कर्क लग्न में मंगल का फलादेश
कर्क लग्न में मंगल परम योगकारक ग्रह होता है।
कर्क लग्न में मंगल का फलादेश प्रथम भाव में
लग्न में स्थित होने के कारण यह नीच राशिगत हो जाएगा। पंचमेश एवं दशमेश होने के कारण विद्वान लोग मानते हैं कि कर्क लग्न में मंगल नीच का फल नहीं देता । सन्तान उत्तम होगी।
जातक की माता बीमार रहती है। ऐसे जातक की किस्मत 29 वर्ष की आयु के बाद चमकती है और जातक अपनी किस्मत आप चमकाता है। ऐसे जातक दृढ़ निश्चयी व साहसी होते हैं तथा युद्ध में शत्रु को परास्त करने में पूर्ण सक्षम होते हैं।
मंगल की यह स्थिति कुण्डली को मांगलिक बनाती है। ऐसे जातक के जीवनसाथी की कुण्डली भी मांगलिक होनी चाहिए, तभी वैवाहिक जीवन सुखमय रहेगा।
मंगल का अन्य ग्रहों से सम्बन्ध
1. मंगल + चन्द्र – यदि मंगल के साथ चन्द्रमा हो तो ‘नीचभंग राजयोग’ एवं ‘लक्ष्मी योग’ की क्रमशः सृष्टि होगी। इससे मंगल का नीचत्व समाप्त होकर उसकी सकारात्मक शक्ति बढ़ जाती है। जातक धनाढ्य होगा।
2. मंगल + सूर्य – धनेश सूर्य की योगकारक मंगल के साथ युति शुभ है जातक परम भाग्यशाली एवं धनवान होगा। जातक स्वयं के पराक्रम पुरुषार्थ से आगे बढ़ेगा।
3. मंगल + बुध – तृतीयेश बुध लग्न में शत्रुक्षेत्री होगा। जातक पराक्रमी होगा पर शरीर में रोग रहेगा।
4. मंगल + गुरु – यदि मंगल के साथ गुरु हो तो ‘नीचभंग राजयोग’ एवं ‘हंस योग’ की क्रमशः सृष्टि होती है। ऐसे में मंगल का नीचत्व समाप्त होकर उसकी सकारात्मक शक्ति बढ़ जाएगी। जातक राजा के सामान प्रभुत्व सम्पन्न एवं ऐश्वर्यशाली होगा।
5. मंगल + शुक्र – मंगल के साथ सुखेश शुक्र की युति लाभदायक रहेगी। जातक के पास एक से अधिक वाहन होंगे। जातक कुल का नाम रोशन करेगा।
6. मंगल + शनि – मंगल के साथ सप्तमेश शनि होने से जातक की पत्नी से कम पटेगी। शत्रुओं से लड़ता रहेगा पर अंत में विजयी होगा।
कर्क लग्न में मंगल का फलादेश द्वितीय भाव में
मंगल पंचमेश व दशमेश होकर दूसरे भाव में स्थित होने पर जातक अपने छोटे बहन-भाइयों को पालता है। यह मंगल मित्रक्षेत्री है पर सिंह (अग्नि) राशि में होने से जातक की भाषा कठोर एवं अप्रिय होगी।
पंचमेश होकर मंगल दूसरे भाव में स्थित होकर अपने घर को पूर्ण दृष्टि से देखेगा। यह उत्तम सन्तति देगा परन्तु एक-दो गर्भपात या सन्तान की अपरिपक्व अवस्था में मृत्यु हो सकती है।
विद्याध्ययन में रुकावट, लापरवाही होते हुए भी जातक विद्या पूरी करेगा। जातक को पिता से ज्यादा लाभ नहीं होगा।
दशमेश मंगल दशम भाव से कोण (पांचवें) में होने से जातक को अच्छी नौकरी मिलेगी। अष्टम भाव पर दृष्टि होने से शरीर में गुप्त रोग हो सकता है खराब दशा या अशुभ गोचर में यह मंगल अकस्मात् रोग देगा।
जातक का छोटा भाई नहीं होगा यदि होगा भी तो उससे सम्बन्ध अच्छे (मधुर) नहीं होंगे।
दशाफल – मंगल की दशा अच्छी जाएगी। मंगल की महादशा में सूर्य या शनि का अन्तर कष्टदायक होगा।
मंगल का अन्य ग्रहों से सम्बन्ध
1. मंगल + चन्द्र – मंगल के साथ चन्द्रमा धन स्थान में ‘लक्ष्मीयोग’ बनाएगा। जातक अपने पुरुषार्थ से खूब धन कमायेगा।
2. मंगल + सूर्य – मंगल के साथ सूर्य स्वगृही होगा। ऐसा जातक विद्या के द्वारा, संतान के द्वारा धन व यश कमायेगा।
3. मंगल + बुध – मंगल के साथ बुध जातक को पराक्रमी एवं खर्चीले स्वभाव का बनाएगा।
4. मंगल + गुरु – भाग्येश गुरु की मंगल के साथ युति जातक को पैतृक सम्पत्ति दिलायेगी।
5. मंगल + शुक्र – यहां मंगल के साथ सुखेश लाभेश शुक्र की युति धन स्थान में जातक को माता की सम्पत्ति दिलाती है। जातक धनवान होगा।
6. मंगल + शनि – यहां मंगल के साथ सप्तमेश अष्टमेश शनि की युति धन स्थान में होने से पत्नी से मनमुटाव करायेगी। जातक की वाणी दूषित होगी।
7. मंगल + राहु – मंगल के साथ राहु धन के घड़े में छेद का काम करेगा। जातक की वाणी दम्भी होगी।
8. मंगल + केतु – मंगल के साथ केतु धन खर्च में बढ़ोतरी करेगा। व्यर्थ के रुपये खर्च होते रहेंगे।
9. मंगल दूसरे भाव में एवं तीसरे भाव में शनि हो तो जातक के सन्तान होने की सम्भावना क्षीण हो जाती है।
द्वितीय भाव के मंगल का उपचार
- ऋणमोचन मंगल स्तोत्र का पाठ करें।
- लाल या नारंगी रंग का सुगन्धित रुमाल जेब में रखें।
कर्क लग्न में मंगल का फलादेश तृतीय भाव में
कर्क लग्न में तृतीय भाव में मंगल कन्या राशि में शत्रुक्षेत्री होगा। यहां बैठकर मंगल छठे भाव नवम भाव एवं दशम भाव को पूर्ण दृष्टि से देखेगा। यह मंगल व्यक्ति को दुस्साहसी बनाता है। जातक को छोटे भाई बहन का सुख कम प्राप्त होगा।
पंचमेश होकर पंचम भाव से ग्यारहवें स्थान में स्थित होने के कारण सन्तान के लिए यह मंगल उत्तम फलदायक है। संतान को लेकर जातक का धन खर्च होगा।
दशमेश होकर दशम भाव से छठे स्थान पर स्थित होने के कारण नौकरी अच्छी मिलेगी पर परिश्रम ज्यादा करना पड़ेगा।
मंगल की नवम भाव पर दृष्टि होने के कारण जातक के अपने पिता से अच्छे सम्बन्ध होंगे। जातक को पिता की सम्पत्ति मिलेगी।
दशा – मंगल की दशा अंतर्दशा अच्छी जाएगी।
मंगल का अन्य ग्रहों से सम्बन्ध
1. मंगल + चन्द्र – मंगल के साथ चन्द्रमा की युति से ‘लक्ष्मी योग’ बनेगा। जातक अपने पराक्रम से यथेष्ट धन कमाएगा। भाई बहनों से पटेगी।
2. मंगल + सूर्य – मंगल के साथ सूर्य की युति भाइयों से एवं स्वयं के हुनुर तथा विद्या (बुद्धि) बल से जातक आगे बढ़ेगा। जातक को भाई-बहनों का सुख मिलेगा। जातक पराक्रमी होगा |
4. मंगल + बुध – मंगल के साथ उच्च का बुध जातक को साहसी पत्रकार, सम्पादक, लेखक एवं जनसम्पर्क अधिकारी बनाएगा।
5. मंगल + गुरु – मंगल के साथ गुरु जातक को बड़े भाई का सुख देगा । वृद्ध जनों की सहायता, सलाह जातक के लिए सार्थक रहेगी।
6. मंगल + शुक्र – मंगल के साथ नीच का शुक्र जातक को अय्याश बनाएगा। स्त्री मित्र व सौन्दर्य प्रसाधन पर जातक ज्यादा रुपया खर्च करेगा।
7. मंगल + शनि – मंगल के साथ सप्तमेश अष्टमेश शनि तृतीय स्थान में होने से कुटुम्ब में मतभेद की स्थिति बनाएगा। मित्रों में मतभेद रहेंगे।
8. मंगल + राहु – मंगल के साथ राहु की युति जातक को पराक्रमी बनाती है परन्तु भाइयों से विवाद रहेगा।
9. मंगल + केतु – मंगल के साथ केतु जातक को शत्रुंजयी बनाता है, पर कुटुम्बीजनों से मनमुटाव की स्थिति बनाए रखेगा।
तृतीय भाव के मंगल का उपचार
- मंगल नामावली स्तोत्र का पाठ करें।
- भौम ग्रह शान्ति विधान का प्रयोग करें।
कर्क लग्न में मंगल का फलादेश चतुर्थ भाव में
कर्क लग्न में मंगल चतुर्थ भाव में तुला राशि का होकर सप्तम भाव, दशम भाव एवं एकादश भाव पर पूर्ण दृष्टि डालेगा। चन्द्रमा मातृकारक है तथा मंगल का मित्र है फलतः जातक को माता का सुख उत्तम होगा। मंगल जातक को जमीन एवं निर्माण, ठेकेदारी से लाभ देगा। जातक का निजी बंगला आलीशान होगा तथा उसे खेती या भूमि के क्रय-विक्रय से भी लाभ होगा।
ऐसे जातक की कुण्डली मांगलिक कहलाएगी क्योंकि मंगल चौथे भाव में है। ऐसे व्यक्ति के जीवनसाथी की कुण्डली भी मांगलिक होनी चाहिए, तभी वैवाहिक जीवन सुखमय होगा।
पंचमेश होकर पांचवें भाव से बारहवें स्थान में मंगल जातक को सन्तान नहीं होने देता। यदि सन्तान हो भी जाए तो जातक के साथ सम्बन्ध अच्छे नहीं होंगे।
दशमेश होकर दशम भाव से सातवें स्थान पर होने के कारण जातक का निजी उद्योग-धन्धा एवं व्यापार होगा। जातक अपने धंधे में प्रगति करेगा।
मंगल की सातवीं दृष्टि के कारण जातक को गुप्त रोग हो या गुप्तांग की बीमारी हो सकती है। जीवनसाथी से सम्बन्ध तनावपूर्ण होंगे तथा जातक का जीवनसाथी उससे पहले गुजर जाएगा।
दशाफल – मंगल की दशा अच्छी जाएगी।
मंगल का अन्य ग्रहों से सम्बन्ध
1. मंगल + चन्द्र – मंगल के साथ चन्द्रमा ‘लक्ष्मी योग’ की सृष्टि करता है। ऐसे जातक को माता का सुख व भौतिक सम्पत्ति का सुख मिलता है।
2. मंगल + सूर्य – मंगल के साथ सूर्य की युति जातक को भूमि लाभ, भूमि से धन लाभ दिलाती है।
3. मंगल + बुध – मंगल के साथ बुध की युति जातक को उत्तम वाहन सुख, भूमि का सुख दिलाती है।
4. मंगल + गुरु – मंगल के साथ भाग्येश गुरु जातक को भाग्यशाली बनाता है। जातक को पिता की सम्पत्ति तथा वाहन का सुख मिलेगा। जातक कुल का दीपक होगा।
5. मंगल + शुक्र – मंगल के साथ स्वगृही शुक्र होने से ‘मालव्य योग’ बनेगा। जातक राजा के समान पराक्रमी व ऐश्वर्यशाली होगी। जातक बड़ी भूमि, भवन एवं वाहन का स्वामी होगा।
6. मंगल + शनि – मंगल के साथ शनि उच्च का होगा। फलत: ‘शशयोग’ बनेगा। जातक राजा-महाराजा की तरह पराक्रमी व ऐश्वर्यशाली होगा। जातक को घर का उत्तम मकान, उत्तम सुख मिलेगा।
7. मंगल + राहु – मंगल के साथ राहु माता की अकाल मृत्यु कराएगा। जातक को भौतिक सुख-सुविधाओं की प्राप्ति के लिए संघर्ष करना पड़ेगा।
8. मंगल + केतु – मंगल के साथ केतु माता को दीर्घ बीमारी देगा। जातक को वाहन दुर्घटना का भय रहेगा।
चतुर्थ भाव के मंगल का उपचार
- श्री मंगल अष्टोतर शतनामावली का पाठ करें।
- त्रिरत्न का त्रिगुणात्मक लॉकेट धारण करें।
कर्क लग्न में मंगल का फलादेश पंचम भाव में
कर्क लग्न में पंचमस्थ मंगल स्वगृही होगा तथा पंचम भाव में स्थित होकर आठवें भाव, एकादश भाव एवं द्वादश भाव को पूर्ण दृष्टि से देखेगा।
जातक को उत्तम सन्तति की प्राप्ति होगी। सन्तति अल्प होगी। अपने भाई-बहनों के साथ जातक के अच्छे सम्बन्ध होंगे।
दशम भाव का स्वामी होकर दशम भाव से आठवें होने के कारण जातक को धंधे व्यापार में काफी मेहनत करनी पड़ेगी।
मंगल की अष्टम दृष्टि जातक के जीवन में अचानक योग कराती है। यह मंगल पति-पत्नी के बीच मनोमालिन्यता उत्पन्न करता है। मंगल की एकादश भाव पर दृष्टि जातक को सुन्दर मित्रों से लाभ देती है।
दशाफल – मंगल की दशा उत्तम फल देगी।
मंगल का अन्य ग्रहों से सम्बन्ध
1. मंगल + चन्द्र – यदि मंगल के साथ चन्द्रमा हो तो ‘नीचभंग राजयोग’ की सृष्टि होगी। साथ ही चन्द्र-मंगल युति से ‘लक्ष्मी योग’ भी बनेगा। यहां चन्द्रमा का नीचत्व भंग होकर यह जातक को अपार धन दिलाने में सहायक भूमिका निभाएगा ।
2. मंगल + सूर्य – मंगल के साथ सूर्य जातक को राजकीय कृपा से धन लाभ देगा। जातक को सरकारी खजाने से वजीफा व धन मिलेगा।
3. मंगल + बुध – मंगल के साथ बुध पराक्रम में वृद्धि कराएगा तथा जातक को दो कन्या संतति भी देगा।
4. मंगल + गुरु – मंगल के साथ गुरु पांच पुत्रों का योग बनाता हैं। जातक धैर्यवान होगा तथा नैतिक नियमों-परम्पराओं के निर्वाह के प्रति जागरुक होगा।
5. मंगल + शुक्र – मंगल के साथ शुक्र व्यापार से लाभ देगा। जातक को पुत्र के साथ कन्या संतति भी अवश्य होगी।
6. मंगल + शनि – मंगल के साथ शनि की युति विद्या में रुकावट दिलाएगी। एकाध गर्भपात संभव है।
7. मंगल + राहु – मंगल के साथ राहु विद्या तथा संतान में बाधा दिलाएगा।
8. मंगल + केतु – मंगल के साथ केतु गर्भस्राव कराता है। संतान शल्यचिकित्सा से हाथ लगती है।
9. मंगल + राहु – पंचमस्थ मंगल के साथ राहु हो तो स्त्री जातक का मासिक धर्म रुकावट के साथ अनियमित आता है।
पंचम भाव के मंगल का उपचार
- त्रिरत्न त्रिगुणात्मक लॉकेट पहने।
कर्क लग्न में मंगल का फलादेश षष्टम भाव में
कर्क लग्न में छठे स्थान पर स्थित मंगल धनु राशि में मित्रक्षेत्री होगा जहां बैठकर वह भाग्य भवन, व्यय स्थान एवं लग्न स्थान को देखेगा। यह स्थिति जातक को रोग शत्रु एवं कर्ज पर विजय दिलाती है।
विद्याभंग योग – पंचमेश मंगल छठे जाने से यह योग बना। ऐसे जातक के विद्याध्ययन में रुकावट जरूर आती है।
पुत्रहीन योग – यदि पंचम भाव पर शुभ ग्रहों की दृष्टि न हो, तो यह योग बन जाता है। जातक को पुत्र सन्तति नहीं होती। यह मंगल पंचम भाव से दूसरे स्थान पर होने से कुछ शुभ फल भी देगा।
दशमेश मंगल दशम भाव से कोण (नवें) में होने के कारण नौकरी अच्छी मिलेगी। नौकरी में प्रमोशन होता रहेगा। कम परिश्रम पर भी अधिक लाभ मिलने का योग है। नवम भाव पर मंगल की दृष्टि पिता की सम्पत्ति के निमित्त शुभ नहीं मानी गई है। जातक व्यसनी होगा तथा फालतू कामों के लिए रुपया खर्च करेगा। जातक भाई-बहनों का शुभचिन्तक होगा।
लग्न स्थान (प्रथम भाव ) पर मंगल की दृष्टि जातक को उग्र स्वभाव वाला स्वामिभानी बनाती है। जातक के चेहरे पर गंभीर चोट का निशान होना चाहिए।
दशाफल – मंगल की दशा अच्छा फल देगी।
मंगल का अन्य ग्रहों से सम्बन्ध
1. मंगल + चन्द्र – मंगल के साथ चन्द्रमा ‘लग्नभंग योग’ बनाएगा। ऐसे जातक को जीवन में आगे बढ़ने के लिए काफी संघर्ष करना पड़ेगा। किसी भी कार्य में प्रथम प्रयास में सफलता नहीं मिलेगी।
2. मंगल + सूर्य – मंगल के साथ सूर्य होने से ‘धनहीन योग’ बनेगा। ऐसे जातक के पास बहुत परिश्रम करने पर भी धन इक्ट्ठा नहीं होगा। सरकारी नौकरी छूट जाएगी।
3. मंगल + बुध – मंगल के साथ बुध होने से पराक्रमभंग योग बनता है। साथ ही विपरीत राजयोग भी बनता है। ऐसा जातक धनी होगा। जातक को उत्तम वाहन का सुख मिलेगा।
4. मंगल + गुरु – मंगल के साथ गुरु जहां ‘भाग्यभंग योग’ बनाता है वहां षष्टेश अष्टम में स्वगृही होने से विपरीत राजयोग बनाता है। जातक धनी तथा उत्तम वाहन, भवन के सुख से युत होगा।
5. मंगल + शुक्र – मंगल के साथ शुक्र होने से ‘लाभभंग योग’ एवं सुखहीन योग’ बनते हैं। जातक को गुप्त बीमारी एवं रोग की संभावना रहेगी।
6. मंगल + शनि – मंगल के साथ शनि होने से जहां ‘विवाहभंग योग’ बनता है वहीं अष्टमेश छठे होने से ‘विपरीत राजयोग’ बनेगा। जातक धनी होगा। वाहन सुख भरपूर पर दुर्घटना का भय रहेगा।
7. मंगल + राहु – मंगल के साथ राहु जातक का शत्रु संघर्ष में विजय दिलाता है परन्तु दुर्घटना का भय रहेगा।
8. मंगल + केतु – मंगल के साथ केतु पांव में चोट पहुंचाएगा। जातक को ऑपरेशन का भय रहेगा।
षष्टम भाव के मंगल का उपचार
- भौम के तांत्रिक मंत्रों का प्रयोग करें।
- अंगारक स्तोत्र का पाठ करें।
- मंगल जातक मंगलागौरी व्रत करें।
- विवाह में विलम्ब या बाधा महसूस होने पर घट विवाह का प्रयोग करें।

कर्क लग्न में मंगल का फलादेश सप्तम भाव में
कर्क लग्न में मंगल परम राजयोग कारक होकर सप्तम भाव में उच्च का स्थित होने से ‘रुचक योग’ की सृष्टि होती है। धन-यश-कीर्ति व सत्ता के लिए यह सबसे उत्तम योग है।
ऐसा जातक मजबूत कद-काठी वाला व बलवान होकर राजातुल्य ऐश्वर्य को भोगेगा। ऐसा जातक राज्याधिकारी होता है तथा इंसाफ को तौलने वाला होता है।
निशानी – जातक अपने कुटुम्बी परिवार को विष्णु की तरह पालने वाला प्राणी होता है। रोते को हंसाने वाला एवं खुद के पुरुषार्थ से दो मंजिला नया मकान बनाने वाला होता है।
मंगलीक – मंगल सातवें होने के कारण यह कुण्डली प्रबल रूप से मांगलिक हो गई है। ऐसे जातक का जीवनसाथी भी मांगलिक होना चाहिए तभी दाम्पत्य जीवन में सुन्दरता आती है। यद्यपि उच्च का मंगल मंगलदोष को कम करता है फिर भी पति-पत्नी के मध्य संघर्ष रहेगा।
पंचमेश सातवें भाव में उच्च का होने के कारण जातक की सन्तान पराक्रमी तथा बुद्धिशाली होगी एवं सन्तान के माध्यम से जातक का भाग्योदय होगा ।
दशमेश मंगल दशम भाव से दसवें स्थान पर होने से नौकरी-व्यापार उत्तम जातक की आर्थिक स्थिति मजबूत होगी। मंगल की द्वितीय भाव पर दृष्टि होने के कारण दाईं आंख में दोष, वाणी रौबीली रहेगी क्योंकि द्वितीय भाव वाणी का है।
दशाफल – मंगल की दशा भाग्योदयकारी होगी।
मंगल का अन्य ग्रहों से सम्बन्ध
1. मंगल + चन्द्र – मंगल के साथ चन्द्रमा ‘महालक्ष्मी योग’ बनाएगा। लग्नेश के लग्न को देखने से जातक को जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में सफलता मिलेगी। अल्प प्रयास का बहुलाभ होगा।
2. मंगल + सूर्य – मंगल के साथ सूर्य विवाह से धन दिलाएगा। विवाह के बाद जातक की किस्मत चमकेगी। जातक का भाग्योदय तीन किश्तों में होगा। प्रथम 28वें वर्ष में, दूसरा विवाह के बाद तीसरा प्रथम संतति के बाद होगा ।
3. मंगल + बुध – मंगल के साथ बुध जातक को अत्यधिक पराक्रमी बनाएगा। जातक पत्नी व गुप्त कार्यों में अधिक धन खर्च करेगा।
4. मंगल + गुरु – यदि मंगल के साथ गुरु हो तो ‘नीचभंग राजयोग’ की सृष्टि होगी। गुरु का नीचत्व समाप्त होकर वह शुभ फलदाई होकर जातक के भाग्य निर्माण में सकारात्मक भूमिका निभाएगा।
5. मंगल + शुक्र – मंगल के साथ शुक्र जातक को माता की सम्पत्ति दिलाएगा। सभी भौतिक सुख व ऐश्वर्य देगा। व्यापार ठेकेदारी में लाभ होगा। जातक कुल का नाम रोशन करेगा।
6. मंगल + शनि – यदि मंगल के साथ शनि हो तो ‘किम्बहुना योग’ बन जाता है। शनि स्वगृही और मंगल उच्च का, इसमें अधिक और क्या? जातक का भाग्योदय विवाह के तत्काल बाद हो जाता है। उसका ससुराल धनवान होता है।
यदि ऐसी ग्रह स्थिति में चन्द्रमा भी इनके साथ हो तो जातक स्वयं लखपति होता है तथा विवाह के बाद करोड़पति हो जाता है क्योंकि चन्द्र-मंगल में ‘महालक्ष्मी योग’ की सृष्टि होती है।
7. मंगल + राहु – मंगल के साथ राहु विवाह में समस्या पैदा करेगा। जातक अन्य स्त्रियों से भी शारीरिक सम्पर्क रखेगा।
8. मंगल + केतु – मंगल के साथ केतु जातक में धूर्तता के लक्षण उत्पन्न करेगा। जातक विपरीत लिंगियों के प्रति सहज ही आकर्षित होगा।
सप्तम भाव के मंगल का उपचार
- त्रिरत्न त्रिगुणात्मक लॉकेट पहनें।
- भौम मंगल स्तोत्र का प्रयोग करें।
- विलम्ब विवाह या अविवाह की स्थिति में घर विवाह का प्रयोग करें।
कर्क लग्न में मंगल का फलादेश अष्टम भाव में
कर्क लग्न में अष्टम भाव में स्थित कुम्भ का मंगल शत्रुक्षेत्री है। यह मंगल लाभ स्थान, धन स्थान एवं पराक्रम स्थान को पूर्ण दृष्टि से देखेगा। यह मंगल अकस्मात मृत्युयोग, भगन्दर, मस्सा एवं मूत्राशय के रोग को देगा। जातक की वाणी अप्रिय होगी, दांत व मुख के रोग सम्भव कुटुम्ब में तकरार होगी। बड़े भाई व भागीदारों से नहीं निभेगी। जातक स्त्रैण व डरपोक होगा।
दशमेश मंगल, दशम भाव से ग्यारहवें एवं लग्न से आठवें होने के कारण नौकरी-धंधे व्यापार में मिश्रित फल देगा।
मांगलिक कुण्डली – मंगल यहां अष्टम स्थान में होने से कुण्डली मांगलिक हो गई है। ऐसे जातक के जीवनसाथी की कुण्डली भी मांगलिक होनी चाहिए, तभी वैवाहिक जीवन सुखमय होगा।
विद्याभंग योग – पंचमेश आठवें स्थान में जाने से यह योग बना। ऐसे जातक की विद्या में बाधा जरूर आती है।
पुत्रहीन योग – पंचमेश अष्टम में हो तथा पंचम स्थान पर शुभ ग्रहों की दृष्टि न हो तो यह योग बनता है। ऐसे जातक के पुत्र सन्तति नहीं होती।
दशाफल – मंगल की दशा अच्छी नहीं जाएगी।
मंगल का अन्य ग्रहों से सम्बन्ध
1. मंगल + चन्द्र – मंगल के साथ चन्द्रमा ‘लग्नभंग योग’ कराएगा। जातक को प्रथम प्रयास में सफलता नहीं मिलेगी। जातक नकारात्मक विचारों से प्रभावित होगा।
2. मंगल + सूर्य – मंगल के साथ सूर्य ‘धनहीन योग’ की सृष्टि करेगा। जातक को आर्थिक संघर्ष का सामना करना पड़ेगा। जातक की सरकारी नौकरी छूट जाएगी।
3. मंगल + बुध – मंगल के साथ बुध जहां ‘पराक्रम भंग योग’ बनाता है। वहीं व्ययेश अष्टम में जाने से ‘विपरीत राजयोग भी बनाता है जातक धनी होगा। वाहन सुख तथा ऐश्वर्य से परिपूर्ण जीवन होगा।
4. मंगल + गुरु – मंगल के साथ गुरु जहां ‘भाग्यहीन योग’ बनाता है, वहीं षष्टेश के अष्टम में जाने से ‘विपरीत राजयोग’ भी बनेगा। जातक धनवान, ऐश्वर्यवान होगा।
5. मंगल + शुक्र – मंगल के साथ शुक्र जातक की कुण्डली में ‘लाभभंग योग’, ‘सुखहीन योग’ भी बनाता है। ऐसा जातक अय्याश होता है। उसे वाहन दुर्घटना का भय रहता है।
6. मंगल + शनि – मंगल के साथ शनि ‘विवाहभंग योग’ बनाता है परन्तु अष्टमेश के अष्टम भाव में स्वगृही होने से विपरीत राजयोग बनेगा। जातक महाधनी होगा। वाहन सुख पूर्ण होगा।
6. मंगल + राहु – मंगल के साथ राहु जीवनसाथी से वियोग कराता है। अचानक दुर्घटना का भय भी देता हैं।
7. मंगल + केतु – मंगल के साथ केतु शल्य चिकित्सा कराता है। जातक के दाएं पांव में चोट भी पहुंचाता है।
अष्टम भाव के मंगल का उपचार
- मीठी रोटी या लड्डू कुत्तों को खिलाएं।
- भौम ग्रह शान्ति का विधान करें।
- स्त्री जातक मंगलागौरी का व्रत करें।
- अविवाह, विलम्ब विवाह एवं जीवनसाथी से बिछोह की स्थिति में ‘घट विवाह’ का प्रयोग करें।
कर्क लग्न में मंगल का फलादेश नवम भाव में
कर्क लग्न में नवम भाव में स्थित मीन राशि का मंगल मित्रक्षेत्री होकर स्वगृहाभिलाषी होगा। यह मंगल जातक को महत्वाकांक्षी बनाएगा। जातक का पिता प्रतिष्ठित व धार्मिक होगा। जातक को पिता की सम्पत्ति वारिस में मिलेगी। जातक के भाई-बहनों से सम्बन्ध अच्छे रहेंगे।
दशमेश मंगल कोण में होने से धंधा नौकरी व व्यापार में आवक उत्तम होगी।
उत्तम सन्तति योग – पंचमेश मंगल पंचम भाव से कोण (पांचवें स्थान) में होने से सन्तान उत्तम एवं जातक की मान-प्रतिष्ठा बढ़ाने वाली होगी।
मंगल की द्वादश भाव पर दृष्टि शयन सुख में बाधक है। जातक को मानसिक चिन्ता अधिक रहेगी। नींद कम आएगी।
मंगल की दृष्टि चौथे भाव पर होने से जातक की माता बीमार रहेगी, अथवा मां का सुख, मकान सुख उत्तम वाहन सुख उत्तम होगा।
दशाफल – मंगल की दशा उत्तम फल देगी।
मंगल का अन्य ग्रहों से सम्बन्ध
1. मंगल + चन्द्र – मंगल के साथ चन्द्रमा ‘लक्ष्मीयोग’ बनाएगा। जातक को माता-पिता का सुख सम्पत्ति मिलेगी।
2. मंगल + सूर्य – मंगल के साथ सूर्य जातक को धनवान बनाएगा। उसे सरकार से भूमि से लाभ होगा।
3. मंगल + बुध – मंगल के साथ बुध जातक को महापराक्रमी बनाएगा पर रिश्तेदारों से जातक की कम पटेगी।
4. मंगल + गुरु – मंगल के साथ गुरु स्वगृही जातक को महान भाग्यशाली बनाएगा। जातक को संतति से लाभ, विद्या से विशेष लाभ मिलेगा।
5. मंगल + शुक्र – मंगल के साथ शुक्र उच्च का जातक को सम्पूर्ण भौतिक ऐश्वर्य, उत्तम वाहन सुख एवं व्यापार में लाभ देगा।
6. मंगल + शनि – मंगल के साथ शनि ससुराल से लाभ दिलाएगा पर जीवनसाथी से कम पटेगी।
7. मंगल + राहु – मंगल के साथ राहु अचानक भाग्य में वृद्धि कराएगा। जातक युद्ध प्रिय होगा।
8. मंगल + केतु – मंगल के साथ केतु जातक को तेजस्वी बनाएगा। जातक अपने शत्रुओं को हराने में पूर्ण सक्षम होगा।
नवम भाव के मंगल का उपचार
- त्रिरत्न त्रिगुणात्मक लॉकेट पहनें।
- सर्वत्र सफलता के लिए नारंगी रंग का सुगन्धित रुमाल जेब में रखें।
कर्क लग्न में मंगल का फलादेश दशम भाव में
कर्क लग्न में मंगल परम राजयोग कारक होकर दशम भाव में स्वगृही होने से क्रमशः ‘कुलदीपक योग’ एवं ‘रुचक योग’ की सृष्टि करता है।
ऐसा जातक अपने कुटुम्ब परिवार का नाम दीपक के समान रौशन करने वाला सबका चहेता व प्यारा होता है।
रुचक योग के कारण जातक बड़ी भू-सम्पत्ति का स्वामी होता है। जातक राजा तुल्य ऐश्वर्य को भोगने वाला, राज दरबार में ऊंचा पद पाने वाला माता व अपनी सन्तान से सुखी, समाज का सेवक होता है।
निशानी – ऐसे जातक के जन्म से ही घर-परिवार में सब ओर से तरक्की होनी शुरू हो जाती है।
विशेष – दसवें घर का स्वामी होकर मंगल दशमस्थ होने से ‘पद्म सिंहासन योग’ भी बनाता है। ऐसा जातक मध्यम (निम्न) परिवार में जन्म लेकर भी कीचड़ में कमल की तरह खिलता हुआ धीरे-धीरे उच्च पद व प्रतिष्ठा को प्राप्त करता है।
मंगल पंचम भाव से छठे होने से सन्तान से विचार नहीं मिलेंगे। तृतीय भाव में मंगल आठवें होने के कारण भाइयों में विचार कम मिलेंगे।
मंगल की दृष्टि प्रथम (लग्न) स्थान पर होने के कारण जातक उग्र स्वभाव का एवं दम्भी होगा । जातक का व्यक्तित्व प्रभावशाली होगा। सिर व मुंह पर चोट के निशान होंगे।
दशा – मंगल की दशा भाग्योदय कराएगी।
मंगल का अन्य ग्रहों से सम्बन्ध
1. मंगल + चन्द्र – मंगल के साथ चन्द्रमा ‘महालक्ष्मी योग’ की सृष्टि करेगा।
2. मंगल + सूर्य – यदि यहां सूर्य हो तो ‘किम्बहुना योग’ बनेगा अर्थात् सूर्य उच्च का एवं मंगल स्वगृही हो तो इससे अधिक और क्या? ऐसा जातक राजा के समान उच्च पद को भोगता है।
3. मंगल + बुध – मंगल के साथ बुध जातक को महान् पराक्रमी बनाएगा। जातक को व्यापार से लाभ होगा।
4. मंगल + गुरु – मंगल के साथ गुरु होने से जातक परम भाग्यशाली होगा तथा कुल का नाम रोशन करेगा।
5. मंगल + शुक्र – मंगल के साथ शुक्र जातक को उत्तम वाहन का सुख, माता का सुख एवं पत्नी का भरपूर सुख देगा। व्यापार में भी भरपूर लाभ देगा।
6. मंगल + शनि – यदि यहां मंगल के साथ शनि हो तो ‘नीचभंग राजयोग’ की सृष्टि होगी। शनि का नीचत्व समाप्त होकर वह शुभ फल दाई हो जाएगा। शनि पत्नी पक्ष एवं आयु पक्ष में सकारात्मक भूमिका निभाएगा। विवाह के तत्काल बाद जातक का भाग्योदय होगा।
7. मंगल + राहु – मंगल के साथ राहु जातक को क्रोधी एवं युद्ध प्रिय व्यक्ति बनाएगा पर जातक सदैव विजयी रहेगा।
8. मंगल + केतु – मंगल के साथ केतु जातक को अदम्य साहसी बनाएगा। जातक शत्रुओं के लिए आतंक का पर्याय होगा।
दशम भाव के मंगल का उपचार
- त्रिरत्न त्रिगुणात्मक लॉकेट पहनें।
- नारंगी रंग का सुगन्धित रुमाल जेब में रखें।
कर्क लग्न में मंगल का फलादेश एकादश भाव में
कर्क लग्न में मंगल एकादश भाव में वृष राशि का मंगल शत्रुक्षेत्री होकर, द्वितीय स्थान पंचम स्थान एवं षष्टम स्थान को पूर्ण दृष्टि से देखेगा। यह मंगल धंधे व व्यापार व नौकरी में उत्तम लाभ देगा। जातक को अच्छे मित्र मिलेंगे।
मंगल पंचमेश होकर पंचम भाव से सातवें होकर अपने घर (पंचम भाव पर पूर्ण दृष्टि डालने से सन्तान सुख उत्तम देगा। सन्तान के प्रति जातक का व्यवहार कड़क (अनुशासन प्रिय) होगा।
दशमेश मंगल दशम भाव में दूसरे स्थान पर स्थित होने से जीवन में जातक की आर्थिक स्थिति सुदृढ़ रहेगी। जातक का मातृपक्ष सबल होगा।
मंगल की दृष्टि द्वितीय भाव पर होने के कारण दाईं आंख की दृष्टि कमजोर होगी। जातक की वाणी अप्रिय होगी जिससे उसके कुटुम्बीजन भी उसके अन्तर्विरोधी रहेंगे भाइयों के साथ जातक के सम्बन्ध ठीक रहेंगे।
छठे भाव पर मंगल की दृष्टि शत्रुओं पर विजय दिलाएगी।
दशाफल – मंगल की दशा उत्तम फल देगी।
मंगल का अन्य ग्रहों से सम्बन्ध
1. मंगल + चन्द्र – मंगल के साथ चन्द्रमा ‘महालक्ष्मी योग बनाएगा। जातक महाधनी होगा।
2. मंगल + सूर्य – मंगल के साथ सूर्य जातक को धनी बनाएगा। विद्या योग से, स्वपराक्रम से जातक खूब धन कमाएगा।
3. मंगल + बुध – मंगल के साथ बुध जातक का पराक्रम बढ़ाएगा। जातक बुद्धिबल से आगे बढ़ेगा।
4. मंगल + गुरु – मंगल के साथ गुरु जातक को परम भाग्यशाली बनाएगा। जातक क भाग्योदय प्रथम पुत्र के बाद होगा।
5. मंगल + शुक्र – मंगल के साथ शुक्र स्वगृही जातक को सुन्दर पत्नी का सुख, उत्तम वाहन, उत्तम व्यापार का सुख दिलाएगा।
6. मंगल + शनि – मंगल के साथ शनि जीवन साथी के साथ मनोमालिन्यता परन्तु जीवनसाथी का पूर्ण सुख देगा।
7. मंगल + राहु – मंगल के साथ राहु व्यापार में अचानक हानि दिला सकता है।
8. मंगल + केतु – मंगल के साथ केतु व्यापार को उन्नति के शिखर पर पहुंचा सकता है।
एकादश भाव के मंगल का उपचार
- त्रिरत्न त्रिगुणात्मक लॉकेट पहनें।
- नारंगी रंग का सुगन्धित रुमाल जेब में रखें।
कर्क लग्न में मंगल का फलादेश द्वादश भाव में
कर्क लग्न में मंगल द्वादश भाव में मिथुन राशि का शत्रुक्षेत्री होकर तृतीय स्थान, छठे स्थान व सातवें स्थान को पूर्ण दृष्टि से देखेगा। जातक दुर्व्यसनों में रुपया खर्च करेगा। रुपया हाथ में आएगा खर्च होता चला जाएगा। पैसा पास में नहीं टिकेगा। जातक का चरित्र सन्देहास्पद रहेगा।
मांगलिक कुण्डली – मंगल बारहवें स्थान में होने से कुण्डली मांगलिक हो गई है। ऐसे जातक के जीवन साथी की कुण्डली भी मांगलिक होने से दाम्पत्य जीवन सुखी रहता है। अन्यथा जीवन साथी से विवाद रहेगा। जीवन साथी की मृत्यु पहले होगी।
विद्याभंग योग – पंचमेश मंगल बारहवें होने से यह योग बना। ऐसे जातक के विद्याध्यायन में रुकावट अवश्य आती है।
पुत्रहीन योग – यदि पंचम भाव पर शुभ ग्रहों की दृष्टि न हो, तो यह योग बनता है। जातक के पुत्र सन्तति नहीं होती। पंचम भाव से आठवें एवं पंचमेश बनकर बारहवें होने से सन्तान यहां सुख में कुछ न कुछ न्यूनता रहेगी।
दशमेश मंगल बारहवें एवं दशम भाव से तृतीय स्थान पर मंगल होने से जातक को नौकरी-धंधे में आशातीत सफलता नहीं मिलेगी। छोटे भाइयों से सम्बन्ध अच्छे (मधुर) न रहेंगे।
मंगल की दृष्टि छठे भाव पर होने के कारण जातक के गुप्त एवं प्रकट शत्रु बहुत होंगे पर जातक शत्रुओं को सबक सिखाने में पूर्ण सक्षम होगा। जातक को मूत्राशय के रोग अकस्मात् हो सकते हैं।
दशाफल – मंगल की दशा खराब जाएगी।
मंगल का अन्य ग्रहों से सम्बन्ध
1. मंगल + चन्द्र – मंगल के साथ चन्द्रमा ‘लग्नभंग योग’ बनाएगा। जातक को किसी भी कार्य में प्रथम प्रयास में सफलता नहीं मिलेगी।
2. मंगल + सूर्य – मंगल के साथ सूर्य ‘धनहीन योग’ बनाएगा। जातक की सरकारी नौकरी छूट जाएगी। नेत्रपीड़ा भी होगी।
3. मंगल + बुध – मंगल के साथ बुध जहां ‘पराक्रम भंग योग’ बनाएगा। वहीं जातक को ‘विपरीत राजयोग’ के कारण परम धनी भी बनाएगा।
4. मंगल + गुरु – मंगल के साथ गुरु जहां ‘भाग्यभंग योग’ बनाता है वहीं ‘विपरीत राजयोग’ के कारण जातक के पास सम्पूर्ण ऐश्वर्य होगा।
5. मंगल + शुक्र – मंगल के साथ शुक्र ‘लाभभंग योग’, ‘सुखहीन योग’ की सृष्टि करता है। जातक विलासी होगा एवं व्यर्थ में रुपया खर्च करता रहेगा।
6. मंगल + शनि – मंगल के साथ शनि ‘विवाहभंग योग’ बनाता है, साथ में विपरीत राजयोग के कारण जातक को महाधनी भी बनाएगा।
7. मंगल + राहु – मंगल के साथ राहु व्यर्थ की यात्रा कराएगा। बुरे सपने आयेगे। दुर्घटना का भय रहेगा।
8. मंगल + केतु – मंगल के साथ केतु धार्मिक यात्राएं (Pleasure trip) कराएगा। ऐसा जातक अदम्य साहसी होगा। सपने प्रायः सच होंगे।
द्वादश भाव के मंगल का उपचार
- दाम्पत्य सुख कारक मंगल मंत्र का पूजन करें।
- मंगल चणिका स्तोत्र का पाठ करें।
- स्त्री जातक मंगलागौरी का व्रत करें।
- अविवाह एवं विलम्ब विवाह की स्थिति में घट विवाह करें।
0 Comments