काल निर्धारण
व्यक्ति के जीवन में ये प्रश्न निरन्तर चक्कर लगाते रहते हैं कि भाग्योदय कब होगा, किस प्रकार के कार्य से भाग्योदय होगा, भाग्योदय इसी देश में होगा या विदेश में होगा, विदेश यात्रा कब है, नौकरी कब मिलेगी, व्यापार में स्थिरता कब आ सकेगी, व्यापार में कितना लाभ होगा, किस वस्तु या किस कार्य से व्यापार में लाभ सम्भव है, आय वृद्धि कब होगी, नौकरी में प्रमोशन कब होगा, सन्तान सुख कैसा मिलेगा, विवाह कब होगा आदि। ऐसी सैकड़ों बातें हैं जो मानव मस्तिष्क में निरन्तर घुमड़ती रहती हैं, इन सभी के लिए यह बहुत जरूरी है कि हम काल निर्धारण प्रक्रिया को समझें ताकि उसके माध्यम से भविष्य कथन को स्पष्ट कर सकें।
पीछे के लेखों में मैंने हृदय रेखा, भाग्य रेखा, स्वास्थ्य रेखा, मस्तिष्क रेखा तथा जीवन रेखा आदि के बारे में जानकारी दी है। इनमें जीवन रेखा का सर्वप्रथम अध्ययन जरूरी है।
जैसा कि मैं पीछे बता चुका है कि अंगूठे और तर्जनी के बीच में से जीवन रेखा प्रारम्भ होकर शुक्र पर्वत को घेरती हुई मणिबन्ध तक पहुंचती है। यह जीवन रेखा कहलाती है।
पहले अभ्यास के लिए किसी धागे के माध्यम से जहां से यह जीवन रेखा प्रारंभ होती है वहां से लगाकर जीवन रेखा के अन्तिम स्थल अथांत मणिबन्ध की पहली रेखा तक नापिए और इस पूरे धागे को 100 वर्ष का समझकर इसके बराबर 10 हिस्से कर लीजिए। इस प्रकार एक हिस्सा 10 वषों का प्रतिनिधित्व करेगा। इन 10 वर्षों में भी जो दूरी है उसको 10 भागों में बांटें तो प्रत्येक भाग एक वर्ष का प्रतिनिधित्व करेगा।
यद्यपि ये चिन्ह नजदीक हो सकते हैं, परन्तु यह प्रत्येक चिन्ह एक वर्ष को सूचित करेगा। अभ्यास के बाद चिन्ह लगाने की आवश्यकता ही नहीं रहेगी और हाथ देखकर ही यह अनुमान हो सकेगा कि वह जीवन रेखा कितने वर्ष का प्रतिनिधित्व करती है।
यदि जीवन रेखा बीच में ही समाप्त हो जाती है, तो आयु के उस भाग में जीवन समाप्त समझना चाहिए। इससे यह भली-भांति ज्ञात हो सकेगा कि व्यक्ति की आयु कितने वर्ष की है।
इसी प्रकार जीवन रेखा पर जहां भी क्रॉस का चिन्ह या जहां भी रेखा कमजोर पड़ी है, आयु के उस भाग में बहुत बड़ी बीमारी आएगी या मरण तुल्य कष्ट भोगना पड़ेगा, ऐसा समझना चाहिए।
पूरे हाथ में घटनाओं को सूचित करने वाली जीवन रेखा ही है। अन्य जो भी रेखाएं हैं, उन पर बिन्दु लगा कर उससे एक सीधी रेखा जीवन रेखा की ओर खींचिए, जिस बिन्दु पर खींची हुई रेखा मिलेगी : आयु के उस भाग में ही वह घटना घटित होगी।
उदाहरण के लिये भाग्य रेखा के मध्य में कटा हुआ हिस्सा है, तो कटे हुए स्थान से यदि हम रेखा खीचें और वह रेखा जीवन रेखा के 42 वें वर्ष के विन्द में मिलती हो तो इसमें यह सिद्ध हो जाता है कि इस व्यक्ति के 42 वें वर्ष में भाग्य-बाधा आयेगी और भाग्य से सम्बन्धित कोई बहुत बड़ा कष्ट उठाना पड़ेगा।
इसी प्रकार आप अन्य रेखाओं पर पाये जाने वाले चिन्हों का फल ज्ञात कर सकते हैं एवं उन घटनाओं को घटित होने का समय भी स्पष्ट कर सकते हैं।
धीरे-धीरे इस संबंध में अभ्यास करना चाहिए। अभ्यास के बाद तो मात्र हथेली पर एक झलक पड़ने पर ही संबंधित घटना और उसका समय ज्ञात हो सकता है।
वस्तुतः एक सफल भविष्यवक्ता एवं हस्तरेखा विशेषज्ञ तभी माना जाता है, जबकि वह घटनाओं का समय सही-सही रूप में स्पष्ट कर सके और इसके लिये मैंने ऊपर विधि स्पष्ट कर दी है।
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