कर्क लग्न की कुंड्ली का फल
राशि चक्र में यह चौथी राशि है । कालपुरुष में इसका स्थान हृदय पर है। इसका स्वरूप केकड़े के समान है । इसका निवास बावड़ी, पोखर, जलाशय या जल का किनारा है। सम राशि, स्त्री संज्ञक, उत्तर दिशा की स्वामिनी, सौम्य भावना, चर संज्ञक, पृष्ठोदय तथा रात्रि में बली यह राशि जलचर कहलाती है ।
चतुर्थ भाव में इसे पूर्ण बल मिलता है। यह धातु संज्ञक, शूद्र वर्ण तथा लग्न गण्डान्त कहलाती है। इसका रंग रक्तश्वेत है तथा इसका स्वामी चन्द्रमा है जो मन का प्रतिनिधि ग्रह है ।
कर्क लग्न की कुंड्ली के फलित बिन्दु
सूर्य – धनेश, सामान्य मारकेश भी, अकारक ।
चन्द्र – लग्नेश, कारक ।
मंगल – पूर्ण कारक ग्रह, पंचमेश, राज्येश ।
बुध – अकारक, पराक्रमेश, व्ययेश ।
गुरु – षष्ठेश, भाग्येश, अकारक ।
शुक्र – अकारक, सुखेश, आयेश ।
शनि – सप्तमेश अष्टमेश, तटस्थ ।
(1) गुरु जिस भाव में भी बैठेगा उस भाव की हानि ही करेगा, या लग्न में बैठकर स्वास्थ्य की क्षीणता, दूसरे भाव में धनबाधा, तीसरे भाव में कुटुम्ब-विरोध, तथा चतुर्थ भाव में मातृ-वियोग आदि समझना चाहिए ।
(2) बुध अकारक ही है, यद्यपि ‘भावार्थं रत्नाकर’ ने बुध को कारक माना है परन्तु मेरे अनुभव से बुध शुभ फल प्रदान नहीं करता, यों भी वह त्रिषडायेश एवं व्ययेश है अतः शुभफल दायक कम देखा गया है।
(3) मंगल केन्द्र तथा त्रिकोण दो भावों का अधिपति होकर शुभ बन जाता है। यदि यह चन्द्रमा से योग करता है तो विशेष शुभदायक बन जाता है। मंगल एकमात्र पूर्ण कारक ग्रह है, अतः यह जहां भी बैठगा या जिस भाव को भी पूर्ण देखेगा उस भाव की वृद्धि करेगा।
(4) शुक्र कर्क लग्न की कुण्डली में अकारक ही कहलाता है, फिर भी यदि वह द्वादश या द्वितीय भाव में हो तो विशेष धनदायक एवं कारक ग्रह हो जाता है। इसका कारण यह है कि बारहवें भाव में शुक्र आय स्थान (एकादश भाव) से दूसरा होगा । दूसरा स्थान धन स्थान कहलाता है, अतः आय स्थान से धन स्थान में होगा ।
दूसरे भाव में वह इसलिए योगकारक होगा कि वह अपनी राशि तुला के एकादश भाव में (आय भाव) तथा दूसरी राशि बुध वृष से केन्द्र स्थान में होगा, अतः दोनों ही स्थितियों में वह योगकारक रहेगा ।
(5) चन्द्र-मंगल-गुरु दूसरे भाव में तथा शुक्र-सूर्य पाँचवें भाव में हों तो व्यक्ति निर्धन तथा विपन्नावस्था में भी जन्म लेकर करोड़पति होता है ।
(6) यों तो बुध सामान्यतः अकारक ही है पर यदि बुध-शुक्र के साथ पंचम भाव में बैठ जाये तो बुध में कारकत्व गुण आ जाता है और वह अपनी दशा अन्तर्दशा में श्रेष्ठ धनलाभ एवं भाग्यवृद्धि में सहायक होता है ।
(7) ग्यारहवें भाव में बुध-शुक्र एवं चन्द्र हों तथा सूर्य दशम भाव में एवं गुरु लग्न में हो तो व्यक्ति विश्वविख्यात एवं कीर्तियुक्त होता है ।
इसका तात्पर्य यह है कि सूर्य दशम भाव में उच्च का तथा गुरु लग्न में उच्च का हो जायेगा, फिर भाग्य भाव पर भी भाग्येश की दृष्टि होगी, ग्यारहवें भाव में चन्द्र उच्च का तथा शुक्र व राशि का हो जायेगा । इस प्रकार जब तीन ग्रह उच्च के हो जायेंगे तो व्यक्ति निस्सन्देह उच्च श्रेणी का होगा ही ।
(8) सूर्य-मंगल दशम भाव में श्रेष्ठतम स्थिति में होंगे, अतः व्यक्ति मंगल की दशा में लखपति होता है पर गुरु की दशा उसके लिये भयंकर मारकेश भी बन जाती है ।
इसमें भी मंगल स्वराशिस्थ एवं सूर्य उच्च राशिस्थ हो जाता है। दोनों केन्द्र में हैं तथा मंगल पंचमहापुरुष योग में से एक योग बनाने में भी समर्थ होता है ।
(9) सूर्य दूसरे भाव में, बुध तीसरे भाव में गुरु के साथ, शुक्र चौथे भाव में एवं मंगल छठे भाव में हो तो व्यक्ति अपने बाहुबल से श्रेष्ठ धन लाभ करता है तथा श्रेष्ठतम व्यक्तियों से उसका सम्पर्क होता है ।
(10) यदि बुध एवं शुक्र बारहवें भाव में हों तो शुक्र की दशा जीवन की श्रेष्ठतम दशा होती है तथा इस दशा में व्यक्ति ख्याति, यश एवं अर्थ लाभ करता है ।
(11) लग्न में चन्द्र तथा गुरु हों तो विशेष राज योग होता है।
(12) लग्न में चन्द्र एवं सप्तम भाव में मंगल हो तो व्यक्ति अतुलनीय धनयुक्त होता है ।
(13) शनि चौथे भाव में, गुरु लग्न में तथा मंगल सप्तम भाव में हों तो व्यक्ति विश्वविख्यात होने के साथ-साथ पूर्ण सुखोपभोग भी करता है ।
(14) दशम भाव में सूर्य एवं लग्न में चन्द्र हो तो विशेष राजयोग सिद्ध होता है ।
(15) सूर्य-बुध लग्न में शुक्र चौथे भाव में तथा चन्द्र मंगल- गुरु ग्यारहवें भाव में हों तो व्यक्ति व्यापार में अतुलनीय धन कमाता है तथा प्रत्येक कार्य में भाग्य उसका साथ देता रहता है ।
(16) कर्क में मात्र चन्द्रमा हो तो व्यक्ति तेजी से चौंकाने वाले कार्य करता है । ऐसे व्यक्ति शीघ्रताप्रिय होते हैं । अपने निश्चयों में वे शीघ्र ही परिवर्तन कर लेते हैं तथा उदार एवं सहिष्णु स्वभाव के होते हैं ।
(17) बुध का सम्बन्ध सूर्य एवं चन्द्र से हो तो व्यक्ति लेखन-कला में निपुण होता है तथा साहित्यानुरागी हो जाता है ।
बुध की श्रेष्ठतम स्थिति यानि पंचम भाव में बुध अकेला हो तथा उस पर शनि या राहु की दृष्टि न हो तो व्यक्ति निस्सन्देह बुध की दशा में लखपति होता है पर इसमें यह भी ध्यान रखना ज़रूरी है कि तीसरे भाव पर भी पाप ग्रहों की दृष्टि न हो ।
(18) शुक्र केवल सातवें या बारहवें भाव में हो तो माँ विविध रोगों से कष्ट पाती है तथा राहु की दशा में व्यक्ति स्वयं भी मृत्यु को प्राप्त कर सकता है।
(19) शनि सप्तम या अष्टम भाव में हो तो व्यक्ति की स्त्री कर्कश स्वभाव की होती है तथा उसे गृहस्थ सुख न्यून या सम बना रहता है ।
(२०) मंगल की स्थिति सप्तम, पंचम अथवा दशम भाव में विशिष्ट राजयोगकारक होती है।
कर्क लग्न कुंड्ली दशाफल
सूर्य महादशा
सूर्य – कष्टदायक, मारक ।
चन्द्र – व्ययप्रधान ।
मंगल – श्रेष्ठ, प्रोमोशन, राज्योन्नति ।
राहु – सामान्य ।
गुरु – शुभ, फलदायक |
शनि – पूर्वार्द्ध कष्टदायक, उत्तरार्द्ध शुभ ।
बुध – लाभदायक ।
केतु – अनुकूल, उन्नतिदायक ।
शुक्र – फलदायक ।
चन्द्र महादशा
चन्द्र अन्तर – आत्मोन्नति, फलदायक ।
मंगल – श्रेष्ठतम, धनलाभ ।
राहु – परेशानियां, दुख ।
गुरु – शुभ, अनुकूल ।
शनि – बाधायुक्त ।
बुध – व्ययप्रधान पर पूर्वार्द्ध शुभ ।
केतु – अनुकूल, उन्नति ।
शुक्र – भाग्योन्नति, लाभयुक्त ।
सूर्य – शुभ, धनलाभ ।
मंगल महादशा
मंगल अन्तर – श्रेष्ठतम धनलाभ ।
राहु – शुभ |
गुरु – पूर्ण धनलाभ, व्यापारवृद्धि ।
शनि – कुटुम्ब सुख, वाहनलाभ ।
बुध – दुखदायक, व्ययप्रधान ।
केतु – अनुकूल ।
शुक्र – सामान्य ।
सूर्य – उन्नति, प्रोमोशन, लाभदायक ।
चन्द्र – सर्वतोमुखी उन्नति ।
राहू महादशा
राहु अन्तर – व्ययसाध्य, दुखकर
गुरु – अशुभ |
शनि – मृत्युसम दुख ।
बुध – व्ययप्रधान, हानि ।
केतु – मानसिक परेशानियां ।
शुक्र – शुभ फलदायक ।
सूर्य – भाग्यवर्धक ।
चन्द्र – चिन्ताजनक |
मंगल – शुभ, उन्नतिदायक ।
गुरु महादशा
गुरु अन्तर – पूर्वार्द्ध कष्टदायक, उत्तरार्द्ध शुभ
शनि – लाभदायक ।
बुध – अनुकूल, उन्नतिप्रधान ।
केतु – शुभ ।
शुक्र – लाभदायक ।
सूर्य – अनुकूल, लाभदायक ।
चन्द्र – भाग्यवर्द्धक ।
मंगल – श्रेष्ठतम ।
राहु – हानि, कार्यबाधा ।
शनि महादशा
शनि अंतर – पूर्वार्द्ध श्रेष्ठतम, उत्तरार्द्ध पतनकारक ।
बुध – सामान्य |
केतु – हानिदायक ।
शुक्र – शुभ फलदायक ।
सूर्य – भाग्यकारक |
चन्द्र – उन्नतिकारक ।
मंगल – सर्वतोमुखी उन्नति ।
राहु – उन्नतिदायक ।
गुरु – शुभ ।
बुध महादशा
बुध अन्तर – पूर्वार्द्ध शुभ, उत्तरार्द्ध व्ययाधिक्य
केंतु – शुभ ।
शुक्र – लाभदायक, उन्नतिप्रधान ।
सूर्य – शुभ फलदायक ।
चन्द्र – उन्नतिपूर्ण |
मंगल- श्रेष्ठतम ।
राहु – कष्टकर, मारक ।
गुरु – सामान्य |
शनि – मारकेश |
राहू महादशा
केतु अन्तर – उन्नतिपूर्ण, प्रोमोशन ।
शुक्र – लाभदायक ।
सूर्य – धनलाभ |
चन्द्र – उन्नति, यश-सम्मानवृद्धि ।
मंगल – शुभ |
राहु – मानसिक कष्टप्रधान ।
गुरु – हानिदायक ।
शनि – कष्टदायक |
बुध – उन्नतिदायक ।
शुक्र महादशा
शुक्र अन्तर – श्रेष्ठतम ।
सूर्य – प्रबल धनयोग ।
चन्द्र – प्रतिष्ठा ।
मंगल – श्रेष्ठतम ।
राहु – अपमान, पतन ।
गुरु – कष्टदायक, मृत्यु
बुध – लाभदायक.
केतु – शुभ |
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