कुंडली में सूर्य का प्रभाव

सूर्य अपने सक्रांति पथ पर संचरण करते हुए एक राशि के 30 अंशों का भ्रमण लगभग एक माह में पूरा करता है। सूर्य अंग्रेजी महीने अप्रैल की 13 तारीख से अपना सफर मेष राशि से (निरंयन पद्धति के अनुसार) शुरू करता है। अपने संक्राति पथ पर कहीं थोड़ा धीमा, कहीं थोड़ा तेज चलते हुए सूर्य दिन-रात को छोटा-बड़ा करता रहता है। मेष व तुला राशियों में सूर्य गोचर के समय दिन-रात बराबर होते हैं। मेष से तुला राशि तक सूर्य के गोचर में दिनमान प्रतिमास एक-एक घड़ी बढ़ता है जबकि तुला से मीन राशि तक सूर्य के गोचर में दिनमान प्रतिमास एक-एक घड़ी घटता जाता है।

सूर्य राशि संक्रमण के एक सप्ताह पूर्व ही अगली राशि के फल देना प्रारंभ कर देता है। इसे भाव कुंडली के दसवें भाव में दिग्बल प्राप्त होता है और चौथे भाव में वह दिग्बल खो देता है। राशि व्यवस्था में इसे भी चंद्रमा की भांति एक ही राशि का स्वामित्व प्राप्त होता है। सूर्य को सिंह राशि का स्वामी कहा गया है। मेष राशि को उसकी उच्च की राशि और तुला को नीच की राशि माना जाता है।

ज्योतिष विज्ञान में सूर्य का धारणाचित्र एक लम्बे पुरुष का माना गया है जिसके नेत्र अग्नि लपटों के समान पीले और देह का रंग गहरा भूरा (Dark Brown) माना गया है। उसे गंजे सिर और बिना बालों वाली देह का, आग्नेय स्वभाव का पित्तकारक प्रकृति का माना गया है।

सूर्य ज्योतिष विज्ञान में पिता, व्यक्तित्व के चुम्बकीय आकर्षण, शारीरिक शक्ति, अदम्य ऊर्जा, मांसपेशियों की मजबूती, दृढ़ इच्छाशक्ति, अपरिमित शौर्य, साहस,

प्रतिष्ठा, अधिशासन और पद का संकेतक व प्रतीक माना गया है। सरकार और अधिकारियों पर उसका शासन माना जाता है। वह तीर्थों, खुले स्थानों, पर्वत श्रेणियों, वन प्रदेशों, राजधानियों और महानगरों तथा पूजा स्थलों आदि स्थानों और पूर्व दिशा का शासक माना गया है।

देह के जिन अंगों को सूर्य के शासन व नियंत्रण में रखा गया है, उनमें सिर, उदर, अस्थियां, हृदय, धमनियां, रक्त प्रवाह, नेत्र, | मस्तिष्क, गला आदि शामिल हैं। बीमारियों में सूर्य को रक्तचाप, उच्च ज्वर, दिमागी गड़बड़ी, नेत्र रोगों, गले, नाक और कान में संक्रमण और पेचिश आदि का कारक भी माना जाता है। उक्त बीमारियां सूर्य तब पैदा करता है जब वह किसी दुःस्थान में स्थित और अशुभ ग्रहों द्वारा दुष्प्रभावित जलीय राशियों में संचरण करता है ।

सूर्य ईंधन, छिपने के स्थानों, खालों, ऊन, हथियार, रेशमी कपड़ा, तीखी गंध, पशु पालक, मोटा अनाज, सोना, आग, विष, औषध, गेहूं, राजाओं, राजनीतिज्ञों और चिकित्सकों का भी प्रतिनिधि शासक और संचालक ग्रह होता है। सूर्य प्राण है।

सूर्य मानव में आत्मा रूप माना गया है। वह मानव की शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक क्षमताएं बढ़ाता है, उन्हें शक्ति प्रदान करता है और निरोगी रहने में उनकी भरपूर मदद करता है।

विभिन्न राशियों में सूर्य की स्थिति के फल

1. मेष : यदि सूर्य मेष राशि में बैठा हो तो जातक विद्वान, कुशल वक्ता, योद्धा, हिंसक, सक्रिय, शक्तिशाली, आत्मसंयमी, आकर्षक और घुमक्कड़ होता है। यह सूर्य की उच्च की राशि होती है और इसमें स्थित सूर्य जातक को अधिकार संपन्न, उतावला, धर्मपरायण और दृढ़संकल्प वाला बनाता है। जातक को पित्त व रक्त विकार हो सकते हैं।

2. वृषः यदि सूर्य वृष राशि में हो जो जातक सहिष्णु, चतुर, बुद्धिमान, ईर्ष्यालू, महिला जातक हो तो बांझ, प्रभावशाली संगीत-प्रेमी, व दृढ़ बनाता है। जातक को जल से खतरा हो सकता है।

3. मिथुन : यदि सूर्य मिथुन राशि में हो तो जातक मधुर स्वभाव वाला, त्वरित बुद्धि, आकर्षक, शास्त्रज्ञ, सामान्य से अधिक तकनीकी, भद्र, संपन्न, सज्जन, आशावादी और उद्यमशील होता है। वह ज्योतिष विज्ञान का जानकार हो सकता है।

4. कर्क : सूर्य कर्क राशि में हो तो जातक नम्र स्वभाव का लेकिन अभिमानी, माता-पिता और संबंधियों का विरोधी, भूगोल का ज्ञाता, प्रशासक, अच्छे शक्ल वाला होता है। यदि वह घर परिवार से जुड़कर रहता है तो संपन्नता प्राप्त कर लेता है। व्यापार में ऐसे व्यक्ति को साझीदार बनाना दुर्भाग्यशाली होता है। वह जातक कफ और पित्त प्रकृति के रोगों से भी पीड़ित रहता है ।

5. सिंहः यदि सूर्य सिंह राशि में हो तो जातक उत्साही, बातूनी, धनी, प्रसिद्ध, जमीन जायदाद का मालिक और अति महत्त्वाकांक्षी होता है। वह किसी का अधीनस्थ होकर काम नहीं कर सकता। वह दयालू होता है। उसे पर्वतारोहण का और हर कीमत पर जीतने का शौक होता है।

6. कन्या : सूर्य कन्या राशि में हो तो जातक दुबला-पतला, शर्मीला, कमजोर लेकिन विद्वान होता है। वह माता-पिता और गुरु का भक्त होता है। वह लेखक, वेदांती, संगीतज्ञ बन सकता है। अतिथि सत्कार उसका शौक होता है ।

7. तुला : इस राशि में सूर्य नीच का (अस्तावस्था में) होता है। वह जातक को रुखा, संकीर्ण, धूर्त और आवारा बना देता है। ऐसा जातक अपना मान-सम्मान और धन गवां बैठता है । वह व्यक्ति अपने से वरिष्ठ जनों के साथ दुर्व्यवहार करने वाला, ईर्ष्यालू, धोखेबाज होता है। वह धातुओं से संबंधित किसी रोजगार में नौकरी करके आजीविका चलाता है। ऐसे जातक का विवाह शीघ्र हो जाता है। वैसे वह अपना काम मन लगाकर करता है और निष्पक्ष व पहल करने वाला भी होता है।

8. वृश्चिक : सूर्य राशि में हो तो जातक कुरूप, असम्मानित, संकीर्ण, लालची, शीघ्र ही क्रोध में आ जाने वाला, झगड़ालू और झूठा होता है। वह धार्मिक नहीं होता और मादक द्रव्यों के व्यापार से धन कमाता है। दुर्घटनाओं, हथियारों, आग और जहर से उसके जीवन को खतरा रहता है।

9. धनुः यदि सूर्य धनु राशि में हो तो जातक संपन्न, भक्ति भाव रखने वाला, तेज, योद्धा, चतुर, शांत, आकर्षक, मजबूत, खोजी या आविष्कारक, पहल करने वाला लेकिन साथ ही रहस्यवादी भी होता है। वह ब्राह्मणों और जाति बंधुओं की सेवा-सहायता करने वाला भी होता है ।

10. मकर : यदि जातक की जन्मकुंडली में सूर्य मकर राशि में बैठा हो तो वह मित्रविहीन, लालची, धूर्त, आवारा, चकमेबाज और निर्धन होता है । वह परिवार के सम्मान को बट्टा लगाता है लेकिन अच्छा मालिक और अच्छा नौकर दोनों ही बन सकता है।

11. कुंभ : यदि सूर्य कुंभ राशि में हो तो जातक पीठ में छुरा घोंपने वाला, दगाबाज, गरीब होता है। अक्सर ऐसा व्यक्ति हृदय रोगों से पीड़ित रहता है।

12. मीन : यदि सूर्य मीन राशि में बैठा हो तो जातक धनी संपन्न, प्रसिद्ध, विजेता स्त्री-पुत्रों और मित्रों से समृद्ध होता है। उसे जहाज रानी, फोटोग्राफी, मोती, व्यापार आदि से कमाई होती है। वह विरासत में भी सम्पत्ति पा सकता है। उसकी साझेदारी में व्यापार सफल रहता है।

विभिन्न भावों में सूर्य की स्थिति के फल

तीन नक्षत्रों कृतिका, उत्तर-फाल्गुनी और उत्तराषाढ़ का स्वामी सूर्य होता है । यदि वह जन्म नक्षत्र का स्वामी हो अर्थात् जातक का जन्म नक्षत्र कृतिका, उत्तर- फाल्गुनी अथवा उत्तराषाढ़ में से कोई हो तो जातक के लिए हानिकारक माना जाता है। यदि सूर्य पूर्ण दृष्टि से भी अपने नक्षत्रों को देख रहा हो तो भी अशुभ माना जाता है। विभिन्न भावों में सूर्य की स्थिति के फल निम्न प्रकार हैं:

1. पहला भाव : जातक स्वतंत्र विचारों वाला, साहसी, डींगें हांकने वाला और उतावला होता है। वह सिरदर्द या मुख के रोगों से परेशान रह सकता है। सूर्य की विंशोत्तरी दशा-अंतर दशा के काल में जातक लापरवाह और निर्दय प्रकृति, नजर के अथवा आंखों के रोग आदि देता है ।

2. दूसरा भाव : जातक भाग्यवान और संपत्तिशाली तो होता है, साथ ही वह झगड़ालू भी होता है। सूर्य की महादशा / अंतरदशाओं की अवधि में ऐसा जातक अवांछित और ओछी बातें करने लगता है। उसका खर्च बढ़ जाता है और उसमें काफी अधिक उतावलापन आ जाता है। अनैतिक प्रवृत्तियां जातक को अपना शिकार बना लेती हैं और वह धन गवां बैठता है ।

3. तीसरा भाव : जातक पराक्रमी, प्रतापी, यशस्वी और राज मान्य होता है । वह शत्रुओं पर विजय प्राप्त करने वाला वीर होता है। उसकी धन-संपन्नता और यश बढ़ते हैं। उसका स्वास्थ्य अच्छा बना रहता है लेकिन उस जातक के भाई बंधु बीमार रहते हैं या मर जाते हैं। सूर्य दशा – अंतरदशा में विशेष रूप से उक्त फल मिलते हैं।

4. चौथा भाव : जन्मकुंडली के चौथे भाव में दिग्बलविहीन होकर बैठा सूर्य जातक को सुखहीन, कठोर, पितृधन नाशक, वाहनविहीन और चिंताग्रस्त बनाता है। सूर्य दशा-अंतरदशा काल में ऐसा जातक मित्रों व संबंधियों से झगड़ा कर लेता है। उसमें निर्दयता की भावनाएं आ जाती है और वह अपनी धन-सम्पदा भी इस काल में गवां सकता है। जातक इस अवधि में मानसिक परेशानियों से घिरा रहकर रक्तचाप, हृदय विकार या छाती में दर्द आदि से पीड़ित हो सकता है।

5. पांचवां भाव : अपनी जन्मकुंडली के पांचवें भाव में सूर्य रखने वाला जातक सदाचारी और बुद्धिमान तो होता है लेकिन वह घर-परिवार की परेशानियों में दुखी भी रहता है और उसमें झुंझलाने की प्रवृत्ति आ जाती है। सूर्य दशा-अंतरदशा की अवधि में उस जातक को सुदूर स्थानों, पर्वतों या वन प्रदेशों की यात्रा करनी पड़ सकती है। उसकी संतान का स्वास्थ्य खराब रहता है और इस कारण वह दुखी और चिंताग्रस्त रह सकता है। इस अवधि में वह भी आंतों या उदर के अन्य हिस्सों की बीमारियों से प्रभावित हो सकता है।

6. छठवां भाव : जिस जातक की जन्मकुंडली में सूर्य छठवें भाव में बैठा हो वह साहसी, शूरवीर, तेजस्वी, न्यायप्रिय और शत्रुओं का दमन करने वाला होता है। सूर्य अपनी दशा-अंतरदशाओं की अवधि में उस जातक को शत्रुओं पर विजय, धन लाभ, अच्छा स्वास्थ्य, प्रसिद्धि, आत्म-गौरव, उद्यम व व्यवसाय में सफलता आदि दिलाता है। वह जातक अच्छे काम करता है और यश पाता है।

7. सातवां भाव : सूर्य जन्मकुंडली के सातवें भाव में बैठा हो तो जातक स्वाभिमानी, कठोर और चिंतामग्न रहने वाला होता है। वह कई मौकों पर अपमानित भी हो सकता है। सातवें भाव का सूर्य जातक को अनैतिक प्रवृत्तियां, गुप्त रोग अथवा मूत्र रोग, नेत्र रोग, झगड़े और विवाद, नीच कार्य, कष्टपूर्ण यात्राएं, वरिष्ठजनों की नाराजगी और अपमान आदि देता है। उसकी पत्नी / पति का स्वास्थ्य भी ठीक नहीं रहता। सूर्य की दशा-अंतरदशा में ऐसा जातक विशेष कष्ट उठाता है।

8. आठवां भाव : जन्मकुंडली के आठवें भाव में बैठा सूर्य जातक को धन-संपन्नता तो दे सकता है लेकिन साथ ही वह उस धन-संपत्ति की हानि भी जातक को रोग, विवाद आदि देकर अथवा कुसंगति में फंसाकर करा देता है। ऐसा जातक पित्तरोगी, धैर्यहीन, क्रोधी और चिंतित होता है। सूर्य दशा-अंतरदशा की अवधि में जातक और उसका जीवनसाथी दोनों ही रोगग्रस्त हो सकते हैं। जातक के जीवनसाथी की मृत्यु भी हो सकती है।

ऐसा जातक इस अवधि में कुसंगति में पड़कर और दुश्चरित्र व्यक्तियों के साथ संबंध जोड़कर अपनी धन-संपदा भी गवां सकता है। झगड़ों और विवादों में फंसें रहने से जातक चिड़चिड़ा, कुंठित और निर्धन भी हो सकता है।

9. नौवां भाव : यदि किसी जातक की कुंडली में सूर्य नौवें भाव में बैठा हो तो वह राजयोग देने में पूर्ण समर्थ होता है। जातक साहसी, संपत्तिशाली, वाहन सुख का भोगी, तपस्वी और योगी होता है लेकिन उस जातक के अपने पिता से मतभेद रहते हैं।

सूर्य दशा-अंतरदशा की अवधि में जातक की संपत्ति व ख्याति बढ़ती है। उसे सुयश और सम्मान प्राप्त होता है। वरिष्ठजन उसे आदर देते हैं और वह सुखी होता है लेकिन ऐसे जातक की सोच भौतिकतावादी ही होती है।

10. दसवां भाव : सूर्य दसवें भाव में दिग्बली होता है। वह जातक को यशस्वी, प्रतापी, ऐश्वर्य और वैभवशाली बनाता है। जातक शासन से मान्य और प्रतिष्ठित नागरिक होता है। सूर्य दशा-अंतरदशाओं की अवधि में जातक की धन-समृद्धि और पद बढ़ता है। व्यापारी है तो उसका व्यापार प्रगति करता है।

जातक को इस अवधि में संतान सुख, वाहन व अन्य सुविधाएं प्राप्त होती हैं। वह अच्छे कामों से यश और सम्मान प्राप्त करता है। जातक राजा या शासक के सम्मान और हैसियत का पद इस भाव में अनुकूल राशि की स्थिति होने पर प्राप्त कर सकता है।

11. ग्यारहवां भाव : जिस जातक की जन्मकुंडली के ग्यारहवें भाव में सूर्य बैठा हो तो जातक बहुत कम बोलने वाला, सदाचारी, धीर, गंभीर, बलवान और धन-संपन्न होता है। सूर्य दशा-अंतरदशाओं की अवधि में उसे उच्च पद, सम्मान, यश और प्रसिद्धि मिलने के साथ-साथ उसकी संपदा भी बढ़ती है। उसका पारिवारिक जीवन सुखपूर्ण रहता है और इसी अवधि में उसे एक अच्छी संतान का जन्म भी हो सकता है।

12. बारहवां भाव : सूर्य यदि जन्मकुंडली के बारहवें भाव में बैठा हो तो जातक आलसी, मित्रों से और भाइयों से द्वेष भावना रखने वाला, उदासीन और मस्तक रोगी (माथे में या सिर में दर्द, आधा सीसी के दर्द आदि से पीड़ित) होता है ।

सूर्य दशा-अतंरदशा की अवधि में जातक को पिता से मनमुटाव, संपत्ति का नाश, नेत्र रोग, पिता पर गर्दिश, बच्चों की बीमारी, भटकाव अथवा कष्टप्रद यात्राएं, शारीरिक ऊर्जा की हानि और आर्थिक तंगी आदि समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है।

दग्धावस्था

सूर्य के साथ विभिन्न ग्रहों की एक ही राशि में स्थिति होने से सूर्य के प्रचंड ताप से उन ग्रहों के दग्ध होकर कमजोर हो जाने की प्रबल संभावना होती है और इस स्थिति का जातक पर व्यापक प्रभाव भी पड़ता है ।

सूर्य के समीप आने से उन पर दग्धता के प्रभाव का ब्यौरेवार आंकलन प्रस्तुत करने वाले ऋषि-मनीषियों का मत है कि बुध और शुक्र पर दग्धता का अधिक प्रभाव नहीं पड़ता। बुध सूर्य का निकटतम पड़ौसी ग्रह है और उससे कभी भी ± 28 डिग्री से अधिक दूर नहीं जाता। इसी प्रकार शुक्र भी सूर्य से ± 48 डिग्री से अधिक दूर कभी नहीं जाता। शेष सभी ग्रहों पर दग्धता का प्रभाव पड़ता है।

‘सूर्य सिद्धांत’ के अनुसार आंतरिक एवं बाह्य समझे जाने वाले ग्रहों पर सूर्य से राशि व अंशों की समीपता से होने वाली दग्धता निम्नानुसार मानी जाती है। ये अंश सूर्य की समीपता के संदर्भ में हैं।

आंतरिक ग्रह :

चंद्र                   ±12°

वक्री बुध          ±12°

वक्री शुक्र        ± 8°

बाह्य ग्रह · :

मंगल               ±17°

बृहस्पति           ±11°

शनि                 ±15°

शुक्र (मार्गी)     ±10°

बुध (मार्गी)      ±14°

सूर्य के योग

सूर्य किसी जन्मकुंडली में तीन मूल योगों का और एक चर्चित योग बुधादित्य योग का कारक बनता है ।

1. वसि योग — चंद्र को छोड़कर कोई भी अन्य ग्रह (राहु-केतु शामिल नहीं) सूर्य से 12वें भाव में बैठा हो तो वसि योग बनता है ।

2. बेसि योग — चंद्र को छोड़कर कोई भी वास्तविक ग्रह जन्मकुंडली में सूर्य से दूसरे भाव में बैठा हो तो वेसि योग बनता है।

3. उभयचारी—यदि कुंडली में सूर्य के 12वें और दूसरे भावों में ग्रह बैठे हों तो बनने वाला योग उभयचारी योग कहलाता है।

उक्त तीनों योग अच्छा रोजगार और सुखी व स्वस्थ जीवन जातक को देने वाले माने जाते हैं।

4. बुधादित्य योग – यदि सूर्य और बुध एक ही राशि में बैठे हों तो बनने वाला योग बुधादित्य योग कहलाता है ।

सूर्य पीड़ा निवारण

यदि कुंडली में सूर्य कमजोर, दग्ध हो और उपयुक्त स्थान पर न बैठा हो तो उसकी पीड़ा के निवारण के लिए ज्योतिष में माणिक्य अथवा उसके उपरत्नों में से किसी को अंगूठी में जड़वाकर पहनने की सलाह दी गई है। इसके अनुसार माणिक्य को सोने की अंगूठी में जड़वाकर दाएं हाथ की तर्जनी अंगुली में धारण किए जाने का प्रावधान है।

माणिक्य का वजन कम-से-कम 3 रत्ती और सोने का वजन कम-से-कम 5 रत्ती होना चाहिए। यह अंगूठी रविवार के दिन पुष्य नक्षत्र पड़ने पर विधिवत पूजा अनुष्ठान और माणिक्य में प्राण-प्रतिष्ठा के बाद धारण की जानी चाहिए। अंगूठी धारण करने का उपयुक्त समय दोपहर से पहले का होता है।

माणिक्य के उपरन : लालड़ी, षडमाणिक, सिंदूरिया और सिंगली भी पहने जा सकते हैं।

मंत्रोपचार

लघु मंत्र : ॐ रं रविये नमः  (जप संख्या 7,000)

तंत्रोक्त मंत्र : ॐ ह्रीं ह्रीं स सूर्याय नम: (जप संख्या 7,000)

इसके अतिरिक्त प्रातःकाल स्नानादि के पश्चात् सूर्योपासना, सूर्य नमस्कार और उसे जल चढ़ाना भी स्वास्थ्य और नेत्रों के लिए लाभकारी होता है। सूर्य सहस्र नाम का एक पाठ नित्य प्रति नहीं तो रविवार को करने पर सूर्य भगवान प्रसन्न होकर सुखों की वर्षा करते हैं ।

ग्रहों के प्रभाव

  1. कुंडली में सूर्य का प्रभाव
  2. कुंडली में चंद्र का प्रभाव
  3. कुंडली में मंगल का प्रभाव
  4. कुंडली में बुध का प्रभाव
  5. कुंडली में बृहस्पति का प्रभाव
  6. कुंडली में शुक्र का प्रभाव
  7. कुंडली में शनि का प्रभाव
  8. शनि की साढ़े साती और ढय्या
  9. कुंडली में राहु और केतु का प्रभाव

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