चौथे भाव  में सभी ग्रहों और राशियों का फलादेश

 

चौथा भाव कुण्डली के बारह भावों में से सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण माना जाता है, क्योंकि जीवन का आनन्द, मुख-शांति, मस्तिष्क-मुख आदि का आधार यही भाव है। फलस्वरूप ज्योतिष के विद्यार्थियों को चाहिए कि वे इस भाव का सूक्ष्मतापूर्वक निरीक्षण करें और सम्बन्धित ग्रह तथा योगों का अध्ययन करें।

चतुर्थ भाव से मुख्यतः निम्न तथ्यों का अध्ययन किया जाता है: माता, उसका सौभाग्य, दुर्भाग्य एवं सुख-दुःख आदि जातक की अचल सम्पत्ति, शिक्षा (निर्णायक ज्ञान, कलाएँ, व्यापार), वाहनसुख । जातक का घर, मानसिक शांति-अशांति एवं इच्छाशक्ति, द्रव्य सम्बन्धी बाधाएं आदि, मनोगुण; भूमि सुख आदि ।

कुण्डली के ग्रह योगों का सम्बन्ध सावधानीपूर्वक करना आवश्यक है । उदाहरणार्थ चतुर्थ भाव से ही ज्ञान एवं वाहन दोनों की जानकारी प्राप्त की जा सकती है, परन्तु व्यवहारतः देखा जाता है कि एक उच्च-शिक्षित व्यक्ति वाहनसुख से वंचित रहता है, जब कि एक धनी पिता का अनपढ़ पुत्र पूर्ण वाहनसुख भोग करता है। इस प्रकार एक ही भाव एवं समान ग्रह होते हुए भी दोनों बातों में बहुत अन्तर हो जाता है । अतः प्रत्येक बात का अध्ययन चतुर्थ भाव में सूक्ष्मता एवं सावधानीपूर्वक ही करना चाहिए।

चतुर्थ भाव में मुख्यतः निम्न तथ्यों को दृष्टि में रखना चाहिए : चतुर्थ भाव एवं उसकी राशि चतुर्थ भाव का स्वामी व उसकी प्रकृति । चतुर्थ भावेश की स्थिति। चौथे भाव में स्थित ग्रह । चौथे भाव पर ग्रहों की दृष्टि चतुर्थेश का अन्य ग्रहों से सम्बन्ध चतुर्थ पर धन्य ग्रहों की दृष्टि । कुण्डली में कारक अकारक एवं तटस्थ ग्रह । चौथे भाव से सम्बन्धित विशेष योग ।

चतुर्थ भाव का विवेचन करने से पूर्व यह जान लेना आवश्यक है कि चौधे भाव में कौन-सी राशि है तथा उसका फलाफल क्या है।

कुंडली के चौथे भाव  में सभी ग्रहों का फलादेश

चौथे भाव से सम्बन्धित राशियों का विवेचन करने के उपरान्त चौथे भाव में स्थित ग्रह और उनका फल भी स्पष्ट करना आवश्यक है ।

सूर्य – चौथे भाव में सूर्य की उपस्थिति अधिक अच्छी नहीं मानी गई है। जिस जातक की कुण्डली के चौथे भाव में सूर्य होता है, वह मानसिक रूप से परेशान रहता है तथा उसके दिमाग में अस्थिरता असन्तोष एवं घुमड़न-सी बनी रहती है। ऐसा जातक जीवन से अप्रसन्न रहता है। मित्र जीवन में सहायक होते हैं, पर उसका स्वभाव स्वार्थी होता है, फलस्वरूप यह मित्रों का विशेष लाभ नहीं ले पाता ।

गाने बजाने में जातक की रुचि रहती है तथा गम्भीर विषयों की ओर प्रवृत रहता है। राजनीतिक जीवन में इसे कई बाधाओं का सामना करना पड़ता है तथा कठिनता से सफलता प्राप्त होती है।’

चन्द्र – चौथे भाव में चन्द्रमा की स्थिति जातक को भावुक, दयालु और परोपकारी बना देती है। बांधवों एवं निकट के सम्बन्धियों के विचारों में गहरी असमानता विद्यमान रहती है। आत्मविश्वास एवं आत्मसन्तोष की मात्रा जरूरत से ज्यादा होती है तथा जीवन में हर समय हँसमुख बना रहता है। बलवान चन्द्र जातक को विख्यात, धनी एवं प्रभावशाली भी बना देता है।

मंगल – मंगल की उपस्थिति साधारण ही है। मंगल होने जातक की प्रगति शनैः-शनैः होती है तथा प्रारम्भिक जीवन में वह उत्तम भोगों से वंचित रहता है। पिता तथा उसके विचारों में भी मतभेद स्वाभाविक है । नौकरी के लिए तथा नौकरी में उन्नति के लिए उसे कठोर संघर्ष करते रहना पड़ता है।

ऐसे व्यक्ति में आत्मविश्वास और हिम्मत गजब की होती है। संघर्ष के क्षणों में भी यह विचलित नहीं होता और बढ़तापूर्वक उसका सामना करता रहता है। माता के लिए जातक के दिल में आदर एवं श्रधा रहती है।

मंगल की दशा में जातक को वाहन सुख की प्राप्ति भी होती है। राजनीतिक क्षेत्र में भी ऐसा व्यक्ति पूर्ण सफल कहा जा सकता है। किस समय कौन-सा कार्य करना है तथा किस प्रकार से, किसी दूसरे को अपने विचारों का अनुयायी बनाना है, यह खूब जानता है। परिस्थिति एवं मनुष्य को भांपने की इसमें गजब की क्षमता होती है। पारिवारिक जीवन सुखी एवं सन्तुष्ट कहा जा सकता है।

बुध – जिस जातक के चतुर्थ भाव में बुध हो, वह एक सफल कूटनीतिज्ञ होता है। यदि बुध कारक ग्रह या उच्च का हो तो व्यक्ति राजदूत का पद सुसोभित करता है। यदि बुध नीच राशि का हो या पापाक्रांत हो तो व्यक्ति स्थानीय राजनीति में भाग लेकर सफलता प्राप्त करता है। शिक्षा की दृष्टि से यह ग्रह उसम है।

व्यक्ति उच्च शिक्षा प्राप्त करता है। शिक्षा प्राप्त करने के उपरान्त यह विरोधी दल का नेता भी हो सकता है तथा अपने भाषणों एवं लेखों से राजनीतिक क्षेत्र में हलचल उत्पन्न कर देता है। भाषण कला में जातक पट होता है तथा जनता को सम्मोहित करने की उसमें शक्ति होती है।

बृहस्पति – यदि चतुर्थ भाव में गुरु हो गे वह व्यक्ति दार्शनिक टाइप का हो जाता है। हर समय उन्नति की ओर अग्रसर होते रहना उसका स्वभाव होता है। सामाजिक जीवन में वह ख्याति अर्जित करता है तथा मित्रों एवं शत्रुओं में समान रूप से प्रशंसा प्राप्त करता है।

वाहन, धन आदि की दृष्टि से जातक सौभाग्यशाली होता है तथा जीवन में विविध भोग भोगता है। राजकीय नौकरियों में ऐसा व्यक्ति शनैः-शनैः प्रगति करता है तथा गजेटेड अधिकारी भी बन जाता है। धार्मिक कार्यों में जातक की गहरी रुचि होती है ।

शुक्र – चौथे माव में शुक्र शुभकारक कहा गया है। ऐसे जातक का जीवन सुखी एवं आनन्दमय होता है, सुन्दर एवं गुणवान पत्नी प्राप्त होती है, जो कि जीवनोन्नति में सहायक होती है। यह जातक मातृभक्त होता है, यद्यपि कई बार माता के विचारों से इसका स्वभाव मिलता नहीं, फिर भी यह अपनी ओर से नम्र बना रहता है।

मन का गहरा होता है। इसके मन की थाह पा लेना आसान नहीं होता। इसके जीवन तथा विचारों पर राजनीति हावी रहती है। मित्रों की इसके जीवन में कमी नहीं रहती तथा वे सहायक भी होते हैं। स्त्रियों एवं प्रेमिकाओं का इसके जीवन में गहरा हस्तक्षेप होता है ।

शनि – चौथे भाव में शनि का होना इस बात का सूचक है कि व्यक्ति बाल्यावस्था में स्वस्थ नहीं रहा होगा तथा कई व्याधियों एवं संकटों बाधाओं से ग्रस्त रहा होगा। भाइयों का इसके जीवन में कोई महत्त्व नहीं रहता और न यह भाइयों का सहायक होता है।

माँ को यह तृणवत् समझ अपने जीवन से बाहर कर देता है। जीवन से यह सदा अप्रसन्न रहता है तथा मानसिक रूप से अस्वस्थ रहता है। जीवन में इसे कोई न कोई चिन्ता लगी रहती है। मानसिक परेशानी के साथ-साथ इसमें हीन भावना का आधिक्य होता है।

राहू – यदि चौथे भाव में राहू हो तो जातक व्यवहारकुशल नहीं होता। बोलने में असभ्यता प्रकट करता है तथा कई बार वाणी के ही कारण अपना कार्य बिगाड़ देता है धोखा देने में यह जातक कुशल होता है तथा समय पड़ने पर बड़े से बड़ा झूठ बोल लेता है। राजनीतिक क्षेत्र में यह पूर्ण सफलता प्राप्त करता है। पुत्रों की अपेक्षा कन्या सन्तान इसके ज्यादा होती है।

केतु – यदि चतुर्थ भाव में केतु हो तो जातक जीवन में परेशान रहता है तथा प्रतिक्षण कुछ-न-कुछ मानसिक परेशानियां बढ़ती ही रहती है। जातक हीन भावना से ग्रस्त रहता है। माता-पिता के साथ जातक के सम्बन्ध उचित कहे जाते हैं तथा ऐसा व्यक्ति पूर्ण मातृभक्त होता है। परिवार में अशांति स्वाभाविक है। जीवन में धन का अभाव रहने पर भी जातक ख्याति-लाभ कर सबको आश्चर्यचकित करने में समर्थ होता है। जीवन के अन्तिम वर्ष असफल एवं कष्टदायक होते हैं।

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कुंडली के चौथे भाव  में सभी राशियों का फलादेश

मेष – चतुर्थ भाव में यदि मेष राशि हो तो जातक के घर में कई जनवर बंधे रहते हैं अर्थात् दूध देने वाले तथा सवारी के काम में आने वाले अनेक जानवरों का वह आश्रयदाता होता है। इस प्रकार के जातक की या तो सगाई होकर छूट जाती है या जीवन में एक से अधिक स्त्रियों से उसका सम्पर्क रहता है। जीवन सुख एवं शान्तिमय रहता है तथा वह विविध भोगों का भोग करता है। व्यापार एवं कृषि कार्यों में जातक को विशेष लाभ रहता है।

वृष – जिसके चौथे भाव में वृष राशि हो उसकी समाज में विशेष इज्जत होती है तथा सामाजिक कार्यों में वह बढ़-चढ़कर भाग लेता है । साहस, धीरता एवं गम्भीरता में जातक अग्रणी रहता है एवं स्वस्थ, सुदृढ़ शरीर तथा सुन्दर रूप, गुण वाला जातक होता है। धार्मिक कार्यों में जातक का विशेष चित्त रहता है। व्रतोत्सव आदि धूमधाम से मनाता है। शिव की पूजा से जातक को विशेष लाभ रहता है। पारिवारिक जीवन सुखी होता है तथा वृद्धावस्था में उसे पूर्ण सन्तान सुख मिलता है ।

मिथुन – जिसके चतुर्थ भाव में मिथुन राशि होती है वह कामी एवं सुखी होता है । सुन्दर स्त्रियों की संगति में इसे विशेष आनन्द मिलता है तथा यौवनावस्था में यह व्यर्थ का द्रव्य लुटाता है। सुगन्धित पदार्थों, इत्र, तेल आदि पर इसका खर्च होता रहता है।

आर्थिक दृष्टि से यह जातक साधारण होता है तथा द्रव्य संचय के लिए विशेष परिश्रम करना पड़ता है । जीवन के अन्तिम काल में इसे प्रबल धन हानि सहन करनी पडती है।

कर्क – जिसके सुख भाव में कर्क राशि हो वह अत्यन्त सुन्दर होता है। गौर वर्ष आकर्षक चेहरा एवं प्रभावित मुख-मुद्रा सहज ही सबको लुभाने वाली होती है। जीवन में इसे मित्रों की कमी नहीं रहती । इसे सुन्दर, स्वस्थ एवं गौर वर्ण की पत्नी प्राप्त होती है, जो रूपवान होने के साथ ही साथ गुणवान भी होती है। जीवन बनाने में स्त्री का विशेष हाथ रहता है।

सिंह – जिस जातक के चतुर्थ भाव में सिंह राशि होती है, वह अत्यन्त क्रोधी और चिड़चिड़ा होता है। बान्धवों एवं भाइयों से कोई विशेष सहायता प्राप्त नहीं होती। पारिवारिक जीवन भी सुखद नहीं कहा जा सकता। इस जातक की सन्तान पिता द्वारा व्यर्थ ही दण्ड पाती रहती है तथा साधारण स्तर की होती है और जीवन में विशेष प्रगति नहीं कर पाती। पुत्रों की अपेक्षा कन्या सन्तति विशेष होती है।

कन्या – जिस जातक के चतुर्थ भाव में कन्या राशि होती है, वह सौभाग्यशाली होता है, उसे जीवन में पूर्ण सुख भोग मिलता है। पारिवारिक जीवन सुखी एवं सन्तोषजनक होता है।

विवाह बाल्यावस्था में ही हो जाता है तथा उसे सुन्दर एवं सुघड़, सुशील पत्नी प्राप्त होती है। ऐसे जातक को कन्या की अपेक्षा पुत्र सन्तान अधिक होती है। आर्थिक दृष्टि से यह राशि श्रेष्ठ कही गई है। यद्यपि बाल्यावस्था में उसे धनाभाव से दुःख देखना पड़ता है, परन्तु जीवन के 28 वें वर्ष के बाद से धनागम होता है, पूर्ण धन-सुख 36वें साल से मिलता है। जातक सद्गुणी, शिक्षित एवं विवेकवान होता है।

तुला – जिस जातक के चतुर्थ भाव में तुला राशि होती है, वह एक सफल व्यापारी होता है । बाल्यावस्था में निर्धन होते हुए भी भुजबल से व्यापार जमाता है और उसे चतुर्दिक फैलाता है।

ऐसा व्यक्ति नम्र और दयालु होता है, दूसरों की मदद करना इसका स्वभाव होता है, तथा अपने द्रव्य का कुछ न कुछ भाग धार्मिक कार्यों में लगाता रहता है, छल-कपट से दूर शुभ कार्यों में लगा हुआ ऐसा व्यक्ति शीलवान एवं शिक्षित होता है। यौवनावस्था मे ही वह सुखोपभोग करता है तथा वृद्धावस्था सुखद एवं सफल होती है।

वृश्चिक – जिस जातक के चतुर्थ भाव में वृश्चिक राशि हो वह हर समय परेशानी में रहता है, उसका मस्तिष्क शान्त नहीं रहता एवं कई कठिनाइयों का सामना करता रहता है। शत्रुओं से ऐसा जातक डरता रहता है, क्योंकि वे ऐसे जातक पर हावी रहते हैं।

इसके प्रत्येक कार्य में प्रथम बाधा उत्पन्न होती है एवं फिर वह कार्य सम्पनता की ओर अग्रसर होता है। प्रारम्भ में जातक मन्दभागी होता है, पर ज्यों-ज्यों उम्र बढ़ती जाती है, भाग्य भी उसे उन्नति की ओर अग्रसर करता रहता है। पारिवारिक जीवन सुखी कहा जा सकता है।

धनु – जिस जातक के चौथे भाव में धनु राशि हो, वह लड़ाकू प्रवृत्ति का होता है, झगड़ा करना उसका स्वभाव होता है तथ संग्राम में सफलता प्राप्त करता है। ऐसा जातक व्यापारी अथवा लेन-देन करने वाला होता है, जो दूसरों को ब्याज पर रुपये देता-लेता रहता है। इसकी अधिकांश उमर मुकदमेबाजी में ही बीतती है।

नौकरी की अपेक्षा यह जातक व्यापार या व्यक्तिगत प्रयत्नों में अधिक सफलता प्राप्त करता है। मिलिटरी या पुलिस की नौकरी में जातक ख्याति अर्जित करता है। यह स्वयं भाग्य का निर्माता होता है तथा बाल्यावस्था साधारणरूपेण व्यतीत होती है, परन्तु समय एवं मनुष्य को पहचानने की इसमें अद्भुत क्षमता होती है। इसका पारिवारिक जीवन सामान्य ही कहा जा सकता है ।

मकर – जिस जातक के चतुर्थ भाव में मकर राशि हो, वह बागवानी या बगीचों का स्वामी होता है। उसकी नौकरी भी कुछ इस प्रकार की होती है कि जिसका सम्बन्ध वनस्पति से हो। मित्रों की दृष्टि से जातक सौभाग्यशाली होता है तथा जीवन में मित्र सहायक भी होते हैं। पत्नी से मतभेद बने रहते हैं, परन्तु सन्तान से जातक को लाभ रहता है।

कुम्भ – जिस जातक के चौथे भाव में कुम्भ राशि हो वह स्त्रियों के मामले में सौभाग्यशाली होता है। इसे सुन्दर एवं शिक्षित पत्नी मिलती है। ससुराल से इसे धन प्राप्त होता है तथा भाग्योदय विवाहरोपरान्त ही होता हैं। पारिवारिक जीवन सफल होता है, पत्नी सुशील होती है, जो कि जातक के जीवन को बनाने में सहायक होती है।

मीन – जिस जातक के सुख भाव में मीन राशि हो, वह नौका-चालक या जहाज का कप्तान होता है अथवा जल से सम्बन्धित सरकारी नौकरी करता है। धीर-गम्भीर होने के साथ-साथ जातक शिक्षित भी होता है तथा अपने सद्गुणों के कारण समाज में आदर प्राप्त करता है ।

आर्थिक दृष्टि से यह जातक धनी होता है ता जीवन में धन संचय करने वाला होता है। ऐसा जातक धार्मिक विचारों वाला होता है तथा नवीन विचारों का स्वागत करने को सदा प्रस्तुत रहता है। जातक का जीवन पूर्ण सुखी कहा जा सकता है।

वाहन विचार

चतुर्थ भाव से वाहन का भी विचार किया जाता है। जीवन में साधारण वाहन ही उपलब्ध रहेगा या उच्च गहन (कार वगैरह ) की भी प्राप्ति होगी ? इस प्रकार के प्रश्नों का सम्बन्ध भी चतुर्थ भाव से होता है। वाहन योग के सम्बन्ध में कुण्डली में दो ग्रह विशेष कारक होते हैं:-

1. चौथे भाव का स्वामी 2. शुक

शुक्र ग्रह चूंकि वाहनाधिपति है, अतः इस सम्बन्ध में शुक्र का गहराई के साथ विचार करना चाहिए।

  • वाहन कारक – शुक्र ।
  • वाहन स्थान – कुण्डली का चौथा भाव।

वाहन से सम्बन्धित कुछ योग आगे प्रस्तुत कर रहा हूँ

  • चतुर्थेश बली हो तो वाहन सुख होता है।
  • चौथा भाव अच्छे अंशों से युक्त हो तो भी जातक को वाहन- प्राप्ति होती है ।
  • चतुर्थेश चतुर्थ भाव में बुध के साथ हो तो साधारण वाहन योग बनता है।
  • चन्द्रमा लग्नेश हो तथा चौथे भाव के स्वामी के साथ बैठा हो तो जातक को जीवन में वाहन सुख प्राप्त होता है।
  • दूसरे या चौथे भाव में शुभ राशि का चन्द्र हो तो जातक को साधारण वाहन सुख मिलता है।
  • यदि चतुर्थेश चन्द्रमा के साथ लग्न में हो तो वाहन सुख मिलता है।

साधारण वाहन का तात्पर्य आजकल के युग में मोटर साइकिल आदि से है। उच्च वाहनों में कार की गिनती है। नीचे उच्च वाहनों का योग प्रस्तुत कर रहा हूँ ।

  • यदि चतुर्थेश शुक्र के साथ लग्न में हो तो उच्चकोटि का वाहन प्राप्त होता है।
  • बलवान शुक्र और चन्द्रमा त्रिकोण या केन्द्र में हों तो उच्च वाहन प्राप्त होता है।
  • चन्द्रमा यदि बृहस्पति से दृष्ट हो तो भी उच्च वाहन प्राप्त होता है।
  • शुक्र, चन्द्रमा और चनुर्थेश लग्नेश के साथ हों तो उच्च वाहन-योग बनता है ।
  • गुरु, चतुर्थेश, चन्द्र और शुक्र एकत्र होकर केन्द्र या त्रिकोण में हों तो उसके घर में कई उच्च वाहन उपलब्ध होते हैं ।
  • चतुर्थेश गुरु के साथ या गुरु से दृष्ट हो तो भी उच्च वाहन-योग बनता है ।
  • चतुर्थेश शुभ ग्रह के साथ दशम भाव में हो तो उच्च वाहन योग बनता है।
  • चतुर्थे केन्द्र में हो और उसके केन्द्र का स्वामी लग्न में हो तो जातक उच्च वाहन प्राप्त करता है ।
  • दशम भाव का स्वामी एकादश भाव में हो और द्वितीयेश दसवें भाव में हो तो उच्च वाहन योग बनता है।
  • चतुर्थेश, नवमेश, लग्न में हो या सातवें भाव में हों तो उच्च वाहन मिलता है।
  • चतुर्येश चन्द्र और शुक्र के साथ एकादश भाव में हो तो उच्च वाहन प्राप्ति होती है।
  • लग्नेश और सप्तमेश चौथे भाव में हो तो जातक को उच्च वाहन मिलता है।
  • चतुर्येश केन्द्र में हो और उस पर किसी भी पापग्रह की न हो तो जातक उच्च वाहन सुख भोगता है।
  • चतुर्थेश, दशमेश केन्द्र में हो तो जातक उच्च वाहन-सुख भोगता है।
  • बलवान शुक्र चौथे भाव में बैठा हो तो उच्च वाहन मिलता है।

चतुर्थ भाव से सम्बन्धित योग

1. राज्य लक्षण योग – चन्द्र, बुध, गुरु और शुक्र चारों ग्रह चौथे भाव या केन्द्र में हों तो राज्य लक्षण योग बनता है। इस योग वाला व्यक्ति हँसमुख, उच्च व्यक्तित्व रखने वाला, धीर-गम्भीर, सर्वगुण- सम्पन्न तथा सौभाग्यशाली होता है।

2. काहल योग – चतुर्थेश और नवनेश केन्द्र स्थानों में हों तथा आमने-सामने बैठे हों एवं लग्नेश बलवान हो तो काहल योग बनता है। जिस कुण्डली में यह योग होता है, वह सेना में उच्च पद प्राप्त कर सभी सुखों का भोग करता है ।

3. हंस योग – बृहस्पति स्व का होकर चतुर्थ भाव में बैठा हो तो हंस योग होता है। इसे रखने वाला जातक चुम्बकीय व्यक्तित्व को रखने वाला, धनवान तथा उत्तम सवारी से विभूषित होता है।

4. मालव्य योग – यदि शुक्र स्वराशि का होकर चतुर्थ भाव में बैठा हो तो उपर्युक्त योग बनता है। जिस कुण्डली में यह योग होता है, वह ऊंचे दिमाग वाला, केन्द्रीय सरकार में उच्च पद पर आसीन एवं सौभाग्यशाली होता है।

5. शश योग – यदि शनि स्वराशि का होकर चतुर्थ भाव में हो तो शश योग होता है । शश योग वाला जातक राजनीति में पटु एवं चारित्रिक दृष्टि से शिथिल होता है।

6. रुचक योग – मंगल स्वराशि का होकर चतुर्थ भाव या केन्द्र में बैठा हो तो रूचक योग होता है। ऐसा व्यक्ति ऊँचा, लम्बा, दृढ शरीर, व्यापारी या स्थल सेना में उच्च पद का प्रसिद्ध अधिकारी होता है, जो अपने कार्यों से ख्याति अर्जित करता है।

7. भद्र योग – बुध यदि स्वराशिस्थ चतुर्थ भाव या केन्द्र में हो तो भद्र योग बनता है। ऐसा योग रखने वाला जातक सिंह के समान आकृति वाला, विशाल वक्षस्थल तथा स्वस्थ शरीर वाला होता है। वृद्धावस्था में ऐसा जातक पूर्ण सुख भोगता है ।

8. पुष्कल योग – लग्नेश तथा चतुर्थेश बलवान होकर चतुर्थ भाव या केन्द्र में हों तो पुष्कल योग बनता है। ऐसा व्यक्ति धनवान, मृदु एवं मधुरभाषी तथा प्रसिद्ध होता है।

9. वाहन योग – शुक्र बलवान होकर चतुर्थेश के साथ चतुर्थ भाव में हो तो वाहन योग होता है। इस योग को रखने वाला जातक जीवन-भर उच्च वाहन-सुख भोगता है।

10. मातृ सौख्य योग – चन्द्रमा चतुर्थेश के साथ चौथे में हो तो यह योग बनता है तथा इस योग वाले जातक को माता का पूर्ण सुख मिलता है।

11. गृह योग – लग्नेश शुक्र चतुर्थ भाव में हो तथा उस पर शुभ ग्रहों की दृष्टि हो तो गृह योग बनता है। ऐसा व्यक्ति उत्तम कोटि का भवन प्राप्त कर सुख भोगता है।

12. लक्ष्मी योग – मंगल चौथे हो, शुक्र 12वें भाव में हो तथा एकादश भाव में उच्च का सूर्य हो तो लक्ष्मी योग बनता है। जिसकी कुण्डली में लक्ष्मी योग होता है, वह जातक प्रसिद्ध विद्वान, पराक्रमी, सौम्य, सभी सुखों का भोग करने वाला तथा भाग्यशाली होता है।


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