कुंडली के पांचवें भाव में सभी ग्रहों और राशियों का फलादेश
जन्मकुण्डली में पंचम भाव का विशेष महत्त्व है, क्योंकि यह पहला त्रिकोण स्थान है। दूसरे यह कि इस भाव से विद्या व शिक्षा का अध्ययन किया जाता है। चूंकि विद्या ही मानव प्रगति की आधारशिला है, फलस्वरूप इस भाव का महत्त्व इस दृष्टि से बढ़ जाता है।
पंचम भाव से जानने योग्य बातें
विद्या, शिक्षा, संतान, संतान सुख, संतान एवं माता-पिता का पारस्परिक सम्बन्ध, भावनायें, विचार, ईश्वर भक्ति, राजा से सम्बन्ध, उच्चाधिकारियों से सम्पर्क, पुण्य आदि का विचार पंचम भाव से ही किया जाता है।
पंचम भाव का अध्ययन करने से पूर्व निम्न तथ्यों को ध्यान में रखना चाहिए:-
पंचम भाव की राशि, पंचम भाव का स्वामी, पंचम भाव का स्वामी किस भाव में बैठा है, पंचम भाव के स्वामी के साथ कौन-कौन से ग्रह स्थित है ? पंचम भाव में कौन-कौन से ग्रह स्थित हैं ? पंचम भाव पर किन-किन ग्रहों की दृष्टि है ? पंचम भाव के स्वामी पर किन-किन ग्रहों की दृष्टि है ? पंचमेश कारक है या अकारक, पाप ग्रह है या सौम्यग्रह, शुभ ग्रह है या दुष्ट ? पंचम भाव से सम्बन्धित दशा, अन्तर्दशा और प्रत्यन्तर्दशा ।
कुंडली के पांचवें भाव में सभी ग्रहों का फलादेश
सूर्य – जिस जातक की कुण्डली के पंचम भाव में सूर्य हो, उसे सन्तान सुख का अभाव रहता है या स्त्री के गर्भपात हो जाता है अथवा देरी से सन्तान लाभ होता है। जीवन में प्रसन्नता का अभाव रहता है तथा उसे कई उतार-चढ़ाव देखने पड़ते हैं।
बाल्यावस्था कष्ट में बीतती हैं तथा वृद्धावस्था में कठोर संघर्ष में रत रहना पड़ता है। जीवन के उत्तरार्द्ध में उसे ‘हार्ट-ट्रबल’ भी रहती है तथा दिल के दौरे से मृत्यु भी संभव है। आय की अपेक्षा व्यय बढ़ा-चढ़ा रहता है।
चन्द्र – जिस जातक की कुण्डली में पंचम भाव में चन्द्र होता है उसे सन्तान से पूर्ण सुख मिलता है। ऐसे व्यक्ति की सन्तान सरल, सौम्य, गुणवान और प्रतिष्ठा प्राप्त करने वाली होती है जो कि जातक के नाम को विख्यात करती है। आर्थिक क्षेत्र में भी ऐसा जातक सम्पन्न होता है। साथ के स्रोत एक से अधिक होते हैं तथा जीवन में सुख भोग करता है।
ऐसे जातक को स्त्री भी गुणवान एवं कुलीन मिलती है। जमीन से लाभ रहता है तथा स्वयं का भी मकान होता है। यह व्यक्ति ईश्वर से डरने वाला होता है। ईश्वर आराधना इसकी दैनिक चर्चा होती है।
धार्मिक कार्यों के लिए यह आगे बढ़कर सहयोग देता है, यथासम्भव सत्य बोलता है तथा ईमानदारीपूर्ण जीवन बिताने का इच्छुक होता है। चातुर्यबुद्धि की तीक्ष्णता, कलाओं का ज्ञान एवं तत्परता इसके प्राकृतिक गुण हैं।
मंगल – जिसकी कुण्डली में पंचम भाव में मंगल हो वह पुत्रहीन होता है। यदि मंगल निर्बल हो तो वह पुत्रों द्वारा प्रताड़ित होता है तथा दुःख भोगता है। पाप-कृत्यों में रक्त ऐसा जातक कई बाधाओं का सामना करता है ।
यह व्यक्ति प्रबलरूपेण साहसी होता है । साहस के बल पर यह भयंकर से भयंकर विपत्तियों के आघातों को भी सहन कर लेता है। जीवन पूर्णतः संघर्षशील होता है। पत्नी तथा इसके विचारों में मतभेद रहते हैं, परन्तु फिर भी कुछ न कुछ ऐसा मध्यम मार्ग निकल आता है जिससे वातावरण अनुकूल बन जाता है । डॉक्टरी, वैद्यक आदि क्षेत्र में ऐसे जातक नाम कमाते हैं।
बुध – जो व्यक्ति अपनी कुण्डली के पंचम भाव में बुध ग्रह रखता है, वह सौभाग्यशाली होता है तथा उसका जीवन आनन्दमय बीतता है। स्त्री के मामले में भी ऐसा जातक परम सौभाग्यशाली होता है। इसे गुणवान, समझदार एवं पढ़ी-लिखी पत्नी मिलती है ।
सन्तान की तरफ से भी जातक सौभाग्यशाली होता है । सन्तान अधिक होती है तथा कन्या सन्तान विशेष होती है। ऐसा व्यक्ति हंसमुख, प्रसन्नचित्त, विनोदी एवं मधुर जीवन बिताने वाला होता है। देवताओं का भक्त, बड़ों पर श्रद्धा रखने वाला एवं पवित्र जीवन बिताने वाला होता है।
जिसके पंचम भाव में बुध होता है वह सेक्रेटरी, सचिव, मैनेजर या मिनिस्टर बन जाना है। बुद्धि तीक्ष्ण होती है तथा शीघ्र निर्णय कर लेने की उसमें विशेष योग्यता रहती है। ऐसा व्यक्ति कठिन से कठिन परिस्थितियों में भी नहीं घबराता तथा विपरीत परिस्थितियों को भी अपने अनुकूल बनाने की सामर्थ्य रखता है । प्रेम के क्षेत्र में यह सफल सिद्ध होता है ।
बृहस्पति – जिसके पंचम भाव में बृहस्पति होता है, वहु तर्कशास्त्र, व्याकरण, हिस्ट्री अथवा कानून में रुचि रखने वाला होता है । ऐसा व्यक्ति मंत्र-तंत्र, वेद पाठ आदि में भी सिद्ध होता है तथा परिश्रमी होता ।
वह व्यक्ति पत्नी के मामले में सौभाग्यशाली होता है। इसे सुन्दर, गुणवान, पुलीन एवं पतिव्रता पत्नी मिलती है तथा दोनों में गहरा प्रेम रहता है । स्मरणशक्ति यद्यपि कुछ कमज़ोर होती है, परन्तु ऐसा व्यक्ति अधिकारियों का प्रिय पात्र होत है।
यह व्यक्ति सेक्रेटरी सलाहकार अथवा शक्ति सम्पन्न अधिकारी होता है। पर की सजावट की ओर यह विशेष ध्यान देता है तथा स्वयं की सजावट पर भी व्यय करता है। इसे जीवन में उत्तमकोटि के मित्र मिलते हैं, जो इसकी उन्नति में सहायक होते हैं। वह व्यक्ति गम्भीर धैर्यपूर्वक विपक्षी की भी सुनने वाला, सहिष्णु, क्षमावान एवं परोपकारी, चतुर एवं धनवान होता है । सन्तान मुख श्रेष्ठ होता है तथा उच्च वाहन सुख भी प्राप्त होता है।
शुक्र – पंचम भाव में शुक्र हो तो जातक कल्पनाशील युवक होता है । काव्य प्रतिभा इसमें नैसर्गिक रूप से देखी जा सकती है एवं काव्य, संगीत, नृत्य, कलादि के माध्यम से द्रव्योपार्जन भी करता है। ऐसे व्यक्ति के कई घनिष्ठ मित्र होते हैं जो उसके जीवन में सहायक होते हैं । सन्तान सुख भी श्रेष्ठ होता है तथा पांच से ज्यादा सन्तानें होती हैं।
पुत्रियों को संख्या ज्यादा होती है तथा वृद्धावस्था में पूर्ण सन्तानसुख मिलता है। भोग-प्रधान प्रवृत्ति रखने वाला ऐसा व्यक्ति हसमुख तथा रंगीले स्वभाव का होता है। जीवन सानन्द बीतता है। राज्य की ओर से उसे पूर्ण सम्मान प्राप्त होता है, धुन का धनी होता है, जीवन में जो निश्चय कर लेता है, उसे पूरा करता है ।
बाल्यावस्था कष्टमय होती है तथा शिक्षण काल में कई व्यवधान उपस्थित होते हैं। ऐसा व्यक्ति यौवन काल में पूर्ण संघर्ष करता हुआ वर्तमान को अपने अनुकूल बनाने में समर्थ होता है।
शनि – जिसके पंचम भाव में शनि होता है, उसका दिमाग ऊलजलूल विचारों से ग्रस्त रहता है। व्यर्थ की बातों में वह अधिक दिमाग खपाता है एवं मंदमति होता है। आय की अपेक्षा व्यय अधिक होता है। यदि शनि उच्च का होकर पंचम में हो तो जातक के पैरों में कमजोरी ला देता है। मित्रों से वाद-विवाद होता रहता है तथा योजनाएँ बनाने में यह सफल होता है ।
राहु – पंचम भाव स्थित राहु नुकसानदायक ही होता है। जीवन में मित्रों का अभाव रहता है, लेकिन शत्रुओं से प्रताड़ित होने पर भी यह जीवट वाला व्यक्ति होता है। सन्तान दुख इसे सहन करना पड़ता है तथा गृह कलह से भी यह चिन्तित रहता है, ऐसा जातक क्रोधी एवं हृदय का रोगी होता है ।
केतु – जिस कुण्डली के पंचम भाव में केतु होता है, वह दरिद्र जीवन बिताने वाला होता है । सन्तान सुख नगण्य होता है तथा जीविका के लिए कठोर संघर्ष करता रहता है। इस व्यक्ति को पेट सम्बन्धी कई बीमारियाँ होती हैं तथा इसका ऑपरेशन भी होता है । वात रोग से भी जातक पीड़ित रहता है । सहोदर भाइयों से इसकी बनती नहीं तथा इसे बान्धवों से परेशानियां ही प्राप्त होती हैं। भाई इसे धोखा भी दे सकते हैं।
शिक्षा के क्षेत्र में वह पिछड़ा रहता हैं तथा विद्या का आभाव इसे उम्र भर खटकता रहता है। भावनाओं के वशीभूत यह गलत कार्य भी कर डालता है, जिससे यह परेशान भी रहता है। मुकदमेबाजी, सट्टा या अनर्गल कार्यों में इसका धन व्यय हो जाता है। पूर्वार्द्ध की अपेक्षा जीवन का उत्तरार्द्ध ज्यादा सफल कहा जा सकता है ।
कुंडली के पांचवें भाव में सभी राशियों का फलादेश
मेष – जिस पुरुष के पंचम भाग में मेष राशि होती है, वह व्यक्ति क्रोधी स्वभाव का होने के साथ विवेकहीन भी होता है। कई बार उतावली में ऐसे कार्य कर डालता है। जिसके लिए उसे आगे चलकर पछताना पड़ता है। घर में पति-पत्नी एक मत नहीं हो पाते और पुत्रों के विचारों से उसकी असमानता रहती है। ऐसे व्यक्तियों का चित्त अस्थिर रहता है तथा किसी भी प्रश्न पर ये तुरन्त निर्णय नहीं ले पाते ।
वृष – जिस व्यक्ति के पंचम भाव में वृष राशि हो, वह मनुष्य सहज ही धन प्राप्त कर डालता है । द्रव्योपार्जन में वह विशेष संलग्न रहता है तथा उसे कई बर लॉटरी या जुए से भी धनलाभ हो जाता है। ऐसे व्यक्ति की स्त्री सुन्दर तथा भाग्यशाली होती है परन्तु सारी चिन्ता उसे भोगनी पड़ती है।
संतान या तो देरी से होती है अथवा संतान से उसे त्रास मिलता है या फिर संतान दुर्बल एवं मलिन स्वभाव की होती है। ऐसे व्यक्ति क्षमावान, धैर्यवान, सहिष्णु एवं समझदार होते हैं ।
मिथुन – जिस व्यक्ति के पंचम भाव में मिथुन राशि होती है, उसे पूर्णत: संतान सुख प्राप्त होता है। वह स्वयं दृढ़, साहसी एवं मजबूत होता है, परन्तु उसके विचारों में अस्थिरता रहती है। वह किसी भी एक कार्य पर काफी समय तक विचार नहीं कर सकते।
इन्हें क्रोध भी जल्दी आता है, परन्तु क्रोध शान्त भी शीघ्र ही हो जाता है। विद्या योग उन्नत होता है । यद्यपि ऐसे व्यक्तियों के शिक्षा काल में कई प्रकार की बाधाएँ उपस्थित होती है।
कर्क – जिसके पंचम भाव में कर्क राशि हो, उसके लड़कियां अधिक होती हैं तथा पुत्र सुख उसे देरी से प्राप्त होता है। ऐसा व्यक्ति स्थूलकाय होता है, शीघ्र ही दूसरों पर विश्वास कर लेता है, एवं संतान सुख से पीड़ित एवं दुखी रहता है। ऐसे जातक विनयशील, समझ- बार एवं नम्र होते हैं।
सिंह – जिसके पंचम भाव में सिंह राशि होती है, वह अत्यन्त असहिष्णु एवं क्रोधी स्वभाव का होता है। मजाक उसे पसन्द नहीं एवं बराबरी वालों के साथ उसकी कम ही बनती है । ऐसा व्यक्ति क्रूर स्वभाव का होता है तथा निर्दयतापूर्ण कार्य करने में उसे आनन्द आता है। ऐसे व्यक्तियों के भी लड़कियाँ ज्यादा होती हैं। ये घर से दूर जीविकोपार्जन के लिए रहते हैं तथा परिश्रमी, साहसी एवं हिम्मत वाले व्यक्ति होते हैं ।
कन्या – जिन जातकों के पंचम भाव में कन्या राशि होती है, वे स्थूलकाय होते हैं। लम्बी-चौड़ी डींग हाँकते हैं तथा व्यर्थ के प्रदर्शन में ज्यादा विश्वास रखते हैं । वास्तविकता कुछ और ही होती है और ये दिखाते कुछ और हैं। ऐसे व्यक्ति मोटी बुद्धि के होते हैं। समय की नाजुकता को पहचान नहीं पाते तथा अपने सिद्धान्तों पर व्यर्थ ही अड़े रहते हैं, फलस्वरूप वे हानि भी उठाते हैं।
शीघ्र निर्णय लेने की क्षमता इनमें होती ही नहीं इनको यदि जरा-सा भी अधिकार मिल जाता है। तो ये उसका दुरुपयोग करने में भी नहीं हिचकते हैं।
स्त्री की कुण्डली में यदि पंचम भाव में कन्या राशि हो तो वह धर्म-कर्म में विश्वास रखने वाली होती है, पांप कृत्यों से दूर रहती है तथा पुत्र-सुख से वंचित रहकर दुःखी रहती है। आभूषणप्रियता ऐसे जातकों की विशेषता कही जा सकती है।
तुला – यदि पंचम भाव में तुला राशि हो तो जातक सुशील, नम्र और अध्ययन-प्रेमी होता है, सुन्दर भी होता है, तथा उसकी सुन्दरता लोगों द्वारा सराही जाती है। सुन्दर नेत्रों वाले ऐसे पुरुष कार्य तत्पर होते हैं। यदि स्त्री की कुण्डली में पंचम भाव में तुला राशि हो तो वह ज्यादा प्रभावकारी मानी जाती है।
वृश्चिक – जिस जातक की कुण्डली के पंचम भाव में वृश्चिक राशि होती है वह गुप्त रोगों से पीड़ित रहता है। संतान सुख जातक को प्राप्त होता है एवं अंग-प्रत्यंग सुन्दर एवं दर्शनीय होते हैं। ये व्यक्ति सहनशील होते हैं तथा ठण्डे दिमाग से सोच-विचारकर कार्य करने वाले हैं। ये व्यक्ति धुन के पक्के होते हैं एवं जिस काम को एक बार हाथ में ले लेते हैं उसे पूरा करके ही छोड़ते हैं । धार्मिक कार्यों में अग्रणी रहते हैं ।
धनु – जिसके पंचम भाव में धनु राशि हो, वह घोड़ों से प्रेम रखने वाला होता है । घुड़सवारी उसका प्रिय विषय होता है। ऐसा व्यक्ति रेस के घोड़ों का संवार या तांगे वाला हो सकता है। शत्रुओं के मान मर्दन में यह समर्थ होता है तथा अपने से बड़े लोगों का आदर करता है। सन्तान सुख इसे पूर्ण होता है तथा आज्ञाकारी पुत्र उत्पन्न होते हैं ।
मकर – जिस व्यक्ति के पंचम भाव में मकर राशि हो, वह मलिन चित्त वाला होता है। बुरे कार्यों या गंदी राजनीति में उसे आनन्द आता है। दास्यवृत्ति प्रधान ऐसा व्यक्ति चतुर एवं समय को पहचानने वाला होता है। शत्रुओं से भी काम निकालने में यह प्रवीण होता है तथा चरित्र की दृष्टि से शिथिल कहा जा सकता है।
स्त्री जातक को कुण्डली में यदि पंचम भाव में मकर राशि हो तो वह शुभ होती है । ऐसी स्त्री सुयोग्य होती है तथा बहुत आगे और पीछे की सोचती है। यदि अन्य ग्रह कारक हों तो ऐसे जातक की स्मरणशक्ति अत्यन्त तीव्र होती है।
कुम्भ – जिसके पंचम भाव में कुम्भ राशि हो, वह स्थिर चित्त का होता है। ऊपर से शान्त दिखाई देने पर भी उसके हृदय में हलचल मची रहती है। गंभीरता इसका प्रधान गुण है। यह व्यक्ति व्यर्थ का असत्य भाषण नहीं करेगा । दूसरों की भलाई एवं परोपकार कार्य करने में प्रसन्नता अनुभव करेगा। प्रसिद्धि भी ऐसे जातकों को शीघ्र ही मिलती है ।
कष्ट सहन करने में भी ये माहिर होते हैं तथा भयंकर विपत्तियों में भी ये अडिग रहते हैं । सन्तान एवं विद्या-सुख इन्हें श्रेष्ठ रहता है।
मीन – यदि पंचम भाव में मीन राशि हो तो जातक कामुक प्रकृति का होता है। ऐश-आराम में ज्यादा विश्वास रखता है तथा स्त्रियों में यह विशेष लोकप्रिय होता है । स्वभाव से यह जातक भावुक, हर समय मुस्कराहट बिखेरने वाला तथा सौग्याकृति का होता है सन्तान सुख मध्यम रहता है तथा स्त्री के विचारों से मतभेद रहने के कारण पारिवारिक कलह भी सम्भव होती है। वृद्धावस्था सफल कही जा सकती है।
समय-निर्देश
ऊपर हमने पंचम भाव का विवेचन किया, पर अब वह जानना भी आवश्यक है कि पंचम भाव से सम्बन्धित फलाफल किस समय फलदाई होंगे। मुख्यरूपेण पंचम भाव से सन्तान, विद्या, बुद्धि एवं प्रसिद्धि का ज्ञान किया जाता है। यदि पंचमेश शुभ एवं कारक ग्रह होता है तो शुभ फल अन्यथा अशुभ फल प्रकट होता है।
पंचम भाव से सम्बन्धित फलाफल जिन दशाओं में स्पष्ट होते हैं, वे इस प्रकार है:
- पंचमेश की दशा में
- पंचमेश की दशा में पंचमेश का अन्तर आने पर,
- पंचम भाव पर जिन ग्रहों की दृष्टि हो उनमें सर्वाधिक बली ग्रह की दशा में,
- पंचम भाव में स्थित ग्रह की दशा में,
- पंचमेश जिस भाव में बैठा हो, उस भाव के स्वामी की दशा में,
- चन्द्रमा से पंचम भाव के स्वामी की दशा में ।
जैसा कि ऊपर बताया जा चुका है कि पंचम भाव से संतान, संतान- सुख, संतान की प्रसिद्धि आदि के बारे में जानकारी की जाती है। ज्योतिष के पाठकों को चाहिए कि वे पति या पत्नी दोनों कुण्डलियों का अध्ययन कर इसके बारे में फलादेश करें तो ज्यादा उचित एवं सही होगा।
पत्नी की कुण्डली क्षेत्र कुण्डली कहलाती है तथा पति की कुण्डली बीज कुण्डली कहलाती है।
- यदि बीज एवं क्षेत्र दोनों ही कुण्डली सशक्त हों तो संतान श्रेष्ठ होती है।
- यदि बीज कुण्डली मजबूत हो और क्षेत्र कुण्डली अशक्त हो तो लड़कों की संख्या ज्यादा समझनी चाहिए।
- इसी प्रकार क्षेत्र कुण्डली सशक्त हो और बीज कुण्डली निर्बल हो तो लड़कियों की संभावना अधिक रहती है।
- यदि दोनों की कुण्डलियों के पंचम भाव निर्बल हों तो संतान नहीं होती और होती भी है तो शीघ्र मर जाती है।
एक बात और ! स्त्री की कुण्डली में पंचमेश का अध्ययन करने के साथ-साथ मंगल और चन्द्र का भी अध्ययन करना चाहिए, क्योंकि मंगल का सम्बन्ध रक्त से है तथा चन्द्रमा का सम्बन्ध संतति से इन दोनों ग्रहों के मजबूत होने पर संतति गुणवान एवं प्रसिद्ध होती है।
पुरुष की कुण्डली में पंचमेश का अध्ययन करने के साथ-साथ सूर्य और शुक्र का भी अध्ययन करना चाहिए, क्योंकि सूर्य उसके पराक्रम का कारक है तो शुक्र का सम्बन्ध पुरुष के वीर्य से है । यदि पुरुष की कुण्डली में शुक्र क्षीण, अशक्त या शत्रु क्षेत्री होता है तो संतति उत्पादन में बाधा रहती है।
इस प्रकार से पाठकों को पंचम भाव का सावधानीपूर्वक निरीक्षण परीक्षण करना चाहिये ।
पंचम भाव से सम्बन्धित कुछ योग
- सप्तमेश पुत्र भाव (पंचम भाव) में हो तो जातक पुत्ररहित या स्त्रीरहित होता है ।
- लग्नेश पंचम भाव में हो और पंचमेश लग्न में हो तो जातक के दत्तक पुत्र हो ।
- शुभ राशिस्थ पंचमेश केन्द्र त्रिकोण में हो तो तथा शुभ ग्रहों से दृष्ट हो तो वाल्यावस्था में पुत्र उत्पन्न हो ।
- पुत्रेश और घनेश बलरहित ही पुत्र भाव पाप ग्रह से देखा जाता हो तो जातक निस्सन्तान रहता है।
- पंचम भाव या पंचमेश शुभ ग्रहों से दृष्ट हो या शुभ ग्रहों से युक्त हो तो निस्सन्देह पुत्रप्राप्ति होती है।
- पूर्ण बली गुरु पंचम भाव में हो तो बुद्धिमान पुत्र पैदा होते हैं।
- चन्द्र दशम भाव में हो, शुक्र सप्तम भाव में हो, पाप ग्रह चौथे भाव में हो तो संतान का नाश होता है।
- लग्नेश 6 या 8वें भाव में हो, पंचम भाव में पाप ग्रह हो या उसे शत्रु ग्रह देखते हों तो पुत्र की हानि होती है।
- गुरु, लग्नेश, सप्तमेश और पंचमेश सभी निर्बल हों तो जातक के दुर्बल संतति होती है ।
- पंचम भाव मिथुन या कन्या राशि हो या कुम्भ अथवा मकर राशि हो तो जातक के दत्तक पुत्र होता है ।
- पंचमेश मंगल के साथ हो तथा छठे भाव का स्वामी उसे देखता हो तो जातक का पुत्र शत्रुओं द्वारा मारा जाता है।
- लग्न में मंगल हो, अष्टम भाव पर या चतुर्थ भाव पर सूर्य की दृष्टि हो तो जातक को विलम्ब से संतान प्राप्ति होती है।
बुद्धियोग
- पंचमेश 6, 8 या 12वें स्थान में हो तो जातक (स्वग्रही न होने पर) मंद बुद्धि होता है।
- पंचमेश बुध और गुरु से युक्त होकर केन्द्र या त्रिकाण में हो तो जातक तीक्ष्ण बुद्धि एवं संकेत को समझने वाला रहता है।
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