कुंडली के सातवें भाव  में सभी ग्रहों और राशियों का फलादेश

कुण्डली के बारहों भाव की रचना महर्षियों ने बहुत सोच-विचार कर की है, लेकिन संसार में सर्वाधिक महत्वपूर्ण है – मानव के स्वयं का अस्तित्व । यदि वह स्वयं नहीं है तो फिर संसार के सभी पदार्थ उसके लिए शून्य के बरबर हैं, इसलिए लग्न का आधार जातक को स्वयं ही रक्खा है । कुण्डली में चार केन्द्रस्थान हैं, जिन्हें सर्वाधिक महत्त्व दिया गया है । वे भाव हैं लग्न, चतुर्थ भाव, सप्तम भाव और दशम भाव ।

जहाँ लग्न, मानव के स्वयं के व्यक्तित्व को स्पष्ट करता है, वहाँ यदि उसके बराबर ठीक सामने बैठने वाला व्यक्ति है तो वह है पत्नी, सहचरी जीवन में, सुख-दुःख में, हर्ष-विषाद में समभागी, अर्धांगिनी । इसलिए सप्तम भाव से पत्नी (स्त्री की कुण्डली हो तो पति) उसका स्वरूप, उसका व्यवहार, पति-पत्नी के पारम्परिक सम्बन्ध, प्रेम आदि का अध्ययन किया जाता है।

महषियों ने पिता की अपेक्षा माता को ऊंचा पद दिया है। जीवन में स्वयं तथा सहचरी के अतिरिक्त दो मुख्य विन्दु और हैं। ये हैं – माता और पिता माता-पिता का ऋण जातक पर सा रहता है, क्योंकि इन्होंने ही जातक को संसार में सांस लेने के योग्य बनाया। इसमें भी माता का स्थान सर्वोच्च है। इसलिए माता का स्थान चतुर्थ भाव रक्खा तथा दशम भाव पिता को दिया गया।

देखा जाए तो सप्तम भाव काफी महत्त्वपूर्ण है, क्योंकि कुण्डली में यदि सप्तम भाव न हो अथवा क्षीण हो तो जातक का जीवन अपूर्ण एवं एकांगी ही रह जाएगा। इसलिए ज्योतिष के विद्यार्थियों को चाहिए कि वे सप्तम भाव का सूक्ष्मतम विवेचन करें और सावधानी पूर्वक निरीक्षण-परीक्षण करके ही फलादेश निर्देश करें।

सप्तम भाव का विवेचन करने के लिए निम्न तथ्यों का अवलोकन सावधानीपूर्वक करें-

सप्तम भाव, सप्तम भाव में बैठे ग्रह, सप्तम भाव का स्वामी, सप्तम भाव पर ग्रहों की दृष्टियां सप्तमेश जहाँ बैठा हो वह भाव, सप्तमेश पर ग्रहों की दृष्टियाँ, सप्तमेश एवं अन्य ग्रहों का दृष्टि सम्वन्ध, भाव दशा (विशेषतः सप्तम भाव दशा) महादशा, अन्तर्दशा आदि ।

सप्तम भाव से विचारणीय विषय : सप्तम भाव से मुख्यतः पत्नी, उसका स्वभाव, उसकी सच्चरित्रता, पतिव्रत्य, पत्नी जीवित रहेगी या नहीं, एक विवाह अथवा बहुविवाह योग, पति-पत्नी का पारस्परिक सम्बन्ध, ससुराल से धन प्राप्ति, यात्रा, विदेश यात्रा, बांझान, पुत्रों का माता से सम्बन्ध, मारकेश आदि का विचार किया जाता है।

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कुंडली के सातवें भाव  में सभी ग्रहों का फलादेश

सूर्य – जिस जातक की कुण्डली के सप्तम भाव में सूर्य होता है, उसे सुन्दर, शिक्षित एवं सुशील पत्नी प्राप्त होती है। स्त्रियों के साथ आनंद भोग करने की उसकी जन्मजात प्रवृत्ति होती है। वैवाहिक मुख क्षीण होता है।

यदि सप्तम भाव पर अन्य शुभ ग्रहों की दृष्टि न हो तो जातक का विवाह दूसरी बार होता है। यह जातक चंचल होता है तथा विलासी स्वभाव का होता है। सुन्दर स्त्रियों के लिए वह अनफल प्रयत्न करता ही रहता है, स्वभाव इसका क्रोधी होता है तथा शरीर कृश होता है ।

संतान सुख मध्यम स्तर का ही कहा जा सकता है तथा संतान बिलम्ब से होती है। एक-दो बार गर्भपात भी संभव है । प्रथमः संतान के शरीर में विकार या न्यूनता भी संभव है। ऐसा जातक शीघ्र निर्णय लेने वाला नहीं होता। कोषावेश या उतावलेपन में पहले तो काम बिगाड़ लेता है, पर बाद में वह पछताता रहता है। स्त्री के साथ उसके सम्बन्ध मधुर नहीं रहते। विचारों में भी मतभेद रहता है तथा स्त्री भी क्रोधी स्वभाव की होती है।

चन्द्र – जिस जातक के जन्म समय में सप्तम भाव में चन्द्र हो, उसे स्त्री (स्त्री की कुण्डली हो तो पति) का पूर्ण सुख प्राप्त नहीं होता है। यद्यपि जातक सुन्दर, सुशिक्षित चवं सुशील होता है, भाग्य भी उसके साथ होता है तथा लग्न पर दृष्टि पड़ने के कारण रूप भी सुन्दर होता है, परन्तु जहाँ तक सप्तम भाव का सम्बन्ध है, यह योग अच्छा नहीं कहा जा सकता ।

मंगल – जिस मनुष्य की कुण्डली में सप्तम भाव में मंगल हो, उसे  जो स्त्री मिलती है, वह दुर्बुद्धि एवं कलहप्रिय होती है । यदि मंगल सप्तम भाव में नीच राशि या शत्रुक्षेत्री अथवा अष्टमेश होकर बेठा हो तो जातक की एक से अधिक शादियाँ होती हैं, परन्तु यदि सप्तम भाव में मंगल स्वराशि का होकर पड़ा हो तो जातक स्त्री के कारण दुःखी रहता है तथा उसका दाम्पत्य-जीवन भी साधारण स्तर का होकर रह जाता है।

बुध – जिस जातक के सप्तम भाव में बुध होता है, वह जातक सौभाग्यशाली होता है, उसे सुन्दर एवं सुशिक्षित पत्नी मिलती है तथा कलादि में निपुण ऐसी स्त्री दूरदर्शी होती है। पति के प्रत्येक कार्य में उसका सहयोग रहता है। यह स्त्री धन संचय करने की इच्छुक होती है तथा आभूषणप्रियता इसका स्वभाव होता है। शृंगार एवं सजावट पर यह धन व्यय करती है। राजनीतिक क्षेत्र में भी यह स्त्री सफल कहीं जा सकती है। कुल मिलाकर जातक पत्नी की ओर से सन्तुष्ट ही रहता है।

बृहस्पति – जिस कुण्डली के सप्तम भाव में गुरु होता है, वह व्यक्ति सफल एवं समझदार स्त्री पाता है । मानवीय गुणों से विभूषित ऐसी स्त्री बहुसन्तानवती होती है। व्यक्ति का स्वास्थ्य उत्तम रहता है तथा वह राजा के तुल्य सुख प्राप्त करता है। ऐसा व्यक्ति गजेटेड आफिसर होता है । विद्वान, कलाप्रिय एवं गुणज्ञ होता है।

शुक्र – जिस जातक की जन्म कुण्डली में सप्तम भाव में शुक्र होता है, वह जातक भावुक, सहनशील सरल हृदय, सुन्दर, गौरवर्ण एवं धनवान स्त्री प्राप्त करता है। ऐसा व्यक्ति प्रसन्नचित्त रहता है एवं गुणवान पुत्रों को जन्म देने में समर्थ होता है ।

शनि – जिस व्यक्ति के सप्तम भाव में शनि होता है, वह विशेषतः स्त्री मुख से वंचित रहता है। यदि शनि निर्बल हो या सप्तम भाव पर अन्य स्थानों पर बैठे शुभग्रहों की दृष्टि हो तो स्वल्प पत्नी सुख प्राप्त होता है, परन्तु फिर भी पत्नी के कारण कलह बनी रहेगी तथा वह दाम्पत्य जीवन का पूर्ण आनन्द न उठा सकेगा। जातक कठोर उन्नति के कार्यों में तत्पर एवं राजनीति में पटु होता है, परन्तु यह सुख एकांगी ही कहा जा सकता है।

राहु – यदि सप्तम भाव में राहु हो तो जातक को रोगिणी पत्नी मिलती है तथा धन हानि कराती है। यह स्त्री दुर्बुद्धि एवं संकीर्ण मनोवृत्ति की भी हो सकती है। यदि कोई सौम्य यह उसको नहीं देख रहा हो तो यह स्त्री विलासी प्रकृति की होती है, श्रृंगार में रूचि विशेष होती है तथा आभूषणप्रियता इसका स्वभाव होता है। ऐसा जातक भी माग्यहीन ही कहा जायेगा।

बाल्यावस्था में इसे कठोर श्रम करना पड़ता है, साथ ही यह सद्गुणों को लेकर चलने पर भी कदम-कदम पर बाधाओं का सामना करता है । जातक स्वस्थ, सुन्दर, साहसी एवं ईश्वरभक्त भी होता है।

केतु – जिस जातक के सप्तम भाव में केतु होता है, उसे निर्धन ससुराल मिलती है तथा स्त्री की ओर से चिन्ता बनी रहती है। यदि वृश्चिक राशि का केतु सप्तम भाव में हो तो जातक को ससुराल से सहायता मिलती है । यह व्यक्ति सफल सेल्समेन होता है, जीवन में इसे बहुत घूमना पड़ता है तथा आजीविका के लिए कठोर श्रम करना पड़ता है।

ऐसे व्यक्ति के लिए जलघात या वृक्षपात की प्राशंका रहती है। पैर में लंगड़ापन भी आता है या पैरों में कमजोरी रहती है। आय की अपेक्षा व्यय बढ़ा-चढ़ा रहता है तथा जातक परिश्रमी होता है । हिम्मत, साहस, प्रतिभा एवं परिश्रम के बल पर वह वर्तमान को अपने अनुकूल बनाने में समर्थ होता है।

कुंडली के सातवें भाव  में राशियों का फलादेश

मेष – यदि सप्तम भाव में मेष राशि हो तो जातक की पत्नी क्रूर स्वभाव की एवं क्रोधी होती है। बात-बात पर हठ करना, बात-बात पर रूठना, घर में अशान्ति बनाए रखना उसका स्वभाव होता है। यद्यपि ऐसी स्त्री गहराई से सोचने एवं तदनुरूप कार्य करने का हौसला रखती है, परन्तु फिर भी उसका दृष्टिकोण स्वार्थ से ऊपर नहीं उठ पाता ।

धन एवं आभूषण से ऐसी स्त्री का लगाव अत्यन्त ज्यादा होता है, इसकी यह स्वाभाविक इच्छा रहती है कि अधिक से अधिक आभूषण एवं आडम्बर का प्रदर्शन किया जाए। वैवाहिक जीवन मधुर होता है ।

वृष – जिस व्यक्ति के सप्तम भाव में वृष राशि होती है, उसे सुन्दर एवं गुणवान पत्नी प्राप्त होती है । नाक-नक्श तीखे और रूप पर गुमान करने वाली होती है । वार्तालाप करने में पटु एवं मधुर-भाषी होती है। कलादि में वह निपुण होती है।

सिलाई, कसीदा, चित्र- कला, नृत्य, संगीतादि में उसकी सहज ही रुचि होती है, साथ ही उसे नित नये-नये व्यंजन बनाने का भी शौक होता है। ऐसी स्त्री भावुक, कामकला में प्रवीण होती है।

मिथुन – यदि जन्मकुण्डली के सप्तम भाव में मिथुन राशि हो तो उसे सुनील एवं समझदार पत्नी प्राप्त होती है, यद्यपि वह अधिक सुन्दर नहीं कही जा सकती, फिर भी नाक-नक्श उभरे और स्वच्छ होने के कारण उसे आकर्षक अवश्य कहा जा सकता है ससुराल मध्यवर्ग का होता है, यद्यपि श्वसुर से बहुत अधिक लाभ तो नहीं कहा जा सकता, फिर भी वे जातक के पक्ष में अवश्य होते हैं।

उच्च विचारों वाली ऐसी स्त्री जातक के लिए सौभाग्यशालिनी सिद्ध होती है। इसे सुन्दर कपड़े पहनने का शौक होता है। अपने प्रापको सुन्दरतम रूप में उपस्थित करने की स्वाभाविक इच्छा इसके हृदय में होती है। सभी गुणों से युक्त ऐसी स्त्री जीवन में सफल कही जा सकती है, परन्तु कामकला में यह कठोर होती है । अतृप्त इच्छा रखती हुई यह स्त्री जीवन में सफल उतरती है।

कर्क – जिस जातक की कुण्डली के सप्तम भाव में कर्क राशि होती है, उसकी स्त्री अत्यन्त सुन्दर होती है। लम्बी, छरहरी, तीखे नाक-नक्श बाली तथा सुन्दर मधुर स्वभाव वाली ऐसी स्त्री सहज ही सबका मन मोह लेती है। यह स्त्री अत्यन्त भावुक होती है। कठोरता अथवा रूखेपन से इसे वश में नहीं किया जा सकता, इसके विपरीत भावनाओं के द्वारा इसे नियंत्रण में लाया जा सकता है।

सरल चित्त की ऐसी स्त्री कल्पनाप्रिय होती है तथा हवा में महल बनाना, व्यर्थ का प्रदर्शन करना आदि इसका स्वभाव होता है। जीवन की कठोर वास्तविकताओं को यह फेल नहीं पाती, आभूषणों से अत्यन्त प्रेम करने वाली, सुन्दर वस्त्रों की इच्छुक यह स्त्री सौभाग्यशालिनी होती है।

सिंह – जिस जातक की कुण्डली के सप्तम भाव में सिंह राशि हो उसे क्रोधी स्वभाव की पत्नी मिलती है, साथ ही वह तुनक मिजाज भी होती है। जरा-सा भी कार्य यदि उसकी इच्छा के अनुरूप नहीं होता है, तो वह रूठ जाती है, क्रोधित हो जाती है अथवा कलह से घर के वातावरण को विषाक्त बना देती है। शृंगार करने का न तो इसे अधिक चाव होता है और न व्यवस्थित रूप से अपने-आपको सजा ही सकती है ।

मित्रों की पार्टियों में वह एकरस-सी न होकर अलग-अलग सी दिखाई देती है। ऐसी औरत साहसी होती है तथा विपत्ति के समय भी धैर्य को अक्षुण्ण बनाये रखती है।

धन का इसे विशेष मोह होता है तथा आभूषणप्रियता इसका स्वभाव कहा जा सकता है । मानव मन को परखने में यह प्रवीण होती है तथा समय के अनुरूप अपने-आपको ढालने में यह चतुर होती है। मस्तिष्क से यह स्वस्थ एवं बुद्धिमान कही जा सकती है।

कन्या – जिस कुण्डली के सप्तम भाव में कन्या राशि हो, उसे सुन्दर एवं सुशील पत्नी मिलती है। कोमलांगी, लज्जाशील, मधुरभाषी एवं सौभाग्य ऐसी स्त्री घर में सम्पदा बढ़ाती है। इस स्त्री के संतान देरी से होती है, फलस्वरूप संतान की चिन्ता से पीड़ित रहती है। हँस-मुख स्वभाव की ऐसी स्त्री सत्य बोलने वाली, पति को सत्पथ पर ले जाने वाली तथा नीति एवं मर्यादायुक्त बात कहने वाली होती है।

श्रृंगार इसे प्रिय होता है तथा साधारण श्रृंगार में ही उसका रूप खिल उठता है । यद्यपि इसे धन की लालसा रहती है, तथापि यह लालसा उसके अन्य सद्गुणों पर हावी नहीं होती। दृढ चितवाली ऐसी स्त्री संकटों एवं बाधाओं में पति का साथ देने वाली होती है।

तुला – जिस पुरुष के सप्तम भाव में तुला राशि हो, उसे सुन्दर, सुशील एवं शिक्षित पत्नी मिलती है। तीखे नाक-नक्श, गौर वर्ण एवं चुम्बकीय मुस्कुराहट से युक्त ऐसी स्त्री सहज ही लोगों का ध्यान आकर्षित करती है। धार्मिक कार्यों में इसकी रुचि होती है ता व्रतादि करने एवं दान-पुण्य करने में तत्पर रहती है।

ऐसी स्त्री उदार स्वभाव की होती है। उसके सम्पर्क में जो भी आता है, नियमानुकूल वह प्रत्येक की सहायता करने को तत्पर रहती है। जीवन में संघर्ष यह देख सकती है तथा पति के लिए सच्ची सहायिका सिद्ध होती है। ऐसी स्त्री आभूषण प्रिय एवं विलासी स्वभाव की होती है। इत्र, सेंट आदि सुगन्धित पदार्थों की प्रशंसिका होती है।

अपने मकान की सजावट पर विशेष ध्यान देती है तथा कठोर परिश्रम करने वाली होती है। इसे संतान सुख भी श्रेष्ठ कहा जा सकता है।

वृश्चिक – जिस जातक की जन्मकुण्डली के सप्तम भाव में वृश्चिक राशि होती है, उसकी स्त्री अल्पशिक्षिता या निरक्षर होती है। न तो इसे कलाओं में रुचि होती है और न कलादि का ज्ञान ही होता है। भाग्य भी इसका साथ नहीं देता। बाल्यावस्था से ही इसे जीवन की कठोर वास्तविकताओं का सामना करना पड़ता है तथा जो भी कार्य करना चाहती है उसमें कुछ न कुछ बाधा उपस्थित हो ही जाती है। सिर-पीड़ा एवं उदर पीड़ा के रोग कहे जा सकते हैं।

धनु – जिस जातक की जन्मकुण्डली में सप्तम भाव में धनु राशि होती है, उसकी स्त्री अहंकारी एवं गर्वीली होती है। उसके सम्मान को जरा-सी भी ठेस लगती है तो वह सांपिन-सी फुंफकार उठती है। ऐसी स्त्री सुन्दर, अल्पशिक्षित तथा कलादि में रुचि लेने वाली होती है। यद्यपि जातक को धनी सुसराल नहीं मिलती फिर भी श्वसुर जीवन के आर्थिक पक्ष में कमोबेश सहायक ही होता है। अच्छे एवं सद्गुणी पुत्रों को उत्पन्न करने वाली ऐसी स्त्री सौभाग्यसूचक मानी जा सकती है।

मकर – जिस जातक की कुण्डली के सप्तम भाव में मकर राशि हो, उसकी स्त्री अल्पशिक्षिता होती है। श्रृंगार पर विशेष ध्यान देती है तथा आभूषण उसके सर्वाधिक प्रिय पदार्थ होते हैं। आभूषणों की तीव्र इच्छा उसके हृदय से समाप्त ही नहीं होती ।

क्रोधी स्वभाव की ऐसी स्त्री टोने-टोटकों पर भी जरूरत से ज्यादा विश्वास करती है लेकिन अपने सम्मान की सुरक्षा यह प्राण देकर भी करती है। व्यंग इसे सहन नहीं होता तथा जो भी इसके यह को ठेस पहुंचाता है, उसके प्रति यह भयंकर बन जाती है। बैर यह भूलती नहीं और समय पड़ने पर बैर निकाल लेती है।

कुम्भ – जिस जातक की जन्मकुण्डली में सप्तम भाव में कुम्भ राशि हो उसकी स्त्री संघर्षशील एवं विपत्तियों का दृढता से सामना करने वाली होती है। ईश्वर से डरने वाली यह स्त्री अपने से बड़ों पर श्रद्धा रखने वाली होती है। पुण्य कार्य में इसकी सहज रुचि होती है तथा प्रत्येक की यथाशक्ति सहायता करना इसका स्वभाव होता है।

इस स्त्री में अहंकार की भावना भी प्रबल होती है। यह चाहती है कि यह जो कुछ भी कहे, लोग उसे मानें इसके विचारों को प्राथमिकता दें । सुन्दर, सुशील एवं गुणवान यह स्त्री श्रेष्ठ संतान को जन्म देने वाली होती है ।

मीन – जिस जातक की कुण्डली के सप्तम भाव में मीन राशि होती है, उसकी स्त्री अपने धर्म में कट्टर होती है। दान-पुण्य में भी इसकी सहज ही आस्था होती है। यद्यपि इसका वर्ण उज्ज्वल तो नहीं कहा जा सकता, फिर भी यह सुन्दर कही जा सकती है ।

यह स्त्री अत्यन्त चंचल होती है। चपला इसका प्रधान गुण होता है। समय एवं स्थिति के अनुसार उत्तर देने में पटु होती है। तैराकी में यह सफल हो सकती है अथवा स्नान का इसे विशेष शौक होता है। गुणवान पुत्रों को उत्पन्न करने में समर्थ ऐसी स्त्री भाग्यवर्धक कही जा सकती है।

विवाह-काल

अधिकांश लोगों का प्रश्न यह होता है कि अमुक कुण्डली वाले जातक का विवाह किस उम्र में होगा ? महर्षियों ने इसके बारे में कई मत प्रस्तुत किये हैं, जिनमें से अनुभूत मत इस प्रकार हैं-

  1. लग्नेश और सप्तमेश की स्पष्ट राश्यादि के योग तुल्य राशि में जब गोचरीय बृहस्पति आता हो, तब उस जातक का विवाह-काल समझना चाहिए।
  2. शुक्र और चन्द्रमा में जो बली हो तथा जो दशा पहले आती हो उसकी महादशा और गुरु के अन्तर में विवाह वेला समझती चाहिए।
  3. दशमेश की महादशा और अष्टमेश के अन्तर में विवाह समझना चाहिए।
  4. सप्तमेश की महादशा में सप्तम भाव स्थित ग्रह की भुक्ति में विवाह होता है ।
  5. शुक्रयुक्त सप्तमेश की दशा भुक्ति विवाह कराने वाली होती
  6. सप्तमेश और शुक्र के ग्रह में जब चन्द्र तथा बृहस्पति हों, तथा उससे केन्द्र में जब गोचर का गुरु आ जाय, तब निस्सन्देह विवाह-काल समझना चाहिए।

सप्तम भाव से सम्बन्धित विशेष योग

  1. सप्तम भाव में शुक्र, चन्द्र, बुध, गुरु ये सब या इनमें से जो भी ग्रह होता है, उस ग्रह के स्वभाव की ही स्त्री होती है।
  2. सप्तम भाव में मंगल हो और उस पर शनि की दृष्टि हो तो जातक का दूसरा विवाह अवश्य ही होता है।
  3. यदि सप्तमेश छठे भाव में पड़ा हो तो जातक की पत्नी चिरकाल तक रोगिणी होती है।
  4. मंगल और सप्तमेश दोनों सप्तम भाव में हों तो भी जातक की स्त्री रोगिणी रहती है।
  5. सप्तम भाव में बुध, शुक्र हों तो जातक को सन्तान का अभाव खटकता रहता है ।
  6. सप्तमेश अष्टम भाव में हो तो जातक की पत्नी की मृत्यु अवश्य समझनी चाहिए ।
  7. लग्नेश व षष्ठेश पापग्रह से युक्त हों तो जातक कामी होता है ।
  8. यदि पापग्रह षष्ठेश, धनेश और लग्नेश से युक्त होकर सप्तम भाव में हो तो जातक परस्त्रीगामी होता है ।
  9. गुरु, बुध सप्तम में हों तो जातक का सम्बन्ध एक से ज्यादा स्त्रियों से होता है ।
  10. लग्न, सप्तम और द्वादश में पापग्रह हों तथा निर्बल चन्द्रमा पंचम भाव में हो तो जातक बांझ स्त्री का पति होता है।
  11. शुक्र और सूर्य सप्तम भाव या लग्न में हों तो जातक की पत्नी बन्ध्या होती है।
  12. सप्तम भाव में पापग्रह हो तो जातक की स्त्री दुराचारिणी हो, ऐसा समझना चाहिए ।
  13. सातवें भाव में मकर का गुरु हो तो उसे स्त्री का सुख अल्प ही मिलता है ।
  14. सप्तमेश उच्च राशि में होकर केन्द्र या त्रिकोण में हो या कर्मेश उसे देखता हो तो जातक एकाधिक स्त्रियों का स्वामी होता है।
  15. सप्तमेश में केन्द्र हो और शुभग्रह उसको देखता हो तो जातक की पत्नी सुशील एवं पतिभक्त होती है ।

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