कुंडली के ग्यारहवें भाव में सभी ग्रहों और राशियों का फलादेश

एकादश भाव जन्मकुण्डली में अपना ही महत्वपूर्ण स्थान रखता है, क्योंकि मानव-जीवन सुचारु रूप से तभी चल सकता है, जबकि मानव के पास आय के अच्छे स्रोत हो। यदि आय ठीक नहीं होगी तो मानव जीवन अस्तव्यस्त-सा हो जाएगा। इसलिए एकादश भाव का अध्ययन और विशेषकर इस अर्थप्रधान युग में तो इस भाव का महत्व सर्वाधिक महत्वपूर्ण समझा जा सकता है।

एकादश भाव से विचारणीय विषय : लाभ, आमदनी, आमदनी का प्रकार, आवश्यकता पूर्ति, गुप्तधन, राज द्रव्य, बड़े भाई का सुख, बड़े भाइयों की संख्या, बड़े भाइयों से सहायता, लाभ-हानि, स्वतन्त्र चिन्तन, कृपणता, उदारता, जीवन-निर्वाह के स्रोत ।

उपर्युक्त बिन्दुओं को ध्यान से देखें तो पता चलेग जीवन की मुल भूत आवश्यकता आमदनी अथवा आय है एवं उसका सीधा सम्बन्ध एकादश भाव से है अतः एकादश भाव का सूक्ष्म अध्ययन परमावश्यक है । एकादश भाव का अध्ययन करते समय निम्न तथ्यों को भली प्रकार ध्यान में रखना चाहिए :-

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कुंडली के ग्यारहवें भाव में सभी ग्रहों का फलादेश

सूर्य – एकादश भाव में यदि सूर्य हो तो व्यक्ति अड़ियल प्रवृत्ति का होता है जो एक बार सोच लेता है उसे पूरा करने को कृतसंकल्प रहता है और अन्ततः अपने विचारों को मूर्त रूप दे सकता है। आर्थिक सृष्टि से ऐसा व्यक्ति सम्पन्न होता है ।

बचपन सुखमय स्थिति में व्यतीत होता है तथा जीवन के मध्यकाल में वह अपने प्रयत्नों से अर्थ-संचय भी कर लेता है। जीवन की आवश्यकताएँ यह पूरी कर लेता है तथा जीवन के मध्यकाल में वह अपने प्रयत्नों से अर्थ-संचय भी कर लेता है तथा जीवन में ख्याति एवं लाभ प्राप्त करता है।

परिवार से इसके विचारों में भिन्नता रहती है, फिर भी वह जो कहता है, वह उचित एवं सोच-समझकर कहता है। ऐसा व्यक्ति सफल वकील अथवा सफल राजनीतिज्ञ होता है। इसके जीवन में अभाव नहीं रहता तथा स्वतन्त्र चिन्तन के कारण यह प्रशंसा प्राप्त करता है ।

चन्द्र – चन्द्र एकादश भाव में बैठकर जातक को अदम्य साहस प्रदान करता है। ऐसा जातक बड़ निश्चयी एवं अपने हठ के लिए प्रसिद्ध होता है । सूझ-बूझ एवं नेतृत्व करने की इसमें अद्भुत क्षमता होता है तथा यह जो भी कार्य करता है, वह सोच-विचारकर करता है।

शत्रु इसके नाम से श्रीहीन हो जाता है। ऐसा जातक युवावस्था में विख्यात होता है। बचपन इसका साधारण स्तर का ही होता है परन्तु जीवन के 16वें साल के बाद से भाग्योदय होता है। यदि ये जातक नौकरी में होते हैं तो उच्च पदाधिकारी बनते हैं ।

व्यापार में भी ये जातक लाभ उठाते हैं। राजनीतिक क्षेत्र में ऐसे व्यक्ति पूर्ण सफल कहे जा सकते हैं। इनके पास आय के साधन ठोस होते हैं, फलस्वरूप जीवन में धन का अभाव नहीं रहता। इनके जीवन की आवश्यकताएँ सहज ही पूरी हो जाती हैं तथा समाज में कोर्ति अर्जित करते हैं । इनके विचार सर्वथा मौलिक एवं अछूते होते हैं।

मंगल – जिस जातक के एकादश भाव में मंगल होता है, वह अपने पिता का धन नहीं भोग पाता । पैतृक सम्पत्ति उसे नहीं के बराबर मिलती है तथा शिक्षण-काल में भी कई व्यवधान आते हैं, जिससे शिक्षा सुचारू रूप से नहीं हो पाती।

यदि मंगल स्वगृही होकर एकादश भाव में हो तो कारक ग्रह बन जाता है तथा जातक को लाभ कराता है। ऐसे व्यक्ति कठोर परिश्रमी होते हैं। आजीविका के लिए इन्हें घोर श्रम करना पड़ता है तथा बचपन में मुसीबतें उठाते हैं, परन्तु जीवन के 20 वर्ष के बाद से भाग्योदय होता है एवं उसके बाद इनके पास धन-संचय होने लगता है। आमदनी में स्थायी लाभ होता है।

स्वजनों एवं भाइयों से जातक को विशेष लाभ नहीं होता, परन्तु यह व्यक्ति भाइयों की पूरी सहायता करने का इच्छुक रहता है। स्वरित निर्णय लेने की क्षमता रखने वाला ऐसा व्यक्ति अपने जीवन की प्रौढ़ावस्था में पूर्ण सफल होता है।

बुध – जिस जातक की जन्मकुण्डली के एकादश भाव में बुध होता है, वह व्यक्ति अत्यन्त चतुर एवं परिस्थितियों के अनुकूल कार्य करने वाला होता है । अपनी स्थिति के अनुसार ही यह अपना रहन-सहन रखता है।

यह व्यक्ति नौकरी में विशेष लाभ नहीं उठा पाता एवं इसकी जितनी योग्यता होती है उतना फल भी इसे प्राप्त नहीं होता, फलस्वरूप इसमें क्षणिक-सी हीन भावना भी आ जाती है, परन्तु ऐसे व्यक्ति में अदम्य साहस एवं दृढ़ निश्चय होता है। श्रम को ही सर्वोपरि समझता है तथा निरन्तर श्रम करता है।

श्रम के बल पर ही यह अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति कर लेता है। भाइयों से इसे विशेष लाभ नहीं मिलता और न परिवार ही इसकी उन्नति में सहायक होता है एक प्रकार से देखा जाय तो यह व्यक्ति ‘सेल्फमेड मैन’ होता है। उच्चाधिकारियों से इसका विशेष सम्पर्क रहता है। जीवन के मध्यकाल में इसे अपनी प्रतिभा दिखाने का सुअवसर मिलता है एवं तभी यह उन्नति के शिखर पर पहुंचता है।

आमदनी के कई स्रोत होते हैं तथा लेखन, सम्पादन तथा प्रकाशन से भी इसकी आय होती है। जीवन में यह पूर्णतया सफल रहता है।

बृहस्पति – जिस जातक के एकादश भाव में बृहस्पति होता है, वह अत्यन्त शुभ माना जाता है। ऐसा व्यक्ति शान्त, धीर, गम्भीर एवं कुशल प्रशासक होता है । बाल्यावस्था सानन्द बीतती है तथा किसी प्रकार का अभाव नहीं रहता । पूर्ण भाग्योदय 16 वें वर्ष के बाद से होता है।

आर्थिक दृष्टि से ऐसे जातक सम्पन्न होते हैं। आय के कई स्रोत होते हैं तथा सम्पत्ति की ओर से सचेष्ट रहते हैं। जीवन के मध्यमाल में इन्हें संघर्षो का सामना करना पड़ता है। अकारण ही शत्रु एवं आलोचक हो जाते हैं, जो इनके बारे में लिखते रहते हैं, परन्तु ऐसा जातक विपत्तियों से घबराता नहीं तथा संकटों एवं बाधाओं में इनका व्यक्तित्व निखरता है। निरन्तर श्रम करते रहना ही इनका स्वभाव होता है।

लेखन तथा प्रकाशन के क्षेत्र में भी ये प्रसिद्धि प्राप्त करते हैं तथा राजकीय पुरस्कार प्राप्त करते हैं। पारिवारिक जीवन सामान्य होता है, भाइयों से विशेष लाभ नहीं रहता। इनके विचार मौलिक एवं उच्च होते हैं तथा जीवन-पद्धति सादा होती है। जीवन में इनकी आवश्यकताओं की पूर्ति हो जाती है तथा यह सफल कहे जाते हैं ।

शुक्र – जिसके एकादश भाव में शुक्र होता है, वह मौज-शौक से जीवन बिताने वाला होता है । यद्यपि इसके पास आय के कई स्रोत होते हैं पर व्यय हमेशा बढ़ा-चढ़ा रहता है, जिसके कारण आर्थिक स्थिति सुदृढ़ नहीं हो पाती।

इसके शिक्षा काल में भी कई व्यवधान आते हैं तथा सुचारु रूप से शिक्षा नहीं हो पाती। उच्च शिक्षा में बाधाएँ भी संभव है। नौकरी में ऐसे जातक सफल नहीं कहे जा सकते, क्योंकि अधिकारियों तथा इनमें खींचतान होती रहती है।

कपड़ों पर तथा सुगंधितथ्यों पर इनका विशेष खर्च होता है। घर की सजावट का तथा कपड़ों की सुरुचि का भी विशेष ध्यान रखते हैं। ऐसे व्यक्ति शान-शौकत तथा तड़क-भड़क से रहने वाले होते हैं। प्रेम के क्षेत्र में ये अग्रणी रहते हैं तथा विशेष व्यय करते देखे गए हैं। जीवन में ये जातक सफल कहे जाते हैं ।

शनि – जिस जातक के एकादश भाव में शनि होता है, वह कुशल प्रशासक तथा उच्चपदस्थ अधिकारी होता है। उसका व्यक्तित्व अत्यन्त भय होता है तथा समाज में उसका सम्मान होता है। ऐसे व्यक्ति के पास आय के कई स्रोत होते हैं, जिनसे स्थायी आमदनी होती रहती है।

व्यापारिक क्षेत्र में ऐसे जातक प्रखरता से चमकते हैं एवं अपने अनुभव तथा युक्तियों के बल पर व्यापार का विस्तार कर सकते में समर्थ होते हैं। परिवार में भी ऐसे व्यक्ति का सम्मान होता है तथा जीवन के 36 वर्ष के बाद से पूर्ण भाग्योदय होता है।

राहू – एकादश भाव में बैठा राहू इस बात का द्योतक है कि जातक प्रखर प्रतिभासम्पन्न एवं राजनीति पटु है। वह जो भी कार्य करता है पूरी तरह से सोच-विचारकर करता है तथा एक बार जो ध्येय बना लेता है अथवा जो निश्चय कर लेता है, उसे पूरा करके ही छोड़ता है। जीवन में सम्पूर्ण आवश्यकताओं की पूर्ति हो जाती है।

जाति वाले तथा परिवार वाले इसकी उन्नति में विशेष सहायक नहीं होते। मान शाकत में जीवन बिताने का यह इच्छुक होता है । व्यय करने के मामले में यह पूरी सावधानी बरतता है।

केतु – जिस जातक के एकादश भाव में केतु होता है, वह अच्छी स्थिति में होता है। यद्यपि यह नौकरी के क्षेत्र में विशेष प्रगति नहीं कर पाता, फिर भी इसकी आय के कई स्रोत होते हैं तथा जीवन को सुखमय बनाने का यह भरसक प्रयत्न करता है ।

जीवन के 31वें वर्ष के से आर्थिक स्थिति सुधरने लगती है, परन्तु जीवन में कई उतार-चढ़ाव देखने पड़ते हैं तथा धोखा भी खाना पड़ता है। ऐसा जातक चतुर एवं समय को पहचानने वाला होता है।

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कुंडली के ग्यारहवें भाव में सभी राशियों का फलादेश

मेष – एकादश भाव में मेष राशि शुभ राशि मानी गई है । मेष राशि होने से यह पता चलता है कि जातक घोर परिश्रमी है। आय को बढ़ाने का बह हर संभव प्रयत्न करता रहता है तथा आय के एक से अधिक स्रोत बनाता है।

उसकी बाल्यावस्था साधारण स्तर की होती है तथा पिता द्वारा उपार्जित धन उसे नहीं के बराबर मिलता है। जीवन के 28वें वर्ष के बाद से उसकी आर्थिक स्थिति ठीक होने लगती है।

ऐसा व्यक्ति अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति में स्वतः ही सचेष्ट रहता है। बड़े भाई इसके कम होते हैं तथा उनसे जातक को कोई विशेष लाभ नहीं होता । स्वतन्त्र चिन्तन, सही निर्णय लेने की क्षमता एवं योग्यता के बल पर ही यह जातक प्रगति कर लेता है ।

वृष – यदि एकादश भाव में वृष राशि हो तो व्यक्ति की जान-पहचान विशिष्ट लोगों से होती है तथा अपने से ऊँचे लोगों की संगति में रहता है। स्त्रियों से भी इसे लाभ मिलता है। जीवन के मध्यकाल में आर्थिक दृष्टि से एक गहरा मोड़ आता है, जिसके फलस्वरूप जातक उन्नति के उच्च पद पर पहुंच जाता है।

आय के मामले में यह पूर्णतः सावधान रहता है तथा आय बढ़ाने के प्रयत्न करता रहता है। जरूरत से ज्यादा परिश्रम करने पर भी वांछित वस्तु प्राप्त नहीं होती । श्रम की अपेक्षा श्रम का मूल्य इसे कम प्राप्त होता है। भाइयों के साथ इसके सम्बन्ध सामान्य ही कहे जा सकते हैं।

मिथुन – जिसके एकादश भाव में मिथुन राशि हो वह आय के लिए निरन्तरश्रम करते रहने पर भी उचित आय प्राप्त नहीं कर पाता । उसकी आय के स्रोत भी सीमित होते हैं तथा पैसों के लिए पूर्ण संघर्ष करना पड़ता है।

नौकरी की अपेक्षा व्यापार में यह लाभ उठाता है । इसकी आवश्यकता पूर्ति हो जाती है, परन्तु जो भी कार्य सम्पन्न होता है प्रथमतः उसके बीच में व्यवधान आते हैं और फिर वह कार्य पूरा होता है ।

आर्थिक स्थिति चिन्तनीय कही जा सकती है, परन्तु जीवन के 42वें के बाद इसकी आय के कई स्रोत बनते हैं तथा आय अप्रत्याशित रूप से बढ़ जाती है। बड़े भाई का सुख साधारण होता है तथा परिवार में इसके विरोधी होते हैं। ऐसा व्यक्ति होशियार, समय को पहचानने वाला एवं सहिष्णु होता है ।

कर्क – जिसके एकादश भाव में कर्क राशि हो, वह मनुष्य नौकरी में ही प्रगति करता है। भावुक स्वभाव होने के कारण यह अपने सम्बन्धियों एवं परिवार के लिए व्यय करता रहता है, परन्तु यह एक अच्छा मित्र होता है तथा मित्रता (सच्ची मित्रता) के लिए सब कुछ बलिदान कर देता है।

यद्यपि आय के साधन सीमित होते हैं, परन्तु फिर भी इसका अधिकांश व्यय परिवार, बच्चों की शिक्षा एवं सुरुचिपूर्ण प्रसाधन तथा सजावट पर होता है। यह एक आदर्श गृहस्थ कहा जा सकता है । भाग्य जीवन में इसका साथ देता है तथा लाटरी से भी धन प्राप्त होता है। ऐसा व्यक्ति दृढ़ निश्चयी एवं अपनी धुन का पक्का होता है ।

सिंह – जिस जातक की जन्मकुण्डली के एकादश भाव में सिंह राशि हो वह वणिक वृत्ति वाला व्यक्ति होता है। प्रत्येक कार्य को करने से पहले यही सोचता है कि इस इस कार्य को करने से मुझे लाभ है अथवा नहीं और यदि लाभ है भी तो कितना ।

नौकरी में उन्नति के अवसर कम होते हैं, इसकी अपेक्षा ऐसा जातक व्यापार में खूब चमकता है और धनवान बनता है । इसका स्वभाव मृदु होता है, तभी सब प्रकार के लोगों से सभ्यतापूर्ण ढंग से पेश आता है। रहन-सहन सादा होते हुए भी सुरुचिपूर्ण कहा जा सकता है।

व्यर्थ का व्यय वह करता नहीं तथा आमोद-प्रमोद की जीवन में अधिक महत्व नहीं देता। श्रम में इसका विश्वास होता है व श्रम के बल पर ही यह अपनी उन्नति कर लेता है।

कन्या – यदि एकादश भाव में कन्या राशि हो तो जातक मेहनती होने के साथ-साथ दूरदर्शी भी होता है । वह जो कुछ भी कार्य करता है उसे खूब सोच-विचारकर करता है। राजनीतिक कार्यों से यह लाभ उठा सकता है तथा त्वरित निर्णय लेने की यह शक्ति रखता है।

आमदनी के स्रोत भी एक से अधिक होते हैं तथा इनकी यही प्रवृत्ति होती है कि येन-केन-प्रकारेण अर्थ संचय होना ही चाहिए तथा आय बढ़नी चाहिए। इसके लिए वह घोर परिश्रम भी करता है।

परिवार से तथा भाइयों से जातक को विशेष लाभ नहीं होता, अपितु यह परिवार के लिए पूर्ण सहायक होता है । जीवन निर्वाह एवं जीवन की आवश्यकताएँ पूरी हो जाती हैं ।

तुला – जिस जातक की जन्मकुण्डली के एकादश भाव में तुला राशि होती है वह व्यक्ति धीर, गम्भीर अवसर की उचितानुचितता को समझने वाला एवं नाजुक क्षणों में अद्भुत प्रतिभा दिखाने वाला होता है। परिवार एवं सज्जन इसके सहायक होते हैं तथा इसकी उन्नति में वे योग भी देते हैं ।

वृश्चिक – जिस जातक के एकादश भाव में वृश्चिक राशि होती है वह एकसाथ कई कार्य करने में निपुण होता है। भूमि अथवा भूमि संबंधी कार्यों में उसका व्यय विशेष होता है एवं कृषि से वह लाभ उठाता है ।

समय पर सही चोट करने में यह निपुण होता है। ऐसा ही व्यक्ति देश, काल और पात्र को ध्यान में रखकर (भावी योजना निर्माण को विचार कर) अपने भावों को व्यक्त करता है।

धनु – जिस जातक के एकादश भाव में धनु राशि होती है, वह व्यापार में प्रगति करता है। नौकरी में इस जातक की उन्नति के अवसर कम ही होते हैं। आफीसरों एवं उच्चपदस्थ लोगों से इसकी जान-पहचान होती है, जिससे यह शनैः यानः प्रगति करता रहता है।

हंसमुख, मिलनसार एवं तीक्ष्ण बुद्धि का ऐसा जातक प्रत्येक कार्य को सोच-विचारकर करता है। यह जो कुछ भी कहता है, समझकर कहता है तथा कहने के बाद अपने वचनों पर दृढ रहता है। आमदनी के स्रोत कई होते हैं।

जीवन का एक ही ध्येय होता है कि यथासंभव आमदनी में विस्तार किया जाय। आय की अपेक्षा व्यय बढ़ा-चढ़ा रहने पर भी यह जीवन में ऐसा संतुलन कायम करता है कि इसे अभाव देखना नहीं पड़ता तथा विपत्ति के समय के लिए यह कुछ न कुछ बचाकर रखता है। आवश्यकताएँ सीमित होती हैं तथा जीवन में उन आवश्यकताओं की पूर्ति भी हो जाती है।

मकर – जिस मनुष्य की कुण्डली के एकादश भाव में मकर राशि हो, वह चंचल प्रवृत्ति का युवक होता है तथा उसका दिमाग अत्यन्त गतिशील रहता है। एक ही बिन्दु पर घंटों सोचने की उसकी आदत नहीं होती, परन्तु कम समय में ही यह बात की तह तक पहुँच जाता है। एवं सही निर्णय लेने की क्षमता रखता है।

नौकरी में इस जातक की उन्नति के कई अवसर रहते हैं तथा नौकरी में सही प्रगति भी करता है। आय के जो भी साधन होते हैं वे ठोस होते हैं तथा स्थायी आमदनी के कारण यह अर्थ संचय भी कर लेता है।

परिवार तथा समाज में लोकप्रिय होता है तथा भाइयों से इसके स्नेह सम्बन्ध रहते हैं। अपने वचनों का पालन करता है तथा जो कुछ भी कहता है उसे पूरा करने का भरसक प्रयत्न करता है। सजावटप्रिय यह जातक आमोद-प्रमाद के साधनों पर व्यय करता रहता है। सुरुचि एवं सफाई से इसे विशेष मोह होता है ।

कुम्भ – जिस व्यक्ति की कुण्डली के एकादश भाव में कुम्भ राशि होती है, वह क्रोधी स्वभाव का एवं अपनी हठ पर अड़ने वाला व्यक्ति होता है। अपने सम्मान की रक्षा में वह सतत सचेष्ट रहता है तथा ईमानदारी उसके जीवन का ध्येय रहता है।

यद्यपि उसके जीवन में प्रलोभन आते हैं तथा बुरे कार्यों से अनायास धन प्राप्ति के मौके मिलते हैं, परन्तु यह अपने आदर्शों से च्युत नहीं होता। यह वही करता है जो नीतिसम्मत एवं उचित होता है।

बाल्यावस्था गरीबी में बीतती है, परन्तु श्रम के बल पर ये उन्नति पथ पर अग्रसर होकर उच्च पद पर पहुँच जाते हैं । व्यापार की अपेक्षा नौकरी में ये विशेष लाभ प्राप्त करते हैं। राजनीतिक क्षेत्र में ये सफल होते हैं।

मीन – जिस जातक के एकादश भाव में मीन राशि होती है, वह धनवान होता है तथा जीवन में अपने कार्यों से ख्याति-लाभ करता है । ऐसे जातक किसी विशिष्ट क्षेत्र में चमकते हैं। प्रसिद्ध गायक, आलोचक अथवा प्रसिद्ध वैज्ञानिक होते हैं। इनके आय के स्रोत स्थायी होते हैं तथा जीवन की वे सभी आवश्यकताएँ पूरी कर लेते हैं, जो ये चाहते हैं ।

इनका जीवन सीधा-सादा सात्त्विक एवं उच्च होता है। परिवार का स्नेह इन्हें नहीं प्राप्त होता, फिर भी ये आगे बढ़ते रहते हैं। संकटों, बाधाओं एवं विपरीत परिस्थितियों में ही इनकी प्रतिभा के दर्शन होते हैं।

राजनीतिक तथा सामाजिक क्षेत्र में ये पूर्ण प्रसिद्धि प्राप्त करते हैं। इनके विचार स्वतन्त्र तथा मौलिक होते हैं। जीवन आडम्बर से शून्य तथा सात्त्विक होता है। जीवन में ऐसे व्यक्ति पूर्ण सफल कहे जा सकते हैं।

एकादश भाव से सम्बन्धित योग

  1. एकादश भाव में शुभ ग्रह हो तो शुभ कार्य से धन प्राप्ति एवं अशुभ ग्रह हो तो पाप कार्यों से धन की प्राप्ति समझनी चाहिए।
  2. लाभ-स्थान में दो या दो से अधिक बलवान ग्रह हों तो जातक गुणवान, मित्रवान, विभूषण, वस्त्र, स्त्री, भोगादि सम्पन्न विद्वान हो ।
  3. धनेश और लाभेश यदि लग्नेश के मित्र हों तो उसे सद्गुणों से धन प्राप्ति होती है।
  4. सूर्य लाभेश हो तो राज्य वर्ग से धनप्राप्ति हो, चन्द्रमा लाभेश हो तो धनवान स्वामी से, मंगल हो तो भाइयों एवं कृषि से, बुध हो तो विद्या एवं व्यापार से बृहस्पति हो तो व्यवहार से, शिक्षा से, शुक्र हो तो ससुराल से, स्त्री से, तथा शनि यदि लाभेश हो तो तो छल-कपट, राजनीतिक एवं ठगी से धन प्राप्ति हो ।
  5. लाभ स्थान का स्वामी लग्न से केन्द्र या त्रिकोण में स्थित हो तो जातक धनवान होता है ।

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