तीसरे भाव  में सभी ग्रहों और राशियों का फलादेश

जातक की कुण्डली में तीसरा भाव उसकी आत्मा के रूप में होता है, क्योंकि बिना आत्मा या बल के शरीर मृतवत् है, ठीक उसी प्रकार बिना बली तृतीय भाव के जातक का जीवन भी निष्प्राण है, इसलिए तृतीय भाव का गहराई के साथ विवेचन करना चाहिए।

तीसरे भाव को पराक्रम स्थान, भ्रात स्थान और सहज स्थान भी कहा जाता है तथा तीसरे भाव के स्वामी को पराक्रमेश  और सहजेश कहते हैं।

इस भाव से मुख्यतः जातक का बल, विक्रम, शौर्य, हिम्मत, दृढता, पुरुषार्थ यादि का विचार किया जाता है। इसके साथ ही इस भाव से लघु भ्राता, बहनें, परिवार, सम्बन्धी, अस्थियाँ, गला. कान, वस्त्र, दास-दासी, फल, मूल, औषधि का भी अध्ययन किया जाता है । इस भाव को देखने के लिए निम्नलिखित तथ्यों का सावधानीपूर्वक अवलोकन करना चाहिए।

तीसरे भाव की राशि, तीसरे भाव में बैठे ग्रह, तीसरे भाव पर ग्रहों की दृष्टि, तीसरे भाव का स्वामी, तृतीयेश जहाँ बैठा हो, तृतीयेश पर ग्रहों की दृष्टि, तृतीयेश की दृष्टि, कुण्डली के कारक, अकारक और तटस्थ ग्रह विशेष योग (तृतीय भाव से सम्बन्धित) । उपर्युक्त तथ्यों का सावधानीपूर्वक निश्चय करना चाहिए।

कुंडली के तीसरे भाव  में सभी ग्रहों का फलादेश

राशि विवेचन करने के बाद तीसरे भाव में स्थित ग्रहों का संक्षिप्त अध्ययन भी आवश्यक है । पाठकों की जानकारी हेतु तीसरे भाव स्थित प्रत्येक ग्रह का फल विवेचन कर रहा हूँ।

सूर्य – जिसके तीसरे भाव में सूर्य होता है उसके हौसले बहुत बढ़े-चढ़े होते हैं, झुकना तो वह जानता ही नहीं । शत्रुओं से खिलवाड़ करना और खतरों से खेलना इनके लिए सहज होता है । दिमागी कार्यों में इनका मुकाबला कम लोग ही करते हैं। राजनीति में ऐसा व्यक्ति भाग लेता

ही है और राजनिति में लोकप्रिय एवं सफल भी होता है। भाइयों को ऐसे जातक से कोई लाभ नहीं होता और न भाई बान्धवों का इसे पूरा सहयोग ही मिलता है। धनवान, सुखी एवं सानन्द जीवन व्यतीत करने वाला यह जातक धैर्यवान होता है ।

चन्द्र – जिस जातक की जन्म कुण्डली में सहज भाव में चन्द्र हो, वह शीघ्र सोचने वाला व्यक्ति होता है। तुरन्त निर्णय लेने की क्षमता इसमें अद्भुत रूपेण होती है। कठिन संघर्षो में भी बढ़ते रहना एवं बाधाओं पर विजय प्राप्त करने की चेष्टा करना इनका स्वभाव होता है।

ऐसा जातक अल्पभाषी होता है। कम से कम बोलकर अधिक से अधिक कार्य कर दिखाना इसका स्वभाव होता है । जीवन के मध्यकाल में ये अपना रास्ता बदल देते हैं। जिसके तीसरे भाव में चन्द्र होता है, वह यात्राओं का शौकीन होता है तथा अपने जीवन में कई यात्राएँ करता है । शत्रुओं का मान मर्दन करने वाला ऐसा जातक परम साहसी होता है । पारिवारिक जीवन अल्प होता है तथा परिवार से इसका मनमुटाव चलता ही रहता है ।

मंगल – जिनके तीसरे भाव में मंगल होता है, वे सीमित साधनों के बीच भी अडिग रहते है। जीवन में पग-पग पर इन्हें बाधाओं एवं कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है, परन्तु ये संकटों के बीच में से भी अपनी राह निकाल देते हैं। ऐसे व्यक्ति दृढ़ निश्चयी होते हैं, लेकिन कोई भी निर्णय लेने से पूर्व उसके पक्ष-विपक्ष के बारे में पूर्णतः सोच लेते हैं, पर जब एक बार कोई निर्णय ले लेते हैं तो उस पर अडिग रहते हैं। यात्राओं का यह शौकीन होता है ।

यद्यपि राज्य पक्ष से इसे विशेष लाभ नहीं होता, तथापि समाज में अपने प्रयत्नों से अपना सम्मान एवं आदर कायम करते हैं । पारिवारिक जीवन सुखी होता है। ननिहाल सामान्य होता है । खतरों से खेलना, नये प्रयोग करना, नई युक्तियो एवं नए विचारों को लपक कर अपनाना इनका स्वभाव होता है। राजनीति में पटु ऐसा जातक अपने जीवन का स्वयं ही निर्माता होता है ।

बुध – जिसकी कुण्डली के तीसरे भाव में बुधपड़ा हो वह निश्चित रूप से दूसरों के लिए हितकारी होता है। मेधा शक्ति विलक्षण होती है। और परिस्थिति को भांपने की उसमें अपूर्व क्षमता होती है। पढ़ने-लिखने का वह शौकीन होता है, और ज्ञान वृद्धि के लिए वह सदैव उत्सुक रहता है। ऐसा जातक साहसी होता है। उसका पारिवारिक जीवन सुखी एवं सानन्द होता है ।

बृहस्पति – जिसके तीसरे भाव में गुरु होता है, वह शुभ लक्षणों से सम्पन्न होता है । जीवन में इसे कई बार उतार-चढ़ाव देखने पड़ते हैं तथा संघर्षो का सामना करते रहना पड़ता है, परन्तु यह मजबूत होता है । साहसी होने के साथ-साथ वह व्यक्ति परिस्थिति की गम्भीरता को तुरन्त भांप लेता है और तदनुसार कार्य कर बाजी अपने हाथ में ले लेता है ।

शिक्षा के क्षेत्र में यह जातक सफल होता है । एक से अधिक क्षेत्र में यह निष्णात् होता है तथा मशीनरी कार्यों में शौक रखने वाला होता है । यद्यपि इसे शत्रुओं से कई बार आघात खाने पड़ते हैं, परन्तु हिम्मत इसमें अटूट होती है। आर्थिक दृष्टि से ऐसे जातक सम्पन्न होते है और पारिवारिक जीवन भी सुखद कहा जा सकता है ।

शुक्र – जिस जातक के तीसरे भाव में शुक्र होता है, वह भाग्यहीन होता हैं। यद्यपि उसके साथ द्रव्य रहता है, परन्तु वह उसका पूर्ण उपभोग नहीं कर सकता । मस्तिष्क शक्ति प्रबल होती है एवं व्यूह रचना, शत्रु भेदन तथा संकट के क्षणों में अपूर्व साहस दिखाता है। ऐसा जातक संगीत, काव्य, चित्रकलादि में प्रवीण होता है तथा उसे इन बातों का शौक होता है।

यदि शुक्र स्वगृही या उच्च का होकर स्थित हो तो जातक सफल नहीं कहा जा सकता। आर्थिक चिन्ता से परेशान ही रहता है एवं हर समय कठिन परिश्रम में जुटा रहता है। जीवन के मध्यकाल में उसे कई बार यात्राएँ भी करनी पड़ती हैं। पारिवारिक जीवन साधारण रहता है तथा संतान की ओर से भी कोई विशेष लाभ नहीं रहता।

शनि – जिसके तीसरे भाव में शनि होता है, उसके या तो छोटे भाई होते ही नहीं और अगर छोटे भाई हों भी तो उसे विशेष लाभ नहीं होता । साहस, वीरता, कर्मण्यता में इसका मुकाबला कम ही लोग कर पाते हैं। ऐसा जातक क्रूर और क्रोधी होता है।

भयंकर से भयंकर कार्य करने में भी यह नहीं हिचकता । बड़े भाइयों की तरफ से इसे परेशानियां उठानी पड़ती हैं। ऐसा जातक जीवन-भर संघर्ष से घिरा रहता है एवं कठिन परिश्रम से भाग्य को अपने अनुकूल बनाता है। शत्रुओं से खिलवाड़ करने में इसे विशेष आनन्द आता है।

नियमों का यह बड़ा पाबन्द होता है तथा स्वयं के निश्चित आदर्श एवं लक्ष्य रखता है तथा उन आदर्शों का दृढ़ता से पालन करता है। इसके मित्र भी वही होते हैं जो इसके समान प्रकृति रखते हैं।

स्थानीय स्वशासन का वह मुखिया होता है तथा अपने कठोर नियंत्रण से सम्बन्धित लोगों को सन्मार्ग पर चलने के लिए विवश कर देता है ।

राहु – तीसरे भाव में राहु हो तो वह अत्यन्त प्रभावशाली व्यक्ति होता है। पराक्रम एवं बल में उसको समानता कम ही लोग कर पाते । जातक की जान-पहचान भी विस्तृत क्षेत्र में होती है एवं अपने प्रभाव से वह लोगों को अपने पक्ष में करने की युक्ति जानता है।

यह जातक प्रारम्भ में संकट देखता है, व शीघ्र ही इसे मनलायक पद प्राप्त हो जाता है एवं उत्तरोत्तर उन्नति करता रहता है । ऐसा जातक पुलिस या मिलिटरी में विशेष सफल होता है। इसके छोटे भाई नहीं होते, अगर होते भी हैं तो जातक को उनसे नहीं के बराबर लाभ प्राप्त होता है। इसके अपने स्वयं के मौलिक विचार होते हैं, पर कभी कभी हठधर्मी के कारण इसे परेशानियाँ भी देखनी पड़ती हैं ।

केतु – जिस कुण्डली के तृतीय भाव में केतु हो, वह शारीरिक शक्ति की दृष्टि से अत्यन्त सुदृढ़ होता है एवं नित्य नवीन व्यूह-रचना करने वाला तथा योजनाबद्ध रूप से कार्य करने वाला होता है। शान्त होकर ऐसा जातक नहीं बैठता, प्रत्येक से झगड़ा मोल लेना इसके लिये बायें हाथ का खेल होता है।

शत्रुओं को परास्त करने में यह विशेष सफल होता है। शारीरिक एवं मानसिक किसी भी रूप में यह शत्रुओं को परास्त करने में सक्षम होता है आर्थिक दृष्टि से ऐसा जातक सम्पन्न होता है तथा द्रव्य की उसे विशेष चिन्ता नहीं करनी पड़ती। यद्यपि इसे पैतृक धन प्राप्त नही होता, परन्तु भुजबल से ही धन उपार्जित कर वह समाज में अपनी प्रतिष्ठा जमा लेता है। पारिवारिक जीवन विशेष सुखी नहीं कहा जा सकता ।

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कुंडली के तीसरे भाव  में सभी राशियों का फलादेश

मेष – जिसके तृतीय भाव में मेष राशि हो, वह जातक बल-विक्रम में घनी होता है। मांसल भुजाएँ, बलिष्ट स्कंध और उत्तम साहस वाला होता है। भुजबल से यश लाभ करता है। दूसरों की भलाई करने वाला, कई प्रकार की कलाएँ जानने वाला एवं धन-संचय करने वाला होता है।

वृष – यदि तृतीय भाव में वृष राशि हो तो जातक नौकरी में उच्च पद प्राप्त करता है, परिवार में उसकी प्रशंसा होती है, दान-पुण्य में वह अग्रणी रहता है। ऐसा जातक लेखन शैली से भी धन प्राप्त करता है

कवि, चित्रकार, कलाकार बनने के साथ-साथ कलाओं में उसकी सहज ही रुचि होती है तथा कलाओं के माध्यम से वह लाभ प्राप्त करता है।

मिथुन – जिसके तृतीय भाव में मिथुन राशि हो, वह भाग्यशाली होता है। जीवन में उसे उत्तम सवारियों को प्राप्त करने का सौभाग्य मिलता है। पारिवारिक जीवन सुखी और प्रसन्न रहता है तथा स्त्री से उसे सहयोग मिलता है। समाज में उसका सम्मान रहता है एवं राज-कीय सेवा से वह पुरस्कृत होता है।

कर्क – यदि तीसरे भाव में कर्क राशि हो तो जातक का भाग्योदय व्यापार के द्वारा होता है। जीवन में उसे मित्रों का पूर्ण सहयोग मिलता है उसका स्वभाव सरल एवं सौम्य होता है तथा लोगों से काम निकालने में वह चतुर होता है। भूमि सम्बन्धी कार्यों से भी इसे लाभ होता है।

ईश्वर में श्रद्धा रखते हुए भी सामाजिक रूढ़ियों को तोड़ने में विश्वास रखता है, नवीन विचारों का वह हामी होता है। पारिवारिक जीवन सुखी एवं प्रसन्न रहता है।

सिंह – जिसके तृतीय स्थान में सिंह राशि हो वह अद्भुत साहस एवं जीवट वाला आदमी होता है। बाल्यावस्था में शिक्षा के लिए जगह- जगह भटकना पड़ता है, परन्तु उत्तम शिक्षा प्राप्त कर लेता है। स्वस्थ शरीर एवं महत्त्वपूर्ण चिन्तनशक्ति होती है ।

ऐसा जातक कलाप्रेमी होता है । काव्य-संगीत आदि में उसकी विशेष रुचि होती है, लेखन या प्रकाशन कार्य से भो ऐसा जातक अर्थ संचय करता है। पारिवारिक जीवन सुखी होता है।

कन्या – जिसके तीसरे भाव में कन्या राशि हो, वह शास्त्रों में अनु- राग रखता है एवं मित्रों में भी प्रशंसा प्राप्त करता है। ऐसे जातक को सम्बन्धियों से बिल्कुल सहायता नहीं मिलती, बल्कि दूसरे सम्पर्क में आने वाले लोग और मित्रगण ही उसकी सहायता करते हैं।

उसे क्रोध शीघ्र आ जाता है। परन्तु वह क्रोध उचित अवस्था में ही आता है। जितनी जल्दी क्रोध चढ़ता है, उतनी ही शीघ्रता से वह उतर भी जाता है। ऐसा जातक हीन भावना का शिकार होता है।

तुला – यदि तीसरे भावों में तुला राशि हो तो जातक की संगति अपने से निम्न पदों के लोगों से होती है। उसका मन अस्थिर होता है। और वह किसी भी प्रश्न पर तुरन्त निर्णय नहीं ले पाता । वह बहुत अधिक बोलता है और बोलते समय उसे देश, काल, पात्र का भी ध्यान नहीं रहता। अनुचित कार्य करने के बाद पछताना भी उसका स्वभाव है।

ऐसे जातक का पारिवारिक जीवन मतभेदों के बीच में गुजरता है।

वृश्चिक – जिसके तृतीय भाव में वृश्चिक राशि हो तो उसकी संगति निम्न स्तर के लोगों से होती है तथा व्यसनों का आदी होता है। ऐसे जातक को क्रोध भी बहुत आता है तथा क्रोध में उचित-अनुचित का भी ध्यान नहीं रहता। भाइयों से कुछ भी लाभ नहीं होता । पारिवारिक जीवन मध्य स्तर का होता है ।

धनु – जो जातक तीसरे भाव में धनु राशि रखता हो, वह शारी- रिक दृष्टि से स्वस्थ, बलवान एवं सुन्दर होता है। चेहरा सुन्दर एवं उन्नत ललाट होता है। ऐसे जातक अधिकतर नौकरी करते हैं तथा इसी में भाग्योदय होता है। व्यापार इन्हें हितकर नहीं होता और व्यापार करने पर हानि एवं धोखा भी सहन करना पड़ता है। ऐसा जातक वीर, पुलिस या मिलिटरी में उच्च पद प्राप्त करता है ।

मकर – जिस जातक की कुण्डली में तीसरे भाव में मकर राशि हो, उस जातक की शारीरिक गठन बहुत सुन्दर होती है। सुन्दर श्याम केश उन्नत ललाट, गौर वर्ण एवं प्रभावपूर्ण चेहरा होता है। संतान की दृष्टि से ऐसा जातक सौभाग्यशाली होता है। मित्रों में याति तथा धार्मिक कार्यों में वह श्रद्धा रखता है।

कुम्भ – जिसके तृतीय भाव में कुम्भ राशि हो, वह गम्भीर स्वभाव का होता है, भाइयोंसे उसे स्नेह मिलता है, परन्तु सहायता प्राप्त नहीं होती है। समाज में उसका आदर होता है। नये विचारों का स्वागत करने वाला एवं गायन कला आदि में रुचि रखने वाला होता है ।

मीन– जिसके तीसरे भाव में मीन राशि हो, वह धनवान होता है। संतान से उसे विशेष स्नेह होता है तथा वृद्धावस्था में उसे पुत्रों से पूर्ण सहायता प्राप्त होती है। धार्मिक कार्यों में रुचि रखने वाला, अत्तिथियों का आदर करने वाला तथा सभी को प्रसन्न रखने वाला होता है।

तृतीय भाव से सम्बन्धित विशेष योग

  • तीसरा, नवा, ग्यारहवां तथा सातवां ये चार भाव भ्रातृ-कारक है। अतः इन भावों के स्वामियों की दशा में व्यक्ति को भ्रातृ-लाभ होता है।
  • तीसरे स्थान का स्वामी, उसमें स्थित ग्रह और तीसरे भाव को देखने वाला ग्रह. इनमें से जो ग्रह बलवान होता है, उसकी दशा में भाई से लाभ होता है।
  • बलहीन मंगल तीसरे भाव में हो तो जातक का कोई भाई दीर्घायु प्राप्त करता है।
  • भावपति निर्बल, पापग्रह या अकारक हो तो भाइयों का नाश होता है।
  • तृतीयेश और मंगल अष्टम स्थान में हों तो जातक के सामने उसके सहोदर की मृत्यु होती है।
  • मौम हमेशा भातृकारक होता है, अतः उसकी स्थिति से भाइयों का विचार करना चाहिए।
  • राहू या केतु से तीसरा भाव भरा हो तो जातक के बड़े भाई की मृत्यु होती है।
  • बलवान द्वितीयेश अष्टम हो, पापयुक्त भ्रातृकारक ग्रह तृतीय एवं चतुर्थ भाव के कारक से भी युक्त हो तो उसको सौतेली माता से उत्पन्न भाई हो ।
  • तृतीय भाव पर पापग्रह की दृष्टि हो और शुभकारक योग न हो तो जातक के भाई अल्पायु होते हैं।
  • सूर्य पापग्रह से दृष्ट तृतीय में हो तो जातक के ज्येष्ठ भ्राता का नाश हो ।
  • मंगल पापग्रह से दृष्ट होकर तीसरे भाव में बैठा हो तो जातक का एक भी भाई जीवित न रहे।
  • तृतीय भाव से यदि त्रिकोण या केन्द्र में पापग्रह हों तो भाई का नाश समझना चाहिए।
  • तृतीय भाव से यदि त्रिकोण या केन्द्र में शुभ ग्रह हों तो भाई की वृद्धि हो।
  • चन्द्र 6, 8 या 12वें भाव में तीसरे भाव के स्वामी के साथ हो तो जातक की माता की मृत्यु बाल्यावस्था में ही हो जाती है ।
  • चतुर्थेश और तृतीयेश दोनों चौथे भाव में हो तो जातक को भाइयों का पूर्ण सुख प्राप्त होता है।
  • तीसरे शनि बैठा हो तो भाई का नाश करे, परन्तु राहू वृद्धि करने वाला होता है।
  • तृतीय भाव का स्वामी पापग्रह से युक्त सप्तम भाव में हो तो जातक के लघु भ्राता नहीं होते ।
  • लग्न के दूसरे और तीसरे भाव में कुल जितने ग्रह होते हैं, उतने ही भाई होते हैं।
  • शुभ ग्रह तीसरे भाव में भ्रातृ सुखकारक तथा पापग्रह दुःखकारक होते हैं।
  • तृतीयेश और भौम स्त्री ग्रह की राशि में हों तो जातक के बहन होती है, यही दोनों ग्रह भाई-बहन को सुख देते हैं।
  • यदि तीसरे भाग में चन्द्र शुक्र हो तो जातक बहन से लाभ हो।
  • भातृ कारक, सहज का स्वामी, तीसरे भाव को देखने वाला और तीसरे भाव में बैठे ग्रह ये चारों अपनी दशा-अन्तर्दशा में शुभाशुभ फल देते हैं।
  • तृतीय भाव से सप्तम राशि (अर्थात् नवम् भाव से) भाई की स्त्री का फल समझना चाहिए।
  • लग्नेश, मौम और तृतीयेश से भाई के अनिष्ट और शुभ फल का विचार करना चाहिए।
  • लग्नेश और तृतीयेश यदि एकत्र हों तो भाइयों में विशेष स्नेह रहता है। इसके विपरीत यदि लग्नेश लग्न में तथा तृतीयेश तृतीय भाव में हो तो भाइयों में विरोध रहता है।

भ्रात अरिष्ट

  • यदि लग्नेश और तृतीयेश निर्बल तथा परस्पर शत्रु ग्रह हों अथवा तृतीय भाव में स्थित हों और तीसरे भाव का कारक दुष्ट स्थान में निर्बल हो तो भाइयों में परस्पर कलह रहती है।
  • तीसरे स्थान में शुक्र हो तथा उसे गुरु देखता हो तो जातक भाइयों का पालन-पोषण करता है।
  •  तृतीयस्थ बुध को सूर्य देखता हो तो भाई अशक्त होता है ।
  • भ्रातृ भावस्थ, भ्रातृ भावेश और भ्रातृ कारक ये यदि नीच, शत्रु राशि या 6, 8, 12 वें भाव में हों तो उनकी दशा- अन्तर्दशा में भाइयों का नाश, विग्रह एवं धन-बल का नाश समझना चाहिए।

पराक्रम विचार

  • तृतीय भाव का स्वामी उच्च स्थान में होकर भ्रष्टम में हो तथा पापग्रह के साथ हो तो जातक युद्धोन्मादी होता है।
  • भ्रातृ कारक बलहीन हो और तृतीयेश शुभग्रह से युक्त एवं दृष्ट हो तो जातक मिलिटरी में सुशांभित होता है ।

पराक्रम योग

तृतीयेश कारक ग्रह के साथ हो तथा मंगल उच्च राशि या स्वराशि में हो तो पराक्रम योग बनता है। इस योग को रखने वाला जातक सैनिक होता है तथा युद्ध में पूर्ण विजय दिखाकर यश-लाभ करता है।

युद्ध प्रवीण योग

मंगल, कुण्डली एवं नवमांश दोनों में स्वराशि या उच्च राशि में स्थित हो तो उपर्युक्त योग बनता है। ऐसा जातक युद्ध-सम्बन्धी कार्यों में प्रवीण अथवा युद्ध सम्बन्धी कार्यों का सलाहकार होता है।

संहारक योग

तीसरे भाव में मंगल, राहू या शनि बलवान होकर बैठे हों तथा चाहे कुण्डली में अन्य अनिष्टकारक योग भी हों तब भी जातक सफलता प्राप्त करता है और वे अनिष्टकारक योग नष्ट हो जाते हैं।

तीसरे भाव से सम्बन्धित कुछ प्रमुख योग ऊपर दिए गए हैं। पाठकों को चाहिए कि वे कुण्डली का अध्ययन करते समय अन्य प्रमख योगों को भी ध्यान में रखें और तत्पश्चात् ही फलाफल निर्णय करें।


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