हस्तरेखा शास्त्र

ईश्वर ने हाथ में जो रेखाएं अंकित की हैं, वे बहुत सोच-समझकर अंकित की हैं। हाथ में पाई जाने वाली प्रत्येक रेखा का अपना महत्व है और किसी भी एक रेखा का सम्बन्ध दूसरी रेखा से होता है।

एक कुशल हस्तरेखा विशेषज्ञ को चाहिए कि वह हथेली पर पाई जाने वाली प्रत्येक रेखा को अपनी आंख से ओझल न होने दे, अपितु छोटी से छोटी रेखा को उतना ही महत्त्व दे जितना कि बड़ी और प्रमुख रेखा का महत्त्व होता है।

यदि हम एक रेखा को ध्यान में रखकर अपना निर्णय सुना दें तो उसमें गलती होने की संभावना हो जाती है, इसलिए प्रमुख रेखा एवं उसकी सहायक रेखाओं का भली भांति अध्ययन करना चाहिए और उसके बाद ही उससे सम्बन्धित भविष्य कथन स्पष्ट करना चाहिए।

दाहिने हाथ को देखना चाहिए अथवा बायें हाथ को ?

कई लोगों की यह महज जिज्ञासा होती है कि दाहिने हाथ को महत्त्व देना चाहिए अथवा बायें हाथ को ? अलग- अलग लोगों का इस सम्बन्ध में अलग-अलग मत है। कुछ लोग दाहिने हाथ को ही महत्व देते हैं। उनकी दृष्टि में बायें हाथ का कोई महत्व नहीं है, जबकि कुछ लोग बायें हाथ को ही.. प्रधानता देते हैं। उनका कहना है कि दाहिना हाथ सक्रिय होने के कारण उसमें बहुत जल्दी-जल्दी रेखाएं बदल जाती हैं, जबकि बायें हाथ में रेखाएं ज्यादा समय तक टिकी रहती हैं। कुछ लोगों का यह भी मत है कि दोनों ही हाथों का बराबर अध्ययन करना चाहिए।

परन्तु मैं ऐसा समझता हूं कि दाहिने हाथ को ही विशेष रूप से महत्त्व दे क्योंकि हम अपने जीवन में अधिकतर कार्य दाहिने हाथ से करते हैं. अन हमारी सक्रियता दाहिने हाथ से आंकी जा सकती है। यहां यह बात ध्यान रखनी चाहिए कि जो व्यक्ति बायें हाथ से लिखते हैं या जीवन का अधिकतर कार्य बायें हाथ से करते हैं: उनका हाथ देखते समय उनके बायें हाथ को महत्व देना चाहिए। इसी प्रकार जो महिलाएं स्वयं अपने पैरों पर खड़ी हैं या नौकरी कर रही हैं अथवा अपनी बुद्धि से अपने विचारों से तथा अपने हाथों से धनोपार्जन में सक्रिय हैं, उनका भी दाहिना हाथ ही देखना चाहिए।

यहां यह प्रश्न उठता है कि जब जीवन में दाहिने हाथ का ही महत्त्व है, तो बायें हाथ की क्या उपयोगिता है? मैंने ऊपर ही यह बात स्पष्ट कर दी है कि जो व्यक्ति बायें हाथ से ही लिखते हैं या जिनका बायां हाथ ज्यादा सक्रिय है, उनके बायें हाथ को ही महत्त्व देना चाहिए। साथ ही साथ उन स्त्रियों का भी बायां हाथ ही देखना चाहिए जो पराश्रयी हैं या जो अपने पति पर अथवा अपने पिता पर आश्रित हैं। इसी प्रकार जो पुरुष बेकार हैं या स्वयं धनोपार्जन में सक्षम नहीं हैं. उनका भी भविष्य स्पष्ट करते समय बायें हाथ को ही महत्त्व देना चाहिए।

इसके साथ ही साथ इस बात का भी ध्यान रखना चाहिए कि जब हम किसी पुरुष के दाहिने हाथ को महत्त्व दें और उस हाथ में कोई बात स्पष्ट दिखाई न दे, तो उसकी स्पष्टता के लिए दूसरे हाथ का अर्थात् बायें हाथ का आश्रय लेना चाहिए। इस प्रकार यदि कोई तथ्य या घटना दोनों ही हाथों से दिखाई दे तो उस घटना को प्रामाणिक मानना चाहिए।

इसी प्रकार जो महिलाएं राजकीय सेवा में हैं अथवा स्वतंत्र व्यवसाय में संलग्न हैं, उनका दाहिना हाथ देखना चाहिए, पर इसके साथ ही साथ यदि कोई बात पूर्णतः स्पष्ट नहीं होती है तो उसकी स्पष्टता बायें हाथ को देखकर ज्ञात कर लेनी चाहिए।

क्या हाथ की रेखाओं के माध्यम से भविष्यफल स्पष्ट किया जा सकता है?  

प्रश्न उठता है कि क्या हाथ की रेखाओं के माध्यम से सही और सफल भविष्यफल स्पष्ट किया जा सकता है?  कई लोग इस मामले में सन्देह करते हैं। अधिकतर लोग इस तथ्य को मेरे सामने व्यक्त करते हैं कि जब हाथ की रेखाएं बराबर बदलती रहती हैं, तो फिर उससे भविष्यफल कैसे ज्ञात किया जा सकता है? कुछ लोगों ने यह भी प्रश्न किया कि विद्वानों के अनुसार सात वर्षों में पूरे हाथ की रेखाएं बिल्कुल बदल जाती हैं, तब फिर अगले दस वर्षों का भविष्य या बीस वर्षों का भविष्यफल ज्ञात करना असम्भव सा ही है।

परन्तु जैसा कि मैं पीछे स्पष्ट कर चुका हूं कि ये बातें उन लोगों ने फैलाई हैं, जिन्हें हस्तरेखा का पूर्ण ज्ञान नहीं है या जिनका ज्ञान केवल किताबी ज्ञान है। वास्तविकता यह है कि हाथ की रेखाए बदलती नहीं है। हाथ में जो मूल रेखाएं हैं, वे ज्यों की त्यों विद्यमान रहती हैं। इनकी सहायक रेखाएं कुछ समय के लिए बनती है और भावी तथ्यों का संकेत देती हुई मिट जाती हैं। इनके साथ ही साथ हाथ पर पाये जाने वाले कुछ ऐसे चिन्ह अवश्य होते हैं, जो कुछ समय के लिए बनते हैं और मिट जाते हैं। उन चिन्हों का बनना विशेष घटनाओं का प्रतीक है। इसी प्रकार उन चिन्हों का मिट जाना भी अपने आप में आने वाले भविष्य का संकेत है। अत: वे चिन्ह बनकर अथवा मिटकर आने वाले समय के तथ्यों का निरूपण ही करते हैं।

इसके साथ ही साथ यह बात भी स्पष्ट है कि वे चिन्ह मिट भले ही जाते हैं, परन्तु अपना स्मृति-चिन्ह अंकित करके ही जाते हैं और वे स्मृति-चिन्ह बराबर कायम रहते हैं। अतः यह कहना कि कोई चिन्ह हमेशा-हमेशा के लिए समाप्त हो जाता है प्रामाणिक नहीं है। उन स्मृति-चिन्हों के माध्यम से हस्तरेखा विशेषज्ञ आने वाली घटनाओं का वर्णन कर लेता है।

मैंने हस्तरेखा की प्रामाणिकता के लिए अनुभव जन्य परीक्षण किए। आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि विशेष तथ्य के लिए एक विशेष चिन्ह होता है, और उस विशेष चिन्ह के माध्यम से उस व्यक्ति के व्यक्तित्व को समझा जा सकता है। जिस प्रकार जन्मकुण्डली को समझने के लिए और उसके माध्यम से सही भविष्य स्पष्ट करने के लिए इस बात का ज्ञान जिस ज्योतिषी को हो कि इस जन्मकुण्डली का मूल कौन-सा ग्रह है, जिसने इसके सारे व्यक्तित्त्व को प्रभावित कर रखा है। जब उस ग्रह की पकड़ आ जाती है या उस ग्रह को समझ लिया जाता है तब उस व्यक्ति का व्यक्तित्त्व पूरी तरह से हमारे सामने साकार हो जाता है।

इसी प्रकार पूरे हाथ को देखने से पहले यह जानकारी प्राप्त कर लेनी ज्यादा उचित रहती है कि इस हाथ में वह कौन सा चिन्ह है, जिसके माध्यम से इसके पूरे व्यक्तित्व को समझा जा सके।

मैंने परीक्षण के लिए कई हत्यारों के हाथ देखे और मैंने उन हत्यारों के भी हाथ देखे हैं, जिन्होंने अपने ही हाथों से जीवन में किसी का खून किया है. या किसी व्यक्ति के प्राण लिए हैं। उन सभी हाथों में एक चिन्ह समान था, वह यह कि हत्यारे का अंगूठा छोटा तथा अंगूठे का ऊपरी सिरा चपटा होता है। साथ ही साथ अंगूठे का नाखून छोटा और लगभग गोल सा होता है। यह चिन्ह अपने आप में एक विशेष चिन्ह है और इस परीक्षण के माध्यम से यह बात स्पष्ट हो गई कि जिस व्यक्ति का अंगूठा सामान्यतः उसकी अंगुलियों के अनुपान से छोटा तथा भारीपन लिये हुए होगा तथा जिसके अंगूठे का सिरा मोटा थुलथुला होने के साथ-साथ उस पर अंकित नाखून गोल-सा होगा, वह व्यक्ति निश्चय ही अपने जीवन में हत्यारा होगा और किसी की हत्या करने के कारण जेल जीवन व्यतीत करेगा।

एक और उदाहरण से मैं इस बात को प्रामाणिक कर देना चाहता हूं कि हाथ की रेखाएं जो भी कहती हैं, वह अपने आप में पूर्ण सत्य होता है। मृत्यु का समय तथा मृत्यु की तारीख हाथ की रेखाएं काफी समय पहले स्पष्ट कर देती हैं। मृत्यु से 6 माह पूर्व मध्यमा उंगली के नाखूनों पर आड़ी-तिरछी रेखाओं का जाल-सा बन जाता है। जब ऐसा जान दिखाई देने लग जाए तब यह समझ लेना चाहिए कि यह व्यक्ति अब छः महीनों से ज्यादा जीवित नहीं रह सकेगा।

मैंने अपने जीवन में लगभग 15 – 20 व्यक्तियों के हाथों में जिस समय ये चिन्ह देखे, उस समय वे पूर्णतः स्वस्थ थे. परन्तु उनकी मृत्यु की सूचना आगे पांच-छः महीनों में ही मिल गई। ठीक इसी प्रकार मृत्यु से सम्बन्धित रेखाएं तीन प्रकार की होती हैं।

  1. जीवन रेखा चलते-चलते जहा एकदम रुक जाती है और जहां यह रेखा रुकती है, उसके आगे ही काला धब्बा या क्रास का चिन्ह बन जाए और उस क्रास के चिन्ह से यदि जीवन रेखा की ओर सीधी रेखा खींचें, तब उससे जो समय स्पष्ट होता है, वही उस व्यक्ति की आयु होती है।
  2. हृदय रेखा मार्ग में लोप हो गई हो और शनि पर्वत के नीचे सहसा ही दिखाई दे जाए तो समझ लेना चाहिए कि इस व्यक्ति की मृत्यु बीच रास्ते में ही हो जाएगी या यह व्यक्ति पूरी आयु नहीं भोग सकेगा।
  3. यदि हृदय रेखा मस्तिष्क रेखा से शनि पर्वत के नीचे या गुरु पर्वत के नीचे मिले और दूसरे हाथ में भी ऐसा ही योग दिखाई दे तो वह व्यक्ति पूरी आयु नहीं भोगता है।

पूरी आयु से मेरा मतलब उस देश के व्यक्तियों की सामान्य औसत आयु से है। भारतवर्ष में पूर्ण आयु लगभग 60 वर्ष से 70 वर्ष के बीच मानी जाती है। यदि कोई व्यक्ति 40 या 45 वर्ष की आयु में ही मृत्यु को प्राप्त हो जाता है तो ऐसी मृत्यु पूर्ण आयु नहीं कहलाती। ये तथ्य अपूर्ण आयु के सूचक हैं।

मैं ऊपर की पंक्तियों में यह स्पष्ट कर रहा था कि हस्तरेखा मजाक की वस्तु नहीं है या इस पर अविश्वास करने की आवयकता नही है बल्कि ये रेखाएं पूर्ण सत्य को स्पष्ट करने में सहायत है, साथ ही साथ भविष्य से सम्बन्धित तथ्य को जितनी स्पष्टता के साथ ये रेखाएं स्पष्ट करती हैं उतना अन्य कोई विज्ञान नहीं ।

हस्तरेखा के अध्ययन के लिए कई बाते ध्यान में रखनी चाहिए। इनमें से कुछ तथ्य अग्रलिखित हैं

  1. जब भी आपके पास कोई व्यक्ति अपना हाथ दिखाने के लिए आये तो आपको चाहिए कि आप उसके हाथ का स्पर्श न करें, क्योंकि आपके स्पर्श करने से आपके शरीर की विद्युत धारा से उसकी विद्युत धारा का सम्पर्क हो जाएगा और उस व्यक्ति के हाथ की मौलिकता समाप्त हो जाएगी। इसलिए हाथ को देखते समय आप अपने हाथ समेटे रहें।
  2. सबसे पहले उस व्यक्ति के दोनों हाथों को उल्टा करके देखना चाहिए, क्योंकि हाथ को उल्टा करने से अर्थात् हथेलिया जमीन की ओर रहने से आप उसके हाथ के आकार को भली प्रकार से समझ सकेंगे कि यह हाथ वर्गाकार है अथवा चौकोर है अथवा किस प्रकार का हाथ मेरे सामने प्रस्तुत हुआ है
  3. जब हाथ का प्रकार ज्ञान हो जाए तो उसे दोनों हाथ सीधे करने के लिए कहिये और दोनों हाथ सीधे होने पर उसके मणिबन्ध से देखते-देखते ऊपर की ओर आना चाहिए।
  4. इसके बाद पर्वत पर्वत के उभार पर्वत से जुडी हुई उंगलिया और अंगूठे को देखना चाहिए। अन्त में उसकी उगलियों के अग्र भाग और नाखनों का निरीक्षण करना चाहिए।
  5. इस प्रकार हाथ का अध्ययन बिना स्पर्श किये ही कर लेने के बाद उसके हाथ को छूना चाहिए और पूरे हाथ के जोड़ों को ध्यान में रखना चाहिए। हाथ के जोड़ अर्थात् हथेली के जाड़ा से ग्रहो के भागो का भली भांति अध्ययन हो जाता है। उंगलियों के जोड़ों से भी कई तथ्य स्पष्ट हो जाते हैं। हाथ का स्पर्श आपको इस बात का भी आभास दे देगा कि वह हाथ नरम है या कठोर, लचीला है अथवा सख्त हाथ की कोमलता और कठोरना भी हस्तरेखा विशेषज्ञ के लिए अत्यधिक महत्व रखती है।
  6. मणिबन्ध की रेखाओं का भी हस्तरेखा विशेषज्ञ के लिए महत्व होता है अतः उनका भी अध्ययन कर लेना चाहिए।
  7. इसके बाद हथेली पर पाये जाने वाले पर्वत, पर्वतों के उभार व दबाव, साथ ही पर्वतों से जुड़ी हुई रेखाएं दो पर्वतों की संधिया तथा उन पर पाये जाने वाले मम चिन्हां का भी अध्ययन करना चाहिए।
  8. अन्त में उंगलियों के सिरों पर शंख चक्र आदि दिखाई देते हैं, वे भी अपने आप में बहुत अधिक महत्व रखते है। अतः उनका भी अध्ययन आवश्यक है।

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