कुंडली के आठवें भाव में सभी ग्रहों और राशियों का फलादेश
लग्न से आठवाँ स्थान अष्टम भाव कहलाता है। इस भाव से उम्र, पुरस्कार, बिना कमाया हुआ धन, लाटरी, मृत्यु का कारण, मृत्यु का समय, अवनति, राज्यभंग तथा मृत्यु के सम्बन्ध में विस्तृत जानकारी मिलती है। अष्टम भाव का विवेचन करते समय निम्नलिखित तथ्यों का पूरा-पूरा ध्यान रखना चाहिए:-
अष्टम भाव, अष्टम भाव का स्वामी, अष्टम भाव में बैठे ग्रह, अष्टम भाव पर बैठे ग्रहों की दृष्टि, अष्टमेश जहाँ पर बैठा है, वह राशि, अष्टमेश पर अन्य ग्रहों की दृष्टि, अष्टमेश का अन्य ग्रहों से सम्बन्ध, भाव दशा, महादशा, अन्तर्दशा आदि ।
अष्टम भाव का विचार करने से पूर्व जहाँ अष्टम भाव पर ध्यान दिया जाय, वहां दूसरे भाव पर भी ध्यान दिया जाय क्योंकि अष्टम स्थान मृत्यु का प्रथम श्रेणी का स्थान है तो अष्टम भाव से सप्तम यानी द्वितीय भाव भी मारक स्थान है अतः वह भी मृत्यु ग्रह (द्वितीय श्रेणी श्रेणी का) माना जाता है।
इस प्रकार जहाँ अष्टम भाव, मारक स्थान है, वहीं द्वितीय स्थान भी। इसके अतिरिक्त शनि भी कुण्डली में मारकेश माना जाता है। अतः पाठकों को चाहिए कि वे अष्टमेश, द्वितीयेश और शनि, मारक प्रसंग में इन तीनों का सूक्ष्मतापूर्वक अध्ययन करें और इन तीनों में से जो सर्वाधिक बली हो उसी दशा में मृत्यु समझें ।
कुंडली के आठवें भाव में सभी ग्रहों का फलादेश
सूर्य – जिस जातक की कुण्डली में आठवें भाव में सूर्य हो वह व्यक्ति कोधी एवं चंचल स्वभाव का होता है। ऐसे व्यक्ति के हृदय में गुरुजनों एवं अपने से बड़ों के प्रति श्रद्धा होती है परन्तु इसे निरन्तर रोगों से संघर्ष करते रहना पड़ता है।
साथ ही जीवन में इसकी संगति कुछ ऐसे लोगों से हो जाती है, जिनसे इसे धन एवं स्वास्थ्य से हाथ धोना पड़ता है । भाग्य निरन्तर इसे बाधा देता रहता है। ऐसा व्यक्ति छल करने वाला, दूर की सोचने वाला एवं आजीविका के लिए घर से दूर रहने वाला होता है।
चन्द्र – जिस जातक की कुण्डली के अष्टम भाव में चन्द्र होता है। और यदि वह क्षीण बली हो तो शीघ्र मृत्यु कर देता है, परन्तु यदि पूर्ण बली चन्द्र शुक्र की राशि स्वयं की राशि या बुध की राशि में होता है तो जातक को सांस की बीमारी होती है एवं दिल के दौरे की वजह से मृत्यु हो जाती है ।
मंगल – जिस जातक की जन्म कुण्डली में अष्टम स्थान में क्षीण बली मंगल हो तो जातक की जलने से मृत्यु हो जाती है या अष्टम में कर्क राशि हो तथा उसमें मंगल बैठा हो तो जातक की मृत्यु जल में डूबने से होती है । यदि धनु या मीन राशि का मंगल अष्टम भाव में हो तो जातक कई बार मृत्यु का ग्रास होते-होते बचत है। उसका जीवन जोखिम से भरा होता है तथा वह मृत्यु से संघर्ष करने में आनन्द प्राप्त करता है ।
बुध – जो जातक अपने आठवें भाव में बुध रखता है, वह व्यक्ति जितेन्द्रिय एवं सत्यवचन कहने वाला होता है। उसका स्वरूप सुन्दर कहा जा सकता है एवं प्रबलरूपेण शत्रुहन्ता माना जाता है। बाल्यावस्था में उसे सिर की चोट लगती है जिससे ज्योति अवश्य मंद पड़ जाती है । प्रतिथिजनों का सत्कार करने वाला ऐसा व्यक्ति जीवन में सफलता प्राप्त करता है, परन्तु यदि बुध पापाक्रान्त हो या शत्रु राशि में हो तो काम की अधिकता की मार से या परस्त्रीगमन प्रसंग से मरण को प्राप्त होता है।
बृहस्पति – जिसके अष्टम भाव में गुरु हों, वह जीवन में कई बार तीर्थ यात्राएँ करता है। धार्मिक स्थानों की यात्राएँ करने में उसे आनन्द आता है तथा उसके जीवन में इस प्रकार की यात्राओं के कई सुअवसर आते हैं।
ऐसा व्यक्ति चंचल तथा समय का पाबन्द होता है, परन्तु त्वरित निर्णय करने में यह अपने आप को असमर्थ सा अनुभव करता है। स्त्री-सुख श्रेष्ठ होता है। ऐसा व्यक्ति योगाभ्यास में भी ध्यान देने वाला होता है।
शुक्र – जिस व्यक्ति के अष्टम भाव में शुक्र होता है वह मनुष्य धार्मिक प्रवृत्ति का होता है। राजा की सेवा में तत्पर रहने वाला राजकीय नौकरी में सफलता प्राप्त करता है। अधिकारियों का यह प्रीति-भाजन होता है तथा जीवन में अपने मित्र एवं सम्बन्धियों को ऊँचा उठाने में सहयोग देता है, शिकार आदि कार्यों में यह रुचि लेता है तथा सानन्द वृद्धावस्था प्राप्त करता है ।
शनि – अष्टम स्थान में शनि हो तो जातक लम्बी उम्र प्राप्त करता है तथा घर से दूर रहकर आजीविकाप्राप्ति में कष्टरत रहता है। ऐसे व्यक्ति को परिवार से विशेष स्नेह नहीं मिलता। बाल्यावस्था इसकी कष्ट में बीतती है एवं यौवनकाल में यह संघर्षशील रहता है ।
यदि शनि क्षीण होता है तो चोरी के इल्जाम में पकड़ा जाता है या इस पर झूठा मुकदमा चलता है। कई बार गलतफहमियों के कारण इसे बुरा समझ लिया जाता है, जबकि वास्तव में यह ऐसा होता नहीं है |
राहु – जिस व्यक्ति के अष्टम भाव में राहु होता है, वह दीर्घजीवी. होता है। ऐसा व्यक्ति कवि, लेखक, पत्रकार, प्रकाशक या फिल्म डिस्ट्रीब्यूटर होता है। धर्म-कर्म को समझते हुए भी, यह उसमें आंशिक अरुचि रखता हुआ विद्रोही स्वभाव का होता है।
जातकों का बचपन परेशानियों में बीतता है। जलघात एवं वृक्षपात दोनों ही संभव हैं। गार्हस्थ्य जीवन सुखद कहा जा सकता है । 28वें वर्ष के बाद भाग्य साथ देता है। जातक की उम्र सत्तर वर्ष से ज्यादा ही होती है।
केतु – जिसकी कुण्डली के अष्टम भाव में केतु पड़ा हो वह मनुष्य यौवनावस्था में बवासीर का रोगी होता है तथा जीवन में सवारी से गिरकर चोट खाता है। आर्थिक दृष्टि से ऐसा व्यक्ति सामान्य होता है। जीवन में कई बार लॉटरी से आकस्मिक धन भी प्राप्त करता है ।
कुंडली के आठवें भाव में सभी राशियों का फलादेश
मेष – जिसके अष्टम भाव में मेष राशि हो, वह व्यक्ति अधिकतर घर से दूर विदेश में रहने वाला तथा नींद में चलने या बकने की बीमारी रखने वाला होता है। कई बार वह पिछली घटनाओं को स्मरण कर दुःखी भी होता है । आर्थिक दृष्टि से सम्पन्न ऐसा जातक विदेश में मरता है।
वृष – अष्टम भाव में वृष राशि हो तो जातक को अंतिम दिनों में कफ की भयंकर बीमारी हो जाती है तथा बलगम के रुकने या सड जाने से मृत्यु हो जाती है। रात्रि में दुष्टों से संघर्ष करता या चतुष्पदों के सींगों से घायल होकर भी मृत्यु संभव है ।
मिथुन – जिसके अष्टम भाव में मिथुन राशि हो, वह शत्रुओं से संघर्ष करता हुआ मारा जाता है। मृत्यु के समय ऐसे व्यक्ति को प्रमेह रोग या गुर्दारोग भी संभव है।
कर्क – जिस जातक की कुण्डली के अष्टम भाव में कर्क राशि हो, वह जल में डूबने से मरता है अथवा स्वग्रह में शान्ति से मृत्यु-लाभ करता है ।
सिंह – जिस व्यक्ति के अष्टम भाव में सिंह राशि हो उसे जीवन में सर्प भय रहता है। सर्प के काटने से मृत्यु सम्भव है। चोरों से संघर्ष करते या हिंसक पशु के शिकार में भी मृत्यु संभव है ।
कन्या – अष्टम भाव में कन्या राशि हो तथा अष्टमेश षष्ठ स्थान गत हो तो जातक सूजाक रोग से ग्रस्त होता है तथा व्याधि एवं पीड़ा से मरता है । स्त्री की हत्या तथा विषपान की भी आशंका रहती है। मृत्यु स्वगृह में ही होती है।
तुला – जिस व्यक्ति की कुण्डली में अष्टम भाव में तुला राशि हो उसकी मृत्यु उपवास में होती है। क्रोधातिरेक में नुकसान होने से या युद्धभूमि में भी मृत्यु संभव है।
वृश्चिक – यदि अष्टम भाव में वृश्चिक राशि हो तो जातको अंतिम दिनों में रुधिर विकार का सामना करना पड़ता है तथा चर्मरो या विष के गलत प्रयोग से मृत्यु हो जाती है।
धनु – अष्टम भाव में धनु राशि हो तो उसकी मृत्यु घर में परिवार के बीच होती है। गुदा-रोग या हृदय रोग भी संभव है। जलघात भी जीवन में देखने को मिलता है। ऐसा व्यक्ति शान्ति से मृत्यु का वरण करता है ।
मकर – यदि अष्टम भाव में मकर राशि हो तो उसकी मृत्यु ईश्वर का नाम लेते-लेते घर में पूर्ण परिवार के बीच होती है । मृत्यु के समय पुत्र उपस्थित होता है तथा बिना व्याधि के देहावसान होता है।
कुम्भ – यदि अष्टम भाव में कुम्भ राशि हो तो जातक को अग्नि-भय रहता है। वृद्धावस्था में उसे वायु-विकार भी हो जाता है तथा घावों के सडने से भी मृत्यू सम्भव है।
मीन – जिस जातक की कुण्डली में अष्टम भाव में मीन राशि हो उसे निश्चय ही बद्धावस्था में अतिसार रोग होता है। पित्त ज्वर की अधिकता से भी मृत्यु संभव है। रक्त सम्बन्धी बीमारियां जीवन में कई बार होती हैं।
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