हृदय रेखा

हथेली में जीवन रेखा और मस्तिष्क रेखा का जितना महत्त्व है, लगभग उतना ही महत्त्व हृदय रेखा का भी है। इसलिए विद्वानों को चाहिए कि वह हृदय रेखा के बारे में सावधानी के साथ अध्ययन करें।

जिस व्यक्ति के हाथ में हृदय रेखा शुद्ध, स्पष्ट, निर्दोष और लालिमा लिए हुए होती है, वह व्यक्ति वास्तव में ही अपने जीवन में सफल होता है और उसे समाज से पूरा यश तथा सम्मान मिलता है। ऐसे व्यक्ति सामाजिक उत्तरदायित्व को अनुभव करते हैं और अपने जीवन में मानवोचित गुण सामने रखकर आगे बढ़ते हैं।

यदि यह रेखा अस्पष्ट कमजोर टूटी हुई या कटी छटी होती है, तो वह व्यक्ति कितना ही दृढ एवं धनवान क्यों न हो उसे सही रूप में मानव नहीं कहा जा सकता, क्योंकि ऐसा व्यक्ति हृदय से स्वार्थी, पापी तथा कलुषित होगा। ऐसे व्यक्ति का सहज ही विश्वास नहीं करना चाहिए।

हृदय रेखा मनुष्य की हथेली में कनिष्ठिका जंगली के नीचे बुध पर्वत के नीचे से निकलकर सूर्य तथा शनि क्षेत्र को पार करती हुई गुरु पर्वत तक जाती है, परन्तु सभी हाथों में ऐसा नहीं होता। सामान्यतः इस रेखा की पांच स्थितियां पायी जाती हैं, जो कि निम्नलिखित हैं :-

  1. पहले प्रकार की हृदय रेखा वह होती हैं, जो बुध पर्वत के नीचे से प्रारम्भ होकर सूर्य और शनि पर्वत के नीचे चलती हुई गुरु पर्वत पर जाकर समाप्त होती है।
  2. कुछ लोगों के हाथों में यह रेखा बुध पर्वत के नीचे से प्रारम्भ होकर सूर्य शनि तथा गुरु पर्वत के नीचे-नीचे चलती हुई हथेली के उस पार तक जा पहुंचती है।
  3. कुछ लोगों के हाथों में यह रेखा बुध पर्वत के नीचे से निकलकर सूर्य पर्वत के नीचे ही समाप्त हो जाती है।
  4. कुछ लोगों के हाथों में यह रेखा बध पर्वत के नीचे से निकल कर शनि पर्वत के नीचे समाप्त हो जाती है ।
  5. कुछ व्यक्तियों की हथेलियों में यह रेखा बुध पर्वत के नीचे से निकल कर तर्जनी और मध्यमा के बीच में जाकर समाप्त होती हैं।

उपर्युक्त पांचों ही प्रकार की स्थितियों का अध्ययन करने से उनके फलादेश में अन्तर आता है।

इस रेखा से मानव का हृदय उसकी इच्छाएं, उसका व्यवहार उसकी भावनाएं, उसकी मानसिक क्रियाएं तथा आन्तरिक गोपनीय तथ्यों का पता लगता है। अब मैं प्रत्येक प्रकार की स्थिति का संक्षेप में वर्णन कर रहा हूँ :-

1. पहली प्रकार : इस प्रकार की हृदय रेखा जिसकी हथेली में होती है, वह सर्वश्रेष्ठ रेखा कहलाती है। सही रूप में देखा जाए तो यह रेखा अपनी अन्तिम अवस्था में शनि और गुरु पर्वत को विभक्त कर लेती है। ऐसे व्यक्ति दूसरों की भलाई करने वाले निष्पक्ष, स्वतंत्र विचारधारा रखने वाले तथा प्रेम के क्षेत्र में धैर्य से काम लेने वाले होते हैं। इनके जीवन में न तो उच्छृंखलता होती है और न अधूरापन ही स्पष्ट होता है। ऐसे व्यक्ति अपने वचनों की सामर्थ्य समझते हैं और जीवन में जो भी बात कह देते हैं, उसे पूरी तरह से निभाने की क्षमता रखते हैं।

ऐसा व्यक्ति हल्के स्तर का नहीं होता तथा अपनी पत्नी को ही सबसे अधिक महत्त्व देता है। यद्यपि यह बात सही है कि इसके जीवन में प्रेमिकाएं होती हैं, परन्तु उन्हें यह जरूरत से ज्यादा महत्त्व नहीं देते।

ऐसा व्यक्ति धार्मिक, सात्त्विक तथा ईमानदार होता है। न तो यह धोखा खाता है और न किसी को धोखा देने का प्रयत्न करता है। इसका हृदय दयालु होता है, तथा इसके जीवन को ‘आदर्श जीवन’ कहा जा सकता है। ऐसा व्यक्ति अपने प्रयत्नों से जीवन में यश, मान, पद, प्रतिष्ठा प्राप्त करता है।

2. दूसरा प्रकार : इसमें हृदय रेखा का उद्गम बुध पर्वत के नीचे में ही होता है परन्तु इसका अन्त तर्जनी और मध्यमा उंगली के बीच में न होकर गुरु पर्वत के नीचे चलकर हथेली के पास जाकर होता है। ऐसी रेखा बहुत ही कम लोगों के हाथों में दिखाई देती है, परन्तु जिन व्यक्तियों के हाथों में ऐसी रेखा होती है, वे व्यक्ति जीवन में जरूरत से ज्यादा महत्त्वाकांक्षी होते हैं और अपने प्रयत्नों से अपने जीवन को सुखमय बनाने में समर्थ होते हैं।

सही रूप में देखा जाए तो ऐसे व्यक्ति कठोर परिश्रमी होते हैं और इनका लक्ष्य हमेशा इनके सामने रहता है। जब तक ये अपने लक्ष्य को भली प्रकार से प्राप्त नहीं कर लेते तब तक ये जीवन में विश्राम नहीं लेते।

इस रेखा के बारे में विचारणीय तथ्य यह है कि जहां यह रेखा समाप्त होती है उस स्थान का सूक्ष्मता से अध्ययन आवश्यक है।

  • यदि अन्तिम स्थिति में इस रेखा का झुकाव नीचे की तरफ होता है, तो वह व्यक्ति अपने जीवन में अपनी इच्छाओं को पूर्ण नहीं कर पाता ।
  • परन्तु अन्तिम अवस्था में यदि यह रेखा ऊपर की ओर उठती हुई दिखाई दे, तो ऐसा व्यक्ति अपने जीवन में अपने लक्ष्य तक पहुंच जाना है और उसके सोचे हुए सभी काम परे हो जाते हैं। ऐसा व्यक्ति अपने जीवन में यश, मान, पद, प्रतिष्ठा की दृष्टि से पूर्ण सौभाग्यशाली कहा जाता है।

3. तीसरा प्रकार : इस प्रकार की रेखा बुध पर्वत के नीचे से लेकर सूर्य पर्वत के नीचे ही समाप्त हो जाती है। ऐसा व्यक्ति अदूरदर्शी तथा कुण्ठाग्रस्त होता है। इसका हृदय कमजोर होता है। छोटी-छोटी बातों पर झुंझला जाता है तथा इसका स्वभाव चिड़चिड़ा होता है। सही रूप में देखा जाए तो ऐसे व्यक्ति दयाहीन होते हैं।

ये व्यक्ति दुःखी मनुष्यों की सहायता नहीं करते, अपितु उनकी निन्दा करने में ही अपना सौभाग्य मानते हैं। ऐसे व्यक्ति सामान्य दृष्टि से सफल नहीं कहे जा सकते। वृद्धावस्था में ऐसा व्यक्ति हृदय रोग से पीड़ित रहता है तथा ऐसे व्यक्तियों की मृत्यु हार्ट अटेक से ही होती हैं।

4. चौथा प्रकार : कुछ लोगों के हाथों में यह रेखा बुध पर्वत के नीचे से निकलकर शनि पर्वत के नीचे जाकर समाप्त हो जाती है। ऐसे व्यक्ति कई स्त्रियों से प्रेम करते हैं और लगभग सभी को धोखा देते हैं। इनके जीवन में छल, कपट आदि बराबर बना रहता है। सही शब्दों में कहा जाए तो ऐसे लोगों पर पूरी तरह से विश्वास नहीं किया जा सकता ।

इनका प्रेम सात्त्विक प्रेम न होकर वासना पूर्ति का एक साधन होता है। इनके मन में बराबर स्वार्थ बना हुआ होता है तथा लोगों को धोखा देने में ये कुशल होते हैं।

ऐसे व्यक्ति प्रदर्शन तथा आडम्बर को ज्यादा महत्त्व देते हैं। झूठा प्रचार, नकली शान-शौकत तथा व्यर्थ का दिखावा करने में यह विश्वास रखते हैं। एक बार तो लोग इनका विश्वास कर लेते हैं, परन्तु बाद में इनसे वे लोग घृणा करने लगते हैं। अपना काम निकल जाने के बाद ये उसकी ओर आंख उठाकर भी नहीं देखते। समाज में इन लोगों को किसी प्रकार का आदर या सम्मान नहीं मिलता। ऐसे व्यक्ति निर्दयी, डाकू तथा अत्याचारी भी हो सकते हैं।

5. पांचवां प्रकार : जिनके हाथों में इस प्रकार की हृदय रेखा दिखाई देती है, वे व्यक्ति एक प्रकार से आत्म-केन्द्रित से ही होते हैं, और जीवन में लगभग अपने आप में ही खोए रहते हैं । यद्यपि ऐसे व्यक्ति जरूरत से ज्यादा परिश्रमी तथा अपने लक्ष्य की ओर बढ़ने वाले होते हैं, परन्तु कई बार के प्रयत्नों के बाद भी इनको सामान्यतः सफलता नहीं मिल पाती। जीवन के मध्य काल तक आते-आते ये व्यक्ति ऊब से जाते हैं।

यद्यपि इन व्यक्तियों के पास उर्वर मस्तिष्क होता है तथा योजना बद्ध तरीके से कार्य भी प्रारम्भ करते हैं, परन्तु जितने उत्साह से ये कार्य प्रारम्भ करते हैं उस कार्य के मध्य में आते-आते उनका जोश या उत्साह ठंडा पड़ जाता है। ऐसे व्यक्ति जीवन में असफल होने पर चिड़चिड़े हो जाते हैं तथा इनकी प्रकृति संशयालु हो जाती है।

इनके सम्पर्क में जो भी व्यक्ति आता है, उन सब पर शक करना इनका स्वभाव हो जाता है। धीरे-धीरे यह व्यक्ति अपने मित्रों तथा परिचितों से कट जाते हैं तथा इनमें निराशा की भावना जरूरत से ज्यादा व्याप्त हो जाती है। एक प्रकार से ये आगे चलकर अपने आपको बेसहारा और पराश्रय-सा अनुभव करते हैं।

हृदय रेखा

अब मैं रेखा से सम्बन्धित उन तथ्यों को स्पष्ट कर रहा हूं, जिनके माध्यम से इससे सम्बन्धित फला-फल ज्ञात किया जा सकता है :-

1. हृदय रेखा जिस पर्वत के नीचे तक पहुंचती है, उस पर्वत से सम्बन्धित विशेष गुण उसमें स्वतः ही आ जाएंगे। उदाहरणार्थ यदि हृदय रेखा अनामिका के मूल में स्थित सूर्य पर्वत के नीचे जाकर समाप्त होती है, तो सूर्य से सम्बन्धित विशेष गुण प्रसिद्धि कीर्ति, सम्मान आदि में स्वतः ही वृद्धि का योग बन जाएगा।

2. यदि हृदय रेखा मस्तिष्क रेखा की ओर झुके, तो जिस जगह वह मुड़ती है, मस्तिष्क रेखा के उस बिन्दु के समान आयु में मस्तिष्क का पूर्ण विकास होता है।

3. यदि यह रेखा आगे चलकर मस्तिष्क रेखा से पूर्णतः मिल जाती है, तो वह अपने दिमाग से कुछ नहीं सोचता, अपितु दूसरों के कहने के अनुसार कार्य करता है और उसके आदेश के लिए अपना सब कुछ न्यौछावर कर देता है।

4. यदि हृदय रेखा आगे बढ़कर मस्तिष्क रेखा को काट देती तो दिमाग अस्त-व्यस्त हो जाता है तथा उस व्यक्ति में निर्णय लेने की पूर्ण क्षमता नहीं रहती ।

5. यदि हृदय रेखा पर आकर कोई अन्य पतली रेखा मिले, तो जिस पर्वत की तरफ से वह पतली रेखा आती है, उस पर्वत के गुणों का उसके हृदय पर विशेष प्रभाव रहता है।

6. यदि हृदय रेखा से पतली-पतली छोटी-छोटी रेखाएं मस्तिष्क रेखा की ओर बढ़ती हों, तो ऐसा व्यक्ति जीवन भर मानसिक चिन्ताओं से परेशान रहता है।

7. यदि हृदय रेखा कई जगह टूट-फूट जाती है, तो वह व्यक्ति हृदय रोग का शिकार होता है।

8. यदि किसी की हथेली में हृदय रेखा पर द्वीप का चिन्ह दिखाई दे, तो वह व्यक्ति समाज में विशेष सम्मान प्राप्त नहीं कर पाता तथा उसका सामाजिक स्वरूप एक तरह से खण्डित हो जाता है।

9. हृदय रेखा जितनी अधिक लम्बी होती है और वृहस्पति पर्वत से जितनी ही अधिक दूर होती है, उतनी ही ज्यादा श्रेष्ठ कही जाती है।

10. यदि हृदय रेखा चलती चलती मार्ग में कहीं टूट जाती है और फिर आगे चलकर प्रारम्भ होती है तो जीवन के उस भाग में वह व्यक्ति मृत्य-तल्य कष्ट उठाता है।

11. यदि हृदय रेखा लम्बी स्पष्ट तथा सुन्दर होती हैं, तो उस व्यक्ति को प्रत्येक प्राणी से भरपूर प्यार तथा स्नेह मिलता है।

12. यदि हृदय रेखा हथेली के पास पहुंच जाती है, तो वह व्यक्ति किसी के भी प्रति अन्ध-श्रद्धा का शिकार होता है।

13. यदि हृदय रेखा कई जगह से कटी हई हो, तो उस व्यक्ति के जीवन में निराशा की भावना बराबर बनी रहती है।

14. यदि हथेली में दूसरी हृदय रेखा हो, तो वह व्यक्ति जीवन में ऊंचे स्तर पर प्रेम करता है, परन्तु उसे जीवन में निराशा हाथ लगती है।

15. यदि हृदय रेखा के अन्त में तारे का चिन्ह बना हुआ हो तो उस व्यक्त की आकस्मिक दुर्घटना में मृत्यु होती है।

16. यदि हृदय रेखा वृहस्पति पर्वत को घेर कर चलती हो, तो उस व्यक्ति में नफरत की भावना जरूरत से ज्यादा होती है।

17. यदि हृदय रेखा पर नक्षत्र का चिन्ह दिखाई देता है, तो वह व्यक्ति आजीवन रोगी बना रहता है।

18. यदि हृदय रेखा के अन्तिम सिरे दो भागों में बंट जाते हैं, तो ऐसा व्यक्ति सफल न्यायाधीश, सहृदय, सामाजिक तथा सद्गुणों से सम्पन्न होता है।

19. यदि यह रेखा शनि पर्वत पर समाप्त हो जाती है, तो वह व्यक्ति जरूरत से ज्यादा कामी होता है।

20. यदि यह सूर्य पर्वत पर समाप्त हो जाती है, तो ऐसा व्यक्ति बार-बार धोखा खाता है।

21. यदि यह रेखा गुरु पर्वत के नीचे जाकर त्रिशूल की तरह बन जाती है, तो उसका यौवन काल पागलखाने में ही व्यतीत होता है।

22. यदि शनि पर्वत के नीचे हृदय रेखा तथा मस्तिष्क रेखा पर क्रॉस का चिन्ह हो, तो उस व्यक्ति की बहुत छोटी उम्र में मृत्यु हो जाती है।

23. हृदय रेखा मस्तिष्क रेखा से जितनी ही ज्यादा लम्बी, स्पष्ट और लालिमा लिए हुए होती है, उतनी ही ज्यादा श्रेष्ठ कही जाती है। ऐसा व्यक्ति विश्वस्तरीय सम्मान प्राप्त करता है।

24. दोहरी हृदय रेखा अत्यन्त उच्च पद प्राप्ति में सहायक होती है।

25. यदि मंगल पर्वत उभरा हुआ हो और हृदय रेखा स्पष्ट हो, तो वह व्यक्ति जीवन में जोखिम पूर्ण कार्य करता है।

26. यदि वर्गाकर उंगलियां हों और हृदय रेखा आगे चलकर मस्तिष्क रेखा की ओर झुकती हो तो ऐसा व्यक्ति निम्नस्तर का होता है।

27. अत्यन्त छोटी हृदय रेखा व्यक्ति के दुर्भाग्य को सूचित करती है।

28. यदि हृदय रेखा जरूरत से ज्यादा लाल हो, तो वह व्यक्ति हिंसक होता है।

29. यदि यह रेखा पीलापन लिए हुए होती है तो उसे हृदय के रोग बराबर बने रहते हैं।

30. यदि हृदय रेखा जरूरत से ज्यादा चौड़ी हो तो स्वास्थ्य के मामले में वह जीवन भर बराबर कमजोर बना रहता है।

31. यदि यह रेखा बहुत अधिक पतली और लम्बी हो तो वह व्यक्ति निस्संदेह हत्यारा होता है।

32. यदि ह्रदय रेखा हथेली के अन्तिम सिरे पर पहुंचती है परन्तु अपने आप में बहुत ही कमजोर होती है, तो उस व्यक्ति के सन्तान नहीं होती।

33. यदि हृदय रेखा जंजीर के समान हो तो ऐसे व्यक्तियों का विश्वास नहीं किया जा सकता। झूठ बोलने में ये व्यक्ति चतुर होते हैं।

34. यदि यह रेखा जंजीरदार हो और शनि पर्वत के नीचे जाकर समाप्त होती हो, तो उसे विपरीत सेक्स के प्रति घृणा रहती है।

35. यदि किसी स्त्री के हाथ में शनि पर्वत पर जाकर हृदय रेखा जंजीर के समान बन गई हो, तो वह स्त्री कुलटा होती है।

36. यदि यह रेखा सूर्य पर्वत के नीचे छिन्न-भिन्न हो जाती है, तो वह व्यक्ति कमजोर होता है।

37. बुध पर्वत के नीचे यदि यह रेखा टूट-फूट जाती है, तो उसका वैवाहिक जीवन दुखमय होता है।

38. यदि हृदय रेखा से कोई शाखा निकल कर मंगल पर्वत की ओर जाती है, तो ऐसा व्यक्ति कठोर हृदय का तथा निर्दयी स्वभाव का होता है।

39. हृदय रेखा पर काले बिन्दु उसके विवाह में बाधा कारक माने गए हैं।

40. यदि हृदय रेखा पर सफेद बिन्दु हों, तो उसका वैवाहिक जीवन आदर्श कहा जाता है।

41. यदि हृदय रेखा पर त्रिकोण का चिन्ह हो, तो उसे विश्वव्यापी कीर्ति मिलती

42. यदि हृदय रेखा गुरु पर्वत पर जाकर मंगल पर्वत की ओर मुड़ जाती है, तो वह व्यक्ति मुर्ख होता है।

43. यदि यह रेखा चतुर्भुज के साथ कहीं पर भी समाप्त होती है, तो वह अस्थिर स्वभाव वाला माना जाता है।

44. यदि यह रेखा शनि पर्वत के नीचे मस्तिष्क रेखा से मिलती हो, तो उसके जीवन में कई दुर्घटनाएं होती हैं।

45. यद हृदय रेखा बुध पर्वत के नीचे मस्तिष्क रेखा से मिलती हो, तो उस व्यक्ति की यौवन काल में ही मृत्यु हो जाती है।

46. यदि यह रेखा नीचे झुक कर चन्द्र पर्वत की ओर जा रही हो, या चन्द्र पर्वत से कोई रेखा निकलकर इससे मिलती हो, तो उसे जीवन में अप्रत्याशित सफलता प्राप्त होती है।

47. यदि कुछ तिरछी रेखाएं हृदय रेखा को कई जगह से काटती हों, तो उसे जीवन में कई प्रकार के रोग होते हैं।

48. यदि हृदय रेखा से निकल कर कोई सहायक रेखा मस्तिष्क रेखा से जुड़ जाती है, तो उसमें प्रेम करने की क्षमता जरूरत से ज्यादा होती है।

49. यदि हृदय रेखा से कोई सहायक रेखा निकल कर शनि पर्वत की ओर जाती है तो उसे प्रेम के क्षेत्र में निराशा मिलती है।

50. यदि भाग्य रेखा से कोई सहायक रेखा निकल कर हृदय रेखा को स्पर्श करती हो, तो उसका गृहस्थ जीवन परेशानी पूर्ण होता है।

51. यदि शुक्र पर्वत से कोई सहायक रेखा निकल कर हृदय रेखा से मिलती हो, तो वह व्यक्ति जरूरत से ज्यादा भोगी होता है।

52. यदि इस रेखा पर बुध पर्वत के नीचे क्रास हो, तो उसे व्यापार में बार-बार असफलता का मुंह देखना पड़ता है।

53. यदि इस रेखा से कई चतुर्भुज बनते हों, तो ऐसे व्यक्ति में प्रतिभा अत्यधिक होती है, परन्तु अपने मामले में वह असफल रहता है।

54. यदि हृदय रेखा गुरु पर्वत के नीचे कई शाखाओं में बंट जाती है, तो वह व्यक्ति भाग्यशाली होता है।

55. यदि इस रेखा के प्रारम्भ में ही शाखा पुंज हो, तो वह व्यक्ति जरूरत से ज्यादा बोलने वाला होता है।

56. यदि इस रेखा के मध्य में शाखा पुंज हो, तो ऐसा व्यक्ति कट्टर एवं घमण्डी होता है।

57. अगर किसी व्यक्ति के हाथ में हृदय रेखा नहीं हो, तो वह निर्दयी होता है।

58. यदि हृदय रेखा से किसी प्रकार की कोई सहायक रेखा नहीं निकलती है, तो ऐसे व्यक्ति को सन्तान का सुख नहीं मिलता ।

59. यदि बिना किसी शाखा के यह रेखा गुरु पर्वत के नीचे समाप्त होती हो, तो ऐसा व्यक्ति जीवन में गरीब बना रहता है।

60. यदि रेखा के अन्तिम सिरे पर कोई अलग तरह का निशान हो, तो वह व्यक्ति लकवे का शिकार होता है।

61. यदि सूर्य पर्वत के नीचे कोई बिन्दु हो, तो ऐसा व्यक्ति भावुक होता है।

62. बुध पर्वत के नीचे यदि कोई बिन्दु दिखाई दे, तो वह प्रसिद्ध चिकित्सक होगा।

63. यदि रेखा पर वृत्त का चिन्ह अनुभव हो तो हृदय रेखा की दृष्टि से कमजोर होता है।

64. यदि हृदय रेखा पर कोई द्वीप दिखाई दे, तो उसके जीवन में कई विश्वासघात होते हैं।

65. यदि भाग्य रेखा तथा हृदय रेखा दोनों पर द्वीप के चिन्ह दिखाई दें, तो वह व्यक्ति व्यभिचारी होता है।

66. हृदय रेखा पर कोई चोट का चिन्ह प्रतीत हो, तो उसे जीवन में असफल प्रेम का सामना करना पड़ता है।

67. हृदय रेखा जितनी ही ज्यादा स्पष्ट, सुन्दर और लालिमा लिए हुए होगी, वह व्यक्ति जीवन में उतनी ही ज्यादा सफलताएं एवं श्रेष्ठता प्राप्त करता है।

वस्तुतः हृदय रेखा का मानव जीवन में बहुत अधिक महत्त्व है और हस्तरेखा विशेषज्ञ के लिए यह आवश्यक है कि वह इस रेखा का सावधानी के साथ अध्ययन करे ।


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