दूसरे भाव  में सभी ग्रहों और राशियों का फलादेश

कुण्डली का द्वितीय भाव भी महत्वपूर्ण स्थान रखता है। इस भाव से संचित द्रव्य, पैत्रिक धन, कुटुम्ब मित्र, भाषण कला, सुख भोग, संचित पूँजी, मुत्यु के कारण, मृत्यु का स्थान आदि का ज्ञान होता है । आर्थिक मामलों का सम्बन्ध विशेषतः इसी भाव से है।

इस भाव का अध्ययन करने से पूर्व निम्न तथ्यों का गम्भीरता-पूर्वक अध्ययन करना चाहिए:-

दूसरा भाव और उसकी राशि। दूसरेभाव का स्वामी और उसकी स्थिति। दूसरे भाव में स्थित ग्रह । दूसरे भावों पर ग्रहों की दृष्टि । कारक, अकारक और तटस्थ ग्रह । दूसरे भाव से सम्बन्धित विशेष योग ।

दूसरे भाव  में सभी ग्रहों का फलादेश

अब आगे द्वितीयस्थ ग्रहों का संक्षिप्त विवेचन प्रस्तुत किया जा रहा है।

सूर्य – द्वितीय भाव में यदि सूर्य हो तो जातक द्रव्य के सम्बन्ध में चिन्तित रहता है और पिता द्वारा अर्जित धन उसे नहीं मिलता है। जीवन के पूर्वार्द्ध की अपेक्षा उत्तरार्द्ध अधिक सफल माना जा सकता है। मध्यकाल में उसे रोगों का शिकार होना पड़ता है तथा आपरेशन जैसे कष्ट भी देखने पड़ते हैं। नौकरी की अपेक्षा ऐसे जातक उद्योग कार्यों में विशेष सफलता प्राप्त करते हैं ।

चन्द्र – जिस जातक के दूसरे भाव में चन्द्र हो, वह सुखी-सम्पन्न और वृहद परिवार का स्वामी होता है। स्त्रियों के मामले में वह सौभाग्यशाली होता है और स्त्रियों के सम्पर्क से ही वह द्रव्योपार्जन में सफलता भी प्राप्त करता है । चन्द्र व्यक्ति को सफल पत्रकार अथवा लेखक भी बना देता है और पुस्तक-व्यवसाय, प्रकाशन संस्था अथवा लेखन से भी उसका भाग्योदय कर सकता है ।

मंगल – दूसरे भाव में पड़कर मंगल जातक को आर्थिक दृष्टि से कमजोर बना देता है। समय पर वह द्रव्य-संचय करता है, परन्तु धन उसके पास टिकता नहीं तथा जितनी शीघ्रता से वह धन इकट्ठा करता है उतना ही शीघ्रता से वह समाप्त भी हो जाता है। विद्या के क्षेत्र में भी यह कमजोर रहता है तथा विद्या प्रगति के बीच में कई प्रकार की बाधाएं बनी रहती हैं। बातचीत करने में पटु, ऐसे जातक सफल सेल्समैन सिद्ध होते हैं।

बुध – जिसके दूसरे भाव में बुध पड़ा हो, वह धार्मिक मामलों में कट्टर होते हुए भी अर्थ-संचय में प्रवीण होता है। जीवन में उसे धन का अभाव नहीं रहता। ऐसा जातक भाषण देने में पंटु होता है और लोगों को अपने पक्ष में करने की कला में प्रवीण होता है। बड़े-बड़े उद्योगों में वह धन लगाने का इच्छुक होता है।

बृहस्पति – जिसके दूसरे भाव में गुरु हो वह धार्मिक नेता होता है। कवि, लेखक अथवा सफल धर्मोपदेशक भी वह हो रुकता है । लेखनकार्य से वह द्रव्योपार्जन करता है। ऐसा व्यक्ति सफल वैज्ञानिक भी होता है। तथा उसकी खोज से विज्ञान को काफी बल मिलता है, मित्रों की संख्या अधिक होती है तथा उनसे सहायता मिलती है, ससुराल से भी उसे द्रव्य- सहायता मिल सकती है अथवा पढ़ी-लिखी पत्नीं प्राप्त हो, जो द्रव्योपार्जन में सहायक हो ।

शुक्र – यदि शुक्र दूसरे भाव में हो तो उसका परिवार विस्तृत होता है, दूसरों से काम निकालने में वह चतुर होता है तथा जीवन में उसे द्रव्य का अभाव नहीं रहता। ऐसा व्यक्ति डाक्टर, सफल पत्रकार अथवा व्यवसायी होता है। व्यक्तित्व प्रधान होने के साथ-साथ ऐसा जातक शत्रुओं को अपने वश में करने का प्रधान गुण रखता है।

शनि – दूसरे भाव में शनि का होना शुभ सूचक नहीं है। यदि शनि स्वगृही न हो तो जातक को धनहीन, परेशान और दुखी भी कर देता है। जीवन में धन के लिए कठिन संघर्ष करना पड़ता है, एवं धन जुटाने के लिए जरूरत से ज्यादा परिश्रम भी करना पड़ता है, परन्तु यदि शनि स्वगृही होकर द्वितीयस्थ हो तो जातक की बाल्यावस्था तो दुःख और अभावों में बीतती है, परन्तु यौवनावस्था और वृद्धावस्था शुभसूचक होती है एवं आर्थिक अभाव नहीं रहते ।

राहु – यदि किसी जातक की कुण्डली में दूसरे भाव में राहु हो तो जातक रोगी और चिड़चिड़े स्वभाव का होता है तथा पारिवारिक जीवन में उसे कई व्याघात सहन करने पड़ते हैं। यदि अन्य धन योग न हो तो आर्थिक दृष्टि से स्थिति डावांडोल ही रहती है, फिर भी ऐसा जातक बाल्यावस्था में तो द्रव्याभाव से पीड़ित रहता है, परन्तु ज्यों-ज्यों उमर बढ़ती है, उसके पास अर्थ संचय होता रहता है।

केतु – यदि दूसरे भाव में केतु पड़ा हो तो जातक कटुभाषी होता है, समय पड़ने पर धोखा भी दे देता है, परन्तु ऐसा व्यक्ति दृढ़ निश्चयी होता है और एक बार जो मन में धार लेता है, उसे पूरा ही करके छोड़ता है। अपने पिता की सम्पत्ति उसे प्राप्त नहीं होती, अपने भुजबल से ही वह धन कमाता है एवं संचय करता है। जीवन के प्रारम्भिक वर्षों की अपेक्षा वह व्यक्ति आगे चलकर जीवन में धनी होता है। यदि सूर्य उच्च का होकर एकादश भाव में हो, तो जातक लखपति बनता है ।

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दूसरे भाव  में सभी राशियों का फलादेश

दूसरे भाव में जो राशि हैं उनका ध्यानपूर्वक अध्ययन करना चाहिए नीचे द्वादश राशियों में से प्रत्येक राशि के सम्बन्ध में फला-फल विवेचन किया जा रहा है।

मेष – आर्थिक मामलों के सम्बन्ध में यह राशि बड़ी अनिश्चित है, जातक किसी समय अच्छा अर्थ प्राप्त कर लेता है, पर पुनः उड़ाते भी देर नहीं लगाता है। विवाह के पश्चात् भाग्योदय होता है। जातक का कुछ स्वभाव ही ऐसा होता है कि वह जरूरत से ज्यादा प्रदर्शन करता है । शत्रुओं के मामले में असावधान रहने से भी हानि की सम्भावना रहती है।

वृष – जिस जातक के दूसरे भाव में वृष राशि होती है, वे व्यक्ति अर्थ संचय में प्रवीण होते हैं, परन्तु हाय में धन टिकने के आसार कम रहते हैं। वास्तविकताओं को नजरअन्दाज कर देने से भी कठिनाइयाँ बढ़ जाती हैं। व्यापार में काफी उतार-चढ़ाव देखने पड़ते हैं। ऐसा जातक साझेदारी के कार्यों में लाभ नहीं उठा पाता।

मिथुन – जिस जातक के दूसरे भाव में मिथुन राशि हो वह आर्थिक मामलों में कमजोर रहता है। जीवन में कई अवसर ऐसे भी जाते हैं, जब किसी स्त्री का इनके जीवन में प्रवेश होता है और वह आर्थिक सम्बन्धों को डगमगा देती है।

भावनाप्रधान होने के कारण जातक अर्थसम्बन्धी विषय को गम्भीरता से नहीं लेता, फलस्वरूप कई बार हानियाँ उठानी पड़ती हैं।

राजकीय नौकरी की अपेक्षा ऐसे जातक को व्यापार व्यक्तिगत या अर्द्धशासकीय सेवाएं भी फलप्रद रहती हैं। बीमा, लघु- उद्योग, यूनिवर्सिटी, विद्युत उद्योग आदि क्षेत्रों में लाभ रहता है।

कर्क – आर्थिक मामलों में ये जातक कंजूस होते हैं। यद्यपि ये जितना परिश्रम करते हैं, उतना उन्हें लाभ नहीं मिलता, फिर भी ये जो कुछ अर्जित करते हैं, उसे भली प्रकार संचित करके रखते हैं। आकस्मिक खर्चा से जातक परेशान रहता है। स्टैण्डर्ड बनाए रखने में भी कई बार इन्हें बाधाओं का सामना करना पडता है।

सिंह – ऐसे जातकों की बाल्यावस्था बड़े आराम से व्यतीत होती है। और आर्थिक संकट का सामना नहीं करना पड़ता, परन्तु जीवन के मध्यम काल में या तो ये अपना संचित द्रव्य उड़ा देते हैं या अनिश्चित कार्यों-व्यापारों में लगाकर गंवा बैठते हैं।

भावुकता के कारण भी इन्हें हानि उठानी पड़ती है। भाग्य इनके साथ होता है। पास में पैसा न होने पर भी जरूरत पड़ने पर उनके हाथ में पैसा आ जाता है और कार्य निपट जाता है। राजनीतिक कार्यों या राजकीय नौकरी से धन संचय के ज्यादा अवसर रहते हैं।

कन्या – द्वितीय भाव में कन्या राशि रखने वाले जातक आर्थिक दृष्टि से कम सम्पन्न होते हैं। ऐसे जातक परिश्रम से धनार्जन करते हैं, जीवन के प्रारम्भिक वर्षों में इन्हें आर्थिक अभाव देखना पड़ता है। स्वभाव गर्म होने तथा तुरन्त निर्णय न लेने की अवस्था में कई बार ऐसे कार्य कर बैठते हैं, जिनसे इन्हें आर्थिक हानि उठानी पड़ती है। व्यापार से ये जातक लाभ उठा सकते हैं। विशेष रूप से रेडीमेड कपड़ों की दुकान या फैन्सी स्टोर से लाभ रहता है।

तुला – जिसके दूसरे भाव में तुला राशि हो, वे शान-शौकत में अधिक व्यय करने वाले होते हैं, व्यापारिक कार्यों में भी ये सफल हो सकते हैं। ऐसे जातक यदि नौकरी भी करते हों तो उन्हें चाहिए कि वे व्यापारिक दृष्टिकोण से भी विचार करें। ये योजनाएँ बना सकते हैं, लम्बे-लम्बे मन्सूबे बांध सकते हैं, पर उन्हें पूरा करने की सामर्थ्य इनमें नहीं होती ।

भाग्य इनका साथ देता है तथा अनुचित तरीके से भी धनार्जन संभव है, परन्तु इनके हाथों में पैसा टिकता नहीं। मौज-शौक, सुख-सुविधा, तथा सजावट पर हैसियत से भी ज्यादा खर्च कर डालते हैं। होटल, ढाबा, रेस्टोरेन्ट या इसी प्रकार के उद्योग से इन्हें लाभ हो सकता है।

वृश्चिक – अर्थिक मामलों में ऐसे जातक डावांडोल रहते हैं। नौकरी की अपेक्षा व्यापार से ज्यादा धन कमा सकते हैं। इनकी प्रवृत्ति भी वणिक प्रधान ही होती है तथा जीवन में इन्हें मित्रों व सम्बन्धियों से भी हानि उठानी पड़ती है । व्यर्थ की योजनाओं में धन लगाना इनके लिए हानिकारक ही होता है । लघु उद्योगों से लाभ उठा सकते हैं ।

धनु – यदि दूसरे भाव में धनु राशि हो तो जातक निश्चय ही धन के मामले में लापरवाह होता है । साझेदारी या किसी के साथ व्यापार करना इनके लिए हानिकारक ही होता है। सहयोगी इसे धोखा ही देगा, लाभ नहीं दे सकता। जीवन में कई बार धोखा खाते हैं। इन्हें चाहिए कि ये किसी भी कागज पर हस्ताक्षर करते समय सोच-समझकर करें ।

इस राशि वाले यदि नौकरी करते हैं तो उन्हें धन के प्रश्न को लेकर काफी उतार-चढ़ाव देखने पड़ेंगे।

मकर – दूसरे भाव में मकर राशि रखने वाले जातक सौभाग्यशाली होते हैं। ये लम्बे-चौड़े प्लान बनाते हैं और उनमें सफलता भी प्राप्त करते हैं। नौकरीकी अपेक्षा व्यापार या स्वतन्त्र व्यवसाय इनके लिए विशेष हितकारी होता है।

ऐसे जातकों को चाहिए, वे प्लानमेकर या योजना आयोग अथवा किसी ऐसे विभाग में नौकरी करें, जिसमें कल्पना एवं वास्तविकता का सुखद मिश्रण हो। खान व पत्थर के कार्य से भी ये लाभ उठा सकते हैं।

कुम्भ – यदि द्वितीय भाव में कुम्भ राशि हो तो ये जातक आर्थिक दृष्टि से सम्पन्न होते हैं। इन जातकों के आय के स्रोत भी एक से अधिक होते हैं। पत्रकारिता, लेखन, प्रकाशन, व्यापार और राजनीतिक कार्यों में भाग लेकर भी ये द्रव्य-संचय कर सकते हैं।

इन जातकों को भाइयों तथा सम्बन्धियों से विशेष लाभ नहीं मिलता। विश्वास करना इनके लिए हानिकारक सिद्ध होता है। साझेदारी इनके लिए लाभप्रद होती है जीवन के पूर्वार्द्ध की अपेक्षा उत्तरार्द्ध आर्थिक दृष्टि से ज्यादा सफल होता है।

मीन – दूसरे भाव में मीन राशि रखने वाले यदि अपनी भावनाओं तथा विचारों पर नियंत्रण रख सकें तो निस्सन्देह सफल धनी हो सकते है । इस प्रकार का जातक डाक्टरी, वैद्यक या दवाइयों का विक्रेता बन कर धनी हो सकता है । यदि ये व्यक्ति ‘शेयर’ खरीदें या लघु उद्योगों में रुपया लगायें तो भी लाभ उठा समते हैं । ऐसे जातक धन-संग्रह करने में सिद्धहस्त होते हैं और एक से अधिक स्रोतों से अर्थ-लाभ करते हैं ।

स्वयं पर ये पूर्ण नियंत्रण रखते हैं, परन्तु धन के पीछे भूत की तरह लगे रहते हैं, इनके जीवन में शान्ति नहीं रहती, तुरन्त निर्णय लेने असफल रहते हैं, अतः कई बार हानि उठानी पड़ती है।


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