हाथ की रेखाएं

हथेली पर अंकित कोई भी रेखा व्यर्थ नहीं होती, इसलिये हस्तरेखा विशेषज्ञ को चाहिए कि वह हथेली पर पाई जाने वाली प्रत्येक रेखा का सूक्ष्म अध्ययन करे।

हथेली पर जो रेखाएं स्पष्ट, गहरी एवं लंबी होती हैं, वे सफलता की सूचक होती हैं। इसके विपरीत टूटी हुई विरल और अस्पष्ट रेखाएं जीवनशक्ति में बाधक समझनी चाहिए। अतः स्पष्ट रेखाओं का प्रभाव ही मानव जीवन पर सही रूप में अंकित होता है।

हस्तरेखा विशेषज्ञ को चाहिए कि वह सामने वाले व्यक्ति के दोनों हाथों का सूक्ष्मतापूर्वक अध्ययन करे। साथ ही वह छोटी से छोटी रेखा का भी अवलोकन करे, क्योंकि हाथ में पाई जाने वाली प्रत्येक रेखा का अपना महत्व होता है और वह रेखा किसी न किसी घटना को स्पष्ट करती ही है।

रेखाओं द्वारा घटनाओं का समय भी ज्ञात किया जा सकता है। जितना ही ज्यादा व्यक्ति का अभ्यास होगा उतना ही ज्यादा वह उस समय को सही रूप में अंकित कर सकता है।

हाथ का अध्ययन करने से पूर्व रेखाओं का सही-सही परिचय ज्ञात कर लेना आवश्यक है। प्रत्येक व्यक्ति के हाथ में सात मुख्य रेखाएं होती हैं तथा बारह गौण रेखाएं या सहायक रेखाएं होती हैं। सात मुख्य रेखाएं निम्नलिखित हैं।

1. जीवन रेखा, 2. मस्तिष्क रेखा, 3. हृदय रेखा, 4. सूर्य रेखा, 5. भाग्य रेखा, 6. स्वास्थ्य रेखा, 7. विवाह रेखा ।

इनके अतिरिक्त बारह गौण रेखाएं होती हैं। यद्यपि ये गौण रेखाएं कहलाती हैं, परन्तु हथेली में इनका महत्व स्वतंत्र होता है और वह जीवन में बहुत अधिक महत्त्व रखने वाली होती हैं।

गौण रेखाएं :- गुरु वलय, मंगल रेखा, शनि वलय, रवि वलय शुक्र वलय, चन्द्र रेखा, प्रतिभा प्रभावक रेखा, यात्रा रेखा, सन्तति रेखा, मणिबन्ध रेखाएं, आकस्मिक रेखाएं, उच्च पद रेखाएं ।

इन रेखाओं का अध्ययन सावधानी के साथ करना चाहिए। परन्तु रेखाओं का अध्ययन करने से पूर्व रेखा के बारे में भी जानकारी प्राप्त कर लेनी उचित रहेगी। मुख्यतः चार प्रकार की रेखाएं होती हैं :-

1. मोटी रेखाएं :- ये वे रेखाएं होती हैं जो अपने आप में गहरी स्पष्ट और सामान्यतः चौड़ाई लिये हुए होती हैं। ऐसी रेखाएं धुंधल में भी स्पष्ट देखी जा सकती हैं।

2. पतली रेखाएं :- ये रेखाएं प्रारम्भ से लेकर अन्त तक पतली परन्तु स्पष्ट होती हैं। ऐसी रेखाएं ज्यादा प्रभावपूर्ण कही जाती हैं ।

3. गहरी रेखाएं :- ये रेखाएं सामान्यतः पतली तो होती हैं, परन्तु साथ ही साथ गहरी भी होती हैं, और ऐसा प्रतीत होता है, जैसे हथेली के मांस में धंसी हुई सी हों ।

4. ढलवां रेखाएं :- ये रेखाएं प्रारम्भ में तो मोटी होती हैं, परन्तु ज्यों-ज्यों आगे बढ़ती हैं त्यों-त्यों अपेक्षाकृत पतली होती जाती हैं।

इन रेखाओं की जानकारी के साथ-ही-साथ निम्न प्रकार की जानकारी भी पाठकों के लिए आवश्यक कही जाती है।

1. रेखाएं स्पष्ट सुन्दर लालिमा लिये हुए तथा साफ-सुथरी होनी चाहिए। इनके मार्ग में न तो किसी प्रकार का चिन्ह होना चाहिए और न किसी प्रकार का द्वीप होना चाहिए। साथ ही ये रेखाएं टूटी हुई भी नहीं होनी चाहिए।

2. यदि हथेली में रेखाएं किंचित पीलापन लिये हुए हों तो ऐसी रेखाएं स्वास्थ्य में कमी और रक्त दूषिता को स्पष्ट करती हैं। ऐसी रेखाएं निराशावादी भावना को भी बताती हैं।

3. रक्तिम रेखाएं व्यक्ति की प्रसन्नता और स्वस्थ मनोवृत्ति को स्पष्ट करती हैं। इससे ऐसा ज्ञात होता है कि व्यक्ति प्रसन्नचित्त स्वस्थ और स्पष्ट वक्ता है।

4. हथेली पर काली रेखाएं पाया जाना निराशा तथा कमजोरी सूचित करता है।

5. कमजोर रेखाएं भविष्य में आने वाली बाधाओं की सूचक कही जाती हैं ।

6. यदि किसी रेखा के साथ-साथ कोई और रेखा आगे बढ़ती हो, तो उस रेखा को विशेष बल मिलता है और उस रेखा का प्रभाव विशेष समझना चाहिए।

7. यदि किसी टूटी हुई रेखा के साथ-साथ सहायक रेखा चलती हुई दिखाई दे तो उस भग्न रेखा का विपरीत फल न्यूनतम होता है।

8. जीवन रेखा के अलावा यदि कोई रेखा अपने अन्तिम सिरे पर जाकर दो भागों में विभक्त हो जाती है, तो ऐसी रेखा अत्यन्त श्रेष्ठ एवं प्रभावपूर्ण मानी जाती है, परन्तु यदि हृदय रेखा अन्त में जाकर दो भागों में विभक्त होती है, तो ऐसे व्यक्ति की मृत्यु कम आयु में ही हार्ट अटैक से हो जाती है।

9. यदि कोई रेखा अपने अन्तिम सिरे पर जाकर कई भागों में बंट जाय तो उस रेखा का फल विपरीत समझना चाहिए।

10. यदि किसी रेखा में से कोई नयी रेखा निकल कर ऊपर की ओर बढ़ती हो, तो उस रेखा के फल में वृद्धि होती है।

11. यदि किसी रेखा में से कोई रेखा निकल कर नीचे की ओर झुक रही हो या नीचे के भाग की ओर गतिशील हो, तो उसका विपरीत फल मिलता है।

12. भोग रेखा या प्रणय रेखा में से कोई रेखा निकल कर ऊपर की ओर बढ़ रही हो, तो सुन्दर पति मिलने का योग बनता है इसके विपरीत यदि उसमें से कोई रेखा निकलकर नीचे की ओर बढ़ रही हो, तो उस व्यक्ति की पत्नी की मृत्यु शीघ्र ही हो जाती हैं।

13. यदि मस्तिष्क रेखा में से कोई रेखा ऊपर की ओर बढ़ रही हो, तो वह व्यक्ति विशेष यश प्राप्त करता है।

14. जंजीरदार रेखा अशुभ मानी गई है।

15. यदि विवाह रेखा जंजीरदार हो, तो उसको प्रेम में असफलता मिलती है।

16. यदि मस्तिष्क रेखा जंजीरदार दिखाई दे तो वह व्यक्ति पागल बन जाता है।

17. हथेली में लहरियादार रेखा शुभ फल देने वाली नहीं होती।

18. टूटी हुई रेखाएं अशुभ फल ही देती हैं।

19. यदि कोई रेखा बहुत अधिक सूक्ष्म और कमजोर हो, तो उसका प्रभाव नहीं के बराबर होता है।

20. यदि किसी रेखा के मार्ग में द्वीप या कोई चिन्ह हो, तो उसे शुभ नहीं समझना चाहिए।

21. यदि रेखा के मार्ग में वर्ग हो, तो इससे उस रेखा को बल मिलता है तथा उस रेखा का शुभ फल प्राप्त होना है।

22. यदि रेखा पर कोई बिन्द हो तो इसमें इस रेखा से सम्बन्धित कार्य की हानि होती है।

23. यदि किसी रेखा पर त्रिकोण का चिन्ह दिखाई दे तो उस रेखा से सम्बन्धित कार्य शीघ्र ही होना चाहिए।

24. रेखाओं पर तिरछी रेखाएं हानिकारक मानी गई हैं।

25. यदि रेखाओं पर नक्षत्र दिखाई दे तो इससे कार्य सफलता शीघ्र प्राप्त होती है।

26. मोटी रेखाएं व्यक्ति की दुर्बलता को स्पष्ट करती हैं।

27. पतली रेखाएं व्यक्ति के जीवन में श्रेष्ठ फल देने में समर्थ मानी गई हैं।

28. डलवा रेखाएं व्यक्ति के परिश्रम को तो स्पष्ट करती है, परन्तु उससे श्रेष्ठ फल मिलने का योग नहीं बनता ।

29. यदि कोई गहरी रेखा चलते-चलते बीच में ही रुक जाए या कमजोर पड़ जाये तो ऐसी रेखा दुर्घटना की परिचायक होती है।

30. रेखा यदि कहीं पर पतली और कहीं पर मोटी हो, तो वह शुभ नहीं है और ऐसा व्यक्ति जीवन में कई बार धोखा खायेगा ऐसा समझना चाहिए।

31. रेखाओं के बारे में सावधानी के साथ विचार करना चाहिए और यदि कोई चिन्ह दोनों ही हाथों में दिखाई दे तभी उससे सम्बन्धित भविष्य कथन करना चाहिए।

रेखाओं के उद्गम स्थान

पीछे की पंक्तियों में मैंने रेखाओं के बारे में साधारण जानकारी दी है, परन्तु हमें यह भी ज्ञात करना चाहिए कि इन रेखाओं का वास्तविक उद्गम स्थान कौन-सा होता है।

1. जीवन रेखा :- इसे अंग्रेज़ी में ‘लाइफ लाइन कहते हैं। पूरी हथेली में इस रेखा का महत्व सबसे अधिक है, क्योंकि यदि जीवन है तो सब कुछ है, जिस दिन जीवन ही समाप्त हो जायगा, उस दिन बाकी रेखाओं का प्रभाव भी व्यर्थ हो जायगा ।

जीवन रेखा बृहस्पति पर्वत के नीचे हथेली की बगल से उठ कर तर्जनी और अंगूठे के बीच में से प्रारंभ होकर शुक्र पर्वत को घेरती हुई मणिबन्ध पर जाकर विश्राम करती है।

संसार में जितने भी प्राणी हैं, उन सबके हाथों में यह रेखा यहीं पर दिखाई देती है। इसी रेखा से व्यक्ति की आयु स्वास्थ्य, बीमारी, स्वस्थता आदि की जानकारी अथवा ज्ञान प्राप्त होता है।

सभी व्यक्तियों के हाथों में यह रेखा एक सी दिखाई नहीं देती, कुछ लोगों के हाथों में यह रेखा गहरी और लम्बी होती है, तो कुछ रेखाएं व्यक्ति के शुक्र पर्वत को बहुत संकीर्ण बना लेती हैं। किसी-किसी व्यक्ति के हाथ में यह रेखा शुक्र पर्वत के पास में जाकर टूट-सी जाती है। ऐसे व्यक्ति निश्चय ही कम आयु के होते हैं तथा उनकी मृत्यु दुर्घटना से होती है ।

जीवन रेखा से व्यक्ति के सम्पूर्ण जीवन के बारे में साधारणतः जाना जा सकता है।

2. मस्तिष्क रेखा :- अंग्रेज़ी में इस रेखा को ‘हेड लाइन’ कहते हैं। इस रेखा का प्रारंभ बृहस्पति पर्वत के पास से या बृहस्पति पर्वत के ऊपर से होता है।

अधिकांश हाथों में मैंने जीवन रेखा और मस्तिष्क रेखा का उद्गम एक ही स्थान पर देखा है। परन्तु कई हाथों में यह उद्गम एक ही न होकर पास-पास हाता देखा गया है। यह रेखा हथेली को दो भागों में बांटती हुई राहु और हर्षल क्षेत्रों को अलग-अलग करती हुई बुध क्षेत्र के नीचे तक चली जाती है। इस पूरी रेखा को मस्तिष्क रेखा कहते हैं।

इस रेखा की स्थिति अलग-अलग हाथों में अलग-अलग प्रकार से देखी जाती है।

जिन व्यक्तियों का मस्तिष्क पैना, उर्वर तथा क्रियाशील होता है या जो व्यक्ति मुख्यतः बुद्धिजीवी होते हैं, उन व्यक्तियों के हाथों में यह रेखा लम्बी, गहरी और स्पष्ट होती है।

इसके विपरीत जो शारीरिक श्रम करने वाले होते हैं या जिनका मस्तिष्क कमजोर होता है अथवा जो श्रमजीवी होते हैं, उनके हाथों में या तो यह रेखा धूमिल और अस्पष्ट-सी होती है अथवा यह रेखा बीच-बीच में कई स्थान पर टूटी हुई-सी दिखाई देती है। इस रेखा से मानव के मस्तिष्क का भली-भांति अध्ययन किया जा सकता है।

3. हृदय रेखा : – इस रेखा को अंग्रेज़ी में ‘हार्ट लाइन’ हैं। यह रेखा बुध पर्वत के नीचे से प्रारंभ होकर बुध तथा प्रजापति के क्षेत्रों को अलग-अलग करती हुई तर्जनी के नीचे या गुरु पर्वत के नीचे तक पहुंच जाती हैं।

सामान्यतः यह रेखा सभी व्यक्तियों के हाथों में दिखाई देती है, क्योंकि इस रेखा का सीधा सम्बन्ध हृदय से होता है, परन्तु मैंने कुछ डाकुओं एवं हृदयहीन व्यक्तियों के हाथों में इस रेखा का सर्वथा अभाव ही देखा है। जिन व्यक्तियों के हाथों में यह रेखा कमजोर होती है, वस्तुतः वे व्यक्ति अमानवीय एवं क्रूर होते हैं।

अलग-अलग हाथों में यह रेखा अलग-अलग लम्बाई लिये हुए होती है। किसी हाथ में यह रेखा तर्जनी तक, किसी हाथ में मध्यमा तक तो किसी हाथ में अनामिका तक ही जाकर समाप्त हो जाती हैं। मैंने कुछ हाथों में यह रेखा गुरु क्षेत्र को पार कर हथेली के दूसरे छोर तक पहुंचती हुई भी देखी है, परन्तु ऐसी लम्बी रेखा बहुत कम लोगों के हाथों में ही होती है।

4. सूर्य रेखा :- अंग्रेज़ी में इसे ‘अपोलो लाइन’ या ‘सन लाइन’ अथवा ‘लाइन आफ सक्सेस’ भी कहते हैं। हिन्दी में इस रेखा को सूर्य रेखा, रवि रेखा अथवा प्रतिभा रेखा कहते हैं। इस रेखा का उद्गम विभिन्न व्यक्तियों के हाथों में विभिन्न स्थानों से देखा गया है परन्तु एक बात सभी व्यक्तियों के हाथों में समान होती है, वह यह कि इस रेखा की समाप्ति सूर्य पर्वत पर जाकर होती है। सूर्य रेखा उसी रेखा को माननी चाहिए, जिसकी समाप्ति सूर्य पर्वत पर होती हो।

5. भाग्य रेखा : – इसे अंग्रेजी में फेट लाइन कहते हैं। हिन्दी में इसे भाग्य रेखा अथवा प्रारब्ध रेखा भी कहते हैं।

यह रखा सभी व्यक्तिया के हाथा में दिखाई नही देती। साथ ही इस रेखा के उद्गम भी कई होते हैं, परन्तु एक बात भली प्रकार से समझ लेनी चाहिए कि जिस रेखा की समाप्ति शनि पर्वत पर होती है, वही रेखा भाग्य रेखा कहला सकती है। जब तक यह शनि पर्वत पर नहीं पहुंच जाती तब तक इस रेखा को भाग्य रेखा कहना उचित नहीं ।

कई हाथों में यह रेखा बुध पर्वत पर भी पहुंच जाती है परन्तु वास्तव में यह रेखा भाग्य रेखा न होकर कोई अन्य रेखा ही होती है। इस रेखा का विकास हथेली में नीचे मे ऊपर की ओर होता है। कुछ हाथों में यह रेखा शक्र पर्वत से प्रारंभ होती है, तो कुछ हाथों में यह रेखा मणिबन्ध में प्रारंभ होकर ऊपर की ओर उठती हुई दिखाई देती है। कुछ हाथों में यह रेखा सूर्य पर्वत के पास से भी निकल कर शनि पर्वत पर पहुंच जाती है।

6. स्वास्थ्य रेखा :- अंग्रेजी में इस रेखा को ‘हेल्थ लाइन’ कहते हैं। इस रेखा का सम्बन्ध स्वास्थ्य से होता है, परन्तु इस रेखा के उद्गम का कोई निश्चित स्थान नहीं है। यह हथेली में मंगल पर्वत से, जीवन रेखा से, हथेली के बीच में से या कहीं से भी प्रारम्भ हो सकती है, परन्तु यहां यह बात स्मरण रखनी चाहिए कि इस रेखा की समाप्ति बुध पर्वत पर ही होती है और जो रेखा बुध पर्वत तक पहुंचती है, वास्तव में वही रेखा स्वास्थ्य रेखा कहला सकती है।

कुछ हाथों में यह रेखा बहुत मोटी होती है, तो कुछ हाथों में यह रेखा बाल से भी पतली देखी जा सकती है। इस रेखा का अध्ययन अत्यन्त सावधानी के साथ किया जाना चाहिए। इसके माध्यम से स्वास्थ्य, तन्दुरुस्ती, बीमारी आदि का अध्ययन होता है।

7. विवाह रेखा : – इसे अंग्रेज़ी में ‘लव लाइन’ या ‘मैरिज लाइन कहते हैं। यह बुध पर्वत पर होती है। हथेली के बाहरी भाग में बुध पर्वत की ओर अन्दर की तरफ आती हुई जो रेखा होती है, वही विवाह रेखा कहलाती है। कुछ लोगों के हाथों में ऐसी तीन चार रेखाएं होती हैं, परन्तु इससे यह नहीं समझ लेना चाहिए कि उस व्यक्ति का विवाह तीन चार स्त्रियों से होगा, परन्तु इसका अर्थ यह होता है कि उसका सम्बन्ध तीन चार प्राणियों से अवश्य ही रहेगा। इन तीन चार रेखाओं में से जो रेखा गहरी और स्पष्ट होती है, वास्तव में वही रेखा विवाह रेखा कहलाती है।

कई बार यह भी देखने में आया है कि व्यक्ति के हाथ में विवाह रेखा होते हुए भी वह आजीवन कुंआरा रहता है। इसका कारण यह है कि जब विवाह रेखा पर किसी प्रकार का कोई क्रॉस बना हुआ हो, तो यह समझ लेना चाहिए कि इस व्यक्त के सम्बन्ध बन कर समाप्त हो जायेंगे। जीवन में विवाह नहीं हो सकेगा। यदि विवाह रेखा के साथ में चलने वाली किसी रेखा पर छोटे-छोटे चिन्ह हों, तो उस व्यक्ति के जीवन में अनैतिक सम्बन्ध बने रहते हैं ।

ऊपर मैंने सात प्रमुख रेखाओं की विवेचना की है, अब आगे मैं गौण रेखाओं के बारे में जानकारी प्रस्तुत कर रहा हूं।

1. वृहस्पतिवलय : – इसे अंग्रेज़ी में ‘रिंग आफ़ जुपिटर’ कहते हैं। हिन्दी में इसको गुरुमुद्रा या गुरु रेखा भी कहते हैं। यह तर्जनी उंगली से नीचे बृहस्पति पर्वत पर तर्जनी उंगली के नीचे अर्द्धचन्द्राकार बनाती हुई उसके पूरे क्षेत्र को घेर लेती है, जो कि अंगूठी के समान दिखाई देती है। इसी को गुरुवलय या बृहस्पति मुद्रा कहते हैं ।

2. मंगल रेखा : – इस अंग्रेजी में लाइन आफ़ मार्स कहते हैं । यह रेखा अगूठे के पास जीवन रेखा के मूल उद्गम से निकल कर मंगल क्षेत्र पर होती हुई शुक्र पर्वत की और जाती है इसे मंगल रेखा कहते हैं, परन्तु इसका उद्गम स्थान निश्चित नहीं होता।

कुछ लोगों के हाथों में यह जीवन रेखा के बीच में से, तो कुछ हाथों में यह रेखा जीवन रेखा के बराबर चलती भी दिखाई देती है। शुक्र क्षेत्र की ओर जब यह रेखा बढ़ती है, तो वह जीवन रेखा से दूर हटती जाती है।

हथेली में इस रेखा का महत्त्व बहुत अधिक माना गया है।

3. शनिवलय :- इसे रिंग आफ सेटर्न कहते हैं तथा हिन्दी में शनि मुद्रा या शनि रेखा या शनिवलय कहते हैं। यह रेखा मध्यमा उंगली के मूल में शनि पर्वत को घेरती हुई अपना एक छोर तर्जनी और मध्यमा के बीच में तो दूसरा छोर मध्यमा और अनामिका के बीच में रख देती है। इस प्रकार से यह शनि पर्वत को अंगूठी की तरह घेर लेती है। यह वलय हाथ में बहुत महत्त्व रखता है।

4. रविवलय :- इसे रिंग आफ सन कहते हैं तथा हिन्दी में इसको सूर्य मुद्रा या सूर्य वलय भी कहा जाता है। यह अनामिका उंगली के मूल में अंगठी की तरह सूर्य पर्वत को घेर लेती है। इस रेखा का एक छोर मध्यमा, अनामिका के बीच में होता है तथा दूसरा छोर अनामिका कनिष्ठिका के बीच में पाया जाता है। जिस किसी हाथ में यह वलय देखा जाता है, वह इसी रूप में होना है।

5. शुक्रवलय :- यह वलय तर्जनी और मध्यमा के बीच में से प्रारम्भ होकर अनामिका और कनिष्ठिका के बीच में जाकर समाप्त होता है। इस प्रकार यह रेखा शनि और सूर्य दोनों पर्वतों को घेर लेती है। कई हाथों में यह वलय दोहरी रेखाओं से बनता है। यद्यपि इसका नाम शुक्र वलय होता है, परन्तु इसका शुक्र पर्वत से किसी प्रकार का कोई सम्बन्ध नहीं होता। यह बलय व्यक्ति के हाथों में बहुत अधिक महत्त्वपूर्ण कहा जाता है।

6. चन्द्र रेखा : – यह धनुष के आकार की रेखा होती है तथा यह चन्द्र क्षेत्र से प्रारम्भ होकर वरुण तथा प्रजापति क्षेत्रों के ऊपर से चलती हई बध पर्वत तक जाकर रुकती है, बहुत ही कम लोगों के हाथों में यह रेखा देखने को मिलती है।

7. प्रभावक रेखा :- यह रेखा चन्द्र क्षेत्र तथा वरुण क्षेत्र के ऊपर से चलकर भाग्य रेखा तक पहुंचती है कुछ लोगों के हाथों में यह रेखा दहरी तथा कुछ लोगों के हाथों में यह तिहरी भी दिखाई देती है। इसका प्रारम्भ शुक्र पर्वत से भी देखा जा सकता है, परन्तु इस प्रकार का प्रारम्भ बहुत कम हाथों में अनुभव हुआ है।

8. यात्रा रेखा :- अंग्रेजी भाषा में इसको ‘ट्रेवलिंग लाइन’ कहा जाता है। यह वायुयान यात्रा, जल यात्रा या पैदल यात्रा किसी भी प्रकार की यात्रा को स्पष्ट करती है। परन्तु सूक्ष्मता से देखने पर ज्ञात होता है कि इस रेखा पर अलग-अलग प्रकार के चिन्ह होते हैं, जिनमें यात्राओं का भेद ज्ञात किया जा सकता है। यह रेखा चन्द्र रेखा पर या शुक्र क्षेत्र से मंगल क्षेत्र की ओर जाती हुई राहु क्षेत्र को पार कर चन्द्र पर्वत की ओर जाती हई दिखाई देती है। ऐसी रेखाएं मोटी और पतली दोनों ही प्रकार की दिखाई देती हैं।

9. सन्तति रेखाएं :- इन रेखाओं को लाइन्स आफ चिल्ड्रन भी कहते हैं। ये रेखाएं बुध पर्वत के पास में विवाह रेखा पर खड़ी लकीरों के रूप में दिखाई देती हैं। वास्तव में ये रेखाएं बाल के समान पतली होती हैं, जिनको नंगी आंखों से देखना सम्भव नहीं रहता।

10. मणिबन्ध रेखाएं :- ये रेखाएं कलाई पर पाई जाती हैं, परन्तु इनकी संख्या अलग-अलग हाथों में अलग-अलग होती है। किसी व्यक्ति के हाथ में एक मणिबन्ध रेखा किसी में दो तीन या चार मणिबन्ध रेखाएं भी देखने को मिल जाती हैं।

11. आकस्मिक रेखाएं :- ये रेखाएं समय-समय पर बनती रहती हैं तथा अच्छे और खराब समय को प्रदर्शित करती रहती हैं। ये रेखाएं स्थायी नहीं होती जब इनका क्षणिक प्रभाव समाप्त हो जाता है, तो यह रेखाएं मिट जाती हैं। ये रेखाएं हथेली पर कहीं पर भी बन सकती है और बनकर मिट सकती हैं।

12. उच्च पद रेखा : – यह रेखा मणिबन्ध से प्रारम्भ होकर केतु क्षेत्र की ओर जाती दिखाई देती है। यदि यह रेखा गहरी और स्पष्ट हो, तो व्यक्ति निश्चय ही उच्च पद प्राप्त करना है।


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