कुंडली के दसवें भाव में सभी ग्रहों और राशियों का फलादेश
ज्योतिष ग्रन्थों में दशम भाव को सर्वाधिक महत्ता दी गई है, क्योंकि जीवन का आधार कर्म है और कर्म का हेतु दशम भाव है, इसलिए दशम का सूक्ष्म विवेचन प्रत्येक ज्योतिषी बन्धु के लिए आवश्यक धर्म माना जाता है।
दशम भाव से विचारणीय विषय : पद, नौकरी, जीवन निर्वाह हेतु कार्य, आदर, श्रद्धा, उच्चता, महत्ता और दिव्यता, ज्ञान, पिता, जीवन, प्रकार, वस्त्राभूषण, व्यापार, कृषि, कर्म, यज्ञ, विज्ञान आदि ।
मानव का आधार एवं उसकी प्रतिष्ठा उसके पद तथा जीवन-पद्धति पर निर्भर है। मनुष्य के रहन-सहन से मानव के गुणों का पता चल जाता है, अतः दशम भाव मुख्य विचारणीय बिन्दु रहना चाहिए। दशम भाव का अध्ययन करते समय निम्न तथ्यों को ध्यान में रखना चाहिए :-
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कुंडली के दसवें भाव में सभी ग्रहों का फलादेश
सूर्य – जिस जातक की जन्मकुण्डली के दसवें भाव में सूर्य होता है, वह तेजस्वी, सच्चरित्र एवं विद्वान् पुरुष होता है। यदि अन्य ग्रह कारक हों तो जातक नौकरी में प्रगति करता है, परन्तु राज्य भंग योग भी होता है। नौकरी काल में कई उतार-चढ़ाव देखने पढ़ते हैं। जातक को मातृ-सुख अत्यल्प होता है अथवा उसके तथा माता के विचारों में परस्पर विशेष होता है, जिसके कारण वह माता से दूर रहता है।
पितृ-सुख भी कम ही कहा जा सकता है एवं पिता का धन उसे प्राप्त नहीं होता। आकस्मिक व्यय कई बार हो जाता है, जिसके कारण आर्थिक स्थिति चिंतनीय ही रहती है । जातक शान- मान-मर्यादा से जीवन बिताने का इच्छुक होता है। समाज में वह व्यक्ति श्रद्धा की दृष्टि से देखा जाता है ।
चन्द्र – दशम भाव में चन्द्र की स्थिति शुभ मानी गई है। जिस जातक के दशम भाव में चन्द्र होता है, उसका बचपन अत्यन्त सुन्दरता से व्यतीत होता है । भाग्य निरंतर उसका साथ देता है एवं सोलह वर्ष के बाद ही वह उन्नति की ओर अग्रसर होने लगता है।
ऐसा जातक स्वस्थ, सुन्दर, कुलीन, गुणवान एवं नीति को समझने वाला होता है । समय की नाजुकता को यह तुरन्त पहचान लेता है एवं परिस्थितियों को भांपकर तदनुकूल कार्य करने में सफल हो जाता है। नौकरी में जातक लाभ प्राप्त करता है तथा शीघ्र ही उन्नति के पथ पर पहुँच जाता है ।
यदि दशमस्थ चन्द्र उच्च या स्वराशि का होता है तो जातक पूर्ण प्रतिष्ठा प्राप्त करता हुआ समाज में लोकप्रियता अर्जित करता है। ऐसा जातक आकर्षक व्यक्तित्व रखने के साथ-साथ विरोधियों में भी प्रशंसा प्राप्त करता है, परन्तु यदि चन्द्र क्षीण अथवा शत्रु क्षेत्री होता है तो जातक वृद्धावस्था में श्वास रोग से पीड़ित रहता है एवं मातृ-धन से वंचित रहता है ।
मंगल – जिस मनुष्य की जन्मकुण्डली के दशम भाव में मंगल हो वह एक सफल व्यापारी सिद्ध होता है। यह जातक न नौकरी कर सकता है और न नौकरी में इसका मन ही लगता है। नौकरी में तरक्की के अवसर बहुत ही कम होते हैं।
ऐसे जातक का वाल्यकाल अत्यन्त गरीबी में व्यतीत होता है। माता की मृत्यु उसके बचपन में ही हो जाती है । फलस्वरूप यह जातक मातृ-सुख से वंचित रहता है।
शिक्षा के क्षेत्र में भी इसके सामने कई कठिनाइयाँ रहती हैं, अतः इसे सुचारु रूप से शिक्षा प्राप्त नहीं होती और न शिक्षा में प्रगति ही कर पाता है, परन्तु ऐसे जातक कठोर परिश्रमी होते हैं। आगे बढ़ने की इनमें अदम्य लालसा होती है और बाधाओं तथा संकटों में इनका व्यक्तित्व निखरता है।
श्रम की महत्ता ये समझते हैं और अवसर को पहचानने की इनमें अपूर्व क्षमता होती है । अपनी सूझ-बूझ से व्यापार में उन्नति कर लेते हैं। यौवनावस्था संघर्षों में बीतती है, परन्तु प्रौढ़ावस्था एवं वृद्धावस्था में ये जातक पूर्ण सुखोपभोग करते हैं। अपने जीवन-लक्ष्य को ये प्राप्त कर लेते हैं ।
बुध – जिस मनुष्य के दशम भाव में बुध होता है, वह अत्यन्त विनीत एवं कुशल प्रशासक होता है। निम्न स्तर से उन्नति करते-करते ये उच्चतम पद प्राप्त करने में समर्थ होते हैं। राजनीति के क्षेत्र में ये सफल रहते हैं ।
इनके विचार सर्वथा मौलिक होते हैं तथा इनकी राजनीति दूषित एवं अन्याय के धरातल पर स्थित नहीं होती, अपितु राजनीति एवं धर्म तथा अहिंसा का अपूर्व सम्मेलन इनके विचारों में देखा जा सकता है ।
बचपन इनका साधारण होता है तथा साधारण कुल में जन्म लेते हैं, पर अपने विचारों तथा कार्यों के फलस्वरूप ये विख्यात हो जाते हैं।
ईमानदारी इनके जीवन का ध्येय होती है। छल-कपट से सर्वथा दूर, राजनीति में होकर भी ये निस्पृह रहते हैं। इनका व्यक्तित्व उच्च एवं भव्य होता है।
बृहस्पति – दशम भावस्थ बृहस्पति जातक को धार्मिक विचारों वाला बना देता है । यद्यपि ऐसा जातक राजनीति में प्रवेश करता है, परन्तु फिर भी धर्म उसके जीवन पर हावी रहता है। धार्मिक कार्यों में यह आगे बढ़कर भाग लेता है तथा अपने विचारों में उज्ज्वलता प्रकट करता है।
नौकरी के क्षेत्र में ये जातक सफल होते हैं। यद्यपि ये जातक व्यापारी होते हैं, परन्तु फिर भी ऐसे व्यक्ति व्यापार में सफल नहीं होते, इसकी अपेक्षा नौकरी में उन्नति के अवसर ज्यादा रहते हैं।
पिता का यह भक्त होता है तथा माता की आज्ञा का भी यह उल्लंघन नहीं करता। समाज में इसे सम्मान मिलता है तथा इसके व्यवहार एवं आदर्श से लोग प्रभावित होते हैं । तीर्थयात्राएँ खूब होती हैं तथा सादा जीवन बिताने का इच्छुक होता है ।
शुक्र – दशम भाव में यदि शुक्र हो तो जातक व्यापार करने पर हानि उठाता है, इसके विपरीत नौकरी में उन्नति के अवसर अधिक रहते हैं। एक साधारण कुल में जन्म लेकर भी ये जातक नौकरी में उच्च पद पर पहुँच जाते हैं।
धार्मिक क्षेत्र में ये सहिष्णु होते हैं तथा काव्य, संगीत, नाटकादि कलाओं में गहरी रुचि रखते हैं। जीवन के मध्य काल में इन्हें संघर्ष करना पड़ता है, परन्तु प्रौढ़ावस्था में संघर्ष का सुफल मिल जाता है। वृद्धावस्था बड़ी आनन्दमय होती है। जातक प्रसिद्धि प्राप्त करता है। ‘सादा जीवन उच्च विचार’ उसका ध्येय रहता है |
शनि – दशम भाव में शनि की स्थिति जातक को धनवान बनाता है। नौकरी में जातक प्रगति करता है। यद्यपि इन्हें आजीविका के लिए कठोर श्रम करना पड़ता है, परन्तु फिर भी ये अपने लक्ष्य तक पहुँच
जाते हैं। संगीत, नृत्यादि कलाओं में यह रुचि रखते हैं, जीवन को ऐश आराम से बिताना इनका ध्येय होता है। भोगी स्वभाव के ऐसे व्यक्ति परिस्थिति को समझकर तदनुकूल कार्य करने वाले होते हैं ।
इनके रहन-सहन में प्रदर्शन अधिक रहता है। आकस्मिक खर्चे भी आते रहते हैं, जिनके कारण हाथ तंग रहता है। माता-पिता के विचारों से इनके विचार मेल नहीं खाते, फलस्वरूप पारिवारिक कलह बनी रहती है। कठोर संघर्ष एवं निरन्तर श्रम में ये जातक विश्वास रखते हैं । यात्राएँ खूब करते हैं तथा प्रौढ़ावस्था सुलभ होती है।
राहु – दशम भाव में राहु की स्थिति इस बात की सूचक है कि जातक देर-सवेर निश्चय ही राजनीति के क्षेत्र में घुसेगा और सफलता प्राप्त करेगा। राजनीतिक दाँव-पेच जितनी कुशलता से यह जानता है, उतना अन्य नहीं । संसार में जितने भी प्रसिद्ध राजनीतिज्ञ हुए हैं, पाठक देखेंगे कि उन सबकी जन्मकुण्डली के दशम भाव में राहु की स्थिति है ।
श्री सुभाषचन्द्र बोस, चंगेज खाँ, डाक्टर राजेन्द्रप्रसाद, एस० के० पाटिल, महात्मा गांधी आदि महापुरुषों की कुण्डलियों में यह योग भली प्रकार देखा जा सकता है।
ऐसा जातक यदि नौकरी करता है। तो वहाँ पर भी वह सफल रहता है। अफसर इससे प्रसन्न रहते हैं । जीवन का मध्य काल तथा अन्तिम काल इनके लिए स्वर्गवत् होता है ।
केतु – दशम भाव में स्थित केतु जातक को संघर्षशील एवं कर्मठ बना देता है। नौकरी में यह जातक प्रगति नहीं कर सकता और न इसे मातृ-सुख ही भली प्रकार प्राप्त हो सकता है। व्यापार में यह व्यक्ति सफल हो सकता है । बाल्यावस्या कष्ट में बीतती है, परन्तु जीवन के उत्तरार्द्ध में पूर्ण ख्यातिलाभ करता है। ऐसा जातक विद्वान, विचारक तथा नीतिवान होता है ।
कुंडली के दसवें भाव में सभी राशियों का फलादेश
मेष – दशम भाव में यदि मेष राशि हो तो जातक कई कार्यों में रत रहता है। जीवन निर्वाह के लिए एक से अधिक आजीविका के साधन ढूंढता है तथा प्रत्येक प्रकार का कर्म करने को तत्पर रहता है। जीवन में यश का अभाव रहता है।
वृष – जिस जातक की कुण्डली के दशम भाव में वृष राशि हो वह मनुष्य आय से अधिक व्यय करने वाला होता है। धन संचय करने की कला न तो उसे आती है और न व्यवस्थित रूप में वह धन संचय कर ही पाता है। धार्मिक कार्यों में जातक की गहरी श्रद्धा होती है और वह अपने पिता का भक्त होता है। समाज, कुल एवं जाति में उसे आदर की दृष्टि से देखा जाता है। राज्य पक्ष उसके अनुकूल ही कहा जा सकता है ।
मिथुन – यदि दशम भाव में मिथुन राशि हो तो उसे कृषि कार्यो से विशेष लाभ रहता है, इसके अतिरिक्त वह भूमि सम्बन्धी कार्य करे तो लाभ उठा सकता है। अपने से बड़ों की श्रद्धा करता है तथा उनकी प्रत्येक आज्ञा का पालन करता है।
पिता की सेवा करने वाला ऐसा जातक नौकरी की अपेक्षा व्यापार करने पर अधिक लाभ उठा सकता है । यशभागी वह पुरुष समाज एवं कुल में सम्मान प्राप्त करता है ।
कर्क – यदि दशम भाव में कर्क राशि हो तो जातक निश्चय ही धार्मिक कार्यों में रुचि रखने वाला होता है। प्याऊ लगाना, कुआँ खुदवाना या ऐसे कार्य करना जिनसे गरीबों का हित हो, यह करता है।
पापपूर्ण कृत्यों से यह दूर रहता है । अनीतियुक्त बात स्वीकार नहीं करता। माता-पिता को आदर देने वाला ऐसा जातक श्रम, न्याय एवं धर्म में विश्वास रखता है।
सिंह – जिस मनुष्य के दशम भाव में सिंह राशि होती है, उसे माता का अल्प सुख ही प्राप्त होता है, इसके साथ ही साथ आजीविका के लिए भी उसे कठोर श्रम और संघर्ष करना पड़ता है। वाहन सुख स्वल्प होता है तथा भूमि-सम्बन्धी कार्यों से जातक को लाभ नहीं रहता । शिकार का यह शौकीन होता है तथा राजनीतिपूर्ण जीवन बिताने का इच्छुक होता है। परिवार से इसे नहीं के बराबर सहायता मिलती है।
कन्या – जिस जातक के दशम भाव में कन्या राशि होती है, वह व्यक्ति स्वाभिमान रखने वाला एवं अपनी आन पर मर मिटने वाला होता है। चापलूसी उसे पसन्द नहीं और दूसरों की हाँ में हाँ मिलाना वह बुरा समझता है ।
नौकरी के क्षेत्र में वह नौकरी को गम्भीरता से भी नहीं लेता। उदासीन वृत्ति से वह नौकरी करता रहता है, फलस्वरूप उसकी प्रगति धीरे-धीरे होती है। ऐसे जातक को नौकरी की अपेक्षा व्यापार ज्यादा लाभदायक होता है। स्त्री से इसकी अनबन रहती है तथा उससे विरोधी विचार रहता है।
यद्यपि वह धीरे-धीरे उच्च पद पर पहुँच जाता है, परन्तु फिर भी इसके पास धन संचय नहीं होता है। समाज इसके कार्यों की आलोचना करता है तथा कुल से इसे कोई लाभ नहीं मिलता।
तुला – यदि दशम भाव में तुला राशि हो तो जातक की प्रवृत्ति व्यापार में ही अधिक होती है और उसका भाग्योदय भी व्यापार में ही तीव्रता से उन्नति की ओर अग्रसर होता है। नौकरी में उन्नति के अवसर कम ही रहते हैं।
यदि यह जातक नौकरी करता है तो वह सब प्राप्त नहीं होता, जिसका वह हकदार है। यह व्यक्ति बात का धनी होता है, मुंह से जो कह देता है, उसे पूरा करके दिखाता है। पिता की आज्ञा मानने वाला तथा नीतियुक्त बात कहने वाला यह जातक यौवनावस्था में अपने लिए अनुकूल वातावरण बनाकर उन्नति के शिखर पर पहुंच जाता है।
वृश्चिक – जिसके दशम भाव में वृश्चिक राशि हो, वह मनुष्य सदगुणों से अलंकृत गरीबों का सहायक होता है। यद्यपि परिस्थितियाँ सर्वथा इसके प्रतिकूल रहती हैं, परन्तु यह अपने सौम्य व्यवहार एवं नीति से वातावरण को अपने अनुकूल बनाने में समर्थ रहता है।
धार्मिक कार्यों में इसकी गहरी रुचि होती है तथा ऐसे उत्सवों में यह बढ़- चढ़कर हिस्सा लेता है। नौकरी में जातक प्रगति करता है तथा निर्वाह के लिए कठोर श्रम करता रहता है।
धनु – धनु राशि जिस कुण्डली के दशम में होती है, वह व्यापार में प्रगति करता है। नौकरी में इसे काफी परेशानियों एवं विरोधी वातावरण का सामना करना पड़ता है, परन्तु इसमें इच्छाशक्ति अदम्य होती है तथा निरन्तर संघर्ष करता हुआ अन्ततः विपरीत परिस्थितियों को अपने अनुकूल बना ही लेता है।
भूमि सम्बन्धी अथवा धर्म संबंधी कार्यों से जातक को लाभ होता है एवं पिता की सेवा करनेवाला यह जातक समाज में यश लाभ करता है ।
मकर – यदि किसी जातक की कुण्डली के दशम भाव में मकर राशि होती है तो वह अपने आप पर नियंत्रण रखने वाला होता है । विपरीत परिस्थितियों में भी यह अपना मानसिक संतुलन नहीं खोता तथा समय को पहचानकर तदनुकूल कार्य करने में समर्थ होता है ।
जीवन के मध्यकाल में वह प्रखर ज्योतिपुंज के रूप में उभरता है एवं अपने गुणों की चकाचौंध से सबको आश्चर्यान्वित कर देता है। एकदम से कार्य करना तथा चौंकाने वाले कार्य करने में यह प्रवीण होता है। पिता से इसके विचारों में विरोध रहता है, परन्तु फिर भी यह पिता के प्रति श्रद्धा रखता है। इसका जीवन प्रकार सादा एवं उच्च रहता है।
कुम्भ – जिस जातक की जन्मकुण्डली के दशम भाव में कुम्भ राशि होती है, वह कूटनीतिज्ञ एवं राजनीति में प्रवीण होता है। विरोथियों को भी अपने वश में कर इच्छानुकूल कार्य करा सकने में यह समर्थ होता है। दूसरे को समझाने तथा दूसरों से अपना काम बना लेने में यह सक्षम होता है ।
जीवन प्रकार सादा रहता है, परन्तु आकस्मिक खर्चे भी कई बार आ जाते हैं, जिससे इसका आर्थिक जीवन अस्त व्यस्त हो जाता है । आय की अपेक्षा व्यय हमेशा बढ़ा-चढ़ा रहता है।
मीन – जिस जातक के दशम भाव में मीन राशि होती है, वह जल से सम्बन्धित कार्यों या नौकरी में विशेष प्रगति करता है। व्यापार में भी यह इसी प्रकार के व्यापार से लाभ उठा सकता है। समाज में इसका सम्मान होता है तथा नीतियुक्त कार्य करने वाला ऐसा जातक परिवार में प्रिय एवं उन्नति के पद पर आसीन होता है ।
दशम भाव से सम्बंधित योग
- दशम भाव से आगे दशम भाव का स्वामी भी राज्येश कहा जाता है ।
- दशमेश शुक्र से युक्त केन्द्र में बैठा हो और द्वादश में बुध हो तो जातक महान पुण्यात्मा बनता है ।
- लग्नेश और दशमेश एक साथ हों तो जातक नौकरी में विशेष प्रगति करेगा ।
- बुध अपनी उच्चराशि में राहु-केतु से रहित होकर दशमेश के साथ नवम भाव में हो तो जातक निश्चय ही उत्तम कोटि के यज्ञ करता है ।
- राज्य स्थान से दशम भाव में पापग्रह या क्रूर ग्रह हों तो जातक साधारण स्थिति प्राप्त करता है।
- नवम, दशम, सप्तम, पंचम और लग्न ये पांच भाव शुभ ग्रहों से युक्त या दृष्ट हो तो जातक विश्व में विख्यात होता है।
- बलवान पाँच या चार ग्रह केन्द्र (1,4,7,10) अथवा त्रिकोण (5,9) में हों तो जातक वृद्धावस्था में संन्यासी होता है।
- शुक्र और चन्द्रमा बलहीन लग्नेश को देखते हों तो जातक साधारण स्थिति में ही रहता है ।
- नवम भाव में चन्द्र हो तथा उसे कोई भी ग्रह न देखता हो तो जातक निश्चय ही संन्यासी बनता है।
- लग्नेश को शनि को देखता हो और अन्य ग्रह लग्नेश को न देखते हों तो भी प्रबल संन्यास योग समझना चाहिए ।
- दशमेश केन्द्र या त्रिकोण में हो तो जातक गजेटेड ऑफीसर होता है।
- दशमेश बृहस्पति यदि त्रिकोण में हो तो जातक निश्चय ही उच्च पद प्राप्त कर संसार के समस्त भोगों का सुखोपभोग करता है।
- लग्न के दशम भाव में सूर्य हो तो पिता से धन मिले, चन्द्र हो तो माता से, मंगल हो तो शत्रु से बुध हो तो मित्र से, गुरु हो तो भाई से, शुक्र हो तो ससुराल से शनि हो तो सेवक से तथा राहु-केतु हों तो छल-प्रपंच से धन मिले।
व्यापार
लग्न से द्वितीय या एकादश भाव में प्रबल ग्रह हो तो जातक को व्यापार से विशेष लाभ होता है।
- लग्न से दशम स्थान का स्वामी सूर्य के नवांश में हो तो जातक दवा, ऊन, घास, धान्य, सोना, मोती आदि के व्यापार से लाभ उठा सकता है।
- चन्द्र के नवांश में हो तो मोती, कृषि, मिट्टी के खिलौने, बच्चों के खिलौने, फैंसी स्टोर, रेडीमेड स्टोर आदि के व्यापार से लाभ उठा सकता है ।
- मंगल के नवांश में हो तो तांबा व पीतल के बर्तनों की दुकान एवं कोयला आदि के व्यापार से ।
- बुध के नवांश में हो तो लकड़ी का कारखाना, फर्नीचर, ज्योतिष शास्त्र, वैद्यक आदि से ।
- गुरु के नवांश में हो तो अध्यापकवृत्ति तथा स्टेशनरीआदि के व्यापार से ।
- शुक्र के नवांश में हो तो चौपायों के खरीदने-बेचने से, गुड़, चावल, किराना के व्यापार से अथवा फेसी स्टोर के व्यापार से ।
- शनि के नवांश में हो तो लोहे का व्यापार, तिल, तेल, ऊन आदि के व्यापार से विशेष प्रगति कर सकता है ।
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