कुंडली के नवें भाव में सभी ग्रहों और राशियों का फलादेश
वस्तुतः नवम भाव कुण्डली का सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण भाव है, क्योंकि मानव का आधार उसका भाग्य है । यद्यपि शास्त्रों में पुरुषार्थ को महत्ता प्रदान की है, परन्तु भाग्य के बिना पुरुषार्थ भी श्री-हीन हो जाता है। नवम भाव मुख्यतः मानव के भाग्य से ही सम्बन्धित है ।
नवम भाव से विचारणीय विषय : नवम भाव से निम्न तथ्यों का ज्ञान किया जाता है:-
भाग्य, अधिकार, आदेश, हुकूमत, पोते-पोतियां, प्रसिद्धि, व्यक्तित्व, सम्मान, धर्म, धर्म-परिवर्तन, तीर्थयात्रा, सहानुभूति, नेता-पद, नेतृत्व, उच्चपद प्राप्ति, विदेश यात्रा, यात्राएँ, जोश, साहस, सूझबूझ, विवेक आदि, भाग्योदय काल, भाग्योदय स्थान, उच्च विचार, सद्गुण आदि ।
देखा जाय तो वे सभी विषय जिनसे मानव जीवन उच्च एवं दिव्य बनता है – नवम भाव के अन्तर्गत ही आते हैं, अतः नवम भाव का सूक्ष्मतापूर्वक अध्ययन करना अत्यावश्यक है । नवम भाव का अध्ययन करते समय निम्न तथ्यों को दृष्टि में रखना चाहिए:-
नवम भाव व राशि, नवम भाव का स्वामी, नवम भाव में बैठे ग्रह, नवम भाव पर ग्रहों की दृष्टि, नवमेश के बैठने की राशि, नवमेश पर ग्रहों की दृष्टि, कारक, अकारक एवं तटस्थ ग्रह, भाव दशा, महादशा, अन्तर्दशा आदि ।
कुंडली के नवें भाव में सभी राशियों का फलादेश
सूर्य – जिस जातक के नवम भाव में सूर्य होता है, वह मध्यम कद का, उभरा वक्षस्थल, उन्नत ललाट एवं सुन्दर नेत्रों वाला होता है । ऐसा व्यक्ति परिवार से स्नेह रखने वाला एवं नवीन विचारों का अन्वेषी होता है।
सूर्य की दृष्टि पराक्रम स्थान पर रहती है, अतः जातक साहसी एवं परिश्रमी होता है। श्रम की महत्ता वह समझता है एवं विपरीत परिस्थितियों से संघर्ष करता हुआ वह उन्नति की ओर अग्रसर होता रहता है । बाल्यावस्था सुखद नहीं कही जा सकती ।
शिक्षा एवं आजीविका के लिए उसे निरन्तर संघर्ष करना पड़ता है, मध्यकाल एवं वृद्धावस्था सफल रहती है । यात्राओं का योग प्रबल रहता है तथा जीवन के 24वें वर्ष के बाद से भाग्योदय होता है । नेतृत्व-क्षमता इसमें अपूर्व होती है।
चन्द्र – नवम भाव में चन्द्र की स्थिति अनुकूल मानी गई है। जिस व्यक्ति की जन्मकुण्डली के नवम भाव में चन्द्रमा होता है वह एक प्रकार से ‘सैल्फमेड मैन’ होता है। भाग्य निरन्तर उसका साथ देता रहता है, तथा ऐसे जातक संघर्ष के क्षणों में ही अपने व्यक्तित्व को निखार सकते हैं।
नेतृत्व करने की इनमें गजब की शक्ति होती है। विपरीत से विपरीत परिस्थितियों को भाँप, वैसा ही कदम उठाकर सफलता प्राप्त कर लेते हैं। जीवन का मध्यकाल उन्नत काल होता है।
ऐसा चन्द्र शत्रुहन्ता भी माना गया है। विपक्षी इसके सामने कमजोर पड़ते हैं। यात्रा योग भी उत्तम कहा जा सकता है। धर्म के क्षेत्र में ये सहिष्णु होते हैं तथा धार्मिक कार्यों में आगे बढ़कर भाग लेते हैं।
राजनीतिक क्षेत्र में ऐसे जातक विशेष रूप से सफल रहते हैं। गुलजारीलाल नन्दा, जार्ज वाशिंगटन, लोकमान्य तिलक, अकबर आदि की कुण्डलियों के नवम भाव में चन्द्र की स्थिति से ही वे राजनीतिक क्षेत्र में पूर्ण सफल रहे।
ऐसे जातक धनवान, विनम्र, विपक्षी का भी हित चाहने वाले एवं अवसरानुकूल कार्य करने वाले सफल होते हैं।
मंगल – जिस जातक के नवम भाव में मंगल होता है, वह साहसी, कर्मठ, परिश्रम में विश्वास रखने वाला तथा निरन्तर उन्नति की ओर अग्रसर होने वाला होता है। यदि मंगल शत्रु-क्षेत्री हो तो विविध रोगों से भी ग्रस्त रहता है । भाग्य निरन्तर छल करता रहता है तथा प्रारम्भिक वर्षों में दुःख प्रदान करता है। आजीविका के लिए भी ऐसे जातक कठोर श्रम करते देखे गये हैं।
यदि मंगल मकर का या स्वगृही हो तो जातक की भाग्य वृद्धि में सहायक होता है। विद्या में रुचि रखने वाला ऐसा व्यक्ति सफल लेखक, पत्रकार, प्रकाशक या गद्यकार बन जाता है। सच्चरित्र, सरल जीवन व्यतीत करने वाला ऐसा व्यक्ति नम्र स्वभाव का होता है।
बुध – नवम भाव में बुध की स्थिति जातक को चतुर एवं विनम्र बना देती है। परिश्रम करने में तत्पर ऐसा व्यक्ति शीघ्र ही लोकप्रिय हो जाता है। जीवन में यह अत्यन्त तेजी से प्रकाश में आता है व उन्नति पथ पर द्रुतगति से अग्रसर होता है। जीवन में इसे निरन्तर घात-प्रतिघातों का सामना करते रहना पड़ता है। जीवट वाला ऐसा व्यक्ति संकटों के समय भी मुस्कराता रहता है । 17 वर्ष के बाद जातक का भाग्योदय होता है।
जीवन में पूर्ण सुखोपभोग करता है तथा उत्तम कोटि का वाहन सुख प्राप्त होता है । पारिवारिक जीवन सुखद एवं सफल कहा जा सकता है ।
बृहस्पति – नवम भाव में बृहस्पति की उपस्थिति अत्यन्त शुभ मानी गई है। जिसके नवम भाव में गुरु होता है, वह साधारण कुल में भी जन्म लेकर उन्नति करता है तथा लक्ष्य प्राप्त कर लेता है। जातक का व्यक्तित्व अत्यन्त भव्य होता है तथा वह सहज ही लोगों की सहानुभूति अर्जित करने में समर्थ होता है।
ऐसा जातक राजनीतिक क्षेत्र में भी पूर्ण सफलता प्राप्त करता है । नेतृत्व, संगठन एवं सही संचालन के क्षेत्र में जातक प्रवीण होता है तथा विपक्षियों से भी नम्रता से पेश आना एवं विरोधियों की बात भी धैर्य से सुनना जातक का स्वभाव होता है।
ऐसा व्यक्ति शीघ्र ही उफनता नहीं अपितु गंभीर स्वभाव का होता है । पारिवारिक जीवन मध्यम स्तर का ही कहा जा सकता है ।
शुक्र – जिस जातक के नवें भाव में शुक्र होता है, वह ऐश-आराम से जीवन व्यतीत करने वाला तथा संयत रूप से जीवन बिताने वाला होता है । भाग्योदय जीवन के 22वें वर्ष में ही हो जाता है । बाल्यावस्था आनन्द से व्यतीत होती है, परन्तु जीवन के मध्यकाल में इसे कठोर परिश्रम करना पड़ता है। परिश्रम के बल पर यह दुर्भाग्य को भी कुछ न कुछ अपने अनुकूल ही बना लेता है।
यात्राओं का इसे शौक होता है तथा जीवन में खूब यात्राएँ करता है। धार्मिक क्षेत्र में यह सामाजिक रूढ़ियों का पालन करने वाला होता है । पारिवारिक जीवन सफल एवं श्रेष्ठ होता है तथा मानव जीवन के उच्च गुणों से सम्पन्न जातक मध्यावस्था में प्रसिद्धि प्राप्त करता है ।
शनि – जिस मनुष्य के नवम भाव में शनि होता है वह व्यक्ति वाचाल एवं राजनीति-निपुण होता है । जीवन का प्रारम्भ उसका सामान्य ही होता है, परन्तु समर्थ होने पर वह परिस्थितियों को अपने अनुकूल बनाकर उन्नति पथ पर अग्रसर हो जाता है।
जीवन का लक्ष्य सदैव इसकी दृष्टि में रहता है तथा जो भी कार्य करता है वह अत्यन्त धैर्यता से सोच-समझकर करता है। शिक्षण-काल में तथा आजीविका के लिए इसे कठोर श्रम करते रहना पड़ता है। यों भी यह व्यक्ति श्रम शील होता है। श्रम का मूल्य एवं महत्ता यह समझता है तथा श्रम के बल पर ही उन्नति भी करता है।
भाग्य इसके अनुकूल रहता है तथा इसके जीवन में यात्राओं के कई अवसर आते रहते हैं ।
राहु – नवम भाव में राहू की स्थिति प्रायः भाग्यवर्धक ही मानी जाती है। अपने अधिकारों की प्राप्ति के लिए यह सचेष्ट रहता है तथा अधिकारियों से जो भी आदेश मिलता है उसका कठोरता से पालन करता है। गृहस्थ जीवन सफल होता है।
केतु – नवमस्थ केतु इस बात का सूचक है कि जातक निश्चय ही राजनीतिक क्षेत्र में घुसेगा तथा सफलता प्राप्त करेगा। जीवन के मध्याह्न काल में ऐसा व्यक्ति प्रखर रूप में चमकता है। इस जातक में यह एक विशेषता होती है कि विपरीत परिस्थितियों में ही यह उभरता है, चमकता है एवं प्रसिद्धि प्राप्त करता है।
भाग्य जीवन में निरन्तर उत्थान-पतन देता रहता है, परन्तु फिर भी वे जातक लक्ष्यच्युत नहीं होते। लक्ष्य प्राप्ति की ओर सतत सचेष्ट रहते हैं। यात्राओं का योग जीवन में विशेष होता है।
विरोधियों को परास्त करने में जातक सफल होता है तथा राजनीतिक क्षेत्र में पूर्ण सफलता प्राप्त करता है । आइजनहॉवर, कार्लमार्क्स, माओ-त्से-तुंग, कृष्ण मेनन आदि राजनीतिज्ञों की कुण्डलियों के नवम भाव में केतु की उपस्थिति ने ही योग प्रदान किया है ।

कुंडली के नवें भाव में सभी राशियों का फलादेश
मेष – जिस जातक के नवम भाव में मेष राशि होती है वह व्यक्ति सौभाग्यशाली होता है। उसका विवेक हर समय जागृत रहता है तथा जो भी कार्य करता है, वह सोच-विचारकर करता है।
इसके साथ ही ऐसा मनुष्य अर्थ के सम्बन्ध में चिंतित भी रहता है, क्योंकि उस पर अप्रत्याशित व्यय आते रहते हैं तथा हर समय आय की अपेक्षा व्यय बढ़ा-चढ़ा रहता है।
चौपायों के खरीदने एवं बेचने से अथवा कृषि से या मकान बनाने, खरीदने या बेचने से जातक को विशेष लाभ होता है। धार्मिक कृत्यों से भी जातक लाभ उठाता है।
वृष – यदि नवम भाव में वृष राशि हो तो वह मनुष्य सच्चरित्र एवं विद्वान होता है। समय की गम्भीरता को वह पहचानता है एवं विवेकयुक्त बात कहता है। जीवन में 28 वर्ष के बाद से भाग्योदय होता है तथा पूर्ण भाग्योदय 36वें वर्ष से समझना चाहिए।
बाल्यावस्था कष्टकर होती हैं तथा शिक्षा प्राप्ति के लिए जातक को भटकना पड़ता है एवं परिश्रम उठाना पड़ता है, फिर भी ऐसा जातक पूर्ण शिक्षा प्राप्ति की दिशा में निरन्तर अग्रसर रहता है।
जीवन के उत्तरार्ध में इसके पास खूब धन होता है तथा धन के द्वारा ख्याति अर्जित करता है। इसे सजावट एवं भोग-विलासमय पदार्थों की ओर विशेष रुचि होती है एवं सजावट में जरूरत से ज्यादा व्यय कर डालता है । कपड़ों पर, सुगन्धित पदार्थों पर एवं फैशन पर इसकी रुचि होती है। फैन्सी स्टोर के व्यापार से जातक लाभ उठा सकता है। नौकरी में जातक धनैः-शनै: प्रगति करता है।
मिथुन – यदि नवम भाव में मिथुन राशि हो तो वह व्यक्ति सौम्य, सात्विक एवं सरल स्वभाव का होता है। धार्मिक कार्यों में रुचि रखता है तथा ऐसे प्रत्येक कार्य में आगे बढ़कर भाग लेता है । फिर भी धर्म के मामले में यह कट्टर न होकर सहिष्णु होता है। सड़ी-गली रूढियों एवं पाखंड का यह प्रबल विरोधी होता है। गरीबों के प्रति इसके दिल में दया हो है जीवन के 27 वर्ष के बाद इसका भाग्योदय होता है ।
कार्य व्यस्तता इसका स्वभाव है तथा जीवन के प्रत्येक क्षण को व्यापारिक दृष्टिकोण से देखता है। धन-संचय कला में यह निपुण होता है तथा जीवन के मध्यकाल के बाद से इसकी आर्थिक स्थिति विशेष ठीक हो जाती है। नौकरों पर इसकी आज्ञा चलती है तथा यह अपने सम्मान को बनाए रखता है। उच्च विचार, सद्गुणी शिक्षित एवं कला निपुण ऐसा व्यक्ति जीवन में लक्ष्य प्राप्त कर लेता है।
कर्क – यदि नवम भाव में कर्क राशि हो तो ऐसा व्यक्ति भावुक एवं कल्पनाप्रिय होता है। यह जातक एक सफल शिक्षक, पत्रकार, प्रकाशक या लेखक हो सकता है। व्रतोत्सवादि में जातक गहरी रुचि लेता है तथा चाहते हुए भी सामाजिक रूढ़ियों को तोड़ नहीं सकता।
बचपन में इसे पेट सम्बन्धी बीमारियाँ सम्भव हैं। वायु प्रकोप जीवन- भर बना रहता है एवं अस्थिरता, चंचलता एवं स्वरित निर्णय न ले सकने के कारण कई बार हानि भी उठाता है। सूझबूझ का घनी यह जातक जो भी कार्य करना चाहता है, उसके सोचने में जरूरत से ज्यादा समय लगा देता है। जीवन के मध्यकाल में कई उतार-चढ़ाव देखने पड़ते हैं तथा धन हानि सहनी पड़ती है। जातक अपने जीवन को सफल बनाने की भरसक कोशिश करता है।
सिंह – जिस जातक की जन्मकुण्डली के नवम भाव में सिंह राशि स्थिर होती है वह धर्म का विरोधी होता है। धार्मिक कट्टरता का विपक्षी यह जातक मानव धर्म में ही श्रद्धा रखता है तथा धर्म के दुर्बल पक्ष पर बहस करना इसका स्वभाव होता है।
भाग्य इसका साथ देता है, परन्तु इसकी प्रत्येक कार्यसिद्धि के बीच में व्यवधान तो आता ही है। ऐसा व्यक्ति चाहते हुए भी अपने अधिकारियों को सन्तुष्ट नहीं हर सकता। जातक का समाज में सम्मान होता है।
यह व्यक्ति कठोर परिश्रमी होता है तथा परिश्रम को ही जीवन का ध्येय समझता है । जीवन के पूर्वार्द्ध की अपेक्षा उत्तरार्द्ध ज्यादा सफल एवं श्रेष्ठ माना जा सकता है। यात्रा करना इसका प्रिय विषय होता है।
कन्या – जिस जातक के नवम भाव में कन्या राशि हो, वह विलासी प्रकृति का युवक होता है। अपने परिवार पुत्र एवं पत्नी से विशेष प्रेम करने वाला ऐसा जातक जीवन में सफलता प्राप्त करता है।
भाग्य निरन्तर इससे छल करता रहता है तथा जीवन में कई उतार-चढाव देखता है। अन्याय एवं पक्षपात का यह प्रबल विरोधी होता है। लोगों से वाह-वाही लूटना इसका ध्येय होता है तथा जरूरत से ज्यादा प्रदर्शन कर अपने-आपको उच्च एवं धनी दिखाने का प्रयत्न करता रहता है, जबकि वास्तविकता इसके विपरीत होती है।
वृद्धावस्था में पोते-पोतियों का पूर्ण सुख भोगता है तथा 23वें वर्ष के बाद इसका भाग्योदय होता है।
तुला – यह व्यक्ति धर्मभीरु होता है तथा ऐसा कार्य करने से हिचकिचाता है, जो अन्याय से युक्त हो या जिस कार्य को समाज में मान्यता न मिले। बाल्यावस्था में इसे काफी परेशानियां देखनी पड़ती है तथा इसकी प्रगति धीरे-धीरे होती है।
शिक्षण काल में भी कई व्यवधान आते हैं । या तो इसे सभी प्रकार के डिवीजन मिलते हैं या फिर रुक-रुककर पढ़ाई होती है। भोग-विलास का इच्छुक होता है। नौकरी की अपेक्षा इसे व्यापार में विशेष लाभ होता है तथा व्यापार में भाग्योदय भी शीघ्र ही हो जाता है।
नेतृत्व कार्य में यह जातक अग्रणी है तथा इसके जिम्मे जो कार्य है, उसे तत्परता से संपन्न करता है। यात्राएँ इसके भाग्य में होती हैं तथा घुमक्कड़ जीवन बिताने का इच्छुक भी होता है । ससुराल से भी धन प्राप्ति संभव है । 24वें वर्ष के बाद से भाग्योदय होता है।
वृश्चिक – जिस जातक के नवम भाव में वृश्चिक राशि होती है। वह पाखंड प्रिय होता है। प्रदर्शन की प्रवृत्ति इसमें खूब होती है तथा इस प्रवृत्ति के फलस्वरूप व्यर्थ का व्यय भी हो जाता है। सजावट एवं फैशन में इसकी रुचि रहती है।
जीवन के प्रारम्भिक वर्ष कष्ट तथा उथल-पुथल के होते हैं । इन दिनों में जातक को आजीविका के लिए कठोर संघर्ष करना पड़ता है। परिवार एवं जाति की ओर से इसे बिल्कुल सहायता नहीं मिलती, एक प्रकार से यह ‘सेल्फमेड’ मैन होता है । 28 वर्ष तक स्थिति साधारण रहती है तथा इसके बाद ही भाग्योदय संभव है एवं आर्थिक स्थिति सुधरती है।
जीवन में यह निरंतर प्रगति पथ पर गतिशील रहता है एवं अपने ध्येय तक पहुँचने में सफल हो सकता है। जीवन में यह कई यात्राएँ करता है तथा यह व्यक्ति समय को पहचानकर तदनुकूल कार्य करने वाला होता है ।
धनु – जिस जातक के नवम भाव में धनु राशि हो वह व्यक्ति चपल एवं शान्त, सौम्य, सरल स्वभाव का होता है। बचपन ठीक गुजरता है, परन्तु जीवन के मध्यकाल में इसे कठोर परिश्रम करना पड़ता है ।
भाग्य पूर्णतः इसके पक्ष में नहीं होता, यह जो भी कार्य अपने पक्ष में करना चाहता है, उसमें कुछ न कुछ बाधा उपस्थित हो ही जाती है। ऐसा व्यक्ति नाविक, जलयान संचालक या जलपोत पर कैप्टेन होता है, अथवा ‘वाटर’ या सिंचाई योजनाओं के अन्तर्गत नौकरी करता ह। इस प्रकार की नौकरी में जातक का भाग्योदय प्रबल एवं शीघ्र होता है।
परिवार एवं समाज में यह सबका प्रिय होता है। जीवन में इसे विशेष ख्याति प्राप्त होती है तथा 45 वर्षों के उपरान्त यह व्यक्ति धनी एवं उच्च पद प्राप्त करता है। यात्राओं का इस जातक को विशेष योग होता है।
मकर – यदि नवम भाव में मकर राशि हो तो वह व्यक्ति राजनीति पर होता है, ऐसा प्रत्येक कार्य जो लोगों को असंभव लगता है, यह युक्ति से कर डालता है, परन्तु इतना होते हुए भी यह अपने-आपका भला नहीं कर सकता। दूसरों के कार्य यह आसानी से सम्पन्न कर सकता है पर इसके स्वयं के कार्य आलस्यवश अधूरे पड़े रहते हैं।
भाग्य भी इससे निरन्तर छल करता रहता है तथा भाग्यवृद्धि में शिथिलता लाता है। शत्रु पक्ष प्रबल होता है तथा इसके प्रत्येक कार्य में रुकावटें डालता है।
नौकरी में यह जातक धीरे-धीरे प्रगति करता है। प्रसिद्धि के लिए यह व्यक्ति लालायित रहता है तथा निरन्तर ऊपर उठने का प्रयत्न करता रहता है। नेतृत्व की इसमें क्षमता होती है तथा कार्य को व्यवस्थित कर निबटाने में यह रुचि लेता है। जीवन का उत्तरार्द्ध ही सफल कहा जा सकता है।
कुम्भ – जिस जातक की जन्म कुण्डली के नवम भाव में कुम्भ राशि हो, वह व्यक्ति वाल्यावस्था में घोर कष्ट पाता है। इधर से उधर भटकना, शिक्षा के लिए जगह-जगह ठोकरें खाना तथा आजीविका प्राप्ति के लिए कठोर संघर्ष करना इसके प्रारब्ध में लिखा होता है । जीवन के 28वें वर्ष से समय इसके अनुकूल बनता है तथा 30 वें वर्ष के बाद से भाग्य साथ देने लगता है । उम्र का 36वाँ साल तथा इससे आगे भाग्य की दृष्टि से सफल वर्ष कहे जा सकते हैं।
यात्राओं का यह शौकीन भी होता है तथा यात्राओं का योग भी रहता है अथवा इसकी आजीविका ही ऐसी होती है, जिसमें यात्रा, भ्रमण आवश्यक हेतु होता है। जीवन के मध्यकाल के बाद से यह प्रसिद्धि प्राप्त करने लगता है। 45 वें वर्ष के बाद से जातक देश में ख्याति लाभ करता है। नेतृत्व, योग्यता, कूटनीतिज्ञता, मानव को परखने की शक्ति तथा बातचीत में यह जातक पटु होता है । वृद्धावस्था में यह जातक लखपति बनता है।
मीन – यदि नवम भाव में मीन राशि हो तो वह व्यक्ति जीवन में सफलता प्राप्त करता है। धार्मिक कार्यों में जातक रुचि लेता है तथा नौकरी में उन्नति करता है। व्यापार में इसे पीली धातु का (व्यापार करने से लाभ होता है। सुन्दर कपड़ों को पहनने का शौकीन होता है तथा 27वें वर्ष से भाग्योदय होता है। ऐसा जातक नम्र, कुलीन, ऊंचे विचार रखने वाला एवं सहिष्णु होता है ।
नवम भाव से सम्बन्धित योग
- नवमेश और बृहस्पति शुभ वर्ग में हों, भाग्य भाव शुभ ग्रह से युक्त हो तो जातक भाग्यवान होता है।
- पाप ग्रह यदि उच्च राशि के होकर नवम भाव में हों तो भाग्य निरन्तर जातक का साथ देता है।
- नवमेश नवम भाव में हो तो जातक भाग्यशाली बनता है।
- चन्द्र-बुध, चन्द्र-गुरु नवम भाव में श्रेष्ठ कारक ग्रह होते हैं।
- भाग्येश जिस राशि में होता है उस राशि का स्वामी भी भाग्यवर्धक माना गया है।
- लग्नेश लग्न को देखता हो तथा भाग्येश केन्द्र या त्रिकोण में हो तो जातक उच्च पद प्राप्त कर ख्याति अर्जित करता है।
- तृतीय, पंचम या लग्नस्थित बलवान ग्रह भाग्य भाव को देखता हो तो जातक भाग्यवान होता है ।
- घनेश लाभ स्थान में दशमेश से युक्त या दृष्ट हो तो यह योग प्रबल भाग्यवर्धक माना गया है।
- लाभेश नवम भाव में दशमेश से युक्त या दृष्ट हो तो जातक आई० ए० एस० आफिसर होता है।
- लाभेश नवम भाव में, धनेश लाभस्थान में, नवमेश धन भाव में और दशमेश से युक्त या दृष्ट हो तो वह व्यक्ति जीवन में सभी प्रकार के आनन्दों का भोग करता है।
- भाग्यस्थ गुरु पर शुक्र की दृष्टि हो तो जातक विविध वाहनों से सम्पन्न होता है।
- नवम स्थान पर उच्च का बृहस्पति या शुक्र हो और उस पर शुभ ग्रहों की दृष्टि हो तो जातक इन्हीं की दशा-अन्तर्दशा में निश्चय ही प्रधान न्यायाधीश, एम० एल० ए० या शासन-कार्य में उच्च पदाधिकारी होता है।
- नवमस्थ गुरु पर सूर्य-बुध की दृष्टि होने से जातक को सम्पादक, विद्वान और लेखक बना देता है । चन्द्र-मंगल की दृष्टि उच्च सेनाधिकारी बनाती है।
- नवम भाव में चन्द्र-बुध जातक को पंडित बना देता है।
- नवम भाव में उच्च का या स्वगृही शनि हो तो जातक खूब विदेश यात्राएँ करता है ।
भाग्योदय काल
- सप्तमेश या शुक्र 3, 6, 7, 10, 11वें स्थान में हो तो जातक का भाग्योदय विवाहोपरान्त होता है।
- भाग्येश रवि हो तो भाग्योदय 22 वर्ष में होता है।
- भाग्येश चन्द्र हो तो 24वें वर्ष में होता है।
- यदि मंगल भाग्येश हो तो भाग्योदय 28वें वर्ष में होता है।
- भाग्येश बुध हो तो 32 वें वर्ष में भाग्योदय कराता है।
- बृहस्पति यदि भाग्येश हो तो 16वें वर्ष में भाग्योदय होता है ।
- शुक्र भाग्येश होने पर 24 वें वर्ष में भाग्योदय समझना चाहिए।
- शनि भाग्येश होने पर 36 वें वर्ष में भाग्योदय कराता है।
- राहु-केतु यदि भाग्येश हों तो 42 वें वर्ष में भाग्योदय होता है।
कुंडली दर्पण
- लग्न में सभी ग्रहों और राशियों का फलादेश
- दूसरे भाव में सभी ग्रहों और राशियों का फलादेश
- तीसरे भाव में सभी ग्रहों और राशियों का फलादेश
- चौथे भाव में सभी ग्रहों और राशियों का फलादेश
- कुंडली के पांचवें भाव में सभी ग्रहों और राशियों का फलादेश
- कुंडली के छठे भाव में सभी ग्रहों और राशियों का फलादेश
- कुंडली के सातवें भाव में सभी ग्रहों और राशियों का फलादेश
- कुंडली के आठवें भाव में सभी ग्रहों और राशियों का फलादेश
- कुंडली के नवें भाव में सभी ग्रहों और राशियों का फलादेश
- कुंडली के दसवें भाव में सभी ग्रहों और राशियों का फलादेश
- कुंडली के ग्यारहवें भाव में सभी ग्रहों और राशियों का फलादेश
- कुंडली के बारहवें भाव में सभी ग्रहों और राशियों का फलादेश
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