नीचता भंग राजयोग

नीचता भग राजयोग ग्रहों की नीचता के भंग से उत्पन्न होता है । और वह नीचता नीच राशि के स्वामी आदि के चन्द्र तथा लग्न से केन्द्र में स्थित होने से भंग होती है।

इस नीचता भंग राजयोग की परिभाषाशास्त्रों में इस प्रकार आई है :-

नीच स्थितो जन्मनि यो ग्रहः स्यात् तद्राशिनाथोऽथ तदुच्चनाथः । सः चेत् विलग्नात् केन्द्रवर्ती, राजा भवेत् धार्मिकचक्रवर्ती ॥

अर्थ :- जन्म कुण्डली में जो ग्रह नीच राशि में स्थित हो यदि उसकी नीच राशि का स्वामी लग्न से केन्द्र में स्थित हो अथवा उसकी उच्च राशि का स्वामी यदि लग्न से केन्द्र में स्थित हो तो मनुष्य धार्मिक चक्रवती राजा होता है। भाव यह है कि बहुत धनाढ्य होता है, क्योंकि चक्रवर्ती राजाओं का युग तो कब का जा चुका है।

इस नीचता भंग राजयोग के पीछे क्या फिलास्फी है इसका पूरा पता लगाना तो कठिन है, परन्तु ऐसा प्रतीत होता है कि इतना अवश्य है कि कथित ग्रहों की केन्द्रस्थिति से उनको बल मिलता है जिसके फलस्वरूप ग्रह नीचता का फल न देकर अच्छा फल देते हैं ।

नीचताभंग राजयोग की पृष्ठभूमि में नीच राश्यधिपति का बल-रूप कारण है। इस बात की पुष्टि इस तथ्य से भी होती है कि शास्त्रों में कहा है कि उस नीच राशि का स्वामी केन्द्र में होता हुआ यदि पुनः नीच हो तो नीचताभंग नहीं होता । इस सम्बन्ध में ‘देवकेरल’ कार का कहना है कि-

नीचस्तु नीचाधिपतेर्यदि स्यात्

केन्द्रस्थितो नैनमुपैति भंगम् ॥”

अर्थात् नीच राशि का स्वामी केन्द्र स्थित भी भंग को प्राप्त नहीं होता । यदि वह नीच राशि में पड़ जावे । निष्कर्ष यह कि नीच राशि के स्वामी का बलवान होना अपेक्षित है ।

नीचता भंग राजयोग, nichta bhang rajyoga
कुण्डली सं० 1

नीचता भंग राजयोग का एक उदाहरण साथ की कुण्डली सं० 1 में देखिये । यह एक सिविलियन आफिसर हैं जो एयर लाइन कारपोरेशन में अच्छा वेतन पा रहे हैं । लग्नाधिपति सूर्य नीच है परन्तु नीच राशि तुला का स्वामी शुक्र चतुर्थ स्थान में है जो कि लग्न से केन्द्र स्थान है । वही शुक्र चन्द्र से भी दशम केन्द्र में स्थित है। अतः नीचताभंग राजयोग सिद्ध हुआ जिसके फलस्वरूप उनका राज्य से संवन्धित कम्पनी में प्रतिष्ठित पद पर होना भी प्रमाणित हुआ ।

गृह विभाग के मन्त्री श्री चौहान की अग्रिम कु० सं० 2 में द्वितीय स्थान का स्वामी स्वयं धनकारक गुरु है और वह गुरु द्वादश स्थान में ही नहीं वहां पर नीच राशि मकर में भी स्थित है अतः धन के अभाव का सूचक होना चाहिये था परन्तु नीच राशि का स्वामी शनि लग्न तथा सूर्य लग्न दोनों से केन्द्र स्थान में स्थित है।

कु० सं० 2

शनि की इस स्थिति द्वारा गुरु की नीचता भङ्ग हुई और गुरु सम्बन्ध बातों की प्राप्ति हुई । गुरु चूँकि धनाधिपति भी है यह धन की आय को भी उत्तम करता है। और शासन ( जिसका सम्बन्ध भी द्वितीय स्थान से है ) की प्राप्ति भी करवाता है ।

नीचे एक कुण्डली सं० 3 एक एम. ए. पी. एच. डी, डीलिट् सज्जन की दी जा रही है यह मुसलमान सज्जन ऊंची ऊंची डिग्रियों को रखते हुए भी जीवनभर 20 हजार से अधिक मासिक वेतन न प्राप्त कर सके । कारण लाभाधिपती सूर्य की लग्न में नीचता है। सूर्य को नीचता भङ्ग भी मिला, क्योंकि न हीं नीच राशि का स्वामी शुक्र, न उच्च राशि का स्वामी मंगल लग्न या चन्द्र से केन्द्र में स्थित है ।

कु० सं० 3

यह भी कोई आवश्यक नहीं कि सब अवस्थाओं में नीच ग्रह बुरा ही करने वाला हो । बहुधा यह देखा गया है कि शुभ भावों का स्वामी होता हुआ शनि नीच राशि में पड़ कर भी शुभ फल ही प्रदान करता है। इसमें एक विशेष कारण है । वह यह कि ग्रह जब अपने भाव पर दृष्टि डालता है तो उसे बलवान करता है । इस नियम के अनुसार मेष राशि में स्थित नीच शनि मकर राशि को पूर्ण दृष्टि से देखता है और यदि वह मकर राशि लग्न आदि शुभ भावों में पड़ जावे तो आयु धन यश आदि शुभ गुणों की प्राप्ति होती है।

निम्न लिखित कुण्डली संख्या 4 एक प्रसिद्ध अभिनेता की है । इस अभिनेता का शनि. लग्नेश हो कर नीच का पड़ा है और नीच राशि का स्वामी मंगल लग्न अथवा चन्द्र से केन्द्र में नहीं है । और न तुला राशि का स्वामी शुक्र (तुला) इस लग्न से अथवा चन्द्र से केन्द्र में है । तात्पर्य यह कि शनि को नीच भङ्ग प्राप्त नहीं हुआ तो भी शनि शुभ फल दे रहा है।

कुण्डली संख्या 4

कारण जैसा हम कह चुके हैं शनि का अपनी राशि मकर को देखना है। जिस से लग्न को बल मिल रहा है, और हर प्रकार का सुख देने वाला शनि बन रहा है ।

इस प्रकार विवेचन से देखा गया कि ग्रह बली हो कर इतना शुभ फल नहीं देते, इतना धनी यशस्वी एवं शासन-शक्तियुक्त नहीं बनाते, जितना कि तब जब की वह शुभ घरों के स्वामी हो कर नीच हों और उस नीचता का भङ्ग उक्तरीति अनुसार बनता हो ।


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