वाणी अतिश्योक्ति पूर्ण होगी।
3. सूर्य + बुध – द्वितीयस्थ सूर्य के साथ बुध हो तो ‘मातृमूल धनयोग’ एवं ‘बुधादित्य योग’ बनता है। ऐसे जातक का भाइयों व भागीदारों से धन-वैभव की प्राप्ति होती है तथा जातक स्वयं के बुद्धिबल द्वारा भी खूब पैसा कमाता है।
4. सूर्य + गुरु – द्वितीय सूर्य के साथ गुरु हो तथा चन्द्र भी हो अथवा चन्द्रमा की स्थिति मजबूत हो तो ‘शत्रुमूल धनयोग’ बनता है जातक शत्रुओं द्वारा धन वैभव व कीर्ति को प्राप्त करता है।
5. सूर्य + शुक्र – द्वितीयस्थ सूर्य के साथ शुक्र की युति हो तो ‘मातृमूल धनयोग’ की सृष्टि होगी। ऐसे जातक को माता या मातृपक्ष से धन-वैभव की प्राप्ति होती है।
6. सूर्य + शनि – द्वितीयस्थ सूर्य के साथ शानि हो तो ‘कलत्रमूल धनयोग’ बनेगा। ऐसे जातक का भाग्योदय विवाह के बाद होता है तथा उसे ससुराल से धन मिलता है।
द्वितीय भाव के सूर्य का उपचार
- मुफ्त का माल नहीं खाना चाहिए।
- नारियल का तेल या बादाम का तेल धर्म स्थान पर चढ़ाएं।
- मुफ्त का दान नहीं लें।
- आदित्य हृदय स्तोत्र का नित्य पाठ करें।
- शिवप्रोक्त सूर्याष्टकम् का नित्य पाठ करें।
- नवरत्न जड़ित ‘सूर्ययन्त्र’ सुवर्ण में धारण करें।
कर्क लग्न में सूर्य का फलादेश तृतीय भाव में
सूर्य यहां धनेश होकर तृतीय स्थान में बुध के घर में है। बुध सूर्य का मित्र एवं साथ साथ चलने वाला अनुचर है। फलत: जातक को उत्तम कौटुम्बिक सुख देगा । जातक की आर्थिक स्थिति भी सुदृढ़ करेगा।
दृष्टि – सूर्य की दृष्टि सातवीं मित्र दृष्टि मीन राशि पर पितृ स्थान पर होने के कारण जातक का स्वयं के पिता के साथ अच्छा सम्बन्ध रहेगा। जातक को पिता की सम्पत्ति भी नहीं मिलेगी। सरकारी नौकरी भी अच्छी नहीं मिलेगी, क्योंकि यह सूर्य नीचाभिलाषी है।
निशानी – जातक के भाई होंगे पर भाई के साथ सम्बन्ध मधुर नहीं होंगे।
दशा – जातक को सूर्य की दशा अच्छी रहेगी।
सूर्य का अन्य ग्रहों से सम्बन्ध
1. सूर्य के साथ बुध हो तो ‘बुधादित्य योग’ हो जाएगा। जातक धनवान एवं कीर्तिवान होगा। ऐसे जातक के भाई जरूर होते हैं एवं भाई दीर्घ आयु वाले होंगे।
कर्क लग्न में सूर्य का फलादेश चतुर्थ भाव में
धनेश सूर्य केन्द्र में होने से जातक को धन व कुटुम्ब का सुख उत्तम रहेगा। जातक राजदरबार एवं समुद्र यात्रा से लाभ कमाता है। जातक उत्तम जायदाद, धन-सम्पत्ति का स्वामी होता है।
तुला का सूर्य एक हजार राजयोग नष्ट करता है। अतः जातक को सरकारी नौकरी के अवसर कम मिलेंगे। तुला का सूर्य यातायात, कोरियर, इत्यादि के कामों में अच्छा लाभ दिलाता है।
पितृकारक पिता के स्थान से आठवें होने के कारण जातक के पिता की मृत्यु छोटी अवस्था में हो जाएगी। यदि पिता जीवित हैं तो ऐसी परिस्थितियां बनेंगी कि जातक पिता के साथ नहीं रह पाएगा।
सूर्य का असर हृदय पर होने के कारण जातक को हृदय रोग होने की सम्भावना रहती हैं। सूर्य पापपीड़ित हो तो उसकी दशा अशुभ जाएगी।
दृष्टि – यहां सूर्य सातवीं उच्च दृष्टि से अपने मित्र मंगल की मेष राशि, दशमभाव को देखता है। यह जातक को पिता राज्य एवं व्यवसाय के क्षेत्र में सफलता, धन व सम्मान की प्राप्ति होगी।
दशाफल – सूर्य की दशा अच्छा फल देगी।
सूर्य का अन्य ग्रहों से सम्बन्ध
1. सूर्य + चन्द्र – लग्नेश चन्द्रमा केन्द्र में यामिनीनाथ योग बनाएगा। जातक को सभी प्रकार के सुख व ऐश्वर्य की प्राप्ति सहज में होगी।
2. सूर्य + मंगल – यहां मंगल को सूर्य के साथ केन्द्रवर्ती होना अत्यन्त शुभ है। जातक अपने कुल का दीपक होगा। रौबीला होगा एवं परिवार का नाम रोशन करेगा।
3. सूर्य + बुध – सूर्य बुध का यहां मिलन ‘बुधादित्य योग’ कराएगा। केन्द्रवर्ती इस युति के कारण जातक महान् पराक्रमी होगा। दो से अधिक वाहनों का स्वामी होगा।
4. सूर्य + गुरु – सूर्य के साथ गुरु जातक को महान् भाग्यशाली बनाएगा। जातक अध्यात्म क्षेत्र का पथिक होगा। समाज में उसकी बड़ी प्रतिष्ठा होगी।
5. सूर्य + शुक्र – सूर्य के साथ यदि शुक्र हो तो भी ‘नीचभंग राजयोग’ बनेगा। सूर्य का अशुभत्व नष्ट हो जाएगा। जातक व्यापार द्वारा धन कमाएगा। एवं विपरीत लिंगियों से उसे बहुत लाभ होगा।
6. सूर्य + शनि – सूर्य के साथ यदि शनि हो तो ‘नीचभंग राजयोग’ बन जाएगा। सूर्य का अशुभत्व नष्ट हो जाएगा। जातक का भाग्योदय विवाह के तत्काल बाद होगा।
7. सूर्य + राहु – सूर्य के साथ माता को अल्पायु देगा। पिता से भी जातक के विचार कम मिलेंगे।
8. सूर्य + केतु – सूर्य के साथ केतु राज-काज में बाधक है। जातक को सरकारी अधिकारियों से धोखा मिलेगा।
चतुर्थ भाव के सूर्य का उपचार
- अंधों को भोजन दें।
- शरीर पर सोना पहने।
- सूर्य की मूर्ति या ‘सुवर्ण फूल’ गले में धारण करें।
- अभिमंत्रित माणिक्य ‘सूर्य यंत्र’ के साथ गले में धारण करें।
- माणिक एवं जिरकान ‘बीसा यंत्र’ में धारण करें।
कर्क लग्न में सूर्य का फलादेश पंचम भाव में
धनेश सूर्य वृश्चिक राशि में होने में मित्र क्षेत्री है। अपने स्थान में चौथे भाव में एवं त्रिकोण स्थान में होने से जातक को धनसुख एवं कुटुम्ब सुख बहुत उत्तम मिलेगा। जातक भूमि से, राजदरबार से धन लाभ प्राप्त करने वाला होता है।
जातक उच्च शिक्षा वाला, ज्योतिष-तन्त्र विद्या का जानकार होता है। प्रथम सन्तति के उत्पन्न होने के बाद जातक का भाग्योदय प्रारम्भ हो जाता है।
पितृकारक पितृस्थान से नवम (कोण) में होने से पिता से सम्बन्ध अच्छे रहेंगे। जातक को पिता की सम्पत्ति मिलेगी। दशम भाव का कारक होने के कारण नौकरी-धंधे में लाभ मिलेगा। परिश्रम का पूरा-पूरा लाभ मिलेगा। अल्प प्रयत्न से भी अधिक लाभ का योग है।
दृष्टि – सूर्य की दृष्टि ग्यारहवें भाव पर होने से मित्रों से अकल्पनीय लाभ होगा । सूर्य यहां सातवीं शत्रु दृष्टि से शुक्र की वृष राशि को देख रहा है। ऐसा जातक स्पष्टवक्ता होता है तथा स्पष्ट बात कहने में लाभ-हानि की चिन्ता नहीं करता।
दशाफल – सूर्य की दशा उत्तम फल देगी।
सूर्य का अन्य ग्रहों से सम्बन्ध
1. सूर्य + चन्द्र – यहां चन्द्रमा नीच का होगा। जातक को विष भोजन का भय रहेगा।
2. सूर्य + मंगल – सूर्य के साथ यदि मंगल हो तो, जातक पुत्रों के द्वारा अपने शिष्यों व अनुयायियों के द्वारा बलवान एवं कीर्तिवान होगा। ऐसा जातक राजा के समान ऐश्वर्य सुखों को भोगता है।
3. सूर्य + बुध – सूर्य के साथ बुध ‘बुधादित्य योग’ बनाएगा। यह वस्तुत धनेश एवं पराक्रमेश की युति कहलायेगी । ऐसा जातक अपने बाहुबल से काफी धन कमायेगा। उसे पुत्र, कन्या सन्तति दोनों की प्राप्ति होगी।
4. सूर्य + गुरु – सूर्य के साथ गुरु होने से जातक भाग्यशाली होगा। उसे तीन से पांच पुत्रों की प्राप्ति सम्भव है।
5. सूर्य + शुक्र – यहां सूर्य के साथ शुक्र शुभ है। सूर्य धनेश है, सुखेश-लाभेश शुक्र के साथ उसकी युति जातक को कला-संगीत व अभिनय प्रिय अभिरुचि देगी। जातक पुत्र व कन्या दोनों सन्तति के सुख से परिपूर्ण होगा।
6. सूर्य + शनि – शनि यहां शत्रुक्षेत्री होगा। शनि सप्तमेश-अष्टमेश होने से जातक के विद्याध्ययन में बाधा आयेगी। संतान बीमार रहेगी। जातक का भाग्योदय पिता की मृत्यु के बाद होगा।
7. सूर्य + राहु – सूर्य के साथ राहु पुत्र संतति में बाधक है। पितृदोष के कारण जातक को परिश्रम का लाभ नहीं मिलेगा। पग-पग पर बाधाएं आयेंगी।
8. सूर्य + केतु – जातक की विद्या एक बाधा के बाद आगे बढ़ेगी। पुत्र संतति के पूर्व एकाध गर्भपात संभव है।
पंचम भाव के सूर्य का उपचार
- अपने वायदे – वचन के प्रति पाबन्द रहें। अपनी खानदानी परम्परा को नष्ट न करें।
- लाल मुंह के बंदरों को गुड़-चना फल खिलाएं।
- शत्रुनाश हेतु बजरंग बाण का पाठ करें।
- नेत्र पीड़ा की निवृत्ति हेतु ‘नेत्रोपनिषद्’ का पाठ करें।
- तेजस्वी पुत्र की प्राप्ति हेतु शिवप्रोक्त ‘सूर्याष्टकम्’ का पाठ करें।
कर्क लग्न में सूर्य का फलदेश षष्ठम स्थान में
कर्क लग्न में धनेश सूर्य छठे स्थान में जाने से ‘धनहीन योग बनता है। जातक कितना भी रुपया कमाए पर धन में बरकत नहीं होती।
सूर्य यहां धनु राशि में मित्रक्षेत्री है। पाप ग्रह पाप स्थान (छठे भाव) में होने में छठे स्थान का शुभ फल जरूर देगा। शत्रु पर विजय देगा। शरीर को निरोगी रखेगा। पितृकारक सूर्य नवमें भाव से दसवें स्थान पर होने के कारण जातक का पिता धनवान होगा। नौकरी करने वाले लोगों को यह सूर्य अच्छा फल देगा।
लग्नेश निर्बल होने से कोर्ट-कचहरी में जातक के पैसे फालतू बरबाद होंगे परन्तु अन्तिम रूप से फैसला जातक के हक में होगा।
दृष्टि – यहां सूर्य सातवीं मित्र दृष्टि से बुध की मिथुन राशि में, द्वादश भाव को देख रहा है। ऐसे जातक को धन संग्रह के मामले में काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ेगा। रुपया आएगा और धन खर्च होता चला जाएगा।
दशाफल – सूर्य की दशा धन खर्च कराएगी।
सूर्य का अन्य ग्रहों में सम्बन्ध
1. सूर्य + चन्द्र – चन्द्रमा के कारण ‘लग्नभंग योग’ बनेगा। जातक को परिश्रम का लाभ नहीं मिलेगा। जातक निराशावादी होगा।
2. सूर्य + मंगल – मंगल सूर्य के साथ होने से ‘राजभंग योग’ एवं ‘पुत्रहीन योग’ भी बनेगा। फलत: सरकारी नौकरी के योग कमजोर रहेंगे। संतान संबंधी चिन्ता के साथ आर्थिक परेशानी बनी रहेगी।
3. सूर्य + बुध – सूर्य के साथ बुध ‘बुधादित्य योग’ बनाएगा। खर्चेश बुध छठे जाने से ‘विपरीत राजयोग’ बनेगा।
4. सूर्य + गुरु – सूर्य के साथ गुरु होने से ‘विपरीत राजयोग’ बनेगा। जातक धनी होगा। जातक भाग्यशाली होगा पर उसके जीवन में संघर्ष बहुत रहेगा।
5. सूर्य + शुक्र – सूर्य के साथ शुक्र होने से सुखहीन योग एवं लाभभंग योग भी बनेगा। यह युति वाहन दुर्घटना का संकेत देती है। यह भी संभव है कि जातक को किसी महिला के द्वारा प्रताड़ित होना पड़े।
6. सूर्य + शनि – शनि छठे जाने से ‘विवाहभंग योग’ बनता है। साथ ही ‘विपरीत राजयोग’ भी बनता है। फलतः जातक धनवान होगा, परन्तु पिता व पत्नी का सुख कमजोर रहेगा।
7. सूर्य + राहु – सूर्य के साथ राहु हड्डी के जोड़ों में दर्द उत्पन्न करेगा। जातक शत्रुओं से भी परेशान रहेगा।
8. सूर्य + केतु – सूर्य के साथ केतु जातक को शत्रुओं के षड्यंत्र में उलझायेगा।
9. सूर्य यदि राहु या केतु के साथ हो तो जातक के पुत्र को सर्पदंश का भय रहता है।
षष्टम भाव के सूर्य का उपचार
- बन्दर को चने देने चाहिए।
- भूरी चींटी को सतनाजा सप्तधान डालना चाहिए।
- माता के पांव धोकर आशीर्वाद लें।
- सूर्य को लाल पुष्प या कुंकुम डालकर अर्घ्य दें।
- शत्रु नाश हेतु आदित्य हृदय स्तोत्र का नित्य पाठ करें।
- नेत्र पीड़ा की निवृत्ति हेतु नेत्रोपनिषद का पाठ करें।
- धन की प्राप्ति हेतु शिवप्रोक्त ‘सूर्याष्टकम्’ का नित्य पाठ करें।
कर्क लग्न में सूर्य का फलादेश सप्तम भाव में
धनेश सूर्य यहां सप्तम भाव में शत्रुक्षेत्री है तथा लग्न को देख रहा है। यह सूर्य जातक को आर्थिक रूप से सुदृढ़ करेगा तथा धन एवं कौटुम्बिक सुख में वृद्धि करेगा। पितृकारक सूर्य पिता के स्थान से एकादश होने के कारण पिता को सम्पत्ति देगा, पिता से लाभ दिलाएगा। भागीदार एवं सरकारी क्षेत्र में भी जातक की स्थिति लाभप्रद रहेगी।
जातक का व्यक्तित्व प्रभावशाली रहेगा। विशेष सूर्य की यह स्थिति दाम्पत्य जीवन के लिए ठीक नहीं। जीवन साथी से टकराव-तकरार होता रहेगा। जातक के धंधे में परेशानी आती रहेगी।
दृष्टि – यहां सूर्य सातवीं मित्र दृष्टि में चन्द्रमा की कर्क राशि में प्रथम भाव को देख रहा है। ऐसे जातक का व्यक्तित्व प्रभावशाली होता है। जातक अपने प्रभाव से धन व प्रतिष्ठा को बराबर प्राप्त करता रहेगा।
दशाफल – सूर्य की दशा अच्छी जाएगी।
सूर्य का अन्य ग्रहों से सम्बन्ध
1. सूर्य + चन्द्र – यहां लग्नेश चन्द्रमा लग्न को देखेगा। फलतः जातक को पुरुषार्थ व परिश्रम का पूरा-पूरा लाभ मिलेगा। जातक की पत्नी सुन्दर होगी। जातक धनी होगा।
2. सूर्य + मंगल – सूर्य के साथ मंगल होने से ‘रुचक योग’ की सृष्टि होगी। ऐसे में सूर्य का अशुभत्व नष्ट हो जाएगा। मंगल जातक को राजातुल्य प्रभावशाली एवं ऐश्वर्यवान बनाएगा।
3. सूर्य + बुध – सूर्य के साथ बुध यहां ‘बुधादित्य योग’ बनाएगा। यह वस्तुतः धनेश सूर्य के साथ पराक्रमेश की युति होगी। जातक महान पराक्रमी होगा।
4. सूर्य + गुरु – सूर्य के साथ नीच का गुरु जातक को भाग्यशाली बनाता है। जातक को उत्तम गृहस्थ सुख प्राप्त होगा। जातक पराक्रमी होगा।
5. सूर्य + शुक्र – धनेश सूर्य के साथ सुखेश व लाभेश शुक्र केन्द्रवर्ती होने से जातक अपने कुल-कुटम्ब का नाम रोशन करेगा एवं सुखी जीवन जीयेगा। जातक की पत्नी सुन्दर होगी एवं ससुराल व्यापार वर्गी तथा उत्तम होगा।
6. सूर्य + शनि – सूर्य के साथ शनि होने से ‘शशयोग’ की सृष्टि होगी। जातक राजा तुल्य ऐश्वर्यशाली एवं पराक्रमी होगा। परन्तु सही अर्थों में भाग्योदय पिता की मृत्यु के बाद होगा।
7. सूर्य + राहु – सूर्य के साथ राहु गृहस्थ सुख में बाधक है।
8. सूर्य + केतु – सूर्य के साथ केतु गुप्त बीमारी देगा। जातक के जीवन में गुप्त शत्रु बहुत होंगे।
सप्तम भाव के सूर्य का उपचार
- रात को रोटी आदि पकाने के बाद आग गैस चूल्हा, स्टोव पर दूध बहाएं या छींटें दें।
- रविवार के दिन जमीन में तांबें के टुकड़े दबाने चाहिए।
- भोजन करने के पूर्व भोजन के कुछ अंश आहुति के रूप में अग्नि में डालें तो सूर्य का दोष कम होगा।
- माणिक सहित शुद्ध स्वर्ण-पत्र पर मण्डित सूर्य की मूर्ति गले में धारण करें।
- उत्तम गृहस्थ सुख की प्राप्ति हेतु ‘सूर्यार्या स्तोत्र’ का नित्य पाठ करें।

कर्क लग्न में सूर्य का फलादेश अष्टम भाव में
धनेश सूर्य कुम्भ राशि में शत्रुक्षेत्री होकर आठवें स्थान में जाने से जातक को धन व कुटुम्ब सम्बन्धी तकलीफों का सामना करना पड़ेगा।
धनहीन योग – धनेश सूर्य आठवें जाने से यह योग बना। जातक कितना भी रुपया कमाए पर उसमें बरकत नहीं होगी। बैंक बैलेंस (Bank Balance) सदैव कमजोर रहेगा।
विशेष – पितृकारक सूर्य, पितृस्थान से बारहवें होने के कारण पिता का सुख कमजोर होगा पिता छोटी आयु में गुजर जाएगा अथवा यदि जीवित हो तो जातक के साथ सम्बन्ध अच्छे नहीं होंगे। जातक को पिता की सम्पत्ति नहीं मिलेगी मिल भी जाए तो उसका कोई उपयोग न होगा।
दसवें भाव का कारक होकर सूर्य आठवें जाने से जातक को परिश्रम का पूरा फल नहीं मिलेगा।
रोग – सूर्य निर्बल होने में नेत्र शक्ति कमजोर होगी। दाईं आंख नकली हो सकती है। दांत कमजोर एवं मोटापे का रोग सम्भव है। यदि मंगल भी निर्बल हो द्वितीय स्थान में कोई पाप ग्रह हो तो जातक पारिजात’ के अनुसार ऐसे जातक की मृत्यु पित्त विकार से होती है।
दृष्टि – यहां सूर्य सातवीं दृष्टि से स्वराशि सिंह को द्वितीय भाव में देख रहा है। जातक को पेट में रोग हो सकता है तथा कौटुम्बिक सुख में कुछ न कुछ कमी रहेगी।
दशाफल – सूर्य की दशा खराब जाएगी। अचानक रोग में वृद्धि हो सकती है।
सूर्य का अन्य ग्रहों से सम्बन्ध
1. सूर्य + चन्द्र – सूर्य के साथ चन्द्रमा होने से लग्नभंग योग के कारण जातक को परिश्रम का लाभ नहीं मिलेगा।
2. सूर्य + मंगल – मंगल की युति से कुण्डली ‘मांगलिक’ कहलायेगी। साथ ही ‘पुत्रहीन योग’, ‘राजभंग योग’ की सृष्टि होगी। ऐसे जातक का जीवन दिक्कतों से भरा होता है।
3. सूर्य + बुध – सूर्य-बुध युति से यहां ‘बुधादित्य योग बना। ‘पराक्रमभंग योग’ भी बनेगा परन्तु व्ययेश बुध छठे होने से विपरीत राजयोग बनेगा। ऐसा जातक धनी होगा।
4. सूर्य + गुरु – सूर्य के साथ गुरु होने से जहां ‘भाग्यभंग योग’ बनता है। वहीं षष्टेश के अष्टम में जाने से विपरीत राजयोग बनता है। ऐसा जातक धनी होगा भाग्योदय बहुत कठिन परिश्रम से होगा।
5. सूर्य + शुक्र – शुक्र के कारण ‘सुखहीन योग’ एवं ‘लाभभंग योग’ बनेगा। जातक को स्त्री के द्वारा धोखा मिलेगा। वाहन दुर्घटना भी संभव है।
6. सूर्य + शनि – अष्टमेश अष्टम में होने से ‘विपरीत राजयोग’ बनेगा। जातक धनी होगा। जातक का गृहस्थ जीवन थोड़ा कष्टमय हो सकता है। यदि विवाह विलम्ब से हो तो योग का बुरा फल नष्ट हो जाता है।
7. सूर्य + राहु – जातक बीमार रहेगा। दाएं पांव में चोट पहुंच सकती है। दुर्घटना का भय रहेगा।
8. सूर्य + केतु – जातक किसी षड्यंत्र का शिकार होगा। गुप्त शत्रुओं से सावधान रहना चाहिए।
अष्टम भाव के सूर्य का उपचार
- दक्षिण दिशा में दरवाजे वाले मकान में नहीं रहना चाहिए। मकान का प्रवेश द्वार पर वास्तुदोष नाशक गणपति लगाएं।
- ससुराल के घर में न रहें।
- बड़े भाई और गाय की सेवा करने से सूर्य का अशुभत्व नष्ट होगा।
- सूर्य का स्वर्णफूल गले में धारण करें।
- चोरी ठगी से दूर रहें अन्यथा नुकसान उठाना पड़ेगा।
- शत्रुनाश हेतु आदित्य हृदय स्तोत्र का नित्य पाठ करें।
कर्क लग्न में सूर्य का फलादेश नवम भाव में
धनेश सूर्य मीन में यहां मित्रक्षेत्री है। यह सूर्य उच्चाभिलाषी होकर नवम भाव में स्थित होने से उत्तम लाभ देगा । जातक अपने पिता से अधिक नाम व पैसा कमाएगा।
पितृस्थान में सूर्य स्थित होने के कारण जातक को पिता का सुख पूरा नहीं मिल पाएगा। पिता अल्पायु होगा अथवा किन्हीं कारणों से जातक पिता से दूर रहेगा।
दशम भाव का कारक होकर दशम भाव में बारहवें स्थान पर अव्यवस्थित होने के कारण धन्धा तो ठीक चलेगा पर सरकार द्वारा वांछित लाभ नहीं मिल पाएगा।
दृष्टि – यहां सूर्य सातवीं मित्र दृष्टि से बुध को कन्या में तृतीय भाव को देख रहा है। अतः जातक को भाई-बहनों का सुख मिलता है। ऐसे जातक का जनसम्पर्क बहुत तेज रहेगा। मित्रों से लाभ होता रहेगा।
दशाफल – सूर्य की दशा उत्तरोत्तर उत्तम फल देगी।
सूर्य का अन्य ग्रहों से सम्बन्ध
1. सूर्य + चन्द्र – सूर्य के साथ चन्द्रमा होने से जातक को पिता की सम्पत्ति मिलेगी। उसे पैतृक व्यवसाय में लाभ रहेगा।
2. सूर्य + मंगल – ऐसा जातक धनी होगा। व्यापार व ठेकेदारी से उसे लाभ होगा। जातक का सही भाग्योदय प्रथम पुत्र संतति के बाद होगा।
3. सूर्य + बुध – इस युति से ‘बुधादित्य योग’ बनेगा। जातक महान पराक्रमी होगा एवं मित्रों की मदद से आगे बढ़ेगा।
4. सूर्य + गुरु – गुरु यहां त्रिकोण में स्वगृही होगा। धनेश सूर्य के साथ इसकी युति राजयोग कारक हैं। ऐसा व्यक्ति सही अर्थों में धनी होगा। जातक को पैतृक सम्पत्ति मिलेगी।
5. सूर्य + शुक्र – शुक्र यहां उच्च का होगा। धनेश सूर्य की लाभेश-सुखेश शुक्र के साथ यह युति भाग्यवर्धक साबित होगी। जातक को माता-पिता का धन मिलेगा।
6. सूर्य + शनि – धनेश सूर्य की सप्तमेश-अष्टमेश शनि के साथ यह युति ससुराल से धन दिलायेगी। साथ ही 32 वर्ष की आयु तक जातक का जीवन संघर्षमय भी बनायेगी।
7. सूर्य + राहु – भाग्योदय में बाधक है। जातक को पैतृक सम्पत्ति में फायदा नहीं है।
8. सूर्य + केतु – भाग्य स्थान में सूर्य के साथ केतु संघर्षकारी स्थिति को बताता है।
नवम भाव के सूर्य का उपचार
- भोजनशाला में पीतल के बर्तनों का प्रयोग करें।
- सुवर्ण-पत्र पर सूर्य देव की मूर्ति बनाकर गले में धारण करें।
- सूर्य भगवान को नित्य अर्घ्य दें।
- आदित्य हृदय स्तोत्र का नित्य पाठ करें।
- पिता की सेवा करें।
- शीघ्र भाग्योदय हेतु सूर्य अथर्वशीर्ष उपनिषद् पढ़ें।
कर्क लग्न में सूर्य का फलादेश दशम भाव में
धनेश सूर्य यहां उच्च का होकर केन्द्रस्थ है। जातक खूब पैसे वाला होगा। उसे कुटुम्ब का सुख भी उत्तम मिलेगा। पितृकारक होकर सूर्य उच्च का होने से जातक का पिता धनवान एवं प्रतिष्ठित व्यक्ति होगा। जातक को पिता की स्थाई सम्पत्ति मिलेगी एवं पिता के साथ उसके सम्बन्ध मधुर रहेंगे। पिता के बड़े नाम का जातक को लाभ मिलेगा।
जातक को नौकरी, धंधे या व्यापार में सरकारी मदद मिलेगी। जातक यशस्वी होगा क्योंकि दशम स्थान का कारक होकर सूर्य उच्च का है।
दृष्टिफल – सूर्य द्वारा यहां सातवीं दृष्टि से तुला राशि के चौथे स्थान देखने के कारण माता का सुख पूर्ण, वाहन का सुख श्रेष्ठ, नौकर का सुख श्रेष्ठ रहेगा। शिक्षा अच्छी मिलेगी। यह सूर्य उच्च पद दिलाने में सहायक है।
दशा – सूर्य की दशा जातक का परम भाग्योदय कराएगी। ऐसी दशा में जातक धनी होगा परन्तु गुरु की दशा मारक होगी।
सूर्य का अन्य ग्रहों से सम्बन्ध
1. सूर्य + चन्द्र – यहां चन्द्रमा उच्चाभिलाषी होगा। सूर्य की इससे बढ़िया कोई स्थिति हो ही नहीं सकती। यदि साथ में मंगल भी हो तो जातक करोड़पति एवं सर्वप्रभुत्व सम्पन्न होगा। यदि गुरु भी यहां साथ बैठकर चतुष्ग्रह युति बनाए तो कर्क लग्न के लिए यह ‘परम योगप्रद’ स्थिति है।
2. सूर्य + मंगल – यहॉ पर यदि मंगल हो तो ‘किम्बहुना योग’ बनेगा। अर्थात् सूर्य उच्च का एवं मंगल स्वगृही एक साथ हो तो यह उत्तम राजयोग है। ऐसा जातक राजातुल्य प्रभुत्व एवं ऐश्वर्य को भोगेगा।
3. सूर्य + बुध – सूर्य बुध की युति से ‘बुधादित्य योग’ बनता है। उच्च के सूर्य के साथ केन्द्र में यह युति ज्यादा खिलेगी। जातक धनवान व महान पराक्रमी होगा एवं रविकृत राजयोग के कारण सरकारी कार्यों में उसे लाभ मिलेगा।
4. सूर्य + गुरु – सूर्य के साथ भाग्येश गुरु होने से जातक परम भाग्यशाली होगा । जातक आस्तिक बुद्धि वाला एवं धर्मध्वज होगा।
5. सूर्य + शुक्र – सूर्य के साथ शुक्र जातक को अपने कुटुम्ब परिवार का नाम दीपक के समान रोशन करने वाला एवं उच्च वाहन का स्वामी बनाएगा।
6. सूर्य + शनि – सूर्य शनि की यह युति यहां पर ‘नीचभंग राजयोग’ की सृष्टि करेगी। ऐसा जातक राजा के समान पराक्रम यशस्वी एवं ऐश्वर्यशाली होगा।
7. सूर्य + राहु – यह युति जातक को राजकाज में बाधा पहुंचायेगी। जातक को पिता का सुख कम मिलेगा।
8. सूर्य + केतु – सूर्य के साथ केतु सरकारी कार्यों में बाधक है।
दशम भाव के सूर्य का उपचार
- ऐसा जातक नीले, काले कपड़े न पहने न ही इस रंग के रुमाल भी पास में रखे।
- पैतृक मकान में हैण्डपम्प लगवाएं।
- नंगा सिर न रहें। शिखा रखें या लाल, सफेद, पीले रंग की टोपी या साफा बांधे।
- भूरी भैस या भूरा बछड़ा पालें ।
- नेवला पालें।
- नवरत्न जड़ित ‘सूर्ययंत्र’ गले में धारण करें।
कर्क लग्न में सूर्य का फलादेश एकादश भाव में
धनेश सूर्य लाभस्थान में अपने घर से दशम होने के कारण पूर्णत: लाभदायक है। जातक को खूब आर्थिक लाभ मिलेगा। जातक को मित्रों, भाई-बहनों द्वारा अकल्पनीय लाभ मिलता रहेगा। पितृकारक पितृस्थान से तीसरे पर होने के कारण पिता से सम्बन्ध अच्छे रहेंगे।
दशम भाव का कारक होकर दशम भाव से दूसरे स्थान में होने के कारण धंधा खूब चमकेगा सट्टा लॉटरी, शेयर में भी धन मिलेगा। मेहनत का पूरा-पूरा फल मिलेगा।
दृष्टिफल – यहां सूर्य सातवीं मित्र दृष्टि से मंगल की वृश्चिक राशि में पंचम भाव को देखता है। ऐसे जातक को विद्या एवं सन्तान पक्ष से लाभ होगा।
दशा – सूर्य की दशा खूब अच्छा फल देगी।
सूर्य का अन्य ग्रहों से सम्बन्ध
1. सूर्य + चन्द्र – यदि सूर्य के साथ चन्द्रमा हो तो जातक दानी प्रसिद्ध एवं खूब यशस्वी होगा। ऐसे जातक को मरणोपरान्त भी उसके कुटुम्बीजन एवं समाज के लोग व प्रशंसक याद करते रहते हैं।
2. सूर्य + मंगल – यहां सूर्य मंगल की युति जातक को परिश्रम का लाभ दिलायेगी। जातक के तीन से चार पुत्र होंगे। जातक अपने शत्रुओं का नाश करने में सक्षम होगा।
3. सूर्य + बुध – इस युति से ‘बुधादित्य योग’ बनता है। जातक पराक्रमी होगा एवं उद्योगपति भी होगा। जातक की व्यापार में प्रवृत्ति ज्यादा रहेगी।
4. सूर्य + गुरु – सूर्य के साथ गुरु की युति धनेश, भाग्येश की युति कहलायेगी। जातक भाग्यशूर होगा। उसके पुत्र संतति अधिक होगी। जातक उच्च शिक्षा आर्जित करेगा एवं सभ्य होगा।
5. सूर्य + शुक्र – सूर्य के साथ स्वगृही शुक्र जातक को उत्तम वाहन, सभी प्रकार के सुख देगा। जातक सम्पन्न होगा। पुत्र एवं कन्या दोनों प्रकार की सन्तति होगी।
6. सूर्य + शनि – ऐसे जातक का भाग्योदय विवाह के बाद होता है। पत्नी कमाऊ होगी या ससुराल से धन मिलेगा। पिता की मृत्यु के बाद जातक का स्वतंत्र भाग्योदय विशेष रूप से होता है।
7. सूर्य + राहु – ऐसे जातक को व्यापार-व्यवसाय में आर्थिक परेशानियों का सामना करना पड़ता है। जातक के अध्ययन में रुकावट भी आ सकती है।
8. सूर्य + केतु – जातक को संतति संबंधी चिन्ता रहेगी। एकाध गर्भपात संभव है।
एकादश भाव के सूर्य का उपचार
- शराब, मांस-मछली खाना छोड़ दें।
- सुवर्ण- पत्र पर सूर्य की मूर्ति बनवाकर गले में धारण करें।
- मूली का दान रात्रि में सिरहाने रखकर सुबह मंदिर में भेट करें।
- 40-43 दिन रेत के बिस्तर पर सोना ।
- जूठा खाना व झूठ बोलना दोनों से परहेज रखें।
- जीवित बकरा कसाई से छुड़ाएं। जीवनदान करें।
कर्क लग्न में सूर्य का फलादेश द्वादश भाव में
धनेश सूर्य बारहवें मिथुन राशि में होने के कारण जातक की आर्थिक स्थिति विषम होगी। जातक परिश्रमपूर्वक कमाया हुआ सारा धन खर्च कर देता है परन्तु यह खर्च मांगलिक व शुभ होता है।
पितृकारक सूर्य बारहवें होने से पिता का सुख कमजोर रहेगा। ऐसी गृह स्थिति वाले जातक को स्वतन्त्र धंधा या व्यापार करना चाहिए।
धनेश सूर्य बारहवें होने से ‘धनहीन योग’ की सृष्टि होती है। जातक के पास रुपया आएगा एवं खर्च होता चला जाएगा। लग्नेश की स्थिति यदि अच्छी न हो तो धन का संग्रह दूसरों के नाम से करना चाहिए। सूर्य यहां नेत्रपीड़ा देता है।
दृष्टिफल – यहां सूर्य सातवीं मित्र दृष्टि में गुरु की धनु राशि षष्टम भाव को देख रहा है। ऐसा जातक फिजूल खर्च होता है तथा शत्रु का परास्त करने में सफलता प्राप्त करता है।
दशाफल – सूर्य की दशा खर्च और चिन्ता बढ़ाएगी।
सूर्य का अन्य ग्रहों से सम्बन्ध
1. सूर्य + चन्द्र – लग्नभंग योग के कारण जातक को परिश्रम का पूरा लाभ नहीं मिलता।
2. सूर्य + मंगल – यह कुण्डली मांगलिक कहलाएगी। संततिहीन योग व राजभंग योग भी बनता है। खासकर पुत्र संतति की चिंता रहेगी। सरकारी परेशानी एवं पुरुषार्थ का लाभ नहीं होगा।
3. सूर्य + बुध – यदि यहां बुध हो तो ‘बुधादित्य योग’ बनेगा। व्ययेश व्यय स्थान में स्वगृही होने से विपरीत राजयोग बना जातक निसंदेह धनवान होगा। यात्राएं अधिक करेगा। यात्राओं से लाभ रहेगा।
4. सूर्य + गुरु – भाग्येश बारहवें जाने से ‘भाग्यभंग योग’ बना परन्तु षष्टेश का व्यय भाव से जाने से विपरीत राजयोग भी बना। ऐसा जातक निसंदेह धनवान होगा।
5. सूर्य + शुक्र – सूर्य के साथ शुक्र होने से ‘लाभभंग योग’, ‘सुखहीन योग’ बनता है। पर द्वादश शुक्र राजयोग कारक माना गया है। जातक खर्चीले स्वभाव का होगा। यात्राएं अधिक होंगी। नेत्रपीड़ा अवश्य होगी। आंखों का ऑपरेशन कराना पड़ेगा।
6. सूर्य + शनि – सप्तमेश बारहवें जाने से विलम्ब विवाह गृहस्थ सुख में बाधा की अनुभूति होगी। परन्तु अष्टमेश के द्वादश में जाने से विपरीत राजयोग भी बनेगा। जातक धनवान होगा पर शत्रु परेशान करेंगे।
7. सूर्य + राहु – राहु के साथ सूर्य यात्रा में दुर्घटना कराएगा। जातक को राजभय रहेगा। बुरे सपने आयेंगे। आर्थिक संघर्ष जीवन पर्यन्त रहेगा।
8. सूर्य + केतु – जातक आध्यात्मिक विचारों वाला होगा। जो सपने आयेंगे सच हो जायेंगे। अचानक बोलेगा तो सच हो जायेगा। दुर्घटना होगी पर बचाव भी होगा। अन्तिम समय घर के बाहर रहेगा।
द्वादश भाव के सूर्य का उपचार
- मशीनरी के काम न करें।
- मकान के आंगन जरूर रखें एवं सूर्य की रोशनी आनी चाहिए।
- भूरी चींटी को कीडी नगरा दें।
- बिजली का सामान मुफ्त न लें, बिजली चोरी न करें।
- गले में सूर्य का सुवर्णफूल पहनें।
- रविवार को नियमित व्रत करें।
- माणिक्य युक्त ‘सूर्य यंत्र’ गले में पहनें।
- गुड़ की 11 डलियां रविवार के दिन चलते पानी में बहाएं।
- घर का आंगन खुला रखें तो सूर्य देवता प्रसन्न रहेंगे।
- रविवार के दिन चारपाई या पलंग के पायों में सात तांबें की कील लगाएं। नींद अच्छी आएगी।
- नेत्र पीड़ा की निवृत्ति हेतु ‘नेत्रोपनिषद’ का पाठ करें।
- धन प्राप्ति हेतु शिवप्रोक्त ‘सूर्याष्टकम्’ का नित्य पाठ करें।
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