कुंडली के बारहवें भाव में सभी ग्रहों और राशियों का फलादेश

जीवन में वही व्यक्ति सफल हो सकता है जो आय एवं व्यय का सही सन्तुलन रख सके। आवश्य के उचित अनुपात से ही समाज में जातक की ख्याति एवं प्रतिष्ठा होती है। अतः ज्योतिष के प्रेमियों को चाहिए कि वे आय के स्थान के साथ-साथ व्यय भाव का विचार भी करें।

द्वादश भाव से विचारणीय विषय : व्यय, हानि, घाटा, दिवाला, मुकदमेबाजी, व्यसन, बाहरी स्थानों से सम्बन्ध, शत्रु का विरोध, नेत्र-पीड़ा, फिजूलखर्ची, अतिरिक्त एवं आकस्मिक खर्च, मोक्ष एवं मृत्यु के पश्चात् प्राणी की गति । इस भाव को देखने के लिए निम्नलिखित तथ्यों का सावधानीपूर्वक अवलोकन करना चाहिए।

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कुंडली के बारहवें भाव में सभी ग्रहों का फलादेश

सूर्य – जिस जातक की जन्मकुण्डली में बारहवें भाव में सूर्य होता है, वह जातक को कई प्रकार की परेशानियों से जीवन के प्रारम्भ से ही वह संघर्षों में उलझ जाता है परेशानी उसके सामने मुंह बाये खड़ी ही रहती है। तथा परिवार से जातक को विशेष लाभ नहीं रहता और न ऐसा सूर्य उसका हित ही करता है। नौकरी में भी द्वादश सूर्य कई प्रकार के उत्थान-पतन दिखाता है।

यदि नीच राशि का सूर्य द्वादश भाव में हो तो वह प्रबल योगकारक माना जाता है ऐसा सूर्य जातक को विचारक, बुद्धिमान एवं नीतिवान बनाता है। साधारण कुल में जन्म लेने पर भी ऐसा सूर्य रखने वाला जातक विख्यात एवं दूरदर्शी होता है।

द्वादशस्य सूर्य आंखों की ज्योति को क्षीण करता है। ऐसा व्यक्ति सहज ही दूसरों का विश्वास कर लेता हूँ, जिससे वह धोखा भी खा जाता है। पठन-पठन एवं शिक्षा आदि में जातक प्रसिद्ध प्राप्त करता है तथा मौलिक विचारों को रखने वाला ऐसा व्यक्तिधर्म के क्षेत्र में अग्रणी रहता है।

चन्द्र – द्वादश भाव में चन्द्र की स्थिति अत्यन्त शुभ मानी गई है । ऐसा व्यक्ति तेजी से प्रगति करता है और घूमकेतु की तरह निखरता है । उसके उदय होने पर अन्य प्रतिभायें उसी प्रकार धूमिल पड़ जाती है, जिस प्रकार चन्द्रमा के उदय होने पर तारागणों की स्थिति होती है।

बाल्यावस्था अत्यन्त सुखमय रूप से व्यतीत होती है। प्रेम के क्षेत्र में यह सफल रहता है तथा मनोवांछित पत्नी प्राप्त करता है । जीवन में उत्थान-पतन भी इस जातक को देखने पड़ते हैं, परन्तु यह जितना मित्रों में लोकप्रिय होता है उससे भी बढ़कर विपक्षियों में लोकप्रिय होता है।

आय के स्रोत कई होते हैं, पर व्यय भी बढ़ा-चढ़ा रहता है। बाहरी स्थानों से विशेष सम्पर्क होता है एवं परिचय का दायरा विस्तृत होता है। धार्मिक क्षेत्र में सहिष्णु एवं सामाजिक क्षेत्र में ऐसा जातक लोकप्रिय होता है ।

मंगल – जिस जातक के द्वादश भाव में मंगल होता है वह फिजूल खर्च होता है। न चाहते हुए भी उसका व्यय आय से बढ़ा-चढ़ा रहता है, जिसके कारण उसकी आर्थिक स्थिति डावांडोल रहती है।

मित्रों की संख्या सीमित ही होती है, परन्तु जो भी मित्र होते हैं वे ठोस होते हैं तथा इसके इंगित पर सब-कुछ न्यौछावर करने को तैयार रहते हैं। मित्रों से इसे पूरा सहयोग मिलता है। चरित्र संदिग्ध रहता है ।

जीवन में कई क्षण ऐसे आते हैं, जब त्वरित एवं सही निर्णय न ले सकने के कारण इसे हानि उठानी पड़ती है। जीवन अस्त-व्यस्त एवं असम्बद्ध रहता है। दाम्पत्य जीवन भी सुखमय नहीं कहा जा सकता।

यौवनावस्था से इसे घोर परिश्रम करना पड़ता है तथा प्रौढ़ावस्था में रक्तसम्बन्धी बीमारियों से ग्रस्त रहता है, परन्तु ऐसा जातक साहसी, रणकुशल, राजनीतिनिपुण एवं व्यूह रचने में सिद्धहस्त होता है। शत्रु इसके नाम से थर्राते हैं। यात्रा योग विशेष होता है।

बुध – जिस जातक के द्वादश भाव में बुध होता है, वह बाल्यावस्था में कई प्रकार के रोगों से ग्रस्त रहता है, उसका बचपन असंतुष्ट एवं शिथिल होता है । जीवन के प्रारम्भ से ही उसे कठोर परिश्रम करना पड़ता है, परन्तु इतना परिश्रम करने पर भी मनोवांछित फल शीघ्र ही प्राप्त नहीं होता।

आय के स्रोत एक से अधिक होते हैं, परन्तु व्यय हमेशा आय से बढ़ा-चढ़ा रहता है। यदि ऐसा जातक व्यापार करता है तो सम्बन्धी या साझीदार से धोखा खाकर धनहीन होता है।

नौकरी करने वाले जातकों के लिए भी ऐसा बुध श्रेयस्कर नहीं कहा जा सकता। उसकी प्रगति धीरे-धीरे होती है। उच्चाधिकारियों से उसकी कम ही बनती है। बाहरी स्थानों से इसका विशेष सम्पर्क होता है, जिसके कारण ख्यातिलाभ कर लेता है।

जीवन में कई प्रकार के व्यसनों से घिरा रहता है। आँखों में यदाकदा विकार होता रहता है। फिर भी ऐसा जातक सहिष्णु, विद्वान, गुणी एवं चतुर होता है।

बृहस्पति – जिस जातक के द्वादश भाव में बृहस्पति होता है, वह माता-पिता का परम भक्त एवं समाज तथा देश के गौरव एवं मर्यादा पर अगाध श्रद्धा रखने वाला होता है ।

जीवन की प्रारम्भिक स्थिति साधारण होती है। साधनविहीन कुल में जन्म लेने पर भी ऐसा जातक अपनी प्रतिभा, परिश्रम, योग्यता एवं सद्गुणों के कारण उच्चतम पद पर पहुँचकर अपनी स्थिति मजबूत करता है।

जीवन का लक्ष्य एक क्षण के लिए भी इसकी आँखों से ओझल नहीं होता और निरन्तर निस्वार्थ श्रम इनकी महत्ता की कुंजी होती है। वाहन योग प्रबल होता है तथा शनैः-शनैः जीवन की समस्त आवश्यकताएँ एक-एक करके पूरी हो जाती हैं।

आय के एक से अधिक स्रोत होते हैं, परन्तु उदार हृदय का होने के कारण व्यय भी बढ़ा-चढ़ा रहता है । आर्थिक स्थिति साधारण ही रहती है। ईमानदार, सद्गुणों से अलंकृत, ऐसा जातक जीवन में पूर्ण सफल होता है।

शुक्र – जिस जातक के द्वादश भाव में शुक्र होता है, वह अत्यन्त सौभाग्यशाली होता है। जीवन का प्रारम्भ साधारण स्थिति में होता है, परन्तु ऐसे जातक प्रतिभा के बल पर उच्च पद पर पहुँच जाते हैं।

ऐसे जातक का विवाह जल्दी हो जाता है, पत्नी सुशील, शिक्षित, समझदार तथा पतिव्रता मिलती है। ससुराल साधारण श्रेणी की होती है । श्वसुर से तो नहीं, पर साले से जरूर लाभ रहता है। संतान सुख भी श्रेष्ठ होता है। लड़कियों की अपेक्षा लड़कों की संख्या ज्यादा होती है। बच्चों के द्वारा भी जातक का नाम विख्यात होता है ।

जीवन में कई स्रोतों से आय होती है, परन्तु व्यय भी बढ़ा-चढ़ा रहता है । परिवार तथा समाज से जातक को विशेष लाभ नहीं होता । इस प्रकार से देखा जाय तो यह व्यक्ति ‘सेल्फमेड मैन’ होता है। बाहरी स्थानों एवं व्यक्तियों से जातक का गहरा सम्बन्ध होता है तथा जीवन में मित्रों की संख्या बहुत अधिक होती है।

आमोद-प्रमोद के साधन जुटाने में जातक चेष्टारत रहता है। कपड़ों पर, श्रृंगार की सामग्री पर तथा सजावट पर जातक विशेष व्यय करता है । धार्मिक क्षेत्र में जातक अग्रणी रहता है तथा तीर्थयात्रा का विशेष योग होता ऐसा जातक विद्वान, कवि, कलाप्रिय एवं प्रतिभाशाली विख्यात पुरुष होता है।

शनि – जिस जातक की जन्म कुण्डली के द्वादश भाव में शनि होता है, वह अत्यन्त धनवान एवं प्रख्यात होता है । यद्यपि इनका बचपन साधारण होता है, परन्तु अत्यन्त प्रखरता से ये प्रकाश में आते हैं तथा जनमानस पर छा जाते हैं। समाज तथा मित्रों में ये अत्यन्त लोकप्रिय होते हैं। यात्राओं का इन्हें विशेष शौक होता है तथा यात्रा से लाभ भी रहता है।

शिक्षा की दृष्टि से ये जातक साधारण ही कहे जाते हैं। नौकरी में भी प्रगति धीरे-धीरे होती है, परन्तु स्वतन्त्र व्यवसाय में ये जातक सफल होते हैं। जीवन में विभिन्न प्रकार की स्थितियों में जीना पड़ता है, जितना उतार-चढ़ाव इन्हें अपने जीवन में देखना पड़ता है, वह अन्य की तुलना में स्पृहणीय ही है।

राहु – द्वादश भावस्थ राहु के विषय में ज्योतिष ग्रन्थों में उक्ति है कि ऐसा जातक प्रचलरूपेण शत्रुसंहारक तथा मित्रवर्धक होता है, जीवन में जो कुछ भी उन्नति करता है, वह स्वयं की प्रतिभा, सूझ एवं हिम्मत के बल पर होती है ।

बाल्यावस्था साधारण रूप से व्यतीत होती है तथा पिता का सुख नहीं के बराबर मिलता है। जीवन की प्रौढ़ावस्था में इन्हें पत्नी के सुख में न्यूनता प्राप्त होती है, यद्यापि आय के कई स्रोत होते हैं, परन्तु फिर भी इनका व्यय विशेष बढ़ा-चढा रहता है, अतः आर्थिक स्थिति साधारण ही कही जा सकती है।

जीवन में प्रशंसकों एवं मित्रों का अभाव नहीं रहता। ऐसा जातक ईश्वर पर श्रद्धा रखने वाला होता है ।

केतु – जिसके द्वादश भाव में केतु होता है, वह पूर्णतः संघर्षशील होता है । जीवन में निरन्तर उत्थान-पतन आते हैं। ऐसा जातक दृढ़ता से कठिनाइयों का सामना करता रहता है । आय स्वतन्त्र व्यवसाय तथा लेखन कार्य से होती है। ऐसा व्यक्ति सफल सम्पादक, लेखक, अथवा पत्रकार होता है। राजनीति के क्षेत्र में भी ये सफल सिद्ध होते हैं ।

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कुंडली के बारहवें भाव में सभी राशियों का फलादेश

मेष – जिस जातक के द्वादश भाव में मेष राशि होती है, वह शौकीन स्वभाव का व्यक्ति होता है। ऐश-आराम, मनोरंजन, सजावट आदि के कार्यों पर उसका विशेष व्यय होता है तथा फिजूलखर्ची के कारण उसकी आर्थिक स्थिति डावांडोल रहती है। इसे जीवन में कई उतार-चढ़ाव देखने पड़ते हैं। यदि ऐसा जातक व्यापारी होता है तो जीवन के मध्य काल में ऐसा संकट आता है कि साख सम्भालना कठिन हो जाता है। आंखों में कमजोरी रहती है तथा वृद्धावस्था में आंखों का आपरेशन भी होता है।

वृष – जिस जातक के द्वादश भाव में वृष राशि होती है, वह संघर्षशील व्यक्ति होता है। जीवन के उतार-चढ़ावों का वह अभ्यस्त होता है तथा बचपन से ही उन्नति करने की कामना लेकर जीवन क्षेत्र प्रविष्ट होता है। सामाजिक क्षेत्र में भी जातक को सम्मान मिलता ऐसा व्यक्ति सफल प्रकाशक, टूरिस्ट, सेल्समैन अथवा लेखक हो सकता है। 20 वर्ष के पश्चात् जीवन की आर्थिक स्थिति सुधर जाती ।

ऐसा व्यक्ति बुरे व्यसनों से दूर रहता है । यद्यपि इसे जीवन के विविध क्षेत्रों तथा स्थितियों में से गुजरने का अवसर मिलता है, फिर यह संयमी एवं सच्चरित्र होता है ।

व्यय पर यह पूर्ण नियंत्रण रखता है, आय के विभिन्न स्रोत ढूंढ़ता है, फिर भी जीवन में कई अवसर आ जाते हैं, जब आर्थिक स्थिति डावांडोल हो जाती है, परन्तु यह व्यक्ति कर्मठ एवं साहसी होता है तथा साहस के ही कारण विपरीत परिस्थितियों को भी अपने अनुकूल बना लेने में समर्थ होता है फिजूलखर्ची से यह दूर रहता है तथा धार्मिक क्षेत्र में लचीला होते हुए भी सामाजिक रूढ़ियों का पालन करता है।

मिथुन – जिस जातक के द्वादश भाव में मिथुन राशि होती है वे कल्पना प्रधान एवं भावुक व्यक्ति होते हैं। संघर्षों में उलझने से बचते रहते हैं। न तो आय पर नियन्त्रण कर सकते हैं और न ही व्यय पर नियन्त्रण कर पाते हैं। ये जिनका भी विश्वास करते हैं जीवन में वही इनको धोखा दे देता है।

विशेषतः मित्रों सम्बन्धियों एवं नजदीकी रिश्तेदारों से कई बार धोखा खा जाते हैं। जिस पर भी ये विश्वास करते हैं, आँख मूंदकर कर लेते हैं। प्रौढ़ावस्था में इनके नेत्रों में विकार उत्पन्न होता है तथा आपरेशन अथवा लम्बी सुश्रूषा करनी पड़ती है, धार्मिक क्षेत्र में ये ढोंग, पाखण्ड तथा सामाजिक रूढ़ियों के कट्टर विरोधी होते हैं।

कर्क – जिसे जातक के द्वादश भाव में कर्क राशि होती है, वह हठ का पक्का तथा बात का धनी होता है। इन्हें बहुत जल्दी क्रोध आ जाता है तथा क्रोध आने पर उचितानुचित का भी ध्यान नहीं रहता । व्यापारिक क्षेत्र में ऐसे जातक को विचित्र स्थितियां देखनी पड़ती है।

जीवन उतार-चढ़ावों में घिरा रहता है तथा विश्वासघात के कारण इन्हें भारी हानि एवं कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। शिक्षा सामान्य होती है तथा नौकरी के क्षेत्र में भी इन्हें वह कुछ प्राप्त नहीं होता, जिसके ये अधिकारी होते हैं। धीरे-धीरे प्रगति होती है। स्वभाव अस्थिर रहता है, परन्तु साहस एवं निडरता के क्षेत्र में अग्रणी होते हैं। फिजूलखर्ची से उनकी आर्थिक स्थिति डावांडोल रहती है ।

सिंह – जिस जातक की जन्मकुण्डली में 12वें भाव में सिंह राशि होती है वे कोमल प्रकृति के, शांत, शिष्ट एवं मधुरभाषी होते हैं । संघर्षो से यथासंभव दूर ही रहते हैं तथा एकान्त जीवन बिताने के बड़े इच्छुक होते हैं। व्यापार में ये जातक सफल नहीं हो पाते, इसके विपरीत नौकरी में इनकी उन्नति के ज्यादा अवसर रहते हैं।

जीवन में ये कई व्यसन रखते हैं तथा सुरुचिपूर्ण ढंग से रहना, अच्छे एवं उज्ज्वल परिधान पहनना इनका स्वभाव होता है। सजावट एवं कलात्मक चीज पर इनकी गहरी रुचि होती है तथा ऐसी वस्तुओं पर ये व्यय भी बहुत करते हैं। बाहरी स्थानों से इनके संबंध मधुर बने रहते हैं तथा अपने से उच्च स्तर के लोगों से इनका सम्पर्क होता है।

धार्मिक कृत्यों में ये बढ़चढ़कर हिस्सा लेते हैं तथा सामाजिक रूढ़ियों का कट्टरता से पालन करते हैं। जीने का प्रकार आडम्बर-शून्य होता है तथा फिजूलखर्ची से बचते हैं। ऐसे व्यक्ति सामाजिक क्षेत्र में सफल कहे जा सकते हैं।

कन्या – जिस जातक के द्वादश भाव में कन्या राशि होती है, वह सफल व्यापारी होता है, तुरन्त निर्णय लेने की उसमें अद्भुत क्षमता होती है तथा आय के कई नए स्रोत ढूंढ़ता है, जिनसे स्थायी आमदनी हो सके । व्यय के मामले में ये बहुत सोच-समझकर चलते हैं तथा फिजूलखर्ची से इन्हें चिढ़ होती है। न तो वे स्वयं व्यसन पालते हैं और न बच्चों को ही बुरे व्यसनों की ओर प्रेरित करते हैं। सात्विक्ता इनके जीवन का ध्येय होता है।

मुकदमेबाजी के कारण इन्हें कई बार कठिनाइयों का भी सामना करना पड़ता है, परन्तु जीवन को जीने की अदम्य लालसा एवं संघर्षरत रहने के कारण अन्ततः शत्रु पर विजय प्राप्त कर ही लेते हैं।

जीवन में आकस्मिक खर्च कई बार आते हैं, जिससे आर्थिक स्थिति डगमगा जाती है, परन्तु फिर भी ये शीघ्र ही अपने आप पर नियन्त्रण पा लेते हैं। धार्मिक रीति-रिवाजों एवं सामाजिक रूढियों का भी कट्टरता से पालन करते हैं।

तुला – जिस जातक के द्वादश भाव में तुला राशि होती है, वे श्रम में पूर्ण विश्वास रखते हैं तथा श्रम के बल पर ही प्रगति कर दिखाते हैं। माता-पिता का बहुत कम सहयोग इन्हें मिल पाता है तथा बचपन अत्यन्त कष्टकर एवं अभावों में बीतता है। एक तरह से कहा जाय तो ये ‘सेल्फमेड मैन’ होते हैं तथा जीवन में हर क्षण उन्नति की ओर अग्रसर होते रहते हैं।

इनके सम्पर्क में विविध स्तर के तथा विभिन्न क्षेत्रों के लोग आते हैं। सभी प्रकार के लोगों से ये खुलकर मिलते हैं। बाहरी सम्पर्क भी इनका विस्तृत होता है तथा जीवन में मित्रों एवं परिचितों से लाभ उठाते हैं। किस समय किस व्यक्ति से कैसी बात की जाय अथवा विपक्षियों को भी किस प्रकार अपने अनुकूल बनाया जाय, इसे ये भली प्रकार जानते हैं।

एक बार जो भी इनके सम्पर्क में आ जाता है, वह इनका हो जाता है । खर्च पर इनका नियंत्रण नहीं रहता । यद्यपि आय के कई स्रोत इनके पास होते हैं, परन्तु फिर भी इनकी आर्थिक स्थिति डावांडोल रहती है।

सजावट, भव्यता, दिखावा, आडम्बर आदि में विश्वास रखते हैं। उच्च स्तर के कपड़े पहनते हैं। जीवन में विविधता लाने के लिए मनोरंजन के कार्यों पर भी ये व्यय करते रहते हैं। स्त्रियों के सम्पर्क से ये बदनाम भी होते हैं। आँखें कमजोर होती हैं तथा ऐसे जातक व्यापार की अपेक्षा नौकरी में ही ज्यादा सफल होते हैं। धार्मिक कृत्यों में विश्वास रखते हैं ।

वृश्चिक – जिनके द्वादश भाव में वृश्चिक राशि होती है, वे व्यक्ति धार्मिक कार्यों में पूर्ण विश्वास रखते हैं। व्यापार की अपेक्षा नौकरी अथवा स्वतन्त्र कार्यों में प्रगति करते हैं। लेखन प्रकाशन आदि में निश्चय ही ये चमकते हैं।

बचपन इनका सुखमयी कहा जा सकता है। इन्हें अधिक संघर्ष नहीं करना पड़ता, परन्तु जीवन के 16 वर्षों के बाद ही इनका वास्तविक जीवन प्रारम्भ होता है तथा ये संघर्षशील क्षेत्र में प्रविष्ट होते हैं। यौवनावस्था पूर्णतः संघर्षशील रहती है ।

व्यापारिक क्षेत्र में इन्हें काफी उतार-चढ़ाव देखना पड़ता है तथा नौकरी में होने पर इस जातक की प्रगति शनैः-शनैः होती है। नशा तथा व्यसनों से यह व्यक्ति दूर ही रहता है। संयत जीवन ही जीना इसका ध्येय होता है। जीवन में कई बार तीर्थयात्रा करते हैं।

धनु – जिस जातक के द्वादश भाव में धनु राशि होती है, वह व्यक्ति तुरन्त निर्णय लेने वाला, परिस्थिति की गम्भीरता को समझने वाला तथा समय के अनुसार चलने वाला होता है। वातावरण को पहचानने की इसमें अद्भुत क्षमता होती है तथा अपने जीवन-प्रकार को उसी के अनुसार ढाल लेता है, जैसा समय एवं स्थिति होती है।

कई प्रकार के व्यसन यह अपने जीवन में पालता है। मित्रों की सूची लम्बी होती है तथा आप की अपेक्षा व्यय बढ़ा-चढ़ा रहता है। यद्यपि यह व्यय घटाने की कई बार प्रयत्न करता है, पर असफलता ही हाथ लगती है ।

ऐसा व्यक्ति समाज में लोकप्रिय होता है, आकस्मिक खर्चे आते ही रहते हैं, जिसके कारण भी जातक की आर्थिक स्थिति डगमगाती रहती है, परन्तु फिर भी जातक में अदम्य इच्छाशक्ति होती है, जिसके फलस्वरूप यह अपने आप नियंत्रण कर सकने में असमर्थ होता है। जीवन में इसकी समस्त आवश्यकतायें पूरी होती हैं।

मकर – जिस जातक के द्वादश भाव में मकर राशि होती है, वह व्यक्ति धीरे-धीरे प्रगति करता है। बाल्यावस्था सन्तोषजनक नहीं कही जा सकती। न तो पैतृक धन ही प्राप्त होता है और न परिवार अथवा सम्बन्धियों से ही कोई ठोस सहायता मिलती है। एक प्रकार से ये स्वयं ही अपने-आपको बनाते हैं। श्रम में ये पूरा विश्वास रखते हैं। तथा निरंतर श्रम को ही इनकी सफलता की कुंजी कहा जा सकता है।

जीवन के 30वें वर्ष के बाद से ही आर्थिक स्थिति सुधरती है। हर समय उन्नति करते रहना इनका स्वभाव होता है तथा जीवन का जो लक्ष्य होता है, वह इनकी आँखों के सामने बना रहता है।

व्यर्थ की बुराइयों अथवा व्यसन इनके पास नहीं होते, यद्यपि आय के स्रोत सीमित होते हैं, परन्तु फिर भी व्यय करते समय ये पूरी सावधानी करते हैं, फलस्वरूप आय तथा व्यय में उचित सामंजस्य बना रहता है।

इनका सम्पर्क क्षेत्र विस्तृत होता है। हर समय दूसरों की मदद करना इनका स्वभाव होता है। यात्राओं पर भी इनका व्यय होता रहता है।

कुम्भ – जिस जातक के द्वादश भाव में कुम्भ राशि होती है, वह अत्यन्त सरल चित्त एवं उदार हृदय का व्यक्ति होता है। उनके सम्पर्क में जो भी लोग आते हैं, वे इनसे पूर्ण प्रभावित रहते हैं । व्यापार में ऐसे व्यक्ति अधिक सफल नहीं होते। इसके विपरीत नौकरी, स्वतन्त्र व्यवसाय, पठन-पाठन अथवा विश्वविद्यालय में अध्यापक वृत्ति आदि से जातक सहज ही प्रगति करता है।

आय के कई स्रोत होते हैं तथा विभिन्न स्रोतों से धन-संचय होता है, परन्तु व्यय पर ऐसे जातकों का नियन्त्रण नहीं रहता, जिसके फलस्वरूप आर्थिक स्थिति सुन्दर नहीं बनती। ऐसे जातक यदि व्यापारिक क्षेत्र में होते हैं तो कई बार विपरीत परिस्थितियों का सामना भी करना पड़ता है। साझेदारी में धोखा भी खाना पड़ता है। अत्यधिक विश्वास इनके जीवन की कमजोरी कहा जा सकता है।

धार्मिक कार्यों में भी जातक की गहरी रुचि होती है एवं जीवन में कई बार तीर्थयात्रा आदि करने के सुअवसर आते हैं।

मीन – जिस जातक के द्वादश भाव में मीन राशि होती है, वे जातक क्रोधी स्वभाव के होते हैं और इस स्वभाव के फलस्वरूप ही वे कई बार स्वयं की ही हानि कर बैठते हैं। इनका जीवन सादा एवं संयत होता है, बचपन साधारण स्थिति में व्यतीत होता है, परन्तु बड़े होने पर इनमें उच्च पद पर पहुँचने की लालसा जाग्रत होती है और अन्ततः ये उच्च पद पर पहुँच जाते हैं।

आय के विभिन्न स्रोत होते हैं तथा व्यय पर इनका कड़ा नियन्त्रण होता है जिसके कारण धन-संग्रह होता ही रहता है। ऐसे जातक पूर्णतः उदार प्रवृत्ति के होते हैं। इनके सम्पर्क में जो भी लोग आते हैं उनकी सहायता करते रहते हैं तथा अपनी निश्छल प्रकृति से सबका मन मोह लेते हैं। ईमानदारी इनके जीवन में घुली मिली रहती है।

द्वादश भाव से सम्बधिन्त विशेष योग

  1. द्वादश भाव में निर्बल ग्रह हो और द्वादशेश बल से युक्त हो तो धन की हानि होती है ।
  2. षष्ठेश अथवा अष्टमेश बलवान पाप ग्रह होकर 12वें भाव में हो तो जातक दिवालिया होता है ।
  3. व्यय भाव शुभ ग्रहों से युक्त अथवा दृष्ट हो तो जातक पुण्यात्मा एवं दानशील होता है।
  4. यदि द्वादशस्थ ग्रह उच्च या स्वराशि का हो तो जातक परोपकारी होता है ।
  5. बारहवें भाव में चन्द्रमा, शुक्र और बृहस्पति हों तो जातक धनवान होता है।
  6. द्वादशेश उच्च राशि, स्वराशि अथवा मित्र राशि में हो तो जातक के जीवन की समस्त आवश्यकताओं की पूर्ति हो जाती है ।
  7. शुक्र, शनि, केतु एवं चन्द्रमा द्वादश भाव में हों तो जातक मध्यावस्था में प्रबल दुःख भोगता है।
  8. बारहवें भाव में पाप ग्रह हो तो जातक विख्यात एवं समाज में आदर प्राप्त करता है ।
  9. बारहवें भाव का स्वामी लग्न में हो तो जातक को विभिन्न परेशानियों का सामना करना पड़ता है ।
  10. द्वादश भाव में शुक्र उच्च का या स्वराशि का होकर स्थित हो तो जातक विख्यात, कलाप्रिय, धर्मात्मा, विविध भोगों का भोग करने वाला, ऐश्वर्यवान तथा लखपति होता है ।

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