अंगूठा तथा अंगूठे के भाग

अंगूठा एक प्रकार से पूरे हाथ का प्रतिनिधित्त्व करता है। हाथ की रेखाओं का जितना महत्व होता है, उससे भी ज्यादा महत्व अंगूठे का माना गया है। जिस प्रकार मनुष्य का चेहरा उसके जीवन का प्रतिविम्ब होता है, ठीक उसी प्रकार उसके हाथ का अंगूठा भी उसके पूरे व्यक्तित्त्व को हस्तरेखाविद् के सामने साकार कर देता है। पूरे हाथ का मूल, अंगूठे को ही माना गया है क्योंकि बिना अंगूठे के उंगलियों का महत्त्व एक प्रकार से नगण्य सा हो जाता है। अंगूठा ही पूरे हाथ की शक्ति को अपने हाथ में संचित रखता है और कार्य करने की क्षमता प्रदान करता है। बच्चे के जन्म के समय भी उसका अंगठा चारों उंगलियों से ढका हुआ सा रहता है, अतः हस्तरेखा विज्ञान में अंगूठे का महत्त्व सर्वोपरि माना गया है।

अंगूठा इच्छा-शक्ति का केन्द्र माना जाता है, जोकि तीन हड्डियों से मिलकर निर्मित होता है। हथेली से आगे निकले हुए दो भाग स्पष्ट दिखाई देते हैं। तीसरे भाग से हथेली की आन्तरिक रचना होती है, जोकि शुक्र पर्वत कहा जाता है और यह भाग प्रेम तथा वासना का केन्द्र माना गया है। इससे ऊपर का भाग तक एवं नाखून से जुड़े हुए भाग को इच्छा-शक्ति का द्योतक कहा जाता है।

अंगूठा मानव की आन्तरिक क्रियाशीलता को स्पष्ट करता है और इसका सीधा संबंध मस्तिष्क से होता है। चूंकि मानव शरीर में उसका मस्तिष्क सर्वोपरि माना गया है अतः केवल अंगूठे मात्र को देखकर ही मानव का स्वभाव उसकी प्रकृति तथा उसके विचारों का अध्ययन किया जा सकता है। परिस्थितियों तथा विभिन्न जलवायु को ध्यान में रखते हुए समस्त मानव जाति के अंगूठे तीन भागों में बांटे जा सकते हैं।

  1. वे अंगूठे जो हथेली पर तर्जनी के साथ मिलकर अधिक कोण का निर्माण करते हैं।
  2. वे अंगूठे जो वर्जनी के साथ मिलकर समकोण का निर्माण करते हैं।
  3. वे अंगूठे जो हथेली पर तर्जनी के साथ न्यूनकोण का निर्माण करते हैं। पाठकों की सुविधा के लिए इन तीनों ही प्रकार के अंगूठों का संक्षिप्त विवरण स्पष्ट कर रहा हूं:-

1. अधिक कोण अंगूठा :- ये अंगूठे देखने में सुन्दर आकृति वाले, लम्बे तथा पतले होते हैं। ऐसे अंगूठों को सात्विक अंगूठा कहा जाता है। जिन व्यक्तियों के हाथों में ऐसा अंगूठा होता है, वे व्यक्ति कोमल और मधुर स्वभाव वाले, कलाकार, संगीतज्ञ तथा समाज में रचनात्मक कार्य करने वाले होते हैं।

यद्यपि ऐसे लोगों का बचपन बहुत अधिक संघर्षो के साथ व्यतीत होता है, परन्तु फिर भी ये अपने प्रयत्नों से घरेलू परिस्थितियों को अपने अनुकूल बना कर ऊंचा उठ जाते हैं। यद्यपि निरन्तर इनके मार्ग बार-बार बाधाएं आती है, परन्तु ये अपनी इच्छा-शक्ति के बल पर ही जीवन में सफल होते हैं।

इस प्रकार के हाथ में अत्यधिक लम्बा अंगूठा अशुभ माना गया है। यदि अंगूठे की लम्बाई तर्जनी के दूसरे पोर के आधे भाग में भी ऊपर बढ़ जाए तो वह व्यक्ति मूर्ख होता है तथा अपने जीवन में सफलता प्राप्त नहीं कर सकता।

यदि अंगूठे की लम्बाई समान एवं उचित अनुपात में होती है, तो व्यक्ति बुद्धिमान, चतुर तथा कला प्रेमी होता है। ऐसा व्यक्ति जीवन में स्वार्थ की अपेक्षा मानव सेवा एवं समाज सेवा को प्राथमिकता देता है। यद्यपि इनके जीवन में मित्रों की संख्या कम ही होती है, परन्तु फिर भी जितने भी मित्र होते हैं, वे विपत्ति पड़ने पर सहायता करने वाले होते हैं। इनके चित्त में अस्थिरता बनी रहती है। ऐसे व्यक्ति बार-बार अपने विचार बदलते रहते हैं और जीवन में काफी बाधाओं के बाद ही सफल हो पाते हैं।

2. समकोण अगूठा :- एसे अंगूठे वे कहे जाते हैं जो तर्जनी से जुड़ते समय समकोण का निर्माण करते हैं। ये अंगठे देखने में सुन्दर, मजबूत तथा स्तम्भ की तरह प्रतीत होते हैं, परन्तु ऐसे अंगूठे पीछे की तरफ झुके हुए नहीं होते।

इन अंगूठों को ध्यानपूर्वक देखने से पता चलता है कि ये व्यक्ति बातों की अपेक्षा कार्य एवं परिश्रम पर ज्यादा विश्वास करते हैं। यद्यपि इनमें क्रोध की मात्रा विशेष होती है परन्तु यह भी देखा गया है कि इन्हें जितनी तेजी से गुस्सा आता है उतनी ही तेजी से गुस्सा उतर भी जाता है।

यह बात सही है कि क्रोध के समय ये चुपचाप बैठे रहते हैं। अहित या अनिष्ट नहीं करते। अपनी बात पर पूरी तरह से अड़े रहते हैं। कई बार गलत बातों पर या गलत कार्यों पर ही दृढ़ता का रुख ले लेते हैं, जिसकी वजह से कुछ नई समस्याएं भी पैदा हो जाती हैं। प्रतिशोध की भावना उनमें इतनी अधिक होती है कि पीढ़ी-दर-पीढ़ी भी ये अपने बैर को भूलते नहीं।

ऐसे व्यक्ति या तो अच्छे मित्र हो सकते हैं या अच्छे शत्रु । ऐसे व्यक्ति अपने जीवन में टूट सकते हैं, परन्तु झुकना इनके बस की बात नहीं होती। सही रूप में देखा जाए तो ऐसे ही व्यक्ति देश भक्त, देश तथा समाज के कार्यों पर अपने प्राणों को उत्सर्ग करने वाले एवं दृढ़ निश्चयी होते हैं। मन में एक बार ये व्यक्ति जो निश्चय कर लेते हैं, उसे पूरा करके ही छोड़ते हैं। दूसरों के अधीन रहकर कार्य करना इनको प्रिय नहीं होता, अपितु ये अपने ही द्वारा संचालित होते हैं।

3. न्यूनकोण अंगूठा :- हथेली से जुड़ते समय तर्जनी उंगली के साथ जो अंगूठे न्यूनकोण का आकार बनाते हैं, वे इसी वर्ग के अन्तर्गत आते हैं। इन अंगूठों की लम्बाई अपेक्षाकृत कम होती है तथा देखने में ये अंगूठे बेडौल से प्रतीत होते हैं। ऐसे अंगूठों को तमोगुणी अंगूठा कहा जाता है।

जिन व्यक्तियों के हाथों में इस प्रकार का अंगूठा होता है, वे व्यक्ति जीवन में निराशावादी भावना बनाए रखते हैं। आलस्य इनके जीवन में बराबर बना रहता है। यात्रा आदि कार्यों में इनकी रुचि नहीं होती और न किसी कार्य की पूर्णता में ये विश्वास रखते हैं। निम्न और मध्य वर्ग के लोगों में ऐसे ही अंगूठे प्रायः देखने को मिलते हैं।

ऐसे व्यक्ति बुरी आदतों तथा व्यसनों में व्यस्त रहते हैं, जिसकी वजह से आय की अपेक्षा इनका व्यय बढ़ा-चढ़ा रहता है। ये जरूरत से ज्यादा फजूलखर्च होते हैं तथा दिवास्वप्न देखते-देखते अपनी उम्र काट लेते हैं।

धर्म-कर्म में उनकी रुचि कम ही होती है। भूत-प्रेत, देवी-देवताओं आदि की और इनका थोड़ा बहुत झुकाव रहता है। निम्नस्तरीय कार्यों में इन्हें आनन्द आता रहता है।

इस प्रकार के व्यक्ति भोगी होते हैं तथा अन्य स्त्रियों के प्रति बराबर आसक्ति बनाए रखते हैं। अपने से निम्नंतर अथवा निम्न जाति की स्त्रियों से इनका सम्पर्क रहता है। ऐसे व्यक्ति अपने जीवन में कई बार बदनाम होते हैं। मेरी राय में ऐसे व्यक्तियों से समाज को किसी प्रकार का कोई विशेष लाभ नहीं मिलना ।

लम्बा अंगूठा :- ऐसे व्यक्ति स्वेच्छाचारी, आत्मनिर्भर तथा दूसरों पर अपना अधिकार रखने वाले होते हैं। इनके जीवन में भावना की बजाय बुद्धि ज्यादा होती है और एक प्रकार से इन्हें बद्धिजीवी ही कहा जाता है। गणित इंजीनियरिंग आदि कार्यों में इनकी विशेष रुचि रहती है।

छोटा अंगूठा :- ऐसा व्यक्ति अपनी बुद्धि से कम काम लेता है, अपितु दूसरों से प्रभावित होकर कार्य करता है। इनके जीवन में बुद्धि की अपेक्षा भावना का बाहुल्य रहता है। काव्य, चित्रकला, संगीत आदि में ये विशेष रुचि लेते हैं।

कड़ा अंगूठा :- ऐसे व्यक्ति हठी और सतर्क होते हैं। कोई भी बात अपने पेट में पचा लेने की विशेष क्षमता रखते हैं। इनके जीवन में भावकता का अभाव होता है तथा बद्धि के बल पर ही ये विशेष रूप से संचालित रहते हैं।

लचकीला अंगूठा :- जिस व्यक्ति के हाथ में ऐसा अंगूठा होता है, वह व्यक्ति धन संग्रह करने में विशेष रूचि रखता है तथा परिस्थितियों के अनुसार अपने आपको ढाल लेने की क्षमता रखता है।

अंगूठे के तीन भाग

ध्यानपूर्वक देखने से प्रतीत होता है कि अंगूठा मुख्यतः तीन भागों में बटा हुआ होता है।

पहला वह भाग कहलाता है, जो नाखून से चिपका हुआ होता है। दूसरा मध्य भाग तथा तीसरा वह भाग कहलाता है, जो हथेली में शुक्र पर्वत से जुड़ा हुआ होता है। हस्तरेखा विज्ञान के अनुसार इनमें प्रथम पोरुआ ‘सत’, दूसरा ‘रज’ तथा तीसरा ‘तम’ को स्पष्ट करता है। इनको हम ऊर्ध्व भाग, मध्य भाग तथा अधो भाग के नाम से भी सम्बोधित कर सकते हैं।

ऊर्ध्व भाग विज्ञान और इच्छा शक्ति का द्योतक होता है। मध्य भाग तर्क एवं विचार का प्रतिनिधित्त्व करता है तथा तीसरा अधो भाग प्रेम विराग और स्नेह को सूचित करता है।

प्रथम पोरुआ :- जिस मनुष्य के अंगठे का प्रथम पोरुआ दूसरे पोरुए से लम्बा हो, उस व्यक्ति में इच्छा-शक्ति प्रबल होती है तथा निर्णय लेने में वह स्वतन्त्र होता है। ऐसे व्यक्ति किसी की अधीनता में रह कर कार्य नहीं कर पाते। ऐसे व्यक्ति धार्मिक विचारों में गहरी आस्था रखने वाले होते हैं तथा इनका स्वयं का व्यक्तित्त्व इतना प्रबल तथा आकर्षक होता है कि देखते ही इनके व्यक्तित्व का प्रभाव सामने वाले पर पड़ जाता है। ये अपने व्यक्तित्व के बल पर कुछ भी कार्य सम्पन्न करा लेने में समर्थ होते हैं। ऐसे व्यक्त यौवनावस्था की अपेक्षा वृद्धावस्था में अधिक संवेदनशील तथा अधिक सुखी देखे जाते हैं।

यदि प्रथम तथा द्वितीय पोरुआ बराबर लम्बा एवं मोटा होता है, तो ऐसा व्यक्ति समाज में सम्माननीय स्थान प्राप्त करने में सफल होता है। न तो ये किसी को धोखा देते हैं और न किसी से ये व्यक्ति सहज में ही धोखा खाते हैं। जीवन में मित्रों की संख्या बहत ज्यादा होती है तथा समाज में ऐसे व्यक्ति लोकप्रिय होते हैं। कठिन से कठिन परिस्थितियों में भी इन्हें मुस्कराते हुए देखा जा सकता है।

द्वितीय पोरुआ :- अंगूठे का दूसरा पोरुआ तर्क शक्ति का स्थान माना गया है। यदि दूसरा पोरुआ पहले पोरुए से बड़ा और मजबूत हो तो इससे यह सिद्ध होता है कि व्यक्ति में तर्क शक्ति जरूरत से ज्यादा है और इस व्यक्ति की यह विशेषता होगी कि यह अपनी तर्क शक्ति के सामने किसी को भी टिकने नहीं देगा।

परन्तु इस प्रकार के व्यक्तियों में एक कमजोरी यह होती है कि ये अपनी उचित और अनुचित सभी बातों को तर्क शक्ति के सहारे मनवाने की कोशिश करते हैं। यदि कभी तर्क शक्ति में अपना पलड़ा कमजोर होता देखते हैं, तो हो-हल्ला मचाकर अपनी विजय सिद्ध करने का प्रयत्न करते हैं। सभ्य समाज में इनको ज्यादा आदर नहीं मिलता, अपित इन्हें बकवादी और वाचाल कहा जाता है।

यदि किसी व्यक्ति के हाथ में यह पोरुआ पतला हो तो ऐसे व्यक्ति अपने दिमाग से काम न लेकर जो भी जी में आता है मुंह पर बक देते हैं। ऐसे व्यक्ति अपने अधिकारियों की गलती निकालने में तत्पर रहते हैं। इनका जीवन भारवत ही होता है।

यदि पहला और दूसरा पोरुआ बराबर लम्बाई और चौड़ाई तथा मोटाई लिये हुए हो तो व्यक्ति शान्त मस्तिष्क के कहे जाते हैं, न तो ये क्षणिक आवेश में क्रोधित होते हैं और न क्षणिक प्रशंसा से फूलते ही हैं। जीवन में प्रत्येक कदम सावधानी के साथ उठाने हैं। जिससे इनको समाज में कम से कम धोखा खाने को मिलता है। इनमें आत्म-विश्वास भी प्रबल रूप में होता है। सही शब्दों में कहा जाए तो ये व्यक्ति सभ्य, ऊंचे स्तर के व्यापारी, महत्त्वपूर्ण पदों पर अधिकारी और माने हुए कलाकार होते हैं।

यदि पहले पोरुए की अपेक्षा दूसरा पोरुआ कमजोर पतला और दुर्बल हो तो ऐसे व्यक्ति अपनी इच्छा से न चलकर दूसरों की अधीनता में ही चलना पसन्द करते हैं। सही रूप में ये स्वयं कोई निर्णय नहीं लेते। जीवन में ये किसी भी प्रकार का कोई कार्य बिना योजना के ही प्रारम्भ कर देते हैं । जिससे उस कार्य के अन्त में इन्हें हमेशा असफलता ही मिलती है।

इनकी आत्मा निर्बल होती है। इनके विचार अस्थिर होते हैं। इनकी प्रवृति झगड़ालू होती है और जीवन में ये एक असफल व्यक्ति कहे जाते हैं। वास्तव में ही ऐसे व्यक्ति भाग्यवादी होने के साथ-साथ आलसी भी कहे जाते हैं।

तीसरा भाग :- अंगूठे का तीसरा भाग पोरुआ न कहलाकर शुक्र का स्थान कहलाता है। शक्र पर्वत के बारे में आगे विवेचन किया जाएगा।

प्रथम दो पोरुओं की अपेक्षा यह भाग निश्चय ही उन्नत सुदृढ़ एवं सुन्दर होता है।

यदि यह भाग सामान्य रूप से अधिक ऊंचा उठा हुआ, सुन्दर और किञ्चित् गुलाबी आभा लिये हुए होता है तो ऐसा व्यक्ति प्रेम और स्नेह के क्षेत्र में काफी बढ़ा-चढ़ा होता है। समाज में ऐसे व्यक्ति आदर प्राप्त करते हैं तथा मित्रों में भरपर लोकप्रियता अर्जित करने में सफल होते हैं। ये व्यक्ति कठिनाइयों में भी मुस्कराते रहते हैं और अपने प्रयत्नों मे जीवन में पूर्ण सफलता प्राप्त करके ही रहते हैं।

यदि शुक्र का पर्वत बहुत अधिक उठा हुआ दिखाई दे तो ऐसा व्यक्ति भोगी और कामी होता है तथा सौन्दर्य के पीछे भटकने वाला माना जाता है। प्रेम और सौन्दर्य के लिए यह सब कुछ करने के लिए तैयार रहता है और उस समय क्षणिक आवेश में यह कुछ भी आगा-पीछा नहीं सोचता।

यदि यह क्षेत्र दबा हुआ या कम उन्नत होता है अथवा इस क्षेत्र पर जरूरत से ज्यादा रेखाएं एवं जाल दिखाई दें तो ऐसा व्यक्ति निराशावादी प्रवृति का होता है। इनका प्रेम भी शुद्ध प्रेम न होकर उस प्रेम के पीछे भी वासना या स्वार्थी होना है।

ये लम्बी-लम्बी योजनाएं बनाते हैं, दिवा स्वप्न देखते रहते है, पर ये अपने उद्देश्यों में सफलता प्राप्त नहीं कर पाते हैं। भावना शन्य होने के कारण समाज में भी इनको पूर्ण यश नहीं मिलता। जीवन इनका कलह पूर्ण कहा जाता है तथा वैवाहिक जीवन में जरूरत से ज्यादा बाधाओं का सामना करना पड़ता है।


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