गौण रेखाएं
हथेली में कई रेखाएं ऐसी होती हैं, जिन्हें हम मुख्य रेखाएं तो नहीं कहते, परन्तु उनका महत्त्व किसी भी प्रकार से कम नहीं कहा जा सकता। इन रेखाओं का अध्ययन भी अपने आप में अत्यन्त जरूरी है। ये रेखाएं स्वतंत्र रूप से या किसी रेसा की सहायक बनकर अपना निश्चित प्रभाव मानव जीवन पर डालती हैं। अब मैं इन रेखाओं का संक्षेप में परिचय स्पष्ट कर रहा हूँ:-
मंगल रेखा
ये रेखाएं हथेली में निम्न मंगल क्षेत्र से या जीवन रेखा के प्रारम्भिक भाग से निकलती है और शुक्र पर्वत की ओर बढ़ती हैं। ऐसी रेखाएं एक या एक से अधिक हो सकती हैं। ये सभी रेखाएं पतली, मोटी, गहरी या कमजोर हो सकती हैं। परन्तु यह स्पष्ट है कि इन का उद्गम मंगल पर्वत ही होता है। इसीलिए इन्हें मंगल रेखाएं कहा जाता है।
इनमें दो भेद हैं। एक तो ऐसी रेखाएं जीवन रेखा के साथ-साथ आगे बढ़ती हैं, उन्हें जीवन रेखा की सहायक रेखा भी कह सकते हैं। कई बार ऐसी रेखाएं जीवन रेखा की समाप्ति तक उसके साथ-साथ चलती है।
अतः जिनके हाथ में ऐसी रेखाएं होती हैं, वे व्यक्ति अत्यन्त प्रतिभाशाली एवं तीव्र बुद्धि के होते हैं। सोचने और समझने की शक्ति इनमें विशेष रूप से होती है। जीवन में ये जो निर्णय एक बार कर लेते हैं, उसे अन्त तक निभाने की सामर्थ्य रखते हैं। ऐसे व्यक्ति पूर्णतः विश्वासपात्र कहे जाते हैं।
इस प्रकार के व्यक्ति जीवन में कोई एक उद्देश्य लेकर आगे बढ़ते हैं और जब तक उस उद्देश्य या लक्ष्य की प्राप्ति नहीं हो जाती, तब तक ये विश्राम नही लेते। शारीरिक दृष्टि से ये हृष्ट-पुष्ट होते हैं तथा इनका व्यक्तित्त्व अपने आप में अत्यन्त प्रभावशाली होता है। फोध इनके जीवन में बहुत कम रहता है।
दूसरे प्रकार की मंगल रेखाए वे होती है, जो जीवन रखा का साथ छोड़कर सीधे ही शुक्र पर्वत पर पहुंच जाती हैं। ऐसे व्यक्ति जीवन में लापरवाह होते हैं। उनका स्वभाव चिड़चिड़ा होता है। आवेश में ये व्यक्ति सब कुछ करने के लिए तैयार होते हैं। इनका साथ अत्यन्त निम्न स्तर के व्यक्तियों से होता है।
यदि मंगल रेखा से कुछ रेखाएं निकल कर ऊपर की ओर बढ़ रही हों, तो उनके जीवन में बहुत अधिक इच्छाएं होती हैं और इन इच्छाओं को पूरा करने का ये भगीरथ प्रयत्न करते हैं। यदि ऐसी रेखाएं भाग्य रेखा से मिल जाती हैं, तो व्यक्ति का शीघ्र ही भाग्योदय होता है। हृदय रेखा से मिलने पर व्यक्ति जरूरत से ज्यादा भावुक तथा सहृदय बन जाता है। यदि इस प्रकार की मंगल रेखाएं आगे चलकर भाग्य रेखा अथवा सूर्य रेखा को काटती हैं, तो उसके जीवन में जरूरत से ज्यादा बाधाएं एवं परेशानियां रहती हैं।
यदि इन रेखाओं का सम्पर्क भाग्य रेखा से हो जाता है, तो वह भाग्यहीन व्यक्ति कहलाता है। तथा यदि ये मंगल रेखाएं विवाह रेखा को छू लेती हैं, तो उसका गृहस्थ जीवन बर्बाद हो जाता है ।
यदि मंगल रेखा प्रबल, पुष्ट हथेली में धंसी हुई तथा दोहरी हो, तो ऐसा व्यक्ति निश्चय ही हत्यारा अथवा डाकू होता है। परन्तु यदि यह रेखा दोहरी नहीं होती तो ऐसा व्यक्ति मिलिट्री में ऊंचे पद पर पहुंचने में सक्षम होता है।
गुरुवलय
तर्जनी उंगली को घेरने वाली अर्थात् जो रेखा अर्द्धवृत्ताकार बनती हुई गुरु पर्वत को घेरती है, जिसका एक सिरा हथेली के बाहर की ओर तथा दूसरा सिरा तर्जनी और मध्यमा के बीच में जाता है, तो ऐसे वलय को गुरु वलय कहते हैं। ऐसी रेखा बहुत ही कम हाथों में देखने को मिलती है।
जिस व्यक्ति के हाथ में ऐसी रेखा होती हैं, वे व्यक्ति जीवन में गम्भीर तथा सहृदय होते हैं। उनकी इच्छाएं जरूरत से ज्यादा बढ़ी चढ़ी होती हैं, विद्या के क्षेत्र में वे अत्यन्त सफलता प्राप्त करते हैं परन्तु इन लोगों में यह कमी होती है कि ये अपने चारों ओर धन पूर्ण वातावरण बनाये रखते हैं तथा व्यर्थ की शान-शौकत का प्रदर्शन करते रहते हैं। ये जीवन में कम मेहनत से ज्यादा लाभ उठाने की कोशिश में रहते हैं परन्तु उनके प्रयत्न ज्यादा सफल नहीं होते, जिसकी वजह से आगे चलकर इनके जीवन में निराशा आ जाती है।
शनिवलय
जब कोई अंगूठी के समान रेखा शनि के पर्वत को घेरती है और जिसका एक सिरा तर्जनी और मध्यमा के बीच में तथा दूसरा सिरा मध्यमा और अनामिका के बीच में जाता हो, तो उसे शनि वलय या शनि मुद्रा कहते हैं। सामाजिक दृष्टि से ऐसा वलय शुभ नहीं कहा जा सकता, क्योंकि जिस व्यक्ति के हाथ में ऐसी मुद्रा होती है, वह व्यक्ति वीतरागी सन्यासी या एकान्त प्रिय होता है ऐसा व्यक्ति इस संसार का मोह तथा सुख को छोड़कर परलोक को सुधारने की कोशिश में रहता है।
ऐसे व्यक्ति तंत्र साधना तथा मंत्र साधना के क्षेत्र में विशेष सफलता प्राप्त करते देखे गए हैं। यदि शनि वलय की कोई रेखा भाग्य रेखा को स्पर्श नहीं करती तो वह व्यक्ति अपने उद्देश्यों में सफलता प्राप्त कर लेता है। परन्तु यदि शनि वलय की कोई रेखा भाग्य रेखा को स्पर्श करती हो, तो वह व्यक्ति जीवन में कई बार गृहस्थ बनता है, और कई बार पुनः घर बार छोड़कर सन्यासी बन जाता है। ऐसा व्यक्ति अपने किसी भी उद्देश्य में सफलता प्राप्त नहीं करता। ऐसे व्यक्ति के सभी कार्य अधूरे तथा अव्यवस्थित होते हैं, तथा एक प्रकार से इन्द्रियों के दास होते हैं। कई बार ऐसे व्यक्ति अपनी ही कुण्ठाओं के कारण आत्महत्या कर लेते हैं।
जिनके हाथों में इस प्रकार का वलय होता है, वे निराशा प्रधान व्यक्ति होते हैं। उनको जीवन में किसी प्रकार का कोई आनन्द नहीं मिलता। वे व्यक्ति चिन्तनशील, एकान्तप्रिय तथा वीतरागी होते हैं।
रविवलय
यदि कोई रेखा मध्यमा और अनामिका के बीच में से निकलकर सूर्य पर्वत को घेरती हुई अनामिका और कनिष्ठिका के बीच में जाकर समाप्त होती हो, तो ऐसी रेखा को रविवलय या रवि मुद्रा कहते हैं।
जिस व्यक्ति के हाथ में रवि मुद्रा होती है, वह जीवन में बहुत ही सामान्य स्तर का व्यक्ति होता है, उसे अपने जीवन में बार-बार असफलता का सामना करना पड़ता है। जरूरत से ज्यादा परिश्रम करने पर भी उसे किसी प्रकार का कोई यश नहीं मिलता, अपित् यह देखा गया है कि जिनकी भी वह भलाई करता है या जिनको भी वह सहयोग देता है, उसी की तरफ से उसको अपयश मिलता है। ऐसा वलय होने पर रवि पर्वत से संबन्धित सभी फल विपरीतता में बदल जाते हैं।
ऐसा व्यक्ति समझदार तथा सच्चरित्र होने पर भी उसको अपयश का सामना करना पड़ता है, और सामाजिक जीवन में उसे कलंकित होना पड़ता है। ऐसे व्यक्ति अपने जीवन से निगा ही रहते हैं।
शुक्रवलय
यदि कोई रेखा तर्जनी और मध्यमा से निकलकर शनि और सूर्य के पर्वतों को घेरती हुई अनामिका और कनिष्ठिका उंगली के बीच में समाप्त होती हो, तो ऐसी मुद्रा शुक्र मुद्रा या शुक्र वलय कहलाती है।
जिनके हाथों में यह वलय होता है, उन्हें जीवन में कमजोर और परेशान ही देखा है। जिनके हाथों में ऐसी मुद्रा होती है, वे स्नायु सम्बन्धी रोगों से पीडित तथा अधिक से अधिक भौतिकवादी होते हैं। इनको जीवन में बराबर मानसिक चिन्ताएं बनी रहती हैं और इनको जीवन में सुख या शान्ति नहीं मिल पाती।
यदि यह मुद्रा जरूरत से ज्यादा चौड़ी हो, तो ऐसा व्यक्ति अपने पूर्वजों का संचित धन समाप्त कर डालता है। ऐसा व्यक्ति प्रेम में उतावली करने वाला तथा पर-स्त्रीगामी होता है। जीवन में इसको कई बार बदनामियों का सामना करना पड़ता है।
यदि शुक्र वलय की रेखा पतली और स्पष्ट हो तो ऐसा व्यक्ति समझदार एवं परिस्थितियों के अनुसार अपने आपको ढालने वाला होता है। ये व्यक्ति बातचीत में माहिर होते हैं और बातचीत के माध्यम से सामने वाले व्यक्ति को प्रभावित कर लेते हैं।
यदि किसी के हाथ में एक से अधिक शुक्र वलय हों, तो वह व्यक्ति कई स्त्रियों से शारीरिक सम्बन्ध रखने वाला होता है। इसी प्रकार यदि किसी स्त्री के हाथ में ऐसा वलय हो, तो वह रुपी कई पुरुषों से सम्पर्क रखती है।
यदि शुक्र मुद्रा मार्ग में टूटी हुई हो, तो वह अपने जीवन में निम्न जाति की स्त्रियों से यौन सम्बन्ध रखता है। परन्तु साथ ही साथ ऐसा व्यक्ति जीवन में अपने दुष्कर्मों के कारण पछताता भी है।
यदि शुक्र मुद्रा से कोई रेखा निकलकर विवाह रेखा को काटती हो, तो उसे जीवन में वैवाहिक सुख नहीं के बराबर मिलता है। कई बार ऐसे व्यक्तियों का विवाह होता ही नहीं।
यदि शुक्र मुद्रा की रेखा आगे बढ़कर भाग्य रेखा को काटती हो तो वह व्यक्ति दुर्भाग्यशाली होता है तथा उसे जीवन में किसी प्रकार का कोई सुख प्राप्त नहीं होता।
जिनके हाथों में चन्द्र पर्वत स्पष्ट हो और शुक्र वलय स्पष्ट गहरा तथा निर्दोष हो तो वह व्यक्ति यौवन सम्बन्धी साहित्य का लेखक होता है।
यदि शक्रवलय पर द्वीप के चिन्ह हो तो वह व्यक्ति प्रेमिका के षडयन्त्र के फलस्वरूप मारा जाता है।
यदि लम्बा अंगूठा हो तथा शुक्रवलय हो, तो ऐसे व्यक्ति कवि होते हैं। परन्तु वे अपने जीवन में बहुत अधिक ऊंचे नहीं उठ पाते।
शुक्र वलय रखने वाले व्यक्ति रहस्यपूर्ण होते हैं। ऐसे व्यक्ति साहित्य के प्रति प्रेम रखने वाले तथा रचनात्मक कार्य करने वाले होते हैं।
यदि सूर्य रेखा बढ़कर शुक्रवलय को काटती हो, तो वह व्यक्ति लम्पट होता है।
यदि शुक्रवलय का एक सिरा बुध पर्वत पर जाता हो, तो वह व्यापार के माध्यम से सफलता प्राप्त करता है। यदि शुक्रवलय कई छोटी-छोटी रेखाओं से कटता हो, तो ऐसा व्यक्ति कामुक होता है।
शुक्रवलय का सावधानी पूर्वक अध्ययन करना हस्तरेखा विशेषज्ञ के लिए बहुत अधिक जरूरी है।
चन्द्र रेखा
व्यक्ति के हाथ में इस रेखा को सबसे अधिक महत्व दिया जाता है। इसे अन्तःप्रेरणा रेखा भी कहते हैं। यह रेखा मणिबन्ध या चन्द्र पर्वत से प्रारम्भ होकर धनुष का आकार धारण करती हुई बुध क्षेत्र तक पहुंचती है।
जिनके हाथों में यह रेसा होती है वे व्यक्ति साधारण घराने में जन्म लेकर भी बहुत अधिक ऊंचे पद पर पहुंचते हैं। कई बार ऐसे व्यक्ति राष्ट्रपति या सेनाध्यक्ष बनते हैं। ऐसे व्यक्ति राष्ट्र से सम्बन्धित महत्त्वपूर्ण पद को सुशोभित करते हैं।
ऐसे व्यक्तियों के लिए जल यात्रा घातक होती है। कई बार तैरते समय इनको मृत्यु सम कष्ट उठाना पड़ता है। इनका स्वभाव सरल, मधुर तथा गम्भीर होता है। इनका व्यक्तित्त्व अत्यन्त सम्मोहक होता है तथा शत्रुओं को भी अपने वश में करने की क्षमता इनमें होती है।
ये व्यक्ति दसरों की सहायता करने वाले होते हैं। और यदि जीवन में कोई इनके साथ भलाई का व्यवहार करता हैं, तो ये उसका उपकार जीवन भर नहीं भूलते। ऐसे व्यक्ति समय पड़ने पर समाज को तथा देश को सही निर्देश देने में सक्षम होते है।
प्रभावक रेखाएं
जिनके हाथ में प्रभावक रेखाएं होती हैं वे व्यक्ति को ऊंचा उठाने में बहुत अधिक सहायक होती हैं। ये रेखाएं कहीं से भी निकल कर शुक्र, सूर्य, गुरु, बुध या शनि पर्वतों को स्पर्श करती हैं।
जो रेखाएं बलवान होती हैं, वे आगे की ओर बढ़कर बुध, सूर्य, शनि तथा गुरु पर्वत को स्पर्श कर लेती हैं, परन्तु कमजोर रेखाएं बीच में ही रह जाती हैं।
ऐसी रेखाएं यद्यपि व्यक्ति को आगे बढ़ाने में सहायक होती हैं, परन्तु यदि ये रेखाएं भाग्य रेखा को काटें तो वह व्यक्ति भाग्यहीन होता है। इसी प्रकार कोई प्रभावक रेखा स्वास्थ्य रेखा को काटती है, तो उस व्यक्ति का स्वास्थ्य अत्यन्त कमजोर होता है।
यदि कोई प्रभावक रेखा मस्तिष्क रेखा को काटे तो वह व्यक्ति अपने जीवन में अवश्य ही पागल होता है।
परन्तु यदि कोई प्रभावक रेखा भाग्य रेखा से जाकर मिल जाती हो, तो उस व्यक्ति का प्रबल भाग्योदय होता है। ऐसे व्यक्ति को आकस्मिक रूप से धन-लाभ होता है तथा अपने व्यक्तित्व के माध्यम से भी वे जीवन में सफलता प्राप्त करते हैं।
यदि कुछ प्रभावक रेखाएं चन्द्र क्षेत्र से उठती हों, तो ऐसा व्यक्ति कवि भावुक, चित्रकार या सौंदर्य प्रेमी होता है। ऐसे व्यक्ति का व्यक्तित्व अत्यन्त सम्मोहक होता है तथा जीवन में प्रसिद्धि प्राप्त करता है ।
यदि शुक्र पर्वत से कुछ प्रभावक रेखाएं उठ रही हों, तो ऐसा व्यक्ति धूर्त, चालाक तथा परस्त्री गामी होता है।
मंगल रेखा से उठने वाली प्रभावक रेखा व्यक्ति को साहसी बना देती है।
विद्या रेखा
यह रेखा मध्यमा और अनामिका के बीच में से निकलती है और रवि क्षेत्र की ओर झुकती हुई आगे बढ़ती है। जिन व्यक्तियों के हाथ में यह रेखा होती है वे व्यक्ति शिक्षा के क्षेत्र में पूर्ण सफलता प्राप्त करते हैं।
कई बार ऐसा भी अनुभव हुआ है कि जिन व्यक्तियों के हाथों में यह रेखा पाई जाती है वे उच्च शिक्षा प्राप्त न करने पर भी अत्यन्त बुद्धिमान एवं ज्ञानवान होते हैं। सभ्य समाज में उनका आदर होता है तथा अपनी बुद्धि के बल से ये पूर्ण सफलता प्राप्त करने में सक्षम होते हैं।
विज्ञान रेखाएं
जिस प्रकार बुध पर्वत के बगल में सन्तान रेखाएं होती हैं, वहीं पर विज्ञान रेखाएं भी होती हैं। यदि बुध पर्वत पर पांच खड़ी रेखाएं हों, तो वे विज्ञान रेखाएं कहलाती हैं जिन व्यक्तियों के हाथों में ये रेखाएं होती हैं, वे या तो स्वयं प्रसिद्ध वैज्ञानिक होते हैं अथवा विज्ञान से सम्बन्धित पुस्तकों के लेखन के माध्यम से वे धन, यश तथा सम्मान प्राप्त करते हैं। ऐसे व्यक्ति तुरन्त निर्णय लेने वाले, चतुर तथा परिश्रमी होते हैं।
यात्रा रेखाएं
यात्रा रेखाएं वे कहलाती हैं, जो व्यक्ति को यात्रा करने के लिए बाध्य कर देती हैं तथा यात्रा के माध्यम से सफलता प्राप्त करते हैं।
यदि कोई रेखा मंगल क्षेत्र से निकल कर जीवन रेखा पर मिलती हो और मध्यभा उंगली के नाखून पर सफेद अर्द्धचन्द्र हो, तो वह व्यक्ति जीवन में कई बार यात्राएं करता है।
यदि मध्यमा उंगली के नाखून पर अर्द्धचन्द्र हो और वह लगभग तीन महीने तक रहे, साथ ही इन्द्र क्षेत्र से निकल कर कोई रेखा सूर्य पर्वत पर पहुंचती है, तो वह व्यक्ति निश्चय ही वायुयान से विदेश यात्रा करता है।
यदि शुक्र पर्वत से कोई रेखा धनुष के समान चन्द्र पर्वत पर पहुंचती हो तथा मध्यमा उंगली पर सफेद अर्द्धचन्द्र हो, तो पानी के जहाज से वह व्यक्ति विदेश यात्रा करता है।
यदि चन्द्र क्षेत्र पर बराबर लम्बी दो रेखाएं ऊपर की ओर उठ रही हों, तो वह व्यक्ति निश्चय ही यात्रा करता है।
यदि शुक्र क्षेत्र से तथा प्रजापति क्षेत्र से भी दो समानान्तर रेखाएं ऊपर की ओर बढ़ती हों, तो निश्चय ही वह व्यक्ति यात्रा करता है।
भ्रातृ-भगिनी रेखाएं
ये रेखाएं शुक्र पर्वत से निकलती हैं तथा मंगल क्षेत्र की ओर जाती हुई दिखाई देती हैं। ये संख्या में जितनी रेखाएं होंगी, उसके उतने ही भाई-बहन होंगे। ये रेखाएं जितनी ही अधिक गहरी स्पष्ट और निर्दोष होती हैं, उस व्यक्ति के भाई बहन उतने ही स्वास्थ्य की दृष्टि से अनुकूल होते हैं। यदि ये रेखाएं कमजोर या टूटी हुई हो, तो उसके भाई-बहनों का स्वास्थ्य भी कमजोर समझा जाना चाहिए।
इन रेखाओं में जो रेखाएं गहरी और चौड़ी होती हैं, वे भाई की सूचक होती हैं तथा पतली रेखाएं बहन की संख्या बताती हैं।
इन रेखाओं में से जो रेखा मार्ग में टूटी हुई हो या छिन्न-भिन्न हो, उस भाई या बहन की मृत्यु उसके जीवन काल में समझनी चाहिए।
यदि किसी के हाथ में ये रेखाएं न हों, तो उस व्यक्ति के कोई भाई या बहन नहीं होता ।
मित्र रेखाएं
उंगली के पोरुओं पर कुछ खड़ी रेखाएं दिखाई देती हैं, ये रेखाएं मित्रों की सूचक होती हैं। यदि प्रोरुओं पर खड़ी रेखाएं न हों, तो समझना चाहिए कि यह व्यक्ति एकान्तप्रिय है तथा इसके जीवन में मित्रों का सहयोग नहीं के बराबर है।
ये रेखाएं जितनी अधिक गहरी स्पष्ट और निर्दोष होती हैं, उसके मित्र उतने ही अधिक विश्वासपात्र तथा समय पड़ने पर काम आने वाले होते हैं। इसके विपरीत यदि ये रेखाएं कमजोर हों तो ऐसे व्यक्ति के जीवन में मित्रों का सहयोग नहीं होता या मित्र उसे जीवन में धोखा देते हैं।
उंगलियों के पोरुओं पर आड़ी रेखाएं शत्रुओं की सूचक होती हैं। यदि ये रेखाएं गहरी और स्पष्ट हों, तो उसके शत्रु भी मजबूत होंगे। इसके विपरीत यदि ये रेखाएं दुर्बल हों या टूटी हुई हो, तो उस व्यक्ति के शत्रु कमजार होंगे तथा शत्रुओं पर वह पूरी तरह से हावी हो सकेगा।
यदि तर्जनी उंगली पर बड़ी लकीरें हों, तो वे नौकरी करने वाले मित्रों की सूचक होती हैं, इस प्रकार तर्जनी उंगली पर आड़ी लकीरें नौकरी करने वाले शत्रुओं की संख्या बताती हैं।
मध्यमा उंगली पर खड़ी लकीरें कलाकार मित्र बनाती है तथा आड़ी लकीरें विश्वासघात करने वाले शत्रुओं की सूचक होती हैं।
अनामिका उंगली पर खड़ी लकीरें उच्च स्तर के मित्र बताती हैं, जबकि आडी लकीरें उच्चपदस्थ अधिकारी शत्रु की सूचक हैं।
कनिष्ठिका उंगली पर खड़ी लकीरें इस बात की सूचक हैं कि उसके मित्र व्यापारी वर्ग से संबंधित होंगे, जबकि आड़ी लकीरें उन शत्रुओं की सूचक हैं, जो व्यापारी वर्ग से संबंधित होकर धोखा देंगे।
यदि खड़ी लकीरें पोरुओं को काटकर आगे बढ़ती हों, तो ऐसे मित्र जीवन में धोखा देने का प्रयास करते हैं। इन रेखाओं का अध्ययन सावधानी के साथ करना चाहिए।
आकस्मिक रेखाएं
हथेली में ये वे रेखाएं कहलाती हैं, जो समय-समय पर पैदा होती हैं और अपना प्रभाव दिखाती हैं। जब उससे संबंधित कार्य समाप्त हो जाता है, तब ये आकस्मिक रेखाएं भी समाप्त हो जाती हैं ये हथेली के किसी भी भाग में या किसी भी पर्वत पर उग सकती हैं या समाप्त हो सकती हैं।
ये रेखाएं जिस रेखा के साथ भी आगे बढ़ती हैं, उस रेखा के गुणों में वृद्धि करती हैं इसके विपरीत यदि ये रेखाएं किसी रेखा को काटती हैं, तो उस रेखा के गुण में न्यूनता ले आती हैं।
हस्तरेखा विशेषज्ञ को इन रेखाओं का अध्ययन भी सावधानी से करना चाहिए।
सुमन रेखा
हथेली में यह रेखा केतु पर्वत से निकल कर बुध क्षेत्र तक जाती हुई दिखाई देती है, यदि यह रेखा स्वास्थ्य रेखा को स्पर्श करती है, तो उस व्यक्ति को भयंकर बीमारी भोगनी पड़ती है। परन्तु यदि यह रेखा स्वास्थ्य रेखा के समानान्तर चलती हो, तो उसका स्वास्थ्य अच्छा रहता है।
यदि यह रेखा बिना किसी रेखा को काटे हुए बुध पर्वत तक पहुंच जाती है, तो वह व्यक्ति देश का सम्माननीय व्यक्ति होता है तथा कूटनीतिक क्षेत्र में वह अत्यन्त उच्च पद पर पहुंचता है।
यदि यह रेखा जंजीरदार हो, तो उसे परिवार का सुख नहीं मिलता। इसी प्रकार यदि यह रेखा लहरदार हो तो वह पीलिये के रोग से पीड़ित रहता है।
यदि यह रेखा अन्त में दो भागों में बंट जाती है, तो वह व्यक्ति नपुंसक होता है।
यदि इस रेखा का एक सिरा शुक्र पर्वत पर पहुंचता हो तो वह व्यक्ति जरूरत से ज्यादा कामी तथा भोगी होता है।
मणिबन्ध रेखाएं
कलाई पर तीन आड़ी रेखाएं मणिबन्ध रेखाएं कहलाती हैं। कुछ लोगों के हाथों में दो मणिबन्ध रेखाएं होती हैं, तो कुछ के हाथों में चार मणिबन्ध रेखाएं भी देखी गई हैं। ये रेखाएं स्वास्थ्य, धन, प्रतिष्ठा एवं सम्मान की सूचक होती हैं।
मणिबन्ध से यदि कोई रेखा निकलकर ऊपर की ओर जाती हो तो उसकी मनोकामनाएं उसके जीवन में ही पूरी हो जाती हैं।
यदि मणिबन्ध से कोई रेखा निकलकर चन्द्र पर्वत की ओर जा रही हो, तो वह जीवन में कई बार विदेश यात्राएं करता है।
सामुद्रिक शास्त्र के अनुसार यदि कलाई पर चार मणिबन्ध रेखाएं हों, तो उसकी पूर्ण आयु 100 वर्ष होती है। जिसके हाथ में तीन मणिबन्ध रेखाएं होती हैं, उसकी आयु 75 वर्ष दो रेखाएं होने पर 50 वर्ष तथा एक मणिबन्ध रेखा होने पर उसकी आयु 25 वर्ष होती है।
यदि मणिबन्ध रेखाएं टूटी हुई या छिन्न-भिन्न हों, तो उस व्यक्ति के जीवन में बराबर बाधाएं आती रहती हैं। इसके विपरीत यदि ये रेखाएं निर्दोष तथा स्पष्ट हों, तो उसका प्रबल भाग्योदय होता है।
यदि मणिबन्ध रेखा जंजीरदार हो तो उसके जीवन में बराबर बाधाएं आती रहती हैं। इस पर यदि बिन्दु हो तो उसे जीवन में पेट से सम्बन्धित रोग भोगने पड़ते हैं। यदि मणिबन्ध रेखा पर द्वीप का चिन्ह हो तो उसे जीवन में दुर्घटनाओं का सामना करना पड़ता है। जंजीर के समान मणिबन्ध रेखा दुर्भाग्य की सूचक कहलाती है।
यदि दो मणिबन्ध रेखाएं आपस में मिल जाती हों, तो दुर्घटना से उसका अंग-भंग होता है।
यदि ये रेखाएं नीली हो तो वह जीवन भर बीमार बना रहता है।
पीली मणिबन्ध रेखाएं इस बात की सूचक होती हैं कि विश्वासघात की वजह से उसे जीवन में जरूरत से ज्यादा कष्ट उठाना पड़ेगा।
वास्तव में मणिबन्ध रेखाएं जितनी अधिक स्पष्ट गहरी तथा निर्दोष होती हैं, उतनी ही ज्यादा श्रेष्ठ कही जाती हैं।
शुक्र रेखाएं
शुक्र पर्वत पर जो खड़ी तथा आड़ी रेखाएं होती हैं, उन्हें शुक्र रेखाएं कहा जाता है। परन्तु इनके बारे में यह ध्यान रखना चाहिए कि जो रेखाएं अंगूठे से आयु रेखा की ओर जा रही हों, मात्र वे ही शुक्र रेखाएं कहला सकती हैं।
यदि ये रेखाएं गहरी स्पष्ट तथा निर्दोष हों तो ऐसी रेखाएं शुभ फल देने में सहायक होंगी। इसके विपरीत यदि ये रेखाएं टूटी हुई कमजोर तथा छिन्न-भिन्न हों, तो ऐसे व्यक्ति को जीवन में कई बाधाओं का सामना करना पड़ता है। उसका भाग्योदय विलम्ब से होता है, तथा समाज से बदनामी का सामना करना पड़ता है।
बुधवलय
यदि कोई रेखा अनामिका और कनिष्ठिका के बीच में से निकल कर बुध पर्वत को घेरती हुई हथेली के पार पहुंचे, तो इस प्रकार से जो वलय बनता है यह बुध वलय कहलाता है।
ऐसा बुध वलय बुध के गुणों को कमजोर करता है। वाल्यावस्था में उसे शिक्षा के क्षेत्र में बहुत ज्यादा परेशानियों का सामना करना पड़ता है। यौवन में भौतिक सुख नहीं भोग पाता तथा आगे का पूरा जीवन दुखमय ही बना रहता है।
रहस्य क्रॉस
यह हृदय रेखा और मस्तिष्क रेखा के बीच में बनने वाला क्रॉस होता है। जिसको रहस्य क्रॉस कहते हैं। जिस व्यक्ति की हथेली में यह क्रॉस होता है, वह वैज्ञानिक दृष्टि सम्पन्न व्यक्ति होता है।
यदि यह क्रॉस गुरु पर्वत के नीचे हो, तो व्यक्ति अपने लक्ष्य को प्राप्त करके ही रहता है।
यदि यह शनि पर्वत के नीचे हो, तो वह व्यक्ति साहित्य के क्षेत्र में उच्चस्तरीय प्रसिद्धि प्राप्त करता है।
यदि यह क्रॉस चन्द्र पर्वत के समीप हो, तो वह व्यक्ति कवि होता है। इस क्रॉस से जो भी पर्वत प्रभावित होता है, उस पर्वत के गुणों में विशेष वृद्धि होती है।
दुर्घटना रेखाएं
शनि पर्वत से जो रेखाएं निकल कर मस्तिष्क रेखा को काटती हैं वे दुर्घटना रेखाएं कहलाती हैं।
क्रॉस का चिन्ह दुर्घटना की ओर संकेत करता है। यदि गुरु पर्वत पर क्रॉस का चिन्ह हो तो वह शुभ फल देने वाला तथा भाग्यवर्द्धक होता है।
शनि पर्वत पर क्रॉस का चिन्ह दुर्घटना में मृत्यु का संकेत करता है।
यदि मंगल पर्वत पर क्रॉस हो, तो वह व्यक्ति युद्ध में मारा जाता है।
यदि सूर्य पर्वत पर क्रॉस का चिन्ह हो, तो उसकी मृत्यु विश्वासघात से होगी ।
बुध पर्वत पर क्रॉस का चिन्ह इस बात का सूचक है कि उसकी मृत्यु किसी तेज गति वाले वाहन से दुर्घटना के फलस्वरूप होगी।
चन्द्र पर्वत पर क्रॉस का चिन्ह जल में डूबने से मृत्यु का संकेत करता है।
यदि मस्तिष्क रेखा पर क्रॉस हो, तो वह व्यक्ति पागल होता है।
हृदय रेखा पर क्रॉस विधुर जीवन का संकेत करता है।
त्रिकोण
हथेली में मस्तिष्क रेखा, जीवन रेखा और बुध रेखा से मिलकर जो त्रिकोण बनता है, वह त्रिकोण अतुलनीय धनप्राप्ति का संकेत है। ऐसे व्यक्ति को जीवन में आकस्मिक रूप से श्रेष्ठ धन लाभ होता है।
आयत
यदि हथेली में मस्तिष्क रेखा तथा हृदय रेखा मिलकर एक आयत की रचना करते हों, तो ऐसा व्यक्ति बुद्धिमान और सहृदय होता है। साथ ही उसे समाज से विशेष यश तथा सम्मान मिलता है।
ऊपर मैंने छोटी-छोटी रेखाओं का संक्षेप में परिचय दिया है। वस्तुतः हथेली में पाई जाने वाली प्रत्येक छोटी रेखा का अपने आप में महत्व होता है। अतः हस्तरेखा विशेष को चाहिए कि वह किसी भी रेखा को बेकार न समझे अपितु उसका सूक्ष्मतापूर्वक अध्ययन करे। ऐसा करने पर वह अपने उद्देश्यों में पूर्णतः सफलता प्राप्त कर सकेगा।
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