भाग्य रेखा

यद्यपि मानव के जीवन में सब कुछ होता है, पर यदि उसका भाग्य साथ नहीं देता है, तो एक प्रकार से उसका पूरा जीवन व्यर्थ कहा जाता है। चाहे व्यक्ति के पास भव्य व्यक्तित्त्व हो, चाहे हृदय से वह कितना ही उदार हो, चाहे स्वास्थ्य की दृष्टि से उसमें सभी प्रकार की श्रेष्ठता हो, परन्तु यदि उसका भाग्य उसे साथ नहीं देता है, तो उसका जीवन एक प्रकार से निष्क्रिय हो जाता है। कहा जाता है कि यदि व्यक्ति का भाग्य साथ देता हो और यदि वह मिट्टी भी छू ले, तो वह सोना बन जाती है। इसके विपरीत यदि भाग्य साथ नहीं देता, तो सोने को भी स्पर्श करने पर वह मिट्टी के समान हो जाता है।

वस्तुतः जीवन में भाग्य का महत्व सबसे अधिक माना गया है। इसीलिए हाथ में भी भाग्य रेखा या प्रारब्ध रेखा को महत्त्व दिया जाता है। अंग्रेजी में इसे ‘फेट लाइन’ कहते हैं। यह रेखा जितनी अधिक गहरी, स्पष्ट और निर्दोष होती है, उसका भाग्य उतना ही ज्यादा श्रेष्ठ कहा जाता है।

यदि व्यक्ति के हाथ में सभी रेखाएं दूषित एवं कमजोर हों, परन्तु यदि उसकी भाग्य रेखा अपने आप में अत्यन्त श्रेष्ठ हो तो यह बात निश्चित है कि उसके ये सारे दुर्गुण छिप जाते हैं और वह जीवन में पूर्ण प्रगति करने में समर्थ हो पाता है। अतः हस्तरेखा विशेषज्ञ को चाहिए कि वह हथेली का अध्ययन करते समय भाग्य रेखा का सावधानी से अध्ययन करे।

सभी हाथों में यह भाग्य रेखा नहीं पाई जाती है और मेरा तो यह अनुभव है कि लगभग 50 प्रतिशत हाथों में भाग्य रेखा का अभाव ही होता है। परन्तु मेरे कथन का यह अभिप्राय नहीं लिया जाना चाहिए कि जिसके हाथ में भाग्य रेखा नहीं होती, वह व्यक्ति भाग्यहीन होता है। मेरे कहने का तात्पर्य यह है कि भाग्य रेखा के अभाव में प्रयत्न करने पर भी व्यक्ति को पूर्ण सफलता नहीं मिल पाती। भाग्य रेखा होने से व्यक्ति थोड़ी सी प्रतिभा और परिश्रम से ही कार्य को अपने मनोनुकूल बना लेता है।

इस रेखा को शनि रेखा भी कहा जाता है क्योंकि इस रेखा की समाप्ति शनि पर्वत पर होती है। यद्यपि यह रेखा व्यक्ति के हाथों में अलग-अलग स्थानों से प्रारम्भ होती हैं, तथापि इस रेखा की समाप्ति शनि पर्वत पर ही होती देखी गई है। इसलिए भी इसको शनि रेखा के नाम से पुकारते हैं।

जिन हाथों में यह रेखा कमजोर होती है या नहीं होती है, उन व्यक्तियों की उन्नति तो होती है, परन्तु उनकी उन्नति में भाइयों, सम्बन्धियों या रिश्तेदारों का किसी प्रकार का कोई सहयोग उसे उसके जीवन में नहीं मिलता। इस प्रकार से वह जो भी प्रगति करता है, स्वयं के प्रयत्नों से ही कर पाता है। ऐसे लोगों को न तो समाज से किसी प्रकार का कोई सहयोग मिलता है और न परिवार से ही सहायता मिलती है। जिन लोगों के हाथों में शनि रेखा का अभाव हो, तो यह समझ लेना चाहिए कि इसके जीवन में जो भी दिखाई दे रहा है। वह सब इसके प्रयत्नों से ही संभव हुआ है।

यह रेखा नीचे से ऊपर की ओर बढ़ती है, जैसा कि मैंने स्पष्ट किया है कि हथेली में इस रेखा के उद्गम स्थान अलग-अलग होते हैं, परन्तु इस रेखा की समाप्ति शनि पर्वत पर ही जाकर होती है। इस रेखा के माध्यम से मानव की इच्छाएं, भावनाएं उसका बौद्धिक एवं मानसिक स्तर तथा उसकी क्षमताओं का अनुमान हो जाता है। भाग्य रेखा के माध्यम से यह जाना जा सकता है कि यह व्यक्ति जीवन में कितनी प्रगति करेगा। इसके जीवन में आर्थिक दृष्टि से क्या स्थिति होगी ? क्या इसको जीवन में धन, मान, पद, प्रतिष्ठा आदि मिल सकेंगे ? क्या इसका जीवन परेशानियों से भरा हुआ है ? क्या यह व्यक्ति अपने जीवन में इन बाधाओं को पार कर सफलता प्राप्त कर सकता है ? ये सारे तथ्य भाग्य रेखा के माध्यम से ही जाने जा सकते हैं।

मध्यमा उंगली के मूल में शनि पर्वत होता है। हथेली के किसी भी स्थान से कोई भी रेखा प्रारम्भ होकर शनि पर्वत को स्पर्श कर लेती है, तो वह भाग्य रेखा कहलाने लगती है। हथेली के भिन्न-भिन्न स्थानों से प्रारंभ होने के कारण भाग्य रेखा का महत्त्व भी भिन्न-भिन्न हो जाता है। इसलिए भाग्य रेखा का उद्गम तथा उसकी समाप्ति दोनों ही बिन्दुओं का भली-भांति सूक्ष्मता से अध्ययन करना चाहिए।

यदि यह रेखा कहीं से भी प्रारम्भ होकर बिना किसी अन्य रेखा का सहारा लिए शनि पर्वत पर पहुंच जाती है, तो नि स्सन्देह ऐसी रेखा प्रबल भाग्य वर्द्धक एवं श्रेष्ठ मानी जाती है, परन्तु यदि भाग्य रेखा शनि पर्वत को पार कर मध्यमा उंगली के गौर तक पहुंचने की कोशिश करती है, तो ऐसी रेखा दूषित कहलाती है।

भाग्य रेखा

ऊपर मैंने भाग्य रेखा के बारे में कुछ तथ्य स्पष्ट किए हैं। मेरे अनुभव के आधार पर भाग्य रेखा का उद्गम निम्न प्रकार से हो सकता है

  1. हथेली में भाग्य रेखा मणिबन्ध के ऊपर से निकल कर अन्य रेखाओं का सहारा लेती हुई शनि पर्वत तक पहुंचती है।
  2. कई बार यह रेखा जीवन रेखा के पास में से निकल कर शनि क्षेत्र पर पहुंच जाती है।
  3. भाग्य रेखा शुक्र पर्वत से भी निकल कर शनि पर्वत तक पहुंचती है।
  4. कभी-कभी यह रेखा मंगल पर्वत से भी निकलती हुई दिखाई दी है।
  5. यह रेखा जीवन रेखा को काटती हुई शनि पर्वत तक पहुचने का प्रयास भी करती है।
  6. कुछ हाथों में मैंने भाग्य रेखा राहु क्षेत्र से भी निकलती हुई देखी है।
  7. भाग्य रेखा हृदय रेखा से निकलकर शनि पर्वत को स्पर्श करती हुई अनुभव होती है।
  8. कई बार यह रेखा नेपच्यून क्षेत्र से प्रारम्भ होकर शनि पर्वत तक जाती है।
  9. कुछ हाथों में यह रेखा चन्द्र पर्वत से भी निकलती है।
  10. हर्षल क्षेत्र से भी इस रेखा का प्रारम्भ देखा जा सकता है।
  11. कई बार यह रेखा मस्तिष्क रेखा से प्रारम्भ होकर शनि पर्वत को जाती है।

ऊपर मैंने भाग्य रेखा के ग्यारह उद्गम स्थान बनाए हैं। अधिकतर हाथों में उद्गम स्थल इसी प्रकार के दिखाई देते हैं। परन्तु इसके अलावा भी उद्गम स्थल हो सकते हैं।

अब मैं इन उद्गम स्थलों से संबंधित भविष्यफल स्पष्ट कर रहा हूं :-

1. प्रथमावस्था : – इस प्रकार की भाग्य रेखा सर्वोत्तम कहलाती है। यह रेखा जितनी अधिक स्पष्ट गहरी और निर्दोष होगी उतनी ही अच्छी कही जाएगी और उतना ही श्रेष्ठ फल मिल सकेगा। इस बात का हमेशा ध्यान रखना चाहिए कि भाग्य रेखा शनि पर्वत तक पहुंचती है, तो वह शुभ कहलाती है। परन्तु यदि शनि पर्वत को पार कर मध्यमा उंगली पर चढ़ने लग जाती है, तो वह विपरीत फल देने लग जाती है।

  • कुछ हाथों में मैंने यह भाग्य रेखा मध्यमा उंगली के दूसरे पौर तक पहुंचते हुए देखा है, परन्तु इस प्रकार की रेखा बनने का तात्पर्य यह है कि ऐसे व्यक्ति में महत्त्वाकांक्षाएं तथा इच्छाएं जरूरत से ज्यादा होंगी, परन्त वह अपने जीवन में अपनी इच्छाओं को पूरी होते हुए नहीं देख पाता। यह बढ़ी हुई भाग्य रेखा व्यक्ति के बने बनाए कार्य को बिगाड़ देती है।
  • परन्तु इस प्रकार की यह रेखा मध्यमा उंगली पर न चढ़े, अपितु शनि क्षेत्र तक ही जाकर रुक जाए तो ऐसी रेखा शुभ फलदायक कही जाती है।
  • यदि भाग्य रेखा शनि क्षेत्र तक जाते-जाते दुमुही हो जाती है तो यह विशेष सफलता की सूचक है।
  • यदि भाग्य रेखा के अन्तिम बिन्दु पर दो सिरे फटकर एक सिरा शनि पर्वत पर रुकता है और दूसरा सिरा गुरु पर्वत तक पहुंच जाए तो वह व्यक्ति अपने जीवन में बहुत अधिक ऊंचे पद पर पहुंचता है। ऐसे व्यक्ति को सामान्य घराने में जन्म लेकर भी उच्चपद प्राप्त होते देखा गया है।
  • यदि भाग्य रेखा को शनि पर्वत पर तिरछी रेखाएं काटती हों, तो उसे अपने जीवन में बाधाएं देखने को मिलती हैं। बहुत अधिक बाधाओं के बाद भी वह अपने जीवन में सफल होता है। ये बाधक रेखाएं जितनी ही कम होती हैं, उतनी ही ज्यादा अच्छी मानी जाती हैं ।
  • यदि भाग्य रेखा का उद्गम मणिबन्ध के नीचे से हो तो ऐसी रेखा भी दोषपूर्ण मानी जाती है। ऐसे व्यक्ति दरिद्र तथा भाग्यहीन जीवन व्यतीत करते हैं।

2. द्वितीयावस्था :- सामुद्रिक शास्त्र के अनुसार इस प्रकार की रेखा भी श्रेष्ठ मानी गई है ।

  • परन्तु यदि इस प्रकार की रेखा मध्यमा उंगली पर चढ़ने का प्रयत्न करे तो यह बाधाओं को पैदा करने वाली मानी गई है। एसा व्यक्ति साहसी होते हुए भी परेशानियों से घिरे रहते हैं। ऐसे व्यक्तियों को जीवन में सफलता बहुत मुश्किल से मिलती है।
  • जिसके हाथ में इस प्रकार की रेखा शनि पर्वत पर पहुंच जाती है तो वह व्यक्त यद्यपि बचपन में परेशानियां उठाता है, परन्तु आगे चलकर वह अपने प्रयत्नों से उन्नति करता है। 28वें वर्ष में उसका पूर्ण भाग्योदय होता है। ऐसे व्यक्ति संकोची स्वभाव के होते हैं, तथा तुरन्त निर्णय लेने में समर्थ नहीं हो पाते।
  • यदि इस प्रकार की भाग्य रेखा पर आड़ी-तिरछी रेखाएं हो, तो उस व्यक्ति के जीवन में कई बार बाधाएं आती है। और अथक परिश्रम के बाद वह जीवन में सफल हो पाता है।
  • यदि भाग्य रेखा के साथ-साथ जीवन रेखा भी बढ़ रही हो तो ऐसी रेखा शुभ नहीं मानी जाती। जीवन रेखा और भाग्य रेखा का परस्पर मिलना या आपस में लिपटना भी अनुकूल नहीं कहा जाता।

3. तृतीयावस्था :- यह रेखा जितनी ही स्पष्ट होती है, उतनी ही ज्यादा शुभ मानी जाती है।

  • ऐसी भाग्य रेखा जीवन रेखा को काट कर ही आगे बढ़ती है, परन्तु जिस जगह वह जीवन रेखा को काटती है। जीवन की उस अवधि में उसे बहुत अधिक परेशानियों का सामना करना पड़ता है। ऐसी स्थिति होने पर वह व्यक्ति भयंकर दुर्घटना में घायल हो सकता है। दिवालिया हो सकता है, अथवा आत्महत्या कर सकता है।
  • यह रेखा शुक्र पर्वत से निकलती है, अतः यह बात सही समझनी चाहिए कि उस व्यक्ति का भाग्योदय विवाह के बाद ही होता है। ऐसा व्यक्ति प्रेम के क्षेत्र में बढ़ा-चढ़ा होता है, तथा ससुराल से बहुत अधिक धन मिलता है। ऐसे व्यक्ति की स्त्री अधिक बहुत सुन्दर, आकर्षक तथा तड़क-भड़क से रहने वाली होती है।

परन्तु ऐसे व्यक्तियों का बुढ़ापा बहुत कष्ट का होता है। उनका वैवाहिक जीवन भी सुखमय नहीं माना जाता। इस प्रकार की भाग्य रेखा के बीच में यदि द्वीप का चिन्ह दिखाई दे, तो पति-पत्नी मतभेद की वजह से एक साथ नहीं रह पाते ।

4. चतुर्थावस्था : – यह भाग्य रेखा भी शुभ मानी गई है, परन्तु ऐसे व्यक्ति का भाग्योदय यौवनावस्था के बाद ही होता है। शिक्षा के क्षेत्र में इसको बार-बार बाधाएं देखनी पड़ती हैं तथा उच्च शिक्षा प्राप्त नहीं कर पाता ।

  • यदि इस प्रकार की भाग्य रेखा के साथ कोई सहायक रेखा न हो, तो व्यक्ति जीवन में अपनी ही की हुई गलतियों पर पछताता रहता है। मित्रों का सहयोग उसे नहीं मिल पाता, तथा जीवन में उन्नति के लिए उसे कठोर परिश्रम करना पड़ता है। उसका भाग्योदय अत्यधिक विलम्ब से होता है और किसी के सहयोग से ही वह उन्नति कर पाता है। ऐसा व्यक्ति पुलिस या मिलिट्री विभाग में विशेष उन्नति कर सकता है।
  • यदि यह रेखा मार्ग में टूट गई हो, तो व्यक्ति को अपने जीवन में बार-बार बाधाओं का सामना करना पड़ता है, यदि इस रेखा पर द्वीप हो तो ऐसा व्यक्ति भाग्यहीन होता है।

5. पंचमावस्था :- यह रेखा हथेली में अनुकूल कही जाती है।

  • परन्तु यह यदि मध्यमा उंगली के छोर पर पहुंचने का प्रयत्न करती है, तो वह व्यक्ति जीवन में सफलता नहीं प्राप्त कर पाता। यद्यपि वह आगे बढ़ने के लिए बराबर प्रयत्न करता रहेगा, परन्तु उसे जीवन में बार-बार असफलता का सामना करना पड़ता है। किसी महत्त्वपूर्ण व्यक्ति के सहयोग से ही वह उन्नति कर सकता है। जीवन के मध्य काल में ये व्यक्ति विकास करते हैं, ऐसे व्यक्ति सफल चित्रकार अथवा साहित्यकार होते हैं। मेरे कहने का तात्पर्य यह है कि ऐसे व्यक्ति किसी एक क्षेत्र में पारंगत होते हैं।
  • यदि ऐसी रेखा जीवन रेखा के आगे बढ़ने पर टूटी हुई हो या लहरदार बन गई हो, तो उस व्यक्ति की उन्नति नहीं हो पाती, और निरन्तर अपने भाग्य को कोसता रहता है।
  • यदि ऐसी रेखा को आड़ी या तिरछी रेखाएं काटें, तो उसे जीवन में बाधाओं का सामना करना पड़ता है। ऐसे व्यक्ति सफल देश भक्त होते हैं, तथा इनकी वृद्धावस्था अत्यन्त सुखमय व्यतीत होती है।

6. षष्ठावस्था : – जिसके हाथ में इस प्रकार की भाग्य रेखा होती है, वह अत्यन्त सौभाग्यशाली माना जाता है।

  • इस प्रकार के व्यक्ति का भाग्योदय 36 वें वर्ष के बाद से ही होता है। जीवन के 36 से 42वें वर्ष के बीच वह आश्चर्यजनक रूप से उन्नति करता है। ऐसे व्यक्ति का प्रारम्भिक जीवन अत्यन्त कष्टदायक होता है, परन्तु उसका यौवनकाल और उसकी वृद्धावस्था अत्यन्त सुखकर मानी जाती है, और अपने जीवन के उत्तरकाल में उसे धन, मान, यश, प्रतिष्ठा आदि प्राप्त होती है।
  • यदि ऐसी रेखा बीच-बीच में टूटी हुई हो, तो उसके भाग्य में बाधाएं आती हैं और यदि उस रेखा पर वृत्त का चिन्ह हो तो ऐसा व्यक्ति भाग्यहीन कहा जाता है।
  • यदि भाग्य रेखा से कोई सहायक रेखा निकल कर गुरु पर्वत की ओर जाती हो, तो वह व्यक्ति अपने जीवन में पूर्ण सफलता प्राप्त करता है।

7. सप्तमावस्था :- हृदय रेखा से निकलने वाली यह भाग्य रेखा सीधी शनि पर्वत तक पहुंच जाती है, पर कुछ लोगों के हाथों में यह रेखा आगे चलकर त्रिशूल की तरह बन जाती है, जिसका एक सिरा सूर्य पर्वत की ओर दूसरा हिस्सा गुरु पर्वत की ओर जाता है। ऐसी भाग्य रेखा अत्यन्त शुभ मानी गई है।

  • यदि इस प्रकार की भाग्य रेखा अन्त में जाकर दो टुकड़ों में बंट जाए तो वह व्यक्ति अपने जीवन में अपूर्व धन, मान, यश, पद, प्रतिष्ठा प्राप्त करता है। ऐसा व्यक्ति सहृदय होता है, अपने जीवन में वह निरन्तर दूसरों की सहायता करता रहता है। वह अपने प्रयत्नों से लाखों करोड़ों रुपये कमाता है और धार्मिक कार्यों में खर्च भी करता है।
  • यदि इस रेखा के प्रारम्भ में द्वीप का चिन्ह हो, तो उसे अपने जीवन में बहुत बड़ी बदनामी उठानी पड़ती है।
  • यदि यह रेखा बीच में टूटी हुई हो, तो आयु के उस भाग में उसे विशेष आर्थिक हानि सहन करनी पड़ती है।
  • यदि इस रेखा पर आड़ी-तिरछी रेखाएं हों, तो उस व्यक्ति को जीवन में कई बार संघर्षों का सामना करना पड़ता है और अत्यन्त कठिनाई के बाद ही वह सफलता प्राप्त कर पाता है।
  • यदि इस रेखा के अन्तिम स्थान पर तारे का चिन्ह हो, तो उसकी अकाल मृत्यु होती है।
  • यदि यह रेखा मध्यमा उंगली पर चढ़ने का प्रयत्न करे, तो वह व्यक्ति जीवन में बराबर असफलता का सामना करता है।

8. अष्टमावस्था :- यदि यह रेखा निर्दोष स्पष्ट और गहरी हो, तो उस व्यक्ति का बचपन अत्यन्त सुखमय व्यतीत होता है। विद्या की दृष्टि से वह श्रेष्ठ विद्या प्राप्त करता है ।

  • इस प्रकार के बालक की बुद्धि तेज होती है और वे अपने स्वतंत्र विचारों के कारण पहचाने जाते हैं। यद्यपि परिवार से इनको किसी प्रकार का कोई विशेष सहयोग नहीं मिलता । फिर भी ये प्रयत्न करके सफलता की ओर बढ़ जाते हैं। ऐसे व्यक्ति सफल साहित्यकार, न्यायाधीश अथवा दार्शनिक होते हैं। ऐसे व्यक्तियों का गृहस्थ जीवन पूर्णतः सुखमय कहा जा सकता है। विदेश यात्रा का योग इनके जीवन में कई बार होता है।
  • परन्तु इस प्रकार की भाग्य रेखा टूटी हुई या लहरदार हो, तो उस व्यक्ति के जीवन में सफलता के अवसर कम रहते हैं। उसे जीवन में बार-बार संघर्ष करना पड़ता है, बहुत अधिक प्रयत्न के बाद ही सफलता मिल पाती है।
  • यदि इस प्रकार की भाग्य रेखा अन्त में जाकर दोमुही बन जाती है, तो यह श्रेष्ठ संकेत है, और ऐसा व्यक्ति निश्चय ही अपने उद्देश्यों में सफल होता है।

9. नवमावस्था :– इस प्रकार की भाग्य रेखा को अत्यन्त शुभ माना गया है।

  • यदि यह रेखा शनि पर्वत पर जाकर दो भागों में या तीन भागों में बंट जाती है, तो वह व्यक्ति अतुलनीय धन का स्वामी होता है, तथा जीवन में पूर्ण प्रगति करता है। ऐसे व्यक्ति के जीवन में आय के स्रोत एक से अधिक होते हैं।
  • यदि इस प्रकार की भाग्य रेखा का अन्तिम सिरा गुरु पर्वत की ओर जा रहा हो, तो वह व्यक्ति साहित्य के माध्यम से श्रेष्ठ फल प्राप्त करता है।
  • यदि इस प्रकार का सिरा सूर्य पर्वत की ओर जाता हो, तो वह विदेश में व्यापार कर पूर्ण सफलता प्राप्त करता है। धार्मिक कार्यों में बढ़-चढ़ कर हिस्सा लेता है, तथा समाज में उसे सम्माननीय स्थान मिलता है।
  • यदि इस प्रकार की रेखा टूटी हुई या जंजीरदार हो, तो उसे जीवन में बहुत अधिक कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है।
  • यदि यह रेखा मध्यमा उंगली की पोर पर चढ़ रही हो, तो उसे जीवन में जरूरत से ज्यादा हानि सहन करनी पड़ती है।

जिन व्यक्तियों के हाथ में ऐसी भाग्य रेखा होती है, उनका भाग्योदय विवाह के बाद ही होता है। उनका मन अस्थिर तथा वृत्ति चंचल होती है। जीवन में एक से अधिक स्त्रियों से उनका सम्पर्क रहता है। उनके जीवन में जलयात्रा के योग बहुत अधिक होते हैं। ऐसे व्यक्ति एकान्त प्रेमी सहृदय एवं मधुर स्वभाव के होते हैं।

10. दशमावस्था :- जिस व्यक्ति के हाथ में इस प्रकार की भाग्य रेखा होती है, वह निश्चय ही उच्च पद प्राप्त करता है।

  • ऐसा व्यक्ति जीवन में कई बार विदेश यात्राएं करता है, अथवा वह वायु सेना में उच्च पद प्राप्त अधिकारी होता है। जीवन में ऐसा व्यक्ति राष्ट्र-स्तरीय सम्मान प्राप्त करता है और उसके जीवन में साहस तथा धैर्य की किसी प्रकार की कोई कमी नहीं रहती ।
  • यदि ऐसी भाग्य रेखा जंजीरदार टूटी हुई या लहरियादार हो, तो उसे जीवन में बहुत अधिक बाधाओं का सामना करना पड़ता है।
  • यदि इस प्रकार की भाग्य रेखा अन्त में जाकर दो भागों में बंट जाए और उसका एक मिरा गुरु पर्वत तथा दूसरा सिरा सूर्य पर्वत की ओर जाता हो, तो वह व्यक्ति प्रबल भाग्यशाली होता है।

11. एकादशावस्था :- ऐसी भाग्य रेखा बहुत कम लोगों के हाथ में देखने को मिलती है।

  • इन व्यक्तियों का व्यक्तित्त्व अपने आप में भव्य होता है। ये शुक्र की तरह जीवन में चमकते हैं। इनके कार्यों से समाज प्रभावित होता है। देश के दिशानिर्देश में इनकी महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है। इनके विचार, इनके कार्य सभी कुछ योजनाबद्ध होते हैं। एक साधारण कुल में जन्म लेकर भी ऐसा व्यक्ति सभी दृष्टियों से योग्य, सम्पन्न और सुखी होता है।
  • यदि ऐसी रेखा अन्त में जाकर दो भागों में बंट जाए तो वह उच्च स्तर का अधिकारी होता है, तथा उसके जीवन में भौतिक दृष्टि से किसी प्रकार की कोई कमी नहीं रहती।

ऊपर मैंने ग्यारह प्रकार के भाग्य रेखा के उद्गम स्थल बतलाए हैं। परन्तु इसके अलावा भी उद्गम स्थल हो सकते हैं। पाठकों को एक बात ध्यान में रखनी चाहिए कि जो भी रेखा शनि पर्वत को स्पर्श करती है, वास्तव में वही रेखा भाग्य रेखा कहलाने की अधिकारी होती है।

यदि किसी के हाथ में एक से अधिक भाग्य रेखाएं हों और दोनों की समाप्ति शनि पर्वत पर होती हो, तो उन दोनों रेखाओं का मिला-जुला फल उस व्यक्ति को जीवन में देखने को मिलेगा।

शनि रेखा या भाग्य रेखा की समाप्ति पर यदि कई छोटी-छोटी रेखाएं निकलती हों, तो ये रेखाएं व्यक्ति की महत्त्वाकांक्षाओं को सूचित करती हैं। यदि इस प्रकार की रेखाएं नीचे की तरफ गिरती हुई दिखाई दें, तो वह व्यक्त जीवन में बहुत अधिक परेशानियों का सामना करता है।

अब मैं भाग्य रेखा से सम्बन्धित कुछ नये तथ्य स्पष्ट कर रहा हूं :-

1. यदि भाग्य रेखा सीधी तथा स्पष्ट हो और शनि पर्वत से होती हुई सूर्य पर्वत की ओर जा रही हो तो वह व्यक्ति कला के क्षेत्र में विशेष सफलता प्राप्त करता है।

2. यदि यह रेखा लाल रंग की हो तथा मध्यमा जंगली के प्रथम पोर तक पहुंच जाए, तो उस व्यक्ति की दुर्घटना में मृत्यु होती है ।

3. यदि यह रेखा हृदय रेखा को काटते समय जंजीर के समान बन जाए तो उसे प्रेम के क्षेत्र में बदनामी का सामना करना पड़ता है।

4. यदि हृदय रेखा हथेली के मध्य में फीकी या पतली अथवा अस्पष्ट हो तो व्यक्ति का यौवनकाल दुखमय होता है।

5. यदि व्यक्ति के हाथ में भाग्य रेखा के साथ-साथ सहायक रेखाएं भी हों तो उसका जीवन अत्यन्त सम्मानित होता है।

6. यदि भाग्य रेखा जंजीरदार अथवा लहरदार हो, तो जीवन में उस बहुत अधिक दुख भोगना पड़ता है।

7. जिस व्यक्ति के हाथ में भाग्य रेखा नहीं होती, उसका जीवन अन्यन्त साधारण और नगण्य सा होता है।

8. यदि भाग्य रेखा प्रारम्भ से ही टेढी-मेढ़ी हो तो उसका बचपन अत्यन्त कष्टदायक होता है।

9. भाग्य रेखा अपने उद्गम स्थल से प्रारंभ होकर जिस पर्वत की ओर भी मुड़ती है या शनि पर्वत से उसमें से कोई शाखा निकलकर जिस पर्वत की ओर जाती है, उस पर्वत से सम्बन्धित गुणों का विकास उस व्यक्ति को जीवन में मिलता है।

10. यदि भाग्य रेखा चलते-चलते रुक जाए तो वह व्यक्त जीवन में बहुत अधिक तकलीफ उठाता है।

11. हथेली में भाग्य रेखा जिस स्थान में भी गहरी, निर्दोष और स्पष्ट होती है. जीवन के उस भाग में उसे विशेष लाभ या सुख मिलता है।

12. भाग्य रेखा हथेली में जितनी बार भी टूटती है जीवन में उतनी ही बार महत्त्वपूर्ण मोड़ आते हैं या कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है।

13. यदि भाग्य रेखा मणिबन्ध से प्रारम्भ होकर मध्यमा के ऊपर चढ़े तो वह दुर्भाग्यशाली होता है। जिसकी भाग्य रेखा ऐसी होगी, उसे जीवन में किसी प्रकार का कोई सुख या आनन्द नहीं मिलेगा।

14. यदि भाग्य रेखा प्रथम मणिबन्ध से भी नीचे हो अर्थात् प्रथम मणिबन्ध से नीचे उसका उद्गम स्थल हो, तो उसे जीवन में जरूरत से ज्यादा कष्ट उठाना पड़ता है।

15. यदि भाग्य रेखा के साथ में कोई सहायक रेखा हो, तो यह शुभ कहा जाता है। यदि उंगलियां लम्बी हों और भाग्य रेखा का प्रारंभ चन्द्र पर्वत से हो, तो ऐसा व्यक्ति प्रसिद्ध तात्रिक होता है।

16. यदि चन्द्र पर्वत को काटकर भाग्य रेखा आगे बढ़ती हो, तो वह व्यक्ति जीवन में कई बार विदेश यात्रा करता है।

17. यदि भाग्य रेखा के उद्गम स्थान पर त्रिकोण का चिन्ह हो, तो वह व्यक्ति अपनी ही प्रतिभा से उन्नति करता है।

18. यदि भाग्य रेखा से कुछ शाखाएं निकल कर ऊपर की ओर जा रही हों, तो उसे अतुलनीय धन लाभ होता है।

19. यदि भाग्य रेखा मस्तिष्क रेखा से प्रारंभ हो और मार्ग में कई जगह आडी तिरछी रेखाएं हों, तो उस व्यक्ति को बुढ़ापे में सफलता मिलती है।

20. यदि भाग्य रेखा शनि पर्वत पर वृत्ताकार बन जाए तो उसके जीवन में अत्यधिक परिश्रम के बाद सफलता आती है।

21. यदि भाग्य रेखा मस्तिष्क रेखा से प्रारंभ हो और उसकी शाखाएं गुरु, सूर्य तथा बुध पर्वत पर जाती हों, तो वह व्यक्ति विश्वविख्यात होता है।

22. यदि भाग्य रेखा के उद्गम स्थान पर तीन या चार रेखाएं निकली हुई हों, तो ऐसे व्यक्ति का भाग्योदय विदेश में होता है।

23. यदि भाग्य रेखा के उद्गम स्थान से एक सहायक रेखा शुक्र पर्वत की ओर जाती हो, तो किसी स्त्री के माध्यम से उसका भाग्योदय होता है।

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24. यदि भाग्य रेखा मस्तिष्क रेखा के पास समाप्त हो जाती हो, तो उसे जीवन में बार-बार निराशा का सामना करना पड़ता है।

25. भाग्य रेखा पर जितनी ही आड़ी-तिरछी रेखाएं होती हैं, वे उसकी प्रगति में बाधक कहलाती हैं।

26. यदि भाग्य रेखा की समाप्ति पर तारे का चिन्ह हो, तो उसकी वृद्धावस्था अत्यन्त कष्टमय होती है।

27. यदि भाग्य रेखा और विवाह रेखा परस्पर मिल जाएं तो उसका गृहस्थ जीवन दुखमय रहता है।

28. यदि भाग्य रेखा से कोई सहायक रेखा निकलती हो, तो वह भाग्य को प्रबल बनाने में सहायक होती है।

29. यदि इस रेखा के ऊपर या नीचे शाखाएं हों, तो आर्थिक कष्ट उठाना पड़ता है।

30. भाग्य रेखा के अन्त में क्रॉस या जाली हो, तो उसकी क्रूर हत्या होती है।

31. यदि रेखा के अन्त में चतुर्भुज हो, तो उस व्यक्ति की धर्म में विशेष आस्था होती है।

32. भाग्य रेखा पर धन का चिन्ह शुभ माना गया है।

33. भाग्य रेखा गहरी स्पष्ट और लालिमा लिए हुए होती है, तो व्यक्ति जीवन में शीघ्र ही प्रगति करता है।

वस्तुतः भाग्य में ही जीवन का सब कुछ संगृहीत होता है। अतः जिसकी हथेली में भाग्य रेला प्रबल, स्पष्ट, और सुन्दर होती है, वह व्यक्ति अपने भाग्य से शीघ्र उन्नति करता है और समाज में सम्माननीय स्थान प्राप्त करता हुआ पूर्ण भौतिक सुखों का भोग करता है।


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