दान द्वारा ग्रह शांति

मत्स्य पुराण के अनुसार

सर्वेषाम् उपायानां दानं श्रेष्ठतमं मतम

बचाव के सभी निर्धारित उपायों में से, दान सबसे श्रेष्ठ है । व्यक्तियों को वांछित फल मिल सकता है तथा दान से किसी पर भी विजय प्राप्त की जा सकती है। जिनकी कोई विशेष इच्छा नहीं है, उन्हें भी उसकी (ईश्वर) कृपा के लिए अपनी क्षमता के अनुसार दान करना चाहिए।

मत्स्य पुराण के पूरे श्लोक का उद्धरण हम नहीं दे रहे, अपने विचार प्रकट करने के लिए एक पंक्ति दे रहे हैं। यह मत्स्य पुराण के श्लोक पर आधारित है तथा पराशरी व्यवस्था को इसमें लिया गया है, जिसके अन्तर्गत ऋषि पराशर ने विभिन्न ग्रहों के लिए विभिन्न पदार्थ नियत किए हैं।

अगले पृष्ठों पर बताई वस्तुओं का दान कर सभी वर्ग के व्यक्ति वांछित फल प्राप्त कर सकते हैं। आज के वैज्ञानिक युग में व्यक्ति की जाति का पता लगाना बहुत कठिन है। हमने एक नियम खोज निकाला है, वह है गरीब को खिलाना। इसके लिए हम अपने प्रभु भक्तों को झोपड़ियों में जाकर बाँटने की सलाह देते हैं। या अन्धविद्यालय, साधुओं के आश्रम, अनाथालय तथा वे निकेतन जहाँ नारियाँ रहती हों।

सभी धर्म दान देने का परामर्श करते हैं। हर नियम का कोई अपवादं है परन्तु इस नियम का कोई अपवाद नहीं है। सभी धार्मिक पुस्तकें इससे भरी पड़ी हैं। राजा हरीशचन्द्र, कर्ण तथा राजा बलि अपनी दानशीलता के कारण प्रसिद्ध रहे हैं।

हम आरम्भ से ऋषि पराशर का अनुसरण कर रहे हैं इन्होंने अपने वृहद पराशर होराशास्त्र में ग्रह शांति के लिए एक पूरा अध्याय लिखा है और कहा है :-

प्रीतये तु नभोगाना मोदनं गुड़मिश्रितम्

पायसं च हविष्यान्न श्रीरषाष्टिकमेव वा ।

ग्रहों को सन्तुष्ट करने के लिए व्यक्ति को लड्डू, गुड़, दूध, खीर तथा अन्य खाद्य पदार्थ तथा चावल से बने पदार्थ अर्पित करने चाहिए।

लोग कठिनाईयों तथा विपत्तियों के समय ही ज्योतिषियों के पास जाते हैं । समृद्धि से घिरे होने तथा भाग्य जब उन पर प्रसन्न हो, उस समय वे नहीं आते। ऐसी परिस्थितियों में व्यक्ति को यह आशा नहीं करनी चाहिए कि उसे बुरे समय के बारे में बताएगा। वह इसे जानता है और दुर्भाग्य का पहले ही अनुभव कर चुका है। उसे यह बताने की आवश्यकता है कि दुर्भाग्य से कैसे रक्षा की जाए। वह इस विपत्ति को दूर करने के उपाय पूछता है। यहाँ यह भी कहा जाता है कि प्रारम्भ में किसी भी तरह के बचाव उपाय कोई प्रभाव नहीं डालते या कभी-कभी उनके प्रभाव इतने कम होते हैं कि वे दृष्टिगोचर नहीं होते ।

रक्षक उपायों का प्रभाव भी होगा या नहीं इसका निर्णय व्यक्ति की जन्मपत्री देखकर करना पड़ेगा। इससे उसकी घटनाओं के बारे में ही नहीं अपितु भाग्य की धाराएं किस ओर जा रही हैं, इसका पता भी लग जाता हैं। भाग्य की धाराएं ईश्वर द्वारा निश्चित दिशा की ओर जाएंगी जिसे व्यक्ति ने अपने पूर्व जन्म के अच्छे या बुरे कर्मों के रूप में किया है।

भाग्य की धाराओं के विपरीत जाने की कोशिश से कुछ हाथ नहीं लग सकता व्यक्ति की सहायता करने के लिए पहले हमें उसकी धाराओं की दिशा के बारे में पता लगाना होता है तथा फिर दयावान ईश्वर की ओर उससे निर्देश प्राप्त करना होता है। यहां हम इस परिकल्पना से प्रारम्भ करते हैं। रक्षक कार्यों का दैनिक योजना से बहुत अच्छा सम्पर्क है।

दूसरी चीज (बचावों के संदर्भ में) जिसे समझना बहुत आवश्यक है यह तथ्य है कि जब तक व्यक्ति को इसके बारे में अच्छी तरह जानकारी प्राप्त नहीं हो जाएगी उसे, विश्वास नहीं हो पाएगा तथा बिना विश्वास के किया गया कार्य व्यर्थ होता है। केवल इच्छा और विश्वास पर ही उपाय काम करते हैं। अपने दैनिक जीवन में भी हम देखते हैं कि चिकित्सक द्वारा बताई गई जिन दवाओं पर विश्वास न हो वे कम ही प्रभाव कर पाती हैं। यह लेखक का अविवादास्पद अनुभव है। ऐसे मामलों के बारे में यहां बताना प्रासंगिक होगा।

हम को स्पष्ट रूप से समझ लेना चाहिए कि इस व्यस्त संसार की किसी भी घटना को अन्य घटनाओं से अलग नहीं समझना चाहिए चाहे वे कितनी ही तुच्छ या छोटी क्यों न हो। जब कोई कुत्ते को रोटी का टुकड़ा देता है तो प्रभाव केवल देने वाले, प्राप्त करने वाले या दी गई वस्तु तक ही सीमित नहीं होते यह केवल इतना नहीं है कि रोटी देने वाला व्यक्ति कुछ गरीब हो जाएगा, कुत्ते की भूख मिट जाएगी तथा इस प्रक्रिया में रोटी, खा ली जाएगी। इसमें इससे कहीं ज्यादा है, इस सम्पूर्ण प्रक्रिया में एक ऐसी सूक्ष्म श्रृंखला गतिशील होती है जिसे अपनी आंखों से नहीं देखा जा सकता और न ही असूक्ष्म बुद्धि से उसके परिणामों पर विचार किया जा सकता है।

इन्हें हमारे महर्षियों द्वारा देखा और अनुभव किया गया है, जिनके पास ब्रह्माण्ड की दिव्य दृष्टि थी। यहां हमारा लक्ष्य अपने मित्रों को यह बताना है कि हर महत्वहीन सी दिखने वाली क्रिया के परिणाम दूरगामी होते हैं। इसी विश्वास के साथ विद्वानों द्वारा निर्धारित रक्षक उपायों का हमें अभ्यास करना चाहिए।

तमाम क्रियाओं का सार, जिसका हमने उपचार के रूप में वर्णन किया है, मौलिक है। उनमें भौतिक के साथ-साथ आध्यात्मिक अर्थ भी है, जैसा कि उपर्युक्त से स्पष्ट है यहां जो उपाए बताए गए हैं वह व्यक्ति को दैविक इच्छा के अधीन लाने का प्रयास है या सर्वोच्च शक्तिमान ईश्वर की भक्ति है ‘उनकी इच्छा पूर्ण हो’ जिन रक्षक उपायों का यहाँ वर्णन किया गया है वह है दान या परोपकार में अपनी संपत्ति को अर्पित करना, यह भी एक प्रकार की भक्ति है जिसका अभ्यास करना अपेक्षाकृत आसान है।

दान द्वारा ग्रह शांति

दान या परोपकार की भावना को यदि उपयुक्त मनोवृत्ती के साथ किया जाए तो वह पर्याप्त उपायों में अभिव्यक्त होती है। परोपकार मनुष्य के अहं को दूर करने का प्रयत्न है। यदि इसे जरा से भी अहंभाव के साथ किया गया हो तो इसके प्रभाव कम हो जाते हैं।

धर्मग्रन्थों से ऐसे उदाहरण देने के स्थान पर, जिन्हें हमारे अधिकांश पाठकों ने पढ़ा होगा या संतों के प्रवचनों में सुना होगा, हम यहां खान-खाना का संदर्भ दे रहे हैं जो अपने परोपकार के लिए प्रसिद्ध थे। जब वह अकबर के संरक्षण में थे तब उसके पास बहुत से आय के स्त्रोत थे किन्तु जब उसे राज के कोप का भाजन बनना पड़ा तो उसके पास सीमित स्त्रोत ही शेष रह गए थे तथा दान में देने के लिए भी कम था। यदि खान-खाना की जगह कोई ओर होता तो दान देने से कतराता क्योंकि परोपकारी होना उसके लिए आसान नहीं था। इतना होते हुए भी खान खाना ने सिर झुका कर दान दिया तथा प्रायः उनकी ओर नहीं देखते थे जिन्होंने उनसे कुछ मांगा था। एक बार एक व्यक्ति जो उनके पास मांगने के लिये गया था अपने को रोक नहीं सका तथा उनके झुके सिर का कारण पूछा। उन्होंने योग्यतापूर्ण ढंग से कहा :-

देनहार कोई ओर है, देत रहत दिन रैन

लोग भरम हम पर करें ताते नीचे नैन

हमें परोपकारी होने के नाते अपने अहम् के बारे में नहीं सोचना चाहिए तथा सभी संभावित तरीकों से पूर्णतः ईश्वर को समर्पित हो जाना चाहिए। खीर से भरा एक पात्र है। चम्मच एक ऐसा उपकरण है जिसके माध्यम से व्यक्तियों में खीर बांटी जाती है। पोषण करने के श्रेय, न तो चम्मच और न ही पात्र ले सकता है। अतः हमें तो स्वयं को एक माध्यम समझना चाहिए जिसके द्वारा उसकी कृपा बहती है।

रक्षक उपाय कई प्रकार के होते हैं किन्तु मुख्यतः उन्हें दो भागों में बांट सकते हैं। एक तो कृत्रिम है और दूसरा सर्वशक्तिमान से दया की याचना है। कृत्रिम वर्ग में रत्न तथा कीमती पत्थर आते हैं, जिनका प्रयोग विशेष ग्रह की शान्ति के लिए किया जाता है। दूसरे वर्ग में भक्ति, पूजा तथा परोपकार इत्यादि आते हैं। यहां हम दान को एक शक्तिशाली उपाय के रूप में ले रहे हैं।

व्यक्ति की जन्मपत्री में ग्रहों की स्थिति के अनुसार उसके शुभ तथा अशुभ फल उसे भुगतने पड़ते हैं। अत्यधिक हितकारी वृहस्पति भी पाप ग्रहो की दृष्टि के प्रभाव में होने पर या अपने स्वामित्व के बल पर कभी-कभी अनिष्टकर हो जाता है। शनि जो सबसे क्रूर ग्रह है, उनके लिये हितकारी बन जाता है जो तुला, वृष लग्न में जन्मे हों।

हमारी यह विचारपूर्ण राय है कि कोई ग्रह अपने आप में अच्छा या बुरा नहीं होता, केवल उसकी स्थिति तथा पत्री में उसका स्वामित्व उसे ऐसा बनाता है। कोई भी उपचार करने से पहले हमें रोग का निदान करना होता है।

उपाय बताने से पहले हमें स्पष्ट रूप से बीमारी किस ओर को इंगित करती है जो मात्र वास्तविक रोग का प्रभाव हो सकता है। लक्षण प्रायः भ्रामक होते हैं । अन्यत्र हमने हर ग्रहों के बारे में विस्तृत ब्यौरे दिए हैं जिनमें उनके स्वरूप, रंगों, रत्नों तथा पदार्थों आदि के बारे में बताया गया है। जब किसी ग्रह को दान द्वारा शांत करना होता है तो उस ग्रह के आगे दिए गए एक या सभी पदार्थों का दान दिया जाता है। प्रश्न यह है कि यह दिया किसे जाए ?

जहां तक दान दिए जाने वाले व्यक्ति की पात्रता का प्रश्न है, हमारा पूर्ण विश्वास है कि ग्रहों के स्वरूप को समझ लिया जाना चाहिए यद्यपि ग्रह के स्वरूप को पहचाना जा सकता है किन्तु हर विषय में उनकी पात्रता को पहचानना हमेशा संभव नहीं होता। हम जानते हैं कि नियमित रूप से गाय को चारा देने के लिए उसकी पहचान करना बहुत से लोगों के लिए बहुत मुश्किल होती है। यहां तक कि दिल्ली की अच्छी कॉलोनियों में कुत्ते दुर्लभ हैं। ऐसी परिस्थितियों में यह कैसे कहा जा सकता है कि किसी विशिष्ट मामले में कीटों को पोषित किया जाना चाहिए तथा अन्य मामले में बन्दरों को । इन सब बातों का परोक्ष, दान की व्यवस्था से वंचित करना है। इन कठिनाइयों को ध्यान में रखते हुए हमने एक सुनहरा रास्ता निकाला है और वह है गरीबों को खिलाना

यह संभव है क्योंकि अच्छी से अच्छी कालोनी में कुछ गरीब लोग तो अवश्य होते हैं। यदि ये उपलब्ध न हो तो हम मंदिरों में जा सकते हैं जहां कुछ भिखारी तो आसानी से मिल जाते हैं। शुक्र जैसे विशेष मामलों में, जहां अधिक मात्रा की जरूरत होती है वहां हम अंधविद्यालय में खीर या दूध इत्यादि भिजवा सकते हैं इसके अतिरिक्त वे आश्रम जहां स्त्रियाँ रहती हों, अपाहिजों की बस्ती, कोढ़ियों का रहने का स्थान, अनाथालय आदि स्थानों पर पका हुआ सामान बांटने की सलाह देते हैं।

सड़कों पर घूमने वाली गाए पूरी तरह पोषित नहीं होती। ये गायें कूड़ा खाती हुई दिखाई पड़ती हैं वे खाने की वस्तुएं खोज रही होती हैं। यदि हम सब्जियों के छिलकों को इकट्ठा कर रखें तो इन्हें गायों को दिया जा सकता है। यह भी पुण्य का काम होगा।

मैंने भारत के विभिन्न मंदिरों को देखा है। हावड़ा के दक्षिणेश्वर के काली माँ के मंदिर में जहां श्री रामकृष्ण तथा विवेकानंद ने पूर्ण श्रद्धा से आराधना की, मनों मूलियाँ अर्पित की जाती है तथा बाद में उन्हें नदी में फेंक दिया जाता है। मूली राहू का प्रतिनिधित्व करती हैं।

इसी तरह दिल्ली के कई मंदिरों में भगवान भैरों तथा माँ काली को शराब तथा मांस चढ़ाए जाते रहे हैं। क्योंकि राहू मासांहारी और शराबी है, अतः इन्हें विभिन्न मंदिरों में चढ़ाया जाता है। संस्कृति में परिवर्तन आने से अब मांस तो नहीं पर शराब अब भी चढ़ाई जाती है। दक्षिण तथा पश्चिम में नारियल भारी मात्रा में चढ़ाए जाते हैं। राजस्थान में, गंभीर मामलों में, श्री हनुमान के मंदिर में पके चावल, साबुत उड़द तथा लड्डू चढ़ाए जाते हैं। यहां काले जादू तथा दुष्ट आत्माओं से पीड़ित आते हैं तथा उनसे मुक्ति पाते हैं।

हमने जानबूझ कर मांस के दान को हटाया है। अतएव हमने उसी के अनुरूप एक दिव्य अस्त्र का प्रयोग सुझाया है और वह है गरीबों को हलवा बांटना


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