हथेली के पर्वत

हथेली का अध्ययन करते समय उस पर पाये जाने वाले पर्वतों का विशेष महत्त्व है। क्योंकि पर्वतों के माध्यम से ही विभिन्न रेखाएं बनती हैं और उनका विकास हो पाता है। पर्वतों का नामकरण ग्रहों के नामकरण से हुआ है और जिस ग्रह में जो गुण विशेष रूप से होते हैं, वे ही गुण उन पर्वतों के उभार से ज्ञात किये जा सकते हैं।

उदाहरणार्थ सूर्य सम्मान, प्रसिद्धि यश आदि का कारक ग्रह है। अतः यदि हथेली में सूर्य पर्वत विकसित है, तो निश्चय ही उस व्यक्ति को विशेष सम्मान तथा आदर मिलेगा, परन्तु यदि हथेली में सूर्य पर्वत का विकास नहीं हुआ है, तो वह व्यक्ति भले ही कितने ही ऊंचे स्तर पर पहुंच जाए उसको वांछनीय सम्मान अथवा ख्याति नहीं मिल पाती।

अनुभव में यह भी आया है कि यदि जन्म कुण्डली में कोई ग्रह विशेष बलवान है तो वह ग्रह हथेली में भी बलवान दिखाई देता है अर्थात् उसका पर्वत विकसित स्पष्ट एवं सुद्र्ढ होता है। पर्वतों के तीन भेद हैं :-

1. सामान्य पर्वत 2. विकसित पर्वत 3. अविकसित पर्वत |

यदि हथेली में पवंत काफी ऊंचे उठे हुए मांसल, स्वस्थ और लालिमा लिये हुए होते हैं तो वे विकसित कहलाते हैं। इसके विपरीत अविकसित पर्वत सामान्यतः दिखाई ही नहीं देते। सामान्य पर्वत वे कहलाते हैं, जो न अविकसित की श्रेणी में आते हैं और न जिन्हें पूर्णत: विकसित माना जा सकता है।

ग्रह, उनके अंग्रेज़ी नाम तथा संबंधित प्रभावों का परिचय निम्न प्रकार से है:-

1. बृहस्पति पर्वत :- इसे अंग्रेज़ी में ‘जुपिटर’ कहते हैं। यह सौम्य ग्रह कहलाता है तथा यह पर्वत राज्य सेवा, इच्छाओं के प्रदर्शन आदि से संबंधित होता है।

2. शनि पर्वत :- अंग्रेजी में इसे ‘सेटर्न’ कहते हैं तथा यह मननशीलता, एकान्नप्रियता, रोग, चिन्ता, मशीनरी व व्यापार आदि से संबंधित है।

3. सूर्य पर्वत :- इसको अंग्रेजी भाषा में ‘सन’ कहते हैं। इसके माध्यम से राज्य, मानसिक उन्नति, प्रसिद्धि, सम्मान, यश तथा विविध कला कौशल का अध्ययन किया जाता है।

4. बुध पर्वत :- इसे अंग्रेजी में मरकरी कहते हैं। वैज्ञानिक उन्नति, व्यापार, गणित संबंधी कार्य आदि तथ्यों का अध्ययन इसी ग्रह के माध्यम से किया जाता है।

5. हर्षल पर्वत :- यह नाम अंग्रेज़ी का है। हिन्दी में इसे प्रजापति कहते हैं। इसका संबन्ध शारीरिक एवं मानसिक क्षमताओं से होता है।

7. नेपच्युन पर्वत :- हिन्दी में इसे वरुण ग्रह तथा अंग्रेजी में नेपच्यन कहते हैं। व्यक्त की विद्वत, उसका व्यक्तित्व दूसरों पर उसका प्रभाव तथा उसका पुरुषार्थ आदि इस पर्वत के माध्यम से ही जाना जाता है।

7. चन्द्र पर्वत :- इसे अंग्रेजी में ‘मून’ कहते हैं तथा हथेली में इस पर्वत के माध्यम से कल्पना विशालता सह्र्द्यता मानसिक उत्थान तथा समुद्र पारीय यात्राओं का अध्ययन किया जाता है।

8. शुक्र पर्वत :- अंग्रेजी में यह ग्रह ‘वीनस’ कहलाता है। सन्दरता, प्रेम, शान-शौकत तथा ऐश्वर्य भोग आदि का संबंध इसी ग्रह से हैं।

9. मंगल पर्वत :- यह अंग्रेजी में ‘मा’ के नाम से प्रकारा जाता है। यह जीवट शक्ति, परिश्रम, पस्पांचित गण आदि का अध्ययन इस ग्रह के माध्यम से किया जाता है।

10. राहु पर्वत :- इसको अंग्रेजी में ‘ड्रेगन्स हेड’ के नाम से पुकारते हैं। आकस्मिक धन प्राप्ति लॉटरी हार्ट एटेक या अचानक घटित होने वाली घटनाओं का संबंध इसी ग्रह से है।

11. केतु पर्वत : – इसे अंग्रेज़ी में ‘ड्रेगन्स टेल’ कहते हैं। हाथ पर इस ग्रह से धन, भौतिक उन्नति एवं बैंक बैलेन्स आदि का अध्ययन किया जाता है।

12. प्लूटो पर्वत : – इसे अंग्रेज़ी में प्लूटो तथा हिन्दी में इन्द्र के नाम से पुकारते हैं। मानसिक चिन्ता तथा अध्यात्मिक उनके बारे में इसी ग्रह से जान सकते हैं।

ग्रहों का क्षेत्र

हस्तरेखा विज्ञान में हथेली में समस्त ग्रहों के स्थान निर्धारित है और सूक्ष्म दृष्टि से देखने पर इनको पहचाना जा सकता है।

1. बृहस्पति :- हथेली में इसका स्थान तर्जनी उंगली के मूल तथा मंगल पर्वत से ऊपर होता है। यह स्वभाव से अधिकार नेतृत्व संचालन तथा लेखन का देवता विशेष रूप में माना गया है। गुरु का पर्वत इन तथ्यों को भली प्रकार से स्पष्ट करता है।

जिन हथेलियों में गुरु का पर्वत सबसे अधिक उभरा हुआ और स्पष्ट होता है, उनमें देव तुल्य सभी गुण पाये जाते हैं। ऐसा व्यक्ति जहां स्वयं की उन्नति करता है वहां दूसरों को भी उन्नति देने में सहायक रहता है।

ऐसे व्यक्ति अपने स्वाभिमान की रक्षा विशेष रूप से करते हैं। ये विद्वान न्याय करने वाले अपने वचनों का निर्वाह करने वाले, परोपकारी तथा समाज में माननीय होते हैं। कठिन से कठिन परिस्थितियों में भी ये विचलित नहीं होते।

देश के जो भी उच्च न्यायाधीश या उच्च पदाधिकारी व्यक्ति हैं, उनमें निश्चय ही गुरु पवंत विकसित अवस्था में होना चाहिए। ऐसे लोगों में यह विशेष क्षमता होती है कि वे जनता को अपने विचारों के अनकूल बना लेते हैं। इनमें धार्मिक भावनाएं जरूरत से ज्यादा होती हैं।

यदि गुरु पवत अल्पविकसित या अविकसित होता है, तो उन व्यक्तियों में उपर्युक्त गुणों की न्यूनता समझनी चाहिए। शारीरिक दृष्टि से ये व्यक्ति साधारण डील-डौल के स्वस्थ तथा हंसमुख होते हैं। वाचन तथा भाषण कला में ये व्यक्ति पर होते हैं तथा हृदय में ऐसे व्यक्ति दयालु और परोपकारी कहे जाते हैं। आर्थिक पक्ष की अपेक्षा सम्मान तथा यश प्राप्ति की ओर इनका झुकाव कुछ ज्यादा ही होता है। अधिकतर स्वतंत्रता और नेतृत्व के इनमें विशेष गुण पाये जाते हैं।

विपरीत योनि के प्रति इनके मन में कोमल भावनाएं होती हैं, सुन्दर तथा सभ्य स्त्रियों से इनका मधुर सम्बन्ध रहता है। यदि स्त्रियों के हाथों में यह पर्वत विकसित अवस्था में होता है, तो उनमें समर्पण की भावना विशेष रूप में पाई जाती है।

यदि इस पर्वत का झुकाव शनि की ओर हो तो ऐसा व्यक्ति चिन्तनशील तथा अपने ही कार्यों में लगा रहने वाला होता है, परन्तु जीवन में पूर्ण सफलता न मिल पाने के कारण धीरे धीरे उनमें निराशा की भावना आने लग जाती है। स्वभाव से ये व्यक्ति गम्भीर तथा जडित प्रकृति के होते हैं। यदि गुरु पर्वत नीचे की तरफ खिसका हुआ हो तो व्यक्ति का जीवन में कई बार बदनामी का सामना करना पड़ता है, परन्तु साहित्यिक क्षेत्र में ऐसे व्यक्ति पूर्ण सफल होते देखे गये है।

यदि यह पर्वत जरूरत से ज्यादा विकासत हो तो ऐसा व्यक्ति स्वार्थी घमंडी तथा स्वेच्छाचारी होता है।

जिनके हाथों में गुरु पर्वत का अभाव होता है उनके जीवन में आत्म-सम्मान की कमी रहती है। माता-पिता का सुख उन्हें बहुत कम मिल पाता है तथा वह निम्न विचारों से सम्पन्न हलके स्तर के मित्रों से सम्बन्धित रहते हैं।

यदि इस पर्वत का उभार सामान्यतः ठीक हो तो व्यक्ति में आगे बढ़ने की भावना होती है, परन्तु इनका विवाह शीघ्र हो जाता है और इनका गृहस्थ जीवन सामान्यतः सुखमय रहता है।

यदि उंगलियां नुकीली हों तथा गुरु पर्वत विकसित हो तो वह व्यक्ति अंधविश्वासी होता है। इसी प्रकार वर्गाकार उंगलियों के साथ विकसित गुरु पर्वत हो तो वह एक प्रकार से जीवन में निरंकुश एवं अत्याचारी बन जाता है।

यदि उंगलियां बहुत लम्बी हों और इस पर्वत का विकास ठीक प्रकार से हुआ हो तो वह व्यक्ति अपव्ययी तथा भोगी होता है। यदि गुरु तथा शनि पर्वत बराबर उभरे हुए हों तथा लगभग एक-दूसरे में मिल गये हों तो वह व्यक्ति प्रबल भाग्यशाली होता है तथा जीवन में विशेष सफलता प्राप्त करता है।

वस्तुतः गुरु पर्वत जीवन में अत्यधिक सहायक तथा उन्नति की ओर अग्रसर करने वाला पर्वत कहा जाता है।

2. शनि :- इसका आधार मध्यमा उंगली के मूल में होता है। हथेली पर इस पर्वत का विकास असाधारण प्रवृत्तियों का सूचक कहा जाता है। यदि हाथ में इस पर्वत का अभाव हो तो व्यक्ति जीवन में विशेष सफलता या सम्मान प्राप्त नहीं कर पाता । मध्यमा उंगली को ‘भाग्य की देवी’ कहा जाता है, क्योंकि भाग्य रेखा या ‘फेट लाइन’ की समाप्ति इसी उंगली के मूल में होती है।

यदि शनि ग्रह पूर्ण विकसित होता है, तो व्यक्ति प्रबल भाग्यवान होता है तथा जीवन में अपने प्रयत्नों से बहुत अधिक ऊंचा उठता है। विकसित पर्वत होने पर ऐसा व्यक्ति एकान्त प्रिय तथा निरंतर अपने लक्ष्य की ओर बढ़ने वाला होता है। वह अपने कार्यों में अथवा लक्ष्य में इतना अधिक डूब जाता है कि वह घर-गृहस्थी की चिंता ही नहीं करता।

स्वभाव से ऐसे व्यक्ति चिड़चिडे तथा सन्देहशील प्रवृत्ति के होते हैं। ज्यों-ज्यों उम्र बढ़ती जाती हैं, त्यों-त्यों ये व्यक्ति भी रहस्यवादी बन जाते हैं। शनि पर्वत प्रधान व्यक्ति जादूगर इंजीनियर, वैज्ञानिक साहित्यकार अथवा रसायनशास्त्री होते हैं। ऐसे व्यक्ति अपने जीवन में पूर्ण मितव्ययी होते हैं तथा अचल सम्पत्ति में ज्यादा विश्वास रखते हैं। संगीत, नृत्य आदि कार्यों में इनका रुझान कम रहता है। सन्देहशीलता इनके जीवन में बचपन में ही होती है औ अपनी पत्नी तथा मित्रों पर भी सन्देह की दृष्टि रखने में नहीं चूकते ।

यदि यह पर्वत अत्यधिक विकसित होता है, तो व्यक्ति अपने जीवन में आत्महत्या कर लेता है। डाकू, ठग, लुटेरे आदि व्यक्तियों के हाथों में यह पर्वत जरूरत से ज्यादा विकसित होता है। ऐसे व्यक्तियों का पर्वत साधारणतः पीलापन लिये हुए होता है। इनकी हथेलिया तथा चमड़ी पीली होती है तथा इनके स्वभाव में चिड़चिड़ापन स्पष्ट झलकता है।

यदि शनि पर्वत गुरु पर्वत की ओर झुका हुआ हो तो यह शुभ संकेत कहा जाता है। ऐसे व्यक्ति समाज में आदरणीय स्थान प्राप्त करते हैं तथा समाज में श्रेष्ठ रूप में देखे जाते हैं।

परन्तु यदि शनि पर्वत का झुकाव सूर्य की ओर हो तो ऐसे व्यक्ति आलसी निर्धन तथा भाग्य के भरोसे जीवित रहने वाले होते हैं। इनमें जरूरत से ज्यादा निराश होती है तथा वे प्रत्येक कार्य का अन्धकार पक्ष ही देखते हैं। परिवार वालों से उनको विशेष लाभ नहीं मिल पाता, व्यापार में ये हानि उठाते हैं।

यदि शनि पर्वत पर जरूरत से ज्यादा रेखाएं हों तो व्यक्ति कायर तथा अत्यधिक भोगी होता है। यदि शनि पर्वत तथा बुध पर्वत दोनों ही विकसित हो तो वह व्यक्ति एक सफल वैद्य अथवा व्यापारी बनता है और उसके जीवन में आर्थिक दृष्टि से किसी प्रकार का कोई अभाव नहीं रहता।

यदि हथेली में शनि पर्वत का अभाव होता है, तो उस व्यक्ति का जीवन महत्त्वहीन-सा होता है। यदि यह पर्वत सामान्य रूप से उभरा हुआ हो तो वह व्यक्ति जरूरत से ज्यादा भाग्य पर विश्वास करने वाला तथा अपने कार्यों में असफलता प्राप्त करने वाला होता है। ऐसे व्यक्तियों के जीवन में मित्रों की संख्या बहुत कम होती है। स्वभाव से ये हठी तथा अधार्मिक होते हैं।

यदि मध्यमा उंगली का सिरा नुकीला हो तथा शनि पर्वत विकसित हो तो व्यक्ति कल्पना-प्रिय होता है, परन्तु यदि उंगली का सिरा वर्गाकार हो तो वह व्यक्ति कृषि अथवा रसायन के क्षेत्र में विशेष उन्नति करता है।

3. सूर्य :- अनामिका उंगली के मूल में तथा हृदय रेखा के ऊपर का जो भाग होता है वह सूर्य पर्वत कहलाता है। ऐसा पर्वत व्यक्ति की सफलता का सूचक होता है । यदि हाथ में सूर्य पर्वत का अभाव हो तो व्यक्ति अत्यन्त साधारण जीवन व्यतीत करता है। इसलिए जिसके हाथ में सूर्य पर्वत नहीं होता, वह एक प्रकार से गुमनाम जिन्दगी ही व्यतीत करता है।

इस पर्वत का विकास मानव के लिए अत्यन्त आवश्यक है और इस पर्वत के विकास से मानव प्रतिभावान् और यशस्वी बनता है। यदि यह पर्वत पूर्ण उन्नत विकसित तथा गुलाबीपन लिए होता है, तो वह व्यक्ति अपने जीवन में अत्यन्त ऊंचे पद पर पहुंचता है।

ऐसा व्यक्ति स्वभाव से हंस-मुख तथा मित्रों में घुल-मिल कर काम करने वाला होता है। इनकी बातें और इनके कार्य समाचार बन जाते हैं तथा जनसाधारण में ये व्यक्ति अत्यन्त लोकप्रिय होते हैं। ऐसे व्यक्ति सफल कलाकार, श्रेष्ठ संगीतज्ञ तथा यशस्वी चित्रकार होते हैं। इन लोगों में प्रतिभा जन्मजात होती है। एक दूसरे के व्यवहार में ये व्यक्ति ईमानदारी बरतते हैं तथा वैभवपूर्ण जीवन बिताने के ये इच्छुक होते हैं। सही रूप में देखा जाए तो ये व्यक्ति व्यापार में विशेष लाभ उठाते हैं तथा इनके जीवन में आय के स्रोत एक से अधिक होते हैं।

ये पूर्ण रूप से भौतिक होते हैं तथा सामने वाले व्यक्ति के मन की थाह तक पहुंचने में अत्यन्त सक्षम होते हैं। अनपढ़ तथा सामान्य घराने के व्यक्ति की हथेली में भी यदि सूर्य पर्वत विकसित हो तो वह व्यक्ति श्रेष्ठ धनी और सम्पन्न होता है। आकस्मिक धन प्राप्ति इनके जीवन में कई बार होती है तथा इनका रहन-सहन अत्यंत राजसी तथा वैभवपूर्ण होता है।

हृदय में ये व्यक्ति साफ होते हैं तथा अपनी गलती को स्वीकार करने में भी हिचकिचाते नहीं सुलझे हुए मस्तिष्क के धनी ये अपना विरोध सहन नहीं कर पाते तथा खरी-खरी बात सामने वाले के मुंह पर कह देने में विश्वास रखते हैं। ऐसे व्यक्ति ही जीवन में महत्त्वपूर्ण पदों पर पहुंच सकते हैं तथा कुछ नया कार्य करके दिखा सकते है।

यदि हथेली में सूर्य पर्वत नहीं होता तो ऐसा व्यक्ति मन्द बुद्धि तथा मूर्ख होता है। यदि यह पर्वत कम विकसित होता है, तो उस व्यक्ति में सौंदर्य के प्रति रुचि तो होती है, परन्तु वे उसमें पूर्ण सफलता प्राप्त नहीं कर पाते।

अत्यन्त श्रेष्ठ तथा सुविकसित सूर्य पर्वत आत्म-विश्वास, सज्जनता, दया, उदारता तथा धन-वैभव का सूचक होता है। ऐसे व्यक्ति सभा वगैरह में लोगों को प्रभावित करने की विशेष क्षमता रखते हैं। इनका आदर बहुत ऊंचा होता है।

यदि यह पर्वत जरूरत से ज्यादा विकसित हो तो वह व्यक्ति अत्यधिक घमण्ड करने वाला तथा झूठी प्रशंसा करने वाला होता है। ऐसे व्यक्तियों के मित्र सामान्य स्तर के लोग होते हैं। ये फिजूल खर्च तथा बात बात पर झगड़ने वाले होते हैं। ऐसे व्यक्ति अपने जीवन में पूर्ण सफलता प्राप्त नहीं कर पाते।

हथेली के पर्वत

यदि सूर्य पर्वत शनि की ओर झुका हुआ हो तो ऐसे व्यक्ति एकान्त-प्रिय तथा निराशावादी भावनाओं से ग्रस्त रहते हैं। इनके जीवन में धन की कमी हमेशा बनी रहती है। किसी भी कार्य को ये पूर्ण जोश से प्रारम्भ करते हैं, परन्तु जितनी उमंग और जोश से ये कार्य प्रारंभ करते हैं, उसी उमंग से उस कार्य को पूरा नहीं कर पाते। कार्य को बीच में ही अधूरा छोड़कर किसी नए कार्य की ओर लग जाते हैं। वस्तुतः शनि की ओर झुका हुआ पर्वत भाग्यहीनता का सूचक है।

यदि यह पर्वत बुध की ओर झुका हो तो व्यक्ति एक सफल व्यापारी तथा श्रेष्ठ धनवान होता है। ऐसे व्यक्ति समाज में सम्माननीय स्थान प्राप्त करने में सफल होते हैं।

यदि सूर्य की उंगली बेडौल होती है, तो वह सूर्य के गुणों में न्यूनता ला देती है। ऐसे व्यक्ति में बदले की भावना बढ़ जाती है तथा लोगों से व्यवहार करते समय वह सावधानी नहीं बरतता, यदि सूर्य पर्वत पर जरूरत से ज्यादा रेखाएं हों तो वह व्यक्ति बीमार रहता है। यदि सूर्य उंगली का सिरा कोणदार हो तथा पर्वत उभरा हुआ हो तो वह व्यक्ति कला के क्षेत्र में विशेष रूचि लेता है। वर्गाकार सिरे व्यावहारिक कुशलता तथा नुकीले सिरे आदर्शवादिता के सूचक कहे जाते हैं।

4. बुध :– कनिष्ठिका उंगली के मूल में जो भाग फूला हुआ अनुभव होता है, वही बुध पर्वत कहलाता है। यह पर्वत भौतिक सम्पदा एवं भौतिक समृद्धि का सूचक होता है, इसीलिए आज के युग में इसका महत्त्व जरूरत से ज्यादा माना जाता है। बुध प्रधान व्यक्ति अपने जीवन में जिस कार्य में भी हाथ डालते हैं, उसमें पूरी-पूरी सफलता प्राप्त कर लेते हैं। ये व्यक्ति उर्वर मस्तिष्क वाले, तीव्र बुद्धि तथा परिस्थितियों को भली प्रकार से समझने वाले होते हैं। अपने जीवन में ये व्यक्ति जो भी कार्य करते हैं, उसे योजनाबद्ध तरीके से करते हैं और इनके हाथों से जो भी कार्य प्रारंभ होता है, उसे पूरा होना ही पड़ता है।

बुध पर्वत का जरूरत से ज्यादा उभार उचित नहीं कहा जा सकता। जिन हथेलियों में बुध पर्वत जरूरत से ज्यादा विकसित होता है, वह चालाक और धूर्त होता है, तथा ऐसे व्यक्ति लोगों को धोखा देने में पटु होते हैं।

यदि बुध पर्वत सामान्य विकसित हो और उस पर वर्ग के आकार का चिन्ह दिखाई दे जाए तो वह व्यक्ति बहुत ऊंचे स्तर का अपराधी होगा, ऐसा समझना चाहिए ये व्यक्ति कानून तोड़ने में विश्वास रखते हैं तथा अस्थिर मति वाले ऐसे व्यक्ति समाज-विरोधी कार्य करने में चतुर होते हैं।

जिनके हाथों में बुध पर्वत सही रूप से विकसित होता है, वे मनोविज्ञान के क्षेत्र में माहिर होते हैं। तथा सामने वाले व्यक्ति को किस प्रकार प्रभावित करना चाहिए, इस बात को ये भली प्रकार से जान लेते हैं। ऐसे व्यक्ति व्यापारिक कार्यों में विशेष सफलता प्राप्त करते हैं।

जिनके हाथों में बुध पर्वत विकसित होता है, वे व्यक्ति अवसरवादी होते हैं, ठीक समय की तलाश में रहते हैं और समय का पूरा-पूरा उपयोग करने में ये दक्ष माने जाते हैं। ऐसे व्यक्ति सफल वक्ता होते हैं।

एक प्रकार से देखा जाए तो ऐसे व्यक्ति पूर्णतः भौतिकवादी कहे जाते हैं। धन संचय करने में ये उचित-अनुचित आदि का कोई ख्याल नहीं रखते। दर्शन, विज्ञान, गणित आदि कार्यों में ये विशेष रुचि लेते हैं तथा ऐसे व्यक्ति जीवन में श्रेष्ठ वकील, श्रेष्ठ वक्ता तथा श्रेष्ठ अभिनेता होते हैं। लेखन के क्षेत्र में भी ऐसे व्यक्ति प्रसिद्धि पाते देखे गए हैं। यात्राओं के ये शौकीन होते हैं तथा घूमना इनकी प्रिय हॉबी होती है। ऐसे व्यक्ति अपने जीवन में पूर्ण सफलता प्राप्त करते हैं।

यदि बुध पर्वत जरूरत से ज्यादा उभरा हुआ होता है तो ऐसे व्यक्ति धन के पीछे पागल रहते हैं। और ‘येन केन प्रकारेण’ धन संचय करना ही ये अपने जीवन का उद्देश्य लानते हैं। यदि बुध पर्वत सूर्य की ओर झुका हुआ हो तो ऐसे व्यक्ति जीवन में आसानी से पूर्ण सफलता प्राप्त कर लेते हैं। साहित्यकार व वैज्ञानिक आदि के हाथों में ऐसा ही बुध पर्वत देखा जाता है। यदि व्यक्ति के हाथ की हथेली लचीली हो तथा उस पर बुध पर्वत का पूरा उभार हो तो व्यक्ति अपने प्रयत्नों से लाखों रुपया इकट्ठा करता है।

यदि हथेली पर बुध पर्वत का अभाव हो तो उसका जीवन दरिद्रता में ही व्यतीत होता है। यदि सामान्य रूप से बुध पर्वत विकसित हो तो आविष्कार तथा वैज्ञानिक कार्यों में उसकी रुचि होती है, यदि कनिष्ठिका उंगली का सिरा नुकीला हो तथा बुध पर्वत विकसित हो तो वह व्यक्ति वाकपटु होता है। यदि सिरा वर्गाकार हो तो व्यक्ति में तर्क-बुद्धि की बाहुल्यता रहती है। चपटा सिरा भाषण कला में विशेष दक्षता प्रदान करता है, यदि कनिष्ठिका जंगली छोटी हो तो व्यक्ति सूक्ष्म बुद्धि रखने वाला होता है।

लम्बी उंगलियों के साथ विकसित बुध पर्वत हो तो वह व्यक्ति स्त्रियों के प्रति विशेष आसक्ति रखने वाला होता है। यदि यह उंगली गांठदार हो तो ऐसा व्यक्ति दृढसंकल्प का धनी होता है। यदि हाथों की उंगलियां लम्बी और पीछे की ओर मुड़ी हुई हों तो ऐसा व्यक्ति धोखा देने में विशेष माहिर होता है।

यदि बुध पर्वत हथेली के बाहर की तरफ झुका हुआ हो तो वह व्यापार के क्षेत्र में विशेष सफलता प्राप्त करता है। यदि बुध पर्वत अपने आप में पूर्णत: श्रेष्ठ एवं विकसित हो तो ऐसा व्यक्ति पूर्ण सफलता प्राप्त कर सकता है।

5. शुक :- अंगूठे के दूसरे पौरूए के नीचे तथा आयु-रेखा से जो घिरा हुआ स्थान होता है उसे हस्तरेखा विशेषज्ञ शुक्र पर्वत के नाम से सम्बोधित करते हैं।

जिसके हाथ में शुक्र पर्वत श्रेष्ठ स्तर का होता है वह व्यक्ति सुन्दर तथा पूर्ण सभ्य होता है। ऐसे व्यक्ति का स्वास्थ्य जरूरत से ज्यादा अच्छा होता है उसके व्यक्तित्व का प्रभाव सामने वाले व्यक्ति पर विशेष रूप से रहता है। ऐसे व्यक्ति में साहस और हिम्मत की कमी नहीं रहती। यदि किसी व्यक्ति के हाथ में यह पर्वत कम विकसित हो तो वह व्यक्ति कायर तथा दब्बू स्वभाव का होता है।

जिन लोगों के हाथों में शुक्र पर्वत जरूरत से ज्यादा विकसित होता है, वे व्यक्ति योगी तथा विपरीत सेक्स के प्रति लालायित रहते हैं। यदि किसी के हाथ में शुक्र पर्वत का अभाव होता है तो वह व्यक्ति वीतरागी साधु तथा सन्यासी की तरह होता है। गृहस्थ जीवन में उसकी रूचि नहीं के बराबर होती है।

यदि शुक्र का विकास पूरी तरह से हुआ हो, परन्तु उसकी मस्तिष्क रेखा सन्तुलित न हो वह व्यक्ति प्रेम तथा भोग के क्षेत्र में बदनामी प्राप्त करता है। ऐसे व्यक्तियों को प्रेम वासना प्रधान ही कहा जा सकता है।

शुक्र पर्वत का उभार व्यक्ति को तेजस्वी और लावण्यमान बना देता है। इसके चेहरे में कुछ ऐसा आकर्षण होता है, जिसकी वजह से लोग बरबस उसकी ओर आकृष्ट रहते हैं। मुसीबतों को भी ये व्यक्ति हंसते-हंसते सहन करते हैं तथा अपने कार्यों एवं कर्तव्यों के प्रति पूर्णतः जागरूक रहते हैं। सुन्दर एवं कलात्मक वस्तुओं के प्रति इनका रुझान स्वाभाविक ही होता है।

यदि हथेली खुरदरी हो तथा उस पर शुक्र पर्वत बहुत ज्यादा विकसित हो तो वह व्यक्ति भोगी तथा ऐयाशी किस्म का होता है। ऐसे व्यक्ति भौतिक सुखों के दास होते हैं, परन्तु यदि हथेली चिकनी एवं मुलायम हो तथा उस पर शुक्र पर्वत पूर्णतः विकसित हो तो ऐसे व्यक्ति एक सफल प्रेमी तथा उत्कृष्ट कोटि के कवि होते हैं।

शुक्र पर्वत की अनुपस्थिति व्यक्ति के जीवन में दुख तथा परेशानियां भर देती है। यदि शुक्र पर्वत सामान्य रूप से विकसित हो तो वह व्यक्ति सुन्दर, शुद्ध प्रेम भाव रखने वाला तथा संवेदनशील होता है।

यदि शुक्र पर्वत मंगल की ओर झुका हुआ हो तो वह प्रेम के क्षेत्र में कोमलता नहीं बरतता। उनके जीवन में बलात्कार की घटनाएं जरूरत से ज्यादा होती हैं।

शुक्र प्रधान व्यक्तियों को गले का रोग विशेष रूप से रहता है। ऐसे व्यक्ति ईश्वर पर आस्था नहीं रखते। इनके जीवन में मित्रों की संख्या बहुत अधिक होती है तथा ये अपने जीवन में प्रेम और सौन्दर्य को ही अपना सब कुछ समझते हैं।

यदि अंगूठे का सिरा कोणदार हो तथा शुक्र पर्वत विकसित हो तो वह व्यक्ति कलात्मक रुचि वाला होता है। यदि अंगूठे का सिरा वर्गाकार हो तो ऐसा व्यक्ति समझदार और तर्क से काम लेने वाला माना जाता है, फैला हुआ सिरा व्यक्ति में दयालुता की भावना भर देता है।

वस्तुतः शुक्र प्रधान व्यक्ति ही इस सुन्दर दुनिया को अच्छी तरह से पहचान सकते हैं और उसका आनन्द उठा सकते हैं।

6. मंगल :- हथेली में दो मंगल होते हैं, जिन्हें उन्नत मंगल तथा अवनत मंगल कहा जाता है।

जीवन रेखा के प्रारम्भिक स्थान के नीचे और उससे घिरा हुआ शुक्र पर्वत के ऊपर जो फैला हुआ भाग है, वही मंगल पर्वत कहलाता है। मूल रूप से यह पर्वत युद्ध का प्रतीक माना जाता है।

मंगल प्रधान व्यक्ति साहसी, निडर तथा शक्तिशाली होते हैं। जिन हाथों में मंगल पर्वत बलवान होता है, वे कायर या दब्बू नही होते। एसे व्यक्तियों के जीवन में दृढ़ता और सन्तुलन होता है। अगर हथेली में मंगल पर्वत का अभाव होता है, तो उस व्यक्ति को कायर समझ लेना चाहिए।

मंगल पर्वत प्रधान व्यक्ति हृष्टपुष्ट तथा पूरी लम्बाई लिए हुए होते हैं। धीरज तथा साहस इनका प्रधान गुण होता है। जीवन में ये अन्याय तो रत्ती भर भी सहन नहीं करते। ऐसे व्यक्ति पुलिस विभाग में या मिलिट्री में अत्यन्त ऊंचे पद पर पहुंचते हैं। शासन करने का इनमें जन्मजात गुण होता है तथा ऐसे ही व्यक्ति समाज में नेतृत्त्व करने में सक्षम होते हैं।

यदि मंगल पर्वत बहुत ज्यादा विकसित हो तो वह व्यक्ति दुराचारी, अत्याचारी तथा अपराधी होता है । समाज-विरोधी कार्यों में वह हमेशा आगे रहता है। उसका स्वभाव लड़ाकू होता है। अपनी बात को जबरदस्ती से मनवाने का यह आदी होता है। ऐसे व्यक्ति बात-बात पर लड़ने वाले, अपने अधिकारों के लिए सब कुछ बलिदान करने वाले, लम्पट तथा धूर्त होते हैं।

यदि मंगल पर्वत का झुकाव शुक्र क्षेत्र की ओर हो तो यह बात निश्चित समझनी चाहिए कि उस व्यक्ति में सद्गुणों की अपेक्षा दुर्गुण विशेष होंगे। यही नहीं अपितु प्रत्येक आवेग की तीव्रता होगी। ऐसे व्यक्ति यदि शत्रुता रखेंगे तो भयंकर शत्रु होंगे और यदि मित्रता का व्यवहार करेंगे तो अपना सब कुछ बलिदान करने के लिए तैयार रहेंगे। ऐसे व्यक्ति झूठी शान-शौकत, व्यर्थ का आडंबर तथा प्रदर्शन-प्रिय होते हैं। यद्यपि ये स्वयं डरपोक होते हैं, परन्तु दूसरों को गीदड़ भभकी देकर काम निकालने में माहिर होते हैं।

सही रूप में देखा जाए तो ऐसे व्यक्ति रूखे ‘कर्कश एवं कठोर’ होते हैं। यदि मंगल पर्वत पर रेखाएं विशेष रूप से दिखाई दें तो यह समझ लेना चाहिए कि ऐसा व्यक्ति युद्ध-प्रिय होता है। आगे चलकर इस प्रकार का व्यक्ति या तो सेनाध्यक्ष बनता है अथवा भयंकर डाकू बन जाता है। जोश दिलाने पर ये सब कुछ बलिदान करने के लिए तैयार रहते हैं। मंगल पर्वत पर त्रिकोण, चतुर्भुज या किसी प्रकार के बिन्दु शुभ नहीं कहे जाते। ऐसे चिन्ह व्यक्ति के रोग को स्पष्ट करते हैं और रक्त से सम्बन्धित बीमारी उनके जीवन में बराबर बनी रहती है।

यदि मंगल पर्वत भली प्रकार से विकसित हो तथा साथ ही हथेली का रंग भी लालिमा लिए हुए हो तो वह व्यक्ति निश्चय ही ऊंचा पद प्राप्त करता है। अपने जीवन में वह बाधाओं की परवाह न करके अपने लक्ष्य तक पहुंच जाने में पूर्ण सफलता प्राप्त करता है।

पीला रंग व्यक्ति को अपराध भावना की ओर प्रवृत्त करता है। यदि हथेली का रंग सामान्य नीलापन लिए हुए हो तो ऐसा व्यक्ति गठिया का रोगी होता है। ऐसे व्यक्ति महत्त्वाकांक्षी होते हैं और अपना लक्ष्य इन्हें बराबर ध्यान में रहता है। जीवन में ये अपने लक्ष्य की ओर बराबर बढ़ते रहते हैं। यदि ये व्यापार के क्षेत्र में प्रवेश करें तो मेडिकल आदि में विशेष सफलता प्राप्त कर सकते हैं।

यदि मंगल पर्वत उभरा हुआ हो और हाथ की उंगलियां कोणदार हों तो व्यक्ति आदर्श प्रिय होता है। वर्गाकार उंगलियां इस बात की सूचक होती हैं कि वे व्यक्ति व्यावहारिक तथा जीवन में फूंक फूंक कर कदम रखने वाले होते हैं। ऐसे व्यक्ति चतुर और चालाक होते हैं तथा अपने हितों की ओर विशेष ध्यान रखते हैं।

यदि उंगलियां गठीली हों तथा मंगल पर्वत उन्नत हो तो व्यक्ति तर्क करने वाला तथा अपने जीवन में सोच-समझ कर कार्य करने वाला होता है। यदि मंगल पर्वत पर क्रॉस का चिन्ह दिखाई दे तो उस व्यक्ति की मृत्यु निश्चय ही युद्ध में या चाकू लगने से होती है। यदि मंगल पर्वत पर आड़ी-तिरछी रेखाएं हों और उससे जाल-सा बन गया हो तो निश्चय ही उसकी मृत्यु दुर्घटना के फलस्वरूप होती है।

वस्तुतः मंगल पर्वत से ही व्यक्ति साहसी, निर्भीक और स्पष्ट वक्ता बनता है।

7. चन्द्र :- चन्द्रमा मनुष्य का सबसे अधिक निकटतम ग्रह है। इसलिए इसका प्रभाव भी मनुष्य पर सबसे अधिक पड़ता है। सही रूप में यह ग्रह सुन्दरता और कल्पना का ग्रह कहा जाता है।

जिन व्यक्तियों के हाथों में चन्द्र पर्वत विकसित होता है, वे व्यक्ति कोमल, रसिक एवं भावुक होते हैं।

जिनके हाथों में चन्द्र पर्वत पूर्णतः उभरा हुआ होता है, वे प्रकृति-प्रिय एवं सौन्दर्यप्रिय होते हैं। ऐसे लोग वास्तविक जीवन से हट कर स्वप्नलोक में ही विचरण करते हैं। इनके जीवन में कल्पनाओं का कोई अभाव नहीं रहता। एक प्रकार से ये व्यक्ति अपने आप में ही खोये हुए होते हैं। जीवन की कठोरताओं को तथा मुसीबतों को ये झेल नहीं पाते और थोड़ी-सी भी परेशानी आने पर ये विचलित हो जाते हैं।

ऐसे व्यक्ति संसार के छल-कपट से दूर तथा एक शान्त और कल्पनामय जग में विचरण करने वाले कहे जाते हैं। ऐसे ही व्यक्ति उत्तम कोटि के कलाकार, संगीतज्ञ और साहित्यकार होते हैं। इनके विचारों में धार्मिकता विशेष रूप में होती है, किसी के दबाव में ये कार्य नहीं कर पाते। इनके विचार स्वतंत्र एवं स्पष्ट होते हैं।

जिनके हाथों में चन्द्र पर्वत का अभाव होता है, वे व्यक्ति कठोर हृदय एवं पूर्ण भौतिकवादी होते हैं। जिनके जीवन में युद्ध ही प्रधान होता है, उनके हाथों में चन्द्र पर्वत का अभाव स्पष्ट देखा जा सकता है।

जिनका चन्द्र पर्वत भली प्रकार से विकसित होता है, वे भौतिकवादी न होकर कल्पनावादी होते हैं। प्रेम तथा सौन्दर्य उनके जीवन की कमजोरी होती है, परन्तु सांसारिक छल-प्रपंचों को न समझ पाने के कारण उनका प्रेम जीवन दुखान्त ही होता है।

यदि चन्द्र पर्वत जरूरत से ज्यादा विकसित हो तो यह व्यक्ति पागल होता है।

यदि चन्द्र पर्वत मध्यम स्तर का विकसित हो तो ऐसा व्यक्ति कल्पनालोक में विचरण करने वाला तथा हवाई किले बनाने वाला होता है, वे खाट पर पड़े-पड़े लाखों करोड़ों की योजनाएं बना लेते हैं, पर उनमें एक भी पूरी नहीं हो पाती या यों कहा जाए कि उनमें उन योजनाओं को पूरा करने की योग्यता अथवा साहस नहीं होता ।

ऐसे व्यक्ति जरूरत से ज्यादा भावुक होते हैं। छोटी-सी भी बात इनको बहुत अधिक चुभती है। छोटा-सा भी व्यंग्य इनके पूरे शरीर को झकझोर देता है। ऐसे लोगों में संघर्ष की भावना नहीं के बराबर होती है। विपरीत परिस्थितियों में ये पलायन कर जाते हैं और धीरे-धीरे इनमें निराशा की भावना बढ़ जाती है।

यदि चन्द्र पर्वत विकसित होकर हथेली के बाहर की ओर झुक जाता है, तो ऐसे व्यक्ति में रजोगुण की प्रधानता बन जाती है। ऐसे व्यक्ति भोगी, विषयी तथा कामी हो जाते हैं एवं सुन्दर स्त्रियों के पीछे व्यर्थ के चक्कर लगाते रहते हैं। इनके जीवन का ध्येय भोग-विलास एवं ऐयाशी होता है, परन्तु जीवन में ये सुख भी उनको नसीब नहीं होते।

यदि हथेली में यह पर्वत शुक्र की ओर झुकता हुआ अनुभव हो तो ऐसे व्यक्ति कामुक होने के साथ-साथ निर्लज्ज भी होते हैं। इनको अपने पराये का भी भेद नहीं रहता, जिसके फलस्वरूप वे व्यक्ति समाज में बदनाम हो जाते हैं।

यदि चन्द्र पर्वत पर आड़ी-टेढ़ी रेखाएं फैली हुई दिखाई दें तो ऐसा व्यक्ति कई बार जलयात्राएं करता है। यदि चन्द्र पर्वत पर गोल घेरा हो तो वह व्यक्ति राजनीतिक कार्य से विदेश की यात्रा करता है। यदि हाथ में चन्द्र पर्वत का अभाव हो तो वह व्यक्ति रूखा और पूर्णतः भौतिक होता है । परन्तु जिनका चन्द्र पर्वत सामान्य रूप से उभरा हुआ होता है, वे आन्तरिक दृष्टि से अत्यधिक सुन्दर एवं समझदार होते हैं। यदि यह पर्वत ऊपर की ओर से उभरा हुआ होता है, तो उसे गठिया अथवा जुकाम जैसे रोग बने रहते हैं। यदि यह पर्वत जरूरत से ज्यादा विकसित हो तो वह अस्थिर बुद्धि का, निराश, बहमी तथा लगभग पागल सा होता है। इसको सिर दर्द की शिकायत बराबर बनी रहती है। यदि यह पर्वत नीचे की तरफ खिसका हुआ हो तो वह व्यक्ति शक्तिहीन होता है।

यदि चन्द्र पर्वत पर शंख का चिन्ह हो तो वे व्यक्ति अपने ही प्रयत्नों से सफल होते हैं, परन्तु उनकी सफलता में बराबर बाधाएं और परेशानियां बनी रहती हैं। इतना होने पर भी वे जीवन को सही रूप से जीने में तथा दूसरों को सहयोग एवं सहायता देने में विश्वास रखते हैं।

वस्तुतः हाथ में चन्द्र पर्वत से ही व्यक्ति कल्पनाप्रिय, सौन्दर्यप्रिय तथा भावुक हो सकर्ता है।

8. हर्षल :- यदि वास्तव में देखा जाए तो यह ग्रह दूसरे ग्रहों की अपेक्षा ज्यादा बलवान एवं समर्थ होता है। हथेली में इसका क्षेत्र हृदय तथा मस्तिष्क रेखा के बीच में होता है। सही रूप में इसका क्षेत्र भली प्रकार से कनिष्ठिका के नीचे, बुध पर्वत से थोड़ा-सा नीचे अनुभव किया जा सकता है।

इस ग्रह का प्रभाव हृदय तथा मस्तिष्क पर विशेष रूप से होता है। जिन व्यक्तियों की हथेली में यह पर्वत बुध के नीचे तथा हृदय एवं मस्तिष्क रेखा के बीच में होता है, वह व्यक्ति विश्व प्रसिद्ध वैज्ञानिक और गणितज्ञ बनता है। अणु, परमाणु, टेलीविजन आदि जटिल यत्रों के निर्माण तथा रचना में ऐसे व्यक्ति पूर्णतः सफल होते हैं।

यदि इस पर्वत का उभार कम होता हैं तो ऐसे व्यक्ति मशीनरी से सम्बन्धित कार्यों में रुचि लेते हैं तथा ऐसे ही स्थानों पर नौकरी करके संतुष्ट होते हैं।

यदि इस पर्वत पर त्रिकोण या चतुर्भुज का चिन्ह हो तो वह व्यक्ति आश्चर्यजनक रूप से प्रगति करता है तथा अपने कार्यों से विश्वस्तरीय सम्मान प्राप्त करता है। समाज में उसका सम्मान होता है और उसे अपने जीवन में आशा से अधिक सफलता मिलती है।

यदि हर्षल पर्वत से कोई रेखा अनामिका उंगली की ओर जाती है, तो वह व्यक्ति जीवन में विश्व प्रसिद्ध होता है। यदि हर्षल पर्वत का झुकाव बुध पर्वत की ओर विशेष रूप से होता है, तो ऐसा व्यक्ति अपनी प्रतिभा का दुरुपयोग करता है और एक प्रकार से वह व्यक्ति अन्तर्राष्ट्रीय ठग या लुटेरा हो जाता है। ऐसे व्यक्ति हृदय रोग से भी बराबर पीड़ित रहते हैं।

यदि हर्षल पर्वत नेपच्यून की ओर झुकता हुआ दिखाई दे तो ऐसे व्यक्ति को पूर्णत: भोगी समझना चाहिए। ऐसा व्यक्ति एक पत्नी से सन्तुष्ट न होकर भटकता फिरता है। उसका गृहस्थ जीवन एक प्रकार से बरबाद हो जाता है तथा उसे अपनी पत्नी तथा अपने पुत्रों से किसी प्रकार का कोई मोह नहीं होता। जीवन में जरूरत से ज्यादा व्यसनों में लिप्त होकर यह अपना स्वास्थ्य एवं सौन्दर्य खो बैठता है ।

9. नेपच्यून :- यह ग्रह पृथ्वी से बहुत अधिक दूरी पर स्थित होने के कारण इसका प्रभाव पृथ्वीवासियों पर बहुत कम पड़ता है, परन्तु फिर भी इसका प्रभाव मानव जीवन पर जो भी पड़ता है, वह स्थायी होता है और अपने आप में आश्चर्यजनक परिणाम दिखाता है।

हथेली में इस ग्रह का क्षेत्र मस्तक रेखा से नीचे तथा चन्द्र क्षेत्र से ऊपर होता है। यदि यह क्षेत्र अथवा यह पर्वत विशेष रूप से उभरा हुआ हो तो वह व्यक्त श्रेष्ठ संगीतज्ञ, कवि अथवा लेखक होता है। यदि इस पर्वत पर रेखा दिखाई दे और यदि वह रेखा आगे चलकर भाग्य रेखा से मिल जाए तो वह व्यक्ति जीवन में अत्यधिक महत्त्वपूर्ण पद पर पहुंचता है।

यदि इस पर्वत का झुकाव चन्द्र क्षेत्र की तरफ विशेष हो तो उसका स्तर अपने आप में अत्यन्त घटिया होता है। ऐसा व्यक्ति संकीर्ण मनोवृत्ति वाला तथा समाज विरोधी कार्य करने वाला होता है।

यदि नेपच्यून पर्वत से उठकर कोई रेखा मस्तिष्क रेखा को काट लेती है, तो वह व्यक्ति निश्चय ही पागल होता है तथा उसके जीवन का अधिकतर हिस्सा पागलखाने में ही व्यतीत होता है ।

यदि यह पर्वत जरूरत से ज्यादा उभरा हुआ हो तो ऐसे व्यक्ति का जीवन दुखमय होता है तथा उसका गृहस्थ जीवन बरबाद हो जाता है। ऐसे व्यक्ति सनकी, संशयाल तथा क्रूर प्रकृति के माने जाते हैं।

यदि नेपच्यून पर्वत विकसित होकर हर्षल से मिल जाता है, तो वह व्यक्ति जीवन में निश्चय ही धन के लालच में किसी की हत्या करेगा. ऐसा समझ लेना चाहिए। ऐसे व्यक्ति अपने कार्यों के प्रति लापरवाह होते हैं, तथा कार्य हो जाने के बाद पछताते रहते हैं।

यदि इस पर्वत पर क्रॉस का चिन्ह हो तो उसका पूरा जीवन गरीबी तथा निर्धनता में बीतता है। ऐसे व्यक्ति अपने जीवन की आवश्यकताओं को भी भली प्रकार से पूरा नहीं कर पाते।

10. प्लूटो :- अंग्रेज़ी में इस ग्रह को प्लूटो तथा हिन्दी में इसे ‘इन्द्र’ के नाम से पुकारते हैं। हथेली में इसका क्षेत्र हृदय रेखा के नीचे तथा मस्तिष्क रेखा के ऊपर होता है, और यह हर्षल तथा गुरु क्षेत्र के बीच में अवस्थित होता है। प्रत्येक व्यक्ति के हाथ में इस पर्वत को स्पष्टता से देखा जा सकता है।

इसका प्रभाव व्यक्ति की वृद्धावस्था में ही देखने को मिलता है। यदि यह पर्वत भली प्रकार से विकसित होता है, तो उस व्यक्ति का बुढ़ापा अपने आप में अत्यन्त सुखी एवं सफल रहता है। जीवन के 42वें वर्ष से आगे वह जीवन में सुख अनुभव करने लगता है और मृत्युपर्यन्त वह सभी दृष्टियों से सुखी ही रहता है।

यदि यह पर्वत जरूरत से ज्यादा विकसित हो तो वह व्यक्ति असभ्य, मूर्ख, निरक्षर तथा अपव्ययी होता है। इसको जीवन में पग-पग पर कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है तथा जीवन में परिवार वालों का तथा मित्रों का किसी भी प्रकार से कोई सहयोग नहीं मिलता।

यदि यह पर्वत अविकसित हो तो वह व्यक्ति भाग्यहीन माना जाता है। उसका स्वभाव चिड़चिड़ा तथा दुखमय हो जाता है।

11. राहु :- हथेली में इस पर्वत की स्थिति मस्तिष्क रेखा से नीचे चन्द्र, मंगल, तथा शुक्र से घिरा जो भूभाग होता है, वह राहु क्षेत्र कहलाता है। भाग्य रेखा इसी पर्वत पर से होकर शनि पर्वत की ओर जाती है।

राहु का क्षेत्र यदि हथेली पर अत्यन्त पुष्ट एवं उन्नत हो तो ऐसा व्यक्ति निश्चय ही भाग्यवान होता है और यदि पुष्ट पर्वत पर से होकर भाग्य रेखा स्पष्ट तथा गहरी होकर आगे बढ़ती है तो वह व्यक्ति जीवन में परोपकारी, प्रतिभावान, धार्मिक तथा सभी प्रकार से सुख भोगने वाला होता है।

यदि हथेली पर भाग्य रेखा टूटी हुई हो पर राहु पर्वत विकसित हो तो ऐसा व्यक्ति एक बार आर्थिक दृष्टि से बहुत अधिक ऊंचा उठ जाता है और फिर उसका पतन हो जाता है।

यदि यह पर्वत अपने स्थान से हटकर हथेली के मध्य की ओर सरक जाता है, तो उस व्यक्ति को यौवनकाल में बहुत अधिक बुरे दिन देखने को मिलते हैं। यदि हथेली के बीच का हिस्सा गहरा हो और उस पर से भाग्य रेखा टूटी हुई आगे बढ़ती हो तो वह व्यक्ति यौवनकाल में भिखारी के समान जीवन व्यतीत करता है।

यदि राहु पर्वत कम उभरा हुआ हो तो ऐसा व्यक्ति चंचल स्वभाव का तथा अपने ही हाथों अपनी सम्पत्ति का नाश करने वाला होता है।

12. केतु :- हथेली में इस पर्वत का स्थान मणिबन्ध के ऊपर शुक्र और चन्द्र क्षेत्रों को बांटता हुआ भाग्य रेखा के प्रारम्भिक स्थान के समीप होता है। इस ग्रह का फल राहु के समान ही देखा गया है।

इस ग्रह का प्रभाव जीवन के पांचवें वर्ष से बीसवे वर्ष तक होता है। यदि यह पर्वत स्वाभाविक रूप से उन्नत एवं पुष्ट होता है तथा भाग्य रेखा भी स्पष्ट तथा गहरी हो तो वह व्यक्ति भाग्यशाली होता है तथा अपने जीवन में समस्त प्रकार के सुखों का भोग करता है। ऐसा बालक गरीब घर में जन्म लेकर भी अमीर होता देखा गया है।

यदि यह पर्वत अस्वाभाविक रूप से उठा हुआ हो और भाग्य रेखा कमजोर हो तो उसे बचपन में बहुत अधिक बुरे दिन देखने पड़ते हैं। उसके घर की आर्थिक स्थिति धीरे-धीरे कमजोर होती जाती है तथा शिक्षा के लिए भी ऐसे बालक को बहुत अधिक परेशानियों का सामना करना पड़ता है। ऐसा बालक बचपन में रोगी भी होता है।

यदि यह पर्वत अविकसित हो और भाग्य रेखा प्रबल भी हो फिर भी उसके जीवन दरिद्रता नहीं मिटती, अतः केतु पर्वत विकसित हो और साथ ही भाग्य रेखा भी स्पष्ट और विकसित हो तभी व्यक्त जीवन में पूर्ण उन्नति कर सकता है।


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