कुंडली के छठे भाव में सभी ग्रहों और राशियों का फलादेश

षष्ठ भाव से मुख्यतः रोग, शत्रु, व्यसन, चोट, घाव, एक्सीडेंट, बीमारी, मानसिक असन्तुलन, माता का दुर्भाग्य, पुत्र एवं भाई का दुर्भाग्य आदि का विचार किया जाता है। ऋण एवं ननिहाल का विचार भी छठे भाव से ही किया जाता है, परन्तु इस भाव को सावधानीपूर्वक देखने एवं अध्ययन करने की जरूरत है, क्योंकि कई बार ऐसा देखा गया है कि जातक बीमारी से ग्रस्त रहता है, पर ननिहाल से उसे विशेष लाभ मिलता रहता है अथवा वह ऋण से मुक्त रहता है।

इसलिए एक ही भाव से अलग-अलग बातों का विचार करते समय पूरी सावधानी अपेक्षित है । षष्ठ भाव का अध्ययन करते समय निम्न तथ्यों की ओर पूरा-पूरा ध्यान देना चाहिए:-

छठा भाव और उसकी राशि, छठे भाव में स्थित ग्रह, छठे भाव पर ग्रहों की दृष्टि, षष्ठेश (छठे भाव का स्वामी) के बैठने की राशि षष्ठेश के साथ बैठने वाले ग्रह ।

यदि देखा जाये तो कुण्डली में मुख्यत: छठे भाव, षष्ठेश और मंगल को मुख्य विचारणीय बिन्दु बनाना चाहिए। इन तीनों का अध्ययन कर शुभाशुभ फल निर्देश करना ही उचित होता है।

कुंडली के छठे भाव में सभी ग्रहों का फलादेश

सूर्य – जिस जातक की जन्म कुण्डली के छठे भाव में सूर्य हो वह कुशल राजनीतिज्ञ, समय को पहचानने वाला, सोच-विचारकर कार्य करने वाला तथा प्रसिद्धि प्राप्त जातक होता है। यद्यपि इस प्रकार के जातक का स्वास्थ्य उत्तम कोटि का नहीं कहा जा सकता तथापि वृद्धावस्था में उसे लम्बी बीमारी भुगतनी पड़ती है।

यह व्यक्ति योगाभ्यास में रत, अपने परिवार का कल्याण करने वाला, बन्धु बान्धवों में पूज्य एवं पूर्ण गृहस्थ सुख प्राप्त करने वाला होता है। ऐसा व्यक्ति कुशल प्रशासक होता है। यद्यपि इसके शत्रु होते हैं, जोकि पीठ पीछे कुचक्र रचते रहते हैं, परन्तु सामने आकर कहने की उनकी हिम्मत नहीं होती।

ऐसा जातक पूर्ण परिश्रमी एवं धनवान होता है। ‘सेल्फमैन’ होता हुआ भी अर्थ-संचय में निपुण होता है। वृद्धावस्था में इसके सीने में दर्द, हार्ट ट्रबल एवं रक्त सम्बन्धी विकार उत्पन्न हो जाते हैं।

चन्द्र – जिस जातक की जन्म कुण्डली के छठे भाव में चन्द्र होता है वह बाल्यावस्था में विविध रोगों से ग्रस्त रहता है। मानसिक परेशानियां उसे हर समय घेरे रहती है। दुःखों को झेलते-झेलते वह सहिष्णु हो जाता है। मित्रों में वह सम्मान की दृष्टि से भी देखा जाता है, परन्तु यदि चन्द्र पूर्ण बली और राशि का हो तो यह मानव को बहुत प्रकार से सुख प्रदान करने में समर्थ होता है।

मंगल – यदि मंगल छठे भाव में हो तो जातक युद्धस्थल में मृत्यु प्राप्त करता है अथवा शत्रुओ से संघर्ष करने में विजय लाभ करता हुआ मी मरण प्राप्त कर लेता है। राजनीतिक क्षेत्र में ऐसा जातक पूर्ण सफलता प्राप्त करता है। कठोर हृदय का यह व्यक्ति शत्रुओं एवं विपक्षियों का काल होता है तथा हर सम्भव प्रयत्न से ऊपर उठ का प्रयत्न करता है। शत्रु उसके नाम से थर्राते हैं।

यदि मंगल मकर राशि का होकर छठे स्थान पर पड़ा हो तो जातक पूर्ण गृहस्थ जीवन भोगता है तथा ऐश-आराम से जीवन व्यतीत करता है। ऐसा व्यक्ति उच्चस्तरीय अधिकारी, शासक या मंत्री होता है। यदि मंगल शत्रु ग्रहों द्वारा देखा जाता है तो जातक का ऐक्सीडेंट होता है तथा अंग-भंग होता है ।

यदि शनि-मंगल एक साथ छठे घर में बैठे हों और उन पर शुभ ग्रहों की दृष्टि न हो तो व्यक्ति की मृत्यु पशु से कुचले जाने के कारण होती है अथवा आपरेशन के समय मृत्यु हो जाती है।

यदि छठे घर में राहु तथा मंगल बलवान होकर स्थित हों तो व्यक्ति आत्महत्या करता है तथा सम्बन्धियों को दुख देने वाला होता है। यदि कर्क का भौम छठे भाव में हो तो जातक पापकर्म में रत रहता है।

बुध – यदि छठे भाव में बुध हो तो जा चिड़चिड़ा एवं क्रोधी स्वभाव का होता है। दूसरे की सलाह पर बिना ध्यान दिये उसके दिल में जो जंचता है, वही कार्य करता है। शिक्षा अपूर्ण रहती है, मानसिक परेशानियों से ग्रस्त रहता है तथा प्रबल रूप से हीन भावना का शिकार होता है। प्रत्येक कार्य का यह अ धकार पक्ष ही देखता है अथवा निराशाजन्य स्थिति में रहता है ।

यदि छठे भाव में बुध, राहु तथा शनि के साथ होता है तो नौकर के विश्वासघात के कारण मारा जाता है । ऐसा व्यक्ति आलसी, निकम्मा, शत्रुओं से भयभीत रहने वाला एवं कायर होता है ।

बृहस्पति – यदि छठे भाव में गुरु हो तो जातक अपने समाज एवं जांति में अपमानित होता है तथा निरन्तर व्यंगवाणों का शिकार बना रहता है। साथ ही ऐसा व्यक्ति आलसी, छिद्रान्वेषी एवं हाथ की सफाई दिखाने वाला होता है । शत्रुओं से भयभीत रहने वाला ऐसा व्यक्ति दुर्भाग्यशाली ही होता है । तकदीर इससे निरन्तर छल करती रहती है तथा जीवन में काफी विघ्न-बाबाओं का सामना करना पड़ता है । स्वास्थ्य साधारण स्तर का होता है ।

शुक्र – जिसकी कुण्डली के छठे भाव में शुक्र पड़ा हो, वह शत्रुरहित होता है। मित्रों से उसे हमेशा लाभ पहुंचता है तथा प्रतिष्ठित कुल में जन्म लेकर वह विद्वान होता है। ऐसा व्यक्ति विलासी भी होता तथा उसका चरित्र संदिग्ध कहा जा सकता है। यह स्वस्थ एवं सुन्दर स्त्रियों के प्रति आसक्त रहता है तथा स्त्रियों से सम्बन्धित कार्यों में ही लाभ उठाता है।

यदि मीन राशि का शुक्र छठे भाव में हो तो व्यक्ति धनी, विद्वान एवं सम्मान लाभ करने वाला होता है।

शनि – यदि किसी जातक की जन्म कुण्डली में छठे भाव में शनि हो तो वह वीर, साहसी एवं लड़ाकू प्रवृत्ति का होता है । भोजन का शौकीन होता है तथा सुस्वादु भोजन के लिए लालायित रहता है । साहस, वीरता, दृढ़ता एवं सूझबूझ इसमें प्रचुर मात्रा में होती है । इसके अधीनस्थ कर्मचारी इसके लिए लाभदायक नहीं रहते, मित्रों की ओर से इसे धोखा खाना पड़ता है।

यदि मंगल शनि के साथ छठे भाव में हो तो पेट का ऑपरेशन होता है और इस दौरान इसकी मृत्यु हो जाती है।

राहु तथा शनि का संयोग (स्त्री की कुण्डली में ) हिस्टीरिया रोग उत्पन्न कर देता है।

तुला का शनि यदि छठे भाव में हो तो जातक की सम्मान वृद्धि करता है तथा कुल-विस्तार में सहायक होता है ।

राहु – राहु छठे भाव में बैठकर जातक की कठिनाइयों को सुगम कर देता है । शत्रुओं से वह सम्मान-लाभ करता है । ऐसा व्यक्ति प्रबलरूपेण शत्रु संहारक तथा बलवान होता है। जातक की बहुत उम्र होती है तथा उसे धन-लाभ भी श्रेष्ठ रहता है। पूर्ण सुख-सुविधा इस जातक को प्राप्त होती रहती है। शत्रु निरन्तर इसके विरुद्ध षड्यन्त्र करते ही रहते हैं । इसका मस्तिष्क अस्थिर रहता है तथा मानसिक परेशानियाँ दिन-प्रतिदिन बढ़ती रहती हैं ।

यदि राहु उच्च राशि का होकर षष्ठ भाव में बैठा हो तो जातक निस्सन्देह परस्त्रीगामी होता है तथा गुप्तेन्द्रिय के रोग से पीड़ित रहता है। ऐसे जातक दो प्रकार का जीवन जीने वाले होते हैं ।

केतु – यदि छठे भाव में केतु हो तो जातक हठ का पक्का तथा निश्चित लक्ष्य तक पहुँचने वाला होता है। मुँह पर स्पष्ट शब्दों में खरी-खरी कह देना इसका स्वभाव होता है। चरित्र संदिग्ध कहा जा सकता है तथा ननिहाल में जातक को विशेष लाभ प्राप्त नहीं होता । यह शत्रुओं का नाश करने वाला, जीवन में सभी प्रकार के सुख भोगने वाला, स्वस्थ, सुन्दर तथा प्रसिद्धि प्राप्त जातक होता है। छठे भाव में पाप ग्रह ज्यादा शुभदायक एवं श्रेष्ठ माने गये हैं ।

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कुंडली के छठे भाव में सभी राशियों का फलादेश

मेष – यदि छठे भाव में मेष राशि हो तो जातक का स्वभाव दुष्टतापूर्ण होता है। यद्यपि वह परिश्रमी होता है, परन्तु फिर भी चुगली खाना, अफसरों के कान भरना आदि उनका स्वभाव होता है।

वृष – यदि छठे भाव में बुध राशि हो तो जातक की संतान विद्रोही होती है। उसके तथा उसकी पत्नी के विचारों में असमानता रहती है तथा वह खिन्न हृदय घूमता रहता है।

मिथुन – मिथुन राशि छठे भाव में हो तो जातक का गृहस्थ जीवन कलहपूर्ण होता है। नौकरी की अपेक्षा व्यापार की ओर उसका झुकाव अधिक होता है । आर्थिक दृष्टि में वह बार-बार हानि उठाता है ।

कर्क – छठे भाव में कर्क राशि हो तो जातक पुत्रों से अत्यधिक प्रेम करने के कारण दूसरों से अकारण झगड़ा मोल लेता रहता है। न तो यह स्वयं आराम करता है और न अपने अधीनस्थ सम्बन्धियों अथवा कर्मचारियों को आराम करने देता है।

सिंह – यदि पष्ठ भाव की राशि सिंह हो तो जातक क्रोधी और कामुक होता है। परस्त्री के सम्पर्क से वह हानि उठाता है, गृह कलह रहती है तथा सन्तान का सुख उसे स्वल्प ही मिलता है।

कन्या – कन्या राशि में छठा भाव हो तो वह व्यक्ति वीर, साहसी एवं बलवान होता है । शत्रु उसके नाम से थरथराते हैं, परन्तु ऐसा व्यक्ति कामुक भी होता है। हल्के स्तर की स्त्रियों के सम्पर्क में रहने के कारण अधिक हानि भी सहन करता है।

तुला – छठे भाव में यदि तुला राशि हो तो वह व्यक्ति धनवान होता है, परन्तु साथ ही साथ वह नास्तिक स्वभाव भी होता है। स्वार्थं की मात्रा कुछ विशेष होती है ।

वृश्चिक – जिस जातक की कुण्डली के छठे भाव में वृश्चिक राशि होती है, वह मंद माग्य वाला होने के साथ-साथ कठोर परिश्रमी होता है । परिश्रम के बल पर वह वर्तमान एवं भविष्य को अपने अनुकूल बना लेता है। ऐसा व्यक्ति कामुक एवं विलासी भी होता है।

धनु – यदि छठे भाव में धनु राशि हो तो जातक निर्धन होता है। आजीविका के लिए उसे कठोर परिश्रम करना पड़ता है। मेहनत करना, परिश्रम के बल पर निरन्तर उन्नति करते रहना ही उसका स्वभाव है। वह जीवन में किसी विधवा स्त्री से सम्पर्क स्थापित करके भी द्रव्य प्राप्त करता है।

मकर – जिसके छठे भाव में मकर राशि हो, वह निस्संदेह गरीबी का जीवन व्यतीत करता है। आय की अपेक्षा व्यय भी बढ़ा-चढ़ा रहता है। संतति रोगग्रस्त रहती है, जिसके कारण भी व्यय बढ़ा-चढ़ा रहता है। मित्रों से, पुत्रों से तथा पत्नी से उसका स्वभाव मेल नहीं खाता ।

कुम्भ – जिस जातक के छठे भाव में कुम्भ राशि होती है, उसकी अधिकारियों से शत्रुता रहती है तथा परस्पर वाद-विवाद होता रहता है। बचपन में उसे जलाघात होता है तथा 42 वें वर्ष में भी जल में डूबने का खतरा रहता है। ऐसा व्यक्ति नौसैनिक तथा जहाज पर काम करने वाला हो सकता है।

मीन – जिसके षष्ठ भाव में मीन राशि हो, उसका पुत्रों से झगड़ा रहता है तथा न्यायालय में व्यय होता रहता है । स्त्री से भी उसकी कम बनती है तथा जातक जीवन में रिक्तता का अनुभव करता है।

द्वादश भाव और मानव-शरीर

छठे भाव की सूक्ष्मता को समझने के लिए यह आवश्यक है कि पाठक यह जानें कि कौन-कौन सी राशियां मानव के किन-किन अंगों से सम्बन्धित है। इस प्रकार छठे भाव में जो राशि होती है, उससे सम्बन्धित मानव का अंग हो विशेष रूप से प्रभावित होता है।

यदि छठे भाव की राशि शुभ है या शुभ ग्रहों से युक्त है तो ही वह अंग ठीक रहेगा, परन्तु यदि वह राशि पापग्रहों से युक्त है तो वह अंग कमजोर एवं निर्वल बनेगा। इसी प्रकार अकारक षष्ठेश जब-जब जिन-जिन राशियों पर जाएगा, उन राशियों से सम्बन्धित अंग पीड़ित होंगे । उससे नीचे राशि एवं उससे सम्बन्धित अंग दिए जा रहे है:-

  1. मेष – सिर, चेहरा और मस्तिष्क ।
  2. वृष – गर्दन, गिल्टियाँ, गले का भीतरी भाग, कंठ ।
  3. मिथुन – कंधे और हाथ, फेफड़े, रक्त एवं मांस, भुजाओं की हड्डियाँ एवं रक्त ।
  4. कर्कसीना एवं छाती तथा पेट के भीतरी हिस्से ।
  5. सिंह – पीठ एवं कमर, हृदय, रीढ़ की हड्डी ।
  6. कन्या – लिवर, तिल्ली एवं गुर्दा, पीठ की छोटी-छोटी हड्डियाँ ।
  7. तुला – चमड़ी ।
  8. वृश्चिक – लिंग एवं भग, गुदा द्वार, जंघाएँ ।
  9. धनु – कमर, नाड़ियाँ ।
  10. मकर – घुटने, हड्डियों के जोड़, घुटने की टोपी ।
  11. कुम्भ – पाँव, टखने, पाचन संस्थान ।
  12. मीन – एड़ी, पंजा तथा पंजे के नीचे का भाग ।

ऊपर मैंने प्रत्येक राशि से सम्बन्धित मानव अंग का मोटा-मोटा रूप स्पष्ट किया है। इसके अतिरिक्त शरीर के जो अन्य छोटे-छोटे भाग हैं, वे इनसे ही सम्बन्धित करके समझने चाहिएँ।

जो भाग जिस राशि से सम्बन्धित हो उस राशि को ही शरीर के उस भाग का भी स्वामी समझना चाहिए। उदाहरणार्थ चेहरे का स्वामी मेष राशि है तो कान, नाक, अलि, होंठ आदि अंगों को भी मेष राशि से ही सम्ब न्धित समझना चाहिए।

अब मैं यह स्पष्ट करूँगा कि कौन-कौन-से ग्रह शरीर के किन-किन अंगों का प्रतिनिधित्व करते हैं-

  1. सूर्य – हृदय, रक्त, मस्तिष्क, स्त्रियों की बाईं तथा पुरुषों की दाहिनी आँख ।
  2. चन्द्र – पुरुषों की बाई तथा स्त्रियों की दाहिनी आँख | स्तन, आंतें, लसीका (Colour less liquid in the body) ।
  3. मंगलनाक, ललाट, पाचन संस्थान, स्नायु संस्थान ।
  4. बुध – नाड़ियाँ, फेफड़े, जीभ, भुजाएँ, मुँह तथा केश ।
  5. बृहस्पति – दाहिना कान, लिवर ।
  6. शुक्र – हिचकी, ठोड़ी, वर्ण (रंग), बायाँ कान, गिल्टियां ।
  7. शनि – हड्डियों के जोड, हड्डियाँ, दति, घुटने, कफ

पाठकों को राशियों एवं ग्रहों से सम्बन्धित मानव शरीर के अंगों का ज्ञान हो गया।

जब षष्ठेश पापी या अकारक ग्रह हो और यह गोचर में भी पाप राशि पर स्थिर हो जाता है तो ऐसे समय में उस राशि से सम्बन्धित अंगों को चोट पहुँचती है या एक्सीडेंट होता है । वह सम्भावना निम्न अवसरों पर घटित होती है:-

1. षष्ठेश की दशा में, 2. षष्ठेश की अन्तर्दशा में, 3. सम्बन्धित राशि की दशा एवं अन्तर्दशा में ।

अब पाठकों की जानकारी के लिए प्रत्येक ग्रह (पापी या अकारक होने पर) से सम्बन्धित बीमारियों की जानकारी दे रहा हूँ । अर्थात् यदि निभ्न ग्रह अकारक होकर षष्ठेश वा षष्ठस्थ हो जाते हैं तो उनकी दशा-अन्तर्दशा में निम्न बीमारियां उत्पन्न हो जाती हैं:-

सूर्य बुखार, कमजोरी, दिल का दौरा, सम्बन्धी बीमारियां, आंखों की बीमारी, चर्मरोग, घाव, जलना, दोरे पड़ना, हिस्टीरिया आदि आदि ।

  1. चन्द्र – अनिद्रा, कफ सम्बन्धी बीमारियां, पाचन संस्थान का बिगड़ना, अजीर्ण, ठंडा बुखार, गठिया, मानसिक असंतुलन, पेट की बीमारियाँ, जलघात, जानवरों का हमला ।
  2. मंगल – गले की बीमारी, कण्ठ रोग, रक्त- विकार, गठियाबुख र आगजनी, जहर, आँखों की बीमारी, दौरा पड़ना, बेरी- बेरी रोग, सिर दुखना, रक्त सम्बन्धी बीमारियाँ आदि ।
  3. बुध – दिमागी फितूर, नाक-कान की बीमारी, वात सम्बन्धी कठिनाई, पित्त-भेद, चमड़ी के रोग, कोढ़, जहर, ऊँचाई से गिरना ।
  4. बृहस्पति – पेट में गैस रहना, बुखार, कान से मवाद गिरना, वायुयान दुर्घटना ।
  5. शुक्र – कोढ़, वात, पित्त, कफ संबंधी बीमारी, वीर्य विकार, नेत्र पीडा, मूत्र पीड़ा, गुदा रोग, गर्भाशय संबंधी कठिनाइयाँ कमजोरी एवं पेडू का दर्द।
  6. शनि – पेट एवं पैरों की बीमारियाँ, गैस, पेड़ से गिरना, पत्थर से चोट आना ।
  7. राहु – दिल का दौरा, दिल की कमज़ोरी, जहर देना व लेना, आत्महत्या, पाचन संस्थान सम्बन्धी बीमारियाँ ।
  8. केतु – धाव पड़ना, घाव का सड़ना, जलना एवं राहु से सम्बन्धित सभी बीमारियां।

जब-जब भी षष्ठे या अकारक ग्रह बलवान होंगे या षष्ठेश का इन ग्रहों में से किसी भी ग्रह के साथ संबंध होगा, तब-तब इन ग्रहों से संबंधित बीमारियाँ मनुष्य को पीड़ित करेंगी ।

अब मैं राशियों एवं उनसे सम्बन्धित बीमारियों का विवरण प्रस्तुत कर रहा हूँ।

  1. मेष और वृश्चिक – नेत्र संबंधी बीमारियां, बुखार, पाव, चमड़ी कट जाना एवं जल जाना ।
  2. वृष और तुला – स्वादहीनता, शर्करा की कमी, गुप्तेन्द्रिय संबंधी बीमारियां, ठंडा बुखार ।
  3. मिथुन और कन्या – दाद, नाक एवं चमड़ी से सम्बन्धित बीमारियां ।
  4. कर्क – शर्करा का आधिक्य, मुंह में छाले पढ़ना, जीभ सम्बन्धी बीमारी, दिल का दौरा पड़ना आदि ।
  5. सिंह – नेत्र-पीड़ा, आंखों का ऑपरेशन एवं पेट सम्बन्धी बीमारियाँ |
  6. धनु और मीन – कर्ण-पीड़ा, स्मरणशक्ति-लुप्तता, चेतनाहीनता, मस्तिष्क में विकृति आना, पेट में गैस उत्पन्न होना एवं जोड़ दुखना तथा हाथ-पैर टूटना या हाथ-पैरों से पसीना निकलना ।
  7. मकर और कुम्भ – पेशाब सम्बन्धी बीमारी, पेशाब बंद हो जाना, शरीर में गर्मी का बढ़ जाना, घाव पड़ना, पीव पड़ना, नाक में घाव होना, जोड़ों में दर्द होना आदि-आदि।

पष्ठ स्थान पष्ठेश की दृष्टि, कारक – अकारक ग्रह और दशा का अध्ययन कर जातक की भूतकाल में घटी बीमारियों आदि का स्पष्टीकरण किया जा सकता है, साथ ही भावी जीवन में कब-कब कैसी-कैसी बीमारियां होंगी, एक्सीडेंट होगा या नहीं आदि बातों का स्पष्टीकरण किया जा सकता है। इसके लिए अभ्यास की जरूरत है। अपने अध्ययन एवं अनुभव के बल पर मैं यह कह सकता है कि इस प्रकार से अध्ययन कर जो फलादेश किया जाता है, वह पूर्णतः सही और प्रामाणिक सिद्ध होता है ।

षष्ठम भाव का अध्ययन करने के साथ-साथ ज्योतिषी बन्धुओं को चाहिए कि वे लग्न, सूर्य और चन्द्रमा का भी अध्ययन करें, क्योंकि लग्न जहाँ शरीराकृति स्पष्ट करता है, वहाँ चन्द्रमा मस्तिष्क से सम्बधित होने के कारण मस्तिष्क का संचालन करता है।

इसी प्रकार सूर्य का सीधा सम्बन्ध आत्मा से है तथा आत्मा एवं हृदय को संचालित करने वाला प्रधान ग्रह सूर्य ही है। यदि कुण्डली में चंद्रमा और सूर्य बलवान होंगे तो यह स्वाभाविक ही है कि सम्बन्धित जातक का मस्तिष्क स्वस्थ और हृदय मजबूत है। ऐसा व्यक्ति आत्महत्या नहीं कर सकता, परन्तु यदि आत्महत्या से संबंधित ग्रह इनसे भी बलवान होकर अकारक बन जाता है तो आत्महत्या भी सम्भव है। यह स्थिति षष्ठेश की दशा में सम्बन्धित ग्रह की भुक्ति अवस्था में होगी।

कष्ट, पीड़ा एवं बीमारी के अध्ययन के बाद यह जानना शेष रहता हैं कि यह कष्ट कब घटित हो सकता है ? इसके लिए छात्रों को निम्न तथ्य ध्यान में रखने चाहिएँ–

पष्ठेश, पष्ठेश की राशि, षष्ठम स्थान, षष्टम ग्रह ,षष्ठ भाव पर दृष्टि डालने वाले ग्रह, षष्ठेम जहाँ बैठा है, वह भाव और उसका स्वामी तथा उसका एवं षष्ठेश का सम्बन्ध । सूर्य, चन्द्रमा एवं मंगल की स्थिति, अष्टम एवं द्वादश स्थान, कारक-अकारक ग्रह । मुख्यतः षष्ठेश की दशा की भुक्ति में अथवा सम्बन्धित प्रत्येक ग्रह की दशा में बीमारी आदि घटित होती है।

षष्ठ भाव से सम्बन्धित विशेष योग

  1. पष्ठेश और बुध राहू के साथ होकर लग्नेश से संयोग करता हो तो जातक नपुंसक होता है।
  2. मंगल, लग्नेश के साथ छठे भाव में हो तो घाव से लिंग में रोग हो ।
  3. गुरु छठे भाव में या केतु छठे भाव में कारक ग्रह बनकर शुभ फल प्रदान करता है ।
  4. पष्ठेश बली होकर शुभ ग्रह हो तो जातक शत्रुहन्ता होता है।
  5. षष्ठस्थ ग्रह शुभ ग्रह हो और षष्ठेश केन्द्र में हों तो साधारण रोगों का नाश करते हैं ।
  6. षष्ठेश से युक्त पापग्रह अष्टम में हो तो जातक को बवासीर का रोग होता है ।
  7. षष्ठेश से युक्त सूर्य 6, 8 भाव में हो तो सिर के बाल झड़ कर गंजापन हो जाता है।
  8. जिस राशि में राहु हो, शत्रु उसको देखता हो तो वह राशि शरीर के जिस भाव से सम्बन्धित होती है उस भाग में व्रण होता है।
  9. शत्रु स्थान का मालिक बलहीने होकर पापग्रह से देखा जाता हो या पापग्रहों के बीच में हो तो शत्रुओं के साथ युद्ध करते हुए जातक की मृत्यु होती है ।
  10. पष्ठेश द्वादश भाव में हो तो आंखों का ऑपरेशन होता है तथा नेत्रों की ज्योति कम होती है।
  11. पष्ठेश दुष्ट स्थान में हो तथा लग्नेश बली हो तो शत्रु का नाश करने में जातक समर्थ होता है ।
  12. षष्ठेश गोपुरांशादि में हो तथा उसको सूर्य देखता हो, साथ ही लग्नेश पूर्ण बली हो तो जातक निरोगी, वीर एवं शत्रुहन्ता होने के साथ-साथ सद्कार्यों के लिए विख्यात होता है।

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